।। बाबूलाल दाहिया ।।
हम विगत 20 वर्षो से 100 से अधिक प्रकार की परम्परागत देसी धानों की खेती करते चले आ रहे हैं। इधर 2017 में चालीस जिलों की यात्रा के पश्चात हमारे पास उनकी संख्या में बढ़ोत्तरी होकर 200 के आस पास तक पहुँच चुकी है। परन्तु इतना भर नहीं हमारे पास हर धानों का प्रत्येक वर्ष का प्रलेखीकरण भी है कि कौन धान की कब नर्सरी में बुबाई हुई, कब रोपा लगा, कब किसका पुष्पन हुआ और कब दाने परिपुष्ट होकर वह पक गईं।
पिछले वर्षों की जानकारी लेने के लिए जब हमने सन 2021 का रजिस्टर खोला तो देखा कि हमारी लगभग 20 -25 प्रकार की अति शीघ्र पकने वाली धान २५ सितम्बर तक पक गईं थीं, जो इस प्रकार थीं 1-- भदेली 2- करगा 3- सिकिया 4- करधना 5- सरइया 6- डिहुला 7- दूधी 8- शुकला फूल 9- कोसम अगेती 10-- दुर्गा परसाद 11- लालू 12- श्यामजीर 13- लइची 14- बिरंच 15- बादलफूल 16-करेची 17- भुरसी 18- रानी काजर 19- सोनखर्ची 20- कोटवा 21- गोमती 22-अन्तरवेद 23 - पथरिया 24- गुरमटियां 25-- कदमफूल ।
परन्तु ऐसा लगता है कि इस वर्ष वह पकने में लगभग 15 दिन लेट चल रहीं हैं। आखिर ऐसा क्यों है ? जब कि यहां की परम्परागत किस्में होने के नाते दिन की गिनती के बजाय वे ऋतु से संचालित हैं। यही कारण था कि चाहे आंगे बोया जाय अथवा 15--20 दिन पीछे तब भी अपने निश्चित तिथि में वे हर वर्ष पक ही जाती थीं। लेकिन उनका इस वर्ष इतना लेट पकना समझ से परे है। 5 दिन अधिक वर्षा और 5 दिन लेट मानसून का असर भी मान लें पर शेष 10 दिन किसमें सुमार होंगे ?
मैं पिछले वर्ष से महसूस कर रहा हूं कि प्रथम मानसूनी वारिश जो हमारे यहां हर वर्ष अमूमन 20 से 25 जून तक होती थी और 20-25 सितम्बर तक समाप्त भी हो जाती थी। वह पिछले वर्ष से 10 से 15 दिन लेट आती है और फिर 5 अक्टूबर तक यहां से जाती भी है। जब कि पहले छतीशगढ़ में अवश्य 5अक्टूबर तक रहती थी। हमारे यहां वह 25 तक विदा हो लेती थी। 27 सितम्बर से लगने वाले हस्त नृक्षत्र में कभी कभार ही बारिश होती। लेकिन इस तरह वर्षा का लेट आना और लेट जाना एवं वनस्पति जगत का यह बदलाव कहीं निकट भविष्य के लिए मौसम के क्लाइमेट चेंज का परिचायक तो नही ? जो धानें 25 सितम्बर तक पक जाती थीं उनकी चित्र में स्थिति देख यह स्पस्ट हो रहा है कि अभी वह 10 अक्टूबर के पहले खलिहान नहीं आएंगी।
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