Thursday, January 17, 2019

नौ वर्ष की उम्र में किया था वनराज का शिकार

  • तीन बाघ एक साथ मारने पर हुआ हृदय परिवर्तन
  • पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह के जीवन की रोचक दास्तान


 शिकार किये गये तीन बाघों के पास  बैठे 15 वर्षीय लोकेन्द्र सिंह।  

अरुण सिंह, पन्ना। राजाशाही जमाने में पन्ना रियासत के जंगल जैव विविधता से परिपूर्ण व बाघों से आबाद थे। बताया जाता है कि एक शदी पूर्व यहां के जंगलों में पांच सौ से भी अधिक बाघ विचरण करते थे, यही वजह है कि इस इलाके को बाघों की धरती भी कहा जाता रहा है। उस समय रियासत के पूरे जंगल को तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा शिकार खेलने के लिए संरक्षित रखा गया था। यहां के जंगल में राजा के अलावा वनराज का शिकार करने की इजाजत किसी को भी नहीं थी।
उल्लेखनीय है कि राजाशाही खत्म होने के बाद आबादी का दबाव जंगलों पर बढ़ता गया, फलस्वरूप जंगल सिकुड़ते चले गये और इसी के साथ जंगल की शान कहे जाने वाले वनराज भी गायब होते गये। वन्य प्रांणी संरक्षण अधिनियम लागू होने के पूर्व तक जंगल में बाघ का शिकार करना बड़े ही गर्व की बात मानी जाती रही है। पन्ना राजघराने के सदस्य पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह जब महज नौ वर्ष के थे, तब उन्होंने एक बाघ को मार गिराया था। पांच साल बाद जब लोकेन्द्र सिंह 15 वर्ष के हुए तो उन्होंने सन् 1960 में पटोरी नामक स्थान पर तीन बाघों को एक साथ मौत की नींद सुला दिया। इस बाघ परिवार का सफाया करने के बाद 15 वर्ष के इस राजकुमार ने बड़े ही गर्व के साथ शिकार किये गये बाघों के पास बैठकर हांथ में बन्दूक लिए फोटो भी खिंचाई. लेकिन शिकार की इस घटना ने बालक लोकेन्द्र सिंह को विचलित कर दिया और उनकी जिन्दगी के नये अध्याय  का श्रीगणेश हो गया।
शिकार के शौकीन रहे लोकेन्द्र सिंह का हृदय परिवर्तन होने पर उन्होंने यह कसम खा ली कि अब कभी बाघ का शिकार नहीं करूंगा। उन्होंने वन व पर्यावरण को सुरक्षा तथा बाघों के संरक्षण को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। इसी सोच के चलते लोकेन्द्र सिंह की पहल से पन्ना में सर्वप्रथम गंगऊ सेंचुरी बनी, बाद में 1981 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण हुआ। वर्ष 1994 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व बनाया गया. लेकिन टाइगर रिजर्व बनने के बाद भी यहां बाघों की दुनिया आबाद होने के बजाय सिमटती चली गई। हालत यहां तक जा पहुंची कि वर्ष 2009 में बाघों की यह धरती बाघ विहीन हो गई। पूरे देश व दुनिया में किरकिरी होने पर यहां बाघ पुर्नस्थापना योजना शुरू हुई, जिसके चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले। अब पन्ना का यह जंगल बाघों से आबाद है, और यहां तीन दर्जन  से अधिक नर व मादा बाघ विचरण कर रहे हैं।

बाघ बचे भी तो रहेंगे कहां ? 


पन्ना टाइगर रिज़र्व के एक बार फिर बाघों से आबाद होने पर पर्यावरण व  वन्यजीव प्रेमी जहाँ प्रशन्न हैं वहीँ बाघों की आबाद हो चुकी इस दुनिया की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर चिंतित भी हैं। इसकी वजह यह है कि अब यहाँ आर श्रीनिवास मूर्ति जैसे ईमानदार और जुनूनी वन अधिकारी नहीं हैं जिनके नेतृत्व व अथक मेहनत से यहाँ बाघों का नया संसार आबाद हुआ है। मौजूदा समय तेजी से जहाँ जंगल कट रहा है, वहीँ शिकार की घटनाएं भी बढ़ी हैं। शातिर शिकारियों से बाघों की सुरक्षा करने के साथ जंगल बचाना भी जरुरी है। जंगल की अपनी एक अलग दुनिया व व्यवस्था होती है। यहां पाये जाने वाले जीव - जन्तु एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। लेकिन जंगलों को तेजी से नष्ट किया जा रहा है, ऐसे में अगर बाघ बचा भी लिये गये तो उनके रहने की जगह कहां होगी ? असली चुनौती बाघ नहीं, उस पूरे तंत्र को बचाना है जहां बाघों को जीवन के अनुकूल जगह मिल सके।

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