।। बाबूलाल दाहिया ।।
यद्द्पि कुदरत नें मनुष्य को अन्य जन्तुओं से अलग दो फुर्सत के हाथ और सबसे भिन्न विलक्षण किस्म की बुद्धि दे दी है। फिर भी उससे बहुत कुछ छिपा भी रखा है। यही कारण है कि बहुत सारा ज्ञान उसी बुद्धि के बूते मनुष्य को पेड़ पौधे, वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं से लेना पड़ता है।
शायद इसी से समूह में कतार बद्ध चलना अगर उसने भोर में उड़ते हुए हजारों किलो मीटर की यात्रा करने वाले जल पक्षियों से सीखा तो समूह के साथ मिलकर आक्रमण करना भेड़िए और सोन कुत्ते से। संचय की यदि उसकी गुरु मधुमक्खी और चीटी हैं, तो लुढ़का कर चलने के लिए पहिये और छकड़ा बनाने का उसका गुरु गोबरौरा कीट जो अपने वजन का दश गुना गोबर का गोला लुढ़का कर ले जाता है। इसी तरह जानवरों को अपनी बस्ती की ओर आने का संकेत उसे टिटिहरी नामक पक्षी से मिलता रहा है।
चित्र में यह बया पक्षी का घोसला है। इस घोसले को नर बया पक्षी ही नदियों नालों के किनारे उगे कटीले पेड़ों में बनाता है। मादा बया का उसके बनाने में कोई योगदान नही होता। वह सिर्फ चयन करती है कि इस घोसले में मेरे अंडे बच्चे बेहतर ढंग से सुरक्षित रह पाएंगे। और फिर उसी आधार पर किसी कुशल नर का अपने पति के रूप में वरण करती है। पर यदि गहराई से देखा जाय तो उसके घोसला चयन में सावधानी कुछ इस तरह की होती है।
1- घोसला ऐसी कटीली एवं मजबूत पतली डाल पर हो, जहां सांप विषखपरा आदि जन्तु न पहुँच सके। 2- अण्डे रखने के स्थान तक का रास्ता इतना लम्बा हो कि उस पतली डाल में झूलने पर सांप का सिर वहां तक न पहुंच सके। 3- अण्डे तक चिड़िया के प्रवेश का रास्ता इतना लम्बा और संकरा हो कि कौआ बाज की चोंच अंडे बच्चों तक न पहुँच पाए। 4- यथा सम्भव नीचे पानी भरा हो जिससे जमीनी सुरक्षा भी रहे। परन्तु यदि नदी नालों के किनारे हो तो इतनी ऊंचाई पर हो कि उस वर्ष का बाढ़ का पानी घोसले को न डुबा पाए। वह घोसला से एक हाथ नीचे तक ही बहे। इस तरह की सूझ-बूझ और तकनींक के साथ बया जब अपना घोसला बनाकर तैयार करता है, तब उसमें चिड़ियां अंडा रखती हैं। अगर इन मापदण्डों में घोसला खरा नही है, तो उस अनाड़ी के घोसले को वह रिजेक्ट कर देती है। और उन्ही चयनित घोसले में अंडे देकर उनको अपने पंख की गर्मी से सेती हैं जिसमें बाद में बच्चे निकलते हैं। परन्तु नदिया के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने वाले लोग उन्ही बया पक्षी के घोसलों से ही जानकारी हासिल करते हैं कि " नदी का पानी इस वर्ष घोसला के एक हाथ नीचे वहां तक रहेगा अस्तु अपनी झोपड़ी उस हिसाब से बनाई जाए। साथ ही एक जानकारी बया पक्षी से यह भी मिलती है कि इस वर्ष बारिश तेज होगी य हल्की। अगर बया पक्षी अपना घोसला सघन पत्तों के नीचे बनाता है तो उसका अर्थ है कि वारिश तेज रहेगी। परन्तु अगर वह डाल के बिल्कुल किनारे बनाता है तो वह कम वर्षा का परिचायक है।
यद्द्पि आज मनुष्य के पास मौसम विज्ञान जानने के आधुनिक साधन हैं। पर लम्बे समय तक यह सब जानने के लिए जीव जन्तुओं के क्रिया कलाप ही उसके आधार और मार्गदर्शक थे। चित्र में उपयुक्त और रिजेक्ट दोनो प्रकार के घोसला लटक रहे हैं।
वीडियो : पन्ना टाइगर रिज़र्व के अकोला बफर में नाले के किनारे बया पक्षियों के बसेरा का नज़ारा -
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