Friday, February 28, 2025

कल्दा पठार में मिला दुर्लभ लेसर एडजुटेंट पक्षी

  •  प्राकृतिक जैवविविधता से भरपूर है यहाँ का जंगल 
  •  पिछले वर्ष मिला था दुर्लभ कीट भक्षी पौधा ड्रोसेरा 

कल्दा पठार के जंगल में मिला दुर्लभ पक्षी लेसर एडजुटेंट  ( फोटो - अजय चौरसिया )

पन्ना। हरी-भरी वादियों और खूबसूरत घने जंगलों से समृद्ध पन्ना जिले के कल्दा पठार का जंगल जैवविविधता के लिए भी जाना जाता है। दक्षिण वनमण्डल  पन्ना के अंतर्गत आने वाले कल्दा पठार के श्यामगिरि की वादियों में लेसर एडजुटेंट पक्षी देखा गया है। इस दुर्लभ पक्षी की तस्वीर दो दशक से प्रकृति संरक्षण का कार्य कर रहे अजय चौरसिया ने ली है और इस पक्षी के यहाँ होने की पुष्टि की है।

प्रकृति प्रेमी अजय चौरसिया ने बताया कि कल्दा पठार प्राकृतिक जैवविविधता से समृद्ध क्षेत्र है, जहां वनस्पति और वन्यजीवों की प्रचुरता देखी जाती है। यह क्षेत्र संरक्षण की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है और दुर्लभ प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित आवास साबित हो सकता है। लेसर एडजुटेंट सारस परिवार में एक विशाल दलदली पक्षी है, जो अक्सर बड़ी नदियों और झीलों में अच्छी तरह से वनाच्छादित क्षेत्रों में, कृषि क्षेत्रों में, मीठे पानी की आर्द्रभूमि में और तटीय आर्द्रभूमि में पाया जाता है। घटती आबादी के कारण इसे आई यू सी एन की रेड लिस्ट में "निकट संकटग्रस्त" श्रेणी में रखा गया है।

इस पक्षी की कल्दा पठार में उपस्थिति इस क्षेत्र की जैवविविधता की महत्ता को दर्शाती है। यहां के जंगलों ने एक ओर जहाँ वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों को सहेज रखा है, वहीं पक्षियों की भी विभिन्न प्रजातियों के लिए भी एक आदर्श रहवास बना हुआ है। यहां पर तोता, मैना, हरियल, मोर, इंडियन गोल्डन ओरिओल, वुडपैकर, सर्पेन्ट ईगल, ग्रीन बी ईटर, के साथ ही जलीय पक्षियों में व्हिसलिंग डक, आइबिस, प्लोवर, पोंड हेरॉन, करमोरेंट, किंगफिशर, आदि पक्षियों को सहज ही देखा जा सकता है। 

गौरतलब है कि पिछले वर्ष इसी क्षेत्र में कीटभक्षी पौधा ड्रोसेरा की भी उपस्थिति दर्ज की गई थी। यह पौधा अपने पोषण के लिए छोटे कीटों का शिकार करता है और पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि कल्दा पठार जैवविविधता के लिए उपयुक्त क्षेत्र है और इसके बेहतर संरक्षण हेतु विशेष व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे यहाँ की दुर्लभ जैवविविधता को सहेजा जा सके।

वनमण्डल अधिकारी अनुपम शर्मा ने कहा कि यह पक्षी भारत के पूर्वी राज्यों में पाया जाता है, पर इस पक्षी का कल्दा पठार के जंगलों में पाया जाना एक सुखद समाचार है। इसके लिए उन्होंने पर्यावरणप्रेमी अजय चौरसिया, वनकर्मियों और समस्त पन्नावासियों को बधाई दी हैं।

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Monday, February 24, 2025

आदिवासी बहुल गांव के लोग खेतों की पगडंडियों से आवागमन को मजबूर

  • मूलभूत सुबिधाओं से वंचित इस गांव तक आजादी के 78 सालों बाद भी नहीं बनी सड़क 
  • महिलाओं ने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर शीघ्र सड़क निर्माण हेतु एसडीएम को सौंपा ज्ञापन 

 ककरहाई गांव की आदिवासी महिलाएं सड़क निर्माण हेतु एसडीएम को ज्ञापन सौंपते हुए।  

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में ऐसे ग्रामों की संख्या दर्जनों में है, जहाँ पहुंचना आसान नहीं है। बुनियादी और मूलभूत सुबिधाओं से वंचित इन ग्रामों के लोगों की  की जिंदगी मुश्किलों से भरी होती है। गांव में यदि कोई बीमार पड जाता है तो उसे तुरंत प्राथमिक चिकित्सा सुबिधा भी नहीं मिल पाती, क्योंकि सड़क मार्ग के आभाव में वाहनों का आवागमन संभव नहीं हो पाता। यहाँ तक कि 108 एंबुलेंस व डायल हंड्रेड जैसी इमरजेंसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हो पातीं। समस्याओं से ग्रसित इन ग्रामों में आदिवासी बहुल गांव ककरहाई भी है, जहाँ आजादी के 78 सालों बाद भी सड़क नहीं बन पाई। खेतों की पगडंडियों से होकर ग्रामीण आने-जाने को मजबूर हैं। 

उल्लेखनीय है कि पन्ना जनपद की ग्राम पंचायत इटवांखास के अंतर्गत आने वाले ककरहाई गांव के आदिवासियों की जिन्दगी मुसीबतों और कठिनाईयों से भरी हुई है। इनकी सुध न तो अधिकारी लेते हैं और न ही जनप्रतिनिधि, फलस्वरूप ये आज भी बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। दशकों से मुसीबतें झेल रही ककरहाई गांव की महिलाओं ने आज कलेक्ट्रेट पहुंचकर धरना प्रदर्शन किया तथा सड़क निर्माण की मांग के संबंध में आवेदन सौंपा है। जयस नारी शक्ति जिला अध्यक्ष रामबाई के नेतृत्व में लगभग आधा सैकड़ा आदिवासी महिलाओं के द्वारा सौंपे गए ज्ञापन को एसडीएम ने लिया और गांव तक शीघ्र सड़क निर्माण करवाने का आश्वासन दिया है।

ज्ञातब्य हो कि पन्ना जिले के कई आदिवासी बाहुल्य गांव आजादी के 78 सालों बाद भी सड़क, बिजली और पेयजल जैसी सुविधाओं को मोहताज हैं। ऐसा ही मामला पन्ना विधानसभा के ग्राम पंचायत इटवांखास अंतर्गत ग्राम ककरहाई का सामने आया है। इस छोटे से आदिवासी बहुल बस्ती में लगभग एक सैकड़ा घर हैं, जहाँ रहने वाले आदिवासियों के आवागमन हेतु कोई रास्ता नहीं है। यहां के लोग खेतों की पगडंडियो से आवागमन करते हैं। बरसात में आवागमन पूरी तरह से बंद हो जाता है, बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, बीमार लोग अस्पताल नहीं पहुँच पाते। यहाँ तक कि 108 एंबुलेंस व डायल हंड्रेड वाहन भी नहीं पहुंच पाने से घायल या बीमार व्यक्ति को चारपाई पर लेकर जाना पड़ता है।

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चंदेल काल में नृत्य, संगीत व कला साधना का केंद्र रहा है अजयगढ़ दुर्ग

  • चंदेल काल में नृत्य कला को भी काफी बढ़ावा मिला। उस काल में मंदिर नृत्य व संगीत साधना के केंद्र हुआ करते थे। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर भी उस समय नृत्य,  संगीत व तंत्र साधना के केंद्र रहे हैं। इन मंदिरों में साधकों को ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन की शिक्षा दी जाती थी। फलस्वरूप साधक कामवासना का अतिक्रमण कर आध्यात्म के रहस्यों का साक्षात्कार करने में सफल होते थे।

अजयगढ़ दुर्ग का रंगमहल जहाँ साधक करते थे नृत्य और संगीत की साधना। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना जिले का अजयगढ़ दुर्ग सैकड़ों वर्ष पूर्व चंदेल शासकों की शक्ति का केंद्र रहा है। ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस दुर्ग को अजेय कहा जाता था। ऐतिहासिक महत्व के इस प्राचीन दुर्गा की स्थापत्य व मूर्तिकला मंत्र मुक्त कर देने वाली है। यहां की मूर्ति कला में संगीत व नृत्य के अनेक दृश्यों का चित्रण हुआ है । सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण रहे अजयगढ़ दुर्ग में उत्कीर्ण प्रतिमाओं को देखने से यह प्रतीत होता है कि तत्कालीन शासकों की संगीत व नृत्यकला में गहरी अभिरुचि थी।

ऐसा कहा जाता है कि विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के मंदिरों का निर्माण अजयगढ़ दुर्ग के बाद हुआ है। चंदेल काल को कालिंजर एवं अजयगढ़ इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है। क्योंकि इसी काल में इन दुर्गों को राजनैतिक, सामरिक एवं सांस्कृतिक गरिमा प्राप्त हुई। उस समय संगीत व मूर्ति कला को काफी महत्व दिया जाता था। स्त्रियों की भी संगीत साधना में गहरी अभिरुचि थी तथा तत्कालीन समाज उनके इस स्वाभाविक गतिविधि में बाधक नहीं था। स्त्रियां अपनी इच्छानुसार किसी  भी ललित कला का चयन कर सकती थीं। यही कारण है कि चंदेल काल में संगीत व नृत्य कला ने अप्रतिम शिखर की ऊंचाइयों को हासिल किया। 

अजयगढ़ व कालिंजर दोनों ही दुर्गों की मूर्ति कला में संगीत के वाद्य यंत्रों को बजाते हुए बड़ा ही मनोहारी अंकन मिलता है। अजयगढ़ के रंग महल मंदिर समूह के द्वितीय मन्दिर के मंडप में बांसुरी बजाते हुए एक सुर सुंदरी की अत्यधिक कमनीय मूर्ति है। वह दो हाथों में बांसुरी पकडे हुए बजाते दिखाई गई है। इस प्रकार की बांसुरी वादिकाओं की मूर्तियां अन्य मंदिरों के मंडपों में भी प्राप्त होती हैं। कालिंजर के नीलकंठ मंदिर के मंडप में बांसुरी वादिका का सुंदर अंकन है। पुरुषों के द्वारा भी बांसुरी बजाने का शिल्पांकन कालिंजर और अजयगढ़ में मिलता है। बांसुरी वादन के दृश्यों की बहुलता इस बात का द्योतक है कि तत्कालीन युग में बांसुरी सर्वाधिक लोकप्रिय वाद्य था। बांसुरी के अलावा ढोलक, मंजीरा, वीणा, डमरू, शंख, झालर आदि वाद्य यत्रों का भी उसे काल में बहुतायत से प्रयोग होता था। 



चंदेल काल में नृत्य कला को भी काफी बढ़ावा मिला। कालिंजर व अजयगढ़ के मंदिरों में नृत्य के सुंदर दृश्यों का शिल्पांकन किया गया है। कालिंजर में नीलकंठ मंदिर के प्रवेश द्वार पर पट्टिका में नृत्य का बड़ा सुंदर दृश्य उकेरा गया है। उस काल में मंदिर नृत्य व संगीत साधना के केंद्र हुआ करते थे। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर भी उस समय नृत्य,  संगीत व तंत्र साधना के केंद्र रहे हैं। इन मंदिरों में साधकों को ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन की शिक्षा दी जाती थी। फलस्वरूप साधक कामवासना का अतिक्रमण कर आध्यात्म के रहस्यों का साक्षात्कार करने में सफल होते थे।

नृत्य, संगीत व तंत्र साधना के सूत्र व अनगिनत रहस्य आज भी अजयगढ़ के प्राचीन दुर्ग व खजुराहो के मंदिरों में छिपे हैं। इन रहस्यों को जानने व समझने के लिए वही अंतर्दृष्टि चाहिए, जो उस काल के रहस्यदर्शियों व मनीषियों के पास थी। जानकारों कहना है कि खजुराहो के मंदिर व अजयगढ़ का दुर्ग सिर्फ पर्यटकों के घूमने व भ्रमण करने की जगह नहीं है, बल्कि यहां की आबोहवा में गहरी आध्यात्मिक अनुभूतियां भी होती हैं। पन्ना जिले के  अजयगढ़ का यह प्राचीन दुर्ग अभी भी उपेक्षित है। इस प्राचीन धरोहर के संरक्षण व उसे उसके मूल स्वरूप में लाने के लिए शीघ्र ही ठोस और कारगर पहल जरूरी है।                                                          ( दूसरी क़िस्त )                                                                                                                                                                           

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Sunday, February 23, 2025

वास्तु शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ है अजयगढ़ का दुर्ग

"बुंदेलखंड की जिस पावन धारा में विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के मन्दिर स्थित हैं, उसी भूमि में अजयगढ़ का यह प्राचीन दुर्ग भी है, जो शिल्प कला व पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से किसी भी मामले में खजुराहो से कम नहीं है। इसके बावजूद भी इस अनूठे दुर्ग की घोर उपेक्षा हुई। जिससे मूर्ति चोरों व दफीनाखोरों ने इस  वेशकीमती धरोहर को खोद खोदकर क्षत-विक्षत कर दिया है। अजयगढ़ दुर्ग की बदहाली से चिंतित प्रबुद्धजनों व समाजसेवी संगठनों ने दुर्ग को संरक्षित तथा जीर्णोद्धार कराने की मांग की है"। 


पन्ना से 30 किमी की दूरी पर स्थित यह दुर्ग वास्तु शिल्प की दृष्टि से अनूठा है, इस दुर्ग के रंगमहल का नजारा।  

।। अरुण सिंह ।।

किसी समय चंदेल राजाओं के शक्ति का केंद्र रहा ऐतिहासिक अजयगढ़ का दुर्ग उपेक्षा के चलते खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर विंध्याचल की दुर्गम पर्वत श्रेणियों पर स्थित यह अजेय दुर्ग आज भी लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित इस दुर्ग की वास्तु कला के अवशेषों का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि खजुराहो और कालिंजर के विश्व प्रसिद्ध शिल्प के शिल्पियों के हाथ में इतनी पैनी छैनियां नहीं थी, जितनी कि अजयगढ़ दुर्ग के वास्तुकारों के पास थीं। वास्तव में अजयगढ़ का किला वास्तु शिल्प की दृष्टि से अधिक कलात्मक, अनूठा और बेजोड़ है।

उल्लेखनीय है कि खजुराहो शिल्प में यक्ष यक्षिणी की मिथुन मुद्राओं को पाषाण पर उकेर कर जहां जीवंत रूप प्रदान किया गया है, वहीं अजयगढ़ की शिल्प कला सत्यं शिवम् शिवं सुंदरम की गरिमा से युक्त है। यहां की शिल्प भक्ति और मुक्ति के चरम लक्ष्य को दिग्दर्शित कराने वाली भी है। ऋषि मुनियों की कठोर साधना तथा राजाओं और महाराजाओं के उत्थान एवं पतन के इतिहास को अपने जेहन में समेटे अजयगढ़ दुर्ग का प्राकृतिक सौंदर्य चिरस्थाई है। पर्वत शिखरों से फूटते झरने, नागिन सी बल खाती घाटियां, मनोरम गुफाएं, गहरी खाईयां, विशाल सरोवर व श्याम गौर चट्टानें दर्शकों का मन मोह लेती हैं। यद्यपि इस प्राचीन दुर्ग का लिखित इतिहास नहीं है लेकिन जन श्रुतियां एवं किवदंतियां इसकी प्राचीनता का बखान करते नहीं अघातीं।



बुंदेलखंड की जिस पावन धारा में विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के मन्दिर स्थित हैं, उसी भूमि में अजयगढ़ का यह प्राचीन दुर्ग भी है, जो शिल्प कला व पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से किसी भी मामले में खजुराहो से कम नहीं है। इसके बावजूद भी इस अनूठे दुर्ग की घोर उपेक्षा हुई। जिससे मूर्ति चोरों व दफीनाखोरों ने इस  वेशकीमती धरोहर को खोद खोदकर क्षत-विक्षत कर दिया है। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित इस भव्य दुर्ग के निर्माण में पत्थरों का तो प्रयोग किया गया है किंतु उनको जोड़ने में कहीं भी मसाले का प्रयोग नहीं किया गया है।

जानकारों का कहना है कि इसके निर्माण में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों के आधार पर कोणीय संतुलन विधि का प्रयोग किया गया है। प्राकृतिक झंझावातों, प्रकोपों, मानवीय युद्धों के विध्वंसक प्रहारों तथा अभिशापों को झेलने वाला यह दुर्ग अपनी भव्यता, अद्वितीयता तथा और सुदृढ़ता का परिचय दे रहा है। जो निश्चित ही खजुराहो तथा अन्य ऐतिहासिक स्थलों से किसी भी दृष्टिसे कम नहीं है।

धरातल से लगभग 600 फिट की ऊंचाई पर पहाड़ के ऊपर स्थित इस दुर्ग में प्रवेश के लिए सात द्वार थे। जो अब अधिकांश जर्जर व धराशाई हो गए हैं। मौजूदा समय यहां प्रवेश के लिए सिर्फ दो द्वार बचे हैं, जिनमें एक मुख्य दरवाजा तथा दूसरा तरौनी दरवाजा कहलाता है। उत्तरी द्वार से प्रवेश करने के बाद द्वितीय द्वार के पश्चिम में गंगा-जमुना नामक दो जलकुंड हैं, जिन्हें पर्वत को तराशकर बनाया गया है। विशेष गौरतलब बात यह है कि इन कुंडों के जल का स्वाद अलग-अलग है। पहाड़ी झरनों व श्रोतों से इनमें पानी आता है। कुंड से आगे जाने पर गणेश, कार्तिकेय, जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं मिलती हैं। यहां पर अनेकों अभिलेख भी मौजूद हैं जो चंदेल कालीन इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। दुर्ग के मध्य में एक तालाब है जो अजयपाल तालाब कहलाता है। तालाब के दूसरे किनारे पर अजयपाल का मंदिर स्थित है।


इस धरोहर के संरक्षण व जीर्णोद्धार की मांग करते अजयगढ़ क्षेत्रीय विकास संघ के संयोजक श्रीराम पाठक व अन्य। 

अजयपाल दुर्ग के दक्षिणी छोर पर चार मंदिर हैं, जो रंगमहल के नाम से जाने जाते हैं। ये मंदिर मौजूदा समय जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, लेकिन जो भाग शेष बचे हैं वे स्थापत्य कला की दृष्टि से अद्वितीय हैं। दुर्ग में स्थित रंगमहल भारतीय शिल्प कला एवं वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण है। इनके निर्माण में पत्थरों की जुड़ाई हेतु गारे अथवा चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। पत्थरों को तराशकर गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए कोणीय आधार पर संतुलन बनाते हुए पत्थरों को एक के ऊपर एक जमाकर रंगमहल का निर्माण किया गया है। कोणीय आधार पर बनाया गया यह संतुलन आधुनिक वास्तुकारों के लिए खोज व अध्ययन का एक विषय है।

रंगमहल के निर्माण में जितने भी पत्थर लगे हैं उन सभी  पत्थरों के पृष्ठ भाग में प्रतिमाएं एवं बेलबूटे उकेरे गए हैं। मंदिर के उत्तरी पश्चिमी कोने में भूतेश्वर नामक स्थान है। यहां पर जाने के लिए अजयपाल मंदिर से रास्ता है, जहां गुफा के अंदर शिव लिंग है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि यह ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का दुर्ग जो एक कला तीर्थ भी है, उचित देखरेख के अभाव में खण्डहर होता जा रहा है। 

( पहली क़िस्त )

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Saturday, February 22, 2025

खजुराहो के सिद्ध मंच पर देश-विदेश के साधनारत कलाकारों ने साकार की शिव की परम्‍परा

  •  खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव का तीसरा दिन रहा कथक के नाम 
  • गुरुजनों की तालीम को ऊर्जा के मंच पर लाए बाल नृत्य कलाकार


खजुराहो। नेपथ्य में मंदिर की पाषाढ़ मूर्तियां, ऊपर खुला आसमान, सामने देश और विदेश से पधारे सुधि कला रसिक और मध्य में रचे गए मंच पर शिव की परम्‍परा को साकार करते देश—विदेश के साधनारत कलाकारों का अविस्मरणीय प्रस्तुतीकरण। कुछ ऐसा ही दृश्य बना खजुराहो नृत्य समारोह की तीसरी शाम। नृत्य की गरिमा और शास्त्रीयता को समर्पित यह आनंद उत्सव अपने 51वें संस्करण में प्रवेश कर चुका है।

समारोह परिसर में चहुं ओर कला—संस्कृति के रंग बिखरे हुए हैं। कहीं सजीव चित्रांकन तो कहीं पारंपरिक शिल्प से स्टॉल सजे हुए हैं। यह कलाकार और कला प्रेमियों का भारतीय कलाओं के प्रति अनंत आस्था और समर्पण ही है जो खजुराहो नृत्य समारोह जैसे अनुष्ठान साल दर साल समृद्ध और प्रसिद्ध होते जा रहे हैं। ऐसे समारोह को देख भारतीय संस्कृति गर्व का अनुभव कर रही है और अपने सच्चे पहरेदारों पर नाज कर रही है।

नृत्य के इस आनंद उत्सव की तीसरी शाम कुचीपुड़ी, कथक, मोहिनीअट्टम और कथकली नृत्य से सजी। इसका आगाज हुआ संगीत नाटक अकादमी अवॉर्डी सुश्री दीपिका रेड्डी के कुचिपुड़ी नृत्य से। उनकी प्रस्तुति की शुरुआत शिव पार्वती परिणय से हुई। तिसरा गति और आरभि रागम की इस प्रस्तुति में भक्तगण भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती की प्रशंसा में गाते और नृत्य करते हैं, साथ ही वे इस दिव्य विवाह की कहानी को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप इन दैवीय जोड़े की शादी हुई थी। इसका संगीत डी. एस. वी. शास्त्री का था, जबकि कोरियोग्राफी दीपिका रेड्डी ने की। 

अगले क्रम में थक्कुवेमि मनकु की प्रस्तुति हुई। सौराष्ट्र रागम् और आदि तालम् में निबद्ध यह प्रस्तुति तेलंगाना के प्रसिद्ध वाग्गेयकार रामदासु द्वारा रचित एक मधुर रचना है। वे भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे। इस गीत में कवि हर्षपूर्वक भगवान राम की स्तुति करते हुए कहते हैं कि यदि श्रीराम हमारे साथ हैं, तो हमें किसी चीज की कमी नहीं है। हमारा विश्वास है कि भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए मानव कल्याण हेतु विभिन्न अवतार (दशावतार) धारण किए हैं। 

अगली प्रस्तुति रुद्रमा प्रवेशम् की थी। समुद्र प्रिया एवं धेनुका रागम् तथा आदि एवं खंडचापु तालम् की इस रचना को दीपिका रेड्डी की पुत्री और शिष्या श्लोका रेड्डी द्वारा प्रस्तुत किया गया। श्लोका ने आकर्षक ढंग से इस प्रस्तुति में दिखाया कि अपने पिता, राजा गणपति देव द्वारा पुत्र के समान पाली-पोसी गई रुद्रमादेवी, भारत की उन गिनी-चुनी महिलाओं में से थीं जिन्होंने सम्राट के रूप में शासन किया। इस नृत्य रचना में उनके वंश, साहसी व्यक्तित्व, घुड़सवारी में दक्षता और एक प्रशिक्षित योद्धा के रूप में उनकी तलवारबाजी की कुशलता को दर्शाया गया। 

अंतिम प्रस्तुति मधुरम् मधुरम् की रही। यह भगवान श्री कृष्ण के दिव्य और चंचल क्रियाकलापों, बचपन की शरारतों, चमत्कारों और कृष्ण लीला के दृश्यों का आकर्षक चित्रण था। इस रचना का समापन एक मनमोहक नृत्य के साथ हुआ, जिसमें नर्तकी पीतल की थाली के किनारे खड़ी होकर नृत्य के जटिल और लयबद्ध कदमों का प्रदर्शन करती है, जो नटुवन्नार और तबलावादक के साथ तालमेल में होता है। यह कुचिपुड़ी की विशेषता है। इसके गीतकार रामभट्टला नरसिंह शर्मा, संगीत डी. एस. वी. शास्त्री और कोरियोग्राफी दीपिका रेड्डी की थी।

दूसरी प्रस्तुति कथक की थी, जिसे प्रस्तुत करने मंच पर पधारीं एलियोनोरा पेट्रोवा और तातियाना नाजारोवा, रूस। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत बसंत की बंदिश से की। इसके बाद ध्रुपद "पूजन चली महादेव" को अपनी आकर्षक भाव—भंगिमाओं से व्यक्त करते हुए दर्शकों का मन मोह लिया। अगली प्रस्तुति जयपुर घराने से संबद्ध थी, जिसे तीनताल में प्रस्तुत किया। अंतिम प्रस्तुति पारम्परिक गजल "बहार" प्रस्तुत कर विराम दिया।

तीसरी प्रस्तुति सुश्री गायत्री मधुसूदन, केरल के मोहिनीअट्टम नृत्य की थी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत शशिसेकरास्तुति से की। इस रचना को महान चित्रकार राजा रवि वर्मा द्वारा लिखे गए गीतों से सजाया गया, जो नट्टकुरिंजी राग और रूपक ताल में निबद्ध थी। इसमें भगवान शिव का सुंदर वर्णन किया, जो पवित्र भस्म से सुशोभित हैं, जो सफेद बादलों के समूह की तरह चमकते हैं। कैलाश पर्वत पर बैठे हैं, जो हिमालय पर एक चांदी के मुकुट जैसा दिखता है। गीत सत्य और धार्मिकता के मार्ग पर चलने के लिए भगवान के मार्गदर्शन की मांग करते हैं, जो शांति और पवित्रता की आभा का आह्वान करते हैं, जिसका प्रतीक सफेद रंग का प्रमुख रंग है। 

इसके बाद, 'मुखाचलम' प्रस्तुत किया गया, जिसमें मोहिनीअट्टम के विशिष्ट गति पैटर्न को प्रदर्शित किया गया, जिसमें इसकी विशिष्ट तरंगें और डुबकी शामिल थीं। जीवंत रागमालिका और थलमालिका पर आधारित यह रचना केरल के लोकप्रिय लय पैटर्न को सहजता से मिश्रित कर रही थी, जिसमें कवलम की विशिष्ट शैली है। अगली प्रस्तुति पुन्नागावराली थी। इसमें जीमूथवाहन की कहानी दर्शायी गई, जो एक धर्मी राजा था, जिसने अपने वृद्ध माता-पिता के लिए शांतिपूर्ण शरण पाने के लिए अपना राज्य त्याग दिया था। यह प्रस्तुति रागमालिका और थालमालिका में निबद्ध थी, जिसका संगीत कोट्टकल मधु द्वारा रचित है और गीतकार मानव वर्मा हैं।

तीसरे दिन की अंतिम प्रस्तुति कथकली की थी। जिसे प्रस्तुत करने मंच पर नमूदार हुए संगीत नाटक अकादमी अवॉर्डी श्री सदानम के.हरिकुमार, केरल। नृत्‍य, संगीत और अभिनय के सौंदर्यपूर्ण मिश्रण का नृत्य कथकली, जिसमें अधिकतर भारतीय महाकाव्‍यों से ली गई कथाओं का नाटकीकरण किया जाता है। खजुराहो के सिद्ध मंच पर भी एक कथा नृत्य प्रेमियों को देखने मिली। जिसमें दिखाया जब पांडव अपने देश से निष्कासित होने के बाद जंगल में रह रहे थे, तो एक दिन वायु देवता ने द्रौपदी के सामने एक सुंदर सौगंधिकम फूल गिराया, जो भीम के पिता और द्रौपदी के ससुर थे। द्रौपदी ऐसे और भी फूल चाहती थीं और उन्होंने भीम को लाने के लिए मना लिया। हनुमान को अपने छोटे भाई के कारनामों के बारे में पता चला। वह उसकी वीरता और जोश की परीक्षा लेना चाहता था और उसके घमंड को चूर करना चाहता था। एक बूढ़े बंदर के रूप में हनुमान ने भीम की कार्यवाही में बाधा डाली। सच्चाई से अंजान, भीम ने हनुमान की पूंछ को उठाने और हटाने की कोशिश करते समय अपना गदा हनुमान की पूंछ के नीचे खो दिया। भीम की विनती के अनुसार हनुमान ने अपनी असली पहचान उजागर की और भीम ने अपने बड़े भाई के चरणों में प्रणाम किया। हनुमान के मार्गदर्शन और आशीर्वाद से भीम सौगंधिकम फूल इकट्ठा करने के लिए आगे बढ़ा। 

इस मनमोहक प्रस्तुति में भीम का किरदार सदनम् विपीन चन्द्रं, द्रौपदी का किरदार कलामंडलम श्रीराम और हनुमान का किरदार डॉ. सदनम हरिकुमार ने निभाया। स्वर सदनम ज्योतिष बाबू, चेंडा सदनम रामकृष्णन, मद्दलम सदनम देवदासन, चुट्टी कलामंडलम श्रीजीत और प्रस्तुति सदनम कथकली अकादमी की थी।

खजुराहो के मंदिरों के नाम समय-समय पर परिवर्तित हुए : डॉ.शिवाकांत द्विवेदी

कलाकारों और कलाविदों के मध्य संवाद का लोकप्रिय सत्र कलावार्ता के दूसरे दिन जीवाजी विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के रिटायर्ड विभागाध्यक्ष डॉ.शिवाकांत द्विवेदी ने खजुराहो मंदिर सहस्त्राब्दी पूर्ण होने एवं ऐतिहासिक यात्रा पर व्याख्यान दिया। उन्होंने मंदिरों का स्थापत्य, नक्काशी, मिथुन मूर्तियों पर प्रकाश डाला। डॉ.शिवाकांत द्विवेदी ने बताया कि इन मंदिरों के नाम समय—समय पर परिवर्तित होते रहे हैं। ब्रिटिश काल में जो शोध कार्य प्रारंभ हुआ उसमें एफ.सी. मैसी, टी एस बर्ड और एलेक्जैंडर कलिंग्स ने यहां के मंदिरों का सर्वेक्षण किया, नोट्स और ड्राइंग्स भी बनाए। जिसके एल्बम इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी, लंदन में सुरक्षित रखे हुए हैं। 

उन्होंने कहा कि खजुराहो के मंदिर के भ्रमण पर आने वाले पर्यटकों की दृष्टि केवल मनोरंजन होती है। जबकि, इन्हें आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ देखा जाना चाहिए। दैवीय आपदा से सुरक्षित रखने के लिए इनका आंकन हुआ होगा या शैव धर्म के कौल कापलिक संप्रदाय की साधना पद्धति को प्रकाशित करने के लिए हुआ होगा। उन्होंने कहा कि सामंतवादी आदर्शों और व्यवहारों की अभियंजना के लिए भी इनका निर्माण हुआ होगा। उन्होंने कहा कि मेरी दृष्टि से इन मंदिरों का निर्माण सृष्टि की उत्पत्ति की ओर इशारा करती है।

ऊर्जा और उत्साह का पर्याय बन रहा खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव का मंच



51वें खजुराहो नृत्य समारोह के एक ओर जहां मुख्य मंच पर देश-विदेश के नृत्य कलाकारों की साधना देखने को मिल रही है, वहीं दूसरी ओर खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव के मंच पर बालमन की कल्पना और ऊर्जा से नृत्यप्रेमी प्रभावित हो रहे हैं। खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव का तीसरा दिन कथक के नाम रहा। पहली प्रस्तुति कुमारी शुभदा मेड़तिया की थी। उन्होंने सर्वप्रथम राम वंदना की। इसके बाद अपनी कथक के शुद्ध पक्ष को प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने ताल त्रिताल में आमद, थाट, परने, प्रिमलू और तिहाहियां, लड़ी एवं कवित्व शामिल थे। अंत में राग कलावती त्रिताल द्रुत लय में निबद्ध तराने से प्रस्तुति को विराम दिया।

दूसरी प्रस्तुति ग्वालियर की प्रतिभाशाली कथक नृत्यांगना ज्योति तोमर की रही। वे विगत तीन वर्षों से गुरु शिवा नायक जी के सान्निध्य में कथक की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। ज्योति ने इस प्रतिष्ठित मंच पर अपनी नृत्य साधना को गणेश वंदना, तीनताल, चतुरंग एवं ठुमरी के माध्यम से प्रस्तुत किया।

कलाप्रेमियों के मध्य लोकप्रिय हो रही "नाद" प्रदर्शनी

51वें खजुराहो नृत्य समारोह में पहली बार एक अनूठी प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है, जिसका नाम है "नाद"। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ध्वनि या साउंड। यह ध्वनि कहां से उत्पन्न होती है, जिसे सुनने के बाद आत्मिक आनन्द की प्राप्ति होती है। यह ध्वनि उत्पन्न होती है वाद्यों या साजों से। जिसका संगीत में महत्वपूर्ण स्थान है। लोक, जनजातीय और शास्त्रीय संगीत में प्रयोग होने वाले वाद्यों को नाद प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया है। यह प्रदर्शनी कलाप्रेमियों के मध्य लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यहाँ कई दुर्लभ वाद्य भी प्रदर्शित किए गए हैं। 

इसमें दक्षिणी ओडिसा के परजा समुदाय द्वारा अपने गीतों और नृत्यों के दौरान उपयोग किया जाने वाला वाद्य टमक है। यह धातु एवं चर्मपात्र से निर्मित किया जाता है। वहीं, वायलिन और सेलो के समान वाला उच्च स्वर वाला तार वाद्य वायोला भी प्रदर्शित है। यह वायलिन से बड़ा होता है। इसकी आवाज कम और गहरी होती है, लेकिन सेलो से ऊंची होती है। इसमें चार तार होते हैं। यहां रुपका वाद्य भी प्रदर्शित किया गया है। जो एक द्विमुखी ढोल है, जिसका उपयोग झारखंड प्रदेश में जनजातियों द्वारा पारंपरिक उत्सवों में किया जाता है।

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Friday, February 21, 2025

मध्यप्रदेश देश में सबसे अधिक गिद्धों वाला राज्य

  • वर्ष 2025 की गणना में गिद्धों की संख्या 12 हजार से अधिक
  • प्रदेश में गिद्ध संरक्षण के लिये किये जा रहे हैं विशेष प्रयास


भोपाल। वन विभाग द्वारा वर्ष 2025 में प्रदेश स्तर पर गिद्धों की गणना में गिद्धों की संख्या 12 हजार 981 हो गई है। मध्यप्रदेश देश में सबसे अधिक गिद्धों वाला राज्य बन गया है। प्रथम चरण में 17, 18 एवं 19 फरवरी 2025 को वन विभाग के 16 वृत्त, 64 डिवीजन और 9 संरक्षित क्षेत्रों में गिद्ध गणना की गयी। गिद्ध गणना का कार्य वन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों, डब्ल्यूआईआई, भोपाल के प्रतिभागियों, स्वयं सेवकों और फोटोग्राफरों द्वारा किया गया।

गिद्धों की गणना में घोंसलों के आसपास बैठे गिद्धों एवं उनके नवजातों की गणना के दौरान इस बात का ध्यान रखा गया कि केवल आवास स्थलों पर बैठे हुए गिद्धों को ही गिना गया है। डाटा संकलन का कार्य वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल में किया गया।

प्रदेश में गिद्धों की गणना की शुरूआत वर्ष 2016 से की गयी थी। प्रदेश में गिद्धों की कुल 7 प्रजातियाँ पाई जाती है। इसमें से 4 प्रजातियाँ स्थानीय एवं 3 प्रजातियाँ प्रवासी हैं। गिद्धों की गणना करने के लिये शीत ऋतु का अंतिम समय सही रहता है। इस दौरान स्थानीय एवं प्रवासी गिद्धों की गणना आसानी से हो जाती है। वर्ष 2019 की गणना में गिद्धों की संख्या 8 हजार 397, वर्ष 2021 में 9 हजार 446 और वर्ष 2024 में बढ़कर 10 हजार 845 हो गयी थी।

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Thursday, February 20, 2025

खजुराहो स्थित आदिवर्त जनजातीय राज्य संग्रहालय की बघेली बखरी


खजुराहो स्थित आदिवर्त जनजातीय राज्य संग्रहालय की बघेली बखरी के सामने खड़े पद्मश्री बाबूलाल दाहिया।  

     

।। बाबूलाल दाहिया ।।

विश्व विख्यात पर्यटक स्थल खजुराहो में आदिवर्त जनजातीय राज्य संग्रहालय की बघेली बखरी देखने काबिल है। यहां इसी परिसर में मध्यप्रदेश की पांच अलग-अलग शैलियों के भवन एक ही स्थान पर प्रदर्षित किए गए हैं। वह शैलियाँ बुन्देली, बघेली, मालवी, निमाड़ी तथा चंबल क्षेत्र की घरों के बनाने की अपनी-अपनी विशिष्ठ कलात्मक शैली हैं। परन्तु बघेलखण्ड की शैली की जानकारी मुझसे ही ली गई थी, जिसे मैंने उन्हें वहां के कटिंग दार बनने वाले मकान का नमूना दिया था। उसे रीवा सम्भाग में कटुई बखरी कहा जाता है।

दरअसल बाकी चारों क्षेत्र प्राचीन काल से ही हमसे सम्पन्न और विकसित थे, अस्तु उनके मकानों की शैलियां भी चटक मटक और आकर्षक हैं। उनमें उस क्षेत्र की  सम्पन्नता भी झलक रही है, पर हमारी अवधारणा अलग है। हमारे रीवा सम्भाग का समस्त क्षेत्र वैदिक काल में करूश जनपद कहलाता था, जिसका आशय ही अभाव ग्रस्त क्षेत्र होता है। इसलिए हमारी वह सांस्कृतिक पहचान इस बघेली बखरी में होना स्वाभाविक है। 

बघेल खण्ड का हमारा यह भू-भाग जंगल पहाड़ों से घिरा है, जहां आज भी सांभर,चीतल, हिरण आदि जानवर अक्सर फसल उजाड़ देते हैं। उधर बाघ, तेंदुआ, भालू , भेड़िया आदि हिंसक पशु भी मनुष्यों एवं उनके पशुओं के ऊपर हमला करते रहते हैं। यही कारण थी हमारी बघेली बखरी की मैदानी भागों में बनने वाले मकानों से भिन्नता। क्योकि वह गांव में एक स्थान के बजाय अपने अपने खेत में बनती थी, जिससे खेत की रखवाली भी होती रहे तो दूसरी ओर उन हिंसक पशुओं से अपनी और अपने गाय बैलों की सुरक्षा भी हो।

इस कटिंगदार बखरी में पहले दो पटौहांदार मकान बनते हैं, फिर उनके चारों तरफ ओसारी रहती हैं। पर उस ओसारी का छप्पर ऊपर पटौहां वाले मकान के छप्पर से दो हाथ नीचे रहता है। और ग्रहस्ती का समस्त जरूरी सामान से लेकर गाय बैल तक उस बखरी के अन्दर ही रहते हैं। हमने यही बखरी का नमूना सुझाया था, जिसे मंजूर कर लिया गया था और वह अब बन कर तैयार है।

बघेली बखरी के समीप निर्मित लोक देवता बसामन मामा की मूर्ति। 

आज उन पांचों बख्ररियों का मुख्यमंत्री जी लोकार्पण करेंगे। परन्तु  बघेली वाली बखरी के अवधारणा की जानकारी अपन को ही देनी है अस्तु अपन कल से ही कार्यक्रम स्थल में आमंत्रित हैं। हमारी बघेली जनपद की बखरी में घर ग्रहस्ती के किस सामान को कहां रखना है, यह भी पूरा पूरा ख्याल रखा गया है।

इन घरों के पास हर क्षेत्र के अपने अपने लोक देवताओं की मूर्ति भी प्रदर्शित की गई है । यही कारण है कि बुन्देली बखरी के समीप यदि वहां के लोक देवता हरदौल जू बिराजमान हैं, तो हमारी बघेली बखरी के समीप बसामन मामा। अपने लोक देवता बसामन मामा का चित्र भी उनके सहादत स्थल से लाकर अपन ने ही उपलब्ध कराया था।

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Wednesday, February 19, 2025

पन्ना टाइगर रिजर्व में पाए गए 691 गिद्ध

  • 17 से 19 फरवरी तक पीटीआर में हुई तीन दिवसीय गणना
  • यहां के जंगल, पहाड़ व सेहे बाघों के साथ गिद्धों को भी पसंद 


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व सिर्फ बाघों का ही नहीं अपितु गिद्धों का भी घर है। यहां के खूबसूरत जंगल, पहाड़ व गहरे सेहे बाघों के साथ-साथ आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले गिद्धों को भी खूब भाते हैं। आज संपन्न हुई गिद्धों की गणना में यहां पर विभिन्न प्रजाति के 691 गिद्ध ( Vulture ) पाए गए हैं। यहाँ पर गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की निवासी प्रजातियां हैं जबकि शेष 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। 

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व अंजना सुचिता तिर्की ने बताया कि प्रदेश व्यापी गिद्ध गणना 2025 अंतर्गत पन्ना टाइगर रिजर्व में 17 से 19 फरवरी तक तीन दिवसीय गिद्ध गणना का कार्य संपन्न हुआ है। गिद्धों की इस गणना में पहले दिन 17 फरवरी को 661, दूसरे दिन 18 फरवरी को 691 व अंतिम दिन 19 फरवरी को 686 गिद्धों की मौजूदगी पाई गई है। म.प्र. में पाई जाने वाली गिद्धों की चार प्रजातियां किंग वल्चर, लांग विल्ड वल्चर, व्हाइट बैक्ड वल्चर तथा इजिप्सियन वल्चर पन्ना टाईगर रिजर्व में अच्छी संख्या में निवास करते हैं। लेकिन ठण्ड का मौसम आने पर गिद्धों की तीन प्रजातियां यहां प्रवास के लिए आती हैं। ये प्रवासी हिमालयन वल्चर पूरे ठण्ड के दिनों में यहां रूकते हैं और घोसला बनाकर बच्चे भी देते हैं। ठण्ड खत्म होने पर मार्च के महीने में हिमालयन वल्चर चले जाते हैं। 


विदित हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व का धुंधुवा सेहा न सिर्फ बाघों का प्रिय रहवास स्थल है अपितु यह सेहा गिद्धों का भी स्वर्ग कहा जाता है। ठंड के दिनों में इस गहरे सेहा की चट्टानों में बड़ी संख्या में गिद्ध धूप सेकते नजर आते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में प्रवासी गिद्ध भी होते हैं। कहा जाता है कि उड़ते हुए पक्षियों को कोई सरहद रोक नहीं सकती। वे अपनी मर्जी के मुताबिक उड़ान भरकर सैकड़ों किलोमीटर का लंबा सफर तय करते हुए उस जगह पहुंच जाते हैं जहां की आबोहवा उनके अनुकूल होती है। पक्षी प्रेमी पर्यटकों के मुताबिक इस सेहा के आसपास आसमान में हर समय गिद्ध मंडराते रहते हैं। यही वजह है कि यह सेहा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है, क्यों कि यहां वनराज के साथ-साथ आसमान के बादशाह गिद्धों के भी दर्शन हो जाते हैं।

आसमान में सबसे ऊंची उड़ान भरने वाले पक्षी गिद्धों पर विलुप्त होने का खतरा भी मंडरा रहा है। प्रकृति के सबसे बेहतरीन इन सफाई कर्मियों की जहां भी मौजूदगी होती है, वहां का पारिस्थितिकी तंत्र स्वच्छ व स्वस्थ रहता है। लेकिन प्रकृति और मानवता की सेवा में जुटे रहने वाले इन विशालकाय पक्षियों का वजूद मानवीय गलतियों के कारण संकट में है। गिद्धों के रहवास स्थलों के उजडऩे तथा मवेशियों के लिए दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का उपयोग करने से गिद्धों की संख्या तेजी से घटी है। लेकिन पन्ना टाइगर रिजर्व आज भी गिद्धों का नैसर्गिक रहवास है, यहाँ की आबोहवा उनको खूब रास आती है।

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Tuesday, February 18, 2025

पन्ना जिले में भिक्षावृत्ति पर लगा प्रतिबंध


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट सुरेश कुमार ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 अंतर्गत धारा 163 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर किसी भी प्रकार की भिक्षावृत्ति पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया है। 

प्रतिबंध लगने के साथ ही अब भिक्षुओं को भिक्षा स्वरूप कुछ भी देना या उनसे किसी भी प्रकार के सामान को खरीदना भी प्रतिबंधित हो गया  है। किसी व्यक्ति द्वारा भिक्षुओं को भिक्षा स्वरूप कोई चीज प्रदान करने अथवा देने या इनसे कोई सामान खरीदने पर संबंधित के विरूद्ध भी आदेश उल्लंघन पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।

उल्लेखनीय है कि समाचार पत्रों एवं अन्य विभिन्न माध्यमों से ट्रैफिक सिग्नल, चौराहों, धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानो पर भिक्षावृत्ति में लिप्त व्यक्तियों द्वारा स्वयं या अपने परिवारों के साथ भिक्षावृत्ति करने का मामला संज्ञान में आने पर जिला दण्डाधिकारी द्वारा उक्त कार्यवाही की गई है। इस संबंध में जारी आदेश में उल्लेखित है कि भिक्षावृत्ति से शासन के भिक्षावृत्ति पर अंकुश संबंधी आदेश की अवहेलना हो रही है। इसके अलावा आम नागरिकों के आवागमन के दौरान भी बाधा उत्पन्न होती है। ट्रैफिक सिग्नलों पर दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है। 

जिले में भिक्षावृत्ति में अन्य राज्यों व शहरों के व्यक्ति भी संलग्न रहते हैं और प्रायः कई व्यक्तियों का आपराधिक इतिहास भी होता है। भिक्षावृत्ति कार्य में संलग्न अधिकांश व्यक्ति नशे और अन्य आपराधिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं। यह सामाजिक बुराई भी है। उपरोक्त कारणों से भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध लगाया गया है। आदेश के उल्लंघन पर संबंधित व्यक्ति के विरूद्ध भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 223 के तहत कार्यवाही की जाएगी।

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Monday, February 10, 2025

कुएं में गिरे नर तेंदुआ का हुआ सफल रेस्क्यू, जंगल में छोड़ा

 

खेत में स्थित कुआं के भीतर चारपाई में सुस्ताता  नर तेंदुआ, जिसे सुरक्षित बाहर निकाला गया।   

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व से लगे ग्राम मंडला में आज एक नर तेंदुआ खेत के कुएं में गिर गया। कुएं में तेंदुआ के गिरने की सूचना प्राप्त होते ही तत्काल क्षेत्र संचालक अंजना सुचिता तिर्की, उपसंचालक एवं वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी रेस्क्यू दल के साथ मौके पर पहुंचे। मंडला वन परिक्षेत्र के कक्ष क्रमांक 228 की बाह्य सीमा में स्थित संतोष प्रजापति के खेत में बिना मुंडेर का गहरा कुंआ है, जिसके ऊपरी हिस्से में झाड़ियां भी उगी हुई हैं। संभवतः शिकार का पीछा करते हुए वयस्क नर तेंदुआ कुएं में गिर गया। 

वन अधिकारीयों ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। कुएं के आसपास बड़ी संख्या में ग्रामीण इकट्ठे हो गए थे, जिन्हे वहां से हटाकर रेस्क्यू दल द्वारा तेंदुए को कुएं से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई। क्षेत्र संचालक ने जानकारी देते हुए बताया कि कुएं में तैरते हुए बुरी तरह से थक चुके तेंदुए को सहारा देने के लिए सबसे पहले कुएं में एक चारपाई रस्सियों से बांधकर नीचे डाली गई। थक चूका तेंदुआ तुरंत चारपाई में चढ़ गया। थोड़ी देर बाद एक जाल कुएं में डालकर तेंदुए को उसमें कैद कर ऊपर खींचकर पिंजड़े में बंद कर लिया गया। 

जंगल में स्वच्छंद विचरण के लिए तेंदुआ को पन्ना टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र में छोड़ा गया। 

सफलता पूर्वक रेस्क्यू किये गए इस तेंदुए को रेस्क्यू वाहन की सहायता से पन्ना टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र में ले जाया गया। लगभग 4-5 वर्षीय वयस्क नर तेंदुए को बुधरौंड के जंगल में स्वच्छंद विचरण के लिए छोड़ दिया गया है। मालूम हो कि पन्ना टाइगर रिज़र्व सहित यहाँ आसपास के जंगलों में भी तेंदुओं की तादाद बढ़ी है। यही वजह है कि वनराज के साथ-साथ जंगल का राजकुमार कहा जाने वाला तेंदुआ सड़क मार्गों व आबादी क्षेत्र के आसपास अक्सर नजर आते हैं।

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Friday, February 7, 2025

उत्तर वन मंडल पन्ना के धरमपुर रेंज में हुआ नर तेंदुए का शिकार

  • अजयगढ़ - बाँदा मार्ग पर पिष्टा बीट में मिला फंदा लगा मृत तेंदुआ
  • शिकार के इस मामले में दो संदिग्धों से की जा रही है सघन पूंछतांछ 

अजयगढ़ - बाँदा मार्ग पर धरमपुर रेंज की पिष्टा बीट में फंदा लगा मृत अवस्था में मिला है 6 वर्ष का तेंदुआ 


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में उत्तर वन मंडल के धरमपुर रेंज अंतर्गत पिष्टा बीट में आज सुबह फंदा लगा एक नर तेंदुए का शव मिला है। मृत तेंदुए की उम्र 6 वर्ष बताई गई है। इस मामले में दो संदिग्ध लोगों को पकड़ा गया है जिनसे पूंछतांछ की जा रही है। 

उत्तर वन मण्डल के डीएफओ गर्वित गंगवार ने जानकारी देते हुए बताया कि अजयगढ़ - बाँदा मार्ग पर धरमपुर रेंज की पिष्टा बीट में फंदा लगा मृत तेंदुआ मिला है। मामले की खबर मिलते ही डॉग स्क्वॉड टीम को बुलाकर घटना स्थल का जायजा लिया गया। जिस खेत के किनारे फंदा लगा मृत तेंदुआ मिला है, उस खेत के मालिक को पूंछतांछ के लिए पकड़ा गया है। इसके अलावा पास के ही एक दूसरे खेत की झोपड़ी तक डॉग पहुंचा है, फलस्वरूप झोपड़ी वाले संदिग्ध व्यक्ति को भी पूंछतांछ के लिए पकड़ा गया है।

सीसीएफ छतरपुर व वन मंडलाधिकारी उत्तर पन्ना की मौजूदगी में पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता द्वारा मृत तेंदुए का पोस्ट मॉर्टम किया गया। उन्होंने बताया कि फंदा में फंसने के कारण बीती रात तेंदुए की मौत हुई है। पोस्टमार्टम के बाद मृत तेंदुआ के शव से जांच हेतु सैंपल लिये गये हैं, जिन्हें जाँच हेतु भेजा जायेगा। इस मृत 6 वर्षीय नर तेंदुए के शव का दाह संस्कार नियमानुसार वन अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में किया गया।


वन मंडलाधिकारी उत्तर पन्ना गर्वित गंगवार ने बताया कि वन्य प्राणियों के शिकार की ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए सभी जरूरी एहतियाती कदम उठाये जायेंगे। आपने बताया कि आज से ही वन क्षेत्र से लगे खेतों की सघन चेकिंग का अभियान शुरू किया जायेगा जो 12-13 दिन चलेगा। 

अभियान के दौरान खेतों की बागडें चेक होंगी तथा यह भी देखा जायेगा कि वहां से कोई बिजली की लाइनें तो नहीं निकली। वन परिक्षेत्राधिकारियों सहित बीट गार्डों को शिकार की घटनाओं पर प्रभावी रोक लगाने के लिए दिशा निर्देश दिए जायेंगे ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। 

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माइग्रेशन अपराध नहीं, मनुष्य की आदिम प्रक्रिया है


      

।। बाबूलाल दाहिया ।।

कहते हैं आज का मनुष्य सबसे पहले अफ्रीका में जन्मा और फिर बेहतर जीवन की तलाश में वह इधर उधर चलता फिरता रहा। फिर कोई यूरोप पहुंचा, कोई आस्ट्रेलिया, और कोई अलास्का होते अमेरिकन महाद्वीपों पर भी पहुंच गया। पर यह अकेला माइग्रेशन नहीं था। पानी, भोजन और रहने योग्य योग्य वातावरण की तलाश में मनुष्य अपनी जगह छोड़ नए स्थानों में प्राचीन समय से ही बसता रहा है। उसने दुनिया भर के दुर्गम पहाड़ों और दर्रों को पार किया एवं जहां पहुँचा वहीं अपने आजीविका के नए-नए साधन खोजे। यह घूमना फिरना और बसना कोई अपराध नही बल्कि मानवीय सभ्यता का मूल स्वरूप है।  पर कानून ने उसे तब अपराध बनाया जब नेशन स्टेट बने। यह भी महज सौ साल पुरानी अवधारणा है इसके पहले कभी नही थी।

देश, राष्ट्र, सीमाएं, नागरिकता, पासपोर्ट, वीजा जैसे शब्द भला इतिहास की किसी किताब में क्या मिलते हैं? दरअसल धर्म,जाति भाषा, रंग के बाद नस्लभेद का नया रंग नागरिकता ही है। इनमें कोई भी प्राकृतिक नहीं, बस गढ़ी हुई धारणा है। और इस धारणा में रची बसी है- हेकड़ी, घमण्ड, ताकत का नंगा नाच और जमीन कब्ज़ियाने की भूख। कि यहां का सब कुछ मेंरा है, तू निकल जा यहां से ? यानी कि (जिसकी लाठी, उसकी भैंस) ही कानून हैं।

भला आर्यो तुर्कों और अंग्रजों ने भारत में य स्पेनिश ने अर्जेन्टीना में घुसने के लिए किससे वीजा लिया था ? ग़ाज़ा में घुसकर वहां इजराइल बनाने वाले, किससे वीजा लेकर पहुंचे थे ? वह तो पूरा देश ही अवैधानिक हुआ ? डोनाल्ड ट्रम्प के पूर्वज भी अमरीका के मूल निवासी नही थे। वे जर्मन थे पर क्या वे जर्मनी से अमेरिका में आकर बसने के लिए रेड इंडियन्स लोगों से वीजा मांगा था ? उनके जैसे सारे गोरे ही वहां के मूल निवासी नही, सभी इमिग्रेंट हैं। य यूं कहें कि पूरा अमरीका ही इमिग्रेंट है। किसी के भी बाप दादों ने मूल निवासियों से वहां आने का वीजा नहीं लिया। बल्कि सब पानी के जहाज में ठुंसकर, य फिर पैदल चलकर उसी तरह आए थे जिसे वर्तमान में डंकी रूट कहा जाता है। 

 यह ठीक है कि कानून देश काल और वातावरण की जरूरत के अनुरूप बनते हैं। व्यवस्था सुचारू ढंग से चले, इसलिए बनते हैं। मुझे भी नागरिकता, वीजा, और पासपोर्ट जैसी व्यवस्थाओं से एतराज नहीं है। मगर मनुष्य द्वारा मनुष्य के अपमान से सख्त एतराज है। दरअसल दुनिया में दो तरह के कानून हैं। एक वे जो मानवीय नैतिकता के अनुरूप हैं। ऐसे कानून मनुष्य की गरिमा को उंचा उठाते हैं।  लेकिन दूसरे वो भी हैं जो मनुष्यता को तार-तार करते हैं। पर उचित कानून तो वही कहे जायेंगे जो मनुष्य की गरिमा को आदर दें। 

कानून तो नाजियों ने भी बनाए थे। और उनके कानून से लाखों इंसानों को अमानुष घोषित कर के गैस चेम्बरों में मौत के घाट उतारा गया था जो उनके कानून में एकदम लीगल था। कानून तो भारत ने भी बनाया था - (एनिमी प्रोपर्टी एक्ट) जिसमें सरकार ने अप्रवासियों द्वारा छोड़े गए घर, मकान और दुकानों को कब्जा लिए थे। फिर बनाया सी.ए.ए. कि - प्रताड़ितों को कपड़ों से पहचानकर उसमें पांच साल पहले अवैध घुसे, लीगल। चार साल पहले घुसे, इल्लीगल। हिन्दू घुसे, लीगल, मुस्लिम घुसे तो- इल्लीगल। पर अत्याचार, भेदभाव और अमानुषता को कानूनी दर्जा दे देने से वह सदाचार नहीं बन जाता ?

यदि अमेरिका, भारत से गए अप्रवासियों को नहीं रखना चाहता, डिपोर्ट करना चाहता है तो ठीक है करे। लेकिन अपमान और बेकद्री क्यों ? साथ ही हमारे भारत में ही, भारतीयों का इनके प्रति क्रिमिनल्स जैसा बर्ताव क्यों ? उन्हें क्यों नहीं गरिमा के साथ, वापस बुला लेना चाहिए। दरअसल जो लोग इस वक्त इन किस्मत के मारों को तुच्छता और क्रिमिनलिटी के साथ देख रहे हैं वे पाशविक, और मोटी समझ के लोग हैं। 

आप भारत में ही देखें तो ऐसी बाते करने वाले हर शख्स को, खुद इमिग्रेंट ही पाएंगे। यह अलग बात है कि कोई 3 हजार साल पहले आया कोई बाद में। ऐसे तमाम शहरों में लोग मिल जांयगे जो अन्य प्रदेश से आकर वहां नौकरी, पढाई य व्यवसाय कर रहे है। पर बिडम्बना तो देखिए कि उन मे से भी बहुत से लोग अमेरिका से भेजे गए लोगों को सोशल मीडिया पर अपराधी भी घोषित कर रहे हैं। पर उन राज्यों में भी जब बिहारी होने के कारण पूना में, उत्तर भारतीय होने के कारण बैंगलोर में, और राजस्थानी होने के कारण असम में इसी तरह अपमानित किया जाने लगे तो क्या यह उचित होगा?

ठीक है अभी तक राज्यों के बीच माइग्रेशन इल्लीगल नहीं हुआ, पर वह भी तो हो सकता है ? बस किसी पागल नफरती नेता द्वारा एक कानून पास करने भर की तो देर है ? क्या अमरीका में बसने वाले 7 लाख लोगों ने कभी कल्पना की रही होगी ? पर आज उनकी दुर्दशा सामने है।

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