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खजुराहो स्थित आदिवर्त जनजातीय राज्य संग्रहालय की बघेली बखरी के सामने खड़े पद्मश्री बाबूलाल दाहिया। |
।। बाबूलाल दाहिया ।।
विश्व विख्यात पर्यटक स्थल खजुराहो में आदिवर्त जनजातीय राज्य संग्रहालय की बघेली बखरी देखने काबिल है। यहां इसी परिसर में मध्यप्रदेश की पांच अलग-अलग शैलियों के भवन एक ही स्थान पर प्रदर्षित किए गए हैं। वह शैलियाँ बुन्देली, बघेली, मालवी, निमाड़ी तथा चंबल क्षेत्र की घरों के बनाने की अपनी-अपनी विशिष्ठ कलात्मक शैली हैं। परन्तु बघेलखण्ड की शैली की जानकारी मुझसे ही ली गई थी, जिसे मैंने उन्हें वहां के कटिंग दार बनने वाले मकान का नमूना दिया था। उसे रीवा सम्भाग में कटुई बखरी कहा जाता है।
दरअसल बाकी चारों क्षेत्र प्राचीन काल से ही हमसे सम्पन्न और विकसित थे, अस्तु उनके मकानों की शैलियां भी चटक मटक और आकर्षक हैं। उनमें उस क्षेत्र की सम्पन्नता भी झलक रही है, पर हमारी अवधारणा अलग है। हमारे रीवा सम्भाग का समस्त क्षेत्र वैदिक काल में करूश जनपद कहलाता था, जिसका आशय ही अभाव ग्रस्त क्षेत्र होता है। इसलिए हमारी वह सांस्कृतिक पहचान इस बघेली बखरी में होना स्वाभाविक है।
बघेल खण्ड का हमारा यह भू-भाग जंगल पहाड़ों से घिरा है, जहां आज भी सांभर,चीतल, हिरण आदि जानवर अक्सर फसल उजाड़ देते हैं। उधर बाघ, तेंदुआ, भालू , भेड़िया आदि हिंसक पशु भी मनुष्यों एवं उनके पशुओं के ऊपर हमला करते रहते हैं। यही कारण थी हमारी बघेली बखरी की मैदानी भागों में बनने वाले मकानों से भिन्नता। क्योकि वह गांव में एक स्थान के बजाय अपने अपने खेत में बनती थी, जिससे खेत की रखवाली भी होती रहे तो दूसरी ओर उन हिंसक पशुओं से अपनी और अपने गाय बैलों की सुरक्षा भी हो।
इस कटिंगदार बखरी में पहले दो पटौहांदार मकान बनते हैं, फिर उनके चारों तरफ ओसारी रहती हैं। पर उस ओसारी का छप्पर ऊपर पटौहां वाले मकान के छप्पर से दो हाथ नीचे रहता है। और ग्रहस्ती का समस्त जरूरी सामान से लेकर गाय बैल तक उस बखरी के अन्दर ही रहते हैं। हमने यही बखरी का नमूना सुझाया था, जिसे मंजूर कर लिया गया था और वह अब बन कर तैयार है।
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बघेली बखरी के समीप निर्मित लोक देवता बसामन मामा की मूर्ति। |
आज उन पांचों बख्ररियों का मुख्यमंत्री जी लोकार्पण करेंगे। परन्तु बघेली वाली बखरी के अवधारणा की जानकारी अपन को ही देनी है अस्तु अपन कल से ही कार्यक्रम स्थल में आमंत्रित हैं। हमारी बघेली जनपद की बखरी में घर ग्रहस्ती के किस सामान को कहां रखना है, यह भी पूरा पूरा ख्याल रखा गया है।
इन घरों के पास हर क्षेत्र के अपने अपने लोक देवताओं की मूर्ति भी प्रदर्शित की गई है । यही कारण है कि बुन्देली बखरी के समीप यदि वहां के लोक देवता हरदौल जू बिराजमान हैं, तो हमारी बघेली बखरी के समीप बसामन मामा। अपने लोक देवता बसामन मामा का चित्र भी उनके सहादत स्थल से लाकर अपन ने ही उपलब्ध कराया था।
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