- इलाहाबाद किले की कहानी उसी की जुबानी !
![]() |
गंगा जमुना मइया की गोद में खड़ा इलाहाबाद का किला। ( फोटो : तरुण कुशवाहा ) |
जी ! मैं इलाहाबाद का किला हूँ ! और वह भी महान बादशाह जहीरुद्दीन अकबर का बनवाया हुआ वही किला जो तीर्थराज प्रयाग की पावन धरा पर गंगा जमुना मइया की गोद में खड़ा हूँ। मैं सन 1575 से बनना शुरू हुआ था, तो 45 साल में पूरा हुआ। यहां तक कि जो युवक मुझे बनाने के काम में लगे थे वह सभी बनाते -बनाते बूढ़े हो गए थे। पर ख़ुशी इस बात की है कि मैं भारत में एक मात्र कुँवारा किला हूँ जहां कभी कोई युद्ध नही हुआ। कहते हैं जो किला युद्ध न देखे वह कुँवारा किला माना जाता है। पर मुझे तो इसी पर गर्व है कि मैंने कभी कोई युद्ध नहीं देखा और न ही वह देखना चाहता हूँ।
लोग कहते हैं हर किला एक युद्ध मांगता है। लेकिन मैं ऐसा कभी नहीं सोचा। क्योंकि मेरे बनाने वालों ने मुझे युद्ध और मार काट के लिए बनाया ही नही था ? मैं तो शाही खानदान द्वारा माँ गंगा के दर्शन के लिए ही बनाया गया था कि प्रति दिन मां गंगा और यमुना की लहरों का मिलन वे भी देख सकें और मैं भी, तो वह जीवन पर्यन्त हमेशा देखता रहूंगा। जहां तक मेरी बनावट का सवाल है तो मुझे नक्कासीदार पत्थरों से बनाया गया है। और बनावट ऐसी कि अपनी विशिष्ट निर्माण व शिल्प कला के लिए ही जाना जाता हूँ। जब मेरी नक्काशीदार पत्थरों की विशालकाय दीवार से यमुना मइया की लहरे टकराती हैं तो लगता है जैसे कह रही हों कि मैं अन्दर बैठे सभी देवी देवताओं को स्नान करा के ही मानूगी। और हां यह तो मैने बताया ही नही कि मैं हिन्दू मुस्लिम एकता की वह मिसाल हूं जिसके अन्दर पातालपुरी में 44 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जहां लोग आज भी पूजा पाठ करते हैं।
मेरे अन्दर बड़ा मनोरम दृश्य देखने को मिलता है, जहां आने जाने वाले सैलानियों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई का महल देखने की इजाजत अभी भी है। आखिर कोई इतनी दूर से आये और उनका दर्शन न करने को मिले तो मैं खुद को अभागा समझूँगा ? यहां अक्षय वट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ और पातालपुरी मंदिर भी है। कहते हैं इस अक्षय वट को माता सीता का आशीर्वाद प्राप्त है जो कभी नष्ट नही होगा। पर उस समय मेंरा भी कम राजसी ठाट बाठ नहीं रहा ?
पहले तो यहां किले के अन्दर एक टकसाल भी था, जिसमें चांदी और तांबे के सिक्के ढाले जाते थे। साथ ही पानी के जहाज और नाव भी बनाई जाती थीं जो यमुना नदी से समुद्र तक ले जाई जाती। बहुत सारे ज़माने देखे हैं मैने, जिनमें राजे रजवाड़े से लेकर फिरंगी हुकूमत तक। पर अब भारत की सेना को समर्पित हूँ । सभी किलों की अपनी --अपनी किस्मत होती है जो आबाद भी होते हैं और फिर खंडहर भी हो जाते हैं। पर मुझे तो माँ गंगा की गोद नसीब है और लेटे हुए बजरंग बली का सानिध्य, जहां बहुत सारे मंदिर तो मेरे प्रांगण में ही बने हैं। यही कारण है कि जब गंगा जमुना मइया हिलोरे मारती हैं तो लेटे हुए हनुमानजी के चरणों तक पहुँच जाती हैं। तब मुझे भी बड़ा सुकून मिलता है। क्योकि ऐसा दृश्य देखने को तो सभी देवता तक लालायित रहते हैं। जब कि लोगों का कथन है कि वे सभी माघ के महीने में प्रयागराज ही आ जाते हैं। लेकिन मैं तो ऐसा भाग्य शाली हूँ कि पूरे कुंभ मेले को ही यहीं से देखता रहता हूँ।
कितना खुशनुमा दृश्य होता है, जब तमाम लोग इस ईसवी 644 से लगीतार चल रहे सम्राट हर्षवर्धन द्वारा शुरू किए कुम्भ में एकत्र हो एक दूसरे से मिलते बिछड़ते और खुश होते गाते बजाते दिखते हैं। यह सब देख खुद को धन्य समझता हुआ खड़ा हूँ, विगत 400 वर्षों से अपने आन बान और शान के साथ। पर यह जरूर है कि कुछ वर्षों से कुछ लोग साम्प्रदायिक रूप देकर यहां की प्राचीन गंगा यमुनी तहजीब की साँझी विरासत को तहस नहस करने में आमादा हैं।
आलेख : बाबूलाल दाहिया
00000
No comments:
Post a Comment