Friday, February 26, 2021

अपराजिता से होंगी प्रदेश की बालिकाएँ आत्मनिर्भर

  •  अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च से शुरू होगी अभिनव पहल 
  •  प्रदेश में बलिकाओं को दिया जायेगा माशर्ल आर्ट्स का प्रशिक्षण


महिला-बाल विकास विभाग द्वारा बलिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए माशर्ल आर्ट्स का प्रशिक्षण 'अपराजिता' प्रारम्भ किया जा रहा है। संचालक, महिला-बाल विकास श्रीमती स्वाती मीणा नायक ने बताया कि 8 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रदेश के 311 विकास खण्डों में उत्कृष्ट विद्यालय और चयनित शासकीय विद्यालयों में कक्षा 9 से 12वीं तक की बालिकाओं के लिए 15 से 20 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जायेगा। इसमे आत्म-रक्षा वाली खेल गतिविधियाँ जूड़ो, कराटे एवं ताईक्वांडों का विशेष प्रशिक्षण खेल एवं युवा कल्याण विभाग के सहयोग से दिया जायेगा।

श्रीमती स्वाति मीणा ने बताया कि प्रशिक्षण का मुख्य उददेश्य न सिर्फ बालिकाओं को आत्म-रक्षा के तरीके सीखाना है, बल्कि इस क्षेत्र में रूचि रखने वाली बालिकाओं का टेलेंट सर्च भी हो सकेगा। प्रशिक्षण के समापन पर सभी विकास खण्डों में प्रतियोगिता भी आयोजित की जायेगी और प्रत्येक विकासखण्ड से प्रथम दस प्रतिभाशाली बालिकाओं का चयन भी किया जायेगा। प्रशिक्षण के बाद सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र भी प्रदान किया जायेगा। जिला कार्यक्रम अधिकारियों को जिला खेल अधिकारियों से समन्वय स्थापित कर प्रशिक्षण में बालिकाओं की उपस्थिति एवं स्क्रीनिंग किये जाने के निर्देश दिए हैं।

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Thursday, February 25, 2021

पन्ना में सागौन तस्करों के आधा दर्जन ठिकानों पर हुई छापामार कार्यवाही

  •  वन, राजस्व व पुलिस महकमें की संयुक्त कार्यवाही से सागौन तस्करों में हड़कंप 
  •  छापा में बेसकीमती सागौन की 844 नग लकड़ी सहित मशीनें व अन्य सामग्री जप्त 

छापामार कार्यवाही में जप्त सागौन लकड़ी व औजार साथ में संयुक्त दल। 

।। अरुण सिंह ।।

 पन्ना। मध्यप्रदेश के जिला मुख्यालय पन्ना में सागौन तस्करों के आधा दर्जन ठिकानों पर गुरुवार को आज वन, राजस्व व पुलिस महकमें की संयुक्त टीम ने छापामार कार्यवाही करते हुए भारी मात्रा में बेसकीमती सागौन लकड़ी सहित मशीनें और अन्य सामग्री जप्त की है। प्रशासन की इस बड़ी कार्यवाही से सागौन की तस्करी में लिप्त लोगों में हड़कंप मचा हुआ है। इसे पन्ना में सागौन तस्करों के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी कार्यवाही कही जा रही है। मालुम हो कि विगत 13 फरवरी 21 की रात वन विभाग के गस्ती दल पर सागौन तस्करों ने जानलेवा हमला किया था जिसमें तीन वनकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए थे। इस घटना को वन महकमें ने गंभीरता से लिया और सागौन तस्करों की कमर तोड़ने की प्रभावी रणनीति बनाकर आज यह बड़ी कार्यवाही की गई।

मामले के सम्बन्ध में वन महकमें से मिली अधिकृत जानकारी के अनुसार गुरुवार को सुबह वनमण्डलाधिकारी, उत्तर पन्ना गौरव शर्मा के मार्गदर्शन में वन, पुलिस एवं राजस्व की संयुक्त टीम द्वारा धाम मोहल्ला पन्ना में छापामार कार्यवाही नफीस खान (फर्नीचर विनिर्माता लाईसेंस धारी), सादाब/आदाब खान, शफीक अहमद, शाहिद खान, बालगोविंद कोरी (बढ़ई लाईसेंस धारी) एवं इरफान अली के ठिकानों पर दबिश दी गई। पुलिस बल की मदद से हुई इस बड़ी कार्यवाही में भारी मात्रा में बेसकीमती सागौन लकड़ी, सागौन चिरान, सागौन सिल्ली, फर्नीचर सहित 4.334 घ.मी. कुल 844 नग, 1 नग आरा मशीन , 2 नग खाराद मशीन, 1 नग कटर मशीन, 9 नग रून्दा मशीन कटर व 01 मारूति कार सहित अन्य सामग्री जप्त की गई है। जिसमें नफीस खान से 0.935 घ.मी. फर्नीचर सहित सागौन चिरान, सफीक अहमद से 0.526 घ.मी. 40 नग सागौन चिरान, सादाब/आदाब खान से 0.995 घ.मी. 143 सागौन चिरान, 01 नग इलेक्ट्रानिक मिनी आरा मशीन पुरानी, 03 नग हाथ की आरा, 03 नग रून्दा मशीन कटर, 1 नग बसूला, 1 नग हथौड़ी छोटी, 1 नग शिकंजा, 1 रून्दा मशीन विद्युत, 1 नग गुनिया छोटी, 1 नग निहाना, 1 पुरानी मारूति आल्टो कार 1 नग हड्डी, शहीद खान से 0.878 घ.मी. 317 नग सागौन चिरान, 1 नग विद्युत मोटर, 1 नग खराद, 1 नग आरी छोटी,  बालगोविंद कोरी से 0.648 घ.मी. 297 सागौन चिरान, इरफान अली से 0.352 घ.मी. 47 नग चिरान लकड़ी आदि जप्ती की कार्यवाही की गई हैै।

वनमण्डलाधिकारी उत्तर पन्ना गौरव शर्मा ने बताया कि विभिन्न माध्यमों से निरंतर धाम मोहल्ला पन्ना में अवैध सागौन लकड़ी के कारोबार की शिकायतें प्राप्त हो रही थीं। उक्त शिकायतों को संज्ञान में लेकर लकड़ी के कारोबार से जुड़े लोगों पर निरंतर निगरानी रखी जा रही थी। जिसमें यह तथ्य प्रकाश में आया कि वनमण्डल के परिक्षेत्र विश्रामगंज के वनक्षेत्र एवं पन्ना टाईगर रिजर्व पन्ना के बफर वनक्षेत्र से लकड़ी काटकर ले जाई जाती है और लकड़ी को धाम मोहल्ला पन्ना में तस्करों द्वारा फर्नीचर आदि तैयार कर बेचे जा रहे हैं। इसी आधार पर आज टीम गठित कर सुबह 5 बजे धाम मोहल्ला पन्ना में छापामार कार्यवाही शुरू की गई, जिसमें विभाग को बहुत बड़ी सफलता मिली है। श्री शर्मा ने कहा कि इस कार्यवाही में सम्मिलित अधिकारी व कर्मचारी सभी बधाई के पात्र हैं। आगे भी निरंतर इसी तरह की कार्यवाही की जाकर अवैध लकड़ी के कारोबारियों के मंशूबों को धरासायी किया जायेगा। आज की कार्यवाही से शहर में लकड़ी कारोबार से जुड़े लोगों में दहशत का माहौल है। आज की इस कार्यवाही में तहसीलदार पन्ना राजस्व अमला, पुलिस बल एवं वनमण्डल उत्तर पन्ना का पूरा क्षेत्रीय अमला तथा बफर जोन, पन्ना टाईगर रिजर्व पन्ना सहित लगभग 125 अधिकारी/कर्मचारी शामिल रहे, जिसमें जिला प्रशासन का विषेष सहयोग रहा।

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पन्ना टाइगर रिजर्व से फिर मिली खुशखबरी

  •  बाघिन पी-234 (23) ने दिया तीन शावकों को जन्म 
  •  कैमरा ट्रैप में पहली बार टहलते नजर आये तीनों शावक 

जंगल में चहल - कदमी करते बाघ शावक कैमरा ट्रैप में हुए कैप्चर। 
।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से आज फिर एक बड़ी खुशखबरी मिली है। यहां बाघिन पी-234 (23) ने तीन नन्हे शावकों को जन्म दिया है। ये शावक दो से तीन माह के हो चुके हैं और अपनी मां के साथ चहल कदमी भी करने लगे हैं। पहली बार इन नन्हे शावकों के फोटो कैमरा ट्रैप में आये हैं, जिन्हें क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा द्वारा आज जारी किया गया।

 क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि बाघिन पी-234(23) पन्ना में ही जन्मी और यहीं पर पली बढी है। लगभग साढे तीन वर्ष की इस युवा बाघिन ने कोर क्षेत्र से बाहर अकोला बफर को अपना नया ठिकाना बनाया है। यहीं पर इस बाघिन ने पहली बार तीन शावकों को जन्म दिया है। श्री शर्मा ने बताया कि तीनों शावक 2 से 3 माह के हो चुके हैं तथा पूर्णरूपेण स्वस्थ हैं। अकोला बफर क्षेत्र के जंगल में तीनों शावक अब अपनी मां के साथ चहल कदमी करते हुए नजर आने लगे हैं। इन नन्हें मेहमानों के आने से पन्ना टाइगर रिजर्व में जहां खुशी का माहौल है, वहीं अकोला बफर क्षेत्र का आकर्षण और बढ़ गया है।

 मालूम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे अकोला बफर को विगत दो-तीन वर्षों से सुरक्षित और संरक्षित कर बाघों के अनुकूल विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके उत्साहजनक परिणाम सामने आने लगे हैं। कोर से लगे बफर के इस जंगल में अब न सिर्फ कई बाघ विचरण करते हैं अपितु अब तो यहां ब्रीडिंग भी होने लगी है। इस कामयाबी से पार्क प्रबंधन अत्यधिक उत्साहित है तथा अकोला बफर की ही तर्ज पर अन्य क्षेत्रों को भी विकसित करने की योजना बना रहा है। ताकि कोर क्षेत्र में बाघों की बढ़ती आबादी को बफर के जंगल में अनुकूल माहौल व ठिकाना मिल सके।

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पन्ना टाइगर रिजर्व में नये तरह के संकट ने दी दस्तक

  •  यहां के जंगल में खतरनाक किस्म के खरपतवारों का फैलाव होने से बढ़ी मुसीबत 
  •  शाकाहारी वन्य जीवों के लिए उपयोगी घास के मैदानों में भी हुई घुसपैठ
  •  गाजर घास, खिरैंती व वन तुलसी का जंगल में तेजी से हो रहा फैलाव
  •  खरपतवारों के फैलते साम्राज्य को न रोका गया तो घास के मैदानों को होगा नुकसान

पन्ना टाइगर रिज़र्व का मड़ला स्थित प्रवेश द्वार। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में एक नये किस्म के संकट ने दस्तक दे दी है। यहां के जंगल में रहने वाले शाकाहारी वन्य प्राणियों के लिए बेहद जरूरी और उपयोगी घास के मैदानों में जिस तरह से गाजर घास, खिरैंती व वन तुलसी जैसी वनस्पतियों (खरपतवारों) का तेजी से फैलाव हो रहा है, वह आने वाले समय में बड़ी मुसीबत बन सकती है। पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में स्थित घास के मैदानों पर भी इन खतरनाक खरपतवारों की घुसपैठ हो चुकी है। इस घुसपैठ पर समय रहते यदि प्रभावी रोक नहीं लगाई गई तो घास के मैदानों पर आश्रित रहने वाले चीतल, सांभर, चिंकारा व चौसिंगा जैसे शाकाहारी वन्य जीवों का कुनबा संकट में पड़ सकता है। जाहिर है कि इसका असर मांसाहारी वन्य प्राणियों विशेषकर बाघ और तेंदुओं की सेहत पर भी पड़ेगा।

 

उमरावन वीट में गाजर घास के फैलते साम्राज्य का नजारा। 

उल्लेखनीय है कि खरपतवार भी कहने को तो वनस्पतियों की ही श्रेणी में आते हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी खूबी कहें या दोष वह यह है कि यह बिना किसी देखरेख और सुरक्षा के तेजी के साथ फैलते हैं। इन खरपतवारों में सबसे ज्यादा खतरनाक गाजरघास है, जिसका वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। इसकी घुसपैठ शहर, गांव और खेतों के बाद अब जंगल में भी हो चुकी है। यह एक ऐसी खतरनाक बनस्पति है कि जहां फैलती है वहां की दूसरी बनस्पतियों के वजूद को खत्म कर देती है। वन्य जीव तो क्या मवेशी भी गाजर घास को खाना तो दूर उसके पास फ़टकना भी पसंद नहीं करते। क्योंकि इसके संपर्क में आने से कई तरह की एलर्जी हो जाती है।

 

चन्द्रनगर रेंज के रैपुरा घास मैदान में खिरैंती या छमछी के फैलाव का द्रश्य। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के उपसंचालक जरांडे ईश्वर राम हरि ने भी स्वीकार किया कि गाजरघास सहित वन तुलसी व खिरैंती या छमछी का फैलाव निश्चित ही हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। चूंकि इन वनस्पतियों को वन्य प्राणी खाते भी नहीं हैं और इनके विस्तार से दूसरी उपयोगी वनस्पतियों व घास को नुकसान पहुंचता है। इसलिए जंगल में इनके विस्तार को रोकना तथा प्रभावी उन्मूलन बेहद जरूरी है। आपने बताया कि वन तुलसी व खिरैंती या छमछी पूरे टाइगर रिजर्व क्षेत्र में है, जबकि गाजरघास का फैलाव तालगांव में ज्यादा है।

उप संचालक श्री जरांडे ने बताया कि पूर्व में पन्ना टाइगर रिजर्व के भीतर जो गांव थे, उनका विस्थापन हो जाने के बाद वहां पर घास के मैदान निर्मित हुए हैं। घास के ये मैदान शाकाहारी वन्य प्राणियों के लिए बेहद जरूरी हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व की जीवन रेखा कही जाने वाली केन नदी के किनारे स्थित घास के मैदान बहुत ही अच्छे हैं। यहां चीतल, चिंकारा, व चौसिंगा जैसे वन्यजीवों को उनकी पसंद वाली हरी भरी घास सुगमता से मिल जाती है। 

उन्मूलन के बाद चन्द्रनगर रेंज के रैपुरा घास मैदान का नजारा। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में पीपरटोला, तालगांव व भडार के घास मैदान अच्छी श्रेणी में गिने जाते हैं। लेकिन खरपतवारों की घुसपैठ होने तथा उनके विस्तार को देखते हुए टाइगर रिजर्व के इन घास मैदानों के साथ-साथ जंगल को इनकी चपेट में आने से बचाना पार्क प्रबंधन की प्राथमिकता बन चुकी है। श्री जरांडे ने बताया कि खरपतवार उन्मूलन पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा घास के नये मैदान विकसित करने की योजना पर भी अमल किया गया है। आपने बताया कि गाजरघास सहित अन्य दूसरे खरपतवारों के फैलाव की रोकथाम का एकमात्र तरीका यही है कि फूल आने से पहले इनके पौधों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर दिया जाये। इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जा रहा है।

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Wednesday, February 24, 2021

पन्ना में फिर मिला 14.09 कैरेट का बेशकीमती हीरा

  •  एनएमडीसी कॉलोनी नया पुरवा निवासी रामप्यारे विश्वकर्मा हुआ मालामाल 
  •  कृष्णा कल्याणपुर की पटी हीरा खदान में मिला है यह नायाब बेशकीमती हीरा 

हीरा धारक रामप्यारे विश्वकर्मा प्राप्त हुए हीरे के साथ। 

।।अरुण सिंह।।

पन्ना। हीरा की खदानों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की उथली खदान से आज फिर 14.09 कैरेट वजन का बेशकीमती हीरा मिला है। हल्के हरे रंग वाला यह नायाब हीरा पन्ना के एनएमडीसी कॉलोनी नया पुरवा निवासी रामप्यारे विश्वकर्मा को कृष्णा कल्याणपुर की पटी हीरा खदान में मिला है। हीरा मिलने के साथ ही आर्थिक तंगी से परेशान रहने वाला रामप्यारे मालामाल हो गया है। इस नायाब हीरे की अनुमानित कीमत 50 से 60 लाख रुपये आंकी जा रही है।

 

उल्लेखनीय है कि दो दिन पूर्व गत सोमवार को ग्राम किटहा निवासी युवक को एक ही दिन में दो कीमती हीरे मिले थे। यह खबर अभी लोग भूले भी नहीं और आज बुधवार को फिर 14.09 कैरेट वजन वाला जेम क्वालिटी का हीरा मिल गया। हीरा अधिकारी रवि कुमार पटेल ने जानकारी देते हुए बताया कि हीरा धारक रामप्यारे विश्वकर्मा ने कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय में पहुंचकर आज दोपहर में विधिवत हीरे को जमा कर दिया है। आगामी मार्च के महीने में होने वाली हीरों की नीलामी में इस हीरे को भी बिक्री के लिए रखा जाएगा। हीरा जितनी राशि में भी बिकेगा उसकी रॉयल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा धारक को प्रदान की जाएगी। कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा ने उथली हीरा खदान में 14.09 कैरेट वजन का हीरा मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त की है तथा हीरा धारक रामप्यारे विश्वकर्मा को फूल माला पहना कर उसका स्वागत किया है। श्री मिश्रा ने कहा कि उथली हीरा खदान चलाने वाले लोगों को हर संभव मदद व सहूलियत प्रशासन की ओर से प्रदान की जाएगी।

 नीलामी में रखा जायेगा यह नायाब हीरा

जिला मुख्यालय पन्ना स्थित हीरा कार्यालय के हीरा पारखी अनुपम सिंह के अनुसार रामप्यारे विश्वकर्मा को मिला हीरा वजन और क्वालिटी के लिहाज से बहुमूल्य हीरा है, जिसे सरकारी खजाने में जमा कर लिया गया है। हीरा पारखी ने बताया कि प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात आगामी मार्च माह में आयोजित होने वाली हीरों की शासकीय नीलामी में इस हीरे को भी बिक्री के लिये रखा जायेगा। बहुमूल्य हीरा मिलने की खबर फैलने के बाद से रामप्यारे विश्वकर्मा के घर पर उत्सव जैसा माहौल है। उनके घर पर परिचितों और रिश्तेदारों का आना-जाना लगा है।

बहुत कम बची है हीरा धारित राजस्व भूमि 

गौरतलब है कि वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद से अधिकांश हीरा धारित क्षेत्र वन सीमा के भीतर आ जाने के कारण वहां पर वैधानिक रूप से हीरों का उत्खनन बन्द हो गया है। शासकीय राजस्व भूमि बहुत ही कम है जहां हीरों की उपलब्धता है। ऐसी स्थिति में निजी पट्टे की भूमि व वन क्षेत्र में ही अधिकांश खदानें संचालित हो रही हैं जिनमें ज्यादातर अवैध हैं। हीरा की उपलब्धता वाले प्रमुख क्षेत्रों में सकरिया, नरेन्द्रपुर, जनकपुर, खिन्नीघाट, पटी, राधापुर, महुआ टोला, पुखरी, हर्रा चौकी, इमला डाबर, रानीपुर, गोंदी करमटिया, विजयपुर, बाबूपुर, हजारा, मडफ़ा, मरका, रमखिरिया, सेहा सालिकपुर, सिरसा, द्वारी, थाड़ी पाथर, पतालिया, चांदा, जमुनहाई, डाबरी व गऊघाट आदि हैं। इन इलाकों में सदियों से हीरों का उत्खनन हो रहा है। वन क्षेत्र में अवैध रूप से चलने वाली खदानों में हीरा मिलने पर या तो उसे चोरी छिपे बेच दिया जाता है या फिर तुआदार राजस्व भूमि में वैध पट्टा बनवाकर उस हीरे को वैध खदान में मिला बताकर जमा कर दिया जाता है। ऐसा करने से हीरा धारक को पकड़े जाने के भय से जहाँ निजात मिल जाती है वहीँ शासकीय नीलामी में हीरा की बिक्री होने पर उसे नंबर एक का पैसा मिल जाता है जिसका वह मनचाहा उपयोग कर सकता है। 

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Tuesday, February 23, 2021

पन्ना में बाघों का कुनबा बढऩे से मवेशी बन रहे आसान शिकार

  •  कोर क्षेत्र की तुलना में शाकाहारी वन्य जीवो की संख्या बफर में कम 
  •  यहां प्रे पापुलेशन बढ़ाने घास के मैदान विकसित करने की बनी रणनीति

जंगल में आराम फरमाता बाघ परिवार। 

।। अरुण सिंह, पन्ना ।।

मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में जिस गति से बाघों का कुनबा बढ़ा है, उसी अनुपात में शाकाहारी वन्य प्राणियों की खपत में भी इजाफा हुआ है। मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलोमीटर में वयस्क एवं अर्ध वयस्क बाघों की संख्या 60 के आसपास है, जबकि कोर क्षेत्र में वयस्क बाघों की धारण क्षमता 30 के लगभग है। ऐसी स्थिति में बुजुर्ग हो चुके व युवा बाघ आशियाना की तलाश में कोर क्षेत्र से बाहर निकल रहे हैं। कोर से बाहर बफर के जंगल में चूंकि शाकाहारी वन्य प्राणियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, इसलिए यहां रहने वाले मवेशी इन बाघों का आसान शिकार बन रहे हैं।

 उपसंचालक पन्ना टाइगर रिजर्व जरांडे ईश्वर राम हरि ने बताया कि बीते 10 माह (1 अप्रैल से जनवरी 21 तक) के दौरान बाघ और तेंदुओं ने 350 से 400 छोटे-बड़े मवेशियों का शिकार किया है। जिसके लिए 30 लाख रुपये का मुआवजा भी दिया गया है। आपने बताया कि वर्ष 2009 के बाद बाघों की संख्या बढऩे के साथ-साथ मवेशियों के शिकार की घटनाओं में वृद्धि दर्ज हुई है। मवेशियों के शिकार की सबसे ज्यादा घटनाएं पन्ना कोर रेंज से लगे बफर क्षेत्र में हुई हैं। अमानगंज बफर क्षेत्र जहां बाघों के प्राकृतिक भोजन सांभर, चीतल व जंगली सुअर जैसे वन्य जीवों की कमी है, वहां मवेशियों का शिकार अधिक हो रहा है। श्री जरांडे ने बताया कि एक बाघ को साल भर में खाने के लिए लगभग 3 हजार किलोग्राम मांस चाहिए, जिसकी पूर्ति बफर क्षेत्र में वन्य प्राणियों से नहीं हो पा रही। यही वजह है कि बाघ और तेंदुआ बफर क्षेत्र में विचरण करने वाले मवेशियों का शिकार करके अपना पेट भरते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए बफर क्षेत्र को बाघों के लिए अनुकूल बनाने के प्रयास तेज किए जा रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि बफर क्षेत्र में शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या बढऩे के साथ-साथ वहां छिपने के लिए जंगल व पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो।

 घास विशेषज्ञ प्रो. गजानन मूरतकर पन्ना टाइगर रिजर्व के अमले को जानकारी देते हुए। 

गौरतलब है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलोमीटर है। इस विशाल क्षेत्र में सिर्फ कुछ इलाके ही ऐसे हैं जो बाघों के लिए अनुकूल कहे जा सकते हैं। जबकि बफर के अन्य इलाके मानवीय गतिविधियां अधिक होने व अन्य व्यवधानों के चलते अनुकूल नहीं हैं। कैमरा ट्रैप से बाघों के विचरण क्षेत्र का जो डाटा मिला है, उसके मुताबिक अकोला बफर बीते 1 वर्ष से जहां बाघों का पसंदीदा क्षेत्र बना हुआ है, वहीं अमानगंज बफर व किशनगढ़ बफर क्षेत्र के जंगल में भी बाघों की मौजूदगी पाई गई है। कोर क्षेत्र से लगे इन सभी इलाकों में जहां बाघों का मूवमेंट हो रहा है, वहां पर घास के मैदान विकसित किये जाने की योजना बनाई गई है, ताकि सांभर, चीतल, चिंकारा व चौसिंगा जैसे शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या बढ़ सके। श्री जरांडे ने बताया कि इसके लिए अभी हाल ही में हिनौता में दो दिवसीय कार्यशाला का भी आयोजन किया गया है। इस कार्यशाला में घास मैदान विशेषज्ञ प्रोफेसर गजानन मूरतकर ने शाकाहारी वन्य जीवों के लिए उपयोगी घास के मैदान कैसे विकसित किए जायें, इसकी जानकारी प्रदान की गई। आपने बताया कि बाघों की बढ़ती संख्या को दृष्टिगत रखते हुए भविष्य की जरूरत के अनुरूप रणनीति तैयार कर उस पर अमल शुरू कर दिया गया है।

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Monday, February 22, 2021

पन्ना में युवक की चमकी किस्मत, मिले दो हीरे

युवक भगवानदास कुशवाहा हीरा दिखाते हुए। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रतनगर्भा धरती में कब किस की किस्मत चमक जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां एक युवक को एक साथ दो हीरे मिले हैं, जिससे वह पलक झपकते लखपति बन गया है।

 हीरा अधिकारी रवि कुमार पटेल ने जानकारी देते हुए बताया कि युवक भगवानदास कुशवाहा को गत शनिवार किटहा हीरा खदान में एक ही दिन में दो हीरे मिले हैं, जिनका वजन 7.94 कैरेट और 1.93 कैरेट है। जेम क्वालिटी वाले इन हीरो की अधिकृत कीमत नहीं बताई गई लेकिन जानकारों का कहना है कि इन हीरो की कीमत 25 से 30 लाख रुपये तक हो सकती है। हीरा मिलने के दूसरे दिन आज इस युवक ने नियमानुसार कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय में पहुंचकर दोनों हीरे जमा किए हैं, जिन्हें बिक्री के लिए आगामी हीरों की नीलामी में रखा जायेगा। हीरा अधिकारी ने बताया कि युवक मुंबई में काम करता है। अपने गृह ग्राम किटहा आने पर बीते माह उसने खदान का पट्टा बनवाया था। उसकी किस्मत ने साथ दिया और उसे एक ही दिन में दो हीरे मिल गये। हीरा मिलने पर युवक भगवानदास कुशवाहा अत्यधिक खुश है। एक साथ दो कीमती हीरे मिलने पर उसके आँखों की चमक बढ़ गई है। अपनी ख़ुशी का इजहार करते हुए युवक ने बताया कि हीरा मिलने से उसकी जिंदगी बदल गई है। 

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Saturday, February 20, 2021

पन्ना में मिला एक पत्ती वाला दुर्लभ पलाश का पेड़

  •  संरक्षित न किया गया तो मिट जायेगा इसका वजूद 
  •  अति दुर्लभ यह पेड़ रूंज डेम के डूब क्षेत्र में मौजूद 


एक पत्ती वाला दुर्लभ पलाश का पेड़। फोटो - अरुण सिंह 
।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का जंगल वन्यजीवों के साथ-साथ विलुप्ति की कगार में पहुंच चुकी दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियों का भी खजाना है। लेकिन वनों की हो रही अंधाधुंध कटाई व विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति प्रदत्त यह अनमोल खजाना तेजी से उजड़ रहा है। यहां की रतनगर्भा धरती में पलाश का एक ऐसा दुर्लभ पेड़ मिला है, जिसे रेयरेस्ट ऑफ द रेयर कहा जाता है। यह पेड़ जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 15 किलोमीटर दूर विश्रामगंज गांव के निकट स्थित खेत की मेड पर कई दशकों से मौजूद है। यहां से गुजरने वाली रूंज नदी पर सिंचाई बांध का निर्माण चल रहा है और यह पूरा क्षेत्र रूंज डेम के डूब में आता है। जाहिर सी बात है कि समय रहते यदि इस दुर्लभ पेड़ को संरक्षित न किया गया तो इसका वजूद हमेशा के लिए मिट जायेगा।

 हनुमंत सिंह 

 बहुप्रचलित हिंदी की प्रसिद्ध कहावत "ढाक के तीन पात" सभी ने सुनी होगी क्योंकि ढाक यानी पलाश की टहनी में तीन पत्ते होते हैं। इस मुहावरे का अर्थ है सदा एक सा रहना, एक जैसी स्थिति जिसमें कोई बदलाव नहीं होता। लेकिन इस बात की जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी कि सिर्फ तीन पत्ते वाला ही नहीं बल्कि एक पत्ते वाला भी ढाक होता है। अब यह अलग बात है कि एक पत्ते वाला ढाक का पेड़ आमतौर पर कहीं नजर नहीं आता। जबकि तीन पत्ते वाले ढाक के पेड़ों का पूरा जंगल मिल जाता है। यही वजह है कि एक पत्ते वाले ढाक के पेड़ को अति दुर्लभ कहा जाता है। पन्ना जिले के विश्रमगंज गांव में स्थित इस विशिष्ट पेड़ की ओर अभी तक किसी का भी ध्यान नहीं गया। हाल ही में विगत दो दिन पूर्व रुंज डेम का कवरेज करने मैं जब यहां पहुंचा तो विश्रामगंज निवासी उन्नतशील कृषक व पर्यावरण प्रेमी हनुमंत सिंह ने इस अदभुत पेड़ के बारे में बताया। फलस्वरूप कुछ ग्रामीणों के साथ हम अरहर के उस खेत में पहुंचे जहां मेड पर एक पत्ती वाला पलाश का पेड़ लगा हुआ है।

 अति दुर्लभ प्रजाति का यह पेड़ तकरीबन 25 फीट ऊंचा होगा तथा एक तरफ बांस के पौधे से घिरा हुआ है। पेड़ का तना काफी मोटा और उसका एक हिस्सा खोखला है, जिससे प्रतीत होता है कि यह पेड़ 50 से 100 वर्ष पुराना होगा। गांव के आदिवासियों का भी यही कहना है कि हम बचपन से इस पेड़ को इसी तरह से देखते आ रहे हैं। क्योंकि यह पेड़ पलाश के दूसरे पेड़ों से भिन्न था, इसलिए गांव के लोगों ने इसे बचा कर रखा, कोई क्षति नहीं पहुंचाई। लेकिन आदिवासी बहुल इस गांव के लोग अब चिंतित हैं कि यह दुर्लभ पेड़ बांध के पानी में डूब कर नष्ट हो जाएगा या फिर काट दिया जायेगा।

 मालूम हो कि बांध के डूब क्षेत्र में राजस्व भूमि के साथ-साथ बड़ा क्षेत्र जंगल का भी है। तीन तरफ हरी-भरी पहाडय़िों से घिरे इस क्षेत्र में सागौन का घना जंगल है, जिसकी तेजी से कटाई हो रही है। वन अधिकारियों के मुताबिक डूब क्षेत्र में लगभग 48 हजार पेड़ों को काटा जाना है, जिनकी कटाई का ठेका हो चुका है तथा पेड़ तेजी से काटे जा रहे हैं। गौरतलब है कि स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट जबलपुर की पांच सदस्यीय टीम ने कुछ वर्षों पूर्व इस क्षेत्र के जंगल का सर्वे किया था। सर्वे टीम के सदस्य डॉ विजय पटेल और डॉ अंजना ने बताया कि जैव विविधता की दृष्टि से यह पूरा इलाका अत्यधिक समृद्ध है। उन्होंने बताया कि रूंज डेम के डूब में आने वाला क्षेत्र संकटग्रस्त वन्य प्राणी पैंगोलिन का हैबिटेट भी है। डॉ. पटेल ने बताया कि एक पत्ती वाला पलाश अत्यधिक दुर्लभ माना जाता है।   

 चित्रकूट के हर्रा गांव में भी मिला था यह पेड़

 दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के डॉ. रामलखन सिंह सिकरवार ने तकरीबन 8 वर्ष पूर्व लिखा था कि चित्रकूट के जैव विविधता सर्वेक्षण के दौरान हमने एक पत्ती वाले पलाश को सतना जिले में मझगवां तहसील के मुटवा ग्राम व चित्रकूट जिले के हर्रा गांव में खोजा है। इस पेड़ की टहनी में तीन पत्ती की जगह एक पत्ती होती है। इसलिए स्थानीय लोग इसे "एक पत्ती दाई" कहते हैं। तांत्रिकों की ऐसी मान्यता है कि यह दैवीय वृक्ष है और इसके नीचे खजाना गड़ा होता है। जानकारों के मुताबिक पलाश का पेड़ प्रकृति का एक ऐसा उपहार है जो जीवन को न सिर्फ स्वस्थ बनाता है बल्कि अपने मोहक रंगों से उत्साह, उमंग और हमेशा आनंद में रहने की प्रेरणा देता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पलाश को राज्य पुष्प का दर्जा दिया है। पलाश को ढाक, टेसू, केसू तथा बुंदेलखंड में इसको छियूल भी कहते हैं।

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Friday, February 19, 2021

एटीएम बदलकर ठगी करने वाले तीन आरोपी गिरफ्तार

  •  आरोपियों से कार, नगदी, 40 एटीएम कार्ड व 4 मोबाइल बरामद
  •  प्रदेश के कई शहरों सहित अन्य राज्यों में भी की ठगी की वारदात    

आयोजित प्रेस वार्ता में मामले की जानकारी देते हुए पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की पुलिस ने एटीएम बदलकर ठगी करने वाले अंतरराज्यीय गिरोह के तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से विभिन्न बैंकों के अलग-अलग नाम वाले 40 एटीएम कार्ड, ठगी के पैसों से खरीदी गई रीनॉल्ट क्विड कार कीमत लगभग चार लाख रुपए, 60 हजार रुपये नगद तथा चार एंड्राइड मोबाइल बरामद किया है।

 पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना ने आज आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि इन आरोपियों ने राजाराम बागरी निवासी फुलवारी, थाना देवेंद्र नगर के साथ 28 सितंबर 20 को ठगी कर उसका एटीएम बदल लिया था। आरोपियों ने अलग-अलग शहरों में फरियादी के बैंक खाते से 2 लाख 5 हजार रुपये भी निकाल लिए थे। मामले की रिपोर्ट थाना देवेंद्रनगर में अज्ञात आरोपियों के खिलाफ कायम की गई थी। साइबर सेल की मदद से संदिग्ध आरोपियों को चिन्हित कर उनकी सघन तलाशी शुरू की गई। मुखबिर से मिली सूचना के आधार पर पन्ना सतना बॉर्डर पर सुंदरा गांव के पास संदिग्ध रीनॉल्ट क्विड कार एम एच 05 डी एच 2923 को रोककर जब सर्चिंग की गई तो कार में सवार लोगों के कब्जे से उक्त सामग्री बरामद हुई। पूछताछ करने पर आरोपियों ने देवेंद्रनगर में वारदात करना कबूल किया। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि इन आरोपियों ने पूछताछ करने पर बताया कि उन्होंने मध्य प्रदेश के सागर, भोपाल, छतरपुर, देवास, उज्जैन तथा इंदौर सहित अन्य दूसरे राज्यों गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र में भी इसी तरह एटीएम बदलकर वारदात किया है।

 वारदात के तरीके बाबत पूछे जाने पर इन आरोपियों ने बताया कि वे अलग-अलग शहरों में जाकर एटीएम बूथ के पास खड़े हो जाते हैं। वे ऐसे भोले भाले लोगों के आने का इंतजार करते हैं, जो एटीएम का उपयोग सही तरीके से नहीं कर पाते। ऐसे लोगों को विश्वास में लेकर एटीएम से पैसा निकालने में उनकी मदद करने के बहाने उनका गोपनीय पिन जानकर चुपके से एटीएम कार्ड बदल लेते हैं। इसके बाद वहां से भागकर दूसरे किसी शहर में जाकर पैसा निकाल लेते हैं। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि आरोपियों से पूछताछ जारी है, जिससे इस तरह की अन्य वारदातों का खुलासा होने की संभावना है। प्रेस वार्ता में पुलिस अधीक्षक के अलावा अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पन्ना बी.के.एस.परिहार तथा थाना प्रभारी देवेन्द्रनगर निरीक्षक डी.के. सिंह भी मौजूद रहे। पुलिस अधीक्षक पन्ना ने ठगी करने वाले अन्तर्राज्यीय गिरोह के तीन आरोपियों को गिरफ्तार करने में सराहनीय भूमिका निभाने वाली पुलिस टीम को पुरस्कृत किये जाने की घोषणा की है।

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Thursday, February 18, 2021

वन्य प्राणियों के शिकार का नहीं थम रहा सिलसिला

  • जल श्रोतों के आसपास शातिर शिकारियों की बढ़ रही सक्रियता  
  • शिकारियों के बिछाए करंट युक्त जाल में फंसकर तेंदुए की मौत

करंट की चपेट में आकर तालाब में प्यासे तेंदुए की हुई मौत का दर्दनाक द्रश्य। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व से लगे विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र के जंगलों में वन्य प्राणियों के शिकार की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा। शातिर शिकारी लगातार शिकार की वारदातों को अंजाम देने में कामयाब हो रहे हैं। ताजा मामला पडोसी जिला सतना के मझगवां रेंज का है। यहाँ शिकारियों ने जल श्रोत के निकट करंट युक्त तार फैलाकर शिकार की घटना को अंजाम दिया है। घटना में एक तेंदुआ सहित जंगली बिल्ली व एक बैल की मौत हुई है। 

 उल्लेखनीय है कि यह इलाका चित्रकूट से लगा हुआ है। यहाँ के जंगल व पन्ना के जंगलों के बीच जीवित कॉरिडोर है, फलस्वरूप वन्य प्राणियों का एक जगह से दूसरी जगह के जंगल तक आवागमन बना रहता है। पन्ना की एक बाघिन ने तो चित्रकूट के जंगल को न सिर्फ अपना आशियाना बना लिया है बल्कि वहां शावकों को जन्म देकर इस इलाके के जंगल को भी बाघों से आबाद किया है। मिली जानकारी के अनुसार शिकारियों द्वारा तालाब के समीप बिछाए गये करंट युक्त तार में उलझने से एक प्यासा तेंदुआ जहाँ काल के गाल में समा गया, वहीँ एक बैल और जंगली बिल्ली की भी करंट लगने से मौत हो गई। जिस जगह शिकार हुआ है वह क्षेत्र मझगवां रेंज के अंतर्गत पाल देव बीट क्रमांक 32 में आता है। यहाँ स्थित बगदरा तालाब के समीप बीती रात शिकारियों ने हाई वोल्टेज करंटयुक्त तार बिछा दी थी। रात्रि में तालाब में पानी पीने पहुंचा एक तेंदुआ इस करंट युक्त तार में उलझ गया और करंट लगने से प्यासे तेंदुए ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। इसके बाद तालाब में पानी पीने पहुंचे एक बैल और एक जंगली बिल्ली भी करंट की चपेट में आ गये और इन बेजुबानों को भी असमय काल कवलित होना पड़ा। घटना की जानकारी मिलने पर मध्य प्रदेश के वन विभाग के अधिकारियों में हड़कंप मच गया। मौके पर पहुंची टीम ने मृत जानवरों के शव का पंचनामा कर पोस्टमार्टम को भेजा है। बताया गया है कि संदेह के आधार पर चार लोगों को हिरासत में भी लिया गया है।

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Wednesday, February 17, 2021

सैकड़ों साल पहले किन अनाजों की होती थी खेती

  • आखिर कितना पुराना है खेती किसानी का इतिहास
  • फिर खेती में कैसे शुरू हुआ बदलाव का सिलसिला 

।। अरुण सिंह,पन्ना।। 

मोटे अनाजों में से एक  ज्वार के भुट्टे, जो अब कम ही देखने को मिलते हैं।  

मनुष्य के क्रमिक विकास की कहानी जितनी रोचक और संघर्षों से परिपूर्ण है, खेती किसानी का इतिहास भी उतना ही रोचक एवं महत्वपूर्ण है। हजारों  वर्ष पूर्व जब न तो लोहे की खोज हुई थी और न ही आग के बारे कोई जानकारी थी, उस समय मनुष्य पूरी तरह जंगली था और शिकार करके अपनी भूंख मिटाता था। खेती किसानी के इतिहास और उसके क्रमिक विकास के संबंध में बाबूलाल दाहिया बताते हैं कि खेती का इतिहास लगभग 10 हजार वर्षो का ही है, जब मनुष्य 40-- 50 हजार वर्ष पहले गुफाओं से निकल नदियों के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने लगा। शुरू - शुरू में वह कुछ मोटे अनाज सांवा ,काकुन, कुटकी, बाजरा आदि के बीज बस्तियों के पास के मैदान में  छिड़क देता, जिसे पशु चरने और पक्षी दाने चुगने के लिए आते एवं वह उनका शिकार करता। लेकिन बाद में आग की खोज के पश्चात वह उन्हें उबाल या भूनकर खाने लगा और पशुओं को भी सवारी, हल, छकड़ा आदि में उपयोग करने लगा।

 लेकिन आज से लगभग 28 सौ वर्ष पहले जब मनुष्य ने लोहे की खोज कर ली तो वह  नदियों का किनारा छोड़ मैदान में बसने लगा। क्योंकि अब वह कुआँ खोद कर उसका पानी पी सकता था। 40 हजार वर्ष पहले की आग की खोज, बीस हजार से 10 हजार वर्ष के बीच की पहिये की खोज के पश्चात यह तीसरी ऐसी खोज थी जिसमे समाज मे अमूल चूल परिवर्तन आया। क्योकि लोहे की खोज के बाद ही अनेक रोजगार धंधे विकसित हुए और ब्यवस्थित खेती भी शुरू हुई। लोहे की खोज से मनुष्य की जिंदगी में आमूलचूल बदलाव आना शुरू हो गया। खेती किसानी को सुगम और बेहतर तरीके से करने के लिए उपयोगी औजार बनाये जाने लगे फलस्वरूप मवेशियों को पालने का भी सिलसिला शुरू हुआ। अपने देश में आजादी के दो दशक बाद तक किसान आम तौर पर मोटे देशी अनाज ही उगता रहा है। बाद में अनाजों की नई किस्मों का विकास हुआ फलस्वरूप मोटे अनाजों की जगह नई किस्मों ने ले लिया। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए गोबर की खाद का उपयोग करने की जगह किसान अधिक उपज पाने की लालसा में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का भी उपयोग करने लगा।  

आबादी बढ़ने के साथ अनाज की खपत भी बढ़ने लगी और अधिक उपज के लिए उसी अनुपात में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग भी बढ़ गया। खेती में उपयोग किये जाने वाले पुराने औजारों की जगह आधुनिक यंत्रों व मशीनों ने ले ली, जिससे बैलों का भी उपयोग कम हो गया। खेती के पुराने औजार तो पुरातत्व की चीज बनकर रह गये। ऐसे अनेकों खेती के पुराने औजार व उपकरण हैं जिनका उपयोग लगभग बंद ही हो गया है, आलम यह है कि नई पीढ़ी के लोग उन औजारों और उपकरणों का नाम तक नहीं जानते। ऐसा ही एक पुराना उपकरण कोनइता है, जिसके बारे में रोचक जानकारी पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी ने दी है। इन्होने धान की तक़रीबन 200 देशी किस्मों का संरक्षण किया है। तो आप भी जाने धान दरने वाले इस पुराने उपकरण की रोचक दास्तान -    

 धान दरने का आदिम यन्त्र कोनइता


धान दरने के लिए उपयोग में लिया जाने वाला पुराना यन्त्र कोनइता या चकरा। 

जी हां यह कोनइता है जिसे कहीं-कहीं चकरा भी कहते हैं। कोनइता इसलिए कि यह घर के एक कोने में स्थायी रूप से गड़ाकर स्थापित कर दिया जाता है और चकरा इसलिए कि यह दराई करते समय चारो ओर घूमता या चक्कर लगाता है। यह आदिम मनुष्यो द्वारा निर्मित धान, कोदो, कुटकी, सांवा  आदि दरने का मिट्टी का यंत्र है। इसके दो खण्ड होते हैं। जमीन में स्थायी रूप से खूटी के साथ चिपके भाग को थरी कहा जाता है और ऊपरी घूमने वाले भाग को चकरा।

इसके लिए थरी के छेद से जमीन में एक लगभग डेढ़ हाथ की खूटी गड़ी रहती है तथा उसको ऊपर सहारा देने के लिए एक चपटी छेद दार लकड़ी होती जिसे पारी कहते हैं। साथ ही किनारे एक ओर मुठिया भी जिसे पकड़ कर घुमाया जाता है। चकरा अकेले घुमाने का यंत्र नही है। इसे दो जन साथ - साथ घुमाते हैं, जिससे धान, कोदो की भूसी अलग हो जाती है। फिर चावल को मूसल से कूटा जाता है, तब वह खाने लायक होता है।

   इसके ऊपर अर्ध छेद युक्त एक लकड़ी का और जुगाड़ होता है जिससे चकरा हल्का चलने लगता है। उसे आरी जोती कहते हैं, जो सुतली के सहारे बीच की पारी से इस तरह बाध दी जाती है कि चकरे का कुछ वजन खूटी में आ जाता है और वह घूमने में हल्का हो जाता है। यह मात्र काली मिट्टी में धान की भूसी मिलाकर बनता है। क्योंकि काली मिट्टी का छरन जल्दी नहीं होता। एक चकरा अपने जीवन काल में लगभग 25- 30 क्विंटल धान की दराई कर लेता है जो एक किसान परिवार के साल भर के भोजन के लिए पर्याप्त होती है। इसमें एक विशेषता यह भी है कि इसे महिलायें ही कलात्मक ढंग से बनाती हैं। जिसमें उनका ज्ञान, कौशल स्पस्ट दिखता है। लेकिन अब दराई के बिजली चलित यन्त्र आ जाने से अब यह चकरे पुरातत्व की वस्तु का स्थान लेते जा रहे हैं।

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Tuesday, February 16, 2021

मध्यप्रदेश बनेगा हीरा उत्पादन में अग्रणी राज्य

  • विभागीय बैठक में बंदर डायमंड प्रोजेक्ट का हुआ प्रस्तुतिकरण
  • बंदर डायमंड प्रोजेक्ट में 34.20 मिलियन केरेट हीरों का भण्डार

खनिज साधन मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह

बेशकीमती रत्न हीरों के उत्पादन में मध्यप्रदेश अग्रणी राज्य बनेगा। प्रदेश के खनिज साधन मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह  की अध्यक्षता में आज सम्पन्न हुई विभागीय बैठक में बंदर डायमंड प्रोजेक्ट का प्रस्तुतिकरण हुआ। बैठक में विभागीय अधिकारी और एक्सेल माइनिंग एण्ड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पदाधिकारी उपस्थित थे।

बैठक में बताया गया कि छतरपुर जिले के 364 हेक्टेयर क्षेत्र में बंदर डायमंड प्रोजेक्ट में 34.20 मिलियन केरेट हीरों का भण्डार है, जिसका अनुमानित बाजार मूल्य लगभग 55,049 करोड़ है। इस प्रोजेक्ट की नीलामी में उच्चतम बोली एक्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड की थी।

गौरतलब है कि प्रोजेक्ट में खनन कार्य प्रारंभ होने के बाद प्रदेश को लगभग 23 हजार 632 करोड़ रूपये की राजस्व प्राप्ति होने की संभावना है। इसके साथ ही भारत हीरा उत्पादन में शीर्ष 10 देशों में शामिल हो जायेगा। बैठक में प्रमुख सचिव, खनिज साधन सुखवीर सिंह, संचालक भौमिकी तथा खनिकर्म विनीत ऑस्टिन और अधीक्षण भौमिकीविद विनोद बागड़े भी उपस्थित रहे।

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Monday, February 15, 2021

खेती किसानी के पुराने औजार जो अब धरोहर बन गये

  •  पन्ना के पड़ोसी जिले बांदा में कृषक ने बड़े जतन से सहेजा है खेती के औजार 
  •  हीरों की नगरी में बन रहे डायमंड म्यूजियम से कम नहीं है यह अनूठा म्यूजियम 

पड़ोसी जिले बांदा में बड़ोखर खुर्द गांव के किसान प्रेम सिंह द्वारा बनाये गये म्यूजियम की झलक।  

।। अरुण सिंह,पन्ना।। 

खेती किसानी के क्रमिक विकास का इतिहास जितना पुराना है उतना ही रोचक भी है। आजादी से पहले जब हमारे देश में औद्योगिक विकास न के बराबर था, उस जमाने में देश की अधिसंख्य आबादी खेती-किसानी पर ही आश्रित थी। तब खेती करने के लिए जो औजार उपयोग में लाए जाते थे, उनकी खोज भी किसानों ने ही की थी। इन उपयोगी कृषि औजारों का निर्माण भी गांव में किया जाता रहा है। लेकिन तकनीकी विकास के साथ-साथ खेती किसानी में उपयोग किए जाने वाले पुराने औजारों की जगह आधुनिक यंत्रों ने ले ली है। इसका परिणाम यह हुआ है कि अब उन पुराने औजारों को नये जमाने के किसान भूलने लगे हैं। जबकि खेती के ये औजार हमारी पुरातन संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं।

 इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बड़ोखर खुर्द गांव के किसान प्रेम सिंह ने खेती किसानी से जुड़ी पुरातन संस्कृति को नष्ट होने से बचाने के लिए खेती में उपयोग किए जाने वाले पुराने औजारों को बड़े ही जतन से सहेजा है। उनका यह अनूठा प्रयास एक म्यूजियम का रूप ले चुका है, जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। प्रेम सिंह ने सिर्फ यह म्यूजियम ही नहीं बनाया अपितु उन्होंने खेती की एक ऐसी देसी पद्धति भी विकसित की है, जिसके जरिए वे न सिर्फ सुकून की जिंदगी जी रहे हैं बल्कि पूरी तरह से आत्मनिर्भर भी हैं। विंध्य क्षेत्र में जैविक खेती की अलख जगाने वाले तथा धान की तकरीबन 200 प्रजातियों का संरक्षण करने वाले पद्मश्री बाबूलाल दहिया जी भी खेती किसानी में उपयोग किए जाने वाले पुराने औजारों के म्यूजियम को देखकर उसकी सराहना की है।

खेती के पुराने औजारों को निहारते पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी। 

 मालुम हो कि देश भर में अनेकों म्यूजियम हैं जहां पुरातन संस्कृति व कला को संरक्षित किया गया है। यहां तक कि विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र भी सहेज कर रखे गये हैं। लेकिन ऐसा म्यूजियम शायद ही कहीं मिले जहां खेती किसानी के पुराने औजारों को सहेजा गया हो। यह कितने आश्चर्य की बात है कि जहां अधिसंख्य आबादी खेती किसानी पर आज भी आश्रित है, उन अन्नदाता किसानों के जीवन संघर्ष की न तो गाथा लिखी गई और न ही उनकी कला और संस्कृति को सहेजने का प्रयास किया गया। इतिहास उन्हीं का लिखा गया जो हमारे लुटेरे रहे हैं। इन अर्थों में बांदा जिले के छोटे से गांव बड़ोखर खुर्द के प्रेम सिंह की पहल व प्रयास निश्चित ही सराहनीय और काबिले तारीफ है।

गौरतलब है कि हीरो और मंदिरों के शहर पन्ना में प्रशासनिक पहल से डायमंड म्यूजियम का निर्माण कराया जा रहा है। इस म्यूजियम में बेशकीमती रत्न हीरों के बारे में जहां रोचक जानकारी प्रस्तुत की जाएगी, वहीं इसे आकर्षक बनाने के लिए अन्य गतिविधियों को भी जोड़ा जाएगा। पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती से हीरा सदियों से निकाला जाता रहा है और आज भी यहां पर हीरा की खदानें संचालित हैं, जहां से हीरा निकलता है। इस लिहाज से पन्ना में डायमंड म्यूजियम के निर्माण का अपना महत्व है। लेकिन खेती किसानी के पुरातन औजारों को सहेजने और उसे म्यूजियम के रूप में विकसित करने की एक कृषक की पहल निश्चित ही अनूठी है। इस म्यूजियम से आने वाली पीढ़ी को अपने पुरखों के संघर्ष गाथा की झलक मिल सकेगी।

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Sunday, February 14, 2021

सांभर का शिकार करने वाले पांच आरोपी गिरफ्तार

  •  शिकार करने के बाद आरोपी अपने घरों में पका रहे थे मांस
  •  मुखबिर की सूचना पर वन कर्मियों ने की छापामार कार्यवाही 

वन्य प्राणी सांभर के मांस सहित गिरफ्तार आरोपी साथ में वन अधिकारी व कर्मचारी। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में वन्य प्राणी सांभर का शिकार करने वाले पांच आरोपियों को आज गिरफ्तार किया गया है। आरोपियों ने दक्षिण वन मंडल पन्ना अंतर्गत खिलसारी गांव में नदी के किनारे पालतू कुत्तों की मदद से सांभर का शिकार किया था। शिकार करने के बाद आपस में मांस का बंटवारा करके जब वे अपने घरों में मांस पका रहे थे, उसी समय उन्हें दबोच लिया गया। मामले में अन्य फरार आरोपियों की तलाश की जा रही है।

 वन परिक्षेत्राधिकारी वन परीक्षेत्र सलेहा राम सिंह पटेल ने जानकारी देते हुए बताया कि रविवार को आज मुखबिर से सूचना मिली थी कि ग्राम खिलसारी में सांभर का शिकार कर आरोपी अपने घरों में मांस पका रहे हैं। सूचना मिलने पर वन मंडलाधिकारी दक्षिण पन्ना मीना कुमारी मिश्रा के निर्देशन पर छापामार कार्यवाही की गई। श्री पटेल ने बताया कि ग्राम खिलसारी में उत्तम सिंह, मंगल सिंह, होशियार सिंह, चन्नू सिंह तथा राम सिंह के घरों में सांभर का मांस जप्त किया गया। इन पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर इनके विरुद्ध वन्य प्राणी अधिनियम के तहत प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है।

 आरोपियों की निशानदेही पर घटनास्थल का निरीक्षण भी किया गया। शिकार करने के बाद आरोपियों ने जिस जगह पर सांभर को काटा है, वहां सांभर की आंतें, आमाशय व शरीर के अन्य अवशेष जप्त किए गये। आरोपियों ने बताया कि ग्राम खिलसारी में नदी के किनारे शनिवार को कुत्तों से दौड़ाकर उन्होंने लाठी-डंडों से पीटकर सांभर को मारा था। रात्रि में लगभग 12 बजे पास के खेत में ले जाकर उसे काटा और मांस आपस में बांट लिया। गिरफ्तार पांचों आरोपियों को सोमवार 15 फरवरी को न्यायालय में पेश किया जायेगा।

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आंवला उत्पाद से पूरे देश में बनेगी पन्ना की पहचान

  • एक जिला एक उत्पाद के तहत आंवला उत्पाद चयनित
  • इकाई लगाने हेतु प्रशासन करेगा पूरा सहयोग - कलेक्टर

आंवला उत्पाद बनाने हेतु प्रशिक्षणार्थी को आंवला प्रदान करते कलेक्टर संजय कुमार मिश्र।

अरुण सिंह,पन्ना। औषधीय गुणों की खान आंवला फल के उत्पाद से पूरे देश में अब  पन्ना की पहचान बनेगी। आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनाने के लिए एक जिला एक उत्पाद योजना प्रदेश शासन द्वारा प्रारंभ की गई है। इस योजना के तहत पन्ना जिले में आंवला उत्पाद को चुना गया है। जिले में औषधि गुणों से भरपूर आंवले की प्रजाति पायी जाती है। इस प्रजाति के कारण पन्ना की पहचान पूरे देश में स्थापित हुई है। यहां पैदा होने वाले आंवले को मुख्य रूप से च्यवनप्राश बनाने वाली कम्पनियां आंवला उत्पाद बनाने के लिए खरीदती हैं। लेकिन अब पन्ना जिले के लोग आंवले की खेती करने के साथ - साथ आंवले के विभिन्न तरह के उत्पाद भी बनायेंगे। यहां स्थानीय स्तर पर ताजे आंवले से बने उत्पाद अधिक गुणकारी होंगे। इन उत्पादों को बनाने के लिए ललित भटनागर इन्दौर से दो दिवसीय प्रशिक्षण देने के लिए पन्ना आये। प्रशिक्षण में आंवला के उत्पादों में आंवला मुरब्बा, आंवला सुपाडी, आंवला रस, आंवला चूर्ण, च्यवनप्राश आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। इस अवसर पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने कहा कि शासन की इस महत्वपूर्ण योजना को भारत सरकार एवं प्रदेश सरकार द्वारा मदद की जा रही है। आंवला उत्पाद की इकाईयां स्थापित करने वालों को जिला प्रशासन द्वारा हरसंभव सहयोग दिया जायेगा।

कलेक्टर श्री मिश्र ने कहा कि शासन की परिकल्पना है कि जिले के औषधीय गुण वाले आंवले से बने उत्पादों को देश के साथ विदेशों में भी विक्रय के लिए भेजा जाये। हमारे जिले में 45 प्रतिशत जंगल है, यह जंगल जिले की 11 लाख 26 हजार आबादी के लिए वरदान है। जंगलों में पाये जाने वाले आंवले और अन्य औषधीय वृक्षों के साथ औषधीय पौधे उगते हैं। इन सबका उपयोग हम अपने जिले में ही च्यवनप्राश जैसी गुणकारी औषधी बनाकर अच्छी आय  अर्जित कर सकते हैं। इसके अलावा जिले के निवासियों से अपील करते हुए कहा कि आप लोग आंवले के वृक्ष खेतों, खाली पडी जगहों, मेड-बंधानों आदि पर लगायें। लगभग 3 वर्ष में आंवले के फल मिलना शुरू हो जाते हैं। आंवले के वृक्ष खेतों, मेड बंधानों में लगाने से कोई नुकसान नहीं होता। वृक्ष के नीचे दूसरी फसलें आसानी से उगाई जा सकती हैं। उन्होंने बताया कि औद्योगिक इकाईयां स्थापित करने के लिए शासन द्वारा हर तरह से मदद की जाती है। जिले में आंवले के विभिन्न उत्पाद तैयार करने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। आगे आने वाले समय में जब भी प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।

प्रशिक्षण लेने वाली युवतियां आंवला उत्पाद तैयार करते हुए। 

 उन्होंने कहा कि एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित आंवला उत्पाद से संबंधित जानकारी पन्ना जिले की बेवसाईट पर डाली गयी है। कोई भी व्यक्ति कम्प्यूटर या मोबाइल पर इसे देख सकता है। इसके अलावा अन्य सहयोग के लिए जिला उद्यानिकी कार्यालय, उद्योग विभाग आदि से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। शासन द्वारा छोटे छोटे कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने के लिए 50 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। इन्हें स्थापित करके अपने खेती में होने वाले उत्पादों को सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पंजीयन एवं बाजार संबंधी कार्यवाही जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है। आपको केवल उत्पादन करना है। इस अवसर पर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष  माधवेन्द्र सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि उद्यानिकी विभाग के माध्यम से शासन अनेक तरह की कल्याणकारी योजना संचालित कर रहा है। उनका लाभ सभी को लेना चाहिए। उन्होंने स्वयं स्टीविया की खेती प्रारंभ करने के बारे में बताया। उन्होंने यह भी बताया कि कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए मैं स्वयं आवेदन कर रहा हॅू और भी लोगों को करना चाहिए। जिले के लिए चयनित आंवला उत्पाद योजना में अधिक से अधिक लोगों को अपनाकर आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनाने में सहयोग करना चाहिए। 

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वन विभाग के गश्ती दल पर सागौन तस्करों ने किया हमला

  •  कुल्हाड़ी और लाठियों से हुए हमले में 3 वन कर्मी घायल, एक की हालत गंभीर
  •  बेसुध होकर गिर जाने तक हमलावरों ने वनकर्मियों को बेरहमी के साथ मारा 

हमले में बुरी तरह से घायल वनकर्मी जिला अस्पताल में इलाज कराते हुए। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में वन विभाग के निहत्थे गश्ती दल पर सागौन तस्करों ने प्राणघातक हमला किया है, जिसमें तीन वनकर्मी घायल हुए हैं। घायलों को देर रात जिला चिकित्सालय पन्ना में भर्ती कराया गया है जिनमें एक की हालत गंभीर बताई जा रही है। मामला पन्ना जिले के उत्तर वन मंडल अंतर्गत विश्रामगंज रेंज के कौवा सेहा बीट का है। वनकर्मी शनिवार 13 फरवरी की शाम जंगल में जब गस्ती कर रहे थे, उसी समय लगभग एक दर्जन  सागौन तस्करों ने कुल्हाड़ी और लाठियों से हमला कर दिया। हमलावरों ने वनकर्मियों को पकड़कर बेरहमी के साथ मारा, जान बचाकर वनकर्मी जब भागे तो हमलावर तस्करों ने उनको दौड़ा - दौड़ाकर तब तक मारा जब तक वे बेसुध होकर गिर नहीं गये। 

वन परिक्षेत्राधिकारी विश्रामगंज अजय बाजपेयी ने जानकारी देते हुए बताया कि सुरक्षा समिति के सुरक्षाकर्मी गोविंद सिंह यादव ने किसी तरह छिपकर रात्रि लगभग 9 बजे घटना की सूचना दी, तब घायल वनकर्मियों को जंगल से ढूंढकर उन्हें रात्रि 11 बजे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। रेंजर श्री बाजपेयी ने बताया कि छत्रपाल सिंह वनरक्षक को कुल्हाड़ी और डंडों की घातक चोटें आई हैं। हमले में स्वामीदीन कुशवाहा स्थाई वनकर्मी एवं गोविंद सिंह यादव वन सुरक्षा समिति के सुरक्षाकर्मी भी घायल हुए हैं। सभी हमलावर खजरी गांव के बताये जा रहे हैं, जिनमें से तीन आरोपियों को पन्ना पुलिस ने रात्रि तक़रीबन 3 बजे गिरफ्तार किया है। अन्य आरोपियों की पुलिस द्वारा तलाश की जा रही है।

घटना के बाद से दहशत में हैं वनकर्मी 

 

घायल वनकर्मियों का हाल जानने अस्पताल पहुंचे वन अधिकारी। 

घटना के संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार 13 फरवरी 2021 को शाम लगभग 5:30 बजे उत्तर वन मंडल के वन परिक्षेत्र विश्रामगंज का यह गश्ती दल कौवा सेहा के पास पटार चौकी क्षेत्र में गस्त कर रहा था। उसी समय इन्हें सागौन के पेड़ कटने की आहट मिली, तब गश्ती दल मौके पर पहुंचकर जब उन्हें  रोकने की कोशिश की तो अचानक दर्जनभर कुल्हाड़ी और लाठियों से लैस सागौन तस्करों द्वारा जानलेवा हमला कर दिया गया। यह सब इतना अप्रत्याशित और अचानक हुआ कि वन कर्मी संभल भी नहीं पाये। हमलावरों ने उनको बुरी तरह से घेरकर मारा जिससे वनकर्मी लहूलुहान हो गये। किसी तरह जान बचाकर एक सुरक्षा श्रमिक ने भागकर इसकी सूचना वन विभाग के अधिकारियों को दी, सूचना मिलते ही वन विभाग के अधिकारियों ने वन कर्मियों के साथ मौके पर पहुंचकर घायलों को जिला अस्पताल पहुंचाया जहां उपचार जारी है। उत्तर वन मंडल के डीएफओ गौरव शर्मा, एसडीओ विश्रामगंज दिनेश गौर, परिक्षेत्र अधिकारी विश्रामगंज अजय वाजपेई, डिप्टी रेंजर काशी प्रसाद अहिरवार सहित वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी घायलों का हाल जानने जिला अस्पताल पहुंच गये। घटना के बाद से घायल वनकर्मी बुरी तरह से डरे और सहमे हुए हैं। 

घायल वनरक्षक को ढूंढने में लगे दो घंटे 

हमले में बुरी तरह से लहूलुहान हो चुके वनरक्षक छत्रपाल सिंह लोधी को ढूंढने में वन कर्मचारियों को तकरीबन डेढ़ से दो घंटे लग गये। वनरक्षक के पैर में गंभीर चोटें होने के कारण वह चलने में असमर्थ था। उसके जेहन में हमलावरों का खौफ इस कदर बैठा हुआ था कि वह सांस रोके जंगल में छुपा पड़ा रहा। हमले की यह घटना शाम की है और इसकी जानकारी वन अधिकारियों को रात लगभग 9:00 बजे लगी। पूरे 2 घंटे तक तलाशी अभियान के बाद वनरक्षक तब मिला जब उसे भरोसा हो गया कि यह लोग हमलावर नहीं बल्कि वन विभाग के ही कर्मचारी हैं। इस तरह से घायल बन रक्षक को रात्रि 11:00 बजे जिला अस्पताल में भर्ती कराया जा सका।

इस वनक्षेत्र में होती है सर्वाधिक अवैध कटाई 

उत्तर वन मंडल पन्ना का वन परिक्षेत्र विश्रामगंज अवैध कटाई व उत्खनन को लेकर हमेशा चर्चा में रहता है। कौआ सेहा बीट में तो सागौन तस्करों की ही हुकूमत चलती है। यही वजह है कि इस पूरे क्षेत्र के जंगल में सागौन के पुराने एक भी पेड़ नहीं बचे। सागौन तस्कर अब सागौन की कटाई के लिए झिन्ना तक दविश दे रहे हैं जिन पर अंकुश लगा पाने में वन महकमा नाकाम साबित हो रहा है। लाठी डंडा लेकर जंगल की सुरक्षा करने वाले वनकर्मी यदि अवैध कटाई रोकने का प्रयास करते भी हैं तो उनका यह हश्र होता है। इन परिस्थितियों में जंगल की सुरक्षा कैसे हो यह सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है। शासन स्तर से यदि प्रभावी और कठोर कदम नहीं उठाये जाते तथा सागौन तस्करों व अवैध उत्खनन में लिप्त लोगों की पहचान कर उनके विरूद्ध कड़ी कार्यवाही नहीं होती तो जंगलों का बच पाना बहुत मुश्किल है। 

वनकर्मी धरने पर थे और उसी दिन हो गया हमला 

वनकर्मियों पर हमले की घटनाएं सिर्फ पन्ना जिले में ही नहीं अपितु पूरे प्रदेश में हो रही हैं। हमले का यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। मालुम हो कि गत 13 फरवरी 2021 को सुबह 10 बजे से वन कर्मियों द्वारा सुरक्षा की मांग को लेकर एवं लगातार वन कर्मियों पर हो रहे हमले एवं हत्याओं के विरोध में उपवास धरना देकर ज्ञापन सौंपा गया था। उपवास धरना लगभग 5:00 बजे समाप्त हुआ और 5:30 बजे वन विभाग के गश्ती दल पर हमला हो गया। ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि निहत्थे वन विभाग के गश्ती दल पर जब लगातार हमले हो रहे हैं तो ऐसी विकट परिस्थितियों में वे जंगलों की सुरक्षा भला कैसे करें ? सुनसान जंगलों में गश्त करने वाले दल को बंदूक तो दूर लाठी भी नसीब नहीं हो रही है। वहीं सागौन तस्कर, खनन माफिया और वन्य प्राणियों के शिकारी हथियारों से लैस होकर वन कर्मियों पर हमला कर रहे हैं। इस चुनौतीपूर्ण समस्या के स्थाई समाधान हेतु शासन को अतिशीघ्र कारगर कदम उठाने होंगे ताकि जंगल सुरक्षित बच सकें। 

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Saturday, February 13, 2021

अब पन्ना में घर - घर बनेगा आंवला उत्पाद

  • आंवला मुरब्बा, आचार, चटनी च्यवनप्राण बनाने का दिया गया प्रशिक्षण
  • महिलाओं को घर में रोजगार देने के साथ-साथ बनाया जायेगा स्वावलम्बी 

सहायक संचालक उद्यान कार्यालय में प्रशिक्षण के बाद आंवला च्यवनप्राश तैयार करती महिलायें। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले को सही अर्थों में आंवला जिला बनाने की दिशा में प्रयास शुरू हो गये हैं।  इसी संदर्भ में इन्दौर फल एवं सब्जी परिरक्षण केन्द्र के प्रशिक्षक ललित भटनागर ने आज इन्द्रपुरी कॉलोनी स्थित सहायक संचालक उद्यान कार्यालय में दो दिवसीय 13 एवं 14 फरवरी 2021 को च्यवनप्राश बनाने का प्रायोगिक प्रशिक्षण दे रहे हैं। इस प्रशिक्षण में पन्ना जिले की सैकडों महिलाओं ने भाग लिया। श्री भटनागर ने बताया कि देश में सब्जियॉ एवं फलों की अधिकांश मात्रा नष्ट हो जाती है। फल एवं सब्जियों के समुचित उपयोग हेतु प्रसंस्करण ही एक मात्र विकल्प है, जिससे हमारी हानि को रोका जा सके। प्रायोगिक प्रशिक्षण में आज प्रशिक्षणार्थियों को इन्दौर से आये विषय विषेषज्ञों द्वारा आंवला निर्मित च्यवनप्राश का सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया गया। आंवला च्यवनप्राश में यहाँ जंगल में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली विभिन्न जडी - बूटियों का उपयोग किया गया, जो शरीर को अनेकों बीमारियों से सुरक्षित रखने के साथ पुष्ट और ताकतवर बनाती हैं। 

आँवले के इस च्यवनप्राश में प्रमुख रूप से छोटी पपील, बडी पपील, बंसलोचन, नागकेशर, नागरमौथा, अस्टमूल, दसमूल मुन्का आदि जडी बूटियों का उपयोग किया जाता है। सहायक संचालक उद्यान महेन्द्र मोहन भट्ट ने बताया कि प्रशिक्षण लेने वाली महिलाओं को घर में आंवला मुरब्बा, च्यवनप्राश, सुपाडी, कैन्डी, जैम, टमाटर सॉस, टमाटर केचअप आदि का ग्रह एवं कुटीर उद्योग खडा कर उन्हें रोजगार देने के साथ - साथ आर्थिक रूप से स्वावलम्बी भी बनाया जायेगा। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन 14 फरवरी को कलेक्टर पन्ना द्वारा आंवला के बारे में किसान भाईयो को मार्गदर्शन दिया जायेगा।

 सहायक संचालक उद्यान श्री भट्ट ने बताया कि आंवले के उत्पाद जिले में तैयार करने के लिए लोगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिससे जिले में आंवला से बनने वाली सामग्री की इकाईया स्थापित कर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। वर्तमान में जिले के किसानों द्वारा आंवले की विभिन्न प्रजातियों की खेती की जा रही है। आंवले की सामग्री का उत्पादन बडे पैमाने पर प्रारंभ किये जाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। श्री भट्ट ने बताया कि किसानों को अपने खेतों व खाली पड़ी जगह पर आंवला लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली महिलाओं को आंवला उत्पाद के लिए पर्याप्त आंवला जिले में ही उपलब्ध हो सके। 

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Thursday, February 11, 2021

एनएमडीसी से भी पहले मझगवां में होता था हीरों का उत्खनन

  •  11 नवंबर 1936 को पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडिकेट ने शुरू किया था कार्य 
  •  तत्कालीन पन्ना नरेश ने इस मौके पर दिया था ऐतिहासिक उद्घाटन भाषण 

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की प्रसिद्ध मझगवां हीरा खदान। फोटो - अरुण सिंह 

।। अरुण सिंह।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में पाये जाने वाले हीरों का इतिहास बहुत पुराना है। मुगल काल 16वीं शताब्दी में भी यहां पर हीरा की खदानें चलती रही हैं, इस बात का उल्लेख कई जगह मिलता है। पन्ना की विश्व प्रसिद्ध मझगवां हीरा खदान की जहां तक बात है तो यहां पर एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना द्वारा वर्ष 1966 से छोटे संयंत्रों द्वारा बहुत ही कम मात्रा में हीरों का उत्पादन शुरू किया गया था। बाद में इस परियोजना को आधुनिक तकनीक से सुसज्जित कर इसकी उत्पादन क्षमता 1लाख कैरेट प्रति वर्ष कर दी गई।

मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है, जिसे पुन: शुरू कराने के लिए हर स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। मालूम हो कि एनएनडीसी द्वारा अब तक मझगवां खदान से लगभग 13 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन किया जा चुका है, जबकि तकरीबन 8.5 लाख कैरेट हीरे अभी भी इस खदान में दबे हुए हैं जिन्हें निकाला जाना शेष है।

"दि डायमंड माइन्स ऑफ़ पन्ना स्टेट इन सेंट्रल इंडिया" पुस्तक का एक अंश। 

 उल्लेखनीय है कि पन्ना से लगभग 20 किलोमीटर दूर मझगवां पाइप की खोज 1827 में कैप्टन फ्रैकलिन ने की थी। इस बात का जिक्र पन्ना दरबार की अनुमति से दि टाइम्स ऑफ इंडिया प्रेस बॉम्बे द्वारा प्रकाशित पुस्तक "दि डायमंड माइन्स ऑफ़ पन्ना स्टेट इन सेंट्रल इंडिया" में भी है। अंग्रेजी में प्रकाशित इस पुस्तक के लेखक उस समय के प्रसिद्ध माइनिंग जियोलॉजिस्ट के.पी. सिनौर हैं। वर्ष 1930 में प्रकाशित इस पुस्तक में एक अध्याय मझगवां खदान पर केंद्रित है। जिसमें जिक्र किया गया है कि कैप्टन फ्रैकलिन और डॉ. मेडलीकॉट ने यहां विजिट किया था। पन्ना की हीरा खदानों के संबंध में 90 वर्ष पूर्व लिखी गई इस महत्वपूर्ण पुस्तक में कहा गया है कि मझगवां में हीरो की उपलब्धता के बारे में स्थानीय लोगों को पूर्व से जानकारी थी। लेकिन दुर्भाग्य से इस बात का कोई रिकार्ड व अभिलेख नहीं है, जिससे यह पता चले कि मझगवां खदान में हीरों की खोज का काम कब से चल रहा है तथा उस समय इस खदान से प्रतिवर्ष कितने हीरे निकाले जाते रहे हैं। मझगवां हीरा खदान को पूर्व में स्थानीय लोग "धाराकिरन" के नाम से जानते थे। पुस्तक में बताया गया है कि महाराजा रुद्र प्रताप सिंह के समय स्टेट इंजीनियर मिस्टर मेनली ने यहां एक बड़ा गड्ढा खुदवाया था। इस पुस्तक के लेखक व जियोलॉजिस्ट के.पी. सिनौर ने वर्ष 1930 में इसे किंबरलाइट नाम दिया।

मुगल काल में उन्नति पर था हीरा व्यवसाय 


 पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडिकेट के उद्घाटन अवसर पर महाराजा के भाषण का अंश। 

तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा यादवेंद्र सिंह जूदेव ने ठीक धनतेरस के दिन 11 नवंबर 1936 को पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडिकेट का उद्घाटन किया था। इस मौके पर महाराजा ने जो भाषण दिया वह बेहद महत्वपूर्ण है तथा उस समय की स्थिति पर भी प्रकाश डालता है। उद्घाटन अवसर पर सर चिनुभाई माधोलाल बैरोनेट ने भी अपने विचार व्यक्त किए थे। महाराज यादवेंद्र सिंह जूदेव ने अपने उद्बोधन में कहा था कि हीरा व्यवसाय मुगल राज्य काल में बड़ी ही उन्नति दशा में था। मुगल राज्य की अवनति के समय से बुंदेलखंड में अशांति रहने के कारण यह व्यवसाय अवनति को प्राप्त हो गया था। जब इसमें पुनरुत्थान के कुछ चिन्ह दृष्टिगोचर हो रहे थे, उसी समय दक्षिण अफ्रीका में हीरा की खदानों के निकल आने और फिर शीघ्र उनकी वैज्ञानिक उन्नति ने इस व्यवसाय को धक्का पहुंचाया। लेकिन यहां की खदान खोदने वालों के अविकसित उपायों से काम लेने पर भी यह कार्य अभी तक चालू रहा और लगभग 1 लाख की आमदनी प्रत्येक वर्ष होती रही। 

श्री जूदेव ने कहा कि मुझे यह विश्वास दिलाया गया कि यदि इस व्यवसाय को उचित रूप से हाथ में लिया जाए और इसका विकास किया जाए तो उसका भविष्य बड़ा ही उज्जवल होगा। मुझे सदैव इस बात की भी चिंता थी कि मेरी प्रजा के हृदय में, जो सदर में एक प्रकार से इसी व्यवसाय पर ही अपना जीवन निर्वाह करती है, यह भाव न उत्पन्न हो जाय कि यह व्यवसाय पूर्णत: बाहरी लोगों के हाथ में देकर उनको उनकी जीविका से वंचित कर दिया गया है।

महाराजा ने हीरा धारित क्षेत्र के भूगर्भ की कराई थी जांच

 पन्ना के हीरा व्यवसाय को उन्नति प्रदान करने के लिए महाराजा यादवेंद्र सिंह जूदेव द्वारा एक अनुभवी भूगर्भ  विद्यावेत्ता से यहां के भूगर्भ की विस्तृत रूप से जांच कराई थी। अपनी खोज के परिणाम को भूगर्भवेत्ता के.पी. सिनौर ने एक पुस्तक के रूप में 1930 में प्रकाशित किया। महाराजा ने बताया कि यह रिपोर्ट बहुत ही आशाजनक सिद्ध होने पर मैंने अपने मंत्रियों को हीरा खदानों की वैज्ञानिक उन्नति के संबंध में बाहरी महाजनों से पत्र व्यवहार करने के लिए आदेश दिया। उन्होंने बताया की पॉलिटिकल मिनिस्टर कर्नल जोरावर सिंह को इस कार्य के लिए विशेष रूप से नियुक्त किया गया। मुझे बड़ा हर्ष है कि उन लोगों का परिश्रम सफल हुआ। सर चिनु भाई की ओर इशारा करते हुए महाराजा ने कहा कि आपकी कंपनी से जो शर्ते हुई हैं, उनसे मुझे विश्वास है कि खदान का कार्य आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से होते हुए हमारी प्रजा के अर्थ लाभ व कार्य रुचि की भी पूर्ण रक्षा होती रहेगी। मुझे इसमें और भी अधिक प्रसन्नता इस बात की है कि इस व्यवसाय की उन्नति एक प्रख्यात भारतीय कंपनी के द्वारा हो रही है। इस तरह से मझगवां हीरा खदान 11 नवंबर 1936 से 1959 तक पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडीकेट द्वारा संचालित की जाती रही है। इसके बाद 1966 में एनएमडीसी (राष्ट्रीय खनिज विकास निगम) की मझगवां में एंट्री होती है। तब से मझगवां खदान में एनएमडीसी द्वारा हीरों का उत्खनन किया जा रहा है।

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Wednesday, February 10, 2021

सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों के आंकडे बहुत ही भयावह

  • स्वयं की सुरक्षा के साथ दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखें - मंत्री 
  • यातायात नियमों का पालन करना सबकी जिम्मेदारी-कलेक्टर
  • सडक सुरक्षा-जीवन रक्षा का मंत्र जीवन में उतारें-पुलिस अधीक्षक

सडक सुरक्षा माह पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में सडक सुरक्षा माह का आयोजन छत्रसाल महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं के बीच आयोजित किया गया। जिससे युवाओं में यातायात नियमों के प्रति जागृति पैदा हो। अधिक से अधिक लोगों तक यातायात नियमों की जानकारी पहुंचाने के लिए सडक सुरक्षा सप्ताह के स्थान पर सडक सुरक्षा माह का आयोजन किया जा रहा है। जिससे लोग स्वयं एवं दूसरों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर यातायात नियमों का पालन करें। इस अवसर पर प्रदेश के खनिज साधन एवं श्रम विभाग मंत्री श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि वाहन चालते समय स्वयं की सुरक्षा के साथ सडक पर चल रहे दूसरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखें तो दुर्घटनाएं नही होंगी।

इस अवसर पर मंत्री श्री सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि वाहन दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के आंकडे बहुत ही भयावह हैं। उन्होंने कहा कि इन दुर्घटनाओं में सबसे अधिक दो पहिया वाहन की दुर्घटनाएं होती हैं। जिसमें मरने वालों की आयु 40 वर्ष से कम होती है। ऐसी मृत्यु होने पर पूरा परिवार परेशान हो जाता है। वहीं दुर्घटना में बहुत सारे लोगों के अंग खराब हो जाते हैं। जिससे उनका जीवन बेकार हो जाता है। उन्होंने छात्र-छात्राओं से अपील करते हुए कहा कि वर्तमान में सबसे अधिक दो पहिया वाहनों का उपयोग आप लोग करते हैं, इसलिए आपको अपनी सुरक्षा के साथ दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए।


कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने कहा कि यह एक बहुत ही गंभीर विषय है इसलिए शासन ने प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले यातायात सप्ताह को यातायात माह के रूप में मनाना प्रारंभ किया है। सभी को गंभीरता के साथ वाहन चलाना चाहिए। जिससे स्वयं सुरक्षित रहें और अन्य लोगों का जीवन भी सुरक्षित हो। यातायात नियमों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए एनसीसी, एनएसएस के छात्र-छात्राओं को जागृति लाने का कार्य करना चाहिए। जिससे कम से कम दुर्घटनाएं हों। इस अवसर पर पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीणा ने अपने उद्बोधन में कहा कि जितने लोगों की मृत्यु वाहन दुर्घटनाओं में होती हैं उतनी मौतें अन्य घटनाओं में नही होती। युद्ध में भी मरने वालों की संख्या इससे कम होती है। वाहन दुर्घटनाएं यातायात नियमों का सही ढंग से पालन न करना, तेज गति से वाहन चलाना, शराब के नशे में वाहन चलाना, हेलमेट का उपयोग न करना, सीटबेल्ट न बांधना आदि के कारण सबसे अधिक दुर्घटनाएं होती हैं। इन दुर्घटनाओं से राष्ट्रीय क्षति होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को वाहन चलाते समय पूरी सावधानी और यातायात नियमों का पालन करना चाहिए। इस अवसर छत्रसाल महाविद्यालय के प्राचार्य ए.के. खरे ने अपने उद्बोधन में वाहन दुर्घटनाओं के कारण बताते हुए छात्र-छात्राओं को सचेत रहने के लिए कहा। कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष रविराज सिंह यादव, नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष बाबूलाल यादव, कमल लालवानी, जनप्रतिनिधिगण, महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं एवं आमजन उपस्थित रहे। क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी  सुनील शुक्ल द्वारा उपस्थितों के प्रति विनम्र आभार व्यक्त किया गया।

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Tuesday, February 9, 2021

पर्यटन को बढावा देने वाली कार्ययोजना बनाई जाये : बृजेन्द्र प्रताप सिंह

  •  खनिज मंत्री ने नगरीय निकायों के विकास की समीक्षा बैठक में दिए निर्देश 
  • बैठक में कहा पर्यटन के क्षेत्र में है रोजगार उपलब्ध कराने की अपार संभावनाएं

बैठक में अधिकारियों को दिशा निर्देश देते खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह साथ में कलेक्टर। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना शहर में पर्यटन विकास की विपुल सम्भावनायें मौजूद हैं, जिसे द्रष्टिगत रखते हुए यहाँ पर्यटन को बढावा देने वाली कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए। यह बात प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने आज नगरीय निकायों के विकास की पंचवर्षीय कार्ययोजना संबंधी समीक्षा बैठक में अधिकारियों से कही। बैठक में मंत्री श्री सिंह ने कहा कि नगरीय क्षेत्रों की विकास कार्ययोजनाओं में आम आदमी की बुनियादी जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया जाये। जिन नगरीय निकायों में ऐतिहासिक धरोहर स्थित हैं उन्हें यथावत संरक्षित किया जाये, जिससे हमारा गौरवपूर्ण इतिहास और संस्कृति संरक्षित रहे। उन्होंने पन्ना नगर की कार्ययोजना के संबंध में निर्देश दिए कि नगर के समुचित विकास के साथ-साथ नगर की ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करने के साथ पर्यटन को बढावा देने वाली कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए। जिले में रोजगार का अभाव है लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए पर्यटन ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है जहां रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।

बैठक में बताया गया कि कलेक्टर संजय कुमार मिश्र द्वारा तैयार की गई पन्ना नगर अधोसंरचना विकास अन्तर्गत 330 करोड रूपये की कार्ययोजना तैयार की गई है, जिसमें 8 किलो मीटर फुटपाथ, किलकिला नदी में पुल, धरम सागर स्टेडियम, तालाबों का गहरीकरण एवं सौन्दर्यीकरण, नगरपालिका कार्यालय भवन, नगर के प्रमुख 8 चैराहों का सौन्दर्यीकरण, 7 पार्को का विकास, सीमावृद्धि वार्डो में अधोसंरचना विकास, नवीन बस स्टैण्ड, ट्रांसपोर्ट नगर, 210 कुंओं, 17 बावडी, 4.5 किलो मीटर रिंगरोड, ओपन जिम, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट आदि के कार्य प्रस्तावित किये गये हैं। इसी प्रकार नालों का निर्माण, बाल उद्यान, स्वीमिंग पुल, नगर के चारों ओर रिंगरोड बनाया जाना प्रस्तावित है। जिले की अन्य नगरीय निकायों की भी कार्ययोजना तैयार कर विकास कार्य प्रस्तावित किये गये हैं।

समीक्षा बैठक में उपस्थित जिले के प्रशासनिक अधिकारीगण।  

मंत्री श्री सिंह ने कहा कि किलकिला नदी के पानी के शुद्धिकरण के लिए प्लांट लगाया जाना आवश्यक है। श्रम विभाग द्वारा रेन बसेरा बनाया जाने का प्रस्ताव शासन को भेजें। उन्होंने कहा कि नगर के मंदिरों की जमीनों का संरक्षण किया जाए। मंदिरों का सौन्दर्यीकरण कार्य कराया जाए। ओपन एवं इन्डोर दोनों तरह के जिम तैयार किये जायें। दीनदयाल रसोई को पुन: प्रारंभ करने की कार्यवाही की जाये। नगर की प्रमुख सडकों के किनारे आकर्षक स्ट्रीट लाइट लगाई जाए। नगर के ऐतिहासिक एवं धार्मिक धरोहरों के संरक्षण का कार्य किया जाए। जिले में स्थापित होने वाले उद्योग धंधों से क्षेत्रीय विकास निधि से जिले में विकास कार्य किये जायें। बैठक में उपस्थित पर्यटक व्यवसायी बिन्नी राजा एवं रघुनंदन सिंह चुंडावत द्वारा सुझाव दिया गया कि राष्ट्रीय उद्यान का टिकट काउंटर पन्ना नगर में स्थापित किया जाये तथा सकरिया हवाई अड्डे को विकसित किया जाये। नगर के ऐतिहासिक इमारतों को आकर्षक ढंग से सौन्द्रयीकृत करने के साथ अन्य प्राकृतिक स्थलों का विकास किया जाये, जिससे पर्यटकों का आवागमन बढेगा। सम्पन्न हुई इस बैठक में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बालागुरू के, वनमण्डलाधिकारी द्वय श्रीमती मीना मिश्रा एवं गौरव शर्मा, अपर कलेक्टर जे.पी. धुर्वे, परियोजना अधिकारी शहरी विकास अभिकरण अरूण पटैरिया, मुख्य नगरपालिका अधिकारीगण, संबंधित अधिकारीगण, नगरपालिका पूर्व अध्यक्ष बाबूलाल यादव एवं  मोहनलाल कुशवाहा के साथ नगर के जनप्रतिनिधि, व्यवसायी, गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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Sunday, February 7, 2021

रात के सन्नाटे में कर सकते हैं वनराज के दर्शन

  •  पीटीआर के अकोला बफर में मिल रही नाइट सफारी की सुविधा 
  •  देखें, कैसी होती है रात के अंधेरे में जंगल की निराली दुनिया 

पन्ना टाइगर रिज़र्व के अकोला बफर का पर्यटन गेट। 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। दिन के उजाले में जंगल का भ्रमण अधिकांश लोगों ने किया होगा, लेकिन रात के सन्नाटे में जंगल की निराली दुनिया से रूबरू होने का मौका बमुश्किल ही मिल पाता है। लेकिन इस खूबसूरत अहसास को जीने और निकट से अनुभव करने की सुविधा पन्ना टाइगर रिजर्व के अकोला बफर क्षेत्र के जंगल में उपलब्ध है। यहां के खूबसूरत जंगल तथा यहां विचरण करने वाले वन्य प्राणियों विशेषकर बाघों का दीदार पर्यटक रात के सन्नाटे में भी कर सकते हैं।

 

उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से महज 16 किलोमीटर दूर पन्ना - अमानगंज मुख्य मार्ग के किनारे पन्ना बफर का अकोला गेट है, जहां से पर्यटक नाइट सफारी के लिए (शाम 6:00 बजे से रात 9:00 बजे तक) जा सकते हैं। वन परिक्षेत्राधिकारी अकोला बफर लालबाबू तिवारी ने बताया कि पर्यटकों को जंगल में नाइट सफारी कराने के लिए जंगल से लगे ग्रामों के युवकों को प्रशिक्षण दिलाकर गाइड बनाया गया है। इस बफर क्षेत्र में जिन लोगों ने भी नाइट सफारी का लुफ्त लिया है, उनके अनुभव बेहद उत्साहजनक हैं। टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे अकोला बफर का जंगल मौजूदा समय कई बाघों का जहां घर बन चुका है, वहीं एक बाघिन ने तो यहां शावकों को भी जन्म दिया है। यह बाघिन शावकों के साथ जंगल में विचरण करते अक्सर नजर आती है। यही वजह है कि कोर क्षेत्र की ही तरह अकोला बफर भी अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।

 रात के सन्नाटे में यहां की निराली दुनिया विस्मय विमुग्ध कर देने वाली रहती है। इस तरह का अहसास दिन के उजाले में मिल ही नहीं सकता। आकाश में छिटके तारों की तरह वन्य प्राणियों की टिमटिमाती आंखें, सन्नाटे के बीच जंगली जानवरों के कदमों की सुनाई देती आहट, उल्लू की धीमी किंतु रहस्यमय एवं भयभीत करने वाली आवाज और अचानक दौड़कर रास्ता क्रास कर जाने वाले चीतल को देखना यहाँ सहज बात है। जंगल के बीच से गुजरने वाले नाले के पास स्थित पेड़ के नीचे बेहद चौकन्ने होकर खड़े सांभर, उनके हाव-भाव और सतर्कता यह बताती है कि आसपास ही खतरा यानी कोई शिकारी मौजूद है। सांभरों की यह आशंका सच साबित होती है, कुछ ही दूरी पर वनराज चहल कदमी करते नजर आ गये। तारों से भरे आकाश के नीचे रात में जंगल के इस अहसास से यदि आप भी रूबरू होना चाहते हैं, तो पन्ना टाइगर रिजर्व के अकोला बफर की नाइट सफारी एक शानदार विकल्प है।

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Friday, February 5, 2021

पन्ना में चार हजार की रिश्वत लेते चिकित्सक गिरफ्तार

  •  फरियादी से ऑपरेशन के एवज में मांगी थी 5 हजार की रिश्वत
  •  चिकित्सक के निवास में लोकायुक्त की टीम ने की कार्यवाही  

गोल घेरे में रिश्वत लेने का आरोपी चिकित्सक तथा लोकायुक्त की टीम। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में आज दोपहर लोकायुक्त पुलिस सागर की टीम ने जिला चिकित्सालय पन्ना में पदस्थ डॉक्टर गुलाब तिवारी (सर्जन) को 4 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। चिकित्सक डॉक्टर तिवारी अस्पताल के निकट स्थित अपने शासकीय निवास में फरियादी मुकेश कुशवाहा से जब रिश्वत के पैसे ले रहे थे, उसी समय लोकायुक्त पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। इस कार्यवाही के बाद से स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मचा हुआ है।

चिकित्सक का शासकीय आवास जहाँ ट्रैप की कार्यवाही हुई। 

 लोकायुक्त सागर के उप पुलिस अधीक्षक राजेश खेड़े ने जानकारी देते हुए बताया कि फरियादी मुकेश कुशवाहा द्वारा शिकायत की गई थी कि फिशर बीमारी का ऑपरेशन करने के लिए डॉक्टर गुलाब तिवारी द्वारा उनसे 5 हजार रुपये की रिश्वत मांगी जा रही है। शिकायत सही पाए जाने पर शुक्रवार को आज उन्हें 4 हजार रुपये रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया है। श्री खेड़े ने बताया कि आरोपी चिकित्सक के विरुद्ध भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम की धारा 7 के तहत कार्यवाही की जा रही है। जानकारी के मुताबिक फरियादी मुकेश कुशवाहा लगभग 15 दिन पहले पाइल्स की बीमारी के चलते जिला चिकित्सालय में इलाज के लिए भर्ती हुए थे। जिसका इलाज जिला चिकित्सालय पन्ना के सर्जन डॉक्टर गुलाब तिवारी कर रहे थे। बताया गया है कि फरियादी मुकेश कुशवाहा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजना के तहत गरीबों को इलाज के उद्देश्य से बनाए गया आयुष्मान कार्ड भी था, जिसे फरियादी ने अपने इलाज के लिए लगाया भी था। बावजूद इसके डॉक्टर द्वारा आपरेशन के लिए रिश्वत मांगी जा रही थी। आखिरकार जब कोई चारा नहीं बचा और फरियादी परेशान हो गया तो वह त्रस्त होकर सागर लोकायुक्त में मामले की शिकायत की। जिसके बाद सागर लोकायुक्त की टीम के द्वारा ट्रैपिंग की कार्यवाही की गई और डाक्टर साहब रंगे हाँथ धर लिए गये। 

एक माह के भीतर ट्रैप की यह दूसरी कार्यवाही 


पत्रकारों को जानकारी देते हुए लोकायुक्त सागर के उप पुलिस अधीक्षक राजेश खेड़े। 

पन्ना जिले में रिश्वतखोरी की जड़ें इस कदर फ़ैल चुकी हैं कि अब भगवान कहे जाने वाले चिकित्सक भी इसकी चपेट में आ चुके हैं। एक माह के भीतर रिश्वत लेने के मामले में लोकायुक्त पुलिस की टीम ट्रैप की यह दूसरी कार्यवाही की है। मालूम हो कि इसके पूर्व अभी हाल ही में 20 जनवरी को प्रभारी तहसीलदार अजयगढ़ उमेश तिवारी को लोकायुक्त पुलिस ने एक लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा था। इसके वावजूद भृष्ट अधिकारी व कर्मचारी सबक लेने को तैयार नहीं हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि अच्छी खासी सम्मानजनक वेतन पाने वाले लोगों की नियत भी चंद रुपयों के लिए डोल जाती है। पन्ना जिले में रिश्वतखोरी के आरोप में संभवत: पहली बार किसी डॉक्टर पर ऐसी कार्यवाही की गई है। 

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