Saturday, September 22, 2018

साहब मुझे भी दिलवा दो पीएम आवास

  •   झोपड़ी में रहती है अहिरगुवांं पंचायत की 80 वर्षीय विधवा
  •   जिनके पहले से घर हैं उनके बन गये आवास लेकिन गरीब वंचित



गरीब वृद्धा पीएम आवास की माँग करते हुये।
अरुण सिंह,पन्ना। केन्द्र सरकार की बहुप्रचारित महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आवास योजना का अपेक्षित लाभ गरीबों और जरूरतमंद हितग्राहियों को नहीं मिल पा रहा है। आॢथक रूप से सक्षम व राजनीतिक पहुँच वाले लोग जिनके पूर्व से ही मकान हैं, वे इस योजना का लाभ धड़ल्ले से उठा रहे हैं। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 16 किमी दूर स्थित ग्राम पंचायत अहिरगुवां की 80 वर्षीय फूलमाला सरकार अपनी विधवा बेटी के साथ छोटे से झोपड़े में रहती है। इसके जीवनयापन का एकमात्र सहारा वृद्धावस्था पेंशन है। पीएम आवास के लिये यह वृद्धा पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक से विनती कर चुकी है लेकिन अभी तक इस गरीब बेसहारा को योजना का लाभ नहीं मिल सका है। जिससे साफ जाहिर होता है कि पात्र हितग्राही इस योजना से जहां वंचित हैं, वहीं अपात्रों को आवास स्वीकृत हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को आज समाजसेवी संस्था समर्थन के प्रतिनिधि जब इस ग्राम पंचायत में पहुँचे तो अहिरगुवां कैम्प में झोपड़े में निवास करने वाली इस वृद्धा ने इन प्रतिनिधियों को बड़ा अफसर समझकर हांथ जोड़कर कहा कि साहब मुझे भी पीएम आवास दिलवा दो, भगवान आपका भला करेगा। इस 80 वर्षीय वृद्धा ने बताया कि वह अपनी विधवा बेटी के साथ झोपड़े में रहती है, बारिश का मौसम बड़ी मुसीबत भरा होता है। जीवनयापन के लिये सिर्फ वृद्धावस्था पेंशन जो 5 सौ रूपया मिलता है, उसी का सहारा है। इसी पैसे से किसी तरह गुजर-बसर हो रहा है। यदि पीएम आवास मिल जाये तो हमारी मुसीबत कम हो जायेगी। मालुम हो कि ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा सबके लिये आवास 2022 का लक्ष्य पाने के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण प्रारंभ की गई है। इस योजना की शुरूआत 20 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री जी द्वारा की गई है। इस योजना के शुरू होने पर अवासहीन गरीबों के चेहरों पर मुस्कान फैल गई थी, उन्हें उम्मीद जागी थी कि अब उनके पास भी एक अदद पक्का घर होगा। लेकिन फूलमाला सरकार जैसे अनेकों ऐसे गरीब हैं, जिन्हें पीएम आवास अभी तक नसीब नहीं हो सका है।

आदिवासी मजरा में कुपोषण बड़ी समस्या

 माँ की गोद में बैठा कुपोषण से ग्रसित बच्चा।
ग्राम पंचायत अहिरगुवां के आदिवासी मजरा रामपुर क्वाटरन में गरीबी और कुपोषण सबसे बड़ी समस्या है। इस मजरे में सिर्फ आदिवासी परिवार रहते हैं जिनका भरण-पोषण हीरा खदानों में मजदूरी करके होता है। भीषण गरीबी और अशिक्षा के चलते इस मजरे के ज्यादातर बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। स्वयंसेवी संस्था के प्रतिनिधि जब इस मजरे में पहुँचे तो एक आदिवासी महिला अपने 4 वर्ष के बच्चे को गोदी में लिये बैठी थी, उससे बड़ा बच्चा पास ही खड़ा था। गोदी में बैठा बच्चा सम्पतराम गंभीर कुपोषण का शिकार है। पिता श्री आदिवासी हीरा खदान में मजदूरी करता है। ऐसी स्थिति में परिवार का भरण-पोषण बमुश्किल हो पाता है। पिछले साल ही दो बच्चों की मौत हो चुकी है तथा चार बच्चे अभी भी हैं, जो भीषण गरीबी और अभावों के बीच जीने को मजबूर हैं।

प्राथमिक शाला में शौचालय है लेकिन टैंक नहीं

आदिवासी बस्ती रामपुर क्वाटरन के गरीब आदिवासी बच्चों के पढऩे हेतु शासन द्वारा प्राथमिक शाला का संचालन किया जा रहा है। जहां पढऩे के लिये गिनती के ही कुछ बच्चे मध्याह्न भोजन की लालच में शाला पहुँचते हैं। खाना मिलते ही बच्चे शाला से निकल लेते हैं। इस प्राथमिक शाला में छात्र व छात्राओं के लिये पृथक-पृथक शौचालय का निर्माण तो कराया गया है लेकन आश्चर्य इस बात का है कि टैंक नहीं बनवाया गया। जाहिर है कि निॢमत शौचालय सिर्फ देखने के लिये है, इसका उपयोग नहीं किया जाता।

पेयजल की भी समस्या गंभीर

गरीब आदिवासियों की इस बस्ती में पेयजल की समस्या भी गंभीर है। स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध न होने के कारण मजरा के आदिवासी कुंये का दूषित और गन्दा पानी पीते हैं। मालुम हो कि कुछ ही दिनों पूर्व इस मजरे में उल्टी-दस्त का प्रकोप भी हो चुका है जो कुंये का दूषित पानी पीने के कारण हुआ था। बीमारी फैलने पर पीडि़तों का उपचार हुआ तथा कुंआ के पानी का भी ट्रीटमेन्ट कराया गया लेकिन अब हालात फिर जस के तस हैं।
00000

Thursday, September 20, 2018

औषधीय गुणों वाली वनस्पतियों का पन्ना में अकूत भण्डार

  • हर्बल उद्योगों के विकास से रोजगार के नये अवसरों का हो सकता है सृजन
  • ऑवला उत्पादन के मामले में पन्ना जिला प्रदेश में अग्रणी



अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले को प्रकृति ने अनगिनत सौगातों से नवाजा है। यहां की रत्नगर्भा धरती में बेशकीमती रत्न हीरा ही नही अपितु दुर्लभ जड़ी बूटियों का भी अकूत भण्डार है। लेकिन प्रकृति प्रदत्त इन सौगातों का इस क्षेत्र के विकास व रोजगार के नये अवसरों को सृजित करने की दिशा में सार्थक उपयोग नहीं किया जा सका। जबकि पन्ना जिले में औषधि एवं हïर्बल उद्योगों के विकास की विपुल संभावनायें मौजूद हैं। यहां के समृद्ध वनों में औषधीय गुणों से सम्पन्न वनस्पतियों व वन औषधियों का भण्डार हैं। ऑवला उत्पादन के मामले में तो पन्ना जिला प्रदेश में अग्रणी है। यदि यहां पर वनौषधि उद्योग को बढ़ावा मिले तो इस पिछड़े जिले की भी तस्वीर बदल सकती है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले के 50 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र में आज भी जंगल है।उत्तर वन मण्डल में सारंगधर की पहाडिय़ों से लेकर कालींजर तक तथा पन्ना शहर के निकट स्थित मनोरम स्थल कउवा सेहा से लेकर देवगांव के पहाड़ों तक चारों तरफ वनौषधियों का अकूत भण्डार मौजूद है। जिले का दक्षिण कल्दा पठार जो पवई और शाहïनगर दो विकासखण्डों की सीमा को घेरता है, यहां के सघन वनों में प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। जानकारों का कहना है कि पठार में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी-बूटियों की तासीर हिïमालय में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों से मिलती जुलती हैं। वनौषधियों के मामले में यह वन क्षेत्र प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। बताया जाता है कि देश के 25 आयुर्वेदिक ऋषियों में 19 ऋषि इसी क्षेत्र में रहे हैं। प्राकृतिक ऑवले की उपलब्धता के मामले में तो इस जिले का कोई सानी नहीं है। पन्ना जिले के
ऑवले प्राकृतिक गुणों से भरपूर होते हैं, यही वजह है कि आयुर्वेद की फैक्ट्रियों में पन्ना के ऑवले की बहुत अधिक मांग रहïती है। यहां के ऑवले देश के विभिन्न हिस्सों व प्रान्तों में जाते हैं। जिले में प्राकृतिक रूप से ऑवले की प्रचुर उपलब्धता को देखते हुए डेढ़ दशक पूर्व प्रदेश के तत्कालीन वन मंत्री ने पन्ना को ऑवला जिला घोषित किया था। उस समय यहï योजना भी बनाई गई थी कि बिगड़े वनों की रिक्त पड़ी भूमि में ऑवला वृक्षों का रोपण किया जायेगा। अजयगढ़ की घाटी को ऑवला घाटी के रूप में विकसित किये जाने की भी बात कही गई थी। लेकिन सारी योजना धरी की धरी रह गई। ऑवला से बनने वाले उत्पादों के लिए यहां पर अभी तक कोई
बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो सका है। 


जंगलों की कटाई से उजड़ रही हैं वनौषधियां 


पन्ना के विकास तथा यहां के लोगों को रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस व सार्थक प्रयास न होने से जिले के अधिसंख्य लोग उत्खनन और जंगल की अवैध कटाई में लिप्त हैं। तेजी के साथ यहां के जंगलों की अवैध कटाई होने के कारण प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी बूटियों का अद्भुत संसार भी उजड़ रही हैं। यदि प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली इन जड़ी-बूटियों के संरक्षण व संवर्धन हेतु प्रभावी पहल की जाये और वन क्षेत्रों के ग्रामों में इनकी वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा दिया जाये तो पन्ना जिला बहुमूल्य जड़ी-बूटियों का एक बहुत बड़ा स्त्रोत बन सकता है। ऐसा होने पर उद्योगविहीन इस जिले की बेरोजगारी की समस्या जहां दूर हो सकेगी, वहीं औषधि व हर्बल उद्योगों की स्थापना का भी मार्ग प्रशस्त होगा। 


इन जड़ी-बूटियों की है प्रचुर उपलब्धता 


ऑवले के अलावा पन्ना जिले के जंगलों व पहाड़ों में सफेद मूसली, तुलसी,अश्वगंधा, शतावर, नागरमोथा, अचार गुठली, शहद, महुआ गुठली, हर्र,बहेरा, काली मूसली, मुश्कदाना, लेमन ग्रास, कलिहारी, सर्पगंध, कांगनी,इमली, चिरौंटा, लटजीरा, जामुन, अर्जुन छाल, ब्राह्मी, बिहारीकंद,मुलहटी, गिलोय, गोखरू, शंखपुष्पी, पुनर्नवा, हर सिंगार, भटकटइया और ईसबगोल जैसी वनौषधियां प्रचुर मात्रा में मिलती हैं।

@@@@


दैनिक जागरण में छपी खबर