Monday, November 9, 2020

पहले हम पानीदार थे लेकिन अब हो रहे बेपानी...

किलकिला नदी के किनारे आयोजित कार्यक्रम में मंचासीन डॉ. राजेन्द्र सिंह व अन्य। (फाइल फोटो) 

।। अरुण सिंह ।। 
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कास के नाम पर हमने वसुधा का इस कदर शोषण किया है की प्रकृति का पूरा संतुलन व पारिस्थितिकी तंत्र तहस-नहस हो गया है। सूखा, बाढ़ व प्राकृतिक आपदायें इसी का परिणाम है। फिर भी हम सीख लेने के बजाय प्रकृति का बेइंतहा दोहन और शोषण किये जा रहे हैं। प्रकृति और पर्यावरण के साथ हमारा यह नासमझी पूर्ण व्यवहार इस खूबसूरत पृथ्वी की सेहत को बिगाड़ दिया है, जिसे ठीक करने की दिशा में कुछ लोग प्रयासरत हैं। इन लोगों में जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध मैगसेसे पुरस्कार विजेता डॉ राजेंद्र सिंह प्रमुख हैं। पृथ्वी की सेहत को ठीक करने तथा इस सुंदर और जीवंत ग्रह के नैसर्गिक सौंदर्य को कायम रखने का जो जज्बा और जुनून आपके अंदर हैं वह हर संवेदनशील व्यक्ति के लिए प्रेरणादायी है। आपने बिना किसी सरकारी सहयोग और मदद के समाज को संगठित और जागरूक कर राजस्थान में सात मृतप्राय हो चुकी नदियों को फिर से पुनर्जीवित करने का कार्य किया है। अनूठे व्यक्तित्व के धनी जल पुरुष से सीधे तौर पर मेरा तार्रुफ़ तो नहीं है, लेकिन कुछ घंटों का सानिध्य जरूर मिला जिसमें यह जाना कि बेपानी होने और पानीदार होने का मतलब क्या है।

गौरतलब है कि पृथ्वी दिवस के मौके पर 5 वर्ष पूर्व जल पुरुष राजेंद्र सिंह जी को मध्यप्रदेश के पन्ना शहर में आमंत्रित किया गया था। उस समय नगर पालिका परिषद पन्ना के पूर्व अध्यक्ष बृजेंद्र सिंह बुंदेला जिन्होंने पन्ना शहर के कई तालाबों का जीर्णोद्धार कराने का महती कार्य किया है, इनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। जल पुरुष को पन्ना में आमंत्रित करने का मुख्य उद्देश्य उनके हाथों विषाक्त और गंदे नाले में तब्दील हो चुकी किलकिला नदी को साफ स्वच्छ बनाने का अभियान शुरू कराना था, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर पन्ना आये थे। इस मौके पर एक और अनूठे व्यक्ति की भी मौजूदगी रही, जिन्होंने बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के कुनबे को फिर से आबाद करने का चमत्कारिक कार्य किया है। इन दो विभूतियों की मौजूदगी में किलकिला नदी के किनारे एक कार्यक्रम भी आयोजित हुआ, जिसे  जलपुरुष डॉ. राजेन्द्र सिंह तथा पन्ना में बाघों को आबाद करने में महती भूमिका निभाने वाले भारतीय वन सेवा के अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति ने संबोधित किया।

 

जलकुम्भी निकालकर किलकिला में सफाई अभियान का शुभारम्भ करते जलपुरुष। (फाइल फोटो) 

मेरी स्मृति में 22 अप्रैल 2015 का दिन आज भी अंकित है। इस दिन जल पुरुष ने अपने उद्बोधन में कहा था कि पूरे देश में सिर्फ केन नदी है जो प्रदूषण से मुक्त है। इसका पानी निर्मल और पीने के योग्य है, विषाक्त नहीं है। जबकि देश की सभी नदियां बुरी तरह से दूषित, प्रदूषित और शोषित हैं। इस अर्थ में पन्ना जिले के लोग भाग्यशाली हैं, वे यह कह सकते हैं कि हम नदी वाले हैं। डॉक्टर राजेंद्र सिंह ने कहा कि किलकिला नदी मर चुकी है लेकिन इस मृतप्राय व दूषित और विषाक्त हो चुकी नदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है। यदि पन्नावासी ठान लें और एक जुनून व जज्बे के साथ इस नदी की सेहत को ठीक करने के काम में जुट जाएं तो किलकिला को जीवित करना कठिन नहीं है। जल पुरुष ने पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति के कार्यों की सराहना करते हुए कहा था की मूर्ति जैसे जुनूनी अधिकारियों की जरूरत है, जिन्होंने जंगल बचा कर रखा है। आप लोग भाग्यशाली हैं कि यहां हरियाली, पानी और मिट्टी है।

 प्रणामी धर्मावलंबियों की गंगा कहीं जाती है किलकिला


चौपड़ा मन्दिर के निकट वनक्षेत्र से होकर गुजरती किलकिला नदी का द्रश्य। 

 पन्ना शहर के निकट से बहने वाली किलकिला नदी प्रणामी धर्मावलंबियों के लिए उसी तरह पवित्र और धार्मिक महत्व की है, जिस तरह हिंदुओं के लिए गंगा है। यही वजह है कि किलकिला नदी को प्रणामी संप्रदाय की गंगा कहा जाता है। विगत 5 वर्ष पूर्व जलपुरुष डॉ राजेन्द्र सिंह ने इस पवित्र नदी को साफ स्वच्छ बनाने का संकल्प दिलाया था, जिस पर पहल भी हुई। लेकिन नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान ज्यादा समय तक नहीं चल सका और यह नदी आज भी बुरी तरह से दूषित व विषाक्त है। पन्ना शहर की नालियों और सीवर का गंदा व दूषित पानी इस नदी में पहुंचता है, फलस्वरूप यह नदी गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। पूर्व नपा अध्यक्ष बृजेंद्र सिंह बुंदेला जिनके पहल व प्रयासों से नदी को पुनर्जीवित करने की मुहिम चल रही थी, उनके आकस्मिक निधन के बाद से किलकिला की ओर किसी ने रुख नहीं किया। नतीजतन यह नदी जिसका पवित्र जल देश दुनिया में फैले प्रणामी धर्मावलंबियों बड़ी श्रद्धा के साथ लेकर जाते थे, वह अब गंदगी का पर्याय बन चुकी है तथा बीमारियां परोसने में मददगार साबित हो रही है। जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह की यह सीख हमें याद रखनी चाहिए कि हमारा वास्तविक बैंक आरबीआई नहीं बल्कि जल के भंडार हैं, जिन पर हमारा जीवन निर्भर है। इनकी उपेक्षा और अनदेखी खुद हमारे लिए आत्मघाती साबित होगा। अतीत में हम पानीदार रहे हैं क्योंकि हमारी जीवन चिंतना प्रकृति विरोधी नहीं थी, हम प्रकृति का सम्मान करते थे। लेकिन अब सम्मान का भाव तिरोहित हो गया है और हम संरक्षण के बजाय शोषण में लिप्त हैं, यही कारण है कि अब हम बेपानी होते जा रहे हैं।

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