Saturday, April 16, 2016

जीन पूल का गुलदस्ता बना पन्ना टाइगर रिजर्व

  • अनोखा जीन पूल तैयार होने से बाघों की नस्ल हुई बेहतर 
  • रानी बनकर आई कान्हा की बाघिन ने बढ़ाई पन्ना की शान 


कान्हा की बाघिन टी - 2 जिसने पन्ना में बढ़ाया कुनबा। 

। अरुण सिंह, पन्ना ।

पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की जीन पूल का ऐसा अनोखा गुलदस्ता तैयार हुआ है, जो पूरी दुनिया मेंं अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा. जीन विविधता के चलते पन्ना में बाघों की नस्ल और बेहतर हुई है जिसका लाभ प्रदेश के अन्य दूसरे बाघ अभ्यारण्यों को भी मिल रहा है. वर्तमान में पन्ना टाइगर रिजर्व के अलावा यहां के बाघों की नस्ल सतपुड़ा टाइगर रिजर्व व संजय टाइगर रिजर्व में स्थापित होकर वंश वृद्धि कर रही है.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघ विहीन घोषित कर दिया गया था. तदुपरान्त यहां पर बाघों की दुनिया फिर से आबाद करने के लिए शासन द्वारा पुर्नस्थापना योजना प्रांरभ की गई. इस योजना के तहत पहली संस्थापक बाघिन के रूप में 4 मार्च 2009 को बांधवगढ़ से बाघिन टी -1 को पन्ना लाया गया. इसके चन्द दिनों बाद ही 9 मार्च 2009 को कान्हा की बाघिन टी - 2 हवाई मार्ग से पन्ना पहुंची जो सफलतम रानी के रूप में यहां स्थापित हुई. 

पन्ना में बाघ पुर्नस्थापना योजना को मिली उल्लेखनीय कामयाबी से तो पूरी दुनिया वाकिफ है लेकिन इस तथ्य से अभी भी ज्यादातर लोग अनजान हैं कि पन्ना के बाघों की मूल नस्ल समाप्त नहीं हुई है. पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघ विहीन घोषित किये जाने के चार वर्ष बाद ऐसे आनुवांशिक प्रमाण सामने आये हैं जो इस ओर संकेत करते हैं कि पन्ना में बाघ पूरी तरह विलुप्त नहीं हुए थे.

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व आर.श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि बांधवगढ़ से लाई गई बाघिन टी - 2 द्वारा अक्टूबर 2010 में जन्म दिए गये चार शावकों के डीएनए टेस्ट परिणाम से पता चला है कि उनका प्रजनन पेंच टाइगर रिजर्व से लाये गये नर बाघ टी - 3 द्वारा नहीं किया गया. इससे संकेत मिलता है कि बाघिन टी - 2 के प्रथम चार शावकों का जन्म पन्ना के ही बाघों के द्वारा हुआ था. यह परीक्षण हैदराबाद स्थित सेन्टर फार सेलुलर एण्ड मौलिक्यूलर बायोलॉजी (सी.सी.एम.बी.) द्वारा वाइल्ड लाइफ इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डिया के कहने पर किया गया था.

पन्ना की जीन केन से सोन तक 


पन्ना टाइगर रिजर्व में लाई गई कान्हा की बाघिन टी - 2 ने अपनी पहली संतान में चार शावकों को जन्म दिया जिनमें दो नर व दो मादा शावक थे. इन चारों शावकों का पिता पेंच का नर बाघ टी - 3 नहीं अपितु पन्ना टाइगर रिजर्व का ही कोई बाघ है. कान्हा की बाघिन और पन्ना के बाघ के मिलन से जन्में इन चार शावकों में से पन्ना - 211 सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में पहुंचकर वहां अलग - अलग बाघिनों के साथ जोड़ा बनाकर पन्ना की जीन्स को सतपुड़ा अंचल में फैला रहा है. 

इसी प्रकार पन्ना - 212 संजय टाइगर रिजर्व में बाघिनों से जोड़ा बनाकर पन्ना की नस्लों को उस अंचल में स्थिर कर रहा है. इन दोनों नर शावकों की बहन पन्ना  - 213 ने चार शावकों को जन्म दिया है जो पन्ना बाघ पुर्नस्थापना की एफ - 2 संतान के रूप में पन्ना में हैं. इस तरह से पन्ना के मूल बाघों की नस्ल केन से लेकर सोन तक फल फूल रही है.

कान्हा की बाघिन बन गई पन्ना की रानी 


बाघिन पन्ना - 213 अपने चार शावकों के साथ। 


बाघ पुर्नस्थापना योजना को सफलता की नई ऊंचाई प्रदान करने तथा पन्ना टाइगर रिजर्व का गौरव बढ़ाने वाली कान्हा की बाघिन टी - 2 सही अर्थों में पन्ना की रानी साबित हुई है. इस बाघिन ने न सिर्फ पन्ना के बाघों की मूल नस्ल को संरक्षित किया है बल्कि वंश वृद्धि करके पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघों से आबाद भी किया है. 

तकरीबन 10 वर्ष की हो चुकी इस बाघिन की उपलब्धि और महत्ता यह है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूद बाघों में एक तिहाई कुनबा कान्हा की इसी बाघिन टी - 2 का है. टी - 2 की दो मादा संताने पन्ना - 213 एवं पन्ना - 222 पन्ना टाइगर रिजर्व में स्थापित हैं. पन्ना - 213 ने यहां पर चार शावकों को जन्म दिया है जिनमें तीन मादा शावक हैं. इस उपलब्धि से नर व मादा बाघों की संख्या का अन्तर भी पहले के मुकाबले बेहतर हुआ है.
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