- यहां का मोती सागर तालाब नाले के जल प्रबंधन का श्रेष्ठ उदाहरण
- जलीय लताओं से आच्छादित हो चुके तालाब की होगी साफ-सफाई
![]() |
पन्ना जिले के अजयगढ़ क्षेत्र की ग्राम पंचायत मझगाँय की वीरान हो चुकी पहाड़ी का द्रश्य, जिससे कुंआ सूख रहे। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। प्रकृति और पर्यावरण के साथ बीते डेढ़ दो दशकों में जिस तरह का व्यवहार हुआ है, उसके दुष्परिणाम अब स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं। निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए हमने जंगलों को बेरहमी के साथ उजाडा है, नतीजतन साल दर साल जहां तापमान का पारा बढ़ रहा है, वहीं जल संकट की समस्या भी भयावह हो रही है। हालात ये हैं कि पूरे गांव की प्यास बुझाने वाले कुएं अप्रैल के महीने में ही सूखने लगे हैं।
गौरतलब है कि पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसीलिए कहा जाता है कि जहां तालाब नहीं, पानी नहीं, वहां गांव नहीं। तालाब हमारे जीवन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन मौजूदा दौर में हमने जीवन से जुड़े इस जरूरी हिस्से को अनदेखा करना शुरू कर दिया। परिणाम स्वरुप पहाड़ों की हरियाली गायब हो गई, वीरान हो चुके पहाड़ों पर पानी रुकने के बजाय सीधे बहकर जाने लगा। इसका असर यह हुआ कि गर्मी के शुरुआती महीनों में ही जल संकट दस्तक देने लगता है।
शहर हो या गांव गर्मी के मौसम में जल संकट अब सर्वव्यापी हो चुका है। धरती के भीतर संचित जल का भी बेरहमी के साथ दोहन हो रहा है। जिससे पानी का यह संरक्षित कोष भी खाली होने लगा है। डेढ़ दो दशक पूर्व तक जिन गांवों में भरपूर पानी हुआ करता था, कुआं और तालाब कंचन जल से लबरेज रहते थे, वहां भी अब लोग पीने के पानी को मोहताज हो रहे हैं।
![]() |
अजयगढ़ जनपद का मझगाँय गांव जिसकी आबादी तक़रीबन साढे चार हजार है। |
यहां हम बात करते हैं पन्ना जिले के अजयगढ़ जनपद की ग्राम पंचायत मझगाँय की, जहां अप्रैल के पहले हफ्ते में ही कुआं सूखने लगे हैं। अजयगढ़ से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर पहाड़ी की तलहटी पर बसा गांव मझगाँय है, जिसकी आबादी साढे चार हजार है। इस गांव में प्रवेश करने से पहले खूबसूरत मोती सागर तालाब के दर्शन होते हैं। इसी तालाब के पानी से गांव के मवेशियों की जहां प्यास बुझती है, वहीं गांव के 80 फ़ीसदी से भी अधिक लोगों का निस्तार इसी तालाब के पानी से होता है। लेकिन समुचित देखरेख के अभाव में यह तालाब अब जहां जलीय लताओं (कमल) से पूरी तरह आच्छादित हो चुका है, वहीं तालाब में सिल्ट जमा होने से वह उथला हो गया है।
![]() |
मझगाँय गांव का मोती सागर तालाब जो मौजूदा समय जलीय लताओं से आच्छादित है। |
गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग शिवनंदन सिंह बताते हैं कि हमारे गांव के बाजू की पहाड़ी पहले हरी भरी और वनाच्छादित थी। तब बारिश का पानी पहाड़ी में रुकता था, जिससे गांव के कुएं गर्मियों में भी पानी से भरे रहते थे। लेकिन पहाड़ी वीरान होने पर अब बारिश का पानी बह जाता है, जिससे धरती के भीतर के स्रोत गर्मियों में सूख जाते हैं। जल स्तर भी लगातार नीचे खिसक रहा है, फल स्वरुप अब पानी की समस्या गंभीर होने लगी है।
ग्रामीणों का कहना है कि राजाशाही जमाने में मझगाँय तालाब का निर्माण मोतीलाल सिंह ने कराया था, इसीलिए इसका नाम मोती सागर तालाब पड़ा है। कल्ला सेन बताते हैं कि नाले पर बने इस तालाब में हमेशा पानी रहता है, इसे हमने कभी पूरी तरह सूखते नहीं देखा। अब यह तालाब काफी पुर गया है तथा कमल पूरे तालाब में फैला है। पहले हम लोग इस तालाब में खूब तैरते थे, पानी भी बहुत गहरा और साफ हुआ करता था। लेकिन अब यह गुजरे जमाने की बात हो चुकी है, जो सिर्फ स्मृतियों में है। शिवनंदन सिंह कहते हैं कि यदि तालाब में जमा हो चुकी सिल्ट निकल जाए तो हमारे गांव का यह खूबसूरत तालाब फिर अपने पुराने स्वरूप में आ सकता है।
![]() |
गर्मी अभी उफान पर नहीं है, अप्रैल के महीने में ही गांव के कुओं का ये हाल है तो मई में क्या होगा ? |
ग्रामीण अब यह महसूस करने लगे हैं कि तालाब का गहरीकरण करने के साथ-साथ वीरान हो चुकी पहाड़ी को फिर से हरा भरा करना जरूरी है। यदि पहाड़ी में पहले की तरह पेड़ पौधे पनप जायें तो कुओं के सूख चुके जल स्रोत फिर से पुनर्जीवित हो जाएंगे और गर्मियों में पानी की समस्या का सामना ग्राम वासियों को नहीं करना पड़ेगा। पंचायत मित्र धनराज सिंह बताते हैं कि स्वयं सेवी संस्था समर्थन के सहयोग से ग्राम वासियों द्वारा मोती सागर तालाब की सफाई का काम शुरू कर दिया गया है। समर्थन संस्था के ज्ञानेंद्र तिवारी की अगुवाई में यहां जल चौपाल का भी आयोजन हुआ। जिसमें जल संकट सहित गांव की विभिन्न समस्याओं पर गहन चर्चा हुई है।
ज्ञानेंद्र तिवारी बताते हैं कि नाले के जल प्रबंधन का मझगाँय का मोती सागर तालाब एक श्रेष्ठ उदाहरण है। आपने बताया की मझगाँय गांव में 6 कुंआ हैं जो 40 से 50 फीट गहरे हैं। लेकिन मौजूदा समय इन कुओं में पानी सिर्फ पेंदी पर बचा है। कुछ लोग कुओं से पानी मोटर लगाकर खींचते हैं, जिससे पेंदी का पानी भी खत्म हो जाता है। श्री तिवारी बताते हैं कि गांव के 80 फ़ीसदी लोग कुओं का पानी ही पेयजल के लिए उपयोग करते हैं, जबकि 20 फीसदी लोग हैंडपंप से पानी लेते हैं।
![]() |
स्वयं सेवी संस्था समर्थन की पहल से ग्रामीण अब तालाब में फ़ैल चुकी जलीय लताओं को निकाल रहे हैं। |
समर्थन संस्था की पहल व जल चौपाल लगाने का असर यह हुआ कि पंचायत ने प्रस्ताव पारित कर गांव के पांच कुओं की सफाई व गहरीकरण करने का निर्णय लिया है। यह कार्य शीघ्र शुरू किया जाएगा ताकि ग्राम वासियों को आगामी मई के महीने में पेयजल के लिए भटकना न पड़े। ग्रामीणों का कहना है कि कुओं का गहरीकरण व सफाई का काम हो गया तो कुओं में पर्याप्त पानी आने लगेगा। पंचायत ने वीरान हो चुकी पहाड़ी को संरक्षित कर उसे फिर से हरा भरा व वनाच्छादित करने का भी फैसला लिया है। यदि सचमुच में ऐसा हुआ, तो एक बार फिर से मझगाँय गांव में पुराने खुशहाली वाले दिन लौट आएंगे।
00000
No comments:
Post a Comment