- आपसी संघर्ष में 3 वर्षीय मादा तेंदुआ की मौत
- कौआसेहा के जंगल में बाघ ने किया था गाय का शिकार
- पन्ना शहर से लगे जंगल में बाघ व तेंदुआ का रहवास
कौआसेहा के जंगल में मिला मादा तेंदुआ का शव। |
अरुण सिंह,पन्ना। वनराज द्वारा किये गये गाय के शिकार की दावत उड़ाने को लेकर दो तेंदुओं के बीच हुई भीषण जंग में तीन वर्षीय मादा तेंदुआ को अपनी जान गंवानी पड़ी। मामला पन्ना शहर से लगे उत्तर वन मण्डल के विश्रामगंज वन परिक्षेत्र अन्तर्गत कौआसेहा बीट के जंगल का है। जिस जगह पर मादा तेंदुआ का शव मिला, उसके निकट ही गाय का किल भी पड़ा हुआ था। इस भारी भरकम गाय का शिकार बाघ या बाघिन द्वारा किया गया रहा होगा, जिसे खाने के बाद जब वनराज वहां से चला गया तो इस बचे हुये किल को खाने के लिये तेंदुओं के बीच आपसी जंग हुई जिसमें कम उम्र की मादा तेंदुआ बुरी तरह से जख्मी होने के चलते दम तोड़ दिया। इस मादा तेंदुआ की मौत के तकरीबन 40 घण्टे बाद जंगल से उसका शव बरामद हुआ है।
वनराज द्वारा जंगल में किल की गई गाय। |
उल्लेखनीय है कि पन्ना शहर से लगभग 3 किमी दूर कौआसेहा का जंगल हमेशा से बाघों व तेंदुओं का प्रिय रहवास स्थल रहा है। इस वन क्षेत्र में सागौन वृक्षों की बड़े पैमाने पर अवैध कटाई होने व मानवीय दखल के बावजूद वन्य प्राणियों की मौजूदगी बनी हुई है। पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की तेजी से बढ़ रही तादाद के चलते कई बाघ कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर आस-पास के जंगल में विचरण कर रहे हैं। पन्ना शहर से लगे कौआसेहा के जंगल में सागौन वृक्ष का भले ही सफाया हो गया है, लेकिन यहां दूसरी प्रजाति के पेड़-पौधे व वनस्पतियां तथा झाडिय़ां बहुतायत में हैं। यही वजह है कि इस जंगल में बाघ और तेंदुआ सहित शाकाहारी वन्य जीव सांभर, नीलगाय, चीतल, चिंकारा और चौसिंगा नजर आते हैं। गर्मी के मौसम में भी सैकड़ों फिट गहरे कौआसेहा में हमेशा पानी बना रहता है तथा इस सेहा में दर्जनों प्राकृतिक गुफायेंं भी हैं, जहां बाघ सहित अन्य दूसरे मांसाहारी जीव तेंदुआ और भालू मजे से रहते हैं। लेकिन यहां पर कोर क्षेत्र जैसी मॉनिटरिंग और सुरक्षा व्यवस्था न होने के कारण मानवीय दखलंदाजी बढऩे तथा शिकारियों की सक्रियता को देखते हुये वन्य प्राणियों पर हर समय खतरा मंडराता रहता है।
पोस्टमार्टम से हुआ जंग होने का खुलासा
गर्दन में मिले केनाइन दाँत के निशान
स्मृति वन में किया गया दाह संस्कार
स्मृति वन में मृत तेंदुआ के दाह संस्कार का दृश्य। |
जंगल की निरानी दुनिया में अपना वजूद कायम रखने के लिये हर समय खतरों का सामना करने के साथ-साथ वन्य प्राणियों को प्रतिद्वन्दियों से भीषण संघर्ष भी करना पड़ता है। तीन वर्षीय मादा तेंदुआ की आपसी संघर्ष में हुई मौत इसका जीता-जागता उदाहरण है। नई संतति को जन्म देने से पूर्व ही यह युवा मादा तेंदुआ असमय काल कवलित हो गई। मालुम हो कि चार वर्ष की होने पर मादा तेंदुआ शावक के जन्म देने योग्य हो पाती है। लेकिन इससे पहले ही यह संघर्ष में मारी गई। इस मृत मादा तेंदुआ के शव का दाह संस्कार नियमानुसार स्मृति वन में किया गया। इस मौके पर क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्र्व के.एस. भदौरिया, उप वन मण्डलाधिकारी विश्रामगंज नरेन्द्र सिंह परिहार सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
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दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर |
Good piece
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