- बाघिन पी-213(22) नौ वर्ष पूर्व यहाँ के जंगल में दी थी दस्तक
- कई बार शावकों को दिया जन्म, मौजूदा समय 30-35 टाइगर
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फरवरी 2020 में बाघिन पी-213 (22) को चित्रकूट के जंगल में बेहोश कर रेडियो कॉलर पहनाने की कार्यवाही पूरी करती पन्ना की रेस्क्यू टीम। ( फाइल फोटो ) |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व की बाघिन पी-213(22) ने चित्रकूट के जंगल को बाघों से आबाद कर दिया है। पन्ना की यह बाघिन अपने लिए नए आशियाने की तलाश में 24 नवंबर 2015 को पन्ना कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर चित्रकूट के जंगल में दस्तक दी थी। तभी से यह बाघिन वन मंडल सतना के वन परिक्षेत्र मझगवां अंतर्गत सरभंगा के जंगल को अपना ठिकाना बनाए हुए है। यहाँ रहते हुए इस बाघिन ने कई मर्तबे नन्हे शावकों को जन्म दिया, फलस्वरूप यह जंगल बाघों और नन्हे शावकों की चहल कदमी से गुलजार है।
उल्लेखनीय है कि बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के बाद देश व दुनिया में विख्यात हो चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व में जन्मे बाघ बुंदेलखंड सहित विंध्य क्षेत्र के जंगलों को भी आबाद कर रहे हैं। आलम यह है कि चित्रकूट के निकट सरभंगा के जंगल में बाघिन पी-213(22) के बच्चों के भी बच्चे हो गए हैं। बाघ पुनर्स्थापना योजना के दौरान पन्ना टाइगर रिज़र्व में सहायक संचालक रहे एम. पी. ताम्रकार बताते हैं कि सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने वर्ष 2015-16 में अपनी सेवाएं इस बाघिन के ट्रैकिंग में दी हैं। इस दौरान बाघिन के मूवमेंट व गतिविधि पर हम पूरी नजर रखते थे।
श्री ताम्रकार बताते हैं कि बाघिन पी-213(22) ने अब तक चार मर्तबे शावकों को जन्म दिया है। इस बाघिन के बच्चों के बच्चे भी हो रहे हैं। मौजूदा समय सरभंगा के जंगल में पन्ना की इस बाघिन की चार पीढ़ियां जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण कर रही हैं। बाघों का कुनबा बढ़ने से अब यहाँ अक्सर सड़क मार्ग पर भी राहगीरों को वनराज के दर्शन होने लगे हैं। यही वजह है कि वन्य जीव प्रेमी बाघों से आबाद हो चुके चित्रकूट के इस जंगल को टाइगर रिज़र्व का दर्जा देने की मांग करने लगे हैं।
पन्ना टाइगर रिज़र्व को बाघों से आबाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति बताते हैं कि बाघिन पी-213(22) की कहानी बेहद दिलचस्प और अनूठी है। इस बाघिन ने पन्ना से सरभंगा के जंगल का सफर तय करके वहां पर बाघों का नया कुनबा बसाकर इतिहास रच दिया है। इस बाघिन ने सरभंगा में एक और पन्ना जोड़ दिया है। मालूम हो क़ि पूर्व में पन्ना टाइगर रिज़र्व में अधिकतम 35 बाघ रहा करते थे। लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना की कामयाबी के बाद पन्ना टाइगर रिज़र्व व आसपास के जंगल में 90 से अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं। पन्ना कोर क्षेत्र से बाघ बाहर निकलकर बिन्ध्य व बुन्देलखण्ड क्षेत्र के जंगलों को आबाद कर रहे हैं।
दिसम्बर 2013 में जन्मी थी यह बाघिन
पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलतम रानी कही जाने वाली कान्हा की बाघिन टी-2 ने पी-213 को अक्टूबर 2010 में जन्म दिया था। इस बाघिन ने नर बाघ पी-111 से जोड़ा बनाकर दिसंबर 2013 में चार शावकों को जन्म दिया। जिनमें तीन मादा व एक नर शावक था। इन्हीं तीन मादा शावकों में से एक बाघिन पी- 213 (22) है जिसने चित्रकूट के जंगल को न सिर्फ अपना ठिकाना बनाया अपितु यहां पर कई बार शावकों को जन्म देकर यहां के जंगल को बाघों से आबाद भी किया है। मौजूदा समय इस वन क्षेत्र में बाघिन पी-213(22) सहित कुल 30-35 बाघ विचरण कर रहे हैं।
सरभंगा मांगे सम्मान, बने टाइगर रिजर्व पहचान
क्या आप जानते हैं ? चित्रकूट की पावन भूमि के निकट, मझगवां सरभंगा का जंगल अब सिर्फ जंगल नहीं, बाघों का जीता-जागता गढ़ बन चुका है। सतना जिले के वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर शर्मा बाघों से आबाद हो चुके इस जंगल को टाइगर रिज़र्व बनाने के लिए मुहिम चला रहे हैं। वे बताते हैं कि यह गर्व की बात है कि सरभंगा में आज 34 बाघों का कुनबा (जिनमें 6 नन्हे शावक भी शामिल हैं) शान से विचरण कर रहा है। पन्ना की बाघिन पी-213(22) यहाँ 18 शावकों को जन्म दे चुकी है। यह अद्भुत क्षेत्र 19,000 हेक्टेयर में फैला प्रकृति का खजाना है।
सरभंगा के जंगल को टाइगर रिजर्व बनाना क्यों जरूरी है ? इस सम्बन्ध में श्री शर्मा का कहना है कि यह अनूठा और जैव विविधता से समृद्ध वन क्षेत्र सिर्फ बाघों से ही आबाद नहीं है, यहाँ 70 से अधिक तेंदुए, 60 भेड़िये,150 लकड़बग्घे, 50 से अधिक भालू, जंगली कुत्ते, लोमड़ियाँ और बड़ी संख्या में हिरण, नीलगाय व दुर्लभ पक्षी बसते हैं। आपका कहना है कि पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश में सिर्फ 3 बाघों पर रानीपुर को टाइगर रिजर्व बना दिया गया है, जबकि हमारे यहाँ सरभंगा के जंगल में वहां की तुलना में 11 गुना ज़्यादा बाघ हैं। यह मध्य प्रदेश के लिए सुनहरा अवसर है, कि सरभंगा के जंगल को टाइगर रिज़र्व बनाया जाय।
यह जंगल पन्ना और रानीपुर टाइगर रिजर्व को जोड़ता है, जो वन्यजीवों के सुरक्षित आने-जाने (गलियारे) के लिए ज़रूरी है। केन-बेतवा लिंक से प्रभावित होने वाले पन्ना के बाघों के लिए सरभंगा प्राकृतिक शरणस्थली बन सकता है। टाइगर रिजर्व बनने पर यहाँ पर्यटन बढ़ेगा, हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा फलस्वरूप चित्रकूट क्षेत्र में समृद्धि आएगी। सरभंगा का भविष्य खनन नहीं, संरक्षण और पर्यटन में है। इसलिए आवाज़ उठाइये और समर्थन दीजिये !
यह सिर्फ जंगल बचाने की बात नहीं, यह है -
- मध्य प्रदेश के गौरव को विश्व पटल पर स्थापित करने का मौका !
- चित्रकूट के विकास को नई उड़ान देने का अवसर !
- स्थानीय निवासियों के लिए समृद्धि लाने का संकल्प !
- हमारी प्राकृतिक धरोहर को सहेजने का कर्तव्य !
- सरभंगा की दहाड़ अब अनसुनी न रहे, इसे वैश्विक पहचान दिलाएं !
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