Friday, July 29, 2022

हथिनी अनारकली ने दिया मादा बच्चे को जन्म

  •  नन्हे मेहमान के आने से टाइगर रिजर्व में खुशी का माहौल 
  •  पन्ना में बाघों के साथ-साथ बढ़ रहा हाथियों का भी कुनबा

हथिनी अनारकली अपने नवजात शिशु के साथ। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में हथिनी अनारकली ( 50 वर्ष ) ने शुक्रवार को सुबह एक स्वस्थ मादा बच्चे को जन्म दिया है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को यहां हाथियों के कुनबे में एक नये और नन्हे मेहमान के आ जाने से खुशी का माहौल है। हथिनी अनारकली का यह चौथा  बच्चा है, इसके पूर्व इस हथिनी ने पन्ना टाइगर रिजर्व में 2 अक्टूबर 2017 को बापू हाथी को जन्म दिया था। इस नन्हे मेहमान के आ जाने से पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों का कुनबा बढ़कर 16 हो गया है। हांथियों के इस कुनबे में दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला भी शामिल है, जो पन्ना टाइगर रिज़र्व के लिये किसी धरोहर से कम नहीं है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए आज बताया कि हथनी अनारकली ने 29 जुलाई को सुबह 03.01 बजे परिक्षेत्र गहरीघाट के हाथी कैम्प सकरा में मादा बच्चे को जन्म दिया है। नवजात शिशु का वजन 90 किलोग्राम है तथा हथनी व बच्चा दोनों पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। प्रसव के उपरांत हथिनी व बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता द्वारा किया जा रहा है। बताया गया है कि मादा शिशु अपनी मां का दूध पीने के साथ-साथ अठखेलियां भी करने लगी है। 

वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. गुप्ता ने बताया कि हथिनी अनारकली ने इसके पूर्व हीरा, पन्ना और बापू तीन नर बच्चों को जन्म दे चुकी है। पहली बार उसने मादा बच्चे को जन्म दिया है। आपने बताया कि हथिनी व उसके नन्हे शिशु की समुचित देखरेख तथा विशेष भोजन की व्यवस्था की जा रही है। हथिनी को दलिया, गुड, गन्ना तथा शुद्ध घी से निर्मित लड्डू खिलाये जा रहे हैं ताकि नन्हे शिशु को पर्याप्त दूध मिल सके। हथनी व उसके शिशु की देखरेख व निगरानी के लिए स्टाफ की तैनाती की गई है। गौरतलब है कि पन्ना टाईगर रिजर्व में वनराज व गजराज दोनों के ही कुनबे में वृद्धि हो रही है, जो निश्चित ही प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से एक शुभ संकेत है।

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Thursday, July 28, 2022

पन्ना जिले की गुनौर जनपद में हुआ अजब फैसला !

  • परमानंद शर्मा हुए थे निर्वाचित लेकिन दूसरे दिन हो गया फेरबदल
  • भाजपा समर्थित राम शिरोमणि मिश्रा बन गए जनपद के उपाध्यक्ष

 परमानंद शर्मा निर्वाचन के बाद जीत का प्रमाण पत्र लेते हुए।

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। जनपद पंचायत गुनौर में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद का निर्वाचन बुधवार को संपन्न हुआ था, जिसमें परमानंद शर्मा जनपद पंचायत गुनौर के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। लेकिन निर्वाचन के कुछ घंटों बाद ही जिला निर्वाचन अधिकारी पन्ना ने उपाध्यक्ष का चुनाव निरस्त कर 28 जुलाई को पुन: लॉट सिस्टम से उपाध्यक्ष चुने जाने के आदेश जारी कर दिए। परिणाम स्वरूप 24 घंटे के भीतर ही पूर्व में निर्वाचित उपाध्यक्ष की जगह भाजपा समर्थक राम शिरोमणि मिश्रा को उपाध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया गया। कांग्रेस समर्थित परमानंद शर्मा के उपाध्यक्ष चुने जाने पर बुधवार को जो कांग्रेस जन जश्न मना रहे थे, आज के फैसले से वे अब मायूस हैं।

उल्लेखनीय है कि उपाध्यक्ष पद के लिए भाजपा समर्थक राम शिरोमणि मिश्रा व परमानंद शर्मा कांग्रेस ने नामांकन दाखिल किया था। बुद्धवार को मतदान संपन्न होने पर परमानंद शर्मा को 13 व राम शिरोमणि मिश्रा को 12 वोट मिले थे। पीठासीन अधिकारी ने परमानंद शर्मा को जीत का प्रमाण पत्र भी प्रदान कर दिया था। लेकिन भाजपा समर्थित प्रत्याशी की इस शिकायत पर कि एक वोट रिजेक्ट की श्रेणी में आता है, इसकी जांच कराकर दुबारा चुनाव कराया जाए। जिला निर्वाचन अधिकारी ने मामले की जांच कराते हुए एक वोट को निरस्त मानकर दोनों को 12-12 मत देते हुए लॉट सिस्टम से गुरुवार को उपाध्यक्ष का चुनाव कराने के आदेश जारी किये। परिणाम स्वरूप गुरुवार को भाजपा समर्थित राम शिरोमणि मिश्रा को उपाध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित घोषित कर दिया गया।

जीते प्रत्याशी को हराना बहुत ही शर्मनाक - शारदा पाठक

इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सोशल मीडिया में जहां तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, वहीं जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष श्रीमती शारदा पाठक ने मामले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

 उनका कहना है कि जिले की गुनौर जनपद पंचायत में उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस पार्टी के नेता परमानंद शर्मा 27 जुलाई को संपन्न हुए चुनाव में विजय हुए, उन्हें उसका प्रमाण पत्र भी प्रदान कर दिया गया। लेकिन 24 घंटे भी नहीं हुए और पन्ना के प्रशासन ने उन्हें हराकर भाजपा के कार्यकर्ता को उपाध्यक्ष निर्वाचित कर दिया। इस पूरी घटना से यह स्पष्ट प्रतीत हो गया है कि पन्ना जिले में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है। चारों तरफ हिटलरशाही व्याप्त है और सत्ता के चाटुकार यहां के अफसर बन चुके हैं। 




कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती पाठक ने इसे बहुत ही शर्मनाक बतलाया। उन्होंने कहा कि यह पहली बार देखने में मिला कि शाम को याचिका दायर होती है और सामने वाले व्यक्ति को सुनवाई का मौका नहीं दिया जाता है और फैसला सुना दिया जाता है कि दूसरे दिन दोपहर 12 बजे उपाध्यक्ष का चुनाव संपन्न होगा। श्रीमती पाठक ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर जो यहां के कलेक्टर सहित अन्य अधिकारी कर रहे हैं वह कतई उचित नहीं है। पन्ना जिले की जनता में इन सभी घटनाक्रमों को लेकर काफी आक्रोश व्याप्त है और वह आने वाले समय पर इसका जबाब देगी। श्रीमती पाठक ने कहा कि यह तो हद हो गई कि पन्ना का जिला प्रशासन भाजपा की पूरी तरह से कठपुतली बनकर उनके इशारे पर नाच रही है। श्रीमती पाठक ने इसकी जानकारी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ सहित अन्य नेताओं को देते हुए इस मामले में हस्तक्षेप करने की बात कही है।

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Wednesday, July 27, 2022

गरीब आदिवासी महिला को जंगल में पड़ा मिला बेशकीमती हीरा

  •  पन्ना शहर से लगे पुरुषोत्तमपुर की निवासी है गेंदबाई 
  •  जंगल लकड़ी लेने के लिए गई और चमक गई किस्मत  

जंगल में पड़े मिले हीरे को दिखाते हुए गेंदाबाई आदिवासी, बगल में बैठे हीरा पारखी अनुपम सिंह। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती ने भीषण गरीबी में गुजारा करने वाले एक आदिवासी परिवार को मालामाल कर दिया है। पन्ना शहर से लगे पुरुषोत्तमपुर गांव की आदिवासी महिला गेंदा बाई (50 वर्ष) को जंगल में 4.39 कैरेट वजन वाला जेम क्वालिटी का बेशकीमती हीरा पड़ा मिला है। जिसे महिला ने अपने पति परमलाल के साथ पन्ना आकर कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय में आज जमा करा दिया है।

हीरा मिलने से अत्यधिक प्रसन्न गेंदा बाई ने बताया कि तीन-चार दिन पूर्व वह लकड़ी लेने के लिए पुखरी के जंगल गई थी। वहीं जंगल के रास्ते में मुझे चमकती चीज दिखाई दी, जिसे उठाकर मैं घर ले आई थी। हमने कभी हीरा देखा नहीं था, इसलिए कांच का टुकड़ा समझकर घर में ही रख दिया। आज मेरे पति परमलाल ने कहा कि पन्ना चलकर साहब को इसे दिखाते हैं और हम दोनों पन्ना आ गए। यहां हीरा ऑफिस में जब इसे दिखाया, तो पता चला कि यह कांच का टुकड़ा नहीं हीरा है। यह जानकर गेंदाबाई की खुशी का ठिकाना नहीं है। वह कहती है कि बेटियों की शादी अब वह धूमधाम से करेगी।

आठ बच्चों की मां है गेंदाबाई

50 वर्षीय गेंदबाई के 8 बच्चे हैं। सबसे बड़ा 35 साल का बेटा है जिसकी शादी हो चुकी है, उसके भी बच्चे हैं। पति परमलाल जहां काम मिल गया वहां मजदूरी करता है। इतने बड़े परिवार का इस महंगाई में बड़ी मुश्किल से गुजारा होता है। गेंदा बाई ने बताया कि चूल्हा जलाने के लिए वह लकड़ी लेने जंगल गई थी, और ऊपर वाले ने उनकी सुन ली। अब सारी तकलीफें दूर हो जाएंगी।

पूछे गए सवाल के जवाब में गेंदा बाई ने बताया कि उसके छह बेटे और दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी 20 साल की है, जिसकी शादी करना है। पैसा ना होने के कारण शादी नहीं कर पा रहे थे। लेकिन अब दोनों बेटियों की अच्छे से शादी करेंगे। छोटी बेटी क्रांति अभी 15 साल की है। परमलाल ने बताया कि इसके पहले उन्होंने कभी हीरा नहीं देखा था, पहली बार हीरा हाथ से छू कर देखा है।

इस हीरे की होगी नीलामी

हीरा कार्यालय पन्ना के हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि ग्राम पुरुषोत्तमपुर निवासी गेंदाबाई को जंगल में यह हीरा पड़ा मिला है। जिसे उन्होंने आज जमा कराया है। जेम क्वालिटी का यह हीरा 4.39 कैरेट वजन का है, जिसकी कीमत लाखों में है। जानकारों का यह कहना है कि यह हीरा अच्छी क्वालिटी का है, इसलिए नीलामी में इस हीरे की अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद है। इसकी अनुमानित कीमत 10 लाख रुपये से भी अधिक आंकी जा रही है। हीरा अधिकारी रवि पटेल ने बताया कि इस हीरे को आगामी होने वाली नीलामी में बिक्री के लिए रखा जाएगा। इसकी बिक्री से जो राशि प्राप्त होगी, उसमें से शासन की रॉयल्टी काटने के बाद शेष पूरी राशि हीरा धारक गेंदाबाई को प्रदान की जाएगी।

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Tuesday, July 26, 2022

गोंड़ जागीरदार नोने सिंह के बंगला की अजब कहानी !

  •  बिलखुरा गांव में बना है डेढ़ सौ वर्ष पुराना यह बंगला 
  •  गांव के बुजुर्गों का यहां हर समय लगा रहता है जमावड़ा

 

पन्ना जिले के बिलखुरा गांव में स्थित गोंड रियासत काल की धरोहर है यह बंगला। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (बिलखुरा)। बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले में गोंड़ राजाओं के शासन काल के चिन्ह जहां-तहां आज भी मौजूद हैं। इस पूरे इलाके में गोंड राजाओं की रियासतें रही हैं। तस्वीर में बंगलानुमा जो भवन दिख रहा है, वह गोंड़ जागीरदार नोने सिंह ने बनवाया था। गोंड राजाओं व जागीरदारों द्वारा बनवाए गए ज्यादातर महल व  इमारतें या तो नष्ट हो चुकी हैं या फिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। लेकिन गोंड़ जागीरदार नोने सिंह का बंगला आज भी बिलखुरा गांव में एक धरोहर की तरह मौजूद है।

जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 20 किलोमीटर दूर पन्ना-पहाड़ीखेरा मार्ग पर स्थित बिलखुरा गांव के ठाकुरन मोहल्ला (राजगोंड़) में यह बंगला अपने वजूद को कायम किए हुए है। गांव के लोग इस पुराने भवन को बंगला कह कर पुकारते हैं। जागीरदार नोने सिंह का परिवार आज भी इसी गांव में रहता है। परिवार के लोग इस प्राचीन धरोहर की देखरेख कर उसे बचाए हुए हैं, ताकि उनके परिवार की गौरव गाथा लोगों की स्मृतियों में बनी रहे। 

जागीरदार रहे नोने सिंह के नाती 55 वर्षीय नेपाल सिंह राजगोंड़ ने बड़े ही गर्व के साथ बताया कि उनके बाबा ने तकरीबन डेढ़ सौ वर्ष पूर्व 12 दरवाजों वाले इस बंगले को बनवाया था। उस समय इसी बंगले में पंचायत लगती थी और फैसले होते थे।

जागीरदारी खत्म हुए अरसा गुजर गया, फिर भी इस प्राचीन धरोहर की रौनक बनी हुई है। हर समय इस बंगले की चौपाल व परिसर में स्थित विशालकाय नीम वृक्ष के नीचे गांव के बड़े बुजुर्गों और युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है। अनेकों लोग बंगला के बाहरी हिस्से में बैठकर ताश के पत्ते खेलते रहते हैं, बंगला कभी सूना नहीं रहता। बिलखुरा गांव के ही निवासी भूरे यादव 65 वर्ष बताते हैं कि उन्होंने जब से होश संभाला इस बंगले को इसी तरह देखा है। वे बताते हैं कि फुर्सत का समय हम यहीं बैठकर गुजारते हैं, क्योंकि यहां पर सुकून और शांति मिलती है। गांव वालों के लिए यह बंगला किसी विश्रामगृह से कम नहीं है।शिव सिंह यादव (75 वर्ष) बताते हैं कि बिलखुरा चरखारी रियासत की जागीर रही है। उस समय तहसील रानीपुर थी। आपने बताया कि यह 35-36 गांव की जागीर थी। उसी समय यह बंगला बनवाया गया था, जहां दरबार लगता था। जागीरदार परिवार के सदस्य नेपाल सिंह राजगोंड़ ने बताया कि 12 दरवाजे वाले इस बंगले में राजा महाराजा भी आते रहे हैं। दरबार लगने के साथ-साथ यहां पर नाच गाना भी होता था। किसानों से कर की वसूली यहीं होती थी, जागीर के पूरे दस्तावेज व रिकार्ड इसी बंगले में रखे जाते थे। 

बंगले में जूता पहनकर कोई नहीं जाता 


जागीरदार रहे नोने सिंह का नाती नेपाल सिंह राजगोंड  तथा बगल में बैठे भूरे यादव। 

बिलखुरा गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय की परंपरा का निर्वहन आज भी गांव के लोग करते आ रहे हैं। जूता चप्पल पहन कर कोई भी इस बंगले के भीतर नहीं जाता। इसके पीछे ग्रामीणों की धार्मिक मान्यता है कि बंगले के भीतर देवता विराजे हैं। भूरे यादव बताते हैं कि सभी तरह के शुभ कार्य इसी बंगले से शुरू होते हैं। जवारा कहीं भी रखे जाएं, पहले बंगला में आते हैं फिर सेराने के लिए जाते हैं।

मिट्टी की दीवाल, लकड़ी और खपरैल से बने इस भवन की शान आज भी देखते ही बनती है। नेपाल सिंह बताते हैं कि बंगले में सामने की तरफ टूट-फूट हो गई थी, जहां सीमेंट शीट लगवा कर मरम्मत कराई गई है। लेकिन बंगले के भीतर कोई बदलाव नहीं है, जैसा का तैसा है।

नीम के नीचे पहलवान किया करते थे कसरत


पत्थर से निर्मित यह उपकरण जिसका उपयोग उस समय पहलवान करते थे। 

गोंड़ राजाओं के समय पहलवानों का बहुत ही आदर सम्मान था। उस दौर में गांव के युवक शरीर को मजबूत और स्वस्थ रखने के लिए खूब कसरत किया करते थे। इसके लिए पत्थर से निर्मित विशेष तरह के उपकरणों का उपयोग किया जाता था। बंगला परिसर में आज भी व्यायाम में उपयोग किए जाते रहे पत्थर के उपकरण मौजूद हैं। जिन्हें देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजगोंड़ कितने बलशाली रहे होंगे। 

नीम के पेड़ के नीचे पत्थर का एक डंबल पड़ा हुआ है। जिसे पकड़कर उठाने के लिए बकायदे पत्थर में मुठिया भी बनी है। इस भारी-भरकम पत्थर को उठाना तो दूर खिसकाना भी कठिन है। इसे उठाकर गोंड़ पहलवान व्यायाम करते थे। बंगला परिसर में बैठकर विश्राम करने वाले बुजुर्ग गोंड़ रियासत की भूली बिसरी बातें बड़े ही गर्व के साथ बताते हैं। नेपाल सिंह कहते हैं कि यह बंगला हमारे पूर्वजों की धरोहर है, जिसका हम संरक्षण करते आ रहे हैं।

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Monday, July 25, 2022

गैर परंपरागत ऊर्जा के प्रोत्साहन के लिए सरकार प्रयासरत: खनिज मंत्री

  • टाउन हॉल में बिजली महोत्सव का हुआ आयोजन
  • कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की दी प्रस्तुति 

खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए। 

पन्ना। देश के सर्वांगीण विकास में बिजली का बहुत बड़ा योगदान है। तरक्की के साथ-साथ नागरिकों को अक्षय और नवकरणीय ऊर्जा के उपयोग के लिए जागरूक होना चाहिए। गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा और प्रोत्साहन के लिए सरकार भी प्रयासरत है। यह बात खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने सोमवार को स्थानीय टाउन हॉल में उज्जवल भारत-उज्जवल भविष्य के तहत आयोजित बिजली महोत्सव के कार्यक्रम पर कही।

उन्होंने कहा कि लोगों को बिजली की बचत के लिए भी जागरूक होना आवश्यक है। सरकार के सकारात्मक प्रयास से देश और प्रदेश में बिजली का उत्पादन बढ़ा है। सौभाग्य योजना के जरिए घर-घर और गांव-गांव बिजली पहुंचाई गई है। वर्तमान में गैर परंपरागत स्रोतों से बिजली का उत्पादन 5500 मेगावाट तक पहुंच गया है। उन्होंने गैर परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का संकल्प दोहराया। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए आयोजकों की सराहना भी की।

कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव काल में बिजली महोत्सव का आयोजन गर्व की बात है। अक्षय ऊर्जा संसाधन का वैकल्पिक रूप में उपयोग करना समय की जरूरत है। बिजली उत्पादन और संरक्षण के प्रयासों से विकास को गति मिली है। उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली प्रदान करने के लिए विभाग कृत संकल्पित है। कलेक्टर ने नागरिकों से ऊर्जा साक्षरता अभियान से जुड़ने की अपील भी की। एनटीपीसी के उप महाप्रबंधक एस.डी.पी. पाण्डेय ने आयोजन की रूपरेखा से अवगत कराया।


कार्यक्रम के अवसर पर लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया गया और स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूता का संदेश दिया गया। शुरूआत में मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री श्री सिंह ने दीप प्रज्जवलन और कन्या पूजन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके बाद अतिथियों का स्वागत किया गया। कलेक्टर श्री मिश्र ने कार्यक्रम के समापन पर कलाकारों को पुरस्कार का वितरण किया।

किलकिला फीडर परियोजना का भूमिपूजन

मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने जल संसाधन विभाग अंतर्गत किलकिला फीडर परियोजना के जीर्णोद्धार कार्य का भूमि पूजन किया। कार्य की लागत 589.12 लाख रूपए निर्धारित है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि घरों के व्यवस्थापन के बाद कार्य शुरू होगा। गत दिवस में नगर में पानी की समस्या के दौरान प्रशासन और नगर पालिका की टीम द्वारा नगरवासियों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए किए गए प्रयास की सराहना भी की। उन्होंने कहा कि पुराने जल स्रोतों को पुर्नजीवित करने की आवश्यकता है। प्राचीन कुओं और बावड़ी की सुरक्षा और साफ-सफाई के निर्देश भी दिए। साथ ही खोरा बांध के निर्माण के लिए जरूरी प्रयास करने की बात भी कही।

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Saturday, July 23, 2022

गांव में एक माह से बिजली नहीं, नल जल योजना ठप्प

  •  बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहे पाली विजवारा के लोग 
  •  सीएम हेल्पलाइन में भी की थी शिकायत, नहीं हुआ निराकरण

बिजली व पानी की समस्या से परेशान ग्रामीण आवेदन लेकर पहुंचे बिजली विभाग के दफ्तर। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। गांव में पिछले एक माह से बिजली बंद है, जिससे नल जल योजना भी ठप्प हो गई है। ऐसी स्थिति में गांव के लोग बारिश का दूषित और गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। मामला पन्ना जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत रहुनिया के पाली विजवारा गांव का है। यहां के गरीब आदिवासी एक माह से समस्या के निराकरण हेतु भटक रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

मंगलदीन आदिवासी ने बताया कि हमने सीएम हेल्पलाइन में भी शिकायत की थी, तो उन्होंने कहा कि पहले आप लोग बिजली विभाग जाएं वहां पर शिकायत करें। बिजली और पानी की समस्या से परेशान गांव के 14 लोग किराए के आटो से आज पन्ना आए और इंद्रपुरी कालोनी स्थित स्वयंसेवी संस्था समर्थन के ऑफिस में पहुंचकर समस्या के निराकरण का आवेदन लिखवाया। फिर उन्होंने बिजली विभाग के दफ्तर में जाकर समस्या के समाधान बाबत आवेदन दिया है। दशरथ गोंड़ ने बताया कि हम लोग गरीब हैं, इसलिए जहां जाते हैं वहीं से दुत्कार कर भगा दिया जाता है। ऑटो का किराया 14 सौ रुपया लगाकर पन्ना हम इस आशा से आए हैं कि समस्या दूर हो जाएगी।


रम्मू खैरवार ने बताया कि किसी तरह पैसा जोड़कर ऑटो से हम लोग आए हैं, दिन भर की मजदूरी का अलग नुकसान हुआ है। हम लोग पावर हाउस वाले कार्यालय में जब पहुंचे तो वहां पर बाबू राजेश वर्मा ने अच्छा व्यवहार नहीं किया। उसने डांटते हुए कहा कि आज ही पहले बिजली का बिल जमा करो। यह पूछने पर कि बिजली कब आएगी कोई जानकारी नहीं दी गई। ग्रामीणों ने बताया कि कनिष्ठ यंत्री बागरी मैडम ने जरूर हमसे सज्जनता पूर्वक बात की और समस्या के समाधान का भी आश्वासन दिया है।

कुंआ में बारिश का भरा यही दूषित पानी पीते हैं ग्रामवासी। 

पन्ना पहुंचे ग्रामीणों ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि गांव में 2 हैंडपंप हैं, लेकिन दोनों खराब पड़े हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों से हैंडपंप सुधरवाने का अनुरोध गांव के लोगों ने किया था, लेकिन विभाग ने हैंडपंप इसलिए नहीं सुधरवाया क्योंकि यह गांव नल जल योजना में शामिल है। टोंटी वाले नलों से बिजली न रहने के कारण पानी आता नहीं और हैंडपंप भी बिगड़े पड़े हैं। ऐसी स्थिति में दूषित बारिश का पानी पीना हमारी मजबूरी है।

गांव के 22 घरों में है बिजली कनेक्शन 



जिला मुख्यालय पन्ना से 25 किलोमीटर दूर घने जंगलों से घिरे इस गांव में बिजली का कनेक्शन 22 घरों में है। रम्मू खैरवार ने बताया कि हम हर महीने बिजली का बिल जमा करते हैं। सिर्फ चालू माह का सौ-सौ रुपया बकाया है, फिर भी बिजली ठीक नहीं की जा रही है। दिन ढलते ही गांव घनघोर अंधेरे में डूब जाता है, जिससे हर समय जहरीले कीड़ों व जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है। शिकायती आवेदन देने के लिए पाली विजवारा गांव से 14 लोग आटो से पन्ना आए थे। इनमें रम्मू खैरवार, सज्जन, गया, मान सिंह, निरपत सिंह, भज्जू, दशरथ, मंगलदीन, शिवराम, सुखलाल, भूरा, धुरिया, खित्तू व हक्का शामिल रहे।

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Friday, July 22, 2022

युवक का बाघिन से जब हुआ सामना, बचकर भागा तो मिल गया भालू !

  • बिल्हा गांव के जंगल में घटित हुई अविश्वसनीय सी लगने वाली यह घटना 
  • खूंखार जानवरों से बचे युवक की कहानी, उसके बड़े भाई व ग्रामीणों की जुबानी 

बिल्हा गांव का 20 वर्षीय युवक कैलाश पटेल उर्फ बच्चू जिसके साथ हुई यह विचित्र घटना। 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। जंगल की निराली दुनिया में कुछ न कुछ विचित्र, हैरतअंगेज व रोमांचकारी घटनाएं घटित होती रहती हैं। ऐसी ही एक घटना पिछले हफ्ते पन्ना जनपद की रक्सेहा पंचायत के अंतर्गत आने वाले बिल्हा गांव के जंगल में घटित हुई। अविश्वसनीय सी लगने वाली यह घटना ऐसी है, जिसे सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

दरअसल बिल्हा गांव का 20 वर्षीय युवक कैलाश पटेल उर्फ बच्चू अपने पड़ोसी महेंद्र पटेल 28 वर्ष के साथ 12 जुलाई को दोपहर गांव से लगी वनाच्छादित पहाड़ी में अपनी भैंसों को ढूंढने के लिए गया था। मालूम हो कि ग्रामीण अपने मवेशियों को चरने के लिए जंगल में छोड़ देते हैं। मवेशी जब वापस नहीं लौटते तो उन्हें ढूंढने जंगल जाते हैं। कैलाश पटेल के बड़े भाई साहब पटेल ने घटना के बारे में बताया कि चरने के लिए जंगल गई उनकी भैंसें जब दो दिन तक वापस नहीं लौटी, तो छोटा भाई उन्हें ढूंढने के लिए जंगल गया था। जंगल जाना गांव वालों के लिए सामान्य व रूटीन का काम है। लेकिन उस दिन जंगल में जो कुछ घटित हुआ, उसके बाद से गांव के लोग दहशत में हैं और अब अकेले कोई जंगल नहीं जाता।

साहब पटेल ने बताया कि छोटा भाई कैलाश अपने साथी के साथ पहाड़ी में ऊपर जब घने जंगल में पहुंचा, तो वहां उसे भैंसें तो नहीं मिलीं लेकिन सामने से आती बाघिन जरूर दिख गई। बाघिन को नजदीक आते देख दोनों युवक घबरा गए और जान बचाकर वहां से भागे। बाघिन से बचकर भागने में दोनों एक दूसरे से बिछड़ गए। साहब पटेल बताते हैं कि मेरा भाई भाग ही रहा था कि जंगल में उसका सामना भालू से हो गया। इसके पहले कि भालू हमला करता, कैलाश दौड़कर पास स्थित तेंदू के पेड़ में चढ़ गया। दो खूंखार जानवरों से घिरा कैलाश बुरी तरह घबरा गया था। उसके पास मोबाइल था, इसलिए हिम्मत करके उसने पेड़ के ऊपर से ही घर के लोगों को घटना से अवगत कराया और कहा कि जल्दी आकर मेरी जान बचाओ।

लाठियां व कुल्हाड़ी लेकर परिजन व ग्रामीण पहुंचे जंगल

दिल दहला देने वाली इस घटना की जानकारी मिलते ही कैलाश का बड़ा भाई साहब पटेल व गांव के कई अन्य लोग लाठियाँ व कुल्हाड़ी लेकर तुरंत उसी रास्ते से जंगल की तरफ रवाना हुए जिस रास्ते से दोनों गए थे। शाम हो चुकी थी इसलिए सभी किसी अनहोनी की आशंका से डरे और सहमे हुए थे। आवाज लगाने पर भी जब कोई प्रति उत्तर नहीं मिला, तो घबराहट और बढऩे लगी। तकरीबन दो दर्जन लोग जंगल का चप्पा चप्पा छान रहे थे, तभी रास्ते के पास नाले में कैलाश बेहोशी हालत में पड़ा मिला।

अंधेरा होते देख कैलाश किसी तरह भालू को चकमा देकर गांव की तरफ भागा था, लेकिन वह इतना डरा व घबराया हुआ था कि भागते-भागते गिर गया और बेहोश हो गया। बेहोशी की हालत में ही गांव के लोग उसे घर लाए। युवक के चेहरे में पानी का जब छीटा मारा गया तो उसे होश आया। भय से कांपते हुए वह चिल्लाने लगा कि मुझे बचाओ नहीं तो बाघिन खा जाएगी। यह हालत देख परिजन उसे रात्रि में ही जिला अस्पताल पन्ना ले गए, जहां वह तीन दिन भर्ती रहा। अस्पताल से छुट्टी होने के बाद भी कैलाश के मन से दहशत नहीं गई। वह अभी भी डरा-सहमा और गुमसुम रहता है।

आसपास के जंगलों में घूम रहे बाघ 

बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। मौजूदा समय यहां 70 से अधिक बाघ हैं। टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र की धारण क्षमता 30-35 बाघों की है। ऐसी स्थिति में अतिरिक्त बाघ अपने लिए इलाके की खोज में कोर क्षेत्र से बाहर निकल रहे हैं, जो आसपास के जंगलों में विचरण करते हैं। पिछले दिनों एक बाघिन की मौजूदगी पहाड़ीखेरा के निकट जंगल में पाई गई है। इस बाघिन ने एक बैल का शिकार भी किया है। बाघों के अलावा जंगल का राजकुमार कहे जाने वाले तेंदुओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है। पन्ना लैंडस्केप में 400 के लगभग तेंदुआ हैं, जो आबादी क्षेत्र के आसपास अक्सर देखे जाते हैं। ऐसी स्थिति में अब कोर क्षेत्र के बाहर बफर व टेरिटोरियल के जंगल में अकेले जाना सुरक्षित नहीं है।

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Thursday, July 21, 2022

अधिकांश सांप जहरीले नहीं होते, फिर आखिर क्यों मरते हैं इतने लोग ?

  • झाड़-फूंक नहीं, जान बचाने अस्पताल जाकर समय पर इलाज जरुरी
  • देश में हर साल 58 हजार से भी अधिक लोग होते हैं काल कवलित

जहरीले सांप जिनके काटने से होती है अधिकांश लोगों की मौत। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बारिश के मौसम में सर्पदंश की घटनाएं सर्वाधिक होती हैं। हमारे देश में हर साल 58 हजार से भी अधिक लोग सांप के काटने से असमय काल कवलित हो जाते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि अपने देश में पाये जाने वाले सांपों की तमाम प्रजातियों में सिर्फ रसेल वाइपर, कोबरा, करैत और सॉ स्केल्ड वाइपर ही जहरीले होते हैं। शेष प्रजाति के सांपों में जहर नहीं होता फिर भी इतने लोगों की मौत आखिर क्यों हो जाती है ?

पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता बताते हैं कि सर्पदंश से होने वाली 90 फीसदी मौतें भय के कारण हार्ट अटैक से होती हैं। इसलिए कम से कम भारत में पाये जाने वाले चार जहरीले सांपों की पहचान सभी को बचपन से कराई जानी चाहिए। जहरीले सांपों की पहचान होने पर सर्पदंश की स्थिति में झाड़-फूंक में समय बर्बाद करने के बजाय पीड़ित व्यक्ति को तुरन्त अस्पताल ले जाकर एंटी-स्नेक वेनम दवा देनी चाहिए। क्योंकि जहरीले सांप के काटने पर झाड़-फूंक से कोई फायदा नहीं होने वाला, देरी करने पर जहर फैलने से मृत्यु हो जाती है। लेकिन यदि समय पर एंटी-स्नेक वेनम दवा दे दी गई तो जान बच जाती है।

डॉ. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना लैण्ड स्केप में तीन तरह के जहरीले सांप कोबरा, रसेल वाइपर व करैत पाये जाते हैं। ज्यादातर मौतें इन्ही जहरीले साँपों के काटने से होती हैं। बिना जहर वाले साँपों के काटने से जिन लोगों की मौत होती है उसकी वजह अज्ञानता और भय है। बिना जहर वाले साँपों के काटने से पीड़ित लोगों को ही झाड़-फूंक से आराम मिल जाता है, क्योंकि इससे मरीज की मनोदशा भयमुक्त हो जाती है। लेकिन जहरीले सांप के काटने से यह युक्ति काम नहीं आती। 

सांपों से सबसे ज्यादा मुठभेड़ किसानों-मजदूरों की होती है। तीन बेहद आसान उपायों से इससे बचा जा सकता है। काम करते समय रबड़ के बूट व हाथों में दस्ताने पहनें और रात में निकलने से पहले रोशनी (टॉर्च) की व्यवस्था जरूर करें। गांवों में अभी भी किसान टूटी चप्पल पहनकर और फावड़ा लेकर रात के अंधेरे में पानी लगाने निकल पड़ता है। यह बेहद खतरनाक है, इससे आपकी और सांप दोनों की जान खतरे में पड़ जाती है।

कैसे करें जहरीले सांपों की पहचान


पीटीआर के रेस्क्यू दल में शामिल तस्लीम खान जो सांप पकड़ने में दक्ष हैं।  

अब तक हजारों सांपों को पकड़ कर उन्हें सुरक्षित जंगल में छोडऩे वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के रेस्क्यू दल के सदस्य तस्लीम खान बताते हैं कि पन्ना जिले में कोबरा व करैत के काटने से ज्यादातर लोगों की मौत होती है। कोबरा काले रंग का होता है तथा फन फैलाकर बैठता है, जबकि करैत में ऑडी धारियां होती हैं। बाइपर में अजगर की तरह छपके होते हैं तथा यह बेहद जहरीला होता है, जो कुकर की तरह सीटी मारता है।

वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता ने बताया कि कोबरा व करैत न्यूरोलाइटिक होता है। इनका जहर नर्व के माध्यम से चढ़ता है। जहां काटता है वहां सूजन व दर्द होता है। जबकि बाइपर ह्यूमोलाइटिक होता है, जहां काटता है वहां से बूंद-बूंद करके खून निकलता रहता है। खून का जमना बंद हो जाता है। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि आम जनमानस में जहरीले सांपों के बारे में जागरूकता जरूरी है। सबको यह पता होना चाहिए कि इनके काटने पर उपचार अस्पताल में उपलब्ध है, झाड़-फूंक से कुछ नहीं होगा।

जंगल में वनकर्मी कैसे करते हैं बचाव


पन्ना टाइगर रिज़र्व का रेस्क्यू दल जिन्होंने  इस विशाल अजगर को पकड़कर सुरक्षित जंगल में छोड़ा। 

जंगल खासकर रिजर्व वन क्षेत्र जहां मैदानी वनकर्मी झोपड़ी व वन सुरक्षा चौकियों में रहकर जंगल व वन्य प्राणियों की निगरानी चौबीसों घंटे करते हैं। जहरीले सांपों से बचने के लिए वन कर्मी झोपड़ी के चारों तरफ एक नाली खोदते हैं, जो एक-डेढ़ फीट गहरी व इतनी ही चौड़ी होती है। इस एंटी स्नेक ट्रेंच के कारण सांप झोपड़ी में नहीं आते। इसके अलावा लहसुन को पीसकर उसका घोल बनाकर छिड़काव करते हैं, इससे सांप नहीं आते। जंगल में ट्रैकिंग के समय वन कर्मी  बड़े जूता पहनते हैं तथा लाठी ठोकते हुए चलते हैं। लाठी के कंपन से सांप भाग जाता है।

इन तमाम बातों के बावजूद सांप किसानों के मित्र होते हैं। वे ईकोसिस्टम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूहे जैसे किसानों के दुश्मनों का वे सफाया करके उपज बढ़ाते हैं। उनकी ज्यादातर प्रजातियां जहरीली नहीं होती। इसलिए ज्यादा जरूरत इस बात की है कि उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानें और सतर्क रहें।

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Wednesday, July 13, 2022

"गुरु है पूर्णिमा का चांद" – ओशो

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरू—पूर्णिमा के रूप में मनाने का क्या राज है?



एक तो राह है जीवन को देखने की – गणित की, और एक राह है जीवन को देखने की काव्य की। गणित की यात्रा विज्ञान पर पहुंचा देती है। और अगर काव्य की यात्रा पर कोई चलता ही चला जाए, तो परम काव्य परमात्मा पर पहुंच जाता है। लेकिन काव्य की भाषा को समझना थोड़ा दुरूह है, क्योंकि तुम्हारे जीवन की सारी भाषा गणित की भाषा है। तो गणित की भाषा से तो तुम परिचित हो, काव्य की भाषा से परिचित नहीं हो।

दो भूलों की संभावना है। पहली तो भूल यह है कि तुम काव्य की भाषा को केवल कविता समझ लो, एक कल्पना मात्र! तब तुमने पहली भूल की। और दूसरी भूल यह है कि तुम कविता की भाषा को गणित की तरह सच समझ लो, तथ्य समझ लो, तब भी भूल हो गई। दोनों से जो बच सके, वह समझ पाएगा कि आषाढ़ पूर्णिमा का गुरु—पूर्णिमा होने का क्या कारण है।

काव्य की भाषा तथ्यों के संबंध में नहीं है, रहस्यों के संबंध में है। जब कोई प्रेमी कहता है अपनी प्रेयसी से कि तेरा चेहरा चांद जैसा, तो कोई ऐसा अर्थ नहीं है कि चेहरा चांद जैसा है। फिर भी वक्तव्य व्यर्थ भी नहीं है। चांद जैसा तो चेहरा हो कैसे सकता है?

फिर ऐसे लोग हैं, जिन्होंने काव्य की भाषा को तथ्य की भाषा सिद्ध करने की चेष्टा की है। जैसे जीसस को कहा है ईसाइयों ने कि वे कुंआरी मां से पैदा हुए।

यह काव्य है। कुंआरी मां से कोई कभी पैदा नहीं होता। यह तथ्य नहीं है, यह इतिहास नहीं है, पर फिर भी बड़ा अर्थपूर्ण है, इतिहास से भी ज्यादा अर्थपूर्ण है। यह बात अगर इतिहास से भी घटती, तो दो कौड़ी की होती। इसमें जानने वालों ने कुछ कहने की कोशिश की है, जो साधारण भाषा में समाता नहीं।

उन्होंने यह कहा है कि जीसस जैसा व्यक्ति सिर्फ कुंआरी मां से ही पैदा हो सकता है। जीसस जैसी पवित्रता, कल्पना भी हम नहीं कर सकते कि कुंआरेपन के अतिरिक्त और कहा से पैदा होगी! इसे न तो सिद्ध करने की कोई जरूरत है, न असिद्ध करने की कोई जरूरत है। दोनों ही नासमझियां हैं। इसे समझने की जरूरत है। काव्य एक सहानुभूति चाहता है। ये सब काव्य हैं। इनको काव्य की तरह समझो, तब इनका माधुर्य अनूठा है; तब इसमें तुम डुबकियां लगाओ और बड़े हीरे तुम ले आओगे, बड़े मोती चुन लोगे।

लेकिन किनारे पर दो तरह के लोग बैठे हैं, वे डुबकी लगाते ही नहीं। एक सिद्ध करता रहता है कि यह बात तथ्य नहीं है, झूठ है। वह भी नासमझ है। दूसरा सिद्ध करता रहता है कि यह तथ्य है, झूठ नहीं है। वह भी नासमझ है। क्योंकि वे दोनों ही एक ही मुद्दे पर खड़े हैं। दोनों ही यह मान रहे हैं, उन दोनों की भूल एक ही है कि काव्य की भाषा तथ्य की भाषा है। दोनों की भूल एक है। वे विपरीत मालूम पड़ते हैं, विपरीत हैं नहीं।

सारा धर्म एक महाकाव्य है। अगर यह तुम्हें खयाल में आए, तो आषाढ़ की पूर्णमा बड़ी अर्थपूर्ण हो जाएगी। अन्यथा, एक तो आषाढ़, पूर्णिमा दिखाई भी न पड़ेगी। बादल घिरे होंगे, आकाश तो खुला न होगा, चांद की रोशनी पूरी तो पहुंचेगी नहीं। और प्यारी पूर्णिमाएं हैं, शरद पूर्णिमा है, उसको क्यों न चुन लिया? ज्यादा ठीक होता, ज्यादा मौजूं मालूम पड़ता।

नहीं; लेकिन चुनने वालों का कोई खयाल है, कोई इशारा है। वह यह है कि गुरु तो है पूर्णिमा जैसा और शिष्य है आषाढ़ जैसा। शरद पूर्णिमा का चांद तो सुंदर होता है, क्योंकि आकाश खाली है। वहा शिष्य है ही नहीं, गुरु अकेला है। आषाढ़ में सुंदर हो, तभी कुछ बात है, जहां गुरु बादलों जैसा घिरा हो शिष्यों से।

शिष्‍य सब तरह के जन्‍मों—जन्‍मों के अंधेरे का लेकर आ गए। वे अंधेरे बादल हैं, आषाढ़ का मौसम हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी रोशनी पैदा कर सके, तो ही गुरु है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा! वह गुरु की तरफ भी इशारा है उसमें और शिष्य की तरफ भी इशारा है। और स्वभावत: दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।

ध्यान रखना, अगर तुम्हें यह समझ में आ जाए काव्य—प्रतीक, तो तुम आषाढ़ की तरह हो, अंधेरे बादल हो। न मालूम कितनी कामनाओं और वासनाओं का जल तुममें भरा है, और न मालूम कितने जन्मों—जन्मों के संस्कार लेकर तुम चल रहे हो, तुम बोझिल हो। तुम्हें तोड़ना है, तुम्हें चीरना है। तुम्हारे अंधेरे से घिरे हृदय में रोशनी पहुंचानी है। इसलिए पूर्णिमा!

चांद जब पूरा हो जाता है, तब उसकी एक शीतलता है। चांद को ही हमने गुरु के लिए चुना है। सूरज को चुन सकते थे, ज्यादा मौजुद होता, तथ्यगत होता। क्योंकि चांद के पास अपनी रोशनी नहीं है। इसे थोडा समझना।

चांद की सब रोशनी उधार है। सूरज के पास अपनी रोशनी है। चांद पर तो सूरज की रोशनी का प्रतिफलन होता है। जैसे कि तुम दीए को आईने के पास रख दो, तो आईने में से भी रोशनी आने लगती है। वह दीए की रोशनी का प्रतिफलन है, वापस लौटती रोशनी है। चांद तो केवल दर्पण का काम करता है, रोशनी सूरज की है।

हमने गुरू को सूरज ही कहा होता, तो बात ज्यादा तथ्यपूर्ण होती। मिश्रित कर दे। चांद शून्य है; उसके पास कोई रोशनी नहीं है, लेता और सूरज के पास प्रकाश भी महान है, विराट है। चांद के पास कोई बहुत बड़ा प्रकाश थोड़े ही है, बड़ा सीमित है; इस पृथ्वी तक आता है, और कहीं तो जाता नहीं।

पर हमने सोचा है बहुत, सदियों तक, और तब हमने चांद को चुना है दो कारणों से। एक,गुरु के पास भी रोशनी अपनी नहीं है, परमात्मा की है। वह केवल प्रतिफलन है। वह जो दे रहा है, अपना नहीं है; वह केवल निमित्तमात्र है, वह केवल दर्पण है।

तुम परमात्मा की तरफ सीधा नहीं देख पाते, सूरज की तरफ सीधा देखना बहुत मुश्किल है। देखो, तो अड़चन समझ में आ जाएगी। प्रकाश की जगह आंखें अंधकार से भर जाएंगी। परमात्मा की तरफ सीधा देखना असंभव है, आंखें फूट जाएंगी, अंधे हो जाओगे। रोशनी ज्यादा है, बहुत ज्यादा है, तुम सम्हाल न पाओगे, असह्य हो जाएगी। तुम उसमें टूट जाओगे, खंडित हो जाओगे, विकसित न हो पाओगे।

इसलिए हमने सूरज की बात छोड़ दी। वह थोड़ा ज्यादा है; शिष्य की सामर्थ्य के बिलकुल बाहर है। इसलिए हमने बीच में गुरु को लिया है।

गुरु एक दर्पण है, पकड़ता है सूरज की रोशनी और तुम्हें दे देता है। लेकिन इस देने में रोशनी मधुर हो जाती है। इस देने में रोशनी की त्वरा और तीव्रता समाप्त हो जाती है। दर्पण को पार करने में रोशनी का गुणधर्म बदल जाता है। सूरज इतना प्रखर है, चांद इतना मधुर है!

इसलिए तो कबीर ने कहा है, गुरु गोविंद दोई खड़े, काके लागू पाय। किसके छुऊं पैर? वह घड़ी आ गई, जब दोनों सामने खड़े हैं। फिर कबीर ने गुरु के ही पैर छुए, क्योंकि बलिहारी गुरु आपकी, जो गोविंद दियो बताय।

सीधे तो देखना संभव न होता। गुरु दर्पण बन गया। जो असंभवप्राय था, उसे गुरु ने संभव किया है, जो दूर आकाश की रोशनी थी, उसे जमीन पर उतारा है। गुरु माध्यम है। इसलिए हमने चांद को चुना।

गुरु के पास अपना कुछ भी नहीं है। कबीर कहते हैं, मेरा मुझमें कुछ नहीं। गुरु है ही वही जो शून्यवत हो गया है। अगर उसके पास कुछ है, तो वह परमात्मा का जो प्रतिफलन होगा, वह भी विकृत हो जाएगा, वह शुद्ध न होगा।

चांद के पास अपनी रोशनी ही नहीं है जिसको वह मिला दे, है सूरज से, देता है तुम्हें। वह सिर्फ मध्य में है, माधुर्य को जन्मा देता है।

सूरज कहना ज्यादा तथ्यगत होता, लेकिन ज्यादा सार्थक न होता। इसलिए हमने चांद कहा है।

फिर सूरज सदा सूरज है, घटता—बढ़ता नहीं। गुरु भी कल शिष्य था। सदा ऐसा ही नहीं था। बुद्ध से बुद्ध पुरुष भी कभी उतने ही तमस, अंधकार से भरे थे, जितने तुम भरे हो। सूरज तो सदा एक—सा है।

इसलिए वह प्रतीक जमता नहीं। गुरु भी कभी खोजता था, भटकता था, वैसे ही, उन्हीं रास्तों पर, जहां तुम भटकते हो, जहां तुम खोजते हो। वही भूलें गुरु ने की हैं, जो तुमने की हैं। तभी तो वह तुम्हें सहारा दे पाता है। जिसने भूलें ही न की हों, वह किसी को सहारा नहीं दे सकता। वह भूल को समझ ही नहीं सकता। जो उन्हीं रास्तों से गुजरा हो; उन्हीं अंधकारपूर्ण मार्गों में भटका हो, जहां तुम भटकते हो, उन्हीं गलत द्वारों पर जिसने दस्तक दी हो, जहां तुम देते हो; मधुशालाओं से और वेश्यागृहों से जो गुजरा हो; जिसने जीवन का सब विकृत और विकराल भी देखा हो, जिसने जीवन में शैतान से भी संबंध जोड़े हों—वही तुम्हारे भीतर की असली अवस्था को समझ सकेगा।

नहीं, सूरज तुम्हें न समझ सकेगा, चांद समझ सकेगा। चांद अंधेरे से गुजरा है; पंद्रह दिन, आधा जीवन तो अंधेरे में ही डूबा रहता है। अमावस भी जानी है चांद ने, सदा पूर्णिमा ही नहीं रही है। भयंकर अंधकार भी जाना है, शैतान से भी परिचित हुआ है, सदा से ही परमात्मा को नहीं जाना है। यात्री है चांद। सूरज तो यात्री नहीं है, सूरज तो वैसा का वैसा है। अपूर्णता से पूर्णता की तरफ आया है गुरु चांद की तरह—एकम आई, दूज आई, तीज आई—धीरे— धीरे बढ़ा है एक—एक कदम। और वह घड़ी आई, जब वह पूर्ण हो गया है।

गुरु तुम्हारे ही मार्ग पर है; तुमसे आगे, पर मार्ग वही है। इसलिए तुम्हारी सहायता कर सकता है। परमात्मा तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।

यह तुम्हें थोड़ा कठिन लगेगा सुनना। परमात्मा तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता, क्योंकि वह उस यात्रा में कभी भटका नहीं है, जहां तुम भटक रहे हो। वह तुम्हें समझ ही न पाएगा।वह तुमसे बहुत दूर है। उसका फासला अनंत है। तुम्हारे और उसके बीच कोई भी सेतु नहीं बन सकते।

गुरु और तुम्हारे बीच सेतु बन सकते हैं। कितना ही अंतर पड़ गया हो पूर्णिमा के चांद में—कहां अमावस की रात, कहां पूर्णिमा की रात—कितना ही अंतर पड़ गया हो, फिर भी एक सेतु है। अमावस की रात भी चांद की ही रात थी, अंधेरे में डूबे चांद की रात थी। चांद तब भी था, चांद अब भी है। रूपांतरण हुए हैं, क्रांतिया हुई हैं; लेकिन एक सिलसिला है।

तो गुरु तुम्हें समझ पाता है। और मैं तुमसे कहता हूं तुम उसी को गुरु जानना, जो तुम्हारी हर भूल को माफ कर सके। जो माफ न कर सके, समझना, उसने जीवन को ठीक से जीया ही नहीं। अभी वह पूर्ण तो हो गया होगा—जो मुझे संदिग्ध है। जो दूज का चांद ही नहीं बना, वह पूर्णिमा का चांद कैसे बनेगा? धोखा होगा।

इसलिए जो महागुरु हैं, परम गुरु हैं, वे तुम्हारी सारी भूलों को क्षमा करने को सदा तत्पर हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि स्वाभाविक है, मनुष्य—मात्र करेगा। उन्होंने स्वयं की हैं, इसलिए दूसरे को क्या दोष देना! क्या निंदा करनी! उनके मन में करुणा होगी।

चांद तो सारी यात्रा से गुजरा है, सारे अनुभव हैं उसके। मनुष्य—मात्र के जीवन में जो हो सकता है, वह उसके जीवन में हुआ है। वही गुरु है, जिसने मनुष्यता को उसके अनंत—अनंत रूपों में जी लिया है—शुभ और अशुभ, बुरे और भले, असाधु और साधु के, सुंदर और कुरूप। जिसने नरक भी जाना है, जीवन का स्वर्ग भी जाना है; जिसने दुख भी पहचाने और सुख भी पहचाने, जो सबसे प्रौढ़ हुआ है। और सबकी संचित निधि के बाद जो पूर्ण हुआ है, चांद हुआ है।

इसलिए हम सूरज नहीं कहते गुरु को, चांद कहते हैं। चांद शीतल है। रोशनी तो उसमें है, लेकिन शीतल है। सूरज में रोशनी है, लेकिन जला दे। सूरज की रोशनी प्रखर है, छिदती है, तीर की तरह है। चांद की रोशनी फूल की वर्षा की तरह है, छूती भी नहीं और बरस जाती है।

गुरु चांद है, पूर्णिमा का चांद है। और तुम कितनी ही अंधेरी रात होओ और तुम कितने ही दूर होओ, कोई अंतर नहीं पड़ता, तुम उसी यात्रा—पथ पर हो, जहां गुरु कभी रहा है।

इसलिए बिना गुरु के परमात्मा को खोजना असंभव है। परमात्मा का सीधा साक्षात्कार तुम्हें जला देगा, राख कर देगा। सूरज की तरफ आंखें मत उठाना। पहले चांद से नाता बना लो। पहले चांद से राजी हो जाओ। फिर चांद ही तुम्हें सूरज की तरफ इशारा कर देगा। बलिहारी गुरु आपकी, जो गोविंद दियो बताय। इसलिए आषाढ़ पूर्णिमा गुरु—पूर्णिमा है। पर ये काव्य के प्रतीक हैं। इन्हें तुम किसी पुराण में मत खोजना। इनके लिए तुम किसी शास्त्र में प्रमाण मत खोजने चले जाना। यह तो जैसा मैंने देखा है, वैसा तुम से कह रहा हूं।

– ओशो 

[ गीता-दर्शन-भाग(8) प्रवचन-201 ]

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Saturday, July 9, 2022

हाथी रामबहादुर की कहानी, जिसने अपने ही महावत व एक रेंजर की ली है जान !

  • ढाई दशक से भी अधिक समय तक जिस हाथी का उसके महावत से निकट का दोस्ताना रिश्ता रहा हो, उसे वह यदि अचानक मार डाले तो हर किसी के जेहन में सवाल उठता है कि आखिर हाथी के ऐसे व्यवहार की वजह क्या हो सकती है ? मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 4 जुलाई को सुबह घटी इस घटना के बाद से यहां के महावत डरे और सहमे हुए हैं। हिंसक हो चुके इस हाथी को ट्रेंकुलाइज करके बेडियों और मोटी जंजीरों से बांधकर कैद किया गया है।


  
जंगल में गस्त के दौरान बाघ परिवार के पास से गुजरता हाथी रामबहादुर, ऊपर बैठे एम. पी. ताम्रकार। (फ़ाइल फोटो)   

                      

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्य प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व इन दिनों बागी हो चुके एक 55 वर्षीय नर हाथी को लेकर चर्चा में हैं। इस हाथी ने 4 जुलाई को सुबह अपने ही महावत बुधराम रोटिया (57 वर्ष) की दांत से दबा कर जान ले ली है। घटना के बाद से पन्ना टाइगर रिजर्व में मातम और भय का माहौल है। 2 वर्ष पूर्व इस हाथी ने अगस्त 2020 में रेंज ऑफिसर बी.एस. भगत को भी इसी तरह दांत से दबा कर मार डाला था। बीते 2 सालों से इस हाथी को अलग रखा जा रहा था। जंगल की निगरानी व अन्य दूसरे कार्यों में भी इसका उपयोग नहीं किया जाता था। घटना दिनांक को सुबह महावत बुधराम जब जंगल में हाथी रामबहादुर को ढूंढ रहा था, उसी समय हाथी ने हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया।

छत्तीसगढ़ के जंगल में पले बढ़े इस हाथी को वर्ष 1993 में पकड़ा गया था। उस समय हाथी की उम्र 25- 26 वर्ष के लगभग थी। महावत बुधराम तभी से इस हाथी के साथ हमेशा रहा है। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के सबसे अहम किरदार रहे पूर्व क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति का यह सबसे चहेता हाथी रहा है। श्री मूर्ति बताते हैं कि वर्ष 1993 में इस हाथी को जसपुर (छत्तीसगढ़) के जंगल से पकड़ा गया था। आपने बताया कि उस समय वे वहां डीएफओ के पद पर थे, फलस्वरुप हाथी को पकड़े जाने के अभियान में शामिल थे। कर्नाटक से आए रेस्क्यू दल की मदद से हाथी रामबहादुर तथा उसके भाई को पकड़ा गया था। उसी समय से महावत बुधराम हाथी के साथ रहा है।

हाथी रामबहादुर सितंबर 2002 में पन्ना आया


हाथी रामबहादुर को ट्रैंक्युलाइज कर उसे मोटी जंजीर से बांधे जाते समय की तस्वीर। 

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि सितंबर 2002 में संजय टाइगर रिजर्व से नर हाथी रामबहादुर को पन्ना लाया गया था। हाथी के साथ ही महावत बुधराम भी पन्ना आया और तभी से वह निरंतर इस हाथी के सानिध्य में रहकर उसकी देखरेख करता रहा है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि मृतक महावत बुधराम के दो बेटे हैं और दोनों ही बेटे पन्ना टाइगर रिजर्व के हाथियों की देखरेख चारा कटर के रूप में कर रहे हैं। आपने बताया कि चारा कटर अस्थाई कर्मी हैं, जो महावत के सहयोगी होते हैं तथा हाथियों की देखरेख व उनकी सेवा करते हैं। पूरी जिंदगी जिस हाथी के साथ रहकर उसकी सेवा में गुजारी, उसी हाथी ने महावत बुधराम को जब मौत के घाट उतार दिया तो इस घटना ने अन्य दूसरे महावतों व चारा कटरों को भी दहला दिया है।

पन्ना टाइगर रिजर्व के महावतों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि रेंजर बी.एस. भगत को मारने के बाद से हाथी राम बहादुर का स्वभाव बेहद आक्रमक हो गया था। कोई महावत व चारा कटर बीते 2 साल से इस हाथी के पास नहीं गया। इंसान को देख कर ही डेढ़-दो सौ मीटर दूर से रामबहादुर मारने के लिए दौड़ पड़ता है। यही वजह है कि कोई इसके आसपास नहीं फटकता। सिर्फ बुधराम ही था जिसका कमांड रामबहादुर मानता रहा है, लेकिन अब बुधराम की मौत के बाद से कोई महावत इस हाथी पर चढऩे को तैयार नहीं है।

पन्ना के पुनरुद्धार में हाथी का रहा है अहम योगदान


 रामबहादुर का दांत पकड़कर खड़े आर. श्रीनिवास मूर्ति, ऊपर महावत बुधराम।

स्वर्गीय बुधराम रोटिया व हाथी रामबहादुर का पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनके बिना कामयाबी संभव नहीं थी, पूर्व क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व श्री मूर्ति ने बताया। वे कहते हैं कि राम बहादुर इकलौता ऐसा हाथी है जो मस्त में रहते हुए भी काम करता है। आमतौर पर मस्त के दौरान हाथियों से काम नहीं लेते, उन्हें बांधकर रखते हैं। हाथी रामबहादुर के दांत को पकड़े अपनी एक तस्वीर साझा करते हुए श्री मूर्ति बताते हैं कि यह तस्वीर प्रसिद्ध हाथी विशेषज्ञ व सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डब्लूआईआई डॉ. जॉन सिंह ने ली थी।

तस्वीर में आंख के ऊपर ग्रंथि से तरल पदार्थ निकलता नजर आ रहा है, जो यह बताता है कि हाथी मस्त में है। ऐसे समय भी महावत बुधराम एक साधारण छड़ी के सहारे रामबहादुर को नियंत्रित रखा और मुझे उसके दांत (टस्क) पकड़कर खड़े होने में कोई दिक्कत नहीं हुई। उस समय हाथी विशेषज्ञ डॉ जॉन सिंह की प्रतिक्रिया थी कि हाथी रामबहादुर एक अजूबा है। जिससे मस्त के दौरान भी काम लिया जाता है और वह महावत की सुनता भी है।

बाघों को ट्रेंकुलाइज करने में हुआ सर्वाधिक उपयोग


पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों के कुनबे में अधिकांश बच्चे रामबहादुर के ही हैं। विशाल डीलडोल वाले इस हाथी का उपयोग रेस्क्यू व बाघों को ट्रेंकुलाइज करने में सबसे ज्यादा हुआ है। श्री मूर्ति बताते हैं कि बाघ पुनर्स्थापना योजना के दौरान मैंने हमेशा इसी हाथी का उपयोग किया और इसने कभी भरोसा नहीं तोड़ा। बाघों को ट्रेंकुलाइज करने में 50 से भी अधिक बार इस हाथी का उपयोग हुआ है। कई बार तो वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता हाथी के ऊपर खड़े होकर टाइगर को डॉट लगाई और रामबहादुर उस दौरान सांस रोककर चट्टान की तरह खड़ा रहा, ताकि काम में बाधा न पहुंचे।

मस्त के दौरान भी काम करने वाला यह हाथी अपने ही महावत पर हमला कर उसे क्यों मारा ? इस सवाल के जवाब में श्री मूर्ति बताते हैं कि वर्ष 2018 में जंगल की गश्त के दौरान विद्युत तार की चपेट में आने से महावत बुधराम का आधा शरीर पैरालाइज हो गया था। शारीरिक अक्षमता के कारण शायद महावत और हाथी के बीच संवाद कमजोर हुआ और ऐसे हालात बन गए। श्री मूर्ति कहते हैं कि हाथी का प्रबंधन आसान काम नहीं है, उसके साथ बेहतर तालमेल व प्रेम पूर्ण बर्ताव जरूरी होता है। गुस्सा तो सबमें होता है फिर हाथी तो एक जानवर है। इसको अलग रखने से मद और बढ़ गया होगा।

मस्त के दौरान हो जाते हैं आक्रामक

मस्त के दौरान हाथी आमतौर पर ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं, इस समय वे मारने का बहाना ढूंढते हैं। हाथी मस्त में है इस बात का पता कैसे लगता है ? इस सवाल के जवाब में वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता बताते हैं कि हाथी में आंख के ऊपर बगल में "टेंपोरल ग्लैंड" होती है जिसमें सूजन आती है जो पेनफुल होती है। जितना पेन होगा हाथी उतना ही आक्रामक होगा। डॉक्टर गुप्ता बताते हैं कि मस्त नार्मली 3 माह का होता है, जिसे तीन भागों में बांटते हैं। प्री मस्त, मिड मस्त व पोस्ट मस्त। हाथी सबसे ज्यादा आक्रामक मिड मस्त में होता है, क्योंकि सबसे ज्यादा सूजन व डिस्चार्ज इस समय होता है। डिस्चार्ज में एक तरल पदार्थ निकलता है, जिसमें थेरोमोन होता है जो फीमेल को अट्रैक्ट करता है। इसी दौरान टेस्टस्ट्रॉन हार्मोन का निर्माण सबसे अधिक होता है। यह हार्मोन मेटिंग के काम आता है।

उपयोग ना होने से आक्रामकता और बढ़ी

पन्ना टाइगर रिजर्व में 12 वर्षों तक पदस्थ रहने के बाद सहायक संचालक के पद से सेवानिवृत्त हुए एम.पी. ताम्रकार ने चर्चा करते हुए बताया कि हाथी रामबहादुर का बीते 2 वर्ष के दौरान उपयोग ना के बराबर हुआ। जिससे उसका पुराना जंगली स्वभाव वापस लौट आया और वह ज्यादा आक्रामक हो गया।

ताम्रकार बताते हैं कि पन्ना बाघ पुनर्स्थापना के दौरान हाथियों का भरपूर उपयोग गस्त, बाघों की सर्चिंग व रेडियो कॉलर पहनाने आदि में होता रहा है।रिजर्व वन क्षेत्र के हाथी अर्ध वाइल्ड होते हैं, इनका जितना उपयोग हो उतना वे नियंत्रण में रहते हैं। उपयोग ना होने पर मनमर्जी करने लगते हैं। रामबहादुर जब जंगल में था पकड़ा नहीं गया था, उस समय इसने कई लोगों को मारा था। हाथी इस धरती का सबसे बड़ा वन्य प्राणी है जिसके जीन में आक्रामकता होती है।

आपने बताया कि आबादी क्षेत्र में रहने वाले पालतू हाथी व रिजर्व वन क्षेत्र के हांथियों में बहुत फर्क होता है। पालतू हाथी मानव आबादी में होते हैं, इसलिए उनकी आक्रामकता खत्म हो जाती है। पालतू हाथी टाइगर के सामने नहीं जा सकता, देखकर ही भाग खड़ा होगा। रिजर्व क्षेत्र के हाथी पब्लिक टच में नहीं रहते इसलिए इनके स्वभाव में बुनियादी अंतर रहता है। चूंकि हाथी की याददाश्त बहुत ज्यादा होती है, इसलिए वे पुरानी किसी भी घटना को याद करके मौका मिलने पर अपनी खुन्नस (गुस्सा) निकालते हैं। महावत बुधराम के साथ हो सकता है, ऐसा ही कुछ हुआ हो।

अब कैद में मोटी जंजीरों से बंधा है रामबहादुर

 

लोहे की मोटी जंजीर से बंधने के बाद शांत खड़ा हाथी रामबहादुर। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के बुधरौंड जंगल में 4 जुलाई तक खुला घूमने वाला हाथी रामबहादुर अब कैद में है। बेहद खतरनाक हो चुके इस हाथी को हिनौता हाथी कैंप में मोटी जंजीरों से बांधकर सघन निगरानी में रखा गया है। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि 4 जुलाई को सुबह महावत बुधराम को मारने के बाद यह हाथी फरार हो गया था। घटना वाली रात टीम पूरे समय हाथी को ट्रैक करती रही, ताकि यह आबादी क्षेत्र में न जा पाए। हालात यह थे कि महावत इसके आसपास जाने का प्रयास करते तो वह खदेड़ लेता था। 5 जुलाई को सुबह यह अपने आप हिनौता हाथी कैंप की तरफ आ गया। यहां इसे सुबह लगभग 9:30 बजे ट्रेंकुलाइज किया गया और 4 घंटे की मशक्कत के बाद इसे बेडय़िां पहनाकर मोटी जंजीर से बांधा गया है। अभी कुछ दिन इसे इसी तरह रखा जाएगा। पूरी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी गई है, निर्देश प्राप्त होने पर आगे की कार्यवाही की जाएगी।

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Friday, July 8, 2022

पन्ना टाइगर रिजर्व के हाथी को कैद की सजा !

  • ट्रेंकुलाइज कर बेड़ियों और जंजीरों से किया गया कैद 
  • महावत को मारकर हाथी रामबहादुर हो गया था फरार 

हाथी रामबहादुर साथ में महावत स्व. बुधराम रोटिया। ( फ़ाइल फोटो )

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का 55 वर्षीय नर हाथी इन दिनों कैद में है। इस भारी-भरकम डीलडोल वाले हाथी को बेडियों और मोटी जंजीरों से बांधकर रखा गया है। दरअसल इस हाथी ने विगत 4 जुलाई को सुबह अपने ही महावत बुधराम रोटिया (56 वर्ष) को बेरहमी के साथ दांत से दबाकर मार दिया था। दिल दहला देने वाली इस घटना के बाद यह हाथी जंगल में फरार हो गया, जिसे बड़ी मशक्कत के बाद ट्रेंकुलाइज कर जंजीरों से जकड़ा गया है।

क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि विगत 4 जुलाई को सुबह पन्ना टाइगर रिजर्व के नर हाथी रामबहादुर ने अपने महावत बुधराम रोटिया को दांत से दबाकर मारने के बाद जंगल में फरार हो गया था। चूंकि हाथी मस्त में है, इसलिए वह आक्रामक और खतरनाक हो चुका है। हाथी को आबादी क्षेत्र के आसपास जाने से रोकने के लिए पूरी रात वन कर्मियों व महावतों की टीम उसे ट्रैक करती रही। मैं स्वयं जंगल में जाकर पूरी स्थिति पर नजर रखे रहा। श्री शर्मा ने बताया कि हाथी रामबहादुर इस कदर आक्रामक हो चुका है कि महावतों को डेढ़-दो सौ मीटर दूर से ही खदेडऩे लगता है। इसके बावजूद टीम पूरे समय हाथी का पीछा करती रही।

जंगल में विचरण करते हुए हाथी रामबहादुर 5 जुलाई को रात में अपने आप हिनौता हाथी कैंप की तरफ रुख किया। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि जैसे ही उन्हें इस बात की जानकारी लगी कि रामबहादुर हिनौता कैम्प की तरफ आ रहा है, आनन-फानन वहां से उम्रदराज हथिनी वत्सला को रात 3:00 बजे हटाकर दूर सुरक्षित जगह पर ले जाया गया। मालूम हो कि नर हाथी रामबहादुर मस्त के दौरान दो बार हथनी वत्सला पर हमला कर उसे बुरी तरह से घायल कर चुका है। लंबे समय तक चले उपचार के बाद बमुश्किल वत्सला की जान बचाई जा सकी है। इस बात को दृष्टिगत रखते हुए रात में ही वत्सला को हिनौता कैंप से हटा दिया गया, ताकि कोई अप्रिय स्थिति निर्मित न हो।

हिनौता हाथी कैम्प में किया गया ट्रेंकुलाइज

मस्त में डूबा हाथी रामबहादुर जंगल में विचरण करते हुए सुबह लगभग 5:00 बजे अपने आप हिनौता हाथी कैम्प में आ पहुंचा। हाथी के यहां पहुंचने पर सबसे बड़ी समस्या उसे नियंत्रित करने की थी, क्योंकि उसके आसपास कोई जा नहीं सकता था। इसलिए उसे ट्रेंकुलाइज कर जंजीर से बांधने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इसलिए आनन-फानन निर्णय लिया गया और हाथी को ट्रेंकुलाइज करने की तैयारी शुरू की गई। पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता रेस्क्यू टीम के साथ हिनौता पहुंच गये।

क्षेत्र संचालक श्री शर्मा बताते हैं कि 5 जुलाई को सुबह लगभग 9:30 बजे नर हाथी रामबहादुर को डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता ने डॉट लगाकर ट्रेंकुलाइज किया। हाथी के बेहोश होने पर भी कोई उसके पास जाने को तैयार नहीं था। चार घंटे की मशक्कत के बाद हाथी को बेड़ियाँ पहनाकर उसे मोटी जंजीरों से बांधा गया। श्री शर्मा ने बताया कि नर हाथी की सघन निगरानी की जा रही है। पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी गई है। ऊपर से जिस तरह के निर्देश प्राप्त होंगे उसी के अनुरूप आगे की कार्यवाही की जाएगी। तब तक हाथी रामबहादुर इसी तरह जंजीरों से कैद रहेगा।

वर्ष 1993 में छत्तीसगढ़ से पकड़ा गया था हाथी 

छत्तीसगढ़ के जंगल में पले बढ़े इस हाथी को वर्ष 1993 में पकड़ा गया था। उस समय हाथी की उम्र 25- 26 वर्ष के लगभग थी। महावत बुधराम तभी से इस हाथी के साथ हमेशा रहा है। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि सितंबर 2002 में संजय टाइगर रिजर्व से नर हाथी रामबहादुर को पन्ना लाया गया था। हाथी के साथ ही महावत बुधराम भी पन्ना आया और तभी से वह निरंतर इस हाथी के सानिध्य में रहकर उसकी देखरेख करता रहा है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि मृतक महावत बुधराम के दो बेटे हैं और दोनों ही बेटे पन्ना टाइगर रिजर्व के हाथियों की देखरेख चारा कटर के रूप में कर रहे हैं। आपने बताया कि चारा कटर अस्थाई कर्मी हैं, जो महावत के सहयोगी होते हैं तथा हाथियों की देखरेख व उनकी सेवा करते हैं। 

 रामबहादुर दो बार कर चुका है हथिनी वत्सला पर हमला

दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी मध्य प्रदेश में स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व की वत्सला है, जिसकी उम्र लगभग 105 वर्ष बताई जा रही है। पन्ना टाइगर रिजर्व की यह उम्रदराज हथनी दो बार मौत को चकमा दे चुकी है। हाथी रामबहादुर मस्त के दौरान दो बार हथिनी वत्सला पर प्राणघातक हमला कर चुका है। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एस.के. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003 और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। 

डॉ. गुप्ता ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर ने मस्त के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गये। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। डॉ. गुप्ता ने 200 टांके 6 घंटे में लगाए तथा पूरे 9 महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दाँत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ।

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Tuesday, July 5, 2022

चार नगरीय निकायों में मतदान कल, प्रथम चरण में कुल 296 अभ्यर्थी

सामग्री के साथ मतदान केन्द्र के लिए रवाना होते मतदान दल। 

पन्ना। नगरीय निकाय चुनाव अंतर्गत प्रथम चरण में बुधवार, 6 जुलाई को नगर पालिका परिषद पन्ना सहित नगर परिषद अजयगढ़, देवेन्द्रनगर और ककरहटी में सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक मतदान होगा। मतदान के लिए सभी चार निकायों में कुल 112 मतदान केन्द्र निर्धारित हैं। मतदाता नगर पालिका परिषद पन्ना के 66, अजयगढ़ के 16 और देवेन्द्रनगर एवं ककरहटी के 15-15 मतदान केन्द्रों पर मतदान कर सकेंगे।

नगरीय निकाय पन्ना में पार्षद पद के चुनाव के लिए 26 वार्ड में 114 अभ्यर्थी, अयजगढ़ के 14 वार्ड में 66 अभ्यर्थी, देवेन्द्रनगर के 15 वार्ड में 65 अभ्यर्थी और ककरहटी के 15 वार्ड में 51 अभ्यर्थी हैं। नगरीय निकाय पन्ना के वार्ड क्रमांक 01 एवं 19 तथा अजयगढ़ के वार्ड क्रमांक 10 में पार्षद पद का निर्विरोध निर्वाचन सम्पन्न हुआ है।

ईव्हीएम से होगा मतदान

नगरीय निकाय चुनाव अंतर्गत पार्षद पद का चुनाव ईव्हीएम से होगा। ईव्हीएम में नगर पालिका परिषद पन्ना के पार्षद के लिए पीले रंग का और अजगयगढ़, देवेन्द्रनगर एवं ककरहटी नगर परिषद पार्षद पद के लिए नीले रंग का मतपत्र निर्धारित है। सभी चार निकायों के मतदान केन्द्रों में मतदान के लिए एक-एक बैलेट यूनिट रहेगी। मतदाताओं को मतदान के लिए बैलेट यूनिट में अंतिम अभ्यर्थी के नीचे नोटा का विकल्प भी मिलेगा। मतदाता आयोग द्वारा निर्धारित पहचान पत्रों में से किसी एक उपयोग मतदान के लिए कर सकेंगे।

आदर्श मतदान केन्द्र

प्रथम चरण के मतदान के लिए चार नगरीय निकायों में 7 आदर्श मतदान केन्द्र बनाए गए हैं। नगर पालिका पन्ना अंतर्गत शासकीय मनहर कन्या उ.मा. विद्यालय, टाउन हॉल और नगर पालिका कार्यालय में स्थापित मतदान केन्द्र को आदर्श मतदान केन्द्र बनाया गया है। इसी तरह अजयगढ़ में शासकीय कन्या उ.मा. विद्यालय, देवेन्द्रनगर में शासकीय कन्या उ.मा. विद्यालय और ककरहटी में शासकीय कन्या हाई स्कूल के कक्ष क्रमांक 1 और 3 में स्थापित मतदान केन्द्र को आदर्श मतदान केन्द्र बनाया गया है।

मतदान के लिए मिलेगा अवकाश

मतदान दिवस पर मतदाताओं को मताधिकार का प्रयोग करने के लिए संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य अवकाश घोषित किया गया है। इसके साथ ही निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत सार्वजनिक अवकाश भी रहेगा। नगरीय निकाय क्षेत्र के प्रतिष्ठान और संस्थान में कार्य करने वाले कर्मचारियों को मतदान के लिए कार्य स्थल पर चार घण्टे देरी से आने अथवा चार घण्टे जल्दी जाने या बीच में चार घण्टे अनुपस्थित रहने की अनुमति भी मिलेगी।

मतदान दल सामग्री के साथ पहुंचे मतदान केन्द्र

नगरीय निकाय चुनाव संपन्न करवाने के लिए नियुक्त मतदान दल मंगलवार को सुबह निर्धारित स्थल से सामग्री प्राप्त कर वाहनों द्वारा मतदान केन्द्रों पर पहुंचे। सामग्री वितरण स्थल पर अधिकारियों की मौजूदगी में सामग्री का वितरण कर मतदान दलों को संबंधित मतदान केन्द्रों के लिए रवाना किया गया।

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तेज रफ्तार यात्री बस के पलटने से एक बच्ची की मौत, 10 घायल

  • ग्रामीणों की मदद से घायल यात्रियों को निकाला गया बाहर 
  • गंभीर रूप से घायल यात्री पन्ना चिकित्सालय व कटनी रेफर 


पन्ना। जिला मुख्यालय  पन्ना से लगभग 70 किमी. दूर आज सुबह लगभग 9 बजे मोहन्द्रा के निकट यात्री बस के पलटने से एक बच्ची की मौत हो गई, जबकि 10 यात्री घायल हुए हैं। घायलों को इलाज के लिए तुरंत सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पवई ले जाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद कुछ यात्रियों की छुट्टी कर दी गई, जबकि गंभीर घायलों को पन्ना जिला अस्पताल पन्ना व कटनी पहुँचाया गया।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मोहन्द्रा से पन्ना जा रही राधिका ट्रेवल्स की बस क्रमांक एमपी 35 पी 1093 सुबह करीब 9:00 बजे मोहन्द्रा व कुंवरपुर के बीच स्थित रमपुरा मोड़ की एक पुलिया के नीचे अनियंत्रित होकर गिर गई। अचानक इस तरह से अनियंत्रित होकर बस के नीचे गिरकर पलटने से एक 9 वर्षीय बच्ची की मौत हो गई जबकि इस हादसे में कई यात्रियों के घायल होने की जानकारी सामने आई है। बताया गया है कि तीन घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई है। जबकि छह घायलों में 03 को पन्ना जिला अस्पताल व 03 लोगों को कटनी रेफर किया गया है। 

अचानक यात्री बस के पुलिया से नीचे गिरकर पलटने की यह घटना किन कारणों से हुई, यह स्पष्ट नहीं हो सका है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक यात्री बस के पलटते ही घटना स्थल पर चीख पुकार मच गई। घटना की सूचना मिलते ही मौके पर तुरंत पुलिस पहुंच गई। फलस्वरूप ग्रामीणों की मदद से बचाव कार्य शुरू हुआ। गांव के युवकों ने घायलों को बस से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हादसे में घायल यात्रियों को आनन-फानन अस्पताल ले जाया गया। जहां प्राथमिक उपचार के बाद गंभीर घायलों को पन्ना व कटनी रेफर किया गया है। 

हादसे में राशी गुप्ता पिता सतीश गुप्ता 9 वर्ष निवासी नादन की मौत हुई है। घायलों में लवकुश लोधी चंद्रावल,छन्नू बंसल कुंवरपुर,रमाकांत बनौली,गीता लोधी चंद्रावल, सीमा लोधी चंद्राबल,कमलेश गुप्ता मोहन्द्रा,मुन्नी गुप्ता मोहन्द्रा,कमला गुप्ता नादन,हकीमन बेगम नादन,रीना प्रजापति मोहन्द्रा,उस्मान खान महेवा शामिल हैं। हादसे का शिकार हुई इस यात्री बस में 35 यात्री सवार थे।

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Monday, July 4, 2022

नर हाथी रामबहादुर ने हमला कर महावत की ली जान

  •  पन्ना टाइगर रिजर्व का हाथी हुआ बागी, महावतों में दहशत 
  •  दो वर्ष पूर्व इसी तरह रेंज ऑफीसर पर भी कर चुका है हमला

 

हांथी के हमले में काल कवलित महावत बुधराम का शव एम्बुलेंस से उतारते हुए वनकर्मी । 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में नर हाथी रामबहादुर ने आज सुबह महावत पर हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया है। बागी हो चुके इस हाथी ने 2 वर्ष पूर्व इसी तरह रेंज ऑफिसर बीएस भगत पर भी हमला किया था, जिससे उनकी घटनास्थल पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी। हाथी के हमले से महावत बुधराम रोटिया 60 वर्ष की सुबह हुई मौत के बाद से पन्ना टाइगर रिजर्व में हड़कंप मचा हुआ है।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि नर हाथी रामबहादुर द्वारा हमला किए जाने की यह दूसरी घटना है। इसके पूर्व अगस्त 2020 में इस हाथी ने वन परीक्षेत्र अधिकारी पर हमला किया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी। उसी समय से इस हाथी को अलग रखा जा रहा था। जंगल की निगरानी व अन्य कार्यों में भी इसका उपयोग नहीं किया जा रहा था। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि डेंजर बी.एस. भगत की मौत के बाद से सभी महावत इस हाथी से सतर्क रहते थे। कोई भी इस पर सवार नहीं होता था। बताया जा रहा है कि आज सुबह महावत बुधराम जंगल में जब हाथी रामबहादुर को ढूंढ रहा था, उसी समय हाथी ने हमला किया। 

दो दशक से पन्ना टाइगर रिजर्व में है हाथी रामबहादुर


जंगल में गस्ती करता हांथियों का दल।  ( फ़ाइल फोटो )

बगावती तेवर अपना चुके नर हाथी रामबहादुर के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक सितंबर 2002 में संजय टाइगर रिजर्व से यह नर हाथी, हथिनी गंगावती व मोहन कली के साथ पन्ना टाइगर रिजर्व में आया था। महावत बुधराम उसी समय रामबहादुर के साथ ही पन्ना आया था और तभी से वह इस हाथी की देखरेख करता रहा है। क्षेत्र संचालक के मुताबिक महावत बुधराम छत्तीसगढ़ का निवासी है तथा हाथी रामबहादुर भी छत्तीसगढ़ से ही संजय टाइगर रिजर्व पहुंचा था। उसी समय से महावत बुधराम इस हाथी के साथ रहा है। फिर भी उसने महावत पर हमला कर दिया, जो कई दशकों से उसकी देखरेख व सेवा करता रहा है।

नर हाथी ने दो बार हथिनी वत्सला पर भी किया प्राणघातक हमला

पन्ना टाइगर रिजर्व की ही नहीं दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला पर भी नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003 और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर ने मस्त के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गये। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। डॉ. गुप्ता ने 200 टांके 6 घंटे में लगाए तथा पूरे 9 महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दाँत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ।

मृतक महावत के दो बेटे, दोनों करते हैं हाथियों की सेवा


हांथी बच्चे के साथ प्रशन्न मुद्रा में महावत बुधराम।  ( फोटो सोशल मीडिया से साभार )

पन्ना टाइगर रिजर्व के सबसे पुराने व अनुभवी महावत बुधराम की अचनक इस तरह से हुई मौत के बाद से पन्ना टाइगर रिजर्व में दुख का माहौल है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि मृतक महावत के दो बेटे हैं, और दोनों ही बेटे पन्ना टाइगर रिजर्व में चारा कटर के रूप में कार्यरत हैं। चारा कटर एक तरह से महावत के सहयोगी होते हैं, जो हाथियों की देखरेख व उनकी सेवा करते हैं। पूरी जिंदगी जिस हाथी के साथ रहकर उसकी सेवा में गुजार दी, उसी हाथी ने महावत बुधराम को जब मौत के घाट उतार दिया तो उसके दोनों बेटे सदमे में हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व के अन्य दूसरे महावत व चारा कटर भी इस घटना के बाद से डरे और सहमे हुए हैं।

मृतक के परिजनों को मिलेगी आर्थिक सहायता 

हाथी के हमले से असमय काल कवलित हुए महावत बुधराम के परिजनों को हरसंभव आर्थिक सहायता पार्क प्रबंधन द्वारा प्रदान की जाएगी। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि बुधराम स्थाई वनकर्मी के रूप में पदस्थ रहे हैं। तात्कालिक रूप से उनके परिजनों को 2 लाख रुपये की सहायता प्रदान की जा रही है। इसके अलावा भी शासन के नियमानुसार जो भी प्रावधान होंगे, हर संभव मदद की जाएगी। आपने बताया कि वन्य प्राणी के हमले में हुई मौत पर अतिरिक्त सहायता राशि प्रदान करने का प्रावधान है, वह राशि भी परिजनों को मिलेगी।

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Sunday, July 3, 2022

प्रसव पीड़िता को कुर्सी में बैठा कर पार करवाया एक कि.मी का दलदल

  •  पन्ना जिले के सड़क विहीन ददोलपुर गाँव की दर्दभरी कहानी 
  •  विकास का ढिंढोरा पीटने वाले नेताओं को नहीं दिखती हकीकत 

प्रसव पीड़ित महिला को कुर्सी में बिठाकर दलदली रास्ता पार कराते गांव के युवक।  

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। आजादी के 75 सालों बाद भी यदि किसी प्रसव पीड़ित महिला को कुर्सी में बिठाकर दलदली रास्ता और नाला पार करवाना पड़े, तो विकास के बड़े-बड़े दावों पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। पन्ना जिले में कई गांव बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इन ग्रामों में सड़क, बिजली और पेयजल तक कि सुविधा नहीं है। इन ग्रामों के लोगों को कैसी-कैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसकी कल्पना करने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा ही मामला पन्ना जिले के गुनौर विकासखंड और विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत विक्रमपुर के ग्राम ददोलपुर का सामने आया है। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार ददोलपुर निवासी सोहद्रा आदिवासी पति प्रताप सिंह आदिवासी को प्रसव पीड़ा की वजह से अस्पताल ले जाना था। सड़क मार्ग न होने से बारिश के इस मौसम में जननी एक्सप्रेस केवल विक्रमपुर तक पहुंच पाई, जहां से ददोलपुर एक किलोमीटर दूर है। ददोलपुर गांव तक पहुंचने के लिए दलदली रास्ता पार करना पड़ता है। जहां वाहन तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल होता है। 

बारिश के मौसम में ग्रामीणों ऐसे पार करना पड़ता है रास्ता।  

महिला को दर्द बढ़ता ही जा रहा था, ऐसी स्थिति में गांव के युवाओं ने साहस और सूझबूझ का परिचय देते हुए महिला को प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठाकर एक किमी. का दलदल युक्त मार्ग एवं नाला पार करवाकर विक्रमपुर पहुंचाया। जहां से जननी एक्सप्रेस के माध्यम से जिला चिकित्सालय पहुंचाया गया। जिला चिकित्सालय पन्ना में महिला ने शिशु को जन्म दिया और रास्ते की कठिनाइयों व तकलीफ को भूल गई। वापस जाते समय भी यही हाल हुआ फिर कुर्सी में बैठा कर विक्रमपुर से ददोलपुर तक पहुंचना पड़ा। 

स्थानीय युवा राहुल अहिरवार ने बताया कि यहां सड़क और पुल का निर्माण नहीं होने से बारिश के दिनों में आवागमन मुश्किल हो जाता है। नाले का जल बहाव हल्की बारिश में भी काफी तेज हो जाता है, जिसे पार करना खतरे से खाली नहीं होता। स्थानीय लोगों ने अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से अनेकों बार फरियाद की पर किसी के द्वारा ध्यान नहीं दिया गया, जिससे गांव के लोगों को बारिश में इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 

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