Sunday, March 23, 2014

वनराज जिसने पन्ना में रच दिया इतिहास

  • पहले ली परीक्षा फिर आबाद की बाघों की नई दुनिया 

  • चार साल में बन गया फादर ऑफ दि पन्ना टाइगर रिजर्व 




अरुण सिंह , पन्ना। म.प्र. के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की नई दुनिया को आबाद करने वाला वनराज अब फादर ऑफ दि पन्ना टाइगर रिजर्व के खिताब का हकदार हो गया है. बाघ शावकों से गुलजार हो चुके पन्ना के जंगल में इस वनराज ने जो इतिहास रचा है वह बेमिशाल है. शून्य से सत्ताइस तक का सफर तय करने में पेंच के इस बाघ ने जो राह दिखाई है, बाघ पुर्नस्थापना योजना को मिली अनूठी कामयाबी उसी का प्रतिफल है.

उल्लेखनीय है कि पन्ना में बाघ पुर्नस्थापना योजना की शुरूआत मार्च 2009 में तब हुई, जब कान्हा व बांधवगढ़ से दो बाघिनों को यहां लाया गया. उस समय तक वन अधिकारियों का यह मानना था कि पन्ना के जंगल में एक नर बाघ मौजूद है. यही वजह था कि शुरूआत में सिर्फ दो बाघिनों को लाया गया. लेकिन जब इन बाघिनों को खुले जंगल में छोंड़ा गया तब तक पन्ना का बाघ लापता हो चुका था. ऐसी स्थिति में बाघों की वंश वृद्धि के लिए नर बाघ अन्यत्र से यहां लाने की योजना बनी और 7 नवम्बर 2009 को पेंच टाइगर रिजर्व से बाघ टी - 3 को लाया जाकर उसे इन्क्लोजर में रखा गया. यह वह समय था जब बाघों के खात्मा हो जाने को लेकर पन्ना टाइगर रिजर्व हर किसी के निशाने पर था. कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था कि बाहर से लाये गये ेबाघों से यहां वंश वृद्धि होगी और बाघों की नई दुनिया पन्ना के जंगल में फिर से आबाद होगी.
इस संदेह की असल वजह अतीत की गलतियां थीं जो वन अधिकारियों द्वारा की जाती रही हैं. यहां अतीत में जो गलतियां हुई हैं उनकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, इस बात की परीक्षा पेंच से पन्ना लाये गये बाघ ने भी बड़े ही अनूठे अंदाज में लिया. पेंच के इस बाघ ने एक माह से भी अधिक समय तक पार्क के अधिकारियों को हैरान और परेशान किया और अपने मूल ठिकाने की ओर साढ़े चार सौ किमी. की लम्बी यात्रा कर डाली. लेकिन पार्क के अधिकारियों ने भी हिम्मत नहीं हारी और पागलपन की हद तक इस बाघ का पीछा किया. इस लम्बी यात्रा में पेंच के इस बाघ ने वन अधिकारियों की हर तरह से न सिर्फ परीक्षा ली अपितु उनका ज्ञान वर्धन भी किया. इस बाघ ने अपने अनूठे संकेतों से सुरक्षा व बिगड़ते हुए कॉरीडोरों के संबंध में भी सवाल खड़े किये, जिससे वन अधिकारियों ने खासा सबक लिया. इतिहास रचने वाले इस वनराज को 25 दिसम्बर 2009 को बेहोश कर पुन: पन्ना लाया गया और 26 दिसम्बर को इसे पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में छोड़ दिया गया.

क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति बताते हैं कि पेंच का यह बाघ पन्ना से फिर कूच न करे, इसके लिए एक अभिनव युक्ति का प्रयोग किया गया. इस वनराज को आकर्षित करने के लिए बाघिन के यूरिन का जंगल में छिड़काव किया गया. इसका परिणाम यह हुआ कि चार दिन के भीतर ही बाघ टी - 3 व बाघिन टी - 1 की मुलाकात हो गई. बाघ व बाघिन के इस मिलन से पन्ना में नन्हें शावकों की नई पीढ़ी का आगमन हुआ और यह सिलसिला बाघिन टी - 2 व टी - 4 के साथ भी जारी रहा. मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व में नर व मादा मिलाकर कुल 27 बाघ हैं जो अपने आपमें एक मिशाल है.

रोमांचक यात्रा की दास्तान 

 ०  पेंच से आया बाघ 7 नवम्बर 2009 को पन्ना टाइगर रिजर्व के बाडे में पहुंचा, जिसे 13 नवम्बर को रेडियो कॉलर पहनाया गया. 

 ० 14 नवम्बर को उसे बाडे से निकालकर खुले जंगल में आजाद छोंड़ दिया गया, जो 27 नवम्बर को पन्ना से पेंच की तरफ कूच कर गया.
०  25 दिसम्बर को उसे फिर से पकड़ लिया गया और 26 दिसम्बर को दोबारा पन्ना टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया.
०  अपनी इस यात्रा में बाघ प्रतिदिन 15 से 50 किमी. तक चला, जिस जगह शिकार करता वहां तीन से चार दिन तक रूका.
०  यात्रा के दौरान चार भारतीय वन अधिकारियों ने बाघ टी - 3 का पीछा करने वाली टीम का नेतृत्व किया, टीम में 40 से 70 वनकर्मी, चार हांथी व 25 वाहन शामिल रहे.
०  बाघ ने केन, सुनार, बेबस और व्यारमा जैसी नदियों को तैरकर पार किया तथा रात में बटिया खेड़ा और गढ़ाकोटा जैसे कस्बों से होकर गुजरा