Wednesday, April 19, 2017

बंधुआ जिंदगी जी रहे बेलडावर गांव के आदिवासी

  • पवई विकासखण्ड के इस गांव में चलती है  खनन माफियाओं की हुकूमत
  • बिना इजाजत यहाँ  के आदिवासी अन्यत्र कहीं  नहीं  कर सकते कोई काम
  • पत्थर खदानों में ही  जिन्दगी खपाना इन गरीबों की नियति बनी


 पवई विकासखण्ड का आदिवासी गांव बेलडावर।

। अरुण सिंह 

पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में एक गांव ऐसा है जहाँ के गरीब आदिवासी ताउम्र बंधुआ बनकर जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। पवई विकासखण्ड के अंतर्गत आने वाले इस गांव में पत्थर खनन माफियाओं की हुकूमत चलती है। इनकी मर्जी और इजाजत के बिना गांव के आदिवासी अपनी इच्छा से अन्यत्र कहीं  कोई दूसरा काम नहीं  कर सकते। गांव के निकट ही  कोठी-कुटरहिया पहाड़ में वर्षों से चल रही एक दर्जन से भी अधिक पत्थर खदानों में हाड़तोड़ मेहनत करना इनकी नियति बन चुकी है। 

खनन माफियाओं द्वारा गांव के आदिवासियों से तब तक खदानों में काम कराया जाता है  जब तक वे शारीरिक रूप से अक्षम या फिर किसी गंभीर बीमारी की गिरफ्त में नहीं आ जाते। इस तरह से पत्थर खदानों में छेनी, हथौड़ा और घन चलाते  इस गांव के आदिवासियों की जिंदगी खत्म हो  जाती है । यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा  है ,जिस पर विराम की दूर-दूर तक कहीं  कोई गुंजाइस नजर नहीं आती।

जिला मुख्यालय पन्ना से तकरीबन 85 किमी दूर घने जंगल के बीच स्थित है  बेलडावर गांव, जहां  शत प्रतिशत आदिवासी रहते हैं । आज के इस तकनीकी युग में जब कैशलेस व्यवस्था की बात की जा रही  है, उस समय इस गांव तक पहुंचने के लिए सुगम मार्ग तक नहीं है । ऊबड़-खाबड़ और पथरीले जंगली रास्ते से होकर ही यहाँ  पहुँचा जा सकता है । लगभग ढाई सौ की आबादी वाले बेलडावर गांव के आदिवासी दो दशक पूर्व तक जंगल की लकड़ी बेंचकर अपना जीवनयापन करते थे। लेकिन जब से कोठी-कुटरहिया पहाड़ में पत्थर खदानों का सिलसिला शुरू हुआ, बेलडावर गांव के आदिवासियों की जिंदगी की दिशा ही  बदल गई। 

खदानों में पूरे दिन पत्थर काटना और तोडऩा तथा दिन ढलने के बाद ठेकेदार द्वारा दिये गये पैसों से शराब पीकर धुत हो  जाना, दिनचर्या बन चुकी है । जिंदगी जीने के इस तरीके ने गांव के आदिवासियों को पहाड़ की तरह ही  खोखला और छलनी कर दिया है । पत्थर खदान में 8 से 10 वर्ष तक काम करने के बाद मजदूर शारीरिक रूप से कमजोर और अक्षम हो  जाते हैं।  ज्यादातर मजदूर पत्थर खदानों की खतरनाक डस्ट के कारण जानलेवा बीमारी सिलीकोसिस की गिरफ्त में आ जाते हैं , जिससे उनकी मौत हो जाती है ।

 गांव के आदिवासी पत्रकारों से अपनी व्यथा सुनाते हुए ।

विकास की रोशनी से कोसों दूर पवई विकासखण्ड के बेलडावर गांव में जब जिला मुख्यालय से पत्रकारों का एक दल पहुँचा तो यहाँ  के हालात देख सहसा विश्वास नहीं  हुआ कि आज भी लोग इस तरह से शोषण का शिकार होकर नारकीय जिंदगी जीने को विवश हैं । पत्रकारों के अचानक गांव में पहुँचने पर इस गांव के कुछ बुजुर्ग जो किन्ही कारणों से खदान में काम करने नहीं  गये थे व महिलायें एकत्रित हो गईं। जब उन्हें यह बताया गया कि हम लोग पन्ना से आये हैं और यह चाहते हैं कि आप लोगों को शासन की योजनाओं का लाभ मिले ताकि आप भी बेहतर जिंदगी जी सकें। 

यह सुनकर बेलडावर गांव के गोटी आदिवासी ने आश्चर्य के साथ पत्रकारों को घूरते हुए कहा कि कौन सी योजना और कौन सा लाभ, यहाँ तो पूरा गांव पत्थर खदान ठेकेदारों का गुलाम है। खदानों में पत्थर तोड़ते हुए जवान लड़के खत्म हो गये, गांव में बहुयें विधवा घूम रही हैं। बीमार पडऩे पर ठेकेदार इलाज कराने के नाम पर कर्जदार बना लेते हैं  और फिर जीवन पर्यन्त पत्थर तुड़वाते हैं। पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों को ठेकेदार शराब भी देते हैं और शराब का पैसा मजदूरी से काट लेते हैं ।

शासकीय कार्य करने की भी इजाजत नहीं 


कुटरहिया पहाड़ की खदान जहाँ  आदिवासी करते हैं  काम।

गांव के आदिवासियों से यह पूछे जाने पर कि आप लोग पत्थर खदान में काम करने के बजाय मनरेगा व शासन द्वारा चलाये जा रहे  निर्माण कार्यों में काम क्यों नहीं  करते ? इसके जवाब में गोटी आदिवासी व चन्ना आदिवासी ने बताया कि पत्थर खदान ठेकेदार कहीं  दूसरी जगह काम करने नहीं  जाने देते। खदान में ही  काम करने को मजबूर करते हैं, क्योंकि गांव के अधिकांश लोग बीमारी आदि कारणों के चलते कर्जदार हो चुके हैं। 

यदि किसी पर 5-10 हïजार रू. का कर्ज चढ़ गया तो फिर कभी उतर नहीं पाता, ऐसी स्थिति में पत्थर खदान में काम करना मजबूरी बन जाती है। गोटी आदिवासी ने बताया कि पत्थर खदान में 8-10 साल काम करने से भितरहटी (फेफेड़ा) खत्म हो जाती है। बेड़ीलाल पिता लटोरा आदिवासी ने बताया कि ठेकेदार एक चीप निकालने का 25 रू. देते हैं , जिसे वे 100 रू. या इससे भी ज्यादा कीमत में बेंचते हैं ।

कम उम्र में ही  कई बहुयें  हुईं विधवा


बेलडावर गांव की सबसे बड़ी त्राशदी यह  है  कि बीते 5 सालों के दौरान ही  पत्थर खदानों में काम करने वाले एक दर्र्जन से भी अधिक युवकों की मौत हो  चुकी है । असमय काल कवलित होने  वाले इन युवाओं की उम्र 30 से 40 वर्ष के बीच थी। ऐसी स्थिति में गांव के कम उम्र की विधवा हो  चुकी बहुओं  की भरमार है  जो पति की मौत के बाद अभिशप्त जीवन जी रही हैं। 

प्रीतम आदिवासी ने अपनी याददाश्त पर जोर देते हुए बताया कि पिछले पांच सालों के दरम्यान प्रताप आदिवासी 35 वर्ष, तम्मा आदिवासी 30 वर्ष, रामस्वरूप आदिवासी 30 वर्ष, रमेश आदिवासी 36 वर्ष, हरि आदिवासी 35 वर्ष, महेश आदिवासी 35 वर्ष, मिलन आदिवासी 34 वर्ष सहित इसी आयु वर्ग के लग्गा आदिवासी, कुमती आदिवासी, परसू आदिवासी, भाई लाल, श्यामलिया, प्यारे तथा मंगलिया आदिवासी की मौत हो  चुकी है। 

प्रीतम आदिवासी ने बताया कि पत्थर खदानों में 8-10 साल लगातार काम करने से फेफड़े खराब हो जाते हैं , जिससे सांस फूलने लगती है। सही ढंग से इलाज न होने पर पीडि़त की मौत हो  जाती है। इस बीमारी को सिलीकोसिस कहा जाता है , जिसके उपचार की पन्ना जिला अस्पताल में भी कोई माकूल व्यवस्था नहीं  है । जाहिर है कि पीडि़त मजदूर असहाय होकर सिर्फ मौत का इंतजार करता है ।

उचित मूल्य की दुकान गांव से 10 किमी दूर


घने जंगल के बीच स्थित इस गांव तक जाने वाला मार्ग।

गांव में मूलभूत और बुनियादी सुविधायें कैसी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बेलडावर गांव के आदिवासियों को सस्ता खाद्यान्न लेने के लिए पैदल 10 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। उचित मूल्य की दुकान ग्राम पंचायत कढऩा में है, जहाँ खाद्यान्न लेने के लिए जाने का मतलब पूरा दिन खराब करना है। इस सुविधा के नाम पर कोई गारंटी नहीं कि खाद्यान्न मिल ही जाये। 

चिकित्सा सुविधा के नाम पर बेलडावर गांव से 22 किमी दूर मोहन्द्रा स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। यदि गांव में कोई बीमार होता है तो इलाज के लिए मोहन्द्रा जाना पड़ता है। जिले में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति कैसी है यह सर्व विदित है, ज्यादातर केन्द्र चिकित्सक विहीन हैं। इन हालातों में गरीब आदिवासियों को बीमार पडऩे पर कैसी-कैसी मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं , इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

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Thursday, April 6, 2017

दशकों से उपेक्षित पड़ी है पन्ना की सबसे खूबसूरत घाटी

  • घाटी में घना जंगल के साथ दिखते हैं प्रकृति के अदभुत नज़ारे 
  • जीर्णोद्धार होने पर एक दर्जन से अधिक गांव होंगे लाभान्वित



खजरीकुडार - बनहरी सड़क मार्ग जो विगत कई दशकों से बंद पड़ा है। फोटो - अरुण सिंह 


। अरुण सिंह 

पन्ना। तीन दशक पूर्व तक पन्ना जिले की जिस खूबसूरत घाटी से वाहनों का आवागमन होता रहा है, वह अब उपेक्षित पड़ी है. घने जंगलों व प्रकृति के अद्भुत नजारों के बीच से गुजरने वाली इस घाटी के मार्ग का जीर्णोद्धार न होने से आवागमन ठप्प हो गया है. जिससे एक दर्जन से अधिक ग्रामों के रहवासियों को जिला मुख्यालय आने के लिए 30 से 40 किमी. की दूरी अधिक तय करनी पड़ती है. यदि घाटी के 7 किमी. लम्बे पुराने मार्ग का जीर्णोद्धार हो जाय तो ग्रामीणों को जिला मुख्यालय आने के लिए अनावश्यक चक्कर नहीं काटना पड़ेगा।

उल्लेखनीय है कि लोक निर्माण विभाग के विलुप्त हो चुके इस अति महत्वपूर्ण सड़क मार्ग की ओर  शासन व प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया गया है। पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से उपेक्षित पड़े इस मार्ग की हकीकत जानने के लिए पत्रकार  जब यहां पहुंचकर  घने जंगलों के बीच से निकले तो इस सडक मार्ग को देख  आश्चर्य चकित रह गये। इस मार्ग पर कुछ किमी. पैदल चलने पर प्रकृति के जहां अद्भुत नजारे देखने को मिले, वहीं यह अहसास भी हुआ कि यदि इस मनोरम घाटी का निर्माण हो जाता है तो यह पन्ना की सबसे खूबसूरत घाटी होगी। 

मालुम हो कि पन्ना जिला मुख्यालय से महज 10 किमी. की दूरी पर आदिवासी बहुत ग्राम खजरी कुड़ार स्थित है. यहीं से यह मार्ग शुरू होता है जो बनहरी गांव तक जाता है। खजरीकुडार से बनहरी तक लगभग 7 किमी. लम्बा मार्ग बन जाने से तकरीबन एक दर्जन गांव जहां जिला मुख्यालय से सीधे जुड़ जायेंगे, वहीं बरियारपुर डेम की दूरी पन्ना से 20 किमी. हो जायेगी। अभी यहां पहुंचने के लिए अजयगढ़ होकर जाना पड़ता है जिसकी दूरी 50 किमी. से अधिक है।  

चूंकि यह सड़क मार्ग कुछ दशक पूर्व तक अस्तित्व में रहा है तथा इस मार्ग से वाहनों व ट्रकों की आवाजाही भी होती रही है. इसलिए बहुत ही कम लागत में यह मार्ग बेहतर ढंग से बन सकता है। इस  मार्ग के बन जाने से खजरी कुडार, बनहरी, कुंवरपुर, छोटी बनहरी, रायपुर, पाठा, भापतपुर, झिन्ना, बरियारपुर, देवरा भापतपुर, पडरहा, गुमानगंज व बिलाही आदि ग्रामों के लोगों को लाभ होगा।

सड़क बनने से जंगल की होगी सुरक्षा- 



मार्ग पर ही बिखरी पड़ी सागौन सिल्लियों की छीलन। 

उपेक्षित पड़े इस सड़क मार्ग का निर्माण हो जाने से इस इलाके का जंगल भी सुरक्षित हो जायेगा। मौजूदा समय उत्तर वन मण्डल क्षेत्र के खजरी कुडार बेल्ट में सागौन के बेशकीमती वृक्षों की सर्वाधिक कटाई होती है। इस क्षेत्र में खूबसूरत जंगल है, लेकिन जंगल की अवैध कटाई भी यहां सर्वाधिक होती है। सागौन वृक्षों से लदी यहां की पहाडियों में हर समय कुल्हाडियों की आवाजें गूंजती हैं। लकड़ी तस्कर सागौन की मोटी बोगिया घाटी से बंद पड़े सड़क मार्ग तक लाते हैं, यहां पर लकड़ी की सिल्लियां बनती हैं जिन्हें बाहर भेज दिया जाता है। 

अवैध सागौन वृक्षों की कटाई व लकड़ी की तस्करी का यह गोधरधंधा दशकों से चल रहा है, जिस पर वन अमले का कोई अंकुश नहीं है। यदि यह सिलसिला जारी रहा तो आने वाले कुछ सालों में यहां का हरा भरा खूबसूरत जंगल उजड़ जायेगा। जानकारों का कहना है कि बंद पड़ी यह घाटी यदि बन जाती है और इस मार्ग पर आवागमन शुरू हो जाता है तो अवैध कटाई पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है. वर्तमान में इस बंद पड़े मार्ग का उपयोग सिर्फ लकड़ी चोर कर रहे हैं, मार्ग का नजारा देख इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है, क्यों कि पूरे मार्ग पर सागौन लकड़ी के छिलके बिखरे पड़े हैं। मार्ग पर आवागमन होने पर ऐसा संभव नहीं होगा।

विकसित होंगे कई पर्यटन स्थल

खजरी कुड़ार की मनोरम घाटी का जीर्णोद्धार हो जाने के बाद इस क्षेत्र में स्थित अनेको प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण मनोरम स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते हैं। इन स्थलों का विकास होने पर इस क्षेत्र में जहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा वहीं रोजी रोजगार के नये अवसरों का भी सृजन होगा। ईको टूरिज्म की दृष्टि से भी यह क्षेत्र उपयुक्त हैं, यहां पर वे सारी खूबियां मौजूद हैं जो प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को पसंद होती हैं। अंग्रेजों के जमाने में बना बरियारपुर डेम तक पहुंचना भी आसान और सुगम हो जायेगा. पर्यटक प्रकृति के अद्भुत नजारों को देखते हुए डेम में वाटर स्पोर्टस का भी पूरा लुत्फ उठा सकेंगे।

दस्यु गिरोहों पर भी लग सकेगी रोक


इलाके में घना जंगल व घाटियां होने के कारण यह पूरा क्षेत्र दस्यु गिराहों के लिए सुरक्षित शरण स्थली बन जाता है। डकैतों की मौजूदगी से तमाम तरह के अपराध घटित होते हैं तथा अपराधों को बढ़ावा भी मिलता है। यदि घाटी व मार्ग दुरूस्त हो जाता है और इस मार्ग पर आवागमन होने लगता है तो दस्यु गिरोहों की सक्रियता पर जहां अंकुश लगेगा वहीं डकैत यहां के जंगल को अपना ठिकाना भी नहीं बना सकेंगे। इस तरह से यदि देखा जाय तो खजरी कुडार की पुरानी घाटी का जीर्णोद्धार कराना जनहित व विकास के हित में होगा. इसके लिए प्रशासन व लोक निर्माण विभाग को प्रभावी कदम उठाना चाहिए तथा वन विभाग को भी इस कार्य में मदद करनी चाहिए।
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