रामपुर स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की समाधि। |
आज़म खान के कारण चर्चित रामपुर एक ऐसा स्थान हैं, जहाँ महात्मा गांधी की अस्थियाँ, बहुत से धार्मिक विरोध के बाद लाइ गई और आज भी वहां सुंदर गांधी समाधि है। चूँकि रामपुर के नवाब मुस्लिम थे तो कुछ लोगों ने इसका विरोध किया लेकिन बहुत से पंडितों ने हस्तक्षेप किया और अस्थियाँ रामपुर लाई गई। 30 जनवरी को गांधी की शहादत के बाद 31 जनवरी को नवाब रजा अली खां ने 13 दिन के सरकारी शोक का एलान किया था। उस वक्त रामपुर रियासत का भारत में विलय नहीं हुआ था।
दो फरवरी को दिल्ली में जब महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब रामपुर के किले से उनको 23 तोप की सलामी दी गई। 10 फरवरी को नवाब दिल्ली के राजघाट पहुंचे और महात्मा गांधी की चिता वेदी पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। उन्होंने बापू की अस्थियों को रामपुर ले जाने की इच्छा जताई। कुछ विरोध हुए लेकिन नवाब के साथ गए सनातन धर्म के जानकारों ने जो तर्क दिए उसके सामने विरोधियों को चुप होना पड़ा।
दिल्ली से रामपुर अस्थियों को लाने के लिए 18 सेर वजनी अष्टधातु का कलश ले जाया गया था। बाद में नवाब ने अपने हाथों से चांदी की पात्र में बापू की अस्थियों को दफ़न किया और उस पर सुंदर समाधि बनी। विदित हो महात्मा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दो बार रामपुर आए। एक बार जब गांधी जी मौलाना मुहम्मद अली जौहर के साथ रामपुर आए थे, तब उनकी मुलाकात तत्कालीन नवाब हामिद अली खां से हुई थी। तब से ही गांधी जी के नवाब खानदान से बेहद अच्छे रिश्ते बन गए थे। वैसे आज़म खान ने मंत्री रहते इस समधी स्थल को बहुत सुंदर स्वरुप दिया।
# पंकज चतुर्वेदी जी की फेसबुक वॉल से साभार
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