Wednesday, July 31, 2019

पन्ना के बाघों की सुरक्षा पर फिर मंडराने लगा खतरा

  •   वन अमले की कमी से जूझ रहा है पन्ना टाईगर रिजर्व
  •   रेन्जरों के कई पद रिक्त, डिप्टी संभाल रहे रेन्ज की कमान
  •   सुरक्षा तंत्र और बाघों का मॉनिटरिंग सिस्टम भी हुआ कमजोर
  •   अवैध कटाई व शिकार की घटनाओं पर नहीं लग पा रहा अंकुश



पन्ना स्थित क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व का कार्यालय। 

अरुण सिंह,पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में एक बार फिर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। वन परिक्षेत्राधिकारियों सहित मैदानी वन अमले की भारी कमी से जूझ रहे पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा व मॉनिटरिंग  के लिये जो सिस्टम विकसित किया गया था, वह जहां कमजोर हुआ है वहीं व्यवस्था में भी खामियां नजर आने लगी हैं। यही वजह है कि पन्ना टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में जंगल की अवैध कटाई व शिकार की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है। मौजूदा हालातों को देखते हुये पर्यावरण के हितैषी व वन्य जीवन प्रेमी इस बात को लेकर चिंतित  हैं कि अथक प्रयासों के बाद इस गौरवशाली मुकाम तक पहुँचा पन्ना टाईगर रिजर्व कहीं अतीत में हुई गलतियों को दोहराते हुये फिर से 2009 की ओर तो नहीं लौट रहा ?


 प्रशिक्षु वन अधिकारियों को पार्क भ्रमण कराते हुये आर. श्रीनिवास मूर्ति (फाइल फोटो)

उल्लेखनीय है कि 10 वर्ष पूर्व पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल शोक गीत में तब्दील हो गया था। यहां पर स्वच्छन्द रूप से विचरण करने वाले बाघ सुरक्षा प्रबन्ध की नाकामी और लापरवाही के चलते एक-एक करके तिरोहित हो गये थे। इस इलाके का जंगल शिकारियों और अपराधियों की शरण स्थली बन चुका था और स्थानीय लोग भी पन्ना टाईगर रिजर्व के विरोध में आवाज उठाने लगे थे। ऐसी विकट और विपरीत परिस्थितियों में उस समय शासन ने पन्ना टाईगर रिजर्व की कमान भारतीय वन सेवा के अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति को सौंपी और यहां पर उजड़ चुके बाघों के संसार को फिर से बसाने का एक नया अध्याय  शुरू हुआ। बेहद ईमानदार और दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी वन अधिकारी श्री मूर्ति ने बड़ी सूझबूझ के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों, क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों तथा आम जनता का सहयोग व समर्थन हासिल करने के लिये प्रयास किया, जिसमें उन्हें काफी हद तक कामयाबी भी मिली। बाघ पुनर्स्थापना योजना को कामयाब बनाने के लिये उनके अथक श्रम, जुनून और जज्बे से लोग बेहद प्रभावित हुये और उनके ईमानदार प्रयासों की न सिर्फ सराहना करने लगे अपितु अपनी सहभागिता भी निभाने लगे। इस बदले हुये माहौल को और अनुकूल बनाने के लिये श्री मूर्ति ने जन समर्थन से बाघ संरक्षण का नारा दिया, जो लोगों को जोडऩे में मददगार साबित हुआ।

शून्य से शुरू हुआ सफर 52 तक पहुँचा



 नन्हे शावकों के साथ बाघिन। (फाइल फोटो)

बाघ पुनर्स्थापना योजना का सफर वर्ष 2009 में शून्य से शुरू हुआ और अप्रैल 2010 में ही नन्हे शावकों के आने से पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल गुलजार हो गया। कामयाबी का यह सफर निरन्तर आगे बढ़ता रहा, जिससे पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल न सिर्फ बाघों से आबाद हुआ अपितु पन्ना में जन्मे बाघ आस-पास के वन क्षेत्रों में पहुँचकर वहां के जंगल को भी गुलजार किया है। बाघ पुनर्स्थापना योजना के शुरू होने से लेकर अब तक यहां पर 90 से भी अधिक शावकों का जन्म हो चुका है। पार्क सूत्रों के मुताबिक पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में मौजूदा समय आधा सैकड़ा से भी अधिक लगभग 52 बाघ विचरण कर रहे हैं। जबकि पन्ना टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र व आस-पास के जंगल में भी यहां जन्मे तकरीबन डेढ़ दर्जन बाघों की मौजूदगी है। पन्ना की इसी कामयाबी ने म.प्र. को एक बार फिर टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अपनी अनूठी कामयाबी को लेकर देश ही नहीं पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व विभिन्न समस्याओं से जूझते हुये अपने वजूद और बुन्देलखण्ड की धरोहर को बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है।

रेन्जर, डिप्टी रेन्जर, वनपाल व वनरक्षक के 82 पद रिक्त


प्रदेश को टाईगर स्टेट का दर्जा मिलने पर हर कहीं खुशी और जश्न का माहौल है, बधाईयों का भी आदान-प्रदान हो रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत चिन्ता में डालने वाली है। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में रेन्जर सहित डिप्टी रेन्जर, वनपाल व वनरक्षकों के कुल 82 पद रिक्त हैं। हालात ये हैं कि रेन्ज की कमान डिप्टी रेन्जर संभाल रहे हैं। ऐसी स्थिति में बाघों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी यह विचारणीय है। गौरतलब है कि वन अधिकारियों, मैदानी कर्मचारियों के अथक श्रम व जनता के समर्थन से प्रदेश को जो गौरव हासिल हुआ है, उसे कायम रखने के लिये रिजर्व वन क्षेत्रों तथा बाघों के वासस्थलों की सुरक्षा व्यवस्था व संरक्षण के प्रयासों को और सुदृढ़ करना होगा। पन्ना टाईगर रिजर्व में वर्ष 2009 की फिर पुनरावृत्ति न हो इसके लिये रिक्त पड़े पदों की अविलम्ब पूर्ति  करने के साथ ही नकारा, आरामतलब और भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों को चिह्नित कर उनकी जगह पर्यावरण व संरक्षण में रूचि रखने वाले योग्य और कर्मठ लोगों की पदस्थापना करनी होगी। अतीत में यहां जो गलतियां हुई हैं, उनसे सीख लेने की महती आवश्यकता है। यहां के बाघ पन्ना ही नहीं समूचे बुन्देलखण्ड की धरोहर और गौरव के प्रतीक हैं जिनकी सुरक्षा व संरक्षण की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों की भी है। आने वाले समय में यही बाघ पन्ना के विकास व यहां के लोगों का जीवन स्तर सुधारने में सहभागी बनेंगे।

चारा कटर कर रहे महावत का कार्य



मानसून सीजन में जंगल की निगरानी करते हुए पन्ना टाइगर रिज़र्व के प्रशिक्षित हांथी। 

मानसून सीजन में जब पर्यटकों के भ्रमण हेतु टाईगर रिजर्व के द्वार तीन माह के लिये बन्द हो जाते हैं, उस समय दुर्गम और पहुँच  विहीन क्षेत्रों में सुरक्षा और मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी पार्क के हाँथी निभाते हैं। लेकिन आश्यर्च और चिन्ता की बात यह है कि पन्ना टाईगर रिजर्व में स्वीकृत महावतों के कुल 6 पदों में सिर्फ एक पद भरा हुआ है। ऐसी स्थिति में यहां पर महावतों का काम चारा कटरों या अप्रशिक्षित टेम्प्रेरी महावतों से लिया जा रहा है। बारिश के इस मौसम में वन क्षेत्रों के आस-पास शिकारियों की सक्रियता बढ़ जाती है जिसे देखते हुये प्रशिक्षित  हाँथियों का बेहतर उपयोग जरूरी होता है। क्योंकि वन क्षेत्र के कई इलाकों में गाडिय़ों से इस मौसम में नहीं पहुँचा जा सकता। शासन को इस समस्या की ओर भी ध्यान देना चाहिए ताकि टाईगर रिजर्व के कोर सहित बफर क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर हो सके।

बफर में भी कोर जैसी व्यवस्था जरूरी: भदौरिया


 के.एस. भदौरिया क्षेत्र संचालक।
पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बाघों की संख्या बढऩे से यहां के बाघ बाहर निकल रहे हैं। टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में कई बाघों ने अपना ठिकाना बना लिया है, जिसे देखते हुये हम कोर क्षेत्र की तरह बफर क्षेत्र में भी सुरक्षा व निगरानी तंत्र विकसित करने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। इसके लिये संवेदनशील स्थलों पर सुरक्षा चौकियां बनाई गई हैं। क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने बताया कि रेन्जर सहित वन कर्मचारियों के कई पद रिक्त हैं जिससे व्यवस्था बनाने में दिक्कतें आ रही हैं। रिक्त पदों की पूर्ति  के लिये प्रयास किये जा रहे हैं तथा वन क्षेत्र से लगे ग्रामों में लोगों को जागरूक कर उन्हें भी जोड़ा जा रहा है ताकि जन समर्थन से बाघ संरक्षण का नारा चरितार्थ हो।
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Monday, July 29, 2019

पन्ना ने दिलाया मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा

  •   बीते 10 सालों में शून्य से बाघों की संख्या पन्ना में पहुँची 50 के पार
  •   पन्ना के बाघ विहीन होने पर छिन गया था टाईगर स्टेट का तमगा


जंगल में आराम फरमाता पन्ना का बाघ परिवार। 

अरुण सिंह,पन्ना। पूरे 10 वर्षों के बाद म.प्र. को वह खोया हुआ सम्मान फिर हासिल हो गया है, जिसे वर्ष 2010 में प्रदेश ने खो दिया था। विश्व बाघ दिवस के अवसर पर सोमवार को घोषित हुई बाघों की गणना रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश में बाघों की सर्वाधिक संख्या अब म.प्र. में है। इस खुशखबरी से समूचे प्रदेश में जहां उत्साह का माहौल है, वहीं प्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व में इस उपलब्धि की खुशी देखते ही बन रही है। सबको यह पता है कि म.प्र. को टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में पन्ना टाईगर रिजर्व ने सबसे अहम रोल अदा किया है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में पन्ना टाईगर रिजर्व बाघों से विहीन हो गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2010 में आई बाघों की गणना रिपोर्ट में कर्नाटक नम्बर वन में पहुँच गया और म.प्र. का टाईगर स्टेट का दर्जा छिन गया। उस समय म.प्र. में बाघों की संख्या घटकर 257 में सिमट गई थी और कर्नाटक 300 बाघों के साथ टाईगर स्टेट का तमगा हासिल करने में कामयाब हुआ था। वर्ष 2014 में कर्नाटक 406 बाघों के साथ पुन: अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रखने में कामयाब रहा। लेकिन इन वर्षों के पन्ना टाईगर रिजर्व में वह सब घटित हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। यहां बाघों के उजड़े संसार को फिर से आबाद करने के लिये शुरू की गई बाघ पुनर्स्थापना  योजना ने कामयाबी की वह मिशाल कायम की कि पूरी दुनिया यहां के अभिनव प्रयोगों को देख हैरत में पड़ गई। यहां बाहर से लाये गये संस्थापक बाघों ने तेजी से वंश वृद्धि कर पन्ना को फिर बाघों से आबाद कर दिया। इतना ही नहीं यहां पर पालतू दो बाघिनों को न सिर्फ जंगली बनाया गया, अपितु उन्होंने भी शावकों को जन्म देकर पन्ना को बाघों से समृद्ध करने में भूमिका निभाई।

पन्ना में अब तक जन्मे 90 शावक

पन्ना टाईगर रिजर्व में बीते 10 वर्षों के दौरान लगभग 90 शावकों का जन्म हुआ, जिनमें कई शावक असमय काल कवलित भी हुये। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघ स्वच्छन्द रूप से विचरण कर रहे हैं, जिनमें बाघ, बाघिन व शावक शामिल हैं। इस तरह से बाघों की हुई गणना में पन्ना टाईगर रिजर्व के बाघों की संख्या जुडऩे से म.प्र. में बाघों की कुल संख्या पाँच सौ के पार 526 तक पहुँच गई और कर्नाटक 524 बाघों के साथ दूसरे नम्बर में जा पहुँचा। इस तरह से म.प्र. को एक बार फिर टाईगर स्टेट का दर्जा मिल गया, जिसमें पन्ना का महत्वपूर्ण योगदान है। इस गौरवशाली उपलब्धि के लिये निश्चित ही बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले पन्ना टाइगर रिज़र्व के तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति, उनकी पूरी टीम, मौजूदा प्रबंधन  तथा प्रत्यक्ष व  अप्रत्यक्ष रूप से बाघों के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पन्नावासी बधाई के पात्र हैं। प्रदेश को वापस मिला यह सम्मान बरक़रार रहे, इसके लिए सजगता और संरक्षण की दिशा में सतत प्रयास जरुरी है।
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पन्ना को आबाद करने वाला वनराज सल्तनत से हुआ बेदखल

  •   कोर क्षेत्र से बाहर बफर के जंगल में गुजार रहा जिंदगी 
  •   सफलतम रानी टी-2 व पटरानी टी-1 भी जी रही एकाकी जीवन
  •   पिछले ढाई-तीन वर्ष से इन्होंने नहीं दिया शावकों को जन्म


पूरे 7 - 8 वर्षों तक जंगल में राज करने वाला यह वनराज अब अपनी ही सल्तनत से बेदखल हो गया है। ( फाइल फोटो )

अरुण सिंह,पन्ना।
म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में 7-8 वर्षों तक एकक्षत्र राज करने वाला वनराज टी-3 अब बूढ़ा हो गया है। उम्रदराज होने पर उसकी अपनी ही सन्तानों ने इस वनराज से उसकी बादशाहत छीनकर साम्राज्य से बेदखल कर दिया है। ऐसी स्थिति में यह बूढ़ा बाघ बेघर होकर पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से बाहर बफर क्षेत्र में यहां से वहां भटकने को मजबूर है। इतना ही नहीं इस नर बाघ के संसर्ग से पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की नई दुनिया को आबाद करने में अहम भूमिका निभाने वाली सफलतम रानी टी-2 व पटरानी टी-1 भी उम्र बढऩे के साथ ही एकाकी जीवन जी रही हैं। इन दोनों बाघिनों ने पिछले ढाई-तीन वर्ष से शावकों को जन्म नहीं दिया है। बाघ पुनस्र्थापना योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाने वाले ये तीनों संस्थापक बाघ (एक नर व दो मादा) जिन्दगी के अन्तिम पड़ाव पर हैं।
उल्लेखनीय है कि रहस्य और रोमांच से भरी जंगल की दुनिया बहुत ही निराली होती है। यहाँ हर पल कुछ न कुछ ऐसा घटित होता रहता है जो लोगो  विश्मय विमुग्ध कर देता है। वर्ष 2009 में पन्ना टाईगर रिजर्व के बाघ विहीन हो जाने पर यहां बाघों की नई दुनिया को फिर से आबाद करने की दास्तान भी बेहद रोचक और दिलचस्प है। यहाँ बाघों के उजड़ चुके संसार  फिर  आबाद करने के लिये मार्च 2009 में ही बाघ पुनर्स्थापना  योजना की शुरूआत तब हुई, जब कान्हा व बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व से दो बाघिनों को पन्ना लाया गया। उस समय तक वन अधिकारियों का यह मानना था कि पन्ना के जंगल में एक नर बाघ मौजूद है। यही वजह है कि शुरूआत में सिर्फ दो बाघिनों को लाया गया, लेकिन जब इन्हें खुले जंगल में स्वच्छन्द विचरण के लिये छोड़ा गया तब पता चला कि पन्ना का इकलौता बचा नर बाघ लापता हो गया है। ऐसी स्थिति में बाघों की वंशवृद्धि के लिये प्रजनन क्षमता वाला नर बाघ कहीं अन्यत्र से यहां लाने की योजना बनी और 7 नवम्बर 2009 को पेंच टाईगर रिजर्व से बाघ टी-3 को पन्ना लाया गया।

नया ठिकाना इस नर बाघ को नहीं आया रास

पेंच टाईगर रिजर्व से तकरीबन 400 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करने के बाद पन्ना पहुँचे इस नर बाघ को एक हफ्ते तक बडग़ड़ी स्थित बाड़े में रखा गया। जब इस वनराज को बाड़े से पन्ना के खुले जंगल में विचरण हेतु रिलीज किया गया तो कुछ दिनों तक यह बाघ यहां के जंगल और आबोहवा का जायजा लिया जो शायद उसे रास नहीं आया। फलस्वरूप यह नर बाघ गहरीघाट-किशनगढ़ की ओर से पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल को अलविदा करते हुये अपने पुराने ठिकाने की ओर चल पड़ा। पेंच के इस बाघ ने एक माह से अधिक समय तक पार्क के अधिकारियों को हैरान और परेशान किया और अपने मूल ठिकाने की तरफ साढ़े चार सौ किमी की लम्बी दूरी तय कर डाली।

वन अधिकारियों की टीम ने किया सतत पीछा

पन्ना में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये संकल्पित तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति व उप संचालक विक्रम सिंह  परिहार तथा उनकी टीम ने हिम्मत नहीं हारी और इस बाघ का निरन्तर पीछा करते रहे। इस बाघ ने अपने अनूठे संकेतों से सुरक्षा व बिगड़ते हुये कॉरीडोरों के संबंध में भी प्रश्र चिह्न खड़े किये, जिससे वन अधिकारियों ने खासा सबक लिया। पन्ना में एक नया इतिहास रचने वाले इस नर बाघ को बेहोश कर 25 दिसम्बर 2009 को पुन: पन्ना लाया गया और 26 दिसम्बर को इसे खुले जंगल में छोड़ दिया गया।

बाघ को पन्ना में रोकने किया गया अभिनव प्रयोग

पेंच का यह नर बाघ पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल को छोड़ फिर अपने मूल ठिकाने की ओर फिर  कूच न करे, इसके लिये क्षेत्र संचालक श्री मूर्ति ने एक अभिनव युक्ति का प्रयोग किया। इस वनराज को आकर्षित  करने के लिये बाघिन के यूरिन का जंगल में छिड़काव कराया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि चार दिन के भीतर ही बाघ टी-3 व बाघिन टी-1 की मुलाकात हो गई। बाघ और बाघिन के इस मिलन से पन्ना में नन्हे शावकों की नई पीढ़ी का आगमन हुआ।  बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को पन्ना टाईगर रिजर्व के धुंधुवा सेहा में अपनी पहली सन्तान को जन्म दिया। इसके बाद से यहां शावकों के जन्म का सिलसिला अनवरत् जारी है। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की संख्या 50 के आँकड़े को भी पार कर गई है।

वृद्ध बाघ टी-3 अब बफर में गुजार रहा जिन्दगी

फादर आफ दि पन्ना टाईगर रिजर्व के खिताब से नवाजा जा चुका वनराज टी-3 अब 16-17 वर्ष की आयु का हो चुका है। यह उम्र जंगल के बाघों की औसत उम्र से बहुत ज्यादा है। जंगल में अमूमन बाघ की औसत उम्र 12 से 14 वर्ष तक ही होती है, इस लिहाज से भी टी-3 एक नया रिकार्ड बनाने की ओर अग्रसर है। उम्रदराज होने के कारण शारीरिक रूप से कमजोर हो चुका यह बाघ अब कोर क्षेत्र में अपना साम्राज्य कायम रखने की स्थिति में नहीं है। फलस्वरूप अपनी ही सन्तानों से बचने के लिये यह कोर क्षेत्र को अवलिदा कह बफर क्षेत्र में शेष बचा जीवन मवेशियों का शिकार करके गुजार रहा है। अभी हाल ही में बलैया सेहा के जंगल में बाघ पी-213(31) ने हमला कर इसे घायल भी कर दिया था। फलस्वरूप यह इलाका छोड़ टी-3 ने दूसरे इलाके में शरण ली है।
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Saturday, July 27, 2019

भाजपा नेता नीलेश द्विवेदी की हत्या के विरोध में हुआ प्रदर्शन

  •   पन्ना के डायमण्ड चौराहे में सैकड़ो लोगों ने शव रखकर किया चकाजाम
  •  उच्च पुलिस अधिकारियों से  माँगें पूरी करने का आश्वासन मिलने पर चकाजाम हुआ खत्म


हत्या की घटना के विरोध में डायमण्ड चौराहा पन्ना में हुए चक्काजाम का द्रश्य। 

अरुण सिंह,पन्ना। भाजपा नेता नीलेश द्विवेदी की शुक्रवार को गोली मारकर हुई हत्या की घटना से आक्रोशित लोगों की भीड़ ने शनिवार को शाम जिला मुख्यालय पन्ना के डायमण्ड चौराहे में प्रदर्शन करते हुये चकाजाम किया। भारी तादाद में पुलिस बल की मौजूदगी के बीच हुये इस चकाजाम व प्रदर्शन में शामिल लोग हत्या के आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी के साथ चौकी प्रभारी ककरहटी को निलंबित करने की माँग कर रहे थे। मौके पर पहुँचे एडिशनल एसपी वी. के. एस. परिहार के आश्वासन उपरान्त प्रदर्शनकारियों ने चकाजाम खत्म किया। इस दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग-39 पर पूरी तरह से आवागमन ठप्प रहा।
उल्लेखनीय है कि गत शुक्रवार को अपराह्न लगभग 11:30 बजे भाजपा नेता नीलेश द्विवेदी अपने एक अन्य साथी के साथ मोटर साइकिल से जब ककरहटी से अपने गाँव मोहनपुरा जा रहे थे, उसी समय रस्ते में  घात लगाये बैठे हमलावरों ने उनके ऊपर गोली चला दी थी। पैर में  गोली लगने पर गम्भीर रूप से घायल हो चुके श्री द्विवेदी काफी देर तक घटना स्थल पर ही पड़े रहे ,पुलिस के पहुंचने पर उन्हें इलाज के लिए पन्ना जिला अस्पताल लाने  बजाये  सतना ले जाया गया। लेकिन इसमें काफी विलम्ब हुआ जिससे अत्यधिक रक्तश्राव होने के कारण इस युवा नेता की हालत और गम्भीर हो गई। बताया जाता है कि सतना में भी उनका  समुचित उपचार नहीं हो सका और उन्हें रीवा के लिये रेफर कर दिया गया। फलस्वरूप रीवा पहुँचने से पूर्व रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। चूँकि गोली पैर में ही लगी थी, ऐसी स्थिति में यदि त्वरित उपचार मिलता और खून चढ़ जाता तो शायद युवा नेता की जान बच जाती। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ और अत्यधिक रक्तश्राव हो जाने के चलते उनकी मौत हो गई।  हत्या की इस सनसनीखेज घटना के बाद से इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ है, मामले के संबंध में कोई कुछ भी बताने व कहने से बच रहा है। पुलिस ने इस मामले में शुक्रवार को 4 लोगों लाल साहब सिंह बुंदेला, जगदीश राजपूत, भूपत चौधरी एवं सत्तार खान के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध किया था, लेकिन परिजन व  प्रदर्शनकारी आरोपियों की संख्या बढ़ाने तथा सुरक्षा सहित अन्य  मांगों के लिए अड़े हुये थे। मौके पर  आला पुलिस अधिकारियों का आश्वासन मिलने तथा चौकी प्रभारी ककरहटी को निलंबित किये जाने की घोषणा के  उपरान्त प्रदर्शनकारी माने और डायमण्ड चौराहे पर चल रहा चकाजाम खत्म हुआ।भाजपा नेता नीलेश द्विवेदी का अंतिम संस्कार अब रविवार 28 जुलाई को उनके गृह ग्राम मोहनपुरा में होगा। हत्याकांड की इस घटना को लेकर पूरे इलाके में तनाव का माहौल बना हुआ है।
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पांच साल में विकास खा गया 1 करोड़ 9 लाख पेड़



विकास पिछले पांच सालों में एक करोड़ नौ लाख से ज्यादा पेड़ों को खा गया। देश की संसद में कल यानी शुक्रवार को पर्यावरण मंत्रालय की ओर से इसकी जानकारी दी गई। लोगों को फल, छाया और प्राणवायु मुहैया कराने वाले ये दरख्त आज कहां हैं। इनकी कोई कब्र भी तो नहीं कि वहां जाकर निशानदेही की जा सके। कब्र पर फूल चढ़ाए जा सकें। अहसान जताया जा सके कि हां तुम्हारी दी हुई सांस पर हम जीवित रहे हैं।
लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से बाबुल सुप्रियों द्वारा शुक्रवार को बताया गया कि वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच में सरकार ने विकास कार्यों के लिए एक करोड़ नौ लाख पेड़ों को काटने की अनुमति दी। सबसे ज्यादा 26 लाख 91 हजार पेड़ काटने की अनुमति वर्ष 2018-19 में दी गई। वर्ष 14-15 में 23 लाख तीन हजार, 15-16 में 16 लाख नौ हजार, 16-17 में 17 लाख एक हजार, 17-18 में 25 लाख पांच हजार पेड़ काटने की अनुमति दी गई। मंत्रालय ने यह भी बताया कि जंगल में लगने वाली आग के चलते कितने पेड़ काटे गए या नष्ट हो गए, इसका डाटा उसके द्वारा नहीं रखा जाता। यह सरकार द्वारा दी गई अनुमति की जानकारी है। इसके अलावा चोरी-छिपे भी कितने पेड़ काटे गए, इसका क्या अनुमान किया जा सकता है।
विकास क्या है। क्या कंक्रीट की सड़कें और शीशे की इमारतें ही विकास हैं। या इनसान की खुशहाली और पृथ्वी का संरक्षण विकास है। बड़ा विरोधाभास है। लेकिन, यह ऐसा विरोधाभास है, जिस पर जूझने के लिए कम से कम अब तो समाज को तैयार हो जाना चाहिए। सरकार कहती है कि हर काटे गए पेड़ के बदले दस पेड़ लगाए जाते हैं, लेकिन, क्या वो दस के दस पेड़ जीवित बचे रह पाते हैं। अगर सौ साल के एक पेड़ को आप काट रहे हैं तो उसकी जगह पर लगाए गए पेड़ को उस पेड़ के बराबर आक्सीजन, छाया और फल देने में सौ साल लगेंगे। इसलिए सौ साल के पेड़ को काटकर उसकी जगह पर दस पेड़ लगाने से पर्यावरण को होने वाली क्षति की भरपाई नहीं की जा सकती है।
कुछ अध्ययन बताते हैं कि एक वृक्ष साल भर में 260 पाउंड आक्सीजन छोड़ता है। दो दरख्त इतनी ऑक्सीजन पैदा करते हैं जिससे चार लोगों का परिवार सांस ले सकता है। इस अनुसार ये एक करोड़ नौ लाख पेड़ दो करोड़ अट्ठारह लाख लोगों की सांस लेने भर का आक्सीजन पैदा करते थे। अब इनके काटे जाने के बाद क्या होगा। इन दो करोड़ अट्ठारह लाख लोगों के लिए आक्सीजन कौन पैदा करेगा। काटे गए पेड़ों की जगह पर लगाए गए छोटे पेड़ तो सौ-पचास साल बाद इतनी आक्सीजन देंगे, जितनी ये अभी देते थे।
धूप की तुलना में पेड़ों की छाया में तापमान पांच डिग्री तक कम हो जाता है। बहुत सारी गर्मी पेड़ खुद में सोख लेते हैं और उन्हें नीचे नहीं आने देते। इन पेड़ों के नहीं रहने से अब वह गर्मी कौन सोख रहा होगा। क्या हमारी दुनिया में तेजी से बढ़ती गर्मी का कारण यह नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया की चिंता कारण है। लेकिन, यह बात निश्चित है कि इससे निपटने के लिए दुनिया जो भी उपाय करेगी, कम से कम हम तो उसमें शामिल नहीं होंगे।
क्योंकि, हमें तो अभी बहुत सारे पुराने झगड़े सुलटाने हैं। खुन्नस निकालनी है। किसी को हिन्दू होने पर गर्व है। किसी को मुसलमान होने पर। कोई ब्राह्मण है तो कोई राजपूत। पहले कभी गाली की तरह इस्तेमाल होने वाला जातिसूचक शब्द चमार भी अब लोग अपनी बुलेट पर लिखवाकर चल रहे हैं। उन्हें भी उसमें गर्व करना है।
अभी पहले हम ये सब खुन्नसें निकाल लें फिर हम जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में भी सोच लेंगे। तब तक पूंजीपतियों का विकास होने दीजिए। इस देश के संसाधन खा-खा कर कारपोरेट कंपनियों को और मोटा होने दीजिए। बाकी इंसान होने का क्या है। उस पर गर्व करने की भला क्या बात है। हम तो अपनी जाति और धर्म पर ही गर्व करेंगे।
एक सवाल है आप लोगों से, देखकर बताइये तस्वीर में ये दोनों लोग आखिर काट क्या रहे हैं ?

साभार - @ कबीर संजय 

Thursday, July 25, 2019

पत्नी व पुत्र के वियोग और एक स्लोगन ने बदल दी जिंदगी की दिशा

  •  सूखी उबड़ - खाबड़, बंजर  जमीन में तैयार कर दिया हरा-भरा जंगल 
  •  भरतपुर गांव के 55 वर्षीय  भैयाराम यादव सही अर्थों में बने वृक्ष पुरुष

                                                       ।। अरुण सिंह ।।


वृक्ष पुरुष भैयाराम यादव 

गहन दुःख, संताप और पीड़ा के क्षणों में भी कभी-कभी सृजन के अंकुर फूट पड़ते हैं। ऐसी मनोदशा में जब जीवन व्यर्थ और अर्थहीन प्रतीत होने लगता है उस निर्णायक क्षण में व्यक्ति या तो आत्मघाती कदम उठाने की ओर जाने -अनजाने अग्रसर हो जाता है या फिर उसकी जिंदगी में आमूलचूल परिवर्तन होता है, जिंदगी की दिशा ही बदल जाती है। इसके लिए कोई भी छोटी घटना, विचार व बात जिंदगी के नजरिए में बदलाव लाने की वजह बन जाती है। ऐसा ही कुछ घटित हुआ चित्रकूट के अंतर्गत आने वाले भरतपुर गांव के निवासी भैयाराम यादव के साथ।
भैयाराम के संबंध में प्रियंका गाँधी का ट्वीट 

विगत 20 वर्ष पूर्व तक भैयाराम भी एक साधारण ग्रामीण की तरह अपने परिवार के साथ जीवन यापन कर रहा था। लेकिन उनकी जिंदगी में ऐसा वज्रपात हुआ कि पूरी जिंदगी का ताना - बाना ही छिन्न-भिन्न हो गया। हालात ये हो गये कि गांव के लोग इन्हें पागल समझने लगे। लेकिन जिंदगी बड़ी उलट और रहस्यपूर्ण होती है, कभी-कभी तथाकथित समझदारों से पागल समझे जाने वाले लोग कहीं ज्यादा गहरी समझ वाले और संवेदनशील साबित होते हैं। भैया राम यादव भी कुछ ऐसे ही बिरले व्यक्ति हैं जिन्होंने विगत 12 वर्षों के दौरान वह कर दिखाया है जिसे करने की कल्पना भी समझदार लोग नहीं कर सकते। बीते 12 वर्षों में गांव से दूर सूखी पड़ी उबड़ - खाबड़ भूमि में 40 हजार पौधे बड़े कर एक हरा-भरा जंगल तैयार कर दिया है। रोपे गए पौधों को जीवन देने के लिए भैया राम को मीलों दूर से पानी ढोकर लाना पड़ता था लेकिन प्रतिकूल हालात व परिस्थितियों ने भैया राम यादव की दृढ़ इच्छाशक्ति व जुनून के सामने हार मान ली और आज उस जमीन में हरा भरा जंगल लहलहा रहा है।
सही अर्थों में वृक्ष पुरुष बन चुके भैया राम यादव की जिंदगी में यदि झांके तो वहां दुःख, कष्ट और पीड़ा के पहाड़ दिखाई देते हैं। बताते हैं कि वर्ष 2001 में भैयाराम की पत्नी ने बच्चे को जन्म देते समय दम तोड़ दिया था, पत्नी की मौत ने निश्चित ही भैया राम को बहुत गहराई तक आहत किया रहा होगा। लेकिन नवजात शिशु ने  उनकी जिंदगी को एक मकसद और उद्देश्य दे दिया। इन्होंने बच्चे को बड़े प्यार और जतन से पाला लेकिन अस्तित्व को शायद कुछ और ही मंजूर था, फलस्वरूप 7 वर्ष की उम्र में उनके बेटे की भी मौत हो गई। पत्नी और पुत्र के वियोग में काफी दिनों तक भैयाराम यहां वहां भटकते रहे। उसी दौरान उन्हें कहीं यह वाक्य पढ़ने को मिला श्एक वृक्ष 100 पुत्र समानश् । इस स्लोगन को पढ़ते ही भैया राम के अंतरतम में बिजली सी कौंधी और क्षण भर में ही उनका रूपांतरण हो गया। जिंदगी की दिशा व सोच ने एक नया आयाम ले लिया। भैया राम अपने गांव वापस लौट आए और पेड़-पौधों को ही अपनी संतान मानने लगे। उन्होंने गांव से कुछ दूरी पर एक झोपड़ी बनाई और पेड़-पौधों की सेवा में जुट गए। बीते 12 वर्षो में उन्होंने 40 हजार पौधों को पाल पोसकर बृक्ष बनाने में कामयाबी हासिल की है। यही वजह है कि 55 वर्षीय भैयाराम यादव न सिर्फ अपने गांव अपितु समूचे प्रदेश में अब वृक्ष पुरुष के रूप में जाने जा रहे हैं।


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Wednesday, July 24, 2019

पुलिस अभिरक्षा से फरार शातिर ठग हुआ गिरफ्तार

  •   सिमरदा गाँव के लालचंद यादव व साथियों ने पकड़कर किया पुलिस के हवाले
  •   आरोपी के फरार हो जाने पर अजयगढ़ पुलिस की हो रही थी किरकिरी
  •   गाँव के साहसी युवकों ने आरोपी को पकड़कर बचाई पुलिस की लाज


ग्रामीण युवकों की मदद से पकड़ा गया आरोपी साथ में पुलिस।

अजयगढ़/पन्ना। शातिर अपराधियों के प्रति भी पुलिस का रवैया कितना लापरवाही पूर्ण और गैर जिम्मेदाराना होता है, इसका जीता-जागता उदाहरण बुधवार को तड़के अजयगढ़ थाने में देखने को मिला। राजस्थान की करौली जेल में रहते हुये ठगी का रैकेट चलाने वाले अभियुक्त प्रवीण उर्फ रिन्कू मीणा को न्यायालय से रिमाण्ड पर पुलिस अजयगढ़ लाई थी। इस शातिर ठग ने विगत दो माह पूर्व अजयगढ़ स्थित एक पेट्रोल पम्प के मालिक से एडिशनल एसपी पन्ना के नाम पर 50 हजार रू. की ठगी करवाई थी। इसी मामले में विस्तृत पूछताछ के लिये पन्ना जिले की पुलिस इस शातिर और खतरनाक अभियुक्त को रिमाण्ड पर 23 जुलाई को ही अजयगढ़ लाई थी। मामले के संबंध में आरोपी से पूछताछ हो पाती इसके पहले ही यह शातिर ठग अजयगढ़ थाना पुलिस की लापरवाही का फायदा उठाते हुये रफूचक्कर हो गया। आरोपी को 6 दिन की रिमाण्ड पर लिया गया था, लेकिन अजयगढ़ पुलिस उसे 24 घण्टे भी नहीं संभाल सकी। लेकिन अजयगढ़ थाना क्षेत्र के ही ग्राम सिमरदा के साहसी युवक लालचंद यादव व उसके तीन अन्य साथियों ने इस शातिर ठग को दबोच लिया और पुलिस को बुलाकर उनके हवाले कर दिया। इन साहसी युवकों ने आरोपी को पकड़कर बदनामी झेल रही अजयगढ़ थाना पुलिस की जहां लाच बचा ली है वहीं जिले के आला पुलिस अधिकारियों ने भी शातिर ठग के पकड़े जाने पर राहत की साँस ली है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान की करौली जेल से गैंग संचालित करने वाला यह शातिर ठग प्रवीण उर्फ रिन्कू मीणा बहुत ही शातिराना ढंग से ठगी की वारदात को अंजाम देने के लिये पुलिस की ही मदद लेता था। गहन छानबीन और पड़ताल के बाद पुलिस इस ठग का लोकेशन पता कर इसे रिमाण्ड पर पूछताछ के लिये ले पाई थी, लेकिन अजयगढ़ थाना पुलिस की लापरवाही से पूरी मेहनत पर पानी फिर गया था। अजयगढ़ जैसी ठगी की वारदातें पड़ोसी जिलों में भी हुई हैं, जिसे देखते हुये यह उम्मीद जताई जा रही है कि आरोपी से गहन पूछताछ होने पर कई अन्य ठगी के सनसनीखेज मामले उजागर हो सकते हैं। बताया जा रहा है कि मंगलवार को अजयगढ़ पुलिस जब इस आरोपी को 6 दिन की रिमाण्ड पर थाने लाई, उसी समय से इस शातिर ठग के प्रति पुलिस का रवैया लापरवाही भरा रहा। रात्रि में उसे लॉकप के भीतर रखने के बजाय बाहर हथकड़ी डालकर जंजीर से बांधकर रखा गया। इतना ही नहीं ड्यूटी में तैनात पुलिस कर्मी बेफिक्र होकर गहरी नींद में डूबे रहे। इसी मौके का फायदा शातिर ठग प्रवीण उर्फ रिन्कू मीणा ने उठाया और जंजीर से खुद को अलग कर फरार हो गया। थाना के सीसीटीव्ही कैमरे में यह शातिर ठग सुबह 4 बजे तक नजर आ रहा था, उसके बाद फिर नहीं दिखा। जाहिर है कि आरोपी 4 बजे के बाद जब पुलिस कर्मी गहरी नींद में थे, उसी समय फरार हुआ।

 पुलिस अधीक्षक के साथ चारों युवक जिन्होंने आरोपी को पकड़ा।

लापरवाह तीन पुलिस कर्मी हुये निलंबित 

मामले में लापरवाही बरतने वाले तीन पुलिस कर्मियों  जिनमें एक प्रधान आरक्षक व दो आरक्षक हैं, उन्हें पुलिस अधीक्षक पन्ना मयंक अवस्थी ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। फरार होने की घटना के बाद से पुलिस आस-पास के इलाके में सरगर्मी के साथ आरोपी की तलाश में जुटी थी। पुलिस अधीक्षक श्री अवस्थी ने फरार आरोपी की सूचना देने या पकड़वाने वाले को 10 हजार रू. इनाम देने की भी घोषणा कर दी थी। जिले की पुलिस चप्पे-चप्पे पर आरोपी को ढूँढ़ रही थी, फिर भी कोई सुराग नहीं मिल रहा था। लेकिन दोपहर बाद अचानक सिमरदा गाँव से पुलिस के लिये यह राहत भरी खबर मिली कि आरोपी पकड़ा गया है।

सिमरदा में भी भागने का किया था प्रयास

पुलिस अभिरक्षा से भागा शातिर ठग सभी की नजरों से छिपते और बचते हुये सुबह सानगुरैया पहुँचा, जहां रास्ते में उसे एक आटो वाला मिला। आरोपी ने आटो वाले से कहा कि वह उसको चंदला छोड़ दे, मैं 1 हजार रू. दूँगा। आरोपी ने आटो वाले के फोन से कहीं बात की और तुरन्त उसके खाते में 1 हजार रू. डलवा दिया। आटो वाला आरोपी को लेकर जैसे ही सिमरदा गाँव पहुँचा तो वहां उसके भाई लालचंद यादव ने आरोपी को पहचान लिया, क्योंकि सुबह से ही उसकी फोटो सोशल मीडिया में चल रही थी। आरोपी को भी कुछ शंका हुई, फलस्वरूप वह आटो से उतरकर खेतों से होकर भागने लगा। लेकिन वहां मौजूद लालचंद यादव सहित तीन अन्य युवक धरमराज, रामगोपाल व अजय ने दौड़कर उसे एक-डेढ़ किमी दूर दबोच लिया। इस तरह से यह शातिर ठग एक बार फिर पुलिस के हत्थे चढ़ गया।

दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर 

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Tuesday, July 23, 2019

अवैध हीरा खदान माफियाओं ने किया वन कर्मियों पर हमला

  •   जानलेवा हमले में डिप्टी रेन्जर सहित 6 वन कर्मी हुये घायल
  •   विश्रामगंज वन परिक्षेत्र के रहुनिया बीट में चल रही थी खदान



घायल वन कर्मियों  के साथ उप वन मण्डलाधिकारी नरेन्द्र सिंह  परिहार।

अरुण सिंह,पन्ना। वन एवं खनिज सम्पदा से समृद्ध पन्ना जिले में अवैध उत्खनन अब नासूर बन चुका है। खनन माफियाओं के हौसले इस कदर बुलन्द हो चुके हैं कि उनकी अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने का प्रयास करने वाले शासकीय अमले पर ही जानलेवा हमला करने लगे हैं। ताजा मामला उत्तर वन मण्डल पन्ना अन्तर्गत विश्रामगंज वन परिक्षेत्र के रहुनिया बीट का है, जहां वन क्षेत्र में अवैध हीरा खदान चल रही थी। अवैध उत्खनन को रोकने व अपराधियों को पकडऩे के लिये वन अमला जब मौके पर पहुँचा तो खनन माफियाओं ने वन कॢमयों पर ही हमला बोल दिया। मंगलवार की सुबह लगभग 11 बजे घटित इस घटनाक्रम में डिप्टी रेन्जर अजीत खरे सहित चार वन रक्षक व एक चौकीदार घायल हुये हैं। हमले में वन रक्षक संजय पटेल व अखिलेश सिंह चौहान के ज्यादा चोटें आई हैं। सभी घायलों को जिला चिकित्सालय पन्ना में भर्ती कराया गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है। मामले की रिपोर्ट वन कर्मियों  द्वारा बृजपुर थाने में दर्ज कराई गई है।
मामले की जानकारी देते हुये उप वन मण्डलाधिकारी विश्रामगंज नरेन्द्र सिंह परिहार ने बताया कि रहुनिया बीट अन्तर्गत कक्ष क्र. पी-367 में देवन सेहा की वन भूमि पर अवैध रूप से हीरा खदान संचालित होने की सूचना प्राप्त हुई थी। सूचना मिलने पर सॢकल प्रभारी इटवा अजीत खरे के नेतृत्व में चार वन रक्षक व एक चौकीदार मौके पर पहुँचे। अवैध रूप से संचालित हीरा खदान में कार्य कर रहे लल्लू अहिरवार व पप्पू अहिरवार निवासी छतैनी को वन कॢमयों ने पकड़ लिया। मौके पर मौजूद अन्य आरोपी भागने में सफल हो गये। पकड़े गये दोनों आरोपियों को लेकर वन कर्मी जब बाबूपुर वन चौकी आ रहे थे, उस दौरान सफेद रंग की स्काॢपयो व पिकअप गाड़ी में एक दर्जन से भी अधिक लोग पहुँचे और वन कर्मियों  के ऊपर लाठी-डण्डों से जानलेवा हमला बोल दिया। अचानक हुये इस हमले से वनकर्मी अपने बचाव में कुछ कर पाते, इसके पहले ही हमलावरों ने उन्हें मार-मारकर लहूलुहान कर दिया। हमलावर वन कर्मियों की गिरफ्त से दोनों आरोपियों को छुड़ाकर भाग गये।
जिला चिकित्सालय में गंभीर रूप से घायल वन रक्षक।

इस जानलेवा हमले में बुरी तरह से जख्मी और बदहाल वन कर्मियों ने डायल 100 को घटना से अवगत कराया, फलस्वरूप पुलिस घटना स्थल पर पहुँची। सभी वन कर्मियों को बृजपुर थाना लाया गया। हमले में वन कर्मियों की वर्दी तक फट गई थी तथा वे भयभीत और डरे सहमे नजर आ रहे थे। घायल वन कॢमयों ने बताया कि हमलावरों में वे कुछ लोगों को जानते हैं जबकि कुछ लोग अज्ञात हैं। रिपोर्ट में रज्जन महाराज निवासी माधौगंज, नत्थू खरे, पप्पू खरे, लल्लू अहिरवार, पप्पू अहिरवार व लाखन सिंह गौंड़ सहित अन्य 10-12 व्यक्तियों का जिक्र किया गया है। इन आरोपियों के खिलाफ बृजपुर थाना पुलिस में लाठी-डण्डों से मारपीट करने तथा शासकीय कार्य में बाधा डालने का मामला दर्ज किया गया है। थाना पुलिस द्वारा अपराध घटना को लेकर फ रियादी की रिपोर्ट पर आईपीसी की धारा 341, 147, 148, 149, 353, 332, 186, 294, 506 के तहत छ: नामजद व दस से बारह अन्य के खिलाफ  मामला दर्ज करते हुये विवेचना में लिया है।

वन क्षेत्र में चल रही सैकड़ों अवैध हीरा खदानें

अवैध हीरा खदानों के लिये कुख्यात हो चुके बृजपुर थाना क्षेत्र में वन भूमि पर सैकडों हीरा की खदानें अवैध रूप से संचालित हो रहीं हैं। बृजपुर का यह क्षेत्र हीरा धारित पट्टी कहलाता है जहां अधिकांश जगह खुदाई करने पर हीरे का चाल निकलती है और उनमें बेशकीमती हीरे मिलते हैं। इस इलाके में हीरा धारित क्षेत्र अधिकांशत: वन भूमि में आता है यही वजह है कि खनन माफियाओं की नजर बेशकीमती हीरे निकालने के लिये वन भूमि पर रहती है। अवैध हीरा कारोबार में लिप्त लोग मौका पाकर वन क्षेत्र में अवैध उत्खनन कर हीरा निकालते हैं और उन हीरों को वहां के सक्रिय दलालों के माध्यम से दिल्ली, मुम्बई और सूरत के व्यापारियों को बेंचा जाता है। हीरे की अधिक उपलब्धता के चतले हीरा खनन माफि या किसी भी स्थिति से निपटने के लिये तैयार रहते हैं और उनके अवैध कार्य पर बाधा डालने वालों पर हमला करने से भी नहीं चूकते। आज की वारदात इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि खनन माफिया किस कदर बेखौफ और बेलगाम हो चुके हैं।
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दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर 

Monday, July 22, 2019

शिक्षा विभाग का लिपिक 10 हजार की रिश्वत लेते गिरफ्तार

  •   लोकायुक्त पुलिस सागर की टीम ने की छापामार कार्यवाही
  •   शिक्षक की पदस्थापना बदलवाने के लिये माँगी थी रिश्वत


 आरोपी लिपिक का आवास जहां लोकायुक्त पुलिस ने छापा डाला।

 अरुण सिंह, पन्ना। भ्रष्टाचार को लेकर बदनाम हो चुके शिक्षा विभाग के अधिकारी व कर्मचारी सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे। जिला मुख्यालय पन्ना में पदस्थ शिक्षा विभाग के लिपिक को आज 10 हजार रू. की रिश्वत लेते हुये लोकायुक्त पुलिस सागर की टीम ने रंगे हाँथों गिरफ्तार किया है।
आरोपी लिपिक रामशंकर रैकवार।

 आरोपी लिपिक रामशंकर रैकवार लुहरगांव में पदस्थ अध्यापक से पदस्थापना बदलवाने के लिये 20 हजार रू. रिश्वत की माँग की थी। जिसकी शिकायत अध्यापक अरविन्द द्विवेदी ने 17 जुलाई को लोकायुक्त पुलिस सागर से की थी। पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त रामेश्वर सिंह यादव के मार्गदर्शन में लोकायुक्त पुलिस की 8 सदस्यीय टीम ने डीएसपी राजेश खेड़े के नेतृत्व में आज सुबह लगभग 10 बजे लिपिक के धाम मुहल्ला पन्ना स्थित आवास में छापा मारा और लिपिक को रिश्वत लेते हुये रंगे हाँथ दबोच लिया। बताया गया है कि आरोपी लिपिक उच्च अधिकारियों को रूपये देने के बहाने लम्बे समय से शिक्षकों से रिश्वत वसूल करता रहा है, जिसे लोकायुक्त पुलिस ने आज रिश्वत की राशि सहित गिरफ्तार किया है।

अध्यापक अरविन्द द्विवेदी ने की थी शिकायत 

शिकायतकर्ता  अरविन्द द्विवेदी।

लोकायुक्त पुलिस से अध्यापक अरविन्द द्विवेदी ने शिकायत की थी कि पदस्थापना बदलने के लिये जिला पंचायत शिक्षा प्रकोष्ठ में पदस्थ लिपिक रामशंकर रैकवार द्वारा उससे 20 हजार रू. की रिश्वत माँगी जा रही है। जिसमें से पहली किश्त 10 हजार रू. वह दे चुका है। लम्बे समय से परेशान इस अध्यापक ने रिश्वत की दूसरी किश्त देने से पूर्व भ्रष्ट लिपिक को सबक सिखाने की मंशा से लोकायुक्त का सहारा लिया। योजना के मुताबिक सोमवार को सुबह आज जैसे ही अध्यापक रिश्वत की राशि लेकर आरोपी लिपिक के घर पहुँचा  और राशि उसके हाँथों में दी उसी समय लोकायुक्त पुलिस की टीम ने आरोपी लिपिक को रंगे हाँथ दबोच लिया।

हाँथ धुलाते ही गुलाबी हो गया पानी का रंग

लोकायुक्त पुलिस सागर की टीम का नेतृत्व कर रहे डीएसपी राजेश खेड़े ने बताया कि आरोपी लिपिक ने शिकायतकर्ता अध्यापक अरविन्द द्विवेदी से रिश्वत की राशि जैसे ही ली, हमारी टीम ने लिपिक को रंगे हाँथ पकड़ लिया। लिपिक के हाँथ धुलाये जाने पर पानी का रंग गुलाबी हो गया। डीएसपी श्री खेड़े ने बताया कि 8 सदस्यीय लोकायुक्त पुलिस की टीम द्वारा यह कार्यवाही की गई है। आरोपी लिपिक के विरूद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत कार्यवाही की जा रही है।

पूर्व में भी महकमे में पकड़े जा चुके हैं कई लोग

शिक्षा महकमे में इसके पूर्व भी कई लोग रिश्वत लेने के आरोप में लोकायुक्त पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं। एक बार फिर शिक्षा विभाग के लिपिक द्वारा रिश्वत लेते हुये पकड़े जाने पर ऐसा प्रतीत होता है कि नई पीढ़ी को शिक्षित और संस्कारित करने की जवाबदारी जिस विभाग पर है उसी का अब संस्कारों व शिक्षा के उच्च आदर्शों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रह गया है। शिक्षण संस्थायें लूट खसोट का अड्डा बन चुकी हैं और शिक्षा महकमे में कार्यरत ज्यादातर अधिकारी व कर्मचारी अपने मूल दायित्वों से विमुख होकर गैर जरूरी कार्यों में लिप्त रहते हैं। यही वजह है कि जिले की शिक्षा व्यवस्था सुधरने के बजाय दिनोंदिन और बिगड़ रही है। बीते कुछ वर्षों से शिक्षा महकमे में भ्रष्टाचार की वृत्ति जिस तरह से बढ़ी है उससे हालात और चिन्ताजनक हो रहे हैं। अमूमन हर साल इस महकमे में कोई न कोई भ्रष्टाचार के आरोप में धरा जाता है फिर भी इस तरह के कदाचरण में लिप्त लोग सबक लेने को तैयार नहीं हैं। गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिये शासन द्वारा चलाई जा रही योजनायें भी भ्रष्ट अधिकारियों की कमाई का जरिया बन चुकी हैं। नतीजतन इन योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिल पा रहा है।
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साधारण सा दिखने वाला असाधारण इंसान

।। अरुण सिंह, पन्ना ।।
कोई साधारण सा दिखने वाला इंसान इतना असाधारण भी हो सकता है, इसकी अनुभूति पद्म श्री बाबूलाल दहिया को देखकर होती है। प्रकृति, पर्यावरण, जैव विविधता और परंपरागत अनाजों की बिसरा दी गई किस्मों को सहेजने और संरक्षित करने वाले दहिया जी अनुभव जनित ज्ञान के अपूर्व भंडार हैं। जैविक खेती की महत्ता बताने वाले दहिया जी ने देसी धान की सवा सौ से भी अधिक किस्मों को संजोया है और जीर्ण - शीर्ण हो चुकी काया के बावजूद भी उसी जुनून और जज्बे के साथ अपने मिशन में जुटे हुए हैं। विंध्य क्षेत्र का यह साधारण सा दिखने वाला कृषक बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी है। सृजनात्मकता इनकी सहज और स्वाभाविक जिंदगी बन चुकी है तभी तो आप न सिर्फ परंपरागत जैविक खेती के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं अपितु कृषि ज्ञान विज्ञान और साहित्य को भी समृद्ध कर रहे हैं। इनके लंबे अनुभव जनित ज्ञान का ही यह कमाल है कि देश के ख्याति लब्ध कृषि वैज्ञानिक भी इनके सामने निरुत्तर और आवाक हो जाते हैं। विंध्य ही नहीं समूचे प्रदेश के गौरव बन चुके बाबूलाल दाहिया जी ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के 91वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में अपनी बात को किस तरह प्रभावी ढंग से रखी, आप भी पढ़ें पद्म श्री बाबूलाल दहिया जी की जुबानी -

यह चित्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के 91 में स्थापना दिवस का है।
वहां देश भर के समस्त कृषि बैज्ञानिको और प्रगतिशील कृषकों के साथ साथ पद्मश्री एवार्डी कृषकों को भी आमंत्रित किया गया था। हम लोगो के लिएआगे अलग से मंच के पास सीटें सुरक्षित थी और परिचर्चा के लिए पूरा 3 घण्टे का एक सत्र ही रखा गया था। बाकी एवार्डी कृषक तो यूपी, हरियाणा ,पंजाब य राजस्थान के थे जिनके खेती के तौर तरीके ही अलग थे और वे बढ़ चढ़ कर अपने उत्पादन की बात कर रहे थे । किन्तु मैं एक मात्र मध्य प्रदेश का ऐसा कृषक था जो खेती के साथ साथ अपने प्राकृतिक संसाधन बचाने पर भी जोर दे रहा था।
मेरी बात ऐसी थी जो संस्थान के निर्देशक डॉ, तिलोचन महापात्रा जी तक को सकते में डाल दिया था और लम्बे समय तक वे उसका जबाब देते रहे थे। क्योकि कृषि अनुसन्धान परिषद का अबतक का फोकस अधिक उत्पादन ही रहा है। मैंने अपनी बात यही से शुरू की, कि , मेरे पूर्व वक्ता मित्र पंजाब हरियाणा और उत्तरप्रदेश के है जहां की नदियां हिम नद है। पानी गिरे न गिरे हिम पिघलता है और वहां की नदियों नहरों में पर्याप्त पानी बह कर फसल भी उतपन्न करता है साथ ही जल स्तर को भी सामान्य रखता है।
किन्तु हम उच वालो की परिस्थिति अलग है। क्यो कि हमारी नदिया हिमजा नही वनजा है। इसलिए उन वन जाइयो का अस्तित्व वन से है । वन रहे गा तो वर्षा होगी और वन पुत्रियों में पानी आये गा, नही तो जल बिहीन।
पर वन भी तभी रहेगे जब धरती में पानी रहेगा।किन्तु हम यदि अपने यूपी पंजाब के साथियो की तरह खेती और फक्ट्रियो के लिए इसी तरह 4,,5 सौ फीट का पानी खींचते खिंचवाते रहे तो वह भी कुछ समय बाद उसी तरह सूख जाए गा जैसे पुरखो के पुत्रवत लगाये गए बगीचे सूख रहे है।यह कहा तक समझदारी है कि हम अपना पाताल का 3000 लीटर पानी उदबहन कर एक किलो धान उगाए जिसका मूल्य सरकार 17 रुपये निर्धारित करें। और दूसरी ओर वही पानी बेचने वाली कम्पनी उसी तरह पानी निकाल उसे 20 रुपये का एक लीटर वाला बोतल बेचे?
इसलिए हमारे लिए इन पानी बर्बाद करने वाले अनाजो के बजाय परम्परागत अनाज ज्यादा उपयुक्त है जो कम वर्षा में पक जाते है, ओस में पक जाते है और ऋतु से संचालित होने के कारण आगे पीछे के बोये साथ साथ पक जाते है।क्यो कि हमारे लिए 1 क्विंटल बौना गेंहू उगाकर गाँव के बाहर भेजने का अर्थ होता है गाँव का एक लाख लीटर पानी बाहर भेजना।इसलिए आप के बजट में हमारे परम्परागत अनाजो के संरक्षण के लिए भी प्रावधान होने चाहिए।आप लोगो ने जितने भी पशुओं और अनाजो मेंअनुसन्धान किये वह परम्परागत अनाज बीजो य देसी पशुओं से किये । पर इन्हें जंगल से खोज कर आप नही हमारे कृषक पूर्वज ही लाये थे।और वह अगर बचे है तो किसानों के पास । क्यो कि आज जंगल मे उनके एक भी पुरखिन य पुरखे शेष नही है।अस्तु आप को भी अब अपने अनुसन्धान के लिए उनकी जरूरत पड़े गी। इसलिए आप का भी दायित्य है कि उनके बचाने के प्रयास करे।
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Sunday, July 21, 2019

सीमेन्ट औद्योगिक इकाई की स्थापना से होगा पर्यावरण को नुकसान

  •   आयोजित हुई पर्यावरणीय जनसुनवाई में उठे विरोध के स्वर
  •   पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्तुत रिपोर्ट में तथ्यों को छिपाने का आरोप 


पर्यावरणीय जनसुनवाई में ग्रामीणों का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता चन्द्रबदन तिवारी 

अरुण सिंह,पन्ना। जिले में अमानगंज क्षेत्र अन्तर्गत हरदुआकेन, पुरैना, सोतीपुरा, मड़ैयन तथा ककरा में सीमेन्ट औद्योगिक इकाई की स्थापना के लिये म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पर्यावरणीय जनसुनवाई का आयोजन बीते रोज ग्राम पंचायत देवरा में किया गया। भारी गहमा-गहमी और हंगामे के बीच संपन्न हुई इस पर्यावरणीय जनसुनवाई में ग्रामीणों द्वारा उनके हितों की अनदेखी करने का जहां आरोप लगाया गया वहीं यह भी कहा गया कि कम्पनी ने उक्त परियोजना की इनवायरमेंटल इम्पेक्ट असेसमेन्ट स्टडी रिपोर्ट जो वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार को सौंपी गई है, उसमें वास्तविक तथ्यों को छिपाया गया है। आयोजित हुई इस पर्यावरणीय जनसुनवाई में अपर कलेक्टर जे.पी. धुर्वे, एसडीएम भूपेन्द्र रावत, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्षेत्रीय कार्यालय सागर के अधिकारी, प्रस्तावित सीमेन्ट औद्योगिक इकाई के अधिकारी व कर्मचारी तथा प्रभावित होने वाले ग्रामों के लोग मौजूद रहे।
उल्लेखनीय है कि आयोजित हुई इस पर्यावरणीय जनसुनवाई में हंगामा होने की आशंका तथा औद्योगिक इकाई की स्थापना व उत्खनन से होने वाले नुकसान को लेकर जनता में उपजे असंतोष को देखते हुये भारी सुरक्षा इंतजाम किये गये थे ताकि जनसुनवाई स्थल पर अप्रिय स्थिति निर्मित  न हो। इन हालातों में प्रभावित होने वाले ग्रामों के ज्यादातर लोग जनसुनवाई में अपनी बात रखने से वंचित रह गये। इस स्थिति में समस्त ग्रामवासियों व प्रभावित होने वाले किसानों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चन्द्रबदन तिवारी जो इसी क्षेत्र के निवासी हैं, उन्होंने लिखित आवेदन पर्यावरणीय जनसुनवाई की अध्यक्षता कर रहे अपर कलेक्टर जे.पी. धुर्वे को सौंपकर बिन्दुवार आपत्ति दर्ज कराई है। आवेदन में लेख किया गया है कि कम्पनी द्वारा जो भूमि क्रय की गई है, उसमें अधिकांश दो फसली और सिंचित भूमि है, जबकि कम्पनी द्वारा एक फसली बताया गया है। जिससे प्रथम दृष्टया यह प्रमाणित है कि परियोजना में किसानों के हितों को अनदेखा किया जाकर वास्तविक तथ्यों को छिपाया गया है। जिससे उपरोक्त तथ्यों की पुन: जाँच किया जाना आवश्यक है।

मानव स्वास्थ्य पर पड़ेगा प्रतिकूल प्रभाव

सीमेन्ट औद्योगिक इकाई की स्थापना होने पर यहां पर चूना पत्थर का उत्खनन बड़े पैमाने पर होगा तथा ब्लाङ्क्षस्टग भी कराई जायेगी, जिसका मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। आवेदन में लेख किया गया है कि ग्राम ककरा, देवरा, सप्तई, जूड़ी, सोतीपुरा आदि में कम्पनी ने ग्राम से लगे हुये खेत किसानों से क्रय किये हैं जो एरिया कोर जोन खनन क्षेत्र है। जिससे भविष्य में ग्रामवासियों का रहना मुश्किल हो जायेगा। उत्खनन कार्य में जो ब्लाङ्क्षस्टग व भारी मशीनरी का उपयोग होगा उससे ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ क्रिस्टलीन सिलिका की धूल निकलेगी, जिसके कारण ग्रामवासी लाइलाज सिलिकोसिस जैसी घातक बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं। सिलिकोसिस बीमारी से ग्रामीणों को बचाने के लिये कोर जोन से लगे हुये सभी ग्रामों के विस्थापन की स्थिति निॢमत हो सकती है। जिसे देखते हुये ग्रामीणों के हित में उचित कानूनी प्रावधान होना चाहिये।

जमीन के क्रय-विक्रय में घोटाला की आशंका

अधिवक्ता चन्द्रबदन तिवारी द्वारा अपर कलेक्टर को सौंपे गये आवेदन में यह आशंका व्यक्त की गई है कि जमीन के क्रय-विक्रय में बड़ा घोटाला व षडय़ंत्र चल रहा है। उन्होंने लेख किया है कि ग्राम पंचायत देवरा के अन्तर्गत वर्ष 1985-86 के पूर्व व बाद में लगभग 40-50 एकड़ भूमि हरिजन आदिवासी भूमिहीन व्यक्तियों को 4-4, 5-5 एकड़ भूमि के पट्टे दिये गये थे। जिसमें से अधिकांश आदिवासी रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर चुके हैं, कुछ लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा कुछ को अपनी जमीन की जानकारी ही नहीं है। परन्तु राजस्व रिकार्ड में जमीन उनके नाम दर्ज है। इस जमीन का अधिगृहण करने तथा क्रय-विक्रय करने के संबंध में षडय़ंत्र चल रहा है। ऐसी स्थिति में सभी हरिजन आदिवासियों के पट्टे संज्ञान में लिये जाकर विधिवत जाँच करवाई जाये।
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दक्षिण वन मण्डल में साढ़े सात लाख पौधों का हुआ रोपण

  •  मानसून सीजन में इस वर्ष 10 लाख पौधों के रोपण का लक्ष्य
  •   मिट्टी और जलवायु के अनुरूप किया जा रहा पौधों का चयन
  •   गत वर्ष रोपित 80 फीसदी से अधिक पौधे जीवित, ग्रोथ भी अच्छी


वन मंडल अंतर्गत विगत वर्ष हुए पौधरोपण का द्रश्य। 

। अरुण सिंह 

पन्ना। दक्षिण वन मण्डल पन्ना के अन्तर्गत आने वाले वन परिक्षेत्रों में इस वर्ष बारिश के मौसम में लगभग 10 लाख पौधे रोपित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अब तक विभिन्न वन परिक्षेत्रों में तकरीबन साढ़े सात लाख पौधों का रोपण हो चुका है जो निर्धारित लक्ष्य का 75 प्रतिशत है। 

पौधरोपण के लिये पूर्व में ही पवई, रैपुरा, सलेहा, कल्दा, मोहन्द्रा व शाहनगर वन परिक्षेत्रों में स्थलों का चयन कर पौधरोपण हेतु पूरी तैयारियां कर ली गई थीं। इन सभी स्थलों पर मिट्टी व जलवायु को ध्यान में रखकर रोपण हेतु पौधों का चयन किया गया है। विशेष गौरतलब बात यह है कि बीते साल दक्षिण वन मण्डल पन्ना के अन्तर्गत विभिन्न वन परिक्षेत्रों में लगभग साढ़े बारह लाख पौधों का रोपण किया गया था। इन रोपित पौधों में 80 से लेकर 90 फीसदी तक पौधे न सिर्फ जीवित हैं अपितु उनकी ग्रोथ भी बेहतर ढंग से हुई है।

इस वर्ष रोपित पौधा 
वन मण्डलाधिकारी दक्षिण पन्ना श्रीमति मीना मिश्रा ने जानकारी देते हुये बताया कि पौधरोपण हेतु सागौन, आँवला, शीशम, बांस, महुआ सहित मिश्रित प्रजाति के पौधों का चयन किया गया है। आपने बताया कि बारिश के मौसम में हर साल बड़ी संख्या में पौधरोपण तो कर दिया जाता है, लेकिन पौधे जीवित रहें तथा उनकी ग्रोथ अच्छी हो इस दिशा में जरूरी पहल व प्रयास आमतौर पर नहीं होते। जिससे अधिकांश रोपित पौधे सूख जाते हैं। 

हमने पौधरोपण के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि रोपित किये गये 80 से 90 फीसदी पौधे न सिर्फ जीवित रहें बल्कि बढ़कर वे वृक्ष भी बनें। वन मण्डलाधिकारी ने कहा कि हमारे प्रयास फलीभूत हो रहे हैं। बीते साल जो पौधे रोपित किये गये थे, उनमें अधिकांश जीवित हैं और उनकी ग्रोथ भी बेहतर ढंग से हो रही है। 

आपने बताया कि पवई वन परिक्षेत्र में 1 लाख 16 हजार, रैपुरा में 1 लाख 49 हजार, सलेहा में 57 हजार, कल्दा में 79 हजार 6 सौ, मोहन्द्रा में 1 लाख 81 हजार तथा शाहनगर वन परिक्षेत्र में 1 लाख 66 हजार 750 पौधों का रोपण किया जा चुका है। इस तरह से अब तक 7 लाख 50 हजार से भी अधिक पौधरोपण हुआ है जो निर्धारित लक्ष्य का 75 फीसदी है।

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Saturday, July 20, 2019

गंगऊ अभ्यारण्य के ग्रामों की समस्या जानने अधिकारी करेंगे प्रवास

  •   विधानसभा अध्यक्ष एन.पी. प्रजापति ने अधिकारियों को दिये निर्देश
  •   वन क्षेत्र में बसे इन ग्रामों तक नहीं है सड़क मार्ग की सुविधा
  •   सदन में ध्यानाकर्षण लगाकर पन्ना विधायक ने उठाई ग्रामीणों की समस्या


हरसा मोड़ पर स्थित बैरियर जहां से अजयगढ़ के लिये मार्ग जाता है।


अरुण सिंह,पन्ना। म.प्र. विधानसभा के अध्यक्ष एन.पी. प्रजापति ने राजस्व, वन व लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि वे गंगऊ अभ्यारण्य के अन्तर्गत बसे ग्रामों तथा वहां निवासरत लोगों की समस्याओं को समझने व उनके निदान हेतु क्षेत्र में 15 दिन तक प्रवास करें। मालुम हो कि पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे गंगऊ अभ्यारण्य के भीतर डेढ़ दर्जन से भी अधिक गाँव हैं। इन ग्रामों तक पक्का सड़क मार्ग न होने के कारण बारिश के मौसम में यहां के रहवासियों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। बीते कई दशकों से समस्याओं और मुसीबतों से जूझ रहे यहां के लोगों की पीड़ा को पन्ना विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह  ने ध्यानाकर्षण लगाकर सदन में प्रभावी तरीके से उठाया, जिसे विधानसभा अध्यक्ष ने गंभीरता से लेते हुये समस्या के निराकरण हेतु कमेटी गठित करने के भी निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा है कि संबंधित क्षेत्र के डिप्टी कलेक्टर, लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री व वन विभाग के उच्च अधिकारी समस्याग्रस्त क्षेत्र में जाकर 15 दिन रहें और कार्य योजना बनायें ताकि इस अंचल के रहवासियों को बुनियादी और मूलभूत सुविधायें उपलब्ध हो सकें।
बृजेन्द्र प्रताप सिंह पन्ना विधायक 

उल्लेखनीय है कि शुक्रवार 19 जुलाई को पन्ना विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह  ने ध्यानाकर्षण लगाकर सदन का ध्यान आकृष्ट कराते हुये बताया कि राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित मड़ला गाँव से अजयगढ़ जाने वाले मार्ग पर वन विभाग के दो बैरियर लगे हैं। पहला बैरियर राष्ट्रीय राजमार्ग के पास ही हरसा मोड़ पर है, जहां से ग्रामीण सिर्फ दिन के समय ही आवागमन कर सकते हैं। सूर्यास्त के बाद यहां से आवागमन पूरी तरह बन्द कर दिया जाता है। पन्ना विधायक ने बताया कि हरसा मोड़ से अजयगढ़ के बीच तकरीबन 20 गाँव आते हैं, जहां निवास करने वाले लोगों को इस तरह की बंदिशें झेलनी पड़ रही हैं। सबसे विकट समस्या तो तब उत्पन्न होती है जब इन ग्रामों में कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है। ऐसी स्थिति में भी बीमार पड़े व्यक्ति को अस्पताल ले जाने के लिये ग्रामीणों को सुबह का इंतजार करना पड़ता है। विधायक श्री सिंह  ने सदन को अवगत कराया कि वन विभाग की आपत्तियों के चलते पक्का मार्ग नहीं बन पा रहा, जिससे डेढ़ दर्जन से भी अधिक ग्रामों के लोगों को बारिश के मौसम में भारी मुसीबत झेलनी पड़ती है।

हरसा मोड़ से सलैया तक 13 किमी. है कच्चा मार्ग

 बारिश होने पर मार्ग में इस तरह भर जाता है पानी।

पन्ना-छतरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित हरसा मोड़ फारेस्ट बैरियर से अजयगढ़ की दूरी तकरीबन 30 किमी है। यहां से सलैया गाँव तक लगभग 13 किमी कच्चा मार्ग है और सलैया से अजयगढ़ तक डामर रोड बना हुआ है। मुख्य समस्या हरसा मोड़ से सलैया तक है, जो बारिश के समय कीचडय़ुक्त हो जाता है, जिससे आवागमन में असुविधा होती है। इस मार्ग पर ग्रामीणों की सुविधा के लिये एक यात्री बस भी चलती है जो बारिश के मौसम में पहाड़ी नालों पर पानी आ जाने के कारण बन्द हो जाती है। मार्ग पर डेढ़ दर्जन से भी अधिक नाले हैं जो थोड़ी बारिश में ही मार्ग के ऊपर से बहने लगते हैं। यदि हरसा मोड़ से सलैया तक पक्का मार्ग बन जाये तो बारिश के मौसम में भी आवागमन सुगम हो सकता है और काफी हद तक ग्रामीणों को समस्या से निजात मिल सकती है। इस मार्ग पर आने वाले गाँव हरसा, बगौंहा, नहरी, सलैया, झिन्ना व बघा के लोगों को बारिश में सबसे ज्यादा परेशानी होती है।

यहां के जंगल में बाघों का रहवास: वन मंत्री

पन्ना विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह  द्वारा उठाई गई ग्रामीणों की इस समस्या के संबंध में प्रदेश के वन मंत्री उमंग सिंघार ने बताया कि मड़ला-अजयगढ़ मार्ग पर 13 किमी कच्चा मार्ग है। इसमें लगभग 2.2 किमी लम्बा एरिया बाघों का प्राकृतिक रहवास है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के परिपालन में कुछ बंदिशें लगाई गई हैं। वन मंत्री ने बताया कि यह एरिया वन्य प्राणियों की सुरक्षा, रेत के अवैध उत्खनन व शिकार की दृष्टि से अति संवेदनशील है। उन्होंने इन आरोपों को गलत और निराधार बताया है कि वन क्षेत्र में निवास करने वाले ग्रामीणों से बैरियर में पैसा लिया जाता है। वन मंत्री ने कहा कि सिर्फ व्यवसायिक वाहनों से ही शुल्क लिया जाता है।
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दैनिक जागरण ग्वालियर में प्रकाशित खबर 
  

Friday, July 19, 2019

पन्ना के हक पर डाका डालने वाला एग्रीमेंट हो खत्म: बृजेन्द्र प्रताप सिंह

  •   हम खुद प्यासे हैं और हमारा पानी दूसरे राज्य में जा रहा
  •   विधानसभा में पन्ना विधायक ने उठाया बरियारपुर डेम का मुद्दा



अजयगढ़ जनपद क्षेत्र के ग्राम बरियारपुर के निकट केन नदी पर बना बरियारपुर डेम का दृश्य।

अरुण सिंह,पन्ना। जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिये यदि समय रहते हम नहीं चेते तो आने वाली पीढिय़ों को भयावह जल संकट के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं से भी जूझना पड़ सकता है। पन्ना जिले के घने जंगलों से होकर प्रवाहित होने वाली प्रदेश की इकलौती प्रदूषण मुक्त केन नदी के वजूद को बचाने में यदि हम सफल रहे तो यह जीवनदायी नदी ही हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जिस नदी के पानी पर पहला हक पन्ना जिलावासियों का है, उस नदी के पानी का उपयोग करने की इजाजत इस जिले के लोगों को नहीं है। पन्ना जिले में ही अजयगढ़ जनपद क्षेत्र के ग्राम बरियारपुर के निकट केन नदी पर आजादी से पूर्व अंग्रेजों के समय निर्मित  बरियारपुर डेम का पानी अभी भी पड़ोसी राज्य उ.प्र. के बांदा जिले के खेतों तक पहुँचता है और पानी न मिलने के कारण हमारे खेत सूखे पड़े रहते हैं। पन्ना जिले के साथ लम्बे समय से हो रहा यह अन्याय अब बन्द होना चाहिये।
बृजेन्द्र प्रताप सिंह  विधायक पन्ना।

जिले की जनता और किसानों से जुड़े इस अहम मुद्दे को पन्ना विधानसभा क्षेत्र के विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने विधानसभा में उठाते हुये पूर्व में हुये एग्रीमेंट को अव्यवहारिक और पन्ना जिले के लिये घातक बताया है। उन्होंने कहा कि हम खुद प्यासे हैं, हमारी जमीन सूखी पड़ी रहती है फिर भी हमारे यहां का पानी दूसरे प्रदेश को दिया जा रहा है। जिस पानी से हमारी कृषि भूमि की सिंचाई होनी चाहिये हम उसका उपयोग नहीं कर पा रहे। ऐसी स्थिति में अब इस पुराने एग्रीमेन्ट को रिवाइज करना चाहिये ताकि पन्ना जिला वासियों के साथ न्याय हो सके। विधायक श्री सिंह ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे इस एग्रीमेन्ट को मौजूदा परिस्थितियों में स्वीकार नहीं किया जा सकता। बीते कई दशकों से हम इस एग्रीमेन्ट की सजा भुगत रहे हैं। पन्ना विधायक ने बताया कि आजादी के बाद बरियारपुर डेम को लेकर दोनों राज्यों के बीच दुबारा एग्रीमेन्ट हुआ था। सिंगल  पेज का यह एग्रीमेन्ट 31-01-1977 को तत्कालीन मुख्यमंत्रियों एन.डी. तिवारी और श्यामाचरण शुक्ल के बीच हुआ था। इस एग्रीमेन्ट में 37 टीएमसी पानी देने की बात कही गई है। हमें उसमें कोई कण्डीशन ही नजर नहीं आ रही है। उन्होंने आश्चर्य जताया कि जमीन हमारी, पानी हमारा फिर भी हम अपनी कृषि भूमि की सिंचाई के लिये उ.प्र. से बंधे हुये हैं।
गौरतलब है कि केन नदी पर बने रनगवां बांध, गंगऊ व बरियारपुर डेम आज भी सिंचाई विभाग उ.प्र. के अधीन हैं। इन बांधों पर केन नदी के पानी को रोककर पड़ोसी राज्य उ.प्र. के बांदा जिले में न सिर्फ लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई होती है अपितु गर्मी के मौसम में इन बांधों के पानी को नहर के माध्यम से ले जाकर वहां के तालाबों को भरा जाता है। जिससे कि गर्मी में जनता व मवेशियों को पानी के लिये भटकना न पड़े। पन्ना जिले के लोगों को इस बात पर ऐतराज नहीं है कि पड़ोसी प्रान्त व जिले के लोग खुशहाल हैं, पन्ना जिलावासियों को ऐतराज इस बात पर है कि जिस पानी पर पहला हक उनका होना चाहिये, उसको उपयोग करने तक की उन्हें इजाजत नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह है कि बीते सौ सालों से केन नदी के पानी को लूटा जा रहा है फिर भी इस जिले के लोग भूखे, प्यासे और फटेहाल रहकर भी इसे बर्दाश्त करते आ रहे हैं। अब तो केन नदी के पानी को बेतवा में ले जाने की तैयारी चल रही है। इस लिंक  परियोजना के मूर्तरूप लेने पर न सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा डूब जायेगा अपितु केन घडिय़ाल अभ्यारण्य का वजूद भी मिट जायेगा। इतना ही नहीं केन नदी का प्रवाह थमने से इस नदी के किनारे बसे दर्जनों ग्रामों के रहवासियों की जिन्दगी मुसीबतों से घिर जायेगी।

मझगांय डेम को लेकर भी उठाये सवाल

पन्ना विधानसभा क्षेत्र के अजयगढ़ विकासखण्ड अन्तर्गत ग्राम कुँवरपुर के पास निर्माणाधीन 35 हजार 099 लाख रू. की लागत वाले मझगांय डेम के संबंध में भी पन्ना विधायक ने सवाल उठाये हैं। इस डेम के निर्माण में अब तक 22 हजार 773 लाख रू. खर्च किये जा चुके हैं। इतना ही नहीं इस निर्माणाधीन डेम के पानी से अजयगढ़ जनपद क्षेत्र के 118 ग्रामों में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये पाईप लाइन बिछाने में जल निगम द्वारा 196 लाख रू. खर्च किये गये हैं। लेकिन अभी तक डेम में पानी आना चालू नहीं हुआ। जहां से नहर निकलनी है उस भूमि पर तकरीबन 1 किमी उ.प्र. का आधिपत्य है और वे उस भूमि पर नहर नहीं खोदने दे रहे। एक किमी लम्बी नहर का यह विवाद अभी तक हल नहीं हो सका और इतनी भारी भरकम राशि खर्च की जा चुकी है, जो विचारणीय है।

दैनिक जागरण ग्वालियर में प्रकाशित खबर 

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Wednesday, July 17, 2019

अन्यत्र तबादला होते ही बीमार पड़े कई वन कर्मचारी


  •   उत्तर वन मण्डल से पन्ना टाईगर रिजर्व के लिये  हुआ है तबादला
  •   अजूबा यह कि सभी कर्मचारियों का एक ही चिकित्सक ने बनाया मेडिकल





। अरुण सिंह 

पन्ना। तबादला के इस मौसम में इन दिनों हर विभाग में सरगर्मी मची हुई है। वर्षों से एक ही जगह पर अंगद की पाँव की तरह जमे अधिकारी व कर्मचारी येन केन प्रकारेण यथावत अपनी जगह पर बने रहने के लिये हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। जिन कर्मचारियों का तबादला हो गया है वे अपने सम्पर्क सूत्रों व अन्य साधनों के जरिये तबादला रुकवाने की जुगत में लगे हुये हैं। 

आश्चर्य की बात तो यह है कि जिन कर्मचारियों का कहीं अन्यत्र स्थानांतरण हो गया है, अचानक उनमें से अधिकांश बीमार हो गये हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन बीमार कर्मचारियों के बीमार पडऩे का मेडिकल सार्टिफिकेट भी एक ही चिकित्सक ने बनाया है। यह अजीब संयोग देखकर आला अधिकारी भी हैरान हैं।

नरेश सिंह यादव डिएफओ  
यहां हम सिर्फ एक ही विभाग उत्तर वन मण्डल पन्ना पर यदि नजर डालें तो पता चलता है कि पैठ बना चुके कर्मचारी अपनी आराम वाली जगह नहीं छोडऩा चाहते। मालुम हो कि उत्तर वन मण्डल पन्ना से कई कर्मचारियों का स्थानांतरण पन्ना टाईगर रिजर्व के लिये हुआ है। यह सर्व विदित है कि पन्ना टाईगर रिजर्व में कर्मचारियों को फील्ड में जाकर पसीना बहाना पड़ता है। यहां दायित्वों के निर्वहन में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाती, सीधे कार्यवाही होती है। जबकि सामान्य वन क्षेत्रों में पदस्थ वन कर्मी अपनी मनमर्जी के हिसाब से काम करते हैं तथा लाभ अर्जित  करने के अवसर भी होते हैं। ऐसी स्थिति में कोई भी वन कर्मी सामान्य वन क्षेत्र से टाईगर रिजर्व में नहीं जाना चाहता। तबादला से बचने के लिये स्थानांतरित वन कर्मचारियों ने डाक से बीमार होने का मेडिकल सार्टिफिकेट  उत्तर वन मण्डल कार्यालय भेजा है ताकि उन्हें कुछ दिनों तक रिलीव न किया जाये और इस बीच वे अपनी सेटिंग  जमा लें।

वन मण्डलाधिकारी उत्तर पन्ना नरेश सिंह यादव ने बताया कि उत्तर पन्ना से प्रदीप कुमार गर्ग, ओम प्रकाश कुरेले, अजीज कुरैशी, पवन शौर तथा राजीव द्विवेदी का स्थानांतरण पीटीआर के लिये हुआ है। उन्होंने इन पाँचों कर्मचारियों के बीमार पडऩे तथा एक ही चिकित्सक डॉ. आर.सी. केशरी द्वारा उनका मेडिकल सार्टिफिकेट बनाये जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया। 

मजे की बात तो यह है कि अचानक एक साथ बीमार हुये इन वनकर्मियों  की बीमारियां भी अजीबो गरीब हैं, जिनका मेडिकल सार्टिफिकेट में जिक्र कर डॉक्टर साहब ने उन्हें आराम करने की सख्त हिदायत दी है। यह मामला अकेले सिर्फ उत्तर वन मण्डल पन्ना का है लेकिन कमोवेश यही स्थिति अन्य विभागों की भी है। जाहिर है कि जिन चिकित्सकों के पास भूले-भटके भी मरीज नहीं पहुँचते उनकी तबादला के इस मौसम में व्यस्तता बढ़ गई है और वे धड़ाधड़ मेडिकल बनाने में जुटे हुये हैं।

भार मुक्त नहीं हुये स्थानांतरित पटवारी

मध्यप्रदेश शासन द्वारा जारी की गई स्थानांतरण नीति अनुसार पन्ना जिले में जिला अंतर्गत प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से 31 पटवारियों के ताबदला आदेश जारी किये गये हैं, परन्तु स्थानांतरण के बाद लगभग 10 दिन से भी अधिक का समय हो जाने के बावजूद अधिकांश स्थानांतरित पटवारियों को उनकी नवीन पदस्थापना स्थल के लिये भारमुक्त किये जाने की कार्यवाही नहीं की गई है। जबकि अधीक्षक भू-अभिलेख द्वारा स्थानांंतरित सभी पटवारियों के स्थानांतरण आदेश जारी करते हुये जिन कार्यालयों-तहसीलों में पटवारियों की पदस्थापना है उन कार्यालय प्रमुखों को स्थानांतरित कर्मचारियों को तत्काल ही भारमुक्त किये जाने संबंधी आदेश जारी किये गये हैं। 

गौरतलब हो कि जिले में प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से जो स्थानांतरण किये गये हैं। उनमें से अधिकांश प्रशासनिक आधार पर किये गये स्थानांतरण हैं और जो जानकारियां सामने आ रही हैं  स्थानांतरित कई पटवारी भारमुक्त न होकर अपना स्थानांतरण निरस्त करवाने के प्रयास में लगे हैं। अभी कार्यालय भू-अभिलेख में स्थानांतरित पटवारियों में से किसी भी पटवारी के नवीन पदस्थापना स्थल के लिये भारमुक्त किये जाने संबंधी जानकारी प्राप्त नहीं हुई है।

दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर 

                                                                          

Monday, July 15, 2019

फादर ऑफ़ दि पन्ना टाइगर रिज़र्व टी - 3 घायल

  •  बाघों से विहीन पन्ना टाईगर रिजर्व को इसी वनराज ने किया है आबाद
  • पेंच  टाईगर रिजर्व से 7 नवम्बर 2009 को लाया गया था पन्ना
  •            मौजूदा समय बाघ टी-3  आयु हो चुकी है 17 वर्ष 


पन्ना टाईगर रिजर्व का बुजुर्ग बाघ टी-3।  (फाइल फोटो)

अरुण सिंह,पन्ना। बाघ पुनर्स्थापना  योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व का सबसे बुजुर्ग बाघ टी-3 आपसी जंग में घायल हो गया है। अत्यधिक उम्रदराज हो जाने के कारण यह बाघ कोर क्षेत्र के बाहर विगत कई महीनों से विचरण कर रहा था। पिछले कुछ समय से बाघ टी-3 बलैया सेहा के आस-पास वाले इलाके में अपना ठिकाना बनाये था, जहां पन्ना में ही जन्मे नर बाघ पी-213(31) से टी-3 का आमना-सामना हो गया। इलाके को लेकर इन दोनों के बीच हुई लड़ाई में युवा बाघ पी-213(31) ने टी-3 को बुरी तरह जख्मी कर दिया है। टी-3 के पैर में जख्म हैं, घायल होने पर यह बाघ बलैया सेहा वाला इलाका छोड़कर रमपुरा के जंगल में पहुँच गया है।
क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने घटना की पुष्टि करते हुये बताया कि टी-3 के पैरों में जख्म है, फिर भी वह चल फिर रहा है। मालुम हो कि वर्ष 2009 में पन्ना टाईगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, उस समय बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पेंच टाईगर रिजर्व से 7 नवम्बर 2009 को इसे पन्ना लाया गया था। उस समय बाघ टी-3 की उम्र तकरीबन 7 वर्ष की थी। बीते 10 वर्षों में इस बाघ ने पन्ना में एक नया इतिहास रचते हुये बाघ विहीन पन्ना टाईगर रिजर्व को आबाद कर यहां पर बाघों की नई दुनिया बसा दी। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में जितने भी बाघ हैं वे सब टी-3 की ही संतान हैं। यही वजह है कि इस बुजुर्ग बाघ को फादर ऑफ दि पन्ना टाईगर रिजर्व भी कहा जाता है।

जंगल में बाघ की औसत उम्र होती है 12 से 14 वर्ष

खुले जंगल में आमतौर पर बाघ की औसत उम्र अधिकतम 12 से 14 वर्ष होती है, जिसे पन्ना क यह बाघ 3 वर्ष पूर्व ही पूरी कर चुका है। खुले जंगल में चुनौतियों के बीच स्वच्छन्द रूप से विचरण करते हुये इतने उम्रदराज बाघ को देखना किसी अजूबा से कम नहीं है। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बाघ टी-3 के संबंध में जानकारी देते हुये बताया कि इसके दांत गिर गये हैं तथा यह अब कोर क्षेत्र से बाहर पेरीफेरी में रह रहा है। अधिक उम्र हो जाने की वजह से टी-3 वन्यजीवों का शिकार कर पाने में अब सक्षम नहीं है, यही वजह है कि वह कोर क्षेत्र से बाहर पेरीफेरी में रहकर मवेशियों का शिकार करके जीवित है।

लड़ाई में जख्मी हुये बाघ की हो रही है निगरानी

आपसी लड़ाई में घायल हो चुके बुजुर्ग बाघ टी-3 की हर गतिविधि पर वन अमले द्वारा नजदीक से नजर रखी जा रही है। क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया ने बताया कि पैरों में जख्म हैं, फिर भी यह चल फिर रहा है। बाघ के जख्म जल्दी भर सकें, इसके जो भी संभव उपाय हैं, वह पार्क प्रबंधन द्वारा किया जा रहा है। चूंकि टी-3 की उम्र बहुत अधिक हो चुकी है, इसलिये उसे टन्क्यूलाइज कर मलहम पट्टी नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक रूप से ही जख्म ठीक होने का इंतजार किया जा रहा है। इस बीच फिर किसी बाघ से टी-3 की भिड़ण्त न होने पाये, इसके लिये निगरानी टीम हर समय इस पर नजर रखेगी।
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