- संरक्षित न किया गया तो मिट जायेगा इसका वजूद
- अति दुर्लभ यह पेड़ रूंज डेम के डूब क्षेत्र में मौजूद
एक पत्ती वाला दुर्लभ पलाश का पेड़। फोटो - अरुण सिंह |
पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का जंगल वन्यजीवों के साथ-साथ विलुप्ति की कगार में पहुंच चुकी दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियों का भी खजाना है। लेकिन वनों की हो रही अंधाधुंध कटाई व विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति प्रदत्त यह अनमोल खजाना तेजी से उजड़ रहा है। यहां की रतनगर्भा धरती में पलाश का एक ऐसा दुर्लभ पेड़ मिला है, जिसे रेयरेस्ट ऑफ द रेयर कहा जाता है। यह पेड़ जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 15 किलोमीटर दूर विश्रामगंज गांव के निकट स्थित खेत की मेड पर कई दशकों से मौजूद है। यहां से गुजरने वाली रूंज नदी पर सिंचाई बांध का निर्माण चल रहा है और यह पूरा क्षेत्र रूंज डेम के डूब में आता है। जाहिर सी बात है कि समय रहते यदि इस दुर्लभ पेड़ को संरक्षित न किया गया तो इसका वजूद हमेशा के लिए मिट जायेगा।
हनुमंत सिंह |
बहुप्रचलित हिंदी की प्रसिद्ध कहावत "ढाक के तीन पात" सभी ने सुनी होगी क्योंकि ढाक यानी पलाश की टहनी में तीन पत्ते होते हैं। इस मुहावरे का अर्थ है सदा एक सा रहना, एक जैसी स्थिति जिसमें कोई बदलाव नहीं होता। लेकिन इस बात की जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी कि सिर्फ तीन पत्ते वाला ही नहीं बल्कि एक पत्ते वाला भी ढाक होता है। अब यह अलग बात है कि एक पत्ते वाला ढाक का पेड़ आमतौर पर कहीं नजर नहीं आता। जबकि तीन पत्ते वाले ढाक के पेड़ों का पूरा जंगल मिल जाता है। यही वजह है कि एक पत्ते वाले ढाक के पेड़ को अति दुर्लभ कहा जाता है। पन्ना जिले के विश्रमगंज गांव में स्थित इस विशिष्ट पेड़ की ओर अभी तक किसी का भी ध्यान नहीं गया। हाल ही में विगत दो दिन पूर्व रुंज डेम का कवरेज करने मैं जब यहां पहुंचा तो विश्रामगंज निवासी उन्नतशील कृषक व पर्यावरण प्रेमी हनुमंत सिंह ने इस अदभुत पेड़ के बारे में बताया। फलस्वरूप कुछ ग्रामीणों के साथ हम अरहर के उस खेत में पहुंचे जहां मेड पर एक पत्ती वाला पलाश का पेड़ लगा हुआ है।
अति दुर्लभ प्रजाति का यह पेड़ तकरीबन 25 फीट ऊंचा होगा तथा एक तरफ बांस के पौधे से घिरा हुआ है। पेड़ का तना काफी मोटा और उसका एक हिस्सा खोखला है, जिससे प्रतीत होता है कि यह पेड़ 50 से 100 वर्ष पुराना होगा। गांव के आदिवासियों का भी यही कहना है कि हम बचपन से इस पेड़ को इसी तरह से देखते आ रहे हैं। क्योंकि यह पेड़ पलाश के दूसरे पेड़ों से भिन्न था, इसलिए गांव के लोगों ने इसे बचा कर रखा, कोई क्षति नहीं पहुंचाई। लेकिन आदिवासी बहुल इस गांव के लोग अब चिंतित हैं कि यह दुर्लभ पेड़ बांध के पानी में डूब कर नष्ट हो जाएगा या फिर काट दिया जायेगा।
मालूम हो कि बांध के डूब क्षेत्र में राजस्व भूमि के साथ-साथ बड़ा क्षेत्र जंगल का भी है। तीन तरफ हरी-भरी पहाडय़िों से घिरे इस क्षेत्र में सागौन का घना जंगल है, जिसकी तेजी से कटाई हो रही है। वन अधिकारियों के मुताबिक डूब क्षेत्र में लगभग 48 हजार पेड़ों को काटा जाना है, जिनकी कटाई का ठेका हो चुका है तथा पेड़ तेजी से काटे जा रहे हैं। गौरतलब है कि स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट जबलपुर की पांच सदस्यीय टीम ने कुछ वर्षों पूर्व इस क्षेत्र के जंगल का सर्वे किया था। सर्वे टीम के सदस्य डॉ विजय पटेल और डॉ अंजना ने बताया कि जैव विविधता की दृष्टि से यह पूरा इलाका अत्यधिक समृद्ध है। उन्होंने बताया कि रूंज डेम के डूब में आने वाला क्षेत्र संकटग्रस्त वन्य प्राणी पैंगोलिन का हैबिटेट भी है। डॉ. पटेल ने बताया कि एक पत्ती वाला पलाश अत्यधिक दुर्लभ माना जाता है।
चित्रकूट के हर्रा गांव में भी मिला था यह पेड़
दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के डॉ. रामलखन सिंह सिकरवार ने तकरीबन 8 वर्ष पूर्व लिखा था कि चित्रकूट के जैव विविधता सर्वेक्षण के दौरान हमने एक पत्ती वाले पलाश को सतना जिले में मझगवां तहसील के मुटवा ग्राम व चित्रकूट जिले के हर्रा गांव में खोजा है। इस पेड़ की टहनी में तीन पत्ती की जगह एक पत्ती होती है। इसलिए स्थानीय लोग इसे "एक पत्ती दाई" कहते हैं। तांत्रिकों की ऐसी मान्यता है कि यह दैवीय वृक्ष है और इसके नीचे खजाना गड़ा होता है। जानकारों के मुताबिक पलाश का पेड़ प्रकृति का एक ऐसा उपहार है जो जीवन को न सिर्फ स्वस्थ बनाता है बल्कि अपने मोहक रंगों से उत्साह, उमंग और हमेशा आनंद में रहने की प्रेरणा देता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पलाश को राज्य पुष्प का दर्जा दिया है। पलाश को ढाक, टेसू, केसू तथा बुंदेलखंड में इसको छियूल भी कहते हैं।
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