।। बाबूलाल दाहिया ।।
इसे अब शहर वाले तो दूर गाँव वाले लोग भी नहीं जानते। क्योंकि नई पीढ़ी का नाता अपने आस पास के पेड़ पौधों वनस्पतियों से छूटता सा जा रहा है। यही कारण है कि यदि शहर के किसी लड़के से कोई पेड़ों के नाम पूछे तो वह आम, जामुन, खिरनी, अमरूद,नीबू , आंवला, बेर, नीम, इमली, बरगद, पीपल आदि 10-12 पेड़ों से अधिक नहीं बता पाते। इसी तरह अगर गाँव के लोगों से पूछें तो वह भी 25-30 के बाद हिच्च बोल जायेंगे। किन्तु यदि उसी गाँव के बड़े बूढ़ों से पूछा जाय तो सैकड़ों पेड़ों और उनके फूल फलों तक की आकृति आज भी उनके ह्रदय में बनी हुई होती है।
चित्र में दिख रहा यह फल मरोड़ फल के पौधे का है, जिसे बघेली में (ऐंठी) तथा इसके पेड़ को (अटइन ) कहा जाता है। इसका पौधा झाड़ी नुमा 5-6 फीट का होता है और पेड़ के आस-पास 1 इंच मोटी जमीन से बहुत सारी शाखाएँ निकलती हैं। इसके फल में निकलने वाले बीज का जहाँ पहले औषधीय उपयोग था, वहीं इसके छाल का उपयोग बन्धन के रूप में होता है। प्राचीन समय में घर के छप्पर और बाड़ वगैरह में इसी का उपयोग होता था। लेकिन अब तो नई पीढ़ी अनेक पेड़ों की उपयोगिता और बाप पुरखों के लिए उसके अबदान को पूरी तरह भुला चुकी है। यही कारण है कि कारपोरेट घराने बगैर रोंक टोंक अपनी इकाई लगाने के लिए जंगलों को साफ करते रहते हैं और वहां के लोग हाथ में हाथ रखे बैठे रहते हैं।
मुझे ऐसा लगता है कि हर स्कूलों में एक बीस- पचीस मीटर लम्बा चौड़ा ऐसा हर्बल गार्डन होना चाहिए, जहां 40 -50 तरह के मेडिसनल प्लांट लगे हों जिनकी जानकारी छात्रों को दी जाय। क्योंकि स्कूल का अपने क्षेत्र में एक बहुत बड़ा नेटवर्क होता है, जहां हर घर के छात्र पढ़ने जाते हैं।
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