- टिटिहरी के अंडों का रंग मटमैला हू बहू बालू की तरह ही होता है। अगर वह कहीं नाले के बीच में अंडा रखती हैं, तो उसका अर्थ यह है कि "जब तक उनके अंडों से बच्चे निकल बड़े होकर उड़ न जायेंगे तब तक तेज पानी की बारिश न होगी"।
।। बाबूलाल दाहिया ।।
मनुष्य का अपना मौलिक ज्ञान कुछ नही है। उसने अनेक तरह के जंतुओं से ही सब कुछ सीखा है। चींटियों, मधु मक्खियों से यदि उसने संचय करना सीखा तो भेड़िया से समूह बनाकर आक्रमण करना। कतार में चलना शायद उसने भोर में उड़कर हजारों किलो मीटर की यात्रा करने वाले जल पक्षियों से सीखा होगा। इसी तरह उसका पहिए का गुरु गोबरौरा कीट रहा होगा।
एक बार हमें नदियों के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने वाले समुदाय के लोगों ने बताया था कि नदिया के तीर में उन्हें किस वर्ष कहाँ तक झोपड़ा बनाकर रहना चाहिए कि पानी उनके झोपड़े तक न चढ़े ? यह ज्ञान उन्हें बया नामक पक्षी के घोंसलों से हो जाता है। उनके घोसला के हिसाब से ही वे लोग अपने आवास बनाते हैं ?
लेकिन वही बया पक्षी यदि पेड़ के टहनी के घने पत्तों के नीचे घोंसला बनाता है तो उसका अर्थ होता है कि इस वर्ष अधिक बारिश होगी। और अगर वह पेड़ की टहनी के बिल्कुल किनारे बनाता है तो उसका अर्थ है कि इस साल बारिश की कमी रहेगी। इसी तरह से बहुत कुछ जानकारी टिटिहरी नामक पक्षी से भी मिलती है। टिटिहरी ऐसा पक्षी है, जो उड़कर जमीन में ही बैठता है पेड़ों में बैठने लायक उसके पंजे नही होते। यही कारण है कि जमीन में ही पाल बनाकर अपने अंडे भी देता है।
प्राचीन समय में जब शिकार में प्रतिबंध नही था और लोग शिकार करने के लिए तीन फीट चौड़ा, ढाई फीट गहरा गड्ढा खोद कर उसमें बंदूक लेकर बैठते थे, तो उन्हें जानवरों के आने की टोह टिटिहरी से ही मिलती थी। क्योंकि अपने अंडों को से रही टिटिहरी जानवरों को आता देख टें टें की आवाज करके चिल्लाने लगती। उससे शिकारी एलर्ट हो जाते कि जानवर आ रहा है।
कहते हैं टिटिहरी अंडा सेते समय पैर आकाश की ओर कर लेती है और पंख अंडों के ऊपर होते हैं। जमीन में रखे टिटिहरी के अंड़ों को कोई सांप, नेवला, सियार, लोमड़ी आदि न खा सकें अस्तु वह नाले के बीच बालू में रखती है। पर अंडों का रंग मटमैला हूं बहू बालू की तरह ही होता है। अगर वह कहीं नाले के बीच में अंडा रखती हैं तो उसका अर्थ यह है कि "जब तक उनके अंडों से बच्चे निकल बड़े होकर उड़ न जायेंगे तब तक तेज पानी की बारिश न होगी।"
इन दिनों हमारे टमाटर भिंडी के खेत में दो टिटिहरियों ने अलग-अलग स्थान में अपने अंडे दे रखे हैं। और शाम सुबह जैसे ही वहां घूमने गए तो वह बेचारी भयभीत हो टी-टी बोलने लगती हैं। उन्हें क्या पता कि अपन तो यूं ही जैव विविधता संरक्षक हैं ? इसलिए उनके अंडों, बच्चों को अपन से कोई नुकसान न होगा।
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