- 492 एकड़ वाला पन्ना का लोकपाल सागर मैदान में तब्दील
- मौजूदा समय इसी तालाब से शहर में हो रही पेयजल की आपूर्ति
तेजी के साथ सूख रहा पन्ना के लोकपाल सागर तालाब का दृश्य। |
अरुण सिंह, पन्ना। मन्दिरों और तालाबों का शहर पन्ना आबादी बढऩे के साथ-साथ तेजी से फैल रहा है । शहर के चारों तरफ जंगल व पहाड़ होने के कारण शहर को अपने पांव पसारने के लिये जितनी जमीन चाहिये वह नहीं है । इन हालातों में बढ़ती आबादी का पूरा दबाव शहर के प्राचीन तालाबों व मन्दिरों की जमीन पर पड़ रहा है । राजाशाही जमाने में निर्मित पन्ना के प्राचीन जीवनदायी तालाबों में तेजी के साथ बस्तियों का विस्तार हो रहा है, जिससे इन तालाबों का अस्तित्व सिमटता जा रहा है । इस वर्ष भीषण सूखा पडऩे के कारण तालाब सूखकर सपाट मैदान में तब्दील हों गये हैं जिससे शहर में अभी से पेयजल संकट भी गहराने लगा है।
उल्लेखनीय है कि लोकपाल सागर तालाब पन्ना शहर के प्रमुख तालाबों में से एक है। इस विशाल तालाब के पानी से आस-पास के कई ग्रामों की खेती जहां सिंचित होती रही है वहीं पन्ना शहर के स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति भी की जाती रही है। लेकिन इस वर्ष लोकपाल सागर तालाब में पानी की उपलब्धता कम होने के कारण खेतों की सिंचाई पर रोक लगा दी गई थी। सिंचाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बावजूद लोकपाल सागर का अधिकांश हिस्सा पूरी तरह से सूखकर मैदान में तब्दील हो चुका है। तालाब में शेष बचे पानी से पन्ना शहर को कितने दिनों तक पेयजल की आपूर्ति की जा सकेगी, मौजूदा व्यवस्थाओं को देखते हुये कुछ कह पाना मुश्किल है। यदि पेयजल की बड़े पैमाने पर हो रही बर्बादी को नहीं रोका गया तो आने वाले अप्रैल व मई के महीने में पन्ना शहर में पानी के लिये त्राहि-त्राहि मच सकती है।
आखिर क्यों नहीं भरते तालाब
तालाब के पानी से अपनी प्यास बुझाते मवेशी। |
किलकिला फीडर की नहर में बन गये घर
किलकिला फीडर धरमसागर व लोकपाल सागर तालाब को भरने का प्रमुख जरिया था, जिसका अब वजूद ही खत्म कर दिया गया है। किलकिला फीडर की नहर धरमसागर तालाब के किनारे से होते हुये लोकपाल सागर तालाब तक पहुँचती थी। लेकिन बीते दो-तीन दशक के दौरान इस नहर के ऊपर कच्चे व पक्के सैकड़ों मकान बन गये हैं , जिसके कारण नहर के जरिये तालाबों में जाने वाला पानी पूरी तरह ठप्प हो गया है। यही वजह है कि सैकड़ों एकड़ सिंचाई करने की क्षमता वाला यह तालाब सिंचाई पर रोक के बावजूद मार्च के महीने में ही सूखने की कगार पर जा पहुँचा है। इसे बिडम्बना ही कहा जायेगा कि शहर के जीवन का आधार तालाबों का पहले अतिक्रमण करके गला घोंटा गया और अब इन सूखे तालाबों को गंदगी और कचरे से पाटा जा रहा है। यही पानी शहरवासियों के लिये पेयजल हेतु सप्लाई किया जाता है।00000
अरुण जी मुद्दा बढ़िया है थोडा और विस्तार से लिखें
ReplyDeleteजी सर,प्रयास करूंगा तालाबों पर विस्तार से लिखने का,सुझाव के लिए धन्यवाद!
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