Monday, October 28, 2024

केन नदी के बरियारपुर डैम में मिला मृत मगर

 

बरियारपुर डैम के किनारे मृत अवस्था में पाया गया मगर जिसे पोस्ट मार्टम के बाद जलाया गया। 

पन्ना। केन नदी में बने बरियारपुर डैम के किनारे मृत अवस्था में रविवार 27 अक्टूबर को एक मगर मिला है। मृत मगर की अनुमानित उम्र लगभग 4 वर्ष बताई गई है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से प्रवाहित होने वाली केन नदी मगर व घड़ियाल जैसे सरीसृप जीवों के लिए अनुकूल आश्रय स्थल है। केन नदी की बलुई चट्टानों में आराम करते मगरमच्छों का दिखना यहां आम बात है। केन नदी पर बने बरियारपुर डैम में भी मगरमच्छों की अच्छी खासी मौजूदगी है। 

वन परिक्षेत्र अधिकारी केन घड़ियाल अभ्यारण्य लाल बाबू तिवारी ने बताया कि सिंचाई विभाग के बरियारपुर डैम में रविवार को मृत अवस्था में मगर पाया गया है। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि तकरीबन 4 वर्षीय इस नर मगर की मौत आपसी द्वंद में हुई है। किसी बड़े आकार के मगर ने हमला करके इसे जख्मी कर दिया, फलस्वरुप इसकी मौत हो गई।

मिली जानकारी के अनुसार पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर मृत पाए गए मगर का निरीक्षण किया तथा पंचनामा की कार्यवाही के उपरांत पोस्टमार्टम के लिए मगर को पन्ना टाइगर रिजर्व के राजाबरिया निगरानी कैंप में लाया गया। यहां पर पन्ना टाइगर रिज़र्व की क्षेत्र संचालक अंजना सुचिता तिर्की, उप संचालक मोहित सूद, तहसीलदार अखिलेश प्रजापति, व एनटीसीए के प्रतिनिधि की मौजूदगी में पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. संजीव कुमार गुप्ता द्वारा सोमवार की सुबह 11 बजे पोस्ट मार्टम किया गया।


मृत मगर के थूथन की हड्डी टूटी पाई गई, जिससे यह संकेत मिला कि किसी बड़े मगर ने इसके ऊपर हमला किया है। मगर के पेट में कुछ भी नहीं मिला जाहिर है कि मरने के तकरीबन 8 घंटे पूर्व तक उसने कुछ भी नहीं खाया था। पोस्टमार्टम के दौरान मृत मगर के शरीर से सैंपल लिए गए जिसे जांच के लिए भेजा जाएगा। जांच रिपोर्ट आने पर मगर की मौत कैसे व किन परिस्थितियों में हुई इस बात का खुलासा हो सकेगा। पोस्टमार्टम के उपरांत मगर को राजाबरिया में ही अधिकारियों की मौजूदगी में जला दिया गया।

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पन्ना टाइगर रिजर्व की अर्धवयस्क बाघिन का बदला गया रेडियो कॉलर


बाघिन पी-234-23 (22) को ट्रैंक्युलाइज कर रेडियो कॉलर बदलने की कार्यवाही करती रेस्क्यू टीम। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिन पी-234-23 (22) वन क्षेत्र से लगे ग्रामों के आसपास विचरण करती थी। जिसे दृष्टिगत रखते हुए बाघिन व मानव के बीच संघर्ष को रोकने तथा बाघिन की गतिविधि पर सघन निगरानी रखने के लिए विगत 2 मई 2024 को उसे रेडियो कॉलर पहनाया गया था।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व अंजना सुचिता तिर्की ने बताया कि वर्तमान में उक्त बाघिन का रेडियो कॉलर टाईट हो जाने से रेडियो कॉलर बदलना आवश्यक हो गया था। मुख्य वन्य जीव अभिरक्षक मध्य प्रदेश भोपाल से प्राप्त अनुमति अनुसार बाघिन पी-234-23 (22) का क्षेत्र सचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के निर्देशन एवं उपस्थिति में आज सुबह वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना टाइगर रिजर्व द्वारा अमानगंज परिक्षेत्र के बीट गहदरा में बाघिन का रेस्क्यू कर टाईट रेडियो कॉलर निकाल कर दूसरा रेडियो कॉलर पहनाया गया। 

इस दौरान बाघिन का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया गया, फलस्वरूप बाघिन पूरी तरह से स्वस्थ पाई गई। मौके पर उप संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व, सहायक संचालक पन्ना,  परिक्षेत्र अधिकारी हिनौता, पन्ना कोर, अमानगंज बफर एवं अन्य स्टाफ उपस्थित रहा।

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Friday, October 25, 2024

अब खोटलइया कहीं क्यों नजर नहीं आती ?


            

 ।। बाबूलाल दाहिया ।।

खोटलइया ऐसा बेल वाला पौधा था, जो अपने आप खेत या घर के पछीत की बाड़ी में उग कर अपनी शानदार कढ़ी या मसलहा खिलाता था। इसके कढ़ी को बघेल खण्ड में (चिरपरहा) कहा जाता था। क्योंकि उसमें पर्याप्त मिर्चा का बघार होता था। 

इधर लगातार कई वर्षों तक सूखा पड़ने और घरों की बस्ती बढ़ कर हर जगह पक्के मकान बन जाने के कारण समस्त बाड़ियां ही समाप्त हो गईं। यही कारण है कि नैसर्गिक ढंग से उग कर कढ़ी खिलाने वाला यह बेलयुक्त पौधा अब कहीं भी नही दिखता। अकेले खोटलइया भर नही और भी इस तरह के अनेक नैसर्गिक ढंग से उगने वाले पौधे समाप्त होते जा रहे हैं। अब तो घरों के आसपास पच गुडडू और गिलोय के बेल भी कम ही दिख रहे हैं।

प्राचीन समय में जब आज जैसी चिकित्सा सुबिधा नही थी और क्वार के महीने में  हर वर्ष मलेरिया बुखार के प्रकोप के कारण घर-घर में खाट दस जातीं थीं तब उसकी दवा पचगुड्डू ही हुआ करती थी। बस उसके कोमल फलों को भून नमक की डली के साथ खा लेने से बुखार समाप्त हो जाती।  इसलिए इन दोनों का महत्व भी था। क्योकि उस समय के वैद्य कुछ बीमारियों में उपवास भी कराते थे। अस्तु पथ्य लेने के पश्चात अधिक भूँख लगने के लिए खोटलइया की कढ़ी ही खिलाने की सलाह देते थे। 



मजे की बात यह है कि यह खोटलइया और पचगुड्डू मध्य अगस्त से अक्टूबर तक तभी फल देतीं थीं, जब उनकी कढ़ी और औषधि के लिए आवश्यकता हुआ करती थी। बाद में अगहन माह में इसके फल रूढ़ हो पक जाते और पौधे भी सूखने लगते थे। पर अब जबकि बाड़ ही नही बची हैं और हर जगह कंक्रीट वाले भवन बन गए हैं तो बेचारी यह दोनों कहां उगें ? नई पीढ़ी तो इसके अवदान को आंगे पहचान ही न पाएगी कि कभी यह भी घर के आस-पास उगने वाली एक बनस्पति खोटलइया भी थी और इसकी कढ़ी बनती थी।

फिर भी जो इसके महत्व को समझते हैं, तो उन्हें चाहिए कि इसे संरक्षित करें। क्योकि कढ़ी तो अभी भी खाई जा सकती है। इसलिए करेला, खीरा, बरवटी वाले थालो में ही इसके दानों को उगा सकते हैं। वैसे यह पौधा मनुष्य की कभी भी गुलामी स्वीकार नही की, हमेशा स्वतन्त्र ही रहा।

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Monday, October 21, 2024

इंद्रपुरी बनेगी पन्ना की विकसित कॉलोनी : बृजेंद्र प्रताप सिंह

  • 1 करोड़ 59 लाख की लागत वाले शॉपिंग कांप्लेक्स का किया भूमिपूजन
  • ट्रिपल टी : टाइगर, टेंपल व टूरिज्म से होगा मंदिरों के शहर का विकास

शॉपिंग कांप्लेक्स की शिला पट्टिका का अनावरण करते हुए विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह साथ में नपा अध्यक्ष। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। शहर की इंद्रपुरी कॉलोनी सर्व सुविधा युक्त विकसित कॉलोनी बनेगी। यह बात प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री व पन्ना विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह ने सोमवार 21 अक्टूबर को एक करोड़ 59 लाख रुपए की लागत से यहां बनने जा रहे शॉपिंग कांप्लेक्स के भूमि पूजन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

उल्लेखनीय है कि पन्ना के वार्ड क्रमांक 3 इंद्रपुरी कॉलोनी में बहूप्रशिक्षित शॉपिंग कांप्लेक्स के निर्माण की आधारशिला पन्ना विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह के मुख्य अतिथि व नपा अध्यक्ष श्रीमती मीना पांडे की अध्यक्षता में रखी गई। इस मौके पर विधायक प्रतिनिधि विष्णु पांडे, नपा उपाध्यक्ष श्रीमती आशा गुप्ता, पार्षदगण व बड़ी संख्या में कॉलोनीवासी मौजूद रहे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि शहर की इस सुव्यवस्थित कॉलोनी में शॉपिंग कंपलेक्स का निर्माण होने से रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति यहीं पर हो सकेगी। आपने कहा कि पन्ना शहर का सुव्यस्थित विकास हमारा लक्ष्य है, जिसे सभी के सहयोग से पूरा किया जाएगा। पन्ना विधायक ने कहा कि श्री जुगल किशोर जी महलोक का टेंडर होने वाला है इसके पूरा होने पर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। आपने कहा कि शहर में पेयजल की समस्या का स्थाई समाधान करने के लिए पूरे इंतजाम किए जा रहे हैं। गर्मियों मेंअब शहर वासियों को पेयजल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।

चौपाटी के रूप में विकसित होगा बेनीसागर तालाब 

पूर्व मंत्री व विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि पन्ना शहर के बेनीसागर तालाब को चौपाटी के रूप में विकसित किया जाएगा। ट्रिपल टी : टाइगर, टेंपल व टूरिज्म को ध्यान में रखकर पन्ना शहर के विकास की योजना पर काम किया जा रहा है, जिससे मंदिरों का शहर पन्ना आकर्षक व खूबसूरत बनेगा। यहां पर बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल जी की बड़ी मूर्ति भी स्थापित किए जाने की योजना है, जिसे पूरा किया जाएगा। विधायक जी ने कहा कि आने वाले समय में पन्ना शहर को इंजीनियरिंग कॉलेज की भी सौगात मिलेगी। इसके साथ ही पन्ना के प्राचीन गोविंद जी मंदिर में बड़ा गेट भी बनाया जाएगा। 


कार्यक्रम को नपा अध्यक्ष श्रीमती मीना पांडे ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि बीते दो सालों में पन्ना नगर पालिका ने विकास के जो भी कार्य किए हैं, उसमें विधायक जी का पूरा योगदान रहा है। विकास कार्यों का यह सिलसिला निरंतर जारी रहेगा। इस मौके पर विधायक प्रतिनिधि विष्णु पांडे ने कहा कि क्षेत्रीय सांसद व विधायक जी के सहयोग से ही पन्ना शहर के विकास की कड़ियां जुड़ रही हैं। विकास कार्यों को पूरा करने में कुछ लोगों को असुविधा होती है लेकिन बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सभी का सहयोग जरूरी है। आपने कहा कि गीता पेट्रोल पंप से पोस्ट ऑफिस तक डिवाइडर रोड बनाने की भी योजना है, यदि इस कार्य को मंजूरी मिलती है तो शहर की खूबसूरती और बढ़ जाएगी। 

कॉलोनी वासियों ने की सड़क चौड़ीकरण की मांग 

शॉपिंग कांप्लेक्स के भूमि पूजन कार्यक्रम में इंद्रपुरी कॉलोनी के नागरिकों ने विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह को सड़क चौड़ीकरण कार्य हेतु मांग पत्र सौंपा। आरपी उत्कृष्ट विद्यालय से छात्रावास तक मौजूदा समय जो सड़क है, वह काफी सकरी व जीर्ण शीर्ण हालात में है, जिससे आवागमन में लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। इस कॉलोनी का जिस तरह से विस्तार हुआ है, उसे देखते हुए सड़क मार्ग का चौड़ीकरण जरूरी हो गया है। कॉलोनी वासियों की इस मांग को विधायक जी ने जरूरी बताया और कहा कि सड़क मार्ग का कार्य कराया जाएगा।

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Friday, October 18, 2024

अंतर्राज्यीय महादंगल में दिल्ली और जम्मू के पहलवानों का रहा दबदबा

  • दो दिन चले दंगल में सैकड़ा भर से अधिक पहलवानों की हुई कुश्तियां 
  • पहलवानों को नगद इनामी राशि एवं मेडल से सम्मानित किया गया


पन्ना। शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर पवित्र नगरी पन्ना में प्राचीन परंपरा अनुसार 2 दिवसीय अंतर्राज्यीय महा दंगल का आयोजन किया गया जिसमें पन्ना जिले के स्थानीय पहलवानों सहित मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान और जम्मू कश्मीर के सैकड़ा भर से अधिक पहलवानों ने भाग लिया, पहले दिन 16 अक्टूबर को स्थानीय पहलवानों और कुछ दिल्ली एवं राजस्थान के पहलवानों की कुश्तियां हुई, पहले दिन की सबसे बड़ी कुश्ती में गुरु हनुमान अखाड़ा दिल्ली से आए भारतीय सेना के चंदन पाण्डेय उर्फ भीम पहलवान ने राजस्थान के शैतान पहलवान को पराजित किया।  

दूसरे दिन 17 अक्टूबर को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर के पहलवानों के बीच शानदार मुकाबले हुए जिसमें जम्मू के रिजवान गनी, अमित पहलवान सोनीपत हरियाणा, ओमवीर पहलवान कानपूर यूपी, हरदीप पहलवान दिल्ली, शाहिल पहलवान जबलपुर, अयोध्या के बाबा पहलवान, राजस्थान के गोल्टा पहलवान, राजस्थान के शैतान पहलवान, पन्ना के संतोष पहलवान, हफीज पहलवान, पवन पहलवान, अमलाहट धरमपुर के फूलचंद पहलवान सहित कई पहलवानों ने कुश्ती जीती, महिला पहलवानों में रायबरेली की नीलम और हरियाणा की निर्जला ने मुकाबले जीते, पहलवानों को नगद इनामी राशि एवं शील्ड मेडल से सम्मानित किया गया। 

दंगल कार्यक्रम में पन्ना विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह, गुनौर विधायक राजेश वर्मा, भाजपा जिला अध्यक्ष बृजेंद्र मिश्रा, भाजपा नेता राम औतार बबलू पाठक, विधायक प्रतिनिधि विष्णु पाण्डेय, कांग्रेस जिला अध्यक्ष शिवजीत सिंह भैया राजा, कलेक्टर सुरेश कुमार, पुलिस अधीक्षक साईं कृष्णा एस थोटा, एसडीओपी एसपी सिंह बघेल, नपा सीएमओ शशिकपूर गढ़पाले, थाना प्रभारी रोहित मिश्रा, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रवि राज सिंह यादव, समाजसेवी मनोज केसरवानी, सरपंच संघ जिला अध्यक्ष बृजमोहन सिंह यादव, बजरंग दल जिला अध्यक्ष रामचंद्र गुप्ता, यादव महासभा अध्यक्ष नत्थू सिंह यादव, पूर्व डिस्ट्रिक्ट कमांडेंट करण सिंह राजपूत, सरपंच रामशिरोमणि लोधी, ध्रुव सिंह लोधी, सूर्यभान सिंह परमार, कमल लालवानी, मृगेंद्र सिंह गहरवार एवं विमल सिंह यादव सहित अधिकारी, जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक, समाजसेवी, पत्रकारगण एवं हजारों की संख्या में कुश्ती प्रेमी पहलवानों का हौसला बढ़ाते रहे। 

सुरक्षा व्यवस्था में लगी रही पुलिस टीम 

दोपहर लगभग 2 बजे भारी भीड़ के बीच पहलवानों के मुकाबले शुरू हुए भीड़ लगाकर बढ़ रही थी पन्ना कोतवाली की पुलिस टीम दिनभर व्यवस्था में जुटी रही। कार्यक्रम समापन अवसर पर सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिस जवानों को दंगल कमेटी के द्वारा सम्मानित किया गया। कुश्ती प्रशिक्षक हरिराम यादव, महेश खटीक उर्फ गट्टी पहलवान, पूर्व रेफरी उस्ताद प्यार बाबू, बजरंग अखाड़ा के प्रशिक्षक संतोष पहलवान सहित वरिष्ठ पहलवानों और व्यवस्था में लगे कमेटी के कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया गया। व्यवस्थापक टीम के वीरेंद्र सिंह यादव, रमन खटीक, वीरेंद्र रैकवार, शेख अंजाम, अजय कोंदर, संजय कुमार, बॉबी कुमार  आदि दोनों दिन जुटे रहे। कार्यक्रम संचालन कमलेश पहलवान ने किया एवं आभार प्रदर्शन दंगल कार्यक्रम के संयोजक संजय सिंह राजपूत के द्वारा किया गया।

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Wednesday, October 16, 2024

डेंगू (Dengue) से कैसे करें बचाव, इसके लिए ये उपाय अपनायें

  • मच्छरों के काटने से बचें, घर के आस-पास साफ़-सफ़ाई रखें
  • पानी के बर्तनों को ढककर रखें, मच्छरदानी का इस्तेमाल करें
  • डेंगू से बचाव व नियंत्रण के लिए जारी की गई एडवाइजरी 


पन्ना। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा डेंगू (Dengue) से बचाव के लिए एडवाइजरी जारी की गई है। इस संबंध में अवगत कराया गया है कि डेंगू एडीज नामक मच्छरों के काटने से फैलने वाली बीमारी है। यह मच्छर हमारे घर व आसपास साफ और रूके पानी में पनपता है। डेंगू का मच्छर सामान्यतः दिन में काटता है तथा उत्पत्ति स्थल के 400  मीटर के दायरे में सक्रिय रहता है। घर में नमी और अंधेरे वाले स्थान में छुपकर विश्राम करता है। 

मच्छरों के पनपने का प्रमुख स्थान घर, छत व आसपास विभिन्न प्रकार के खुले पड़े जल पात्र जैसे पानी की टंकी, टायर, गमले, कूलर, मिट्टी के दिए, छत, मटके, पाइप, गड्ढे, मनी प्लांट के पॉट, प्लास्टिक की बोतल, कप, गिलास, टूटा फूटा सामान व खिलौने, कनस्तर और अन्य सामान में भरा साफ पानी इत्यादि है। मच्छर इनमें अंडे देते हैं और 2-3 दिवस में लार्वा निकलने के बाद यह तीन-चार दिन में प्यूपा में बदल कर तीन दिन बाद मच्छर बनकर उड़ जाता है। इस तरह 7 से 12 दिवस के भीतर मच्छर अपना उत्पत्ति चक्र साफ और रूके पानी में पूर्ण करते हैं। इनकी रोकथाम के लिए जल पात्रों में रखा पानी तत्काल खाली करना चाहिए। नियमित रूप से 7 दिवस के भीतर जल पात्रों में भरा पानी भी खाली करना जरूरी है।

उपचार में न हो विलंब

डेंगू संक्रमित व्यक्ति को प्रारंभिक स्तर पर कमजोरी, तेज बुखार, सिर व हाथ पैर में दर्द जैसे लक्षण हो सकते हैं। इसके पश्चात मरीज के शरीर व आंख में रक्त के चक्कते दिखना अथवा नाक, मसूड़े या अन्य स्थान से रक्तस्राव होने तथा उल्टी के लक्षण दिखाई देते हैं। इस स्थिति में उपचार में विलंब नहीं करना चाहिए। इससे मरीज गंभीर हो सकता है और चक्कर आने, मूर्छित होना अथवा सॉक में चले जाने की स्थिति बन सकती है। उक्त लक्षण होने पर तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र या चिकित्सक से परामर्श लेकर उचित उपचार लेना चाहिए। 

एडीज मच्छर डेंगू मरीज को काटने पर संक्रमित होकर अन्य स्वस्थ्य व्यक्तियों को काटकर डेंगू बीमारी का प्रसार करते हैं। इससे स्वस्थ्य व्यक्ति डेंगू से बीमार हो जाता है। डेंगू के लक्षण मिलने पर बगैर चिकित्सकीय परामर्श के कोई भी दवा विशेषकर दर्द निवारक दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। बुखार होने पर उम्र अनुसार उचित मात्रा में पैरासीटामोल की दवा ली जा सकती है। संभावित डेंगू के लक्षण पर झोलाछाप व अप्रशिक्षित तथा अवैध उपचार करने वालों से इलाज नहीं कराना चाहिए। इससे स्वास्थ्य की स्थिति बिगड़ सकती है। 

डेंगू होने पर डरने अथवा घबराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अनावश्यक दवा व भ्रांतियों से बचना चाहिए। संभावित रोगी को तत्काल चिकित्सालय और स्वास्थ्य केन्द्र में अपनी जांच कराना जरूरी है, जिससे समय पर डेंगू संक्रमण की पहचान कर उपचार किया जा सके तथा प्रभावित क्षेत्र में नियंत्रण कार्यवाही भी हो सके।

घर व आसपास अनावश्यक पानी जमा नहीं होने दें

स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी एडवाइजरी में सलाह दी गई है कि डेंगू के प्रसार को रोकने व बचाव के लिए अपने घर व आसपास अनावश्यक पानी जमा नहीं होने दें तथा खुली टंकियों को ढंककर रखें। अनावश्यक कबाड़ का सामान नष्ट कर दें और उनमें पानी इकट्ठा न होने दें। सप्ताह में एक बार आवश्यक रूप से टंकी, मटके व कूलर एवं अन्य जल पात्रों में भरा पानी बदलना चाहिए। अनुपयोगी जल पात्रों में भरा पानी नहीं बदल सकने की स्थिति में उनमें मिट्टी का तेल, खाने का तेल या गाड़ियों से निकला ऑयल डालने से मच्छर के लार्वा और प्यूपा नष्ट हो जाते हैं। जांच में डेंगू की पुष्टि होने पर मरीज को पूर्ण उपचार के साथ फलों का रस, नारियल पानी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल तथा पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से शीघ्र लाभ मिलता है। 

मच्छरों से बचाव के लिए पूरे बांह के कपड़े पहनने चाहिए। दिन में मॉस्कीटो रिपेलेंट और मच्छर रोधी क्रीम व अगरबत्ती का उपयोग करना चाहिए। सोते समय मच्छरदानी का उपयोग भी करें। डेंगू से बचाव की जानकारी परिवारजनों व मित्रों एवं रिश्तेदारों व सोसायटी के साथ भी साझा करना चाहिए, जिससे समस्तजन स्वयं अपने घर तथा आसपास डेंगू फैलाने वाले एडीज मच्छर की उत्पत्ति को रोकने में अपना सहयोग दे सकें। डेंगू की जानकारी व जनसहयोग से डेंगू के प्रसार को रोका जा सकता है।

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Tuesday, October 15, 2024

भक्ति रस में डूबा मंदिरों का शहर पन्ना

  • प्राचीन खेजड़ा मंदिर से निकली श्री जी की भव्य सवारी
  • नगरवासियों ने शोभा यात्रा का किया आत्मीय स्वागत

पन्ना के  प्राचीन खेजड़ा मंदिर से निकली श्री जी की भव्य सवारी का मनोरम द्रश्य। 

पन्ना। मंदिरों के शहर पन्ना में मंगलवार की शाम प्राचीन खेजड़ा मंदिर से श्री जी की भव्य सवारी निकली। शोभा यात्रा में भक्ति रस से सराबोर नाचते गाते श्रद्धालुओं की टोलियां हर किसी को भाव विभोर कर रही थीं। तेरस के दिन निकली इस दिव्य सवारी नें पद्मावती पुरी धाम को पन्ना को भक्ति रस में डूबो दिया। श्री प्राणनाथ मंदिर ट्रस्ट के तत्वाधान में आयोजित दस दिवसीय कार्यक्रम में देश विदेश से बड़ी तादाद में सुंदरसाथ (भक्तों) का आना निरंतर जारी है। 

भक्ति रस में सराबोर नाचते और गाते श्रद्धालुओं की टोलियां सायं जब प्राचीन खेजड़ा मंदिर से श्री जी की भव्य सवारी के साथ निकलीं तो समूचा शहर भी भक्ति रस में डूब गया। यह अनूठा आयोजन हर साल दशहरे के तीसरे दिन होता है जिसमें सद्गुरू के सम्मान का प्रतीक कही जाने वाली श्री प्राणनाथ जी की दिव्य सवारी (शोभा यात्रा) खेजड़ा मंदिर से बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ निकलती है। अन्तर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव के धार्मिक आयोजनों की श्रृंखला में इस शोभा यात्रा का खास महत्व है। क्योंकि यह शोभा यात्रा सद्गुरु के प्रति आदर, सम्मान और अहोभाव प्रकट करने का पुनीत अवसर होता है, जिसमें दूर-दूर से आये सुन्दरसाथ (श्रद्धालु) भक्ति भाव में डूबकर शामिल होते हैं।    

मंगलवार 15 अक्टूबर को खेजड़ा मंदिर से शांम 5 बजे निकली इस एैतिहासिक सवारी में श्रीजी की मनमोहक शोभायात्रा मुख्य आकर्षण का केंद्र रही, जिसकी एक झलक पाने के लिये श्रद्धालु बेताब दिखे। इस बार अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेश से भी श्रद्धालु सुंदरसाथ शोभायात्रा में शामिल रहे, जिनमें सर्वाधिक नेपाल देश के सुंदर साथ देखे गए। मंदिरों की नगरी पन्ना शहर के लोगों को भी इस ऐतिहासिक शोभा यात्रा का इंतजार रहता है, जिसका नगरवासियों द्वारा जगह-जगह स्वागत व आरती की गई।

शहर वासियों ने सवारी का किया आत्मीय स्वागत

प्रणामी सम्प्रदाय के आस्था का केन्द्र अति प्राचीन खेजड़ा मंदिर से मंगलवार शाम पांच बजे से अखंड मुक्तिदाता महामति प्राणनाथ जी की सवारी जब निकली तो ऐसा लगा मानो सभी सन्त मनीषी विविध रूप धारण कर इस सवारी की शोभा बढ़ा रहे हों। दिव्य रथ पर सवार श्रीजी तथा धर्मगुरू इस भव्य सवारी की धर्म निष्ठां व भक्तिभाव के साक्षी बने। श्री जी की इस दिव्य सवारी का नगर के धर्मप्रेमियों ने जहाँ तहेदिल से आत्मीय स्वागत किया वहीं प्रणामी धर्म के स्थानीय सुंदरसाथ (भक्तों) ने जगह-जगह श्री जी की आरती उतारकर पुण्य लाभ लिया। 

सद्गुरू के सम्मान का प्रतीक है तेरस की सवारी

अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव के दौरान पन्ना नगर में सैकड़ों वर्षों से लगातार श्री जी की सवारी भव्य स्वरूप के साथ निकाली जाती है। इस सवारी का आयोजन पहली बार बुन्देलखण्ड केशरी महाराजा छत्रसाल जी ने किया था। सद्गुरू के सम्मान का प्रतीक कही जाने वाली इस तेरस की सवारी को लेकर मान्यता है कि जब बुन्देलखण्ड को चारों तरफ से औरंगजेब के सरदारों ने घेर लिया था तब महामति श्री प्राणनाथ जी ने महाराजा छत्रसाल को अपनी चमत्कारी दिव्य तलवार देकर विजयश्री का आर्शीवाद दिया था और कहा था कि हे राजन जब तक तुम अपने दुश्मनों को धूल चटाकर नहीं आ जाते तब तक मैं इसी खेजड़ा मंदिर में ही रूकूंगा। 

तेरस को जब महाराजा छत्रसाल अपने दुश्मनों पर विजय हासिल कर लौटे तो अपने सद्गुरू महामति प्राणनाथ जी को पालकी में बिठाकर अपने कंघों का सहारा देकर श्री प्राणनाथ जी मंदिर में स्थित गुम्मट बंगला जिसे ब्रम्ह चबूतरा भी कहते हैं में लाए थे।  जिसके प्रतीक स्वरूप तभी से यह आयोजन हर वर्ष किया जाता है।

तीन किमी की यात्रा में लगते हैं सात से आठ घंटे 

श्री खेजड़ा मंदिर से निकली श्री जी की सवारी को श्री प्राणनाथ जी मंदिर की कुल तीन किलोमीटर तक की यात्रा में सात से आठ घंटे का समय लग जाता है। धार्मिक व एैतिहासिक महत्व की इस विशाल शोभायात्रा में पन्ना नगर वासियों ने भी पूरे उत्साह व भक्ति भाव के साथ बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी निभाई। 

रथ में सवार श्री जी की एक झलक पाने के लिए लोग घंटों सड़क के किनारे खड़े रहे। सवारी के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा जगह-जगह श्री जी की आरती उतारी व फूलों की बारिश कर स्वागत किया गया साथ ही शोभा यात्रा में सम्मिलित सुन्दरसाथ को मिठाइयां बांटी गईं।

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नदी के किनारे बसने वालों का मार्गदर्शक बया पक्षी

 


 ।। बाबूलाल दाहिया ।।

यद्द्पि कुदरत नें मनुष्य को अन्य जन्तुओं से अलग दो फुर्सत के हाथ और सबसे भिन्न विलक्षण किस्म की बुद्धि दे दी है। फिर भी उससे बहुत कुछ छिपा भी रखा है। यही कारण है कि बहुत सारा ज्ञान उसी बुद्धि के बूते मनुष्य को पेड़ पौधे, वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं से लेना पड़ता है। 

शायद इसी से समूह में कतार बद्ध चलना अगर उसने भोर में उड़ते हुए हजारों किलो मीटर की यात्रा करने वाले जल पक्षियों से सीखा तो समूह के साथ मिलकर आक्रमण करना भेड़िए और सोन कुत्ते से। संचय की यदि उसकी गुरु मधुमक्खी और चीटी हैं, तो लुढ़का कर चलने के लिए पहिये और छकड़ा बनाने का उसका गुरु गोबरौरा कीट जो अपने वजन का दश गुना गोबर का गोला लुढ़का कर ले जाता है। इसी तरह जानवरों को अपनी बस्ती की ओर आने का संकेत उसे टिटिहरी नामक पक्षी से मिलता रहा है।

चित्र में यह बया पक्षी का घोसला है। इस घोसले को नर बया पक्षी ही नदियों नालों के किनारे उगे कटीले पेड़ों में बनाता है। मादा बया का उसके बनाने में कोई योगदान नही होता। वह सिर्फ चयन करती है कि इस घोसले में मेरे अंडे बच्चे बेहतर ढंग से सुरक्षित रह पाएंगे। और फिर उसी आधार पर किसी कुशल नर का अपने पति के रूप में वरण करती है। पर यदि गहराई से देखा जाय तो उसके घोसला चयन में सावधानी कुछ इस तरह की होती है।

1- घोसला ऐसी कटीली एवं मजबूत पतली डाल पर हो, जहां सांप विषखपरा आदि जन्तु न पहुँच सके। 2- अण्डे रखने के स्थान तक का रास्ता इतना लम्बा हो कि उस पतली डाल में झूलने पर सांप का सिर वहां तक न पहुंच सके। 3- अण्डे तक चिड़िया के प्रवेश का रास्ता इतना लम्बा और संकरा हो कि कौआ बाज की चोंच अंडे बच्चों तक न पहुँच पाए। 4- यथा सम्भव नीचे पानी भरा हो जिससे जमीनी सुरक्षा भी रहे। परन्तु यदि नदी नालों के किनारे हो तो इतनी ऊंचाई पर हो कि उस वर्ष का बाढ़ का पानी घोसले को न डुबा पाए। वह घोसला से एक हाथ नीचे तक ही बहे। इस तरह की सूझ-बूझ और तकनींक के साथ बया जब अपना घोसला बनाकर तैयार करता है, तब उसमें चिड़ियां अंडा रखती हैं। अगर इन मापदण्डों में घोसला खरा नही है, तो उस अनाड़ी के घोसले को वह रिजेक्ट कर देती है। और उन्ही चयनित घोसले में अंडे देकर उनको अपने पंख की गर्मी से सेती हैं जिसमें बाद में बच्चे निकलते हैं। परन्तु नदिया के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने वाले लोग उन्ही बया पक्षी के घोसलों से ही जानकारी हासिल करते हैं कि " नदी का पानी इस वर्ष घोसला के एक हाथ नीचे वहां तक रहेगा अस्तु अपनी झोपड़ी उस हिसाब से बनाई जाए। साथ ही एक जानकारी बया पक्षी से यह भी मिलती है कि इस वर्ष बारिश तेज होगी य हल्की। अगर बया पक्षी अपना घोसला सघन पत्तों के नीचे बनाता है तो उसका अर्थ है कि वारिश तेज रहेगी। परन्तु अगर वह डाल के बिल्कुल किनारे बनाता है तो वह कम वर्षा का परिचायक है। 

यद्द्पि आज मनुष्य के पास मौसम विज्ञान जानने के आधुनिक साधन हैं। पर लम्बे समय तक यह सब जानने के लिए जीव जन्तुओं के क्रिया कलाप ही उसके आधार और मार्गदर्शक थे। चित्र में उपयुक्त और रिजेक्ट दोनो प्रकार के घोसला लटक रहे हैं।

वीडियो : पन्ना टाइगर रिज़र्व के अकोला बफर में नाले के किनारे बया पक्षियों के बसेरा का नज़ारा -



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Monday, October 14, 2024

दशहरा से दीपावली की छुट्टी और ज्वार की तकाई !


।। बाबूलाल दाहिया ।। 

ज्वार हजारों साल से गरीबों का भोजन रही है। यदि एक बार अषाढ़ में खेत जुत गया और फिर दुबारा बारिस हो जाने व खेत में कुछ नमी संचित हो जाने के पश्चात उसमें ज्वार बो दी जाती तो कम बारिस के बाद भी उसके पकने में कोई संदेह नही रहता था। हां अच्छी फसल पाने के लिए एक बार निराई करना अवश्य जरूरी होता था।  

ज्वार अकेले नही होती थी, बल्कि अपनी मूँग, उड़द, अरहर, तिल, अमारी, भिंडी, बरवटी  काकुन आदि 6-7 साथिनों के साथ उगती थी। वह खुद डेढ़ - दो फीट के गैप पर बोई जाती और पौधा 7-8 फीट ऊंचा होता था तो उसके इस नीचे और ऊपर के गैप को भरने के लिए किसान चाहे जो फसल उगाले। फिर अगहन से फागुन तक ज्वार की रोटी और दलिया तो खाय ही ? साथ ही दाल, तेल, तरकारी, मुगोड़े, बरे, रस्सी, गेरमा आदि सभी का मुकम्मल प्रबंध भी उसी ज्वार के खेत से होता रहे।

शायद इन्ही गुणों के कारण उसे मालवा और निमाड़ क्षेत्र में माता का दर्जा प्राप्त था एवं लोग वहां अपने सम्बोधन में ( ज्वार माता ) कहकर पुकारते थे। हमारे विध्य क्षेत्र में रियासती जमाने में बकायदे उसकी तकवारी हेतु दशहरा से दीवाली तक 28 दिन की छुट्टी ही हुआ करती थी, जिसे (फसली छुट्टी) कहा जाता था। हम लोग उस छुट्टी का भरपूर लुफ्त उठाते। खेत में गड़े मचान पर चढ़ गोफने से पक्षियों को उड़ाते और ज्वार के भुट्टों को भून कर तिल के साथ खूब चावते भी। उस भूने हुए भुट्टे के गीले दाने को हमारे क्षेत्र में  (गादा )  कहा जाता था।

यही कारण था कि उस जमाने के छात्रों की एक ब्यौहारिक जीवन की पढ़ाई भी पूरी हो जाती थी। उसमें वह ज्वार चुगने आये कई तरह के पक्षी, कौआ, दो तीन तरह के तोता, गलरी, पेगा गौरैया, पंडुक ,बुलबुल नील कण्ठ आदि सभी के गुण धर्मो की जानकारी हासिल कर लेते थे। बालक तकवारी करते - करते ही जान लेता था कि इनमें से कौन पक्षी ज्वार के दाने चुगने आते हैं और कौन इन 6-7 प्रकार के अनाजों में लगने वाले अलग - अलग तरह के कीटों पतिंगों को खाने ? साथ ही यह भी कि ज्वार के साथ उगे अन्य अनाजों में कौंन- कौंन से कीट लगते हैं।

उन छात्रों को घर से खेत तक आते जाते रास्ते में दिखने वाले सभी प्रकार के घास चारे और अनाजों की भी मुकम्मल जानकारी हो जाती थी, जिनमें पचीसों प्रकार की तो धान की ही रंग बिरंगी किस्में होती थीं। अकेले ज्वार की ही चरकी, दो दनिया, लाटा गुरदी, वैदरा, अरहरा, झलरी  बामनी, लाल दुदनिया, सफेद दुदनिया आदि 10-12 किस्में होती थीं, जिनके गुण धर्मो को वह सहजता से जान जाते थे कि इनमें कौन लावा, घुघरी, घाठ के लिए उपयुक्त हैं और कौन रोटी अथबा गादा चाबने के लिए ?   किन्तु तीन वर्ष पहले जब मैंने मालवा निमाड़ होकर गुजरात तक की हजारों किलो मीटर की यात्रा की तो वहां भी मुझे कही भी रास्ते में अब ज्वार माता के दीदार नही हुए। इसलिए अब वर्तमान छात्रों को अगर पढ़ कर यह जानना है कि कौवे का रंग कैसा होता है ? तो उसे बीसों बार रटना पड़ेगा कि "कौवे का रंग काला होता है।" एक तरफ तो छात्र बहुत बड़ा किताबी ज्ञान हासिल करते जा रहे हैं, दूसरी तरफ पेड़ पौधे वनस्पतियों और जीव जंतुओं के अंतर सम्बन्धों वाले ज्ञान में वे फिसड्डी ही रहे आते हैं। इसीलिए पर्यावरण और जैव विविधता वाले ब्यौहारिक ज्ञान से उनकी दूरी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है।

कितना अच्छा होता कि यह दोनों प्रकार के ज्ञान यदि साथ - साथ चलते तो शायद इस पर्यावरण और जैव विविधता की अनदेखी व दुर्दशा इतनी बदतर न होती ?

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Sunday, October 13, 2024

नैसर्गिक किस्मों का अपना खुद का सुरक्षा कवच

 


।। बाबूलाल दाहिया ।।

भिंडी एक ऐसी सब्जी है जिसमें कई कीट लगते हैं। एक कीट तो फली में छेंद कर उसके बीज को ही नष्ट कर देता है। यही कारण है कि सब्जी उत्पादक यदि किसी को सबसे अधिक जहर स्नान कराता है तो बैगन और भिंडी को ही। लेकिन इस भिंडी को देखिए यह एक जंगली भिंडी है, जिसे कस्तूरी भिंडी भी कहा जाता है। 

यूं तो यह खेतों की मेंड़ या झाड़ झंखाड़ के बीच अपने आप नैसर्गिक ढंग से उगती और अपना वंश परिवर्धन करती रहती है। लेकिन अध्ययन हेतु इसे गमले में लगाया गया है। इस भिंडी से उसके रक्षा कवच को बहुत कुछ समझा जा सकता है।

इसके चित्र को बड़ा करके देखने से स्पस्ट हो जाता है कि हमारी अनेक अनाजों और सब्जियों की जंगली य कुछ परम्परागत किस्में अपनी रक्षा के लिए किस प्रकार सुरक्षा कवच बना लेती हैं ?  बस यही सब है उनका यहाँ की परिस्थितिकी में अपने को हजारों साल से सुरक्षित रख पाने का रहस्य। पर उनमें हम कुछ को समझ पाते हैं कुछ को नहीं। इसे गौर से देखिए ? इस भिंडी ने कीट ब्याधि से बचने के लिए अपने शरीर में बड़े - बड़े रोएं उगा रखे हैं। यह रोएं इतने चोंखे हैं कि भिंडी फल में आक्रमण करने आए अनेक कीड़े इसमें बिध कर मरे हुए स्पस्ट दिख रहे हैं।

फिर भी मनुष्य रूपी प्रकृति के इस अनूठे दुष्ट जन्तु से कस्तूरी भिंडी भी अपने को नही बचा पाई। क्योकि वह  इसे भी भून और भुर्ता बना कर खा लेता है। कहना न होगा कि प्रकृति, पर्यावरण व जैव विविधता को अगर किसी से खतरा है तो कुदरत के इसी दो अदद फुर्सत के हाथ वाले विलक्षण प्राणी से। जिस गति से इसका तथा कथित विकास हो रहा है तो सौ दो सौ वर्षो बाद यह प्राणी अपनी करतूतों से खुद को तो नष्ट कर ही लेगा पर उसके पहले लगता है समूचे जीव जगत को ही ले डूबेगा।

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Friday, October 11, 2024

खेत में करंट लगाकर जंगली सुअर (wild boar) का शिकार, एक आरोपी गिरफ्तार


पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में जंगली मादा सुअर का शिकार करने वाले एक आरोपी को वन विभाग की टीम ने गिरफ्तार किया है। मामले का एक आरोपी फरार है  जिसकी तलाश की जा रही है। जंगली सुअर के शिकार का यह मामला पन्ना टाइगर रिजर्व के अकोला बफर क्षेत्र का है।

वन अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार बफर क्षेत्र से लगे गांव बराछ निवासी रामभगत पटेल ने अपने खेत में जंगली सुअर का शिकार करने के लिए बिजली के तार बिछाए थे। इस तार की चपेट में आकर जंगली सुअर की मौत हो गई। शिकार के इस मामले की जानकारी मुखबिर से वन परिक्षेत्र अधिकारी राहुल पुरोहित को मिलने पर तत्काल वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और मृत जंगली सुअर को बरामद कर लिया गया। आरोपी को पकड़ने के लिए प्रशिक्षित डॉग की मदद ली गई, फलस्वरूप डॉग ने आरोपी रामभगत पटेल को पकड़ लिया। 

आरोपी से पूंछतांछ करने पर उसने अपना जुर्म कबूल किया है तथा बताया है कि मामले में बराछ निवासी ब्रजेन्द्र सिंह भी शामिल है। दूसरे फरार आरोपी की वन विभाग की टीम तलाश कर रही है। मृत मादा जंगली सुअर का पोस्ट मार्टम पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता द्वारा किया गया। तदुपरांत मृत जंगली सुअर को  वन अधिकारियों व एनटीसीए के प्रतिनिधि की मौजूदगी में पी. बी. एन. - 2टॉवर के पास जला दिया गया। मामले में गिरफ्तार आरोपी रामभगत पटेल को गुरुवार 10 अक्टूबर को न्यायलय में पेश किया गया, जहाँ से उसे जेल भेज दिया गया है।

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Wednesday, October 2, 2024

रामपुर की समाधि, जहाँ दफ़न हैं गाँधी जी की अस्थियां

रामपुर स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की समाधि। 

आज़म खान के कारण चर्चित रामपुर एक ऐसा स्थान हैं, जहाँ महात्मा गांधी की अस्थियाँ, बहुत से धार्मिक विरोध के बाद लाइ गई और आज भी वहां सुंदर गांधी समाधि है। चूँकि रामपुर के नवाब मुस्लिम थे तो कुछ लोगों ने इसका विरोध किया लेकिन बहुत से पंडितों ने हस्तक्षेप किया और अस्थियाँ रामपुर लाई  गई। 30 जनवरी को गांधी की शहादत के बाद 31 जनवरी को नवाब रजा अली खां ने 13 दिन के सरकारी शोक का एलान किया था।  उस वक्त रामपुर रियासत का भारत में विलय नहीं हुआ था। 

 दो फरवरी को दिल्ली में जब महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब  रामपुर के किले से उनको 23 तोप की सलामी दी गई। 10 फरवरी को नवाब दिल्ली के राजघाट पहुंचे और महात्मा गांधी की चिता वेदी पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। उन्होंने बापू की अस्थियों को रामपुर ले जाने की इच्छा जताई।  कुछ विरोध हुए लेकिन नवाब के साथ गए सनातन धर्म के जानकारों ने जो तर्क दिए उसके सामने विरोधियों को चुप होना पड़ा।  


दिल्ली से रामपुर अस्थियों को लाने के लिए 18 सेर वजनी अष्टधातु का कलश ले जाया गया था।  बाद में नवाब ने अपने हाथों से चांदी  की पात्र में बापू की अस्थियों को दफ़न किया और उस पर सुंदर समाधि बनी। विदित हो महात्‍मा गांधी स्‍वतंत्रता आंदोलन के दौरान दो बार रामपुर आए। एक बार जब गांधी जी मौलाना मुहम्मद अली जौहर के साथ रामपुर आए थे, तब उनकी मुलाकात तत्‍कालीन नवाब हामिद अली खां से हुई थी। तब से ही गांधी जी के नवाब खानदान से बेहद अच्‍छे रिश्‍ते बन गए थे। वैसे आज़म खान ने मंत्री रहते इस समधी स्थल को बहुत सुंदर स्वरुप दिया। 

# पंकज चतुर्वेदी जी की फेसबुक वॉल से साभार

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Tuesday, October 1, 2024

फसलों में क्लाइमेट चेंज का दिखने लगा असर !



।। बाबूलाल दाहिया ।।

हम विगत 20 वर्षो से 100 से अधिक प्रकार की परम्परागत देसी धानों की खेती करते चले आ रहे हैं। इधर 2017 में चालीस जिलों की यात्रा के पश्चात हमारे पास  उनकी संख्या में बढ़ोत्तरी होकर 200 के आस पास तक पहुँच चुकी है। परन्तु इतना भर नहीं हमारे पास हर धानों का प्रत्येक वर्ष का प्रलेखीकरण भी है कि कौन धान की कब नर्सरी में बुबाई हुई, कब रोपा लगा, कब किसका पुष्पन हुआ और कब दाने परिपुष्ट होकर वह पक गईं। 

पिछले वर्षों की जानकारी लेने के लिए जब हमने सन 2021 का रजिस्टर खोला तो देखा कि हमारी लगभग 20 -25 प्रकार की अति शीघ्र पकने वाली धान २५ सितम्बर तक पक गईं थीं, जो इस प्रकार थीं 1-- भदेली  2- करगा 3- सिकिया 4- करधना 5- सरइया 6- डिहुला 7- दूधी 8- शुकला फूल 9- कोसम अगेती 10-- दुर्गा परसाद 11- लालू 12- श्यामजीर 13- लइची 14- बिरंच 15- बादलफूल 16-करेची 17- भुरसी 18- रानी काजर 19- सोनखर्ची 20- कोटवा 21- गोमती 22-अन्तरवेद 23 - पथरिया 24- गुरमटियां 25-- कदमफूल ।

परन्तु ऐसा लगता है कि इस वर्ष वह पकने में लगभग 15 दिन लेट चल रहीं हैं। आखिर ऐसा क्यों है ? जब कि यहां की परम्परागत किस्में होने के नाते दिन की गिनती के बजाय वे ऋतु से संचालित हैं। यही कारण था कि चाहे आंगे बोया जाय अथवा 15--20 दिन पीछे तब भी अपने निश्चित तिथि में वे हर वर्ष पक ही जाती थीं। लेकिन उनका इस वर्ष इतना लेट पकना समझ से परे है। 5 दिन अधिक वर्षा और 5 दिन लेट मानसून का असर भी मान लें पर शेष 10 दिन किसमें सुमार होंगे ?

मैं पिछले वर्ष से महसूस कर रहा हूं कि प्रथम मानसूनी वारिश जो हमारे यहां हर वर्ष अमूमन 20 से 25 जून तक होती थी और 20-25 सितम्बर तक समाप्त भी हो जाती थी। वह पिछले वर्ष से 10 से 15 दिन लेट आती है और फिर 5 अक्टूबर तक यहां से जाती भी है। जब कि पहले छतीशगढ़ में अवश्य 5अक्टूबर तक रहती थी। हमारे यहां वह 25 तक विदा हो लेती थी। 27 सितम्बर से लगने वाले हस्त नृक्षत्र में कभी कभार ही बारिश होती। लेकिन इस तरह वर्षा का लेट आना और लेट जाना एवं वनस्पति जगत का यह बदलाव कहीं निकट भविष्य के लिए  मौसम के क्लाइमेट चेंज का परिचायक तो नही ? जो धानें 25 सितम्बर तक पक जाती थीं उनकी चित्र में स्थिति देख यह स्पस्ट हो रहा है कि अभी वह 10 अक्टूबर के पहले खलिहान नहीं आएंगी।

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