Wednesday, March 27, 2019

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी तय करेगी पन्ना के बाघों का भविष्य

  •   केन-बेतवा लिंक परियोजना की हकीकत जानने पन्ना पहुँचेगी सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी
  •    पर्यावरण प्रेमी तथा पन्ना परिवर्तन मंच केन नदी में प्रस्तावित बांध का कर रहे विरोध


पन्ना टाईगर रिजर्व के बीच से प्रवाहित केन नदी।

  । अरुण सिंह 

पन्ना। केन-बेतवा लिंक  परियोजना अपने शुरूआती दौर से ही विवादों के घेरे में है। पर्यावरण व वन्य जीव प्रेमियों सहित नदियों पर गहन अध्ययन करने वाली अनेकों समाज सेवी संस्थाओं ने इस प्रस्तावित परियोजना को न सिर्फ पर्यावरण के लिये हानिप्रद बताया है अपितु यह चेतावनी भी दी है कि केन्द्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी नदी जोड़ो परियोजना यदि मूर्त रूप लेती है तो बुन्देलखण्ड क्षेत्र का एक मात्र टाईगर पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व नष्ट हो जायेगा। 

इसी बात को दृष्टिगत रखते हुये कुछ समाजसेवियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी लगाई गई थी। जिसमें यह लेख किया गया है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना से पर्यावरण को कितनी क्षति होगी, इसका सही आंकलन नहीं किया गया है। याचिका में उठाये गये बिन्दुओं की पड़ताल करने तथा जमीनी हकीकत जानने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने इम्पावर्ड कमेटी गठित की है, जो 27 मार्च बुधवार को पन्ना पहुँच रही है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित यह उच्च स्तरीय कमेटी मौके का जायजा लेने के साथ-साथ टाईगर रिजर्व के अधिकारियों, याचिका कर्ता सहित अन्य लोगों से भी बातचीत करके हकीकत जानने का प्रयास करेगी। इस प्रस्तावित परियोजना का पर्यावरण प्रेमी व पन्ना परिवर्तन मंच के लोग पुरजोर विरोध कर रहे हैं। परिवर्तन मंच के सचिव अंकित शर्मा का कहना है कि केन नदी के नैसर्गिक प्रवाह को रोकना पन्ना जिले के लिये घातक होगा। 

उन्होंने कहा कि इस जीवन दायिनी नदी के कंचन जल पर पहला हक पन्ना जिलावासियों का है, जिन्होंने जंगल और वन्य प्राणियों के वजूद को कायम रखने के लिये अपनी इच्छाओं की कुर्बानी दी है। जंगल व वन्य प्राणियों के संरक्षण हेतु पन्ना जिले के लोगों को प्रगति व विकास की संभावनाओं से वंचित होना पड़ा है। इसलिये कहीं अन्यत्र खुशहाली लाने के लिये यहां की नैसर्गिक सम्पदा को उजाडऩे की इजाजत नहीं मिलनी चाहिये।

गौरतलब है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत ढोंढन गाँव के पास केन नदी पर प्रस्तावित बांध का यदि निर्माण कराया गया तो पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का बड़ा हिस्सा डूब जायेगा। डूब में आने वाला घने जंगल से आच्छादित यह वन क्षेत्र राष्ट्रीय पशु बाघ व विलुप्ति की कगार में पहुँच चुके गिद्धों का प्रिय रहवास है। बांध बनने पर इस वन क्षेत्र के 14 लाख से भी अधिक वृक्षों का सफाया हो जायेगा। 

इस परियोजना के मूर्त रूप लेने में दो से ढाई दशक लगेंगे जिसमें हजारों करोड़ रू. जहां खर्च होंगे वहीं भारी भरकम मशीनों का जहां उपयोग होगा वहीं हजारों मजदूर भी वन्य प्राणियों के इस रहवास में कार्य करेंगे। इन हालातों में यहां नैसर्गिक  जीवन जीने वाले वन्य प्राणी कैसे रह पायेंगे ? इस बीच पर्यावरण को कितना नुकसान होगा तथा केन नदी का नैसर्गिक  प्रवाह थमने से नीचे के सैकड़ो ग्रामों के लोगों को किस तरह के दुष्परिणाम भोगने पडेंग़े, इस दिशा में भी सोचने व विचारने की महती जरूरत है।

पन्ना टाईगर रिजर्व में 45 से भी अधिक बाघ


 नदी के जल में विश्राम करता बाघ परिवार।

मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में 45 से भी अधिक बाघ स्वच्छन्द रूप से विचरण कर रहे हैं।  समूचे बुन्देलखण्ड में एक मात्र बाघों का शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये बाघ पुनर्स्थापना  योजना शुरू की गई। जिसे उल्लेखनीय सफलता मिली और बाघ विहीन यह जंगल फिर से आबाद हो गया। 

बीते 9 वर्षों में यहां पर 77 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हुआ है। मालुम हो कि बढ़ती आबादी के दबाव में पन्ना जिले का सामान्य वन क्षेत्र तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है काफी हद तक सुरक्षित है। लेकिन इसे भी उजाडऩे की तैयारी की जा रही है जो पर्यावरणीय दृष्टि से दुर्भाग्यपूर्ण है।

लिंक परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य


0  बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवनदायिनी केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।
0  जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।
0  बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।
0  ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली लिंक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।
0  बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।
0  105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।

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दैनिक जागरण में प्रकाशित रिपोर्ट 

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Sunday, March 24, 2019

नेचर कैम्प में वनराज व पानी के राजा का हुआ दीदार

  •   टाईगर रिजर्व प्रबन्धन ने पत्रकारों को कराया जंगल की सैर
  •   पीपरटोला के ग्रास लैण्ड में दिखाई दिये चीतलों के झुण्ड




। अरुण सिंह 

पन्ना। जंगल में स्वच्छन्द रूप से विचरण करते हुये वनराज को निकट से देखना अपने आप में जहां रोमांचक अनुभव होता है, वहीं नदी में नौका बिहार के दौरान तट में आराम फरमाते पानी के राजा मगर को निहारना भी कम दिलचस्प नहीं है। ऐसा संयोग कभी कभार ही होता है कि एक ही दिन में कुछ घण्टों के दरम्यान वनराज व पानी के राजा मगर के दर्शन का सौभाग्य मिले। लेकिन बाघों से आबाद हो चुके म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में ऐसा संयोग आये दिन घटित हो रहा है। 

यहां आने वाले देशी व विदेशी पर्यटक जहां बाघों का दीदार करते हैं, वहीं केन नदी में नौकायन का लुत्फ उठाते हुये नदी तट पर रेत व चट्टानों पर आराम करते मगर भी देखते हैं। नेचर कैम्प के तहत रविवार 24 मार्च को जिले के पत्रकारों को पार्क प्रबन्धन द्वारा जंगल की सैर कराया गया, जिसमें पत्रकारों को बाघ परिवार के जहां दर्शन हुये वहीं केन नदी में मगर का भी दीदार करने का अवसर प्राप्त हुआ।




उल्लेखनीय है कि वन व वन्य प्राणी संरक्षण के प्रति जनमानस विशेषकर छात्र-छात्राओं व वन क्षेत्र के आस-पास रहने वाले लोगों में अभिरूचि और जागरूकता पैैदा करने के लिये विगत कई वर्षों से नेचर कैम्प आयोजित किये जा रहे हैं। प्रत्येक रविवार को आयोजित होने वाले इस नेचर कैम्प में प्रतिभागियों को जहां जंगल की सैर कराई जाती है, वहीं उन्हें वन्य प्राणियों, विभिन्न प्रजाति के पक्षियों तथा वनस्पतियों के बारे में रोचक ढंग से जानकारी भी दी जाती है। 

पन्ना टाईगर रिजर्व द्वारा आयोजित होने वाले ये नेचर कैम्प स्कूली छात्र-छात्राओं के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ है। कैम्प में भाग लेने वाले सैकड़ों बच्चे प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रेरित हुये हैं। इसी नेचर कैम्प के तहत पार्क प्रबन्धन द्वारा 24 मार्च को जिले के पत्रकारों को टाईगर रिजर्व का भ्रमण कराया गया, जो पत्रकारों के लिये अत्यधिक रोमांचकारी और अविस्मरणीय रहा। 

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक पत्रकारों का दल क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व कार्यालय से सुबह 6 बजे नेचर कैम्प की विशेष 30 सीटर मिनी बस से हिनौता के लिये प्रस्थान किया। हिनौता प्रवेश द्वार से जंगल के विविध रूपों को निहारते तथा वन्य प्राणियों का दीदार करते हुये पत्रकारों का दल व्यवस्थापित हो चुके पीपरटोला ग्राम के ग्रास लैण्ड में पहुँचा। पूर्व में यहां भरा-पूरा गाँव था जो अब बेहतरीन घास के मैदान में तब्दील हो चुका है तथा यहां पर हजारों की संख्या में बेर के वृक्ष व झाडिय़ां उग आई हैं। यह मैदान शाकाहारी वन्य जीवों के लिये किसी जन्नत से कम नहीं है।

पेड़ों के नीचे दिखे चीतलों के झुण्ड





सुबह के लगभग 8:30 बज चुके थे और धूप तीखी होने लगी थी। ऐसी स्थिति में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अब वनराज के दर्शन हो पाना मुश्किल है। इसलिये पीपरटोला के मैदान में पेड़ों के नीचे खड़े व बैठे चीतलों के झुण्ड को ही निहार कर और उन्हें अपने कैमरों में कैद कर संतोष किया। इस मैदान में जिधर नजर डालो उधर चीतल ही चीतल नजर आ रहे थे, यह अद्भुत दृश्य सभी को बड़ा प्रीतिकर लग रहा था। 

कहीं किसी पेड़ के नीचे सांभरों का समूह भी दिखाई दे रहा था। काफी देर तक पत्रकारों ने इन शाकाहारी वन्य प्राणियों की विविध क्रियाकलापों को न सिर्फ निहारा अपितु मनमर्जी के मुताबिक फोटो भी उतारे। इसी दरम्यान कुछ ही दूर जंगल में अलार्म काल सुनाई, जो इस बात का संकेत थी कि आस-पास कोई बड़ा मांसाहारी जीवन मौजूद है। अलार्म काल की दिशा में तुरन्त वाहन को दौड़ा दिया गया।

दो शावकों  के साथ नजर आई बाघिन





पीपरटोला कैम्प से कुछ ही दूरी पर नाले के पास तकरीबन एक दर्जन जिप्सियां तथा उनमें सवार पर्यटक अलार्म काल की दिशा में एकटक निहार रहे थे। अचानक घनी झाडिय़ों के बीच से बाघिन अपने दो शावकों के साथ प्रकट हुई। इस अद्भुत दृश्य को निहारने तथा अपने कैमरों में कैद करने के लिये वहां मौजूद पर्यटक चौकन्ने हो गये। कुछ ही क्षणों में यह बाघिन सूखे नाले को पार करते हुये निश्चिन्त भाव से शावकों के साथ केन नदी की तरफ निकल गई। 

सुबह के तकरीबन 9 बजे जब बाघों का मूवमेन्ट थम जाता है, उस समय शावकों के साथ बाघिन का दीदार कर पर्यटन खुशी से झूम उठे। पत्रकारों का दल भी इस रोमांचक और खुशी से भरपूर लमहे का सहभागी बना। इस तरह से आज का यह नेचर कैम्प उन पत्रकारों के लिये यादगार बन गया जिन्होंने पहली मर्तबे वनराज को जंगल में स्वच्छन्द रूप से विचरण करते देखा था। 

बाघिन का दीदार करने के बाद पत्रकारों का दल केन नदी में नौकायन का लुत्फ उठाने पहुँचा और यहां भी भाग्य ने साथ दिया फलस्वरूप नदी के तट पर विश्राम करते कई मगर भी देखने को मिले। पार्क भ्रमण के दौरान स्टेनो प्रदीप द्विवेदी पूरे समय पत्रकार दल के साथ रहे। भ्रमण उपरान्त हिनौता गेट पर पत्रकारों ने अपने अनुभव क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया के साथ साझा किये। इस मौके पर श्री भदौरिया ने पार्क प्रबन्धन की कार्यप्रणाली व योजनाओं के बारे में जानकारी दी।
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Saturday, March 23, 2019

घाघरा चोली पहन भगवान ने धारण किया सखी वेष

  •  बुन्देलखण्ड क्षेत्र के वृन्दावन पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में कायम है अनूठी परम्परा
  •   वर्ष में सिर्फ एक बार चैत्र माह की तृतीया को होते हैं सखी वेष के दर्शन


 भगवान श्री जुगुल किशोर जी के सखी वेष की  मनोरम झाँकी  ।

 अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में हर तीज त्योहार बड़े ही अनूठे और निराले अंदाज में मनाया जाता है। रंगों के पर्व होली पर यहाँ के सुप्रसिद्ध भगवान श्री जुगल किशोर जी मंदिर की छटा देखते ही बनती है। चैत्र माह की तृतीया को यहां भगवान श्री जुगुल किशोर जी सखी वेष धारण करते हैं। भगवान के इस नयनाभिराम अलौकिक स्वरूप के दर्शन वर्ष में सिर्फ एक बार होली के बाद तृतीया को  ही होते हैं। यही वजह है कि सखी वेष के दर्शन करने पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।   मुरली मुकुट छीन पहनाय दियो घाघरा चोली, यशोदा के लाल को दुलैया सो सजायो है। कृष्ण की भक्ति में लीन महिलायें जब ढोलक की थाप पर इस तरह के होली गीत गाते हुये गुलाल उड़ाकर नृत्य करती हैं तो म.प्र. के पन्ना शहर में स्थित सुप्रसिद्ध श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में वृन्दावन जीवंत हो उठता है।
उल्लेखनीय है कि मन्दिरों के शहर पन्ना में स्थित श्री जुगुल किशोर जी का मन्दिर जन आस्था का केन्द्र है। इस भव्य और अनूठे मन्दिर में रंगों का पर्व होली वृन्दावन की तर्ज पर मनाया जाता है। तृतीया के दिन आज शनिवार  को इस मन्दिर की रंगत देखते ही बन रही थी। सुबह 5 बजे से ही महिला श्रद्धालुओं का सैलाब भगवान के सखी वेष को निहारने और उनके सानिद्ध में गुलाल की होली खेलने के लिये उमड़ पड़ा। ढोलक की थाप और मजीरों की सुमधुर ध्वनि के बीच महिला श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य की भक्ति और प्रेम में लीन होकर जब होली गीत और फाग गाया तो सभी के पाँव स्वमेव  थिरकने लगे। फाग, नृत्य और गुलाल उड़ाने का यह सिलसिला सुबह 5 बजे से 11 बजे तक अनवरत चला। यह अनूठी परम्परा श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में साढ़े तीन सौ वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही है जो आज भी कायम है। इस मन्दिर के प्रथम महन्त बाबा गोविन्ददास दीक्षित जी के वंशज देवी दीक्षित ने जानकारी देते हुये बताया कि सखी वेष के दर्शन की परम्परा प्रथम महन्त जी के समय ही शुरू हुई थी। ऐसी मान्यता है कि चार धामों की यात्रा श्री जुगुल किशोर जी के दर्शन बिना अधूरी है।

गुलाल का ही मिलता है प्रसाद


परम्परा के अनुसार पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में चैत्र मास की तृतीया को गुलाल का ही प्रसाद श्रद्धालुओं को मिलता है। सखी वेष में भगवान जुगुल किशोर व मुरली मुकुट धारण किये राधिका जी के अलौकिक स्वरूप को निहारने जब महिला श्रद्धालु मन्दिर पहुँचती हैं तो उनका सत्कार गुलाल से ही होता है। आज के दिन सुबह 5 बजे से 11 बजे तक मन्दिर के भीतर सिर्फ महिला श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलता है, जहां महिलायें एक-दूसरे को गुलाल लगाकर पूरे भक्ति भाव के साथ फाग और होली गीत गाती हैं। पूरा मन्दिर आज गुलाल के रंग में सराबोर नजर आता है।

वृन्दावन की मिलती है झलक


पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर को वृन्दावन की संज्ञा प्रदान की गई है, यहां आकर श्रद्धालुओं को वही अनुभूति होती है जैसी अनुभूति वृन्दावन में मिलती है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी से लेकर सभी पर्व व त्यौहार यहां पर वृन्दावन की तर्ज पर ही मनाये जाते हैं, यही वजह है कि पन्ना को बुन्देलखण्ड क्षेत्र का वृन्दावन कहा जाता है। यहां पर रंगों के पर्व होली की पूरे पाँच दिनों तक धूम रहती है। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुु यह गीत गुनगुनाते हुये पन्ना के जुगुल किशोर मुरलिया में हीरा जड़े हैं होली का उत्सव मनाते हैं।

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Thursday, March 21, 2019

मन्दिर जहां फूलों के रंग से खेली जाती है होली

  •   चांदी की पिचकारी से डाला जाता है केशर का रंग
  •   देश के कोने-कोने से होली खेलने पहुँचते हैं श्रद्धालु


 पन्ना स्थित बाई जू राज महारानी जी का मंदिर। 

   । अरुण सिंह 

पन्ना। म.प्र. के पन्ना शहर में एक मंदिर ऐसा भी है जहां सुंगधित फूलों एवं केशर के रंग से होली खेली जाती है। मन्दिर की इस अनूठी होली का आनंद लेने देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं और यहां की होली के रंग में सराबोर होते हैं। पन्ना के श्री प्राणनाथ जी मंदिर में होली का त्यौहार मथुरा, वृंदावन की तर्ज पर मनाया जाता है। हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से लोग आकर पूरी श्रद्धाभाव से त्यौहार मनाते हैं। यहां केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग नहीं होता सिर्फ फूल  के रंग के साथ-साथ शुद्ध गुलाल जिसमें किसी प्रकार का केमिकल नहीं होता उसी का उपयोग किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि रंगों के पर्व होली पर मन्दिरों के शहर पन्ना में एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। जन आस्था के केन्द्र पन्ना के श्री जुगल किशोरजी मन्दिर में होली का उत्सव रंगपंचमी तक चलता है। श्रद्धालु यहां पहुँचकर भगवान जुगल किशोर को अबीर चढ़ाकर होली खेलते हैं। इस मन्दिर में फागोत्सव की भी धूम रहती है। रंगों के पर्व होली का आगाज बुधवार को होलिका दहन के साथ हो गया। शहर में जगह-जगह होलिका दहन किया गया। 

होली के इस पावन पर्व पर बच्चों में विशेष उत्साह देखा गया। दो दिन पहले से ही बच्चे अपने-अपने मोहल्ले को रंग-बिरंगी झंडियों से सजाने में लग गये। अपनी-अपनी परीक्षाओं के समाप्त होने पर छात्र-छात्रायें पूरी तरह होली के रंग में रंगे दिखे। कई जगह देखा गया कि बच्चों द्वारा इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। जिसमें नन्हें-मुन्हें बच्चों द्वारा विभिन्न संदेशात्मक विषयों पर नाटकों का मंचन किया गया।

मंदिर प्रांगण में फूलों की पंखुडिय़ों व सुंगधित गुलाल से होली खेलते श्रद्धालु।

सुप्रसिद्ध प्राणनाथ जी मंदिर की बात की जाये तो होलिकादहन के एक दिन पूर्व ही फागों के स्वरलहरी में सुन्दरसाथ आत्मविभोर होकर अपने धाम धनी को मनाते हैं। होली में चांदी की पिचकारी में रंग भरकर सभी सुन्दर साथ को केसर मिश्रित सुगन्धित रंगों से सराबोर कर देते हैं तो वहीं दूसरी तरफ जुगल किशोर जी मंदिर में जब टेसू के फूलों से बनाई गई सुगन्धित रंगों से होली खेली जाती है तो लगता है भगवान स्वयं अनन्त स्वरूप होकर अपने भक्तों के बीच हंसी ठिठोली कर उनके जीवन को धन्य कर रहे हैं। 

श्री पद्मावतीपुरी धाम पन्ना में जो कि प्रणामी सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल है, यहां प्रत्येक त्यौहार में हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आते हैं। होली के त्यौहार में भी देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं का जमावड़ा पन्ना में विगत एक सप्ताह से शुरू हो गया था। मथुरा-वृन्दावन की तरह यहां मनाया जाने वाला होली का यह त्यौहार बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। इस मंदिर में  जहां केशर के रंग और गुलाल उड़ती है तो वहीं फूलों की पंखुडिय़ों की वर्षा सभी सुन्दरसाथ का मन मोह लेती है। 

मालुम ही नहीं पड़ता कि कौन श्रद्धालु किस प्रदेश से आया है। क्योंकि यहां आकर सभी एक ही रंग में रंग जाते हैं। यहां अपने-पराये का कोई भेदभाव नहीं रहता। सभी होली की मस्ती में अपने आपको भिगो लेते हैं। इस बार श्री प्राणनाथ जी मंदिर में होली के उत्सव में शामिल होने गुजरात, पंजाब, महाराष्ट, उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित नेपाल व अमेरिका से भी श्रद्धालुगण पहुंचे हैं।



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Tuesday, March 19, 2019

पन्ना में भी है एक बृज और बरसाना

  •   मंदिरों के शहर पन्ना में खिलने लगे होली के रंग
  •   देश के विभिन्न प्रान्तों से होली खेलने आते हैं श्रद्धालु


प्रणामी सम्प्रदाय के लोगों की आस्था का केन्द्र महामति श्री प्राण नाथ जी मंदिर 

अरुण सिंह,पन्ना। मन्दिरों के शहर पन्ना में रंगों के पर्व होली को बड़े ही अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। बृज और वृन्दावन की तरह पन्ना में भी कृष्ण भक्ति परंपरा के विशेष त्यौहार होली को धूमधाम से मनाने की परम्परा है। जिसका निर्वहन आज भी उसी तरह किया जाता है।प्रणामी सम्प्रदाय के सबसे बड़े तीर्थ पन्ना धाम में  किलकिला नदी के निकट  एक ओर राधिका रानी का मंदिर है इस परिक्षेत्र को बरसाना कहते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ दूरी पर कृष्ण और कृष्णलीला को केन्द्र में रखकर एक बृह्म चबूतरे की स्थापना है जहां श्री प्राणनाथ श्री कृष्ण की समस्त शक्तियों के साथ पूर्णबृह्म परमात्मा के रूप में विराजमान हैं। इस क्षेत्र को बृजभूमि और परना परम धाम कहते हैं। यहां बृज, बृन्दावन और बरसाने की तरह पारम्परिक होली मनाई जाती है।
उल्लेखनीय है कि होली दण्ड की स्थापना के साथ-साथ पन्ना धाम के मंदिरों में होली उत्सव की तैयारी शुरू हो जाती है। दण्ड स्थापना के दिन को मोहन होरी पर्व के रूप में मनाया जाता है। पन्ना धाम के मंदिरों में संध्या आरती के पश्चात दण्ड स्थापना की परंपरा है, लंबे गीले बांस  में लाल रंग की पताका लगाकर उसे किलकिला नदी के किनारे एवं ग्वालनपुरा में निर्दिष्ट स्थान हैं जहा धाम मुहल्ले की होली रचाई जाती है। हरे बांस की जड़ में सुपारी, हल्दी की गांठ और पूजन सामग्री अर्पित करके ठीक 14 दिनों बाद फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा पर इन्हीं दोनों स्थानों पर धाम मुहल्ले की होली प्रज्जवलित होती है। मोहन होरी की रात्रि में सबसे पहले जो गीत धमार में गाया जाता है वह इस प्रकार है- मोहन खेलत होरी..... वृन्दावन  बंशीवट कुंजन, तरे ठाड़े वनमाली कृउते सखिन को मंडल जोरे, श्री वृषभान दुलारी। परीवा प्रथम कृष्णपक्ष के दिन गुम्बटजी एवं बंगला जी में होरी गीतों का सुमधुर गायन होता है रात्रि 9 बजे गुम्बट जी के प्रांगण में भक्त गण इकट्ठे  होते हैं  और परीवा प्रथम का उत्सव प्रारंभ होता है।

मंदिर में पूरी रात चलता है फ़ाग  उत्सव




यहां होलिका दहन के एक दिन पूर्व जागरण की रात होती है। इस दिन श्री महारानी जी (राधिका जी) के मंदिर में विशेष श्रृंगार होता है। रात्रि में भोग लगने के पश्चात लगभग 10 बजे महारानी के मंदिर के प्रांगण में श्रद्धालु एकत्रित होने लगते हैं  फिर फ़ाग गायन का कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता है। गोकुल सकल ग्वालिन, घर घर खेलें फ़ाग..., बेंदा भाल बन्यो राधा प्यारी को.....तू वेदी भाल न दे री.. आज के फ़ाग उत्सव में राधिका जी केन्द्र में है। दरअसल यह उन्हे फ़ाग खेलने का निमंत्रण है। दूसरे दिन गुम्बटजी एवं बंगला जी में पुन: फ़ाग गीतों का गायन होता है। परिकल्पना यह है कि यहां राधा और कृष्ण मिलकर परस्पर भाग खेलते हैं। समस्त सुन्दरसाथ सखियों के रूप में गीत गाते हुये इस फ़ाग उत्सव में सम्मिलित होते हैं। देर रात तक यहां  रंगारंग कार्यक्रम चलता रहा। उत्सव और उल्लास के इस अनूठे आयोजन का हिस्सा बनने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पन्ना धाम पहुँचते हैं। इस वर्ष भी श्रद्धालुओं के पन्ना पहुँचने का सिलसिला शुरू हो गया है।
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Sunday, March 17, 2019

पन्ना में बाघों के रेडियो कॉलर का बना रिकार्ड

  •   दुनिया में फ्री रेन्जिंग बाघों का ट्रंक्युलाइजेशन इतना और कहीं नहीं
  •   साढ़े सात वर्षों में यहां  सर्वाधिक बाघों को पहनाया गया रेडिया कॉलर


ट्रंक्युलाइजकरने के बाद बाघ का चेकप करते डॉ संजीव गुप्ता  

अरुण सिंह,पन्ना। बाघ पुर्नस्थापना योजना को मिली चमत्कारिक सफ लता के साथ-साथ म.प्र. के पन्ना  टाइगर रिजर्व ने देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अनाथ व अर्धजंगली दो बाघिनों को यहां पर सफलतापूर्वक जहां जंगली बनाया गया, वहीं सीमित अवधि में फ्री रेन्जिंग बाघों को ट्रंक्युलाइज कर उन्हें रेडिया कॉलर पहनाये जाने के मामले में भी रिकार्ड कायम किया गया है। बीते साढ़े सात वर्ष के दरम्यान  यहां 58 बार बाघों को ट्रंक्युलाइज करने का कार्य वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता द्वारा किया गया जो अपने आप में एक मिशाल है। विशेष गौरतलब बात यह है कि रेडियो कॉलर किये जाने की प्रत्येक कार्यवाही की यहां वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई जाती है। पन्ना टाइगर रिज़र्व में बने इस अनूठे रिकॉर्ड को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में भी भेजा गया है। जानकारों का कहना है कि दुनिया में फ्री रेन्जिंग बाघों का ट्रंक्युलाइजेशन इतना और कहीं नहीं हुआ।
उल्लेखनीय है कि दुनिया में सबसे ज्यादा बाघ भारत में और भारत में सबसे अधिक म.प्र. में पाये जाते हैं। इस लिहाज से प्रदेश में बाघों के संरक्षण हेतु जो भी अनूठे और अभिनव प्रयोग होते हैं उस पर न सिर्फ पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट होता है बल्कि नये रिकार्ड भी म.प्र. में ही बनते हैं। बाघों को बेहोश कर उन्हें रेडिया कॉलर पहनाने के मामले में पन्ना टाइगर रिजर्व ने जो रिकार्ड बनाया है, इसके पूर्व दुनिया में इतने कम समय में कहीं भी फ्र ी रेन्जिंग बाघों का इतना ट्रंक्युलाइज आपरेशन नहीं हुआ। पन्ना टाइगर रिजर्व में 22 नवम्बर 2011 से 15 मार्च 2019  तक विभिन्न नर व मादा बाघों को 58  मर्तबे रेडिया कॉलर पहनाया गया। सीमित अवधि में दुनिया में सबसे ज्यादा बाघों को बेहोश करके सफलता पूर्वक रेस्क्यू कार्य करने का करिश्मा पन्ना टाइगर रिजर्व के इकलौते वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ने किया है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। जानकारों के मुताबिक बाघों को ट्रंक्युलाइज करके बेहोश करने का कार्य आमतौर पर कालर पहनाने, कालर उतारने व कालर बदलने तथा उपचार हेतु किया जाता है। पूर्व में यहां पर बाघों को बेहोश करने का कार्य चार से पांच वन्य प्राणी चिकित्सकों की उपस्थिति में होता था, लेकिन विगत साढ़े सात  वर्षों से यह कार्य पन्ना टाइगर रिजर्व के अनुभवी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता द्वारा अकेले ही किया जा रहा है। डॉ. गुप्ता की अपने कार्य व दायित्वों के प्रति लगन व जुनून का ही यह नतीजा है कि आज तक बाघों को ट्रंक्युलाइजेशन के दौरान तमाम तरह की चुनौतियों व विषम परिस्थितियों के बावजूद आज तक  कोई अप्रिय स्थिति नहीं बनी। इनके द्वारा अकेले ही ट्रंक्युलाइजेशन का कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न करने से बाघ सहित अन्य वन्य प्रांणियों को बेहोश करने की कार्यवाही कम समय में पूर्ण होती है,जिससे शासन का पैसा भी बचता है। जबकि पूर्व में चिकित्सकों की टीम आने के बाद ही ट्रंक्युलाइज करने का कार्य सम्पन्न होता था, जिसमें कई दिन का समय लग जाता था। लेकिन अब इस मामले में पन्ना टाइगर रिजर्व आत्मनिर्भर हो चुका है, यहां के वन्य प्रांणी चिकित्सक डॉ. गुप्ता पूरे आत्म विश्वास के साथ जटिल परिस्थितियों में भी ट्रंक्युलाइज ऑपरेशन रेस्क्यू कार्य सफलता पूर्वक पूरा करते हैं।

टीम वर्क से मिलती है कामयाबी: डॉ. गुप्ता

वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता का कहना है कि पन्ना में बाघ पुनस्र्थापना योजना को मिली शानदार कामयाबी के पीछे सक्षम और ईमानदार नेतृत्व तथा अधिकारियों व कर्मचारियों में टीम वर्क की भावना का होना है। बाघ पुनस्र्थापना योजना की कामयाबी के सूत्रधार तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति की बाघों व वन्य प्रांणियों के प्रति निष्ठा तथा उनकी कड़ी मेहनत और लगन से टाइगर रिजर्व का पूरा अमला प्रेरणा व ऊर्जा पाता रहा  है, नतीजतन कामयाबी की नित नई इबारत यहां लिखी जा रही है। बीते 9 सालों में यहां पर बाघों का कुनबा इतनी तेजी से बढ़ा है कि अब पन्ना के बाघ इस जिले की सीमा को पार करते हुये दूर-दूर तक अपनी मौजूदगी प्रकट करने लगे हैं। इसी तरह  से यदि यहां बाघों की वंशवृद्धि होती रही तो पन्ना के बाघ पूरे विन्ध्यांचल के जंगल में विचरण करते नजर आयेंगे।
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बाघिन पी-222 को सफलतापूर्वक किया गया रेडियो कॉलर

  •   बाघिन टी-2 के दूसरे लिटर की दूसरी संतान है पी-222
  •   वर्ष 2014 में बाघिन को  पहनाया गया था  रेडियो कॉलर



अरुण सिंह,पन्ना। पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघिन टी-2 के दूसरे लिटर की दूसरी संतान पी-222 का सफलतापूर्वक रेडियो कॉलर बदला गया है।  इस बाघिन को वर्ष 2014 में रेडियो कॉलर पहनाया गया था एवं रेडियो कॉलर के द्वारा निरन्तर बाघिन की मॉनिटरिंग भी की जा रही थी परन्तु रेडियो कॉलर की अवधि पूर्ण होने के कारण विगत दो वर्षो से कॉलर के सिग्नल काफी कमजोर हो गये थे जिसके कारण बाघिन की मॉनिटरिंग में कठिनाई आ रही थी। पी-222 को रेडियो कॉलर पहनाने हेतु कई बार प्रयास किया गया किन्तु उसके दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में विचरण करने के कारण संभव नहीं हो सका था। प्रबन्धन द्वारा काफी समय से उचित लोकेशन की तलाश की जा रही थी।
क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने जानकारी देते हुये बताया कि परिक्षेत्र चन्द्रनगर में पी-222 के उचित स्थान पर होने की जानकारी प्राप्त होते ही तत्काल रेडियो कालर पहनाने हेतु निर्धारित टीम को रवाना किया गया। पी-222 के रेडियो कॉलरिंग की कार्यवाही शुक्रवार 15 मार्च को निर्विघ्न दोपहर 1 बजे पूर्ण की गई। कार्यवाही के उपरान्त पी-222 की गतिविधियां सामान्य हैं एवं नये कॉलर के साथ सुचारु मानीटरिंग हो रही है। यह सम्पूर्ण कार्यवाही क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के नेतृत्व में की गई। सम्पूर्ण तकनीकी कार्य डॉ. संजीव कुमार गुप्ता के द्वारा किया गया। इस कार्य में जरांडे ईश्वर रामहरी उप संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व ने प्रशासनिक व्यवस्था उपलब्ध कराने का कार्य किया। रेडियो कॉलरिंग का कार्य नवीन कुमार शर्मा एवं तकनीकी सहयोग तफसील खां द्वारा किया गया। इस सम्पूर्ण कार्यवाही में श्रीमती प्रतिभा शुक्ला सहायक संचालक मड़ला एवं भुवनेश कुमार योगी परिक्षेत्र अधिकारी चन्द्रनगर ने मौके पर उल्लेखनीय प्रशासनिक एवं व्यवस्थागत सहयोग प्रदान किया। पी-222 की सर्चिंग में हाथी महावतों का विशेष योगदान रहा।
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Friday, March 15, 2019

भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है खजुराहो सीट



  •   चुनाव में भावनात्मक मुद्दों के आगे हासिये पर चला जाता है विकास का मुद्दा
  •   भाजपा को लगातार मिल रही जीत के बावजूद क्षेत्र पिछड़ा और उपेक्षित



अरुण सिंह,पन्ना, 14 मार्च 19। तीन जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले खजुराहो संसदीय क्षेत्र में भी चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई है। यह लोकसभा क्षेत्र पन्ना जिले के पवई, पन्ना व गुनौर, कटनी जिले के विजयराघवगढ़, मुड़वारा व बहोरीबंद तथा छतरपुर जिले के चंदला व राजनगर विधानसभा क्षेत्र तक फैला है। लोकसभा परिसीमन के पूर्व पन्ना जिले की तीनों विधानसभा दमोह लोकसभा क्षेत्र में शामिल थीं। उस समय दमोह-पन्ना- संसदीय क्षेत्र में मलहरा, नोहटा, दमोह, पथरिया, हटा, पन्ना, अमानगंज व पवई विधानसभा आती थीं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का यह पूरा इलाका बीते लगभग ढाई दशक से भाजपा का मजबूत गढ़ बना हुआ है। पन्ना-दमोह संसदीय क्षेत्र में वर्ष 1989 से लेकर 1999 तक लगातार भाजपा का कब्जा रहा, यहां से लगातार चार बार 1991 से 1999 तक रामकृष्ण कुसमरिया चुनाव जीतकर सांसद रहे हैं। परिसीमन के बाद जिला खजुराहो संसदीय क्षेत्र में शामिल हो गया और यहां भी वर्ष 2004 से लेकर 2014 तक लगातार भाजपा प्रत्याशी को ही जीत हासिल हुई है।
उल्लेखनीय है कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र में बाहुबल व जातिवाद का बोलबाला रहता है। चुनाव के समय विकास का मुद्दा आमतौर पर हासिये पर ही रहता है। यही वजह है कि चुनाव जीतने के बाद इस क्षेत्र के सांसदों ने विकास व क्षेत्र की मूलभूत समस्याओं के निराकरण में विशेष रूचि नहीं ली। इस क्षेत्र से डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया लगातार चार बार सांसद चुने गये और मजबूत जातिगत समीकरणों के चलते कांग्रेस के रसूख वाले सवर्ण प्रत्याशियों व पूंजीपतियों को पटकनी देते रहे हैं। बावजूद इसके विकास के नाम पर इन्होंने क्षेत्र को ऐसी कोई बड़ी सौगात नहीं दी है, जिससे उन्हें याद रखा जा सके। डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया के बाद चन्द्रभान सिंह लोधी ने कांग्रेस प्रत्याशी तिलक सिंह  लोधी को हराया और सांसद चुने गये। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव से इस क्षेत्र की कमान पिछड़ा वर्ग से छूटकर सवर्णों के हाँथ में पहुँची। खजुराहो सीट से 2009 में भाजपा प्रत्याशी जीतेन्द्र सिंह बुन्देला ने कांग्रेस के राजा पटेरिया को कड़े मुकाबले में 28 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। इस चुनाव में जीतेन्द्र सिंह बुन्देला को 2,29,369 मत मिले जबकि निकटतम प्रतिद्वन्दी कांग्रेस के राजा पटेरिया को 2,01,037 मत प्राप्त हुये थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर ने कांग्रेस को फिर शिकस्त दे दी। इस बार यहां से भाजपा ने बघेलखण्ड के क्षत्रिय नेता नागेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाया जबकि कांग्रेस ने फिर राजा पटेरिया पर ही विश्वास जताया। इस चुनाव में बघेलखण्ड व बुन्देलखण्ड का मुद्दा भी गर्माया तथा नागेन्द्र सिंह को बाहरी प्रत्याशी बताया गया, बावजूद इसके मोदी लहर ने भाजपा के कथित बाहरी प्रत्याशी को रिकार्ड मतों के अन्तर से जीत दिलाई।

क्षेत्र को अब सक्षम नेतृत्व की दरकार

विकास के मामले में हमेशा से उपेक्षित रहे इस क्षेत्र को अब सक्षम नेतृत्व की दरकार है। पूर्व में यहां जातिगत समीकरणों के आधार पर चुनाव परिणाम आने से यह इलाका पिछड़ा और उपेक्षित रहा है। यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुँचने वालों ने क्षेत्र के विकास में कोई रूचि नहीं ली, लोकसभा में भी यहां के लोगों की आवाज नहीं उठाई। सिर्फ चुनाव के समय भावनात्मक मुद्दे उछालकर लोगों की भावनाओं का दोहन किया गया। यहां से चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र को बड़ी सौगात देना तो दूर सांसद निधि का भी पूरा उपयोग करने में लापरवाही दिखाई, नतीजतन यह इलाका खासकर पन्ना जिला की हालत जस की तस बनी रह गई। अब इस संसदीय क्षेत्र के लोगों को ऐसे नेतृत्व की दरकार है जो यहां के पिछड़ेपन को दूर करने में सक्षम हो। लोगों की यह अभिलाषा वर्ष 2019 के इस लोकसभा चुनाव में पूरी हो पायेगी या नहीं, यह आने वाला समय बतायेगा।
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Monday, March 11, 2019

सूखते तालाबों पर तेजी से हो रहा अतिक्रमण

  •   492 एकड़ वाला पन्ना का लोकपाल सागर मैदान में तब्दील
  •   मौजूदा समय इसी तालाब से शहर में हो  रही  पेयजल की आपूर्ति


तेजी के साथ सूख रहा  पन्ना के लोकपाल सागर तालाब का दृश्य।

 अरुण सिंह, पन्ना। मन्दिरों और तालाबों का शहर पन्ना आबादी बढऩे के साथ-साथ तेजी से फैल रहा  है । शहर के चारों तरफ जंगल व पहाड़ होने के कारण शहर को अपने पांव पसारने के लिये जितनी जमीन चाहिये वह नहीं  है । इन हालातों में बढ़ती आबादी का पूरा दबाव शहर के प्राचीन तालाबों व मन्दिरों की जमीन पर पड़ रहा  है । राजाशाही  जमाने में निर्मित पन्ना के प्राचीन जीवनदायी तालाबों में तेजी के साथ बस्तियों का विस्तार हो  रहा  है, जिससे इन तालाबों का अस्तित्व सिमटता जा रहा  है । इस वर्ष भीषण सूखा पडऩे के कारण तालाब सूखकर सपाट मैदान में तब्दील हों  गये हैं  जिससे शहर में अभी से पेयजल संकट भी गहराने लगा  है।
उल्लेखनीय  है कि लोकपाल सागर तालाब पन्ना शहर के प्रमुख तालाबों में से एक  है। इस विशाल तालाब के पानी से आस-पास के कई ग्रामों की खेती जहां  सिंचित होती रही   है वहीं  पन्ना शहर के स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति भी की जाती रही   है। लेकिन इस वर्ष लोकपाल सागर तालाब में पानी की उपलब्धता कम होने के कारण खेतों की सिंचाई पर रोक लगा दी गई थी। सिंचाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बावजूद लोकपाल सागर का अधिकांश हिस्सा पूरी तरह से सूखकर मैदान में तब्दील हो  चुका  है। तालाब में शेष बचे पानी से पन्ना शहर को कितने दिनों तक पेयजल की आपूर्ति की जा सकेगी, मौजूदा व्यवस्थाओं को देखते हुये कुछ कह पाना मुश्किल  है। यदि पेयजल की बड़े पैमाने पर हो  रही  बर्बादी को नहीं  रोका गया तो आने वाले अप्रैल व मई के महीने में पन्ना शहर में पानी के लिये त्राहि-त्राहि मच सकती  है।

आखिर क्यों नहीं  भरते तालाब


तालाब के पानी से अपनी प्यास बुझाते मवेशी।
पन्ना शहर के तीनों प्रमुख तालाब लोकपाल सागर, धरमसागर व निरपत सागर के निर्माण हेतु तत्कालीन पन्ना नरेशों ने स्थल का चयन इतना उम्दा किया था कि दो-तीन बार तेज बारिश होने पर ही  तालाब लबालब भर जाते थे। इसके लिये उस समय ऐसी व्यवस्थायें की गई थीं कि 10-12 किमी दूर तक का पानी सिमटकर इन तालाबों में पहुँचता था। किलकिला फीडर की नहर से धरमसागर सहित लोकपाल सागर तालाब में भी बारिश का पानी पहुँचता था। लेकिन अब तालाबों को भरने की पुरानी सभी व्यवस्थायें व संरचनायें ध्वस्त हो  चुकी हैं , जिससे बारिश में तालाब भर ही  नहीं  पाते और लगातार अतिक्रमण के चलते सिकुड़ते जा रहे  हैं ।

किलकिला फीडर की नहर में बन गये घर

किलकिला फीडर धरमसागर व लोकपाल सागर तालाब को भरने का प्रमुख जरिया था, जिसका अब वजूद ही  खत्म कर दिया गया  है। किलकिला फीडर की नहर धरमसागर तालाब के किनारे से होते हुये लोकपाल सागर तालाब तक पहुँचती थी। लेकिन बीते दो-तीन दशक के दौरान इस नहर के ऊपर कच्चे व पक्के सैकड़ों मकान बन गये हैं , जिसके कारण नहर के जरिये तालाबों में जाने वाला पानी पूरी तरह ठप्प हो  गया  है। यही  वजह है कि सैकड़ों एकड़ सिंचाई करने की क्षमता वाला यह तालाब सिंचाई पर रोक के बावजूद मार्च के महीने में ही  सूखने की कगार पर जा पहुँचा  है। इसे बिडम्बना ही  कहा  जायेगा कि शहर के जीवन का आधार तालाबों का पहले अतिक्रमण करके गला घोंटा गया और अब इन सूखे तालाबों को गंदगी और कचरे से पाटा जा रहा  है। यही  पानी शहरवासियों के लिये पेयजल हेतु सप्लाई किया जाता है।
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Sunday, March 10, 2019

ग्रेनाइट चट्टानों की कन्दराओं में केन नदी का अलौकिक सौन्दर्य


रनेह जल प्रपात में केन नदी की ग्रेनाइट चट्टानों के अलौकिक सौन्दर्य का नजारा। फोटो - अरुण सिंह 

।।अरुण सिंह, पन्ना।। 
हरी-भरी पहाडिय़ों व घने जंगलों के बीच से गुजरने वाली केन नदी देश की कुछ गिनी-चुनी नदियों में से एक है जो औद्योगिक प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त है। पन्ना जिले में लगभग 145 मील का लम्बा सफर तय करने के बाद केन नदी उ.प्र.में प्रवेश कर यमुना नदी में जाकर मिलती है.इस अनूठी नदी को पन्ना टाइगर रिजर्व की जीवन रेखा भी कहा जाता है।
सघन वन क्षेत्र से प्रवाहित होने वाली इस पैराणिक नदी की लहरों ने अनेक ऐतिहासिक परिवर्तन देखे हैं। आज भी इसकी एक-एक चट्टान अपना सिर उठाकर अपनी ऐतिहासिक महत्ता को घोषित करती है। प्रकृति ने भी    केन नदी को अदभुत  कारीगरी के साथ सजाया और संवारा है। रनेह फाल केन घडियाल अभ्यारण्य में इस नदी का अनुपम सौन्दर्य देखते ही बनता है। विश्व के सुप्रसिद्घ रहस्यदर्शी ओशो अपनी पुस्तक सहज योग में जबलपुर के भेड़ाघाट की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि मेरे हिसाब में शायद पृथ्वी पर इतनी सुन्दर कोई दूसरी जगह नहीं है.दो मील तक नर्वदा संगमरमर की पहाडिय़ों के बीच से बहती है.नदी के दोनों तरफ संगमरमर की पहाडिय़ों का अलौकिक सौन्दर्य हजारों ताजमहल के सौन्दर्य जैसा है। उन्होने जिक्र किया है कि वे अपने एक वृद्घ प्रोफेसर को जब पहली बार भेडाघाट लेकर गये तो वे अद्भुत नजारा देख आनंद से रोने लगे। जब नाव में बिठाकर उन्हें अन्दर ले गया तो वह कहने लगे कि यह जो मैं देख रहा हूँ , यह सच में है ? क्यों कि मुझे सपना जैसा प्रतीत होता है। उन्होने नाव को किनारे लगवाया और संगमरमर की पहाडिय़ों को अपने हांथों से छूकर देखा।


जबलपुर का भेडाघाट निश्चित ही बहुत अदभुत जगह है,लेकिन विश्व प्रसिद्घ पर्यटन स्थल खजुराहो से 20 किमी.दूर केन नदी का रनेह फाल भी कुछ कम नहीं है। इस स्थल में संगमरमर की पहाडिय़ां तो नहीं हैं.लेकिन लाल व काले ग्रेनाइट पत्थरों के बीच लगभग 200 फिट नीचे से प्रवाहित केन नदी का अलौकिक सौन्दर्य किसी को भी मोहित करने की क्षमता रखता है। खजुराहो आने वाले देशी व विदेशी पर्यटक केन घडियाल अभ्यारण्य देखने जरूर जाते हैं। यह अभ्यारण्य यूँ  तो वर्ष भर पर्यटकों के लिए खुला रहता है किन्तु अभयारण्य में स्थित केन नदी के रनेह जल प्रपात की अनुपम छटा वर्षा ऋतु में देखते ही बनती है। आग्रेय चट्टानों में बने इस अनोखे प्रपात तथा नदी में आगे निर्मित कन्दराओं के सौन्दर्य को देख पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। केन नदी पन्ना जिले के अन्तर्गत विन्ध्याचल की भाण्डेर पर्वत श्रेणी से निकलती है और पवई,सिमरिया,अमानगंज व पन्ना टाइगर रिजर्व से होते हुए बांदा के आगे चिल्ला के पास यमुना में मिल जाती है। बारिश के मौसम में केन का रूप बहुत ही विकराल हो जाता है पर अन्य महीनों में बड़े-बड़े पत्थरों व काली चट्टानों के नीच नदी दुबकी सी दिखाई देती है।


जिले से प्रवाहित होने वाली केन की पांच सहायक नदिया भी हैं। उक्त पांचों सहायक नदियों के पानी को लेकर केन नदी अमानगंज के पास पंडवन में पत्थरों को फोडकर जमीन के अन्दर चली जाती है। लगभग एक मील तक यहां केन नीचे ही बहती है फिर गोहान पहाड़ के पास ऊपर आती है। एक किवदंती के अनुसार प्रवास काल में पाण्डव इस स्थल में भी आये थे और वे केन की धार रोककर बैठ गये। केन ने उन्हें बहाना उचित नहीं समझा और वह पत्थरों को फोडकर जमीन में समा गई। यहां अनेको पत्थर मोम की तरह पिघले नजर आते हैं। यहां पत्थरों में अनगिनत छिद्र हो गये हैं,उन्हीं छिद्रों से पानी की धारा नीचे जाती है। केन नदी का पाट विशाल चलनी के रूप में दिखाई देता है। देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन चुके पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र से होकर 55 किमी.की लम्बाई में केन नदी प्रवाहित होती है। केन नदी के बहने से टाइगर रिजर्व की खूबसूरती में चार चांद लग गया है। केन नदी सही अर्थो में देखा जाये तो पन्ना टाइगर रिजर्व की जीवन रेखा है.

                                        

Friday, March 8, 2019

साम्राज्य के लिए गोह में भी होता है संघर्ष

  • बाघ की भांति करता है इलाके का निर्धारण 
  • इस वन्य जीव के पंजे होते हैं शक्तिशाली 


दो नर गोहों के बीच हुये आपसी संघर्ष का द्रश्य। 

अरुण सिंह, पन्ना। जंगल में अपने साम्राज्य (टेरीटोरी) का निर्धारण करने के लिए सिर्फ बाघों के बीच ही संघर्ष नहीं होता. जंगल के राजा की तर्ज पर अन्य दूसरे वन्य जीव भी अपना इलाका बनाते हैं और इसके लिए उनके बीच भीषण लड़ाई भी होती है। सरीसृप वर्ग के वन्य जीव गोह में भी बाघ की तरह अपनी टेरीटोरी बनाने तथा अधिक से अधिक मादाओं को अपने नियंत्रण में रखने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
उल्लेखनीय है कि प्रकृति की गोद में हर वन्य प्रांणी के रहने तथा जीवन जीने का तरीका अनूठा और विचित्र होता है। छिपकली प्रजाति के वन्य जीव गोह जिसे मानीटर लिजार्ड भी कहते हैं, उसकी जीवन शैली बाघ की प्रकृति से मिलती जुलती प्रतीत होती है। लगभग ढाई से तीन फिट लम्बा तमाम खूबियों वाला यह विचित्र वन्य जीव बारिश के मौसम में ज्यादा नजर आता है। नर गोह बरसात प्रारंभ होते ही मैटिंग के लिए मादा गोहों की ओर आकर्षित होता है. इस दौरान नर गोह की टेरीटोरी में रहने वाली मादा गोहों के पास दूसरे नर गोह के आने पर दोनों नरों के बीच अस्तित्व कायम रखने के लिए भीषण संघर्ष होता है। शक्तिशाली नर गोह जो संघर्ष में जीत हासिल करता है, टेरीटोरी में उसी की हुकूमत चलती है तथा वही इस टेरीटोरी की मादाओं से मैटिंग करता है।
पन्ना टाइगर रिजर्व के सहायक संचालक रहे  एम.पी. ताम्रकार ने बताया कि गोह के पंजे अत्यधिक शक्तिशाली होते हैं तथा पेड़ या दीवाल में चिपक जाने पर इसे निकालना मुश्किल होता है। इस मांसाहारी वन्य जीव की जीभ काफी लम्बी और सांप की तरह दो भागों में बंटी होती है। राजाशाही जमाने में गोह का उपयोग ऊंचे स्थानों व किलों आदि में चढऩे के लिए सैनिक भी करते थे। श्री ताम्रकार ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में गोह प्रचुर संख्या में हैं तथा यहाँ  इनके बीच होने वाले संघर्ष के दुर्लभ नजारे यदा - कदा दिखाई दे जाते हैं। नर गोहों के बीच टेरीटोरी के लिए हुए संघर्ष का बेहद दुर्लभ नजारा  भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के रिसर्चर रवि परमार ने कुछ वर्ष पूर्व अपने कैमरे में कैद किया था , जिसमें गोहों की जीवन शैली व प्रकृति की झलक मिलती है।

Sunday, March 3, 2019

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना के पूरे हुये 10 वर्ष

  •   बांधवगढ़ से 4 मार्च 2009 को पन्ना आई थी पहली बाघिन
  •   बीते 10 वर्षों में यहां 77 से अधिक शावकों का हुआ जन्म
  •   पालतू अर्धजंगली बाघिनों को जंगली बनाने का भी हुआ सफल प्रयोग


पन्ना टाईगर रिजर्व का मड़ला स्थित प्रवेश द्वार।

अरुण  सिंह,पन्ना। म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व की बाघ पुनर्स्थापना  योजना के एक दशक पूरे हो गये हैं। इन दस वर्षों के सफर में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने में यहां जो करिश्मा घटित हुआ है, वह अपने आप में एक मिशाल है। बाघ पुनर्स्थापना योजना को सफलता की नई ऊँचाईयां प्रदान कर बाघों की दुर्लभ और विलुप्त होती प्रजाति को बचाने के लिहाज से पन्ना ने दुनिया को एक नई राह दिखाई है। सदियों से बाघों के प्रिय रहवास स्थल रहे पन्ना के जंगल वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो गये थे। बाघों के प्राकृतिक रहवास सूने हो गये थे, जिन गुफाओं और सेहों में वनराज की दहाड़ गूँजती थी, वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। कहते हैं कि जब बाघ की दहाड़ धुंधलके में गूँजती है तब प्रकृति भी अंगड़ाई लेकर जीवन्त हो उठती है। लेकिन वनराज की विदाई होने के साथ ही यहां के जंगल में पक्षियों के गीत भी शोक गीत में तब्दील हो गये थे। लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना की कामयाबी ने पन्ना के खोये हुये वैभव को वापस लौटा दिया है। अब यहां का जंगल वनराज की दहाड़ और शावकों की अठखेलियों से गुलजार है।
उल्लेखनीय है कि बाघ विहीन होने के बाद पन्ना टाईगर रिजर्व को फिर बाघों से आबाद करने के लिये वर्ष 2009 में पन्ना बाघ पुनस्र्थापना योजना शुरू की गई, जिसके तहत बांधवगढ़ से 4 मार्च 2009 को पहली बाघिन पन्ना लाई गई। इस युवा बाघिन को हिनौता रेन्ज के बडग़ड़ी में लोहे की जालियों से बनवाये गये विशेष इन्क्लोजर में रखा गया। दूसरी बाघिन कान्हा टाईगर रिजर्व से 9 मार्च को वायु सेना के हेलीकाप्टर द्वारा लाई गई।  प्रजनन क्षमता वाली इन दो युवा बाघिनों के पन्ना पहुँचने के बाद यहां का इकलौता बचा नर बाघ लापता हो गया। फलस्वरूप बाघों को आबाद करने की योजना पर प्रश्र चिह्न लग गया। बांधवगढ़ और कान्हा से पन्ना लाई गईं दोनों युवा बाघिन को इन्क्लोजर से मुक्त कर खुले जंगल में विचरण के लिये छोड़ दिया गया, लेकिन जंगल में उन्हें कोई जीवन साथी न मिलने के कारण वे कई माह तक तनहाई में ही जीवन गुजारने को मजबूर हुईं। इस दौरान पार्क प्रबन्धन द्वारा जंगल का चप्पा-चप्पा छनवाया गया, लेकिन कहीं भी नर बाघ की मौजूदगी के कोई चिह्न नहीं मिले।

पेंच टाईगर रिजर्व से आया था नर बाघ


नर बाघ टी-3 जिसने पन्ना को फिर से किया आबाद।

बांधवगढ़ और कान्हा से ब्रीडिंग क्षमता वाली दो युवा बाघिनों को पन्ना लाने के उपरान्त जब कई महीनों की तलाश में भी यहां नर बाघ की मौजूदगी के कोई चिह्न नहीं मिले, तब बाहर से एक नर बाघ पन्ना लाने की योजना बनी ताकि बाघों के उजड़ चुके संसार को बसाया जा सके। योजना के तहत पेंच टाईगर रिजर्व से युवा बाघ टी-3 को सड़क मार्ग से 6 नवम्बर 2009 को पन्ना लाया गया। पूरे एक सप्ताह तक बडग़ड़ी स्थित इन्क्लोजर में रखा गया और 14 नवम्बर को इसे खुले जंगल में विचरण के लिये छोड़ दिया गया। नये और अजनबी माहौल में यह बाघ कुछ दिनों तक तो भटका, लेकिन जब उसे यहां की आबोहवा रास नहीं आई तो वह अपने रहवास की तलाश में निकल पड़ा। पन्ना टाईगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति के नेतृत्व में वन अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम निरन्तर इस बाघ का पीछा करती रही और 25 दिसम्बर 2009 को इसे दमोह जिले के तेजगढ़ जंगल में बेहोश कर फिर पन्ना लाया गया। यह बाघ पन्ना के जंगल में रुके और वंश वृद्धि में योगदान दे, इसके लिये अभिनव तरीका खोजा गया जो कामयाब रहा। बाघिन टी-1 से इस बाघ की मुलाकात हुई और पन्ना बाघ पुनस्र्थापना की सफलता की कहानी यहीं से शुरू हुई।

बांधवगढ़ की बाघिन ने जन्मे चार शावक


बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 अपने शावकों के साथ।

पन्ना की पटरानी के नाम से चॢचत बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को धुंधुवा सेहा में जब चार नन्हे शावकों को जन्म दिया तो पन्ना टाईगर रिजर्व के अधिकारी व वन अमला खुशी से झूम उठा। इन नन्हें मेहमानों के आने से पन्ना टाईगर रिजर्व का सूना पड़ा जंगल गुलजार हो गया। बाघिन टी-1 के इन्हीं शावकों का जन्म दिन हर साल 16 अप्रैल को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को सफलता की नई ऊँचाईयों तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाने वाले वन अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति ने नन्हे शावकों का नामकरण करते समय इस बात का ध्यान रखा ताकि पन्नावासियों का आत्मीय नाता हमेशा यहां जन्मे बाघों के साथ कायम रहे। कान्हा से पन्ना आई बाघिन टी-2 को सफलतम रानी कहा जाता है। इस बाघिन ने पहली बार अक्टूबर 2010 में चार शावकों को जन्म दिया था। बाघों की वंशवृद्धि में इस बाघिन का अतुलनीय योगदान रहा है। पन्ना में जन्मे बाघों का लगभग एक तिहाई कुनबा इसी बाघिन का है।

पालतू बाघिन ने पन्ना में रचा इतिहास


बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना में अनाथ और पालतू बाघिनों को जंगली बनाने का करिश्मा भी घटित हुआ। कान्हा से लाई गई दो पालतू अर्धजंगली बाघिनों ने पन्ना आकर यहां खुले जंगल में नैसर्गिक  जीवन जीने का न सिर्फ सलीका सीखा अपितु नन्हे शावकों को जन्म देकर एक नया इतिहास भी रच दिया। पालतू बाघिनों को जंगली बनाने का पूरी दुनिया में यह पहला अनूठा प्रयोग था, जिसकी कामयाबी से जंगल की निराली दुनिया में एक नया आयाम स्थापित हुआ। हर किसी को आश्चर्य चकित कर देने वाली यह कामयाबी तत्कालीन वन अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति व विक्रम  सिंह  परिहार जैसे लोगों की अथक मेहनत और जुनून के चलते संभव हुई।

अब तक जन्मे 77 से अधिक बाघ शावक  


पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू होने के बाद वर्ष 2009 से अब तक बीते 10 वर्षों में 77 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हो चुका है। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में 40 से भी अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं। बाघों की संख्या के मामले में पन्ना टाईगर रिजर्व में अब तक का यह उच्च शिखर है। यहां पर बाघों की निरंतर वंश वृद्धि होने के चलते कई बाघ कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर बफर व टेरीटोरियल में विचरण करते हुये अपने लिये अनुकूल वन क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं। कोर क्षेत्र से बाहर विचरण कर रहे बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करना मौजूदा समय सबसे बड़ी चुनौती है।
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Friday, March 1, 2019

हाई स्कूल बोर्ड परीक्षायें आज से होंगी शुरू

  •  जिले में कुल 47 केन्द्रों में आयोजित होंगी परीक्षायें
  •  15340 नियमित व 913 स्वाध्यायी परीक्षार्थी होंगे शामिल



जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय।
अरुण सिंह,पन्ना। माध्यमिक शिक्षा मण्डल म.प्र. भोपाल द्वारा संचालित हाई स्कूल बोर्ड परीक्षाओं का आगाज 1 मार्च  शुक्रवार से हो रहा है, जिसकी जिले में पूरी तैयारियां की गई हैं। हाई स्कूल बोर्ड परीक्षाओं के लिये पन्ना जिले में कुल 47 परीक्षा केन्द्र बनाये गये हैं, जहां 15 हजार 340 नियमित छात्र व 913 स्वाध्यायी छात्र परीक्षा दे सकेंगे। बोर्ड परीक्षाओं को शान्तिपूर्ण माहौल में नकल मुक्त सम्पन्न कराने के लिये प्रशासन व शिक्षा विभाग द्वारा माकूल इंतजाम किये गये हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी कमल सिंह  कुशवाहा ने जानकारी देते हुये बताया कि हमारी प्राथमिकता और पूरा प्रयास यह रहेगा कि परीक्षा में बैठने वाले छात्र तनाव मुक्त होकर परीक्षा में बैठें तथा परीक्षा के दौरान किसी भी प्रकार के अनुचित साधनों का उपयोग न करें। जिले के सभी परीक्षा केन्द्र प्रभारियों को इस आशय के निर्देश दिये गये हैं कि नकल पर प्रभावी अंकुश के लिये कारगर कदम उठायें। परीक्षा केन्द्र में जाने से पूर्व प्रत्येक छात्र की तलाशी ले ली जाये ताकि परीक्षा के दौरान व्यवधान की स्थिति निॢमत न हो। श्री कुशवाहा ने बताया कि जिले के कलेक्टर मनोज खत्री ने विकासखण्ड स्तर पर एसडीएम के नेतृत्व में उडऩदस्ता दल का गठन किया है। यह दल पूरे जिले के परीक्षा केन्द्रों की सतत मॉनीटरिंग करेगा। इसके अलावा शिक्षा विभाग द्वारा भी ब्लाक व जिला स्तरीय निरीक्षण दल बनाया गया है। आपने कहा कि परीक्षा के दौरान अनावश्यक रूप से खाना तलाशी लेने से परहेज किया जायेगा ताकि परीक्षाॢथयों को व्यवधान उत्पन्न न हो, लेकिन नकल रोकने के लिये हरसंभव उपाय किये जायेंगे।
संवेदनशील व अति संवेदनशील परीक्षा केन्द्रों के संबंध में जानकारी देते हुये जिला शिक्षा अधिकारी ने बताया कि पन्ना जिले में कुल 7 परीक्षा केन्द्र संवेदनशील हैं। इनमें दो परीक्षा केन्द्र अति संवेदनशील घोषित किये गये हैं, जिनमें मनहर कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पन्ना व कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अजयगढ़ हैं। जिले में 5 संवेदनशील परीक्षा केन्द्र हैं, जिनमें बोरी, सिमरिया, सुनवानी, मोहन्द्रा, व खोरा के हैं। इन सभी परीक्षा केन्द्रों में नकल पर प्रभावी अंकुश लगाने तथा शान्तिपूर्ण वातावरण में परीक्षा सम्पन्न कराने के लिये सभी आवश्यक कदम उठाये गये हैं। श्री कुशवाहा ने बोर्ड परीक्षा में सम्मिलित होने वाले सभी परीक्षाॢथयों से अपील की है कि वे परीक्षा में अनुचित साधनों से परहेज करें तथा तनाव मुक्त होकर सहजता के साथ परीक्षा दें। आपने बताया कि विद्यार्थियों की मनोदशा के अनुरूप उनके मार्गदर्शन हेतु हेल्पलाइन सेवा भी आयोजित की जा रही है। प्रात: 8 बजे से रात्रि 8 बजे तक प्रतिदिन अवकाश दिवसों में भी संचालित की जा रही है। परीक्षार्थी इस सेवा का लाभ लेने के लिये टोल फ्री नम्बर 18002330175 के अलावा दूरभाष नं. 0755-2570248 का उपयोग कर सकते हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी ने बताया कि परीक्षाकाल में शासन द्वारा यदि कोई सार्वजनिक अथवा स्थानीय अवकाश घोषित किया जाता है तो भी परीक्षायें यथावत कार्यक्रमानुसार सम्पन्न होंगी। नियमित परीक्षार्थियों की प्रायोगिक परीक्षायें उनके विद्यालय में 12 फ रवरी से 26 फ रवरी के मध्य एवं स्वाध्यायी छात्रों की प्रायोगिक परीक्षायें उन्हें आवंटित परीक्षा केन्द्र में 7 मार्च से 31 मार्च के मध्य संचालित की जायेगी। इनकी तिथियां तथा समय ज्ञात करने के लिये प्राचार्य/केन्द्राध्यक्ष से सम्पर्क स्थापित रखा जाये। आवश्यकता पडने पर प्रायोगिक परीक्षायें अवकाश के दिनों में भी आयोजित की जा सकेंगी। परीक्षा केन्द्र पर समस्त परीक्षार्थियों को परीक्षा कक्ष में प्रात: 8.30 बजे उपस्थित होना अनिवार्य होगा। परीक्षा कक्ष में 8.45 बजे के पश्चात किसी भी छात्र को प्रवेश नही दिया जायेगा। प्रश्न पत्र पढने के लिये परीक्षा प्रारंभ होने के पूर्व 10 मिनट का अतिरिक्त समय दिया जायेगा। परीक्षार्थियों को परीक्षा प्रारंभ होने के 5 मिनट पूर्व उत्तर पुस्तिकायें वितरित की जायेंगी। प्रतिदिन थाना एवं परीक्षा केन्द्र पर केन्द्राध्यक्ष कलेक्टर प्रतिनिधि की उपस्थिति में प्रश्न पत्र के लिफ ाफे निकालने एवं खोलने की प्रक्रिया निर्देशानुसार पूर्ण करेंगे। मण्डल, आवश्यकता होने पर तिथि एवं समय में कभी भी बिना पूर्व सूचना के परिवर्तन कर सकता है किन्तु संचार माध्यमों से संसूचित करेगा।

परीक्षार्थी तनावमुक्त होकर दे परीक्षायें: कलेक्टर


कलेक्टर मनोज खत्री ने जिले के बच्चों से अपील करते हुये कहा है कि माध्यमिक शिक्षा मण्डल मध्य प्रदेश की बोर्ड परीक्षायें आज से प्रारंभ हो रही है। परीक्षा में भाग लेने वाले निश्चिंत होकर तनावमुक्त वातावरण में परीक्षा दें। हाईस्कूल/हायर सेकेण्ड्री की वार्षिक बोर्ड परीक्षा 1 मार्च से प्रारंभ हो रही है। उन्होंने कहा है कि बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों का आगे के केरियर में बहुत महत्व होता है। लेकिन केवल अंकों के आधार पर किसी की योग्यता एवं भविष्य का निर्धारण नही किया जाता है। प्रत्येक बच्चे के अन्दर विशिष्ट योग्यता एवं क्षमता है। खुद पर भरोसा रखते हुये अब तक की गयी तैयारी को दोहरा कर प्रसन्न चित होकर परीक्षा में बैठे। परीक्षा केन्द्र में किसी तरह की अनुचित सामग्री न ले जायें। परिणाम निश्चित ही बेहतर आयेंगे। उन्होंने सभी विद्यार्थियों को परीक्षाओं के लिये शुभकामनायें दी हैं।

संवेदनशील एवं अतिसंवेदशील परीक्षा केन्द्रों 144 धारा लागू

कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी मनोज खत्री द्वारा बोर्ड परीक्षाओं के सुचारू एवं शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कराने के लिये जिले के 47 बोर्ड परीक्षा केन्द्रों पर 144 धारा लागू कर दी है। इन केन्द्रों में कोई भी असामाजिक तत्व नकल आदि की गतिविधियां न कर सकें और परीक्षार्थी शांतिपूर्ण ढंग से निश्चिंत होकर परीक्षायें दे सकें। इन परीक्षा केन्द्रों में 100 गज की परिधि में परीक्षा कार्य में लगे अधिकारी, कर्मचारी तथा परीक्षार्थी के अलावा अन्य किसी व्यक्ति के लिये परीक्षा के दौरान प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा।कलेक्टर  ने आमजनता से अपील करते हुये कहा है कि जिले में शांति बनाये रखें। इस दौरान परीक्षार्थी या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा शांति भंग की गयी तो उसके विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही की जायेगी।
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संगमरमर का सोफा जिसमें बैठते थे पन्ना नरेश

  • डेढ़ सौ वर्ष पूर्व मकराना राजस्थान से आया था पन्ना 
  • महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने बनवाया था यह सोफा 


संगमरमर का आलीशान सोफा जिस पर बैठते थे पन्ना नरेश 
                                                     

 - अरुण सिंह -

पन्ना। बेशकीमती हीरों व अकूत संपत्ति के लिए प्रसिद्ध  पन्ना राजघराने  के  राज मन्दिर पैलेस  में मौजूद एक - एक चीज ऐतिहासिक महत्व और एन्टिक वैल्यू वाली है, लेकिन उनकी हिफाजत करने और सहेजकर रखने में किसी की रूचि नहीं है. पन्ना का आलीशान राजमहल भी समुचित देखरेख न हो पाने के कारण धीरे - धीरे अपनी शान खोता जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि राजाशाही खत्म हो जाने के बाद भी लम्बे समय तक राज मन्दिर पैलेस पन्ना सत्ता और शक्ति का केन्द्र रहा है. महाराजा नरेन्द्र सिंह जू देव के समय तक राजमहल की भव्यता और रौनक देखते ही बनती थी. दशहरे के अवसर पर महाराजा की मौजूदगी में महल के दरबार हाल में दशहरा मिलन समारोह आयोजित होता था. लेकिन अब यह दरबार हाल सूना पड़ा रहता है, यहां की ऊंची और कलात्मक दीवारों में मकड़ी के जाले नजर आ रहे हैं.  राजमंदिर पैलेस  में दुधिया संगमरमर का बेहद खूबसूरत एक आलीशान सोफा मौजूद  है जिसकी कारीगरी लाजवाब है. ऐतिहासिक महत्व के इस आलीशान सोफे में अब धूल जमी रहती है. राजाशाही जमाने में संगमरमर के जिस सोफे में बैठकर पन्ना नरेश आराम फरमाया करते थे, वह पैलेस  में पड़े धूल खा रहा है.
राजमहल के इस शानदार संगमरमरी सोफे की ऐतिहासिक महत्ता कम नहीं है. राजपरिवार के सदस्य पूर्व सांसद महाराज लोकेन्द्र सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि  जो संगमरमर का सोफा रखा है, उसे डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने बनवाया था. इस सोफे का निर्माण मकराना राजस्थान के कारीगरों ने किया था, वहीं से तैयार होकर यह राज मन्दिर पैलेस पन्ना में लाया गया था. लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि इसका संगमरमर उच्च क्वालिटी का है तथा नक्काशी लाजवाब है.  पूरे शानोशौकत के साथ हीरा खान बादशाह जब इस संगमरमरी सोफे पर बैठते रहे होंगे, तब इसकी शान देखते ही बनती रही होगी लेकिन अब उसमें धूल की परत जम रही है. इस सोफे के पुराने दिन फिर लौटेंगे या यह इसी तरह एकांत में पड़े धूल खाता रहेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.

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