Monday, August 29, 2022

जंगल से भटककर घर में घुसा अजगर का बच्चा, रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ा

  • वनपरिक्षेत्र धरमपुर अंतर्गत ग्राम गहलोत पुरवा का मामला 
  • 8 फिट लंबा और 10 किलो वजनी था अजगर का यह बच्चा



।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। बाघों के लिये प्रसिद्ध पन्ना जिले के जंगलों में वनराज सहित विविध प्रकार के मांसाहारी व शाकाहारी वन्य जीव प्रचुर संख्या में पाये जाते हैं। पन्ना के घने जंगलों में रंग-बिरंगे पक्षियों के अलावा विभिन्न प्रजाति के सर्पों का भी भरा-पूरा और समृद्ध संसार है। बेहद जहरीले कहे जाने वाले किंग कोबरा व रसेल बाइपर सहित भारी भरकम अजगर भी पन्ना के जंगलों में अक्सर नजर आते हैं । सोमवार 29 अगस्त को अजयगढ़ क्षेत्र के गाँव गहलोत पुरवा में तक़रीबन 8 फ़ीट लम्बा अजगर का बच्चा एक घर में घुस गया। जिसे वन विभाग की रेस्क्यू टीम ने सुरक्षित पकड़कर जंगल में छोड़ दिया है। 

उल्लेखनीय है कि बारिश के मौसम में जंगल से लगे ग्रामों में विषैले सांप जहाँ अक्सर ही दिखाई देते हैं वहीं गुहेरा जैसे वन्य जीव भी जंगलों से निकलकर घरों व खेतों की ओर रुख करते हैं। जिससे इस मौसम में सर्प दंश की घटनाएं बढ़ जाती हैं। आमतौर पर जंगल में ही पाये जाने वाले विशालकाय सांप अजगर भी यदाकदा भटककर जंगल से लगे आसपास के ग्रामों में पहुँच जाते हैं। ऐसा ही वाकया अजयगढ़ थाना एवं वन परिक्षेत्र धरमपुर अंतर्गत ग्राम गहलोत पुरवा निवासी गोरे पाल के मकान में देखने को मिला। यहाँ आज 29 अगस्त को लगभग 8 फिट लंबा और 10 किलो वजनी अजगर का बच्चा घुस गया। घर के लोगों की नजर जब इस लम्बे सांप पर पड़ी तो उनके होश उड़ गए। आनन-फानन घर में सांप निकलने की सूचना वन महकमे के कर्मचारियों को दी गई फलस्वरूप फारेस्ट रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंचकर अजगर के बच्चे को पकड़ लिया और उसे सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया।  

रेस्क्यू टीम के सदस्य तथा हर तरह के साँपों को पकड़ने में माहिर मन्नान खान ने बताया कि यह अजगर अभी छोटा बच्चा है। वयस्क होने पर कुछ सालों बाद अजगर का यह बच्चा 15 से 20 फिट तक लंबा और 100 किग्रा से भी अधिक वजन का हो सकता है। मन्नान खान के मुताबिक अजगर सांप विषैला नहीं होता। यह अपने शिकार को पकड़कर सीधे निगल जाता है। गहलोत पुरवा गांव के इस घर में यह जंगल से भटक कर पहुंचा होगा जिसे सूचना मिलते ही रेस्क्यू कर जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया है। 

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Thursday, August 25, 2022

जिला पंचायत जल संरक्षण के लिए संकल्पित, जिला को बनायेगे पानीदार

  • पानी के एक-एक बूॅंद बचाना हमारा कर्तव्य: संतोष यादव
  • दो दिवसीय जल एवं स्वच्छता पर कार्यशाला आयोजित 

पानी की एक एक बूंद बचाने का संकल्प लेते हुए कार्यशाला के प्रतिभागी। 

पन्ना। जल एवं स्वच्छता कार्यक्रम का क्रियान्वयन समर्थन संस्था डब्लू.एच.एच के सहयोग से कर रही है। यह कार्यशाला कलेक्टर के निर्देशन में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सहयोग से किया गया। कार्यशाला में अंतर्विभागीय कर्मचारी एवं अधिकारी उपस्थिति रहे। कार्यशाला के समापन सत्र में जिला पंचायत के उपाध्यक्ष संतोष यादव ने कहा कि पानी की एक एक बूंद हमें बचानी होगी। उन्होने बताया कि हमने अपने घर में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग बनाया हुआ है। जहां हमारा बोर पहले सूख जाता था वहीं आज पानी बारह महीने मिल रहा है। सभी से चर्चा करते हुए उन्हाने कहा जिला पंचायत के सभी सदस्य आपको सहयोंग करेगे। हम लोग घर घर पानी एवं नल कनेक्सन के लिये काम करते हुए पानी के संरक्षण पर काम करेगे। पानी की कमी कभी नही आने देगे। 

समाज सेंवी महेन्द्र विद्वार्थी ने कहा कि  हम सबकी जिम्मेदारी है की हम अपने जल विरासत को बचाकर रखें। अभी से इस काम को करेगे ताकि जल संकट न आने पाये। लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के उपयंत्री अवस्थी जी ने आज जल जीवन मिशन के तकनीकी पक्ष को बहुत ही सरल शब्दो में प्रतिभागियों को बताया। जिला पंचायत से साक्षी टेकाम ने कहा कि  हमें सभी के सहयोग से जिले के इंडीकेटर को बेहतर करना होगा। अशीष विश्वास ने कहा कि  हमारा काम है कि हम सिस्टम को बेहतर बनाने में सहयोग करें ताकि गांव आत्मनिर्भर बनें। जिले में महीने में कराड़ो रूपये का जल कर आ सकता है हमें सही मोवालाईजेशन की आवश्यकता है। जब एक गांव से मोवाईल कम्पनी करोड़ों रूपये कमा सकती है तो हम अपना जल व्यवस्था का सिस्टम क्यों नही चला सकते। पूरी सम्भावना है और चल कर रहेगा हम आत्म निर्भर होगे ।


कार्यक्रम में  42 प्रतिभागी विभन्न विभागो से उपस्थिति रहे । स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन, लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, जल निगम,अटल भूजल, विराट संस्था, परमार्थ , पंचायत ग्रामीण विकास विभाग, जलसंसाधान विभाग ,आजिविका मिशन की टीम ने कार्यक्रम में भाग लिया। जल संकल्प से ईरादा मजबूत होता है - हम किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये पूरे मन से लगते है उसमें आस्था होती है तो सफलता मिलता है। घर घर जल संकल्प  से ही हम अपने मिशन को पूरा करने में सफल होगे । जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती मीना रजे , जिला पंचायत उपाध्यक्ष  एवं अतिरिक्त मुख्यकार्यपालन अधिकार अशोक चतुर्वेदी जी के साथ सभी प्रतिभागीयिो ने जल संरक्षण का संकल्प लिया ।

जिला जल एवं स्वच्छता मिशन   

जिले में जल जीवन मिशन के  क्रियान्वयन में जिला जल एवं स्वच्छता मिशन की भूमिका को रेखंकित करते हु जिला पंचायत उपाध्यक्ष ने कहा कि समिति नियमित काम की निगरानी करके जिले के सभी सांकेतांक को वेहतर करने में कोई कसर नही छोड़ेगी। कार्यशाला में समूह अभ्यास से निकले महत्वपूर्ण गैप को पूरा करने के लिये रिपोर्ट जिला जल एवं स्व्च्छता को सौपी जायेगी जिस पर आगे सब मिलकर काम करेगे।

समर्थन संस्था के अंकुर पाण्डेय ने कार्यशाला से निकले विन्दुओ को सभी के समक्ष रखा एवं आगे उस पर एक्शन प्लान बनाकर काम करने की बात कही। क्षेत्रीय समन्वयक ज्ञानेन्द्र तिवारी ने कहा कि  जल एवं स्वच्छता  हमारे जीवन का अभिन्न अंग है, हमारी पूरी टीम इस मिशन के प्रति समर्पित है। हमारे साथ जल मित्र का पूरा केडर है जों मिशन के लिये समर्पित है। लगातार प्रयास से हम जल श्रोतों को सतत बनाये रखने एवं जिले के प्रत्येक ग्राम का वाटर  बजट तैयार कर लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।

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गर्मियों के दौरान उत्तर भारत में सबसे ज्यादा जहरीली थी हवा, दिल्ली-एनसीआर रहा हॉटस्पॉट: सीएसई


 

01 मार्च से 31 मई के बीच राजस्थान के भिवाड़ी शहर में पीएम2.5 का स्तर सबसे ज्यादा बदतर था, जोकि औसत रूप से 134 माइक्रोग्राम प्रति वर्ग मीटर दर्ज किया गया था। इस साल गर्मियों में न केवल असामान्य रूप से गर्मी थी, बल्कि साथ ही देश के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर भी बहुत ज्यादा था। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि गर्मियों के दौरान देश में उत्तर भारत की हवा सबसे ज्यादा जहरीली थी। जहां पीएम2.5 का औसत स्तर 71 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 14 गुना ज्यादा था।

विश्लेषण से पता चला है कि पीएम2.5 का बढ़ता स्तर न केवल कुछ बड़े और खास शहरों तक ही सीमित है बल्कि अब वो एक राष्ट्रव्यापी समस्या बन चुका है। जानकारी मिली है कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र गर्मियों में प्रदूषण का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट था। मार्च 01 से 31 मई के बीच जहां भिवाड़ी में पीएम2.5 का स्तर सबसे ज्यादा बदतर था जो 134 माइक्रोग्राम प्रति वर्ग मीटर दर्ज किया गया था।

वहीं प्रदूषण का यह स्तर मानेसर में 119, गाजियाबाद 101, दिल्ली में 97, गुरुग्राम  में 94 और नोएडा में 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था। देखा जाए तो दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पीएम2.5 का यह स्तर दक्षिण भारतीय शहरों के औसत पीएम2.5 के स्तर का करीब तीन गुना था। देखा जाए तो इस दौरान देश के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 10 हरियाणा के थे।

विश्लेषण के मुताबिक गर्मियों के दौरान पूर्वी भारत में पीएम2.5 का स्तर 69 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जोकि उत्तर भारत के बाद देश में सबसे ज्यादा था। उसके बाद पश्चिम भारत में प्रदूषण का यह स्तर 54 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर, मध्य भारत में 46 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। वहीं इस दौरान पूर्वोत्तर भारत में प्रदूषण का यह स्तर 35 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और दक्षिण भारत में 31 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया।

यदि प्रदूषण के दैनिक उच्चतम स्तर की बात की जाए तो वो पूर्वी भारत में दर्ज किया गया, जोकि 168 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। इसके बाद उत्तर भारत में 142, पश्चिम भारत में 106, मध्य भारत में 89, पूर्वोत्तर भारत में 81और दक्षिण भारत में 65 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया।

बड़े शहरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी तेजी से बढ़ रही है प्रदूषण की समस्या

वहीं यदि शहरों की बात करें तो बिहार शरीफ में पीएम2.5 का दैनिक औसत स्तर सबसे ज्यादा था जो 285 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। वहीं रोहतक में यह 258, कटिहार में 245 और पटना में 200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था। कुल मिलकर देखा जाए तो इस बार गर्मियों में प्रदूषण का औसत स्तर पिछली गर्मियों की तुलना में कहीं ज्यादा रहा। वहीं उत्तर भारत ने पिछली गर्मियों की तुलना में पीएम2.5 के मौसमी स्तर में 23 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

प्रदूषण के यह आंकड़े एक बात तो स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि देश में प्रदूषण अब केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं रह गया है छोटे शहर भी इसके हॉटस्पॉट बन रहे हैं। यह बात 2022 में गर्मियों के दौरान देश के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में भी साफ-तौर पर नजर आती है, जिसमें राजस्थान का भिवाड़ी शहर सबसे प्रदूषित शहरों में सबसे ऊपर था।

सीएसई के अनुसार गर्मियों में प्रदूषण के इस ऊंचे स्तर के लिए न केवल वाहनों से निकला धुआं बल्कि उद्योग, बिजली संयंत्रों और अपशिष्ट पदार्थों को जलाने से पैदा हो रहा प्रदूषण भी इसके लिए जिम्मेवार था। इनके अलावा हवा में उड़ती धूल जो गर्म और शुष्क परिस्थितियों के चलते काफी बढ़ गई थी वो भी कहीं न कहीं इस बढ़ते प्रदूषण के लिए जिम्मेवार थी।

क्या है समाधान

इस बारे में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है कि, "यह विश्लेषण सभी क्षेत्रों में प्रदूषण के अनूठे पैटर्न पर प्रकाश डालता है। यह बड़ी संख्या में ऐसे कस्बों और शहरों की पहचान करता है जिन पर प्रदूषण के मामले में नीतिगत रूप से ध्यान नहीं दिया जा रहा है।"

उनका कहना है कि गर्मियों में प्रदूषण के बढ़ने के पीछे शुष्क परिस्थितियां के साथ भीषण गर्मी और तापमान भी वजह थे, जिनकी वजह से कहीं ज्यादा धूलकण लंबी दूरी तक यात्रा करते हैं।

ऐसे में सीएसई का कहना है कि इस बढ़ते प्रदूषण के जहर से बचने के लिए देश में सभी स्रोतों से होते उत्सर्जन में कटौती करने की जरुरत है, जिसके लिए कड़े कदम उठाने होंगें। इसके साथ ही मरुस्थलीकरण से निपटने, मिट्टी में स्थिरता लाने और वनावरण को भी बढ़ाने की जरुरत है। साथ ही शहरों में बढ़ती गर्मी के कहर से निपटने के साथ ही जंगल और फसलों में लगने वाली आग को रोकने के लिए भी बड़े पैमाने पर प्रयास करने की आवश्यकता है।

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Wednesday, August 17, 2022

भालू के जानलेवा हमले से भैंसों ने चरवाहे की बचाई जान

  • उत्तर वन मण्डल पन्ना अंतर्गत झलाई बीट के जंगल की है यह घटना
  • बच्चों वाली मादा भालू बेहद आक्रामक व स्वभाव से होती है खतरनाक

 मादा भालू के हमले में घायल रणधीर सिंह यादव पन्ना जिला अस्पताल में इलाज कराते हुए। 

।।  अरुण सिंह ।।    

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जंगल से जुडी एक विचित्र घटना प्रकाश में आई है। मंगलवार की शाम लगभग 5.30 बजे जंगल में अपनी भैंसों को चरा रहे चरवाहे के ऊपर बच्चों वाली एक मादा भालू ने अचानक जब प्राण घातक हमला किया तो वहीं पास चर रही भैंसें अपने मालिक को खतरे में देख उस खूंखार भालू से भिड़ गईं जिससे चरवाहे की जान बच गई। गंभीर रूप से घायल हो चुके चरवाहे को पन्ना जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहाँ उसका इलाज चल रहा है। मामला उत्तर वन मण्डल पन्ना अंतर्गत झलाई बीट का है।                      

भालू के हमले में घायल हुए चरवाहे रणधीर सिंह यादव 60 वर्ष निवासी झलाई के पेट, हाथ,व कूल्हे में गहरे जख्म हैं। चरवाहे के भतीजे राजेश यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि उनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन है। उनकी भैंसें रोज जमुनिहा हार में चरने जाती हैं। मंगलवार की शाम जब भालू ने अचानक हमला किया तो वहीं पास में 15-20 नग भैंसें चर रही थीं। भालू जब रणधीर सिंह यादव पर पंजे से हमला कर रही थी, उसी समय भैंसें दौड़ कर आईं और हमलावर भालू से भिड़ गईं। जबरदस्त संघर्ष करते हुए  भैंसों ने भालू को खदेड़ दिया, रणधीर सिंह के चिल्लाने की आवाज सुनकर आस-पास के लोग घटना स्थल पर पहुंच गए और खून से लतपथ चरवाहे को उपचार के लिए जिला चिकित्सालय पन्ना में भर्ती कराया जहां उपचार जारी है। ग्रामीणों के मुताबिक भैंसों के कारण रणधीर सिंह की जान बच गई अन्यथा बच पाना मुश्किल था।

भालू की फ़ाइल फ़ोटो। 

वनकर्मियों का कहना है कि इस वन क्षेत्र में बच्चों वाली मादा भालू की मौजूदगी रहती है। घटना दिनांक को वह बच्चों के साथ वहां से गुजर रही थी, फलस्वरुप उसका सामना चरवाहे रणधीर सिंह यादव से हो गया। वह अपने बच्चों की सुरक्षा के खातिर चरवाहे पर हमला बोल दिया होगा, जिससे वह घायल हुआ है। जानकारों के मुताबिक बच्चों वाली मादा भालू बेहद आक्रामक और स्वभाव से खतरनाक होती है। आसपास खतरे को भांपकर वह हमलावर हो जाती है। ऐसा वह अपने बच्चों की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए करती है।

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Tuesday, August 16, 2022

जीवंत हो उठे झरनों को देख मंत्रमुग्ध हो रहे लोग

  • पन्ना के चारो तरफ प्रकृति की खूबसूरती का नजारा
  • बारिश की बूंदों से निखरा जंगल का अप्रतिम सौंदर्य



।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बारिश ने सावन के महीने में भले ही निराश किया लेकिन भादौं के शुरुआत में ही झमाझम बारिश हो गई। जिससे मंदिरों के शहर पन्ना का सौंदर्य निखर आया है। पन्ना जिले में पिछले दो दिनों से रुक रुककर हो रही बारिश के चलते पन्ना टाईगर रिज़र्व सहित आसपास की पहाडिय़ों से गिरने वाले झरने जीवंत हो उठे हैं। बारिश की फुहारों से जंगल, पहाड़ व मैदान सभी का सौंदर्य निखर उठा है। प्रकृति का यह अप्रतिम सौन्दर्य हर किसी को मोहित कर रहा है। मन्दिरों के शहर पन्ना के आसपास हरी-भरी पहाडिय़ों से गिरने वाले झरने ऐसा सौन्दर्य बिखेर रहे हैं, जिसे देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। प्रकृति के अल्हड़पन, खूबसूरती व सौन्दर्य का ऐसा नजारा बारिश के मौसम में ही नजर आता है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना में घने जंगलों के बीच से प्रवाहित होने वाली केन नदी का अप्रतिम सौन्दर्य इन दिनों देखने जैसा है। अपने जेहन में अनगिनत खूबियों को समेटे यह अनूठी नदी डग-डग पर सौन्दर्य की सृष्टि करती तथा पग-पग पर प्राकृतिक सुषमा को बिखेरती हुई प्रवाहित होती है। लेकिन किसी नदी का ऐसा अद्भुत सौन्दर्य शायद ही कहीं देखने को मिले जो रनेह फाल में नजर आता है। पन्ना टाइगर रिजर्व में आने वाला यह अनूठा स्थल खूबियों और विशेषताओं से भरा है। लाल रंग के ग्रेनाइट व काले पत्थरों के बीच से केन नदी की दर्जनों धारायें विविध मार्गों से प्रवाहित होकर जब नीचे गिरती हैं तो प्रकृति प्रेमी पर्यटक अपनी सुध-बुध खो देते हैं। बारिश के मौसम में जब केन नदी उफान पर होती है उस समय रनेह फाल के सौन्दर्य को निहारना कितना आनन्ददायी है, इसकी अनुभूति यहां पहुँचकर ही की जा सकती है। लगभग 30 मीटर की ऊंचाई से जल की धारा को नीचे गहराई पर गिरते हुए देख पर्यटक विष्मय विमुग्ध हो जाते हैं।

विशेष गौरतलब बात यह है कि रनेह फाल को केन घडिय़ाल सेन्चुरी के रूप में विकसित किया गया है। यहां केन नदी के अथाह जल में दर्जनों की संख्या में घडिय़ाल अठखेलियां करते हैं। खूबसूरत नदी,रंग बिरंगी चट्टाने व घडिय़ालों का एक ही जगह पर समागम दुर्लभ और बेजोड़ है। इसीलिए हीरों की धरती के बारे में कहा जाता है कि इस धरा को प्रकृति ने अनुपम उपहारों से समृद्ध किया है। अकेले पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही ऐसे अनेकों झरने व जल प्रपात हैं जो किसी को भी सम्मोहित करने की क्षमता रखते हैं। पन्ना से लगभग 12 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग  के किनारे स्थित पाण्डव जल प्रपात व उसके पास ही भैरव घाटी से कैमासन फाल का अनुपम सौन्दर्य देखते ही बनता है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व का पाण्डव जल प्रपात प्रकृति का एक ऐसा तोहफा है जिसे देखने व यहां की प्राकृतिक सुषमा के बीच कुछ क्षण बिताने के लिए लोग खिंचे चले आते हैं। इस जल प्रपात में भी लगभग 30 मीटर की ऊंचाई से पानी गिरता है। नीचे पानी का विशाल कुण्ड तथा आस-पास बनी प्राचीन गुफायें प्रपात की खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने इस प्रपात के किनारे बनी गुफाओं में कुछ समय व्यतीत किया था। इसी मान्यता के चलते इस प्रपात का नाम पाण्डव प्रपात पड़ा है। पन्ना जिले में मौजूद दर्जनों खूबसूरत प्रपातों के कारण ही इस जिले को हीरों, मन्दिरों व झरनों की भूमि कहा जाता है।

बृहस्पति कुण्ड व कौआ सेहा का सौन्दर्य है बेमिशाल

पन्ना से लगभग 30 किमी दूर स्थित बृहस्पति कुण्ड का सौन्दर्य आज भी बेमिशाल है। इस कुण्ड में रत्नगर्भा बाघिन नदी ऊंचाई से गिरती है,फलस्वरूप इस नदी के प्रवाह क्षेत्र में बेशकीमती हीरे मिलते हैं। हीरों की खोज में सैकड़ों लोग यहां पर खदान लगाते हैं जिससे यहां की प्राकृतिक खूबी तिरोहित हो रही है। वन औषधियों व जड़ी-बूटियों से समृद्ध इस खूबसूरत स्थल का यदि सुनियोजित विकास करके यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य का संरक्षण किया जाय तो यह स्थल भी पाण्डव जल प्रपात की तरह देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है। लेकिन पर्यटन विकास की अनगिनत खूबियों के बावजूद यह मनोरम स्थल उपेक्षित है और अवैध खदानों के कारण यहां का सौन्दर्य उजड़ रहा है।

पन्ना शहर से तक़रीबन 5 किमी. दूर स्थित कौआ सेहा का विहंगम नजारा देखने जैसा है। बारिश के मौसम में यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य मोहित करने वाला होता है। किलकिला नदी का पानी इस सैकड़ों फिट गहरे सेहा में जब गिरता है तो उससे पैदा होने वाला संगीत किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाता है। सेहा में गिरने वाला यह पानी हरी-भरी पहाड़ियों से होते हुए आगे जाकर केन नदी में मिल जाता है। यह सुन्दर जलप्रपात भी उपेक्षा का शिकार है, यदि यहाँ बुनियादी सुबिधायें उपलब्ध करा दी जायें व सुरक्षा के इंतजाम हो जाएँ तो यह मनोरम स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है।   

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Monday, August 8, 2022

बुंदेलखंड से रूठा मानसून, खाली पड़े हैं खेत और तालाब

  • पन्ना जिले में खरीफ फसल की बोनी लक्ष्य के मुकाबले 50 फीसदी से भी कम 
  • आषाढ़ का पूरा महीना सूखा निकल गया, सावन के महीने ने भी किया निराश 

पन्ना जिले के ग्राम बिल्हा निवासी किसान वंशगोपाल पटेल कम बारिश के बावजूद खेत में लगवा रहे रोपा। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। देश के कई हिस्सों में जहां अतिवृष्टि ने तबाही मचाई है, वहीं मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड व बघेलखंड क्षेत्र के कई जिले अल्प वर्षा से ग्रसित हैं। जुलाई का महीना गुजर गया फिर भी खेत व तालाब सब खाली पड़े हैं। बारिश न होने से फसलें सूख रही हैं। किसानों को अब अच्छी बारिश का इंतजार है, ताकि मुरझाई फसलों को जीवन मिल सके। आषाढ़ का पूरा महीना सूखा निकल गया और सावन के महीने ने भी किसानों को निराश ही किया है। अच्छी बारिश न होने से  धान सूख रही है। इस साल अल्प बारिश को देखते हुए ज्यादातर किसानों ने छीटा धान बोया था जो ठीक से जमा (अंकुरित) नहीं, जो निकला भी है वह सूख रहा है। यदि ठीक-ठाक बारिश नहीं होती तो पूरा सूख जाएगा।

जिला मुख्यालय पन्ना से 15 किलोमीटर दूर रक्सेहा पंचायत के ग्राम बिल्हा निवासी वंशगोपाल पटेल  ने बताया कि उनके गांव में लगभग डेढ़ सौ एकड़ में धान की खेती होती है। कुछ किसान रोपा लगाते हैं तो ज्यादातर लोग छीटा पद्धति से धान की बोनी करते हैं। पर्याप्त बारिश न होने से खेत सूखे पड़े हैं जिससे धान का रोपा नहीं लग पाया। छीटा वाला धान भी सूखने लगा है। ग्राम बिल्हा के ही किसान सोनेलाल पटेल ने बताया कि उसने 2 एकड़ में छीटा धान बोया था। एक खेत में तो जमा ही नहीं, दूसरे वाले खेत में जमा था जो सूख रहा है। कुँआ से पानी लगा लगा के किसी तरह जिआ रहे, पर कोई सार नहीं। यदि जल्दी बारिश नहीं हुई तो धान की पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी।


बिल्हा गांव के ही प्रगतिशील युवा किसान साहब पटेल ने बताया कि उसे 3 एकड़ में धान लगानी थी। रोपा भी तैयार किया लेकिन पानी न गिरने से रोपा नहीं लगा पाये। साहब पटेल के पास 6 एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें तीन कुंआ बने हैं। कुँआ के पास ही क्यारी में तैयार धान की रोपा दिखाते हुए इस युवा कृषक ने बताया कि विलंब होने के बावजूद अब रोपा लगा रहे हैं। किसान वंशगोपाल पटेल व सोनेलाल पटेल ने बताया कि विलम्ब तो बहुत हुआ है पर मन नहीं मान रहा। इसलिए अब मन की मानकर भगवान भरोसे रोपाई कर रहे हैं। बीज ख़रीदकर बेड तैयार की है तो रोपाई भी कर रहे हैं, कुछ न कुछ हो ही जायेगा। देरी से उत्पादन पर तो असर पड़ना ही है लेकिन न कुछ से तो कुछ ही बेहतर है।  

उड़द, मूंग व तिल की फसल भी प्रभावित

धान के अलावा खरीफ सीजन में उड़द, मूंग, तिल व अरहर की भी बोनी किसान करते हैं। सोनेलाल पटेल बताते हैं कि पूरी किसानी बारिश पर ही निर्भर है। बारिश हुई तो ठीक नहीं तो घाटा लग जाता है। प्री मानसून बारिश से उत्साहित किसानों ने इस साल उडद, मूंग, तिल व अरहर की बड़े पैमाने पर बोनी कर दी थी। लेकिन अषाढ़ के महीने ने किसानों को बुरी तरह से निराश किया। सावन के महीने में जब रिमझिम बारिश होती है, उस समय तेज धूप निकल रही है जिससे फसल झुलस रही है। पन्ना जिले के ग्रामों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संस्था समर्थन के रीजनल कोऑर्डिनेटर

ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि बारिश कम होने से उड़द, मूंग व तिल की फसल भी प्रभावित हो रही है। जिन किसानों ने तिल बोई थी, उसमें बहुत कम अंकुरण हुआ है। यही स्थिति उड़द, मूंग व अरहर की फसल का है। श्री तिवारी बताते हैं कि यदि दो-चार दिन के अंतराल में बारिश का सिलसिला शुरू हो गया, तो उत्पादन भले कम हो लेकिन उड़द, मूंग, तिल व अरहर की फसल हो जाएगी। लेकिन यदि पानी न गिरा तो कोमल पौधे मुरझाकर सूख जाएंगे। यह स्थित बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना, छतरपुर व टीकमगढ़ तथा बघेलखंड के सतना, रीवा, सीधी व सिंगरौली हर कहीं एक जैसी है।

पन्ना जिले में औसत से 45 फ़ीसदी कम बारिश

कृषि विज्ञान केंद्र पन्ना के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. पी.एन. त्रिपाठी ने बताया कि पन्ना जिले में औसत से 45 फ़ीसदी कम बारिश हुई है। खरीफ फसल को लेकर जिले की स्थिति चिंताजनक है, बहुत कम बोनी हुई है। आपने बताया कि खरीफ में यहां धान की फसल सबसे ज्यादा लगभग एक लाख हेक्टेयर में होती है। धान के बाद उड़द, मूंग, व तिल का रकबा भी यहां रहता है। डॉक्टर त्रिपाठी का कहना है कि बारिश न होने से रोपा बहुत ही कम हो पाया है। मूंग, उड़द व तिल कम पानी में भी हो सकती है। किसानों को सलाह दी गई है कि वे कम दिन की व कम पानी वाली फसल लें। धान को छोड़कर अन्य फसलें कम पानी में भी हो जाएंगी। 


पन्ना जिले में अब तक हुई बारिश के संबंध में मिली अधिकृत जानकारी के मुताबिक पन्ना जिले में 7 अगस्त तक 463.9 मिमी औसत वर्षा दर्ज की गई है। पन्ना जिले की औसत वर्षा 1176.4 मिलीमीटर है। जिले के देवेंद्रनगर में सर्वाधिक 782.2 मिमी व सबसे कम शाहनगर में 292.2 मिमी वर्षा दर्ज की गई है।

पन्ना में अब तक सिर्फ 422.5 मिलीमीटर वर्षा हुई है। उप संचालक कृषि कार्यालय पन्ना द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक वर्ष 2022 के लिए धान की बोनी का लक्ष्य 1 लाख 10 हजार हेक्टेयर निर्धारित किया गया था, जिसके मुकाबले अब तक 40.63 हजार हेक्टेयर में धान की बोनी हुई है। खरीफ फसल के लिए लक्ष्य 2 लाख 46 हजार हेक्टेयर का था, जिसके मुकाबले 1 लाख एक हजार हेक्टेयर में बोनी हुई है, जो लक्ष्य का 41 फ़ीसदी है। 

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Saturday, August 6, 2022

हमारी गंगा जमुनी तहजीब की एक गायकी आल्हा !

 

 ।। बाबूलाल दाहिया ।।

जब जब कजलियों का त्यौहार नजदीक आता है, तो आल्हा गायकी की याद अवश्य आ जाती है। प्राचीन समय में गाँव-गाँव में आल्हा गायकी का बड़ा प्रभाव था, जिसे कहीं-कहीं ढोलक के थाप के साथ गाया जाता था। पर अग्रेजों ने जब अठारहवीं शताब्दी में इसका बावन लड़ाइयों का एक ग्रन्थ ही प्रकाशित करा दिया तो यह लोगो द्वारा बांच कर भी सुनाया जाने लगा।

आल्हा मुख्यत: बरसात में सुनाया जाने वाला गीत काब्य है, जिसके रचयिता वर्तमान टीकमगढ़ जिले के एक प्राचीन निवासी जगनिक नामक भाट कवि माने जाते हैं। यह आल्हा ऊदल नामक दो बहादुरों के युद्ध का काब्य है, जो महोबा के रहने वाले बनाफर राजपूत और राजा परिमर्ददेव के सामन्त थे। यूँ तो आल्हा गायकी एक राशो गीत है, जिसमें आल्हा ऊदल के बहादुरी का बखान है। पर बुन्देली बोली में रचित इस राशो ग्रन्थ की अनेक विशेषताए हैं। यही करण था कि पृथ्वीराज राशो, भीसलदेव राशो, खुमानदेव राशो आदि तमाम राशो ग्रन्थ तो लाइब्रेरियों की शोभा ही बढ़ाते रहे, पर आल्हा राशो अनेक बोलियों में अनूदित हो लगभग 6 --7 सौ वर्षों तक लोक कंठ से मुखर होता रहा। इसके लोक प्रियता के कुछ कारण इस प्रकार हैं -

1-  स्पष्ट वादिता 

अन्य राशो ग्रन्थ के रचयिता जहां अपने पात्रों को श्रेष्ठ कुल के राजपूत सूर्यवंशी,चन्द्र वंशी आदि  बताते हैं, वहीं आल्हा राशो का रचइता अपने पात्रों को बार बार "ओछी जात बनाफर राय " कहता है। उनके साथी भी कोई राजपूत नहीं बल्कि साधारण तबके के लोग ही धनुहा तेली, लला तमोली, मन्ना गूजर, खुन खुन कोरी और मदन गड़रिया आदि हैं। पर बहादुर इतने कि बड़े- बड़े तलवार बाजों के दांत खट्टे कर दें। इसलिए शायद उसमें इन सब के बीच जन सामान्य भी अपने को शामिल सा पाता है।

2- साथियों की बहादुरी 

जब जाति ओछी हो तो भला कौन राजपूत अपनी लड़की के बिवाह के लिए मण्डप छवायेगा ? पर कवि जगनिक के बनाफरो का तो अपना वसूल ही अलग था  कि -

जिसकी लड़की सुन्दर देखी, जोरा जोरी करे बिवाह ।

तो बनाफर लोग भाला बरछी साग और ढाल तलवारों से ही मण्डप को छा देते हैं। उधर उनके नाई, बारी और बिवाह कराने वाले पंडित  भी इतने  जाबाज हैं कि एक ओर तो वे विवाह की रस्म भी पूरी करते जाते हैं तो दूसरी ओर बनाफर के जोरा जोरी बिवाह से तमतमाया कोई राजपूत यदि वर को मारने के लिए तलवार निकालता है तो वह नाई, बारी और पंडित ही ढाल अड़ा कर उसका वार भी बिफल करते रहते हैं।

लेकिन एक सबसे बड़ी विशेषता इसमें यह है कि आल्हा गायकी प्रभाव वाले क्षेत्र में साम्प्रदायिक दंगे कभी नहीं हुए। इसका कारण यह रहा कि आल्हा ऊदल  के अविभावक ताल्हन सैयद नामक एक मुसलमान सरदार हैं, जिनके लिए आल्हा कहते हैं कि -

चाचा चाचा कह गोहरायो, चाचा मेरे तलन्सी राय।

जब से मर गए बाप हमारे, गोद तुम्हारी गये बैठाय।।

किन्तु न सिर्फ ताल्हन सैयद बल्कि उनके 22 बेटे भी आल्हा ऊदल की रक्षा के लिए हमेशा अपनी जान तक देने के लिए तत्तपर रहते हैं। आल्हा, ऊदल, मल्खान के विवाह की भी रचनाकाऱ ने बड़ी रोचक कथा गढ़ी है कि, उनकी सुन्दरता और बहादुरी देख राजपूत कन्याएं खुद कहने लगती हैं कि -

या तो ब्याह होय आल्हा सग, या जीवन भर रहूं कुँवारि।

और खुद ही तोते के गले में बांध कर पत्र भिजवाती थीं, जिसमें यह भी लिखती थीं कि, अगर तुमने एक माह के भीतर बिवाह न किया तो कटार भोक कर प्राण दे दूँगी ? फलस्वरूप आल्हा, ऊदल ,मलखांन को साधू का भेष रख कर महलों में भीख मांगने के बहाने जाना पड़ता था। किन्तु बाकी सब तो चेले ही रहते थे, महंत की भूमिका में वहां भी ताल्हन सैयद ही होते थे। और वही उन राजपूत कन्याओं को आश्वाशन भी देते हैं कि "बेटी मै गंगा की सौगंध खा कर कहता हूं कि तेरा दो माह में बिवाह अवश्य करा दूँगा।"

यूँ तो आल्हा राशो में तमाम अतिश्योक्ति पूर्ण बाते और अंधविश्वास भी है। पर हमारी गंगा जमुनी संस्कृति और साझी बिरासत को कायम रखने में इसका बहुत बड़ा योगदान रहा है। 40-50 के दसक में इसका इतना प्रभाव था कि अक्सर लोग अपने बेटों का नाम आल्हा, ऊदल, इन्दल और मल्खान रखते थे। जब सावन भादो के दिनों में पानी की झड़ी लगती तो गाँव वालो के मनोरंजन का यह मुख्ख साधन था। पर समय के साथ वह भी समाप्त प्राय है।

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Wednesday, August 3, 2022

पन्ना की बाघिन पी-142 ने दिया दो शावकों को जन्म

  • अपनी मां के साथ चहल-कदमी करते दिखे दोनों शावक 
  • नन्हे शावकों की अठखेलियों से पीटीआर हुआ गुलजार



।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से फिर खुशखबरी मिली है। यहां बाघिन पी- 142 ने चौथे लिटर में दो शावकों को जन्म दिया है। नन्हे शावकों के साथ जंगल में चहल-कदमी करते बाघिन की पहली तस्वीर कैमरा ट्रैप में कैद हुई है, जिसे पार्क प्रबंधन द्वारा 3 अगस्त बुद्धवार को जारी कर नन्हे मेहमानों के आने की खुशखबरी दी गई है।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि बाघिन पी-142 ने अपने चौथे लिटर में दो शावकों को जन्म दिया है। तक़रीबन 8 वर्ष की हो चुकी इस बाघिन के साथ शावकों का छायाचित्र पन्ना कोर परिक्षेत्र के बी.बी.सी. बीट में विचरण करते हुए कैमरा ट्रैप के माध्यम से प्राप्त हुआ है। श्री शर्मा ने बताया कि शावकों की उम्र लगभग चार  माह की है तथा बाघिन और दोनों शावक पूर्णरूपेण स्वस्थ हैं। मालूम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर व बफर क्षेत्र में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। 

किसी भी वन क्षेत्र में बाघों की वंश वृद्धि बहुत कुछ ब्रीडिंग क्षमता वाली बाघिनों की संख्या पर निर्भर करती है। इस लिहाज से मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व बेहतर स्थिति में है। मौजूदा समय यहां पर ब्रीडिंग क्षमता वाली 16 से भी अधिक बघिनें हैं, जो शावकों को जन्म देकर पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के कुनबे को बढ़ा रही हैं। पार्क प्रबंधन के मुताबिक वर्ष 2022 के अंत तक ब्रीडिंग क्षमता वाली बाघिनों की संख्या बढ़कर 23 होने की उम्मीद है। 

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वनोपज से समृद्ध पन्ना व छतरपुर के जंगलों में पड़ोरा की बहार

  •  बाजार में जंगली पड़ोरा 150 से 200 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा
  •  इस मौसम में जंगली पड़ोरा आदिवासियों की अतिरिक्त आय का साधन

पन्ना के बाजार में जंगली पड़ोरा 150 से 200 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना । बुन्देलखण्ड क्षेत्र में जंगली पड़ौरा की सब्जी इस सीजन में बड़े चाव के साथ खाई जाती है। औषधीय जड़ी बूटियों और वनोपज से समृद्ध पन्ना व छतरपुर जिले के जंगलों में इन दिनों पड़ोरा की बहार है। अत्यधिक पौष्टिक व आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर यह जंगली सब्जी यहाँ के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगती है। इन दिनों पड़ोरा की लतर में फल आये हुये हैं जो बामुश्किल एक पखवाड़ा तक ही मिलेंगे। वन क्षेत्र के आसपास रहने वाले आदिवासी जंगल से पड़ोरा तोड़कर न सिर्फ खाते हैं अपितु बाजार में बेंच भी देते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय हो जाती है। पन्ना के बाजार में जंगली पड़ोरा 150 से 200 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है।

शहर के गाँधी चौक में पड़ौरा का ठेला लगाए इरसाद मुहम्मद ने बताया कि यह इसी सीजन में मिलता है। छतरपुर निवासी इरसाद ने बताया कि वह छतरपुर से 30 किलो पड़ौरा आज पन्ना बेचने के लिए लाया है जो दो-तीन घण्टे में बिक जायेगा जिससे उसे कम से कम 6-7 सौ रुपये की आय होगी। उसने बताया कि जंगल के आसपास रहने वाले आदिवासी पड़ौरा तोड़कर लाते हैं जिसे हम 150 रुपये की दर से खरीद लेते हैं और बाजार में ठेला लगाकर 200 रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं। चूँकि पड़ौरा सिर्फ 15 दिन इसी सीजन में मिलता है, इसलिए मंहगा होने के बावजूद हर कोई इसका स्वाद लेना चाहता है। यही वजह है कि ठेला लगाने के कुछ घण्टे में ही पूरा पड़ौरा बिक जाता है। 

गौरतलब है कि पड़ोरा एक बहुवर्षीय कद्दूवर्गीय फसल है, जो पौष्टिक गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ विभिन्न बीमारियों की रोकथाम में सहायक होती है। इसकी खेती कर किसान समृद्ध बन सकते हैं। उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों से इसकी खेती करने की अपील की गई है।  उद्यान विभाग के सहायक संचालक रहे एम.के. भट्ट ने बताया कि पन्ना के जंगली क्षेत्रों में पड़ोरा बिना उगाये उग जाता हैं, इसलिए आदिवासियों द्वारा पन्ना के जंगलों से तुड़ाई कर बाजार में इन दिनों 150 से 200 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है। जंगल क्षेत्रों के आस-पास के लोग इसको सब्जी के रूप में बहुतायत से उपयोग करते हैं। 


पड़ोरा के बीजों की बुवाई का समय जून-जुलाई है। पड़ोरा के बीज को एक बार बोने के बाद इसके मादा पौधे से लगभग 8 से 10 वर्षो तक फल प्राप्त होते रहते हैं। इस पर कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप बहुत कम होता है। परन्तु फल मक्खी पड़ोरा के फलों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। श्री भट्ट ने बताया कि पड़ोरा का प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है जो बहुत स्वादिष्ट होती है तथा मानव संतुलित आहार का एक महत्वपूर्ण भाग है। आपने बताया कि पड़ोरा की सब्जी पौष्टिक गुणों से भरपूर होती है। पड़ोरा के फलों का उपयोग अचार बनाने के लिए भी किया जाता है। यह कफ, खांसी, अरूचि, वात, पित्तनाशक और हृदय में होने वाले दर्द से राहत दिलाता है। पड़ोरा के फलों का सेवन मधुमेह रोगी के शर्करा नियंत्रण में भी बहुत उपयोगी होता है।

पड़ोरा को कहा जाता है सबसे ताकतवर सब्जी

मौजूदा दौर में जंक फूड का इतना क्रेज बढ़ चुका है कि लोग अपने शरीर को जरूरी ताकत देने वाली सब्जी, दाल का सेवन कम ही करते हैं। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि कुछ सबज्यिां ऐसी होती हैं, जिन्हें कुछ दिन खाने पर ही इसका फायदा मिल जाता है. ऐसी ही एक सब्जी पड़ोरा है। ऐसा कहा जाता है कि यह दुनिया की सबसे ताकतवर सब्जी है। इसे औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इस सब्जी में इतनी ताकत होती है कि महज कुछ दिन के सेवन से ही आपका शरीर तंदुरुस्त बन जाता है। पड़ोरा को कंटोला,ककोड़े और मीठा करेला के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में भी इसे सबसे ताकतवर सब्जी के रूप में माना गया है। यह सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ प्रोटीन से भरपूर होती है, जिसे खाने से शरीर ताकतवर बनता है। यह एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर सब्जी है. जो शरीर को साफ रखने में भी काफी सहायक है। अगर आप इसकी सब्जी नहीं खाना चाहते तो अचार बनाकर भी सेवन कर सकते हैं। आयुर्वेद में कई रोगों के इलाज के लिए इसे औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं, यह पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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