Tuesday, December 24, 2024

25 दिसम्बर और पीटीआर को आबाद करने वाला बाघ टी-3

  •  प्रधानमंत्री इसी दिन कर रहे केन-बेतवा लिंक परियोजना का भूमिपूजन
  •  इस अजब गज़ब संयोग को आखिर किस रूप में याद करेंगे पन्नावासी

बाघ विहीन पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने वाला बाघ टी-3  ( फोटो- विक्रम सिंह परिहार )

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। देश की बहुचर्चित व केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना एक बार फिर चर्चा में है। शुरूआती दौर से ही विवादों के घेरे में रही इस परियोजना को लेकर इन दिनों व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री, सांसद व विधायक सभी परियोजना के गुणगान में जुटे हुए हैं, प्रशासनिक अमला भी गांव-गांव अभियान चलाकर इस परियोजना के लाभों को बता रहा है। लेकिन नेताओं और अधिकारियों के बड़े - बड़े दावों के बावजूद लोग सशंकित हैं। क्योंकि अतीत के अनुभव ( जेके सीमेन्ट प्लांट ) बेहद कडुवे साबित हुए हैं।

 विशेष गौरतलब बात यह है कि इस बहुप्रतीक्षित और विवादित केन-बेतवा लिंक परियोजना का भूमिपूजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी 25 दिसम्बर को खजुराहो में करने जा रहे हैं। यह तिथि 25 दिसम्बर कई मामले में महत्वपूर्ण है। भाजपा के शीर्ष पुरुष व पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी बाजपेयी जी का जहाँ जन्म दिवस है, वहीं पन्ना टाइगर रिज़र्व को आबाद करने वाले बाघ टी-3 की स्मृतियाँ भी इस तिथि से जुडी हुई हैं। इस अजब गज़ब संयोग को पन्नावासी किस रूप में याद रखेंगे, यह आने वाला वक्त बतायेगा।  

भोपाल एअरपोर्ट में भी प्रचार 

जहाँ तक बाघ टी-3 की इस तिथि से कनेक्शन की बात है तो वह कुछ इस प्रकार है। पन्ना के जंगलों से बाघों की उजड़ चुकी दुनिया को फिर से आबाद करने के लिए 7 नवम्बर 2009 को पेंच टाइगर रिजर्व से नर बाघ टी-3 को यहां लाया गया था। इस नर बाघ को बाड़े में कुछ दिन रखने के बाद 13 नवम्बर को खुले जंगल में स्वच्छन्द विचरण के लिए छोंड़ दिया गया। मालुम हो कि बाघ टी-3 को पन्ना लाये जाने से पूर्व कान्हा व बांधवगढ़ से दो बाघिनों को  पन्ना में 3 और 6 मार्च को लाया जाकर टाइगर रिजर्व के जंगल में छोंड़ दिया गया था ताकि नर बाघ के संपर्क में आकर दोनों बाघिन वंशवृद्धि कर सकें। लेकिन नर बाघ की मुलाकात इन बाघिनों से नहीं हो सकी और 27 नवम्बर को पेंच का यह बाघ पन्ना से अपने घर पेंच की तरफ कूच कर गया। पूरे 30 दिनों तक यह बाघ कड़ाके की ठंड में अनवरत यात्रा करते हुए 442 किमी. की दूरी तय कर डाली, जिसे अथक प्रयासों व जन सहयोग से 25 दिसम्बर को पकड़ा जा सका।

पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति के मुताबिक टी - 3 पेंच से लाया गया वह नर बाघ है जो एक तरह से पुन: स्थापित बाघों के कुनबा का पिता है। बाघ टी-3 के 30 दिनों की यात्रा का स्मरण करते हुए श्री मूर्ति बताते हैं कि ये दिन हमारे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण व महत्व के थे, क्योंकि इसी नर बाघ पर पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना का भविष्य टिका हुआ था। इन 30 दिनों में टी-3 ने बाघ आवास व उनके जीवन के बारे में पन्ना टाइगर रिजर्व की टीम व पूरे देश को इतना ज्ञान दिया जो अन्यत्र संभव नहीं था। यह बाघ पन्ना के दक्षिणी दिशा में छतरपुर, सागर एवं दमोह जिलों में विचरण करते हुए 442 किमी. की यात्रा की। जिस इलाके में बाघ विचरण कर रहा था वह पूरी तरह असुरक्षित था और शिकार हो जाने की प्रबल संभावना थी। लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और कडाके की ठंड में नदी, नाले व जंगल पार करते हुए उक्त बाघ को सुरक्षित तरीके से पुन: बेहोश करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व में मुक्त किया।

बाघ टी-3 की इस खोज ने ही पन्ना टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को एक टीम का रूप दिया। पन्ना टाइगर रिज़र्व के अधिकारियों-कर्मचारियों की रात-दिन की कड़ी मेहनत, सतत निगरानी और स्थानीय लोगों का सहयोग तब रंग लाया जब बाघिन टी-1 ने पहली बार 16 अप्रैल, 2010 को 4 शावकों को जन्म देकर वन्य-प्राणी जगत में पन्ना टाइगर रिजर्व का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा दिया। पन्ना टाइगर रिज़र्व का वर्ष 2009 से अब तक का सफ़र उपलब्धियों से भरा रहा है। मौजूदा समय यहाँ के जंगलों में 90 से भी अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं। इन बाघों को सुरक्षित व अनुकूल रहवास प्रदान करना पार्क प्रबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। बाघों का रहवास जिस तरह से निरंतर सिकुड़ रहा है और जंगलों पर मानव आबादी व विकास योजनाओं की दखलंदाजी बढ़ी है उससे मानव व वन्य जीवों के बीच संघर्ष की स्थितियां निर्मित होने लगी हैं, जो निश्चित ही चिंता की बात है। अभी हाल ही में घटित पन्ना टाइगर रिज़र्व से लगे हिनौता गांव की घटना इस समस्या की गंभीरता को बयां करती है।

 बांध बनने से क्या थम जायेगा केन नदी का अविरल प्रवाह ?



देश की स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त नदियों में सुमार केन नदी पन्ना टाइगर रिज़र्व के मध्य से प्रवाहित होती है। यह नदी वन्य प्राणियों सहित केन किनारे स्थित ग्रामों के लोगों के जीवन का आधार है। केन नदी के किनारे स्थित गांव के लोग बहुचर्चित केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर सशंकित और चिंतित हैं। बीरा गांव के वीरेंद्र सिंह (78 वर्ष) अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि "केन को पानी यदि ऊपर छेंक लेहें तो हम का करबी। हमसे कउनो राय व सहमति नहीं ली गई, जा तो हम लोगन के संगे सरासर अन्याय है"। ग्रामीणों का साफ कहना है कि केन के पानी पर पहला हक हमारा है। हम केन के पानी को रोककर बांध बनाने के पक्षधर नहीं हैं, क्योंकि इस नदी की जलधार पर ही हमारा जीवन निर्भर है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले से प्रवाहित होने वाली केन नदी रीठी कटनी के पास से निकलती है और 427 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के बांदा में यमुना नदी से मिल जाती है। ढोढन गांव के निकट जहां पर बांध का निर्माण होना है, वह नदी के उद्गम स्थल से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर है। इस तरह से बांध के निचले क्षेत्र में नदी की लंबाई तकरीबन 227 किलोमीटर बचती है, जहां सैकड़ों की संख्या में पन्ना, छतरपुर व बांदा जिले के गांव स्थित हैं। 44 हजार करोड रुपए से भी अधिक लागत वाली इस परियोजना के मूर्तरूप लेने से बाघों सहित दूसरे वन्य जीवों और गिद्धों का सदियों पुराना रहवास जहाँ नष्ट होगा वहीं लाखों पेड़ों के कटने से पर्यावरण की अपूर्णीय क्षति होगी। केन नदी के किनारे स्थित फरस्वाहा गांव के करण त्रिपाठी का कहना है कि बांध बनने से केन की जलधार यदि रुक गई तो केन किनारे के गांवों में जिंदगी मुश्किल हो जाएगी। केन नदी में यदि पानी नहीं रहा तो इन गांवों के लोग कैसे जिंदा रहेंगे ?

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