Wednesday, April 30, 2025

पन्ना में अभिनव पहल, पेड़ों पर लगाया क्यूआर कोड


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के प्रति लोगों में जागरूकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय पन्ना के प्राचार्य अमित दहिया के मार्गदर्शन में स्कूल के इको क्लब ने एक नवाचारी पहल शुरू की है। इस पहल के अंतर्गत विद्यालय परिसर में लगे पेड़ों पर क्यूआर कोड लगाए गए, जो छात्रों और आगंतुकों को उन पेड़ों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे। 

इन पेड़ों पर क्यूआर कोड लगाने का मकसद विद्यार्थियों को पेड़ों के महत्व के बारे में जानकारी प्रदान करना तथा तकनीक का उपयोग करके पर्यावरण शिक्षा को रोचक और सुलभ बनाना है। इस कोड के माध्यम से विद्यार्थी पेड़ों की पहचान तथा उनके औषधीय गुण, पारिस्थितिक महत्व और संरक्षण के बारे में जागरूक होंगे।

विद्यालय में लगे प्रत्येक पेड़ पर विद्यार्थियों द्वारा एक यूनिक क्यूआर कोड लगाया गया, जिसे स्कैन करने पर उस पेड़ का नाम, वैज्ञानिक नाम, उपयोग, और अन्य रोचक तथ्य दिखाई देते हैं। इस प्रोजेक्ट में विद्यालय के विद्यार्थियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस अवसर पर प्राचार्य ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह पहल न केवल छात्रों के लिए शैक्षिक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय कदम है। 

इको क्लब इस तरह की रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से युवाओं को प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाने में सफल हो रहा है। इस पहल में विद्यालय के जीवविज्ञान के शिक्षक क्षितिज चौधरी का योगदान सराहनीय रहा।

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Sunday, April 27, 2025

प्रकृति का एक विलक्षण मौसम विज्ञानी पक्षी टिटिहरी !

  • टिटिहरी के अंडों का रंग मटमैला हू बहू बालू की तरह ही होता है। अगर वह कहीं नाले के बीच में अंडा रखती हैं, तो उसका अर्थ यह है कि "जब तक उनके अंडों से बच्चे निकल बड़े होकर उड़ न जायेंगे तब तक तेज पानी की बारिश न होगी"।                  


।। बाबूलाल दाहिया ।।

मनुष्य का अपना मौलिक ज्ञान कुछ नही है। उसने अनेक तरह के जंतुओं से ही सब कुछ सीखा है। चींटियों, मधु मक्खियों से यदि उसने संचय करना सीखा तो भेड़िया से समूह बनाकर आक्रमण करना। कतार में चलना शायद उसने भोर में उड़कर हजारों किलो मीटर की यात्रा करने वाले जल पक्षियों से सीखा होगा। इसी तरह उसका पहिए का गुरु गोबरौरा कीट रहा होगा।

एक बार हमें नदियों के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने वाले समुदाय के लोगों ने बताया था कि नदिया के तीर में उन्हें किस वर्ष कहाँ तक झोपड़ा बनाकर रहना चाहिए कि पानी उनके झोपड़े तक न चढ़े ? यह ज्ञान उन्हें बया नामक पक्षी के घोंसलों से हो जाता है। उनके घोसला के हिसाब से ही वे लोग अपने आवास बनाते हैं ?

लेकिन वही बया पक्षी यदि पेड़ के टहनी के घने पत्तों के नीचे घोंसला बनाता है तो उसका अर्थ होता है कि इस वर्ष अधिक बारिश होगी। और अगर वह पेड़ की टहनी के बिल्कुल किनारे बनाता है तो उसका अर्थ है कि इस साल बारिश की कमी रहेगी। इसी तरह से बहुत कुछ जानकारी टिटिहरी नामक पक्षी से भी मिलती है। टिटिहरी ऐसा पक्षी है, जो उड़कर जमीन में ही बैठता है पेड़ों में बैठने लायक उसके पंजे नही होते। यही कारण है कि जमीन में ही पाल बनाकर अपने अंडे भी देता है। 


प्राचीन समय में जब शिकार में प्रतिबंध नही था और लोग शिकार करने के लिए तीन फीट चौड़ा, ढाई फीट गहरा गड्ढा खोद कर उसमें बंदूक लेकर बैठते थे, तो उन्हें जानवरों के आने की टोह टिटिहरी से ही मिलती थी। क्योंकि अपने अंडों को से रही टिटिहरी जानवरों को आता देख टें टें की आवाज करके चिल्लाने लगती। उससे शिकारी एलर्ट हो जाते कि जानवर आ रहा है। 

कहते हैं टिटिहरी अंडा सेते समय पैर आकाश की ओर कर लेती है और पंख अंडों के ऊपर होते हैं। जमीन में रखे टिटिहरी के अंड़ों को कोई सांप, नेवला, सियार, लोमड़ी आदि न खा सकें अस्तु वह नाले के बीच बालू में रखती है। पर अंडों का रंग मटमैला हूं बहू बालू की तरह ही होता है। अगर वह कहीं नाले के बीच में अंडा रखती हैं तो उसका अर्थ यह है कि "जब तक उनके अंडों से बच्चे निकल बड़े होकर उड़ न जायेंगे  तब तक तेज पानी की बारिश न होगी।"

इन दिनों हमारे टमाटर भिंडी के खेत में दो टिटिहरियों ने अलग-अलग स्थान में अपने अंडे दे रखे हैं। और शाम सुबह जैसे ही वहां घूमने गए तो वह बेचारी भयभीत हो टी-टी बोलने लगती हैं। उन्हें क्या पता कि अपन तो यूं ही जैव विविधता संरक्षक हैं ? इसलिए उनके अंडों, बच्चों को अपन से कोई नुकसान न होगा।

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Tuesday, April 22, 2025

जल संकट : पन्ना जिला जल अभावग्रस्त क्षेत्र घोषित

  • जिला मजिस्ट्रेट सुरेश कुमार ने जारी किया आदेश
  • बिना अनुमति नवीन नलकूप खनन पर प्रतिबंध


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट सुरेश कुमार ने म.प्र. पेयजल परिरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 के तहत जनहित में पन्ना जिले को जल अभावग्रस्त क्षेत्र घोषित किया है। जिले के सभी ब्लॉक और नगरीय क्षेत्रों में उक्तादेश तत्काल प्रभाव से प्रभावशील हो गया है। यह आगामी 20 जुलाई तक लागू रहेगा।

जिला मजिस्ट्रेट ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी खण्ड पन्ना के कार्यपालन यंत्री द्वारा सिंचाई इत्यादि कार्यों में भू-गर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण पेयजल स्त्रोतों के जल स्तर में कमी आने तथा इससे नलकूपों व अन्य जल स्त्रोतों के जल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज होने सहित जिले में पेयजल संकट की स्थिति निर्मित होने की संभावना संबंधी प्रस्तुत प्रतिवेदन के दृष्टिगत जिले को जल अभावग्रस्त क्षेत्र घोषित करने की कार्यवाही की है। 

ईई पीएचई द्वारा पेयजल संकट के स्थिति के मद्देनजर एवं सार्वजनिक पेयजल स्त्रोतों की क्षमता प्रभावित होने की संभावना के दृष्टिगत निजी नलकूप खनन पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने के साथ जनहित में पेयजल व अन्य निस्तार समस्याओं को ध्यान में रखकर आम जनता के लिए पेयजल आपूर्ति की उपलब्धता एवं इसका समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए भी जल अभावग्रस्त क्षेत्र घोषित करने की अनुशंसा की गई थी।

पन्ना जिले में जल अभावग्रस्त क्षेत्र संबंधी आदेश प्रभावशील होने के फलस्वरूप सभी विकासखण्ड और नगरीय क्षेत्रों के समस्त नदी, नालों, स्टॉप डैम, सार्वजनिक कुओं तथा अन्य जल स्त्रोतों का उपयोग एवं घरेलू प्रयोजन के लिए भी इनका उपयोग सुरक्षित किया गया है। साथ ही जिले में निर्धारित अवधि तक कोई भी व्यक्ति स्वयं अथवा निजी ठेकेदार बगैर एसडीएम की अनुज्ञा के किसी भी प्रयोजन के लिए नवीन नलकूप का खनन नहीं कर सकेगा। 

कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट पन्ना सुरेश कुमार 

शासकीय नलकूप खनन पर यह आदेश लागू नहीं होगा। इसके अलावा बगैर अनुमति के कोई भी व्यक्ति शासकीय भूमि पर स्थित जल स्त्रोतों में पेयजल एवं घरेलू प्रयोजनों को छोड़कर अन्य किसी भी प्रयोजन के लिए नहरों में प्रवाहित जल के अलावा अन्य स्त्रोतों का जल दोहन एवं किन्हीं भी साधनों द्वारा जल का उपयोग नहीं कर सकेगा। 

जिल मजिस्ट्रेट द्वारा नलकूप खनन की अनुज्ञा के लिए अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को उनके क्षेत्राधिकार अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी बनाया गया है। एसडीएम द्वारा अनुमति के पूर्व आवश्यक जांच और परीक्षण की कार्यवाही पूर्ण की जाएगी। साथ ही अनुमति के संबंध में संबंधित जनपद पंचायत सीईओ, तहसीलदार, मुख्य नगर पालिका अधिकारी से भी अभिमत प्राप्त करना होगा। एसडीएम सार्वजनिक पेयजल स्त्रोत सूख जाने के कारण तथा वैकल्पिक रूप से दूसरा कोई सार्वजनिक पेयजल स्त्रोत उपलब्ध नहीं होने पर जनहित में निजी पेयजल स्त्रोतों का निर्धारित अवधि के लिए अधिग्रहण करने के साथ आदेश के उल्लंघन पर अधिनियम की धाराओं में भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के तहत दण्डात्मक कार्यवाही कर सकेंगे। 

आदेश का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित कराने के निर्देश समस्त अनुविभागीय मजिस्ट्रेट, तहसीलदार, कार्यपालिक मजिस्ट्रेट, अनुविभागीय अधिकारी पुलिस, थाना प्रभारी, पीएचई के मैदानी अधिकारी-कर्मचारी, नगरीय निकायों के सीएमओ, जनपद पंचायत सीईओ तथा समस्त ग्राम पंचायत सचिवों को दिए गए हैं।

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Sunday, April 20, 2025

पन्ना टाइगर रिजर्व के घायल बाघ पी-243 का हुआ उपचार

  • आपसी संघर्ष में बुरी तरह से हो गया था जख्मी
  • गहरे घाव का ट्रेंकुलाइज करके किया गया इलाज

आपसी संघर्ष में घायल बाघ पी-243 को ट्रेंकुलाइज करके उसका उपचार किया गया, चित्र उसी अवसर का है।  

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का 10 वर्षीय बाघ पी-243 विगत माह आपसी संघर्ष में बुरी तरह से जख्मी हो गया था, इस बाघ के सिर में गहरा घाव था जो प्राकृतिक रूप से ठीक नहीं हो रहा था। बाघ की दिनोंदिन बिगड़ती हालत को देखते हुए आज सुबह उसे ट्रेंकुलाइज करके घाव का उपचार किया गया है।    

क्षेत्र संचालक कार्यालय मिली जानकारी के मुताबिक पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता परिक्षेत्र में विगत कुछ दिनों से बाघ पी-243 के सिर पर चोट का निशान दिखाई दे रहा था। पिछले दिनों पर्यटकों ने जब इस जख्मी बाघ की तस्वीर ली, तब पता चला कि बाघ के सिर पर गहरा जख्म है। आपसी संघर्ष में घायल हुए इस बाघ की पार्क प्रबंधन द्वारा सतत निगरानी की जा रही थी। परंतु उसके घाव में सुधार न होने के कारण आज रविवार 20 अप्रैल को सुबह हिनौता रेंज अंतर्गत बाघ पी-243 को उप संचालक की उपस्थिति में वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना टाइगर रिजर्व डॉ संजीव कुमार गुप्ता द्वारा ट्रेंकुलाइज किया जाकर उसका उपचार किया गया। 


वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि बाघ के सिर में घाव काफी बड़ा व गहरा था। घाव में मैगट भी पड़ गए थे, जिन्हे पूरी तरह से निकाल दिया गया है। उपचार उपरांत बाघ को बड़गड़ी स्थित इन्क्लोजर में रखा गया है तथा उसकी सतत निगरानी की जा रही है। बाघ के उपचार हेतु उसे  ट्रेंकुलाइज करने की कार्रवाई उपसंचालक के निर्देशन में वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी के तकनीकी मार्गदर्शन में संपन्न की गई। इस मौके पर सहायक संचालक पन्ना, परिक्षेत्र हिनौता, गहरी घाट, पन्ना बफर, रेस्क्यू दल,  हाथी महावत एवं अन्य क्षेत्रीय कर्मचारी उपस्थित रहे।

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Thursday, April 17, 2025

पन्ना की इस बाघिन ने आबाद किया चित्रकूट का जंगल

  • बाघिन पी-213(22) नौ वर्ष पूर्व यहाँ के जंगल में दी थी दस्तक
  • कई बार शावकों को दिया जन्म, मौजूदा समय 30-35 टाइगर  

फरवरी 2020 में बाघिन पी-213 (22) को चित्रकूट के जंगल में बेहोश कर रेडियो कॉलर पहनाने की कार्यवाही पूरी करती पन्ना की रेस्क्यू टीम।  ( फाइल फोटो )

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व की बाघिन पी-213(22) ने चित्रकूट के जंगल को बाघों से आबाद कर दिया है। पन्ना की यह बाघिन अपने लिए नए आशियाने की तलाश में 24 नवंबर 2015 को पन्ना कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर चित्रकूट के जंगल में दस्तक दी थी। तभी से यह बाघिन वन मंडल सतना के वन परिक्षेत्र मझगवां अंतर्गत सरभंगा के जंगल को अपना ठिकाना बनाए हुए है। यहाँ रहते हुए इस बाघिन ने कई मर्तबे नन्हे शावकों को जन्म दिया, फलस्वरूप यह जंगल बाघों और नन्हे शावकों की चहल कदमी से गुलजार है।

उल्लेखनीय है कि बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के बाद देश व दुनिया में विख्यात हो चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व में जन्मे बाघ बुंदेलखंड सहित विंध्य क्षेत्र के जंगलों को भी आबाद कर रहे हैं। आलम यह है कि चित्रकूट के निकट सरभंगा के जंगल में बाघिन पी-213(22) के बच्चों के भी बच्चे हो गए हैं। बाघ पुनर्स्थापना योजना के दौरान पन्ना टाइगर रिज़र्व में सहायक संचालक रहे एम. पी. ताम्रकार बताते हैं कि सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने वर्ष 2015-16 में अपनी सेवाएं इस बाघिन के ट्रैकिंग में दी हैं। इस दौरान बाघिन के मूवमेंट व गतिविधि पर हम पूरी नजर रखते थे।    

श्री ताम्रकार बताते हैं कि बाघिन पी-213(22) ने अब तक चार मर्तबे शावकों को जन्म दिया है। इस बाघिन के बच्चों के बच्चे भी हो रहे हैं। मौजूदा समय सरभंगा के जंगल में पन्ना की इस बाघिन की चार पीढ़ियां जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण कर रही हैं। बाघों का कुनबा बढ़ने से अब यहाँ अक्सर सड़क मार्ग पर भी राहगीरों को वनराज के दर्शन होने लगे हैं। यही वजह है कि वन्य जीव प्रेमी बाघों से आबाद हो चुके चित्रकूट के इस जंगल को टाइगर रिज़र्व का दर्जा देने की मांग करने लगे हैं।

पन्ना टाइगर रिज़र्व को बाघों से आबाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति बताते हैं कि बाघिन पी-213(22) की कहानी बेहद दिलचस्प और अनूठी है। इस बाघिन ने पन्ना से सरभंगा के जंगल का सफर तय करके वहां पर बाघों का नया कुनबा बसाकर इतिहास रच दिया है। इस बाघिन ने सरभंगा में एक और पन्ना जोड़ दिया है। मालूम हो क़ि पूर्व में पन्ना टाइगर रिज़र्व में अधिकतम 35 बाघ रहा करते थे। लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना की कामयाबी के बाद पन्ना टाइगर रिज़र्व व आसपास के जंगल में 90 से अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं। पन्ना कोर क्षेत्र से बाघ बाहर निकलकर बिन्ध्य व बुन्देलखण्ड क्षेत्र के जंगलों को आबाद कर रहे हैं।   

दिसम्बर 2013 में जन्मी थी यह बाघिन

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलतम रानी कही जाने वाली कान्हा की बाघिन टी-2 ने पी-213 को अक्टूबर 2010 में जन्म दिया था। इस बाघिन ने नर बाघ पी-111 से जोड़ा बनाकर दिसंबर 2013 में चार शावकों को जन्म दिया। जिनमें तीन मादा व एक नर शावक था। इन्हीं तीन मादा शावकों में से एक बाघिन पी- 213 (22) है जिसने चित्रकूट के जंगल को न सिर्फ अपना ठिकाना बनाया अपितु यहां पर कई बार शावकों को जन्म देकर यहां के जंगल को बाघों से आबाद भी किया है। मौजूदा समय इस वन क्षेत्र में बाघिन पी-213(22) सहित कुल 30-35 बाघ  विचरण कर रहे हैं।

सरभंगा मांगे सम्मान, बने टाइगर रिजर्व पहचान

क्या आप जानते हैं ? चित्रकूट की पावन भूमि के निकट, मझगवां सरभंगा का जंगल अब सिर्फ जंगल नहीं, बाघों का जीता-जागता गढ़ बन चुका है। सतना जिले के वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर शर्मा बाघों से आबाद हो चुके इस जंगल को टाइगर रिज़र्व बनाने के लिए मुहिम चला रहे हैं। वे बताते हैं कि यह गर्व की बात है कि सरभंगा में आज 34 बाघों का कुनबा (जिनमें 6 नन्हे शावक भी शामिल हैं) शान से विचरण कर रहा है। पन्ना की बाघिन पी-213(22) यहाँ 18 शावकों को जन्म दे चुकी है। यह अद्भुत क्षेत्र 19,000 हेक्टेयर में फैला प्रकृति का खजाना है। 

सरभंगा के जंगल को टाइगर रिजर्व बनाना क्यों जरूरी है ? इस सम्बन्ध में श्री शर्मा का कहना है कि यह अनूठा और जैव विविधता से समृद्ध वन क्षेत्र सिर्फ बाघों से ही आबाद नहीं है, यहाँ 70 से अधिक तेंदुए, 60 भेड़िये,150 लकड़बग्घे, 50 से अधिक भालू, जंगली कुत्ते, लोमड़ियाँ और बड़ी संख्या में हिरण, नीलगाय व दुर्लभ पक्षी बसते हैं। आपका कहना है कि पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश में सिर्फ 3 बाघों पर रानीपुर को टाइगर रिजर्व बना दिया गया है, जबकि हमारे यहाँ सरभंगा के जंगल में वहां की तुलना में 11 गुना ज़्यादा बाघ हैं। यह मध्य प्रदेश के लिए सुनहरा अवसर है, कि सरभंगा के जंगल को टाइगर रिज़र्व बनाया जाय।  

यह जंगल पन्ना और रानीपुर टाइगर रिजर्व को जोड़ता है, जो वन्यजीवों के सुरक्षित आने-जाने (गलियारे) के लिए ज़रूरी है। केन-बेतवा लिंक से प्रभावित होने वाले पन्ना के बाघों के लिए सरभंगा प्राकृतिक शरणस्थली बन सकता है। टाइगर रिजर्व बनने पर यहाँ पर्यटन बढ़ेगा, हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा फलस्वरूप चित्रकूट क्षेत्र में समृद्धि आएगी। सरभंगा का भविष्य खनन नहीं, संरक्षण और पर्यटन में है। इसलिए आवाज़ उठाइये और समर्थन दीजिये !

यह सिर्फ जंगल बचाने की बात नहीं, यह है -

  •  मध्य प्रदेश के गौरव को विश्व पटल पर स्थापित करने का मौका !
  •  चित्रकूट के विकास को नई उड़ान देने का अवसर !
  •  स्थानीय निवासियों के लिए समृद्धि लाने का संकल्प !
  •  हमारी प्राकृतिक धरोहर को सहेजने का कर्तव्य !
  •  सरभंगा की दहाड़ अब अनसुनी न रहे, इसे वैश्विक पहचान दिलाएं !

 

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Sunday, April 13, 2025

आपसी संघर्ष में पन्ना टाइगर रिजर्व का नर बाघ घायल

  •  10 वर्षीय बाघ पी-243 के सिर पर है गहरा जख्म  
  •  सतत उपचार के बावजूद ठीक नहीं हो पा रहा घाव 

पन्ना टाइगर रिजर्व का 10 वर्षीय नर बाघ पी-243, जो आपसी संघर्ष में घायल हुआ है। 

।। अरुण सिंह ।।   

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों की संख्या बढऩे के साथ ही उनके बीच इलाके में आधिपत्य को लेकर आपसी संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं। बाघों के बीच होने वाली इस टेरिटोरियल फाइट (आपसी संघर्ष) में कई बार बाघ बुरी तरह से जख्मी हो जाते हैं। अभी हाल ही में पन्ना टाइगर रिजर्व का 10 वर्षीय बाघ पी-243 आपसी संघर्ष में बुरी तरह जख्मी हुआ है, इस बाघ के सिर में गहरा घाव है। यह वही प्रसिद्ध नर बाघ है, जिसने चार अनाथ शावकों की परवरिश की थी, जिनकी मां बाघिन पी-213(32) की मौत मई 2021 में हो गई थी। 

पिछले दिनों पर्यटकों ने जब इस जख्मी बाघ की तस्वीर ली, तब पता चला कि वह जख्मी है। सोशल मीडिया में बाघ की वायरल हुई फोटो तथा उठ रहे सवालों की ओर पन्ना टाइगर रिजर्व की क्षेत्र संचालक अंजना सुचिता तिर्की का ध्यान आकृष्ट कराए जाने पर उन्होंने आज बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के परिक्षेत्र हिनौता अंतर्गत स्वच्छंद रूप से नर बाघ पी-243 उम्र 10 वर्ष विचरण कर रहा है। लगभग तीन माह पूर्व आपसी संघर्ष में बाघ के सिर पर चोट लग जाने के कारण घाव निर्मित हुआ है, जिसका उपचार बाघ विशेषज्ञों की सलाह पर सतत रूप से वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना टाइगर रिजर्व के द्वारा किया गया, किंतु उपचार से बहुत अधिक लाभ नहीं हुआ।

क्षेत्र संचालक के मुताबिक ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बाघ के स्कल में फ्रैक्चर है, जिस कारण से घाव ठीक नहीं हो रहा। बाघ विशेषज्ञों के सतत संपर्क में रहते हुए बाघ का उपचार एवं प्रबंधन किया जा रहा है। यहाँ विशेष गौरतलब बात यह है कि नर बाघ पी-243 इसके पूर्व भी वर्ष 2021 में आपसी लड़ाई में घायल हुआ था। उस समय भी इस बाघ के सिर में आँखों के बीचोबीच जख्म हुआ था, जो उपचार से ठीक हो गया था। लेकिन इस बार का जख्म पहले की तुलना में ज्यादा गहरा तो है ही स्कल फ्रैक्चर की आशंका भी जताई जा रही है। यही वजह है की सतत उपचार के बाद भी घाव ठीक नहीं हो पा रहा है।   

खुले जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण करने वाले बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट (आपसी संघर्ष) होने व अन्य प्राकृतिक कारणों से जख्मी होने पर क्या उनका उपचार दवाइयों से होना चाहिए ? इस मुद्दे पर पन्ना टाइगर रिज़र्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का कहना है कि जंगल का नियम है "सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट"। यानी जो फिट और ताकतवर है वहीं रह सकता है। जो अनफिट व कमजोर है उसे या तो मरना पड़ता है या फिर उस इलाके को छोड़कर भागना पड़ता है। 

घायल बाघ को दवाई देकर उपचार करके उसे बचाने का तात्पर्य यह होगा कि हम प्रकृति के विरुद्ध जा रहे हैं। उनके अनुसार बाघ को उपचार कर बचाने से प्रत्यक्ष लाभ यह होगा कि बाघों की संख्या स्थिर रहेगी परंतु हानि यह है कि युवा बाघ इलाके की तलाश में बाहर चले जाएंगे। असुरक्षित इलाकों में जाने से कई बार वे हादसों का शिकार हो जाते हैं। 

मालुम हो कि तीन वर्ष पूर्व दिसंबर 2021 में नर बाघ पी-243 जब आपसी संघर्ष में घायल हुआ था, उस समय भी वन्य जीव प्रेमियों द्वारा बाघ की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की जा रही थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए तत्कालीन क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने कहा था कि टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र बाघों के रहवास हेतु सबसे उपयुक्त और सुरक्षित स्थान होता है। लेकिन सीमित वन क्षेत्र होने के कारण यहां बाघों की एक निश्चित संख्या ही रह सकती है। 

धारण क्षमता से अधिक संख्या होने पर अतिरिक्त बाघों को अपने लिए बाहर जाकर इलाके की खोज करनी होती है। इन परिस्थितियों में यदि हमने प्रकृति के विरुद्ध जाकर घायल व कमजोर बाघों को बचाया तो कोर क्षेत्र में वृद्ध बाघों की संख्या अधिक हो जाने से शावकों की जन्म दर व संख्या धीरे-धीरे कम होना प्रारंभ हो जाएगी। इतना ही नहीं अच्छा और मजबूत "जीन" कोर क्षेत्र से बाहर चला जाएगा।   

क्या कहती है एनटीसीए की गाइडलाइन 

बाघ अभयारण्यों व संरक्षित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने जो गाइडलाइन निर्धारित की है उसके मुताबिक बाघ जैसे वन्य जीवों के प्राकृतिक रहवास स्थलों में संतुलन को कायम रखने तथा उनके लिए उपयुक्त परिस्थितियों को बढ़ावा देने के लिए न्यूनतम मानव हस्तक्षेप जरूरी है। सर्वाइवल ऑफ  फिटेस्ट के द्वारा प्राकृतिक तरीके से वृद्ध व कमजोर आबादी का उन्मूलन होता है। इसलिए वृद्ध, कमजोर व घायल जंगली बाघों को कृत्रिम भोजन देकर प्राकृतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। 

ऐसा करने से मानव व वन्यजीवों के बीच संघर्ष के हालात बन सकते हैं। वृद्ध व अक्षम जंगली बाघों की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए कृत्रिम आहार देना वन्य जीव संरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाता है, इसलिए ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। सिर्फ विशेष परिस्थितियों में जब किसी वृद्ध या घायल बाघ से मानव बाघ संघर्ष के हालात बने, तो इन परिस्थितियों में ऐसे बाघों को किसी मान्यता प्राप्त चिडय़िाघर में पुनर्वास किया जाना चाहिए।

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Friday, April 11, 2025

युवा कृषक ने खेती को ऐसे बनाया लाभ का धंधा

  • उन्नत तकनीक व नवाचार के जरिये हासिल की कामयाबी 
  • आर्थिक रूप से सशक्त बनकर समाज के लिए बने मिसाल 

 मछली पालन कर प्रतिवर्ष कमा रहे 6 लाख रू. से अधिक,पशुपालन व खेती में अतिरिक्त आय। 

पन्ना। ग्रामीण इलाकों के पढ़े लिखे ज्यादातर युवक सरकारी अथवा निजी कंपनियों में नौकरी पाने के लिए वर्षों जी तोड़ मेहनत करते हैं, इसके बावजूद बहुत ही कम लोगों को सम्मानजनक नौकरी मिल पाती है। जिन युवकों को कामयाबी नहीं मिल पाती, वे हताशा की गिरफ्त में आकर मानसिक तनाव झेलने के साथ-साथ हीनभावना के भी शिकार हो जाते हैं। लेकिन समाज में ऐसे युवा भी हैं जो विपरीत माहौल में भी कोई न कोई रास्ता खोज लेते हैं और सम्मान की जिंदगी जीते हैं। 

ऐसा ही एक युवक मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का है, जिन्होंने खेती को अपने रोजगार का जरिया बनाकर कामयाबी हासिल की है। गुनौर विकासखण्ड के ग्राम पटना तमोली निवासी युवा कृषक सुमित चौरसिया ने उन्नत तकनीक के जरिए मछली पालन, पशुपालन एवं पान की खेती कर आर्थिक रूप से सशक्त हुए हैं। 38 वर्षीय सुमित ने स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत आजीविका के लिए परंपरागत खेती के स्थान पर नवाचार और उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए कृषि विभाग एवं कृषि विज्ञान केन्द्र की मदद ली और आर्थिक रूप से सशक्त बनकर समाज के लिए भी मिसाल बने हैं।

बुन्देलखण्ड क्षेत्र में प्रसिद्ध पान की उन्नतशील प्रजाति बंग्ला एवं कटक की भी करते हैं खेती। 

प्रगतिशील किसान सुमित प्रधानमंत्री मत्स्य पालन संपदा योजना का लाभ प्राप्त कर बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कर प्रतिवर्ष 6 लाख रूपए से अधिक की आय अर्जित कर रहे हैं। साथ ही पशुपालन, पान की खेती व अनाज एवं दलहन की खेती कर पृथक से लगभग 5 लाख रूपए की शुद्ध आय अर्जित कर रहे हैं। उन्होने बताया कि समन्वित फसल प्रणाली मॉडल अपनाकर खेती को लाभ का धंधा बनाया जा सकता है। 

इस युवक ने वर्ष 2022-23 में मत्स्य पालन की शुरूआत सात तालाबों से की थी। वर्तमान में मछलियों की विभिन्न प्रजातियों जैसे ग्रॉस कार्प, सिल्वर कार्प, कॉमन कार्प, रोहू एवं कतला इत्यादि का पालन कर रहे हैं। बाजार में इन मछलियों की मांग अधिक है। आगामी दिवसों में बकरी एवं मुर्गी पालन प्रारंभ करने की योजना भी बनाई है। 

इसके अलावा सुमित द्वारा बुन्देलखण्ड क्षेत्र में अत्यधिक प्रसिद्ध पान की उन्नतशील प्रजाति बंग्ला एवं कटक की खेती भी की जा रही है। 2.2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान, गेहूं, चना व मसूर की खेती सहित गिर एवं साहीवाल नस्ल की गाय का पालन कर प्रतिदिन औसतन 12 लीटर दूध की बिक्री भी की जाती है। सुमित चौरसिया को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा कृषक फैलो सम्मान सहित कृषि के क्षेत्र में अन्य पुरस्कार भी मिले हैं।

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मझगाँय गांव की वीरान पहाड़ी और गहराता जल संकट

  •  यहां का मोती सागर तालाब नाले के जल प्रबंधन का श्रेष्ठ उदाहरण
  •  जलीय लताओं से आच्छादित हो चुके तालाब की होगी साफ-सफाई

 पन्ना जिले के अजयगढ़ क्षेत्र  की ग्राम पंचायत मझगाँय की वीरान हो चुकी पहाड़ी का द्रश्य, जिससे कुंआ सूख रहे।  

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। प्रकृति और पर्यावरण के साथ बीते डेढ़ दो दशकों में जिस तरह का व्यवहार हुआ है, उसके दुष्परिणाम अब स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं। निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए हमने जंगलों को बेरहमी के साथ उजाडा है, नतीजतन साल दर साल जहां तापमान का पारा बढ़ रहा है, वहीं जल संकट की समस्या भी भयावह हो रही है। हालात ये हैं कि पूरे गांव की प्यास बुझाने वाले कुएं अप्रैल के महीने में ही सूखने लगे हैं।

गौरतलब है कि पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसीलिए कहा जाता है कि जहां तालाब नहीं, पानी नहीं, वहां गांव नहीं। तालाब हमारे जीवन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन मौजूदा दौर में हमने जीवन से जुड़े इस जरूरी हिस्से को अनदेखा करना शुरू कर दिया। परिणाम स्वरुप पहाड़ों की हरियाली गायब हो गई, वीरान हो चुके पहाड़ों पर पानी रुकने के बजाय सीधे बहकर जाने लगा। इसका असर यह हुआ कि गर्मी के शुरुआती महीनों में ही जल संकट दस्तक देने लगता है।

शहर हो या गांव गर्मी के मौसम में जल संकट अब सर्वव्यापी हो चुका है। धरती के भीतर संचित जल का भी बेरहमी के साथ दोहन हो रहा है। जिससे पानी का यह संरक्षित कोष भी खाली होने लगा है। डेढ़ दो दशक पूर्व तक जिन गांवों में भरपूर पानी हुआ करता था, कुआं और तालाब कंचन जल से लबरेज रहते थे, वहां भी अब लोग पीने के पानी को मोहताज हो रहे हैं।

अजयगढ़ जनपद का मझगाँय गांव जिसकी आबादी तक़रीबन साढे चार हजार है। 

यहां हम बात करते हैं पन्ना जिले के अजयगढ़ जनपद की ग्राम पंचायत मझगाँय की, जहां अप्रैल के पहले हफ्ते में ही कुआं सूखने लगे हैं। अजयगढ़ से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर पहाड़ी की तलहटी पर बसा गांव मझगाँय है, जिसकी आबादी साढे चार हजार है। इस गांव में प्रवेश करने से पहले खूबसूरत मोती सागर तालाब के दर्शन होते हैं। इसी तालाब के पानी से गांव के मवेशियों की जहां प्यास बुझती है, वहीं गांव के 80 फ़ीसदी से भी अधिक लोगों का निस्तार इसी तालाब के पानी से होता है। लेकिन समुचित देखरेख के अभाव में यह तालाब अब जहां जलीय लताओं (कमल) से पूरी तरह आच्छादित हो चुका है, वहीं तालाब में सिल्ट जमा होने से वह उथला हो गया है।

 मझगाँय  गांव का मोती सागर तालाब जो मौजूदा समय जलीय लताओं से आच्छादित है। 

गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग शिवनंदन सिंह बताते हैं कि हमारे गांव के बाजू की पहाड़ी पहले हरी भरी और वनाच्छादित थी। तब बारिश का पानी पहाड़ी में रुकता था, जिससे गांव के कुएं गर्मियों में भी पानी से भरे रहते थे। लेकिन पहाड़ी वीरान होने पर अब बारिश का पानी बह जाता है, जिससे धरती के भीतर के स्रोत गर्मियों में सूख जाते हैं। जल स्तर भी लगातार नीचे खिसक रहा है, फल स्वरुप अब पानी की समस्या गंभीर होने लगी है।

ग्रामीणों का कहना है कि राजाशाही जमाने में मझगाँय तालाब का निर्माण मोतीलाल सिंह ने कराया था, इसीलिए इसका नाम मोती सागर तालाब पड़ा है। कल्ला सेन बताते हैं कि नाले पर बने इस तालाब में हमेशा पानी रहता है, इसे हमने कभी पूरी तरह सूखते नहीं देखा। अब यह तालाब काफी पुर गया है तथा कमल पूरे तालाब में फैला है। पहले हम लोग इस तालाब में खूब तैरते थे, पानी भी बहुत गहरा और साफ हुआ करता था। लेकिन अब यह गुजरे जमाने की बात हो चुकी है, जो सिर्फ स्मृतियों में है। शिवनंदन सिंह कहते हैं कि यदि तालाब में जमा हो चुकी सिल्ट निकल जाए तो हमारे गांव का यह खूबसूरत तालाब फिर अपने पुराने स्वरूप में आ सकता है।

गर्मी अभी उफान पर नहीं है, अप्रैल के महीने में ही गांव के कुओं का ये हाल है तो मई में क्या होगा ?

ग्रामीण अब यह महसूस करने लगे हैं कि तालाब का गहरीकरण करने के साथ-साथ वीरान हो चुकी पहाड़ी को फिर से हरा भरा करना जरूरी है। यदि पहाड़ी में पहले की तरह पेड़ पौधे पनप जायें तो कुओं के सूख चुके जल स्रोत फिर से पुनर्जीवित हो जाएंगे और गर्मियों में पानी की समस्या का सामना ग्राम वासियों को नहीं करना पड़ेगा। पंचायत मित्र धनराज सिंह बताते हैं कि स्वयं सेवी संस्था समर्थन के सहयोग से ग्राम वासियों द्वारा मोती सागर तालाब की सफाई का काम शुरू कर दिया गया है। समर्थन संस्था के ज्ञानेंद्र तिवारी की अगुवाई में यहां जल चौपाल का भी आयोजन हुआ। जिसमें जल संकट सहित गांव की विभिन्न समस्याओं पर गहन चर्चा हुई है।

ज्ञानेंद्र तिवारी बताते हैं कि नाले के जल प्रबंधन का मझगाँय का मोती सागर तालाब एक श्रेष्ठ उदाहरण है। आपने बताया की मझगाँय गांव में 6 कुंआ हैं जो 40 से 50 फीट गहरे हैं। लेकिन मौजूदा समय इन कुओं में पानी सिर्फ पेंदी पर बचा है। कुछ लोग कुओं से पानी मोटर लगाकर खींचते हैं, जिससे पेंदी का पानी भी खत्म हो जाता है। श्री तिवारी बताते हैं कि गांव के 80 फ़ीसदी लोग कुओं का पानी ही पेयजल के लिए उपयोग करते हैं, जबकि 20 फीसदी लोग हैंडपंप से पानी लेते हैं।

स्वयं सेवी संस्था समर्थन की पहल से ग्रामीण अब तालाब में फ़ैल चुकी जलीय लताओं को निकाल रहे हैं। 

समर्थन संस्था की पहल व जल चौपाल लगाने का असर यह हुआ कि पंचायत ने प्रस्ताव पारित कर गांव के पांच कुओं की सफाई व गहरीकरण करने का निर्णय लिया है। यह कार्य शीघ्र शुरू किया जाएगा ताकि ग्राम वासियों को आगामी मई के महीने में पेयजल के लिए भटकना न पड़े। ग्रामीणों का कहना है कि कुओं का गहरीकरण व सफाई का काम हो गया तो कुओं में पर्याप्त पानी आने लगेगा। पंचायत ने वीरान हो चुकी पहाड़ी को संरक्षित कर उसे फिर से हरा भरा व वनाच्छादित करने का भी फैसला लिया है। यदि सचमुच में ऐसा हुआ, तो एक बार फिर से मझगाँय गांव में पुराने खुशहाली वाले दिन लौट आएंगे।



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Friday, April 4, 2025

पानी की तलाश में भटके चीतल का आवारा कुत्तों ने किया शिकार

आवारा कुत्तों के हमले में असमय काल कवलित हुए चीतल का हुआ दाह संस्कार। 

पन्ना। गर्मी के इस मौसम में पानी न मिलने पर जंगली जानवर आबादी क्षेत्रों की ओर रुख करने लगे हैं। पानी की तलाश में भटकते हुए जानवरों का आबादी क्षेत्र में आना उनके लिये जानलेवा साबित हो रहा है। पन्ना टाइगर रिज़र्व के पन्ना बफ़र क्षेत्र में गत सायं एक मादा चीतल पानी के तलाश में झिन्ना स्थित गौशाला के निकट पहुँच गई। वहां मौजूद आवारा कुत्तों ने इस मादा चीतल पर हमला बोल दिया, फ़लस्वरूप चीतल की मौत हो गई।  

वन परिक्षेत्राधिकारी पन्ना बफर अमर सिंह बताया कि गुरुवार को शाम के समय मादा चीतल झिन्ना स्थित गौशाला के पास पहुँच गया था। यहाँ पर आवारा कुत्तों ने चीतल को घेरकर हमला कर दिया। कुत्तों के हमले में जख्मी हो चुके चीतल की मौत हो गई। मृत चीतल का पोस्ट मॉर्टम आज वन परिक्षेत्राधिकारी पन्ना बफर कार्यालय खजरी कुडार में वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता द्वारा किया गया। पोस्ट मॉर्टम के उपरांत मृत चीतल के शव को  कार्यालय परिसर के निकट ही जला दिया गया है। इस मौके पर एनटीसीए के प्रतिनिधि, सरपंच व वन अधिकारी मौजूद रहे। 


उल्लेखनीय है कि गर्मी के मौसम में इस तरह की घटनायें अब आये दिन सुनने को मिल रही हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये वन विभाग को जंगल में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना चाहिए ताकि प्यास से व्याकुल वन्य प्रांणी मजबूरन आबादी क्षेत्र में आकर असमय काल कवलित न हों। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये जो भी प्रयास हुए हैं, वे नाकाफी हैं। ज्यादातर वन क्षेत्रों में पानी की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। नदी नाले जहां वन्य प्रांणी पानी पीते रहे हैं, वे सूख चुके हैं। ऐसी स्थिति में पानी की तलाश में वन्य प्रांणी जंगल से आबादी क्षेत्र के आस-पास स्थित जल श्रोतों की तरफ आने लगे हैं। जिसके कारण वन्य प्रांणी जहां कुत्तों के हमले का शिकार हो रहे हैं, वहीं शिकारियों का भी निशाना बन रहे हैं। 

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