Monday, January 28, 2019

डेढ़ वर्ष से वन विभाग की कैद में हैं दो बैल

  •   अपने मालिक के अपराध की सजा भुगत रहे निरीह बेजुवान
  •   वन भूमि पर खेती करने वाले परिवारों से वनकर्मियों ने किया था जब्त


परिक्षेत्र सहायक पहाड़ीखेरा के कार्यालय परिसर में डेढ़ वर्षों से  कैद बैलों की जोड़ी का द्रश्य। फोटो - अरुण सिंह 

 पन्ना। बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले में पिछले डेढ़ वर्ष से भी अधिक समय से दो बैल वन विभाग की कैद में हैं। वे अपने मालिकों द्वारा किये गये वन अपराध की अघोषित सजा काट रहे हैं। छोटे से आँगन वाले तंग कमरे में रहने को मजबूर इन मूक पशुओं की हालत अत्यंत ही दयनीय है। इनकी  बेबसी और बदहाली किसी को भी बेचैन कर सकती है। चार दिवारी के अंदर लम्बे समय से कैद होने के कारण बाहरी सम्पर्क से पूरी तरह कट चुके दोनों बैल आजाद होने के लिये हर पल छटपटा रहे हैं। लेकिन, उन लोगों ने इनकी अब तक कोई सुध नहीं ली जिनके कारण इन्हें कैद होना पड़ा। पशु मालिक के मुँह मोडऩे से बद्तर स्थिति में रहने और रुखा-सूखा खाने को मजबूर इन बैलों के पास जब भी कोई पहुँचता है तो वे उसे अपना मुक्तिदाता मानकर आशा भरी निगाहों से उसके पास आ जाते हैं। लेकिन, इन्हें हर बार निराशा हाथ लगती है। लम्बे इंतजार के बाद दोनों बैलों के वन विभाग की कैद से आजाद होने का एक अवसर आया है बशर्ते सोमवार 28 जनवरी को होने वाली नीलामी में कोई इन्हें खरीद ले।

वन भूमि की जुताई करते पकड़े थे बैल

पन्ना जिले के उत्तर वनमंडल की देवेन्द्रनगर रेंज में आने वाले पहाड़ीखेरा सर्किल अंतर्गत फू टी झिर नामक स्थान पर वन विभाग ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में बारिश के समय पौधरोपण कार्य कराया था। जिसके कुछ ही दिन बाद आस-पास के आदिवासी परिवारों ने वहाँ अतिक्रमण कर पौधारोपण को नष्ट करने लिये वन भूमि की हल से जुताई कर दी। वन विभाग के अमले ने अवैध कब्जाधारियों को प्लांटेशन से खदेड़ते हुये उनके खिलाफ वन अपराध का प्रकरण कायम किया और हल खींचने रहे दोनों बैलों को मौके से पकड़ कर अपनी अभिरक्षा ले लिया। तभी से दोनों बैल पहाड़ीखेरा में स्थित वन विभाग के परिक्षेत्र सहायक के कार्यालय परिसर में स्थित एक छोटे से आँगन वाले पुराने खण्डहरनुमा कमरे में कैद हैं। रेंजर सुरेन्द्र शेण्डे ने बताया कि बैलों को छुड़ाने के लिये उनके मालिक (पालक) ने कोई प्रयास नहीं किया। जबकि, मैदानी कर्मचारियों ने पशुपालक परिवार से इस संबंध में कई बार चर्चा की। अपने ही बैलों के प्रति पशु मालिक के उपेक्षापूर्ण बर्ताव को देखते हुये इन्हें राजसात कर नीलाम करने तक अपने पास सुरक्षित रखने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था इस प्रक्रिया में निश्चित ही काफी  समय लगा है।

वनकर्मियों ने नहीं की समुचित देखभाल

डेढ़ वर्ष से कैद बैलों के साथ वन विभाग के अमले ने भी अच्छा बर्ताव नहीं किया। परिक्षेत्र सहायक समेत अधीनस्थ कर्मचारी इन्हें स्वयं की गलती से निर्मित समस्या मानते हैं। इसलिये, बैलों की देखभाल को लेकर इन्हें कोई सरोकार नहीं है। इन मूक पशुओं की बदहाली का पता पिछले दिनों तब चला जब पन्ना के पत्रकारों की एक टीम पहाड़ीखेरा के भ्रमण पर पहुँची। वहाँ परिक्षेत्र सहायक पहाड़ीखेरा के कार्यालय परिसर में स्थित खण्डरनुमा कमरे को खुलवाकर जब देखा तो दोनों बैल आँगन के एक कोने में रखे सूखे  प्याँर को खा रहे थे। इनके लिये भूसा-पानी की कोई समुचित व्यवस्था नहीं थी। बैलों को इतने दिनों तक भोजन के नाम पर मुफ्त में मिला रुखा-सूखा प्याँर खिलाकर उनके साथ क्रूरता की गई। उधर कमरे में हर तरफ  बिखरे गोबर-मूत्र को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वहाँ कई महीनों से सफाई नहीं हुई है। मजेदार बात यह रही कि पत्रकार जब कार्यालय परिसर में ही स्थित वन विभाग के रेस्ट हाउस पहुँचे तो वहाँ कमरों में तीन सुरक्षा श्रमिक आराम फरमाते हुये मिले। इससे जाहिर है कि तीन-तीन सुरक्षा श्रमिक तैनात होने के बाद भी बैलों का जानबूझकर ख्याल नहीं रखा गया।

अब पीछा छुड़ाने में जुटा वन विभाग

बैलों की दुर्दशा को पत्रकारों के द्वारा पिछले दिनों अपने कैमरों में कैद करने के बाद उत्तर वन मंडल के अधिकारियों को यह एहसास हो गया था कि इनकी देखभाल में बरती गई लापरवाही के मुद्दे पर वह घिर सकते हैं, इसलिये डेढ़ साल बाद आनन-फानन में बैलों की नीलामी की तिथि घोषित कर दी गई। मालुम हो कि लम्बे समय से सीमित जगह में कैद रहने और खाने-पीने के कोई व्यवस्था न होने से दोनों बैल अब किसी उपयोग के लायक नहीं बचे हैं। बाहरी सम्पर्क पूरी तरह कटा होने तथा छोटे से स्थान में रहने से इनके शरीर काफी  हद तक जकड़ चुके हैं। इसलिये नीलामी में कोई इन्हें खरीदेगा इस बात की उम्मीद न के बराबर है। वन विभाग के अमले का भी यही मानना है। लेकिन,  इन बैलों से हरहाल में पीछा छुड़ाने का मन बना चुके अधिकारी इस स्थिति में अपने लोगों के नाम पर न्यूनतम बोली लगाकर इन्हें स्वछन्द विचरण के लिये छोड़ सकते हैं । अब देखना यह है कि डेढ़ वर्ष से कैद दोनों बैलों को खरीदने के लिये सोमवार को कोई वाकई सामने आता है या फिर वन अमले की योजनानुसार नीलाम होने पर ही उन्हें आजादी मिलेगी।
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