Tuesday, October 22, 2019

चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार ने साबित किया : उपवास भी एक औषधि


                                     

चिकित्सा (मेडिसन) के लिए साल 2019 का नोबेल पुरस्कार अमेरिका के विलियम जी कायलिन जूनियर, सर पीटर जे रैटक्लिफ और ग्रेग एल सेमेंजा को संयुक्त रूप से दिया गया है। यह सम्मान तीनों वैज्ञानिकों को कोशिकाओं के काम करने के तरीके तथा ऑक्सीजन उपलब्धता के ग्रहण करने को लेकर किए गये खोज के लिए दिया जा रहा है। तीनों वैज्ञानिकों को कोशिकाओं में जीवन और ऑक्सीजन को ग्रहण करने की क्षमता में महत्वपूर्ण योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया जाएगा। नोबेल असेंबली ने कहा, इस  साल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने जीवन की सबसे आवश्यक प्रक्रियाओं में से एक का पता लगाया है। उन्होंने हमे यह समझने का आधार दिया कि ऑक्सीजन का स्तर सेलुलर चयापचय और शारीरिक कार्यों को कैसे प्रभावित करता है। उनकी खोजों ने एनीमिया, कैंसर और कई अन्य बीमारियों से लड़ने के लिए नई रणनीतियों पर काम करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
भारत में उपवास का प्राचीन समय से ही अत्यधिक धार्मिक महत्त्व रहा है। विभिन्न अवसरों व विशेष पर्वों पर यहाँ उपवास करने की परम्परा आज भी कायम है। लेकिन चिकित्सा और स्वास्थ्य की द्रष्टि से भी उपवास कितना अर्थपूर्ण है, यह चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले वैज्ञानिकों की नई खोज ने साबित किया है।  अगर कोई व्यक्ति साल भर में कम से कम 20 दिन 10 घण्टे बिना खाये पिये रहता है, तो  उसे कैंसर होने की संभावना 90 फीसदी कम होती है। क्योकि जब शरीर भूखा होता है, तो शरीर उन सेल्स को नष्ट करने लगता है जिनसे कैंसर होता है। इस सोच को इस वर्ष, चिकित्सा का नोबल पुरस्कार मिला है।
इस सोच का नाम ऑटोफैगी है,आटोफैगी एक नेचुरल डिफेंस है, जो शरीर के जिंदा रहने में मदद करता है। ये शरीर को बिना खाने के रहने में मदद करता है, साथ ही बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में मदद करता है। ऑटोफैगी प्रॉसेज के नाकाम होने के कारण ही इंसान में बुढ़ापा और पागलपन जैसी चीजें बढ़ती हैं।
हजारों साल पहले से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में चिकित्सा के तीन रूप शारीरिक,मानसिक,आध्यात्मिक  के रूप में आयुर्वेद से आज तक शरीर के प्रकृति के अनुसार चिकित्सा सिद्धांत लंघन  का प्रयोग रोगी का रोग को खत्म करने में प्रयोग हो रहा है। यही आध्यात्मिक मानसिक चिकित्सा हमारे यहाँ इसे व्रत रहना कहते हैं।
अर्थात उपवास भी औषधि है।

वैज्ञानिकों के बारे में

विलियम जी केलिन जूनियर
 विलियम जी केलिन जूनियर का जन्म साल 1957 में न्यूयॉर्क में हुआ था. उन्होंने दरहम के ड्यूक यूनिवर्सिटी से एमडी की डिग्री हासिल की।
सर पीटर जे रैटक्लिफ
 सर पीटर जे रैटक्लिफ का जन्म इंग्लैंड में साल 1954 में हुआ था. उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से मेडिसिन की पढ़ाई की. उन्होंने ऑक्सफोर्ड से नेफ्रोलॉजी में ट्रेनिंग हासिल की है।
ग्रेग एल सेमेंजा
 ग्रेग एल सेमेंजा का जन्म न्यूयॉर्क में साल 1956 में हुआ था. उन्होंने बॉस्टन में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से बॉयोलॉजी में बीए की डिग्री हासिल की. उन्होंने पेन्सिवेनिया यूनिवर्सिटी से एमडी तथा पीएचडी की डिग्री हासिल की है।
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