।। बाबूलाल दाहिया ।।
मित्रों ! हमारे यहां हर साल दो नवीन वर्ष आते हैं। एक आज आया है और एक फागुन बीतने के बाद चैत्र में आयेगा। नव वर्ष तो कायदे से वह हो, जिसमें कुछ नयापन लगे और दिखे भी ? जैसे हमारे देश की जलवायु में चैत्र में कुछ नयापन दिखता है । क्योंकि वह चारों तरफ पेड़ पौधे वनस्पतियों के सिर में सवार होकर आता है। महुए की मादकता और करोंदे की महक वातावरण में घुली हुई सी दिखती है। अमलतास के पीले फूलों की बल्लरिया अपने जूड़ों में बांधने के लिए स्वर्ग अप्सराओं को मौन आमंत्रण सा दे उठती हैं। पलास के फूल जंगल को ही लालिमा युक्त कर देते हैं।
उधर शीघ्र पकने वाले अनाज चना, मसूर, जौ, मटर आदि पक कर घर में खुशहाली ला देते हैं। ग्रामों में हर जगह ढोलक नगड़िया के थाप के साथ फाग और राई की आवाज सुनाई पड़ने लगती है। पर चुपके-चुपके आने वाला यह नया वर्ष जिसमें न तो पेड़ पौधों में कोई उल्लास य नयापन है न जीव जंतुओं में ? हमारे कमरे में दो छिपकिली अपनी जरूरत से ज्यादा जीभ लपलपाती मच्छरों को खाती दिन भर चहल कदमी करती थीं। पर मक्खी मच्छर के साथ इन दिनों पता नहीं वह कहां छिपकर 3 माह की नींद में सोई हुई हैं ?
80 से अधिक अवस्था वाले बुजुर्गो के इस असार संसार से गुजरने के रोज नित नूतन समाचार मिल रहे हैं। और उसी में चाहें तो किसी दिन अपन को भी शामिल कर सकते हैं। उधर घर से निष्काशित और यातना कैम्पों जिसे आप डिटेक्शन सेंटर रूपी गौशाला भी कह सकते हैं, उनमें कितने ही निरीह पशु बैठान लेकर मृत्यु की बाट जोह रहे हैं। यहां तक कि शीत लहर के कारण कुछ राज्यों में स्कूलों में बच्चों की छुट्टी भी कर दी गई है। किन्तु फिर भी सारा देश रजाई कम्बल में घुसा हुआ या हीटर में शरीर सेक रहा नव वर्ष की बधाई का आदान प्रदान कर रहा है। तो लीजिए इसी बहती गंगा में हाथ धोता मैं भी आप सभी फेसबुक के मित्रों को नूतन वर्ष की बधाई दे रहा हूं। जो नैसर्गिक रूप से भले ही कहीं दिखाई न दे, किन्तु कैलेंडर बदलने की सच्चाई तो है ही। आइए इस कैलेंडर वर्ष 2024 को अलविदा कहें।
कुछ दकियानूस लोग इस नया वर्ष का विरोध भी कर रहे हैं। पर उन्हें कौंन समझाए कि भैये हमारे महीनों और वर्षों की गणना दो तरह की होती है। पहली सूर्य गणना के अनुसार और दूसरी चन्द्र गणना के अनुसार। परन्तु जिस नव वर्ष के आप हिमायती हैं, वह चन्द्र गणना का विक्रमी सम्बत है जो राज काज के लिए उपयुक्त नहीं है। जबकि यह वैश्विक सन उसके लिए पूर्णतः उपयुक्त है।
जब तक हमारे राजकाज में यह ईसवी सन चलेगा, तब तक हर वर्ष 1 जनवरी ही नव वर्ष होगी। हां एक भारतीय सम्बतसर सूर्य गणना का अवश्य है। वह है राजा शालिवाहन का चलाया हुआ (शके सम्बत) उसमें चैत से सावन तक के माह 31 दिन के होते हैं और भादों से फागुन तक के 30 दिन के। अगर उसे सरकार राजकाज में लेले तो आपका भारतीय नव वर्ष चैत प्रतिपदा को ही हो जायगा। परन्तु वह भी चन्द्र गणना के विक्रमी सम्बत की प्रतिपदा से अलग ही शके सम्बत सर की सूर्य गणना वाली प्रतिपदा को होगा।
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