Monday, April 22, 2019

जीवनदायिनी केन नदी की अप्रैल में ही टूट गई जलधार

  •  केन किनारे के ग्रामों में भी पेयजल संकट गहराया
  •  जल, जंगल और जमीन को बचाने लडऩी पड़ेगी लड़ाई


पन्ना जिले से होकर प्रवाहित जीवनदायिनी के नदी अप्रैल के महीने में ही नजर आ रही  रूखी-सूखी। 

अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवन रेखा कही जाने वाली केन नदी अप्रैल के महीने में ही दम तोड़ रही है। केन की जलधार टूट चुकी है तथा प्रवाह क्षेत्र में चट्टानें नजर आ रही हैं। मालुम हो कि केन प्रदेश की इकलौती प्रदूषणमुक्त नदी है जो घने जंगलों से होकर प्रवाहित होती है। बीते कुछ वर्षों से इस नदी में भारी भरकम मशीनों द्वारा व्यापक पैमाने पर रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है जिससे जलीय जीव-जन्तु व वनस्पतियां जहां विलुप्त हो रही हैं वहीं पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुँची है। परिणामस्वरूप नदी किनारे के ग्रामों में भी गर्मी के मौसम में हर साल भीषण जल संकट का सामना करना पड़ता है। यदि पन्ना जिले के लोग समय रहते नहीं चेते और जल, जंगल व जमीन की सुरक्षा नहीं की तो यहां की हरी-भरी रत्नगर्भा धरती यदि वीरान हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है। अवैध उत्खनन व चौतरफा लूट के चलते सदानीरा केन नदी की जल धार अप्रैल के महीने में ही टूट गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि केन किनारे के ग्रामों में भी जल संकट ने दस्तक दे दी है।
उल्लेखनीय है कि केन नदी पर बने रनगवां बांध, गंगऊ वियर व बरियारपुर वियर आज भी सिंचाई विभाग उ.प्र. के अधीन हैं। इन बांधों पर केन के पानी को रोककर पड़ोसी राज्य उ.प्र. के बांदा जिले में न सिर्फ लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई होती है अपितु गर्मी के मौसम में इन बांधों के पानी को नहर के माध्यम से ले जाकर वहां के तालाबों को भी लबालब भर दिया जाता है। जिससे गर्मी के मौसम में जनता व मवेशियों को पानी के लिये हैरान व परेशान न होना पड़े। पन्ना जिले के लोगों को इस बात पर ऐतराज नहीं है कि पड़ोसी जिलों व प्रान्त के लोग खुशहाल हैं, उन्हें ऐतराज इस बात पर है कि जिस पानी पर पहला हक उनका होना चाहिये, उसको उपयोग करने तक की उन्हें इजाजत नहीं है। यह घोर अन्याय ही नहीं अपितु अमानवीय भी है, क्योंकि इस जिले के लोग पेयजल के लिये भटकते फिर रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि बीते सौ सालों से केन नदी के पानी को पन्ना जिले से लूटा जा रहा है, फिर भी इस जिले के लोग भूखे-प्यासे और फटेहाल रहकर भी इसे बर्दाश्त करते आ रहे हैं। अब तो पन्ना जिले को पूरी तरह से उजाडऩे की ही तैयारी को तेजी के साथ अमली जामा पहनाया जा रहा है। केन नदी का पानी बेतवा में ले जाने के लिये जिस लिंक परियोजना की चर्चा इन दिनों जोरों पर है, उसके मूर्त रूप लेने पर न सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा जो बाघों का रहवास है, वह डूब जायेगा अपितु केन घडिय़ाल अभ्यारण्य का वजूद भी मिट जायेगा। इतना ही नहीं बांध के नीचे केन नदी का प्रवाह थम जाने से इस प्रवाह क्षेत्र में बसे ग्रामों के रहवासियों की जिन्दगी संकट से घिर जायेगी।

पन्ना के ग्रामीण अंचलों में जल संकट हुआ  विकराल

प्यास बुझाने मीलों दूर से ढोकर पानी लाते ग्रामीण।

जिले के ग्रामीण अंचलों में पेयजल संकट अब विकराल रूप ले चुका है । नदी, नालों व अन्य जल श्रोतों के सूख जाने से हालात और भी बिगड़ रहे  हैं । जिले की आधे से भी ज्यादा नल-जल योजनायें जहां  ठप्प पड़ी हैं   वहीँ  हैण्डपम्प भी पानी की जगह गर्म हवा उगल रहे  हैं । जल स्तर लगातार नीचे खिसकने से कुंआ भी जवाब देने लगे हैं। इन परिस्थितियों में जिले के एक सैकड़ा से भी अधिक ग्रामों में पेयजल के लिये कोहराम मचा हुआ है । परिवहन के जरिये भी इन ग्रामों में पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था अभी तक नहीं  की जा सकी है । फलस्वरूप ग्रामीणों को मीलों लम्बा सफर तय कर पीने के पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है । इसके लिये ग्रामवासियों को रतजगा तक करना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है  कि गर्मी के आगाज के साथ ही  जिले में पेयजल संकट ने दस्तक दे दी थी। लेकिन प्रभावी रणनीति व कार्य योजना के अभाव में इस भीषण जल संकट से निपटने के लिये वैकल्पिक व्यवस्था नहीं  की जा सकी। जिसका खामियाजा अब इस भीषण तपिश भरी गर्मी में ग्रामवासी भुगत रहे  हैं । जब अप्रैल के महीने में यह  नजारा देखने को मिल रहा है  तो मई में जब तपिश और बढ़ेगी तब उस समय क्या होगा यह सोचकर लोग हैरान व परेशान हैं ?

पन्ना शहर के निकट स्थित गौर के चौपड़ा की झिरिया सूखी


पन्ना शहर के निकट प्रणामी धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थल गौर के चौपड़ा स्थित झिरिया जिसमें गर्मी के दिनों में भी कंचन जल भरा रहता था इस साल अप्रैल के महीने में ही सूख गई है जिससे पता चलता है कि जल संकट कितना गंभीर और भयावह है। मालुम हो कि इस झिरिया के औषधीय गुणों से युक्त जल को लेने के लिये दूर-दूर से लोग आते हैं। प्रतिदिन सैकड़ो डिब्बा पानी हर सीजन में लोग ले जाते हैं लेकिन इस साल पानी से लवरेज रहने वाली यह प्राकृतिक झिरिया अप्रैल में ही जवाब दे दिया। पुराने बुजुर्गों का कहना है कि गौर के चौपड़ा की यह झिरिया कभी नहीं सूखती थी। झिरिया का सूखना इस बात का संकेत है कि प्रकृति और पर्यावरण के साथ हो रहा खिलवाड़ आने वाले समय में अनगिनत समस्याओं को जन्म देगा।
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