Tuesday, March 31, 2020

बीते एक वर्ष पुराना पोस्ट जो आज भी प्रासंगिक


29 मार्च 2018 को आई.ए.एस. नवनीत शेखर जी ने यह पोस्ट  किया था, यह आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि  यह महिला जो जमीन पर बैठी हजारों लाठी लिए लोगों के सामने हाथ जोड़कर भीख़ माँग  रही है यह कौन है ? 
यह महिला जिला मिदनापुर की एडिशनल डीएफओ पुरबी महतो हैं और जिन्होंने कर्त्तव्य पालन के लिए आदिवासियों के सामने हाथ जोड़कर बैठ गई ।  मिदनापुर जिले के लालगंज आदिवासी क्षेत्र में एक परम्परा है जिसमें हाथों  में डण्डे-लाठी खुखरी , नुकीले हथियार लिए हजारों आदिवासी शिकार के लिए जंगल में जाते हैं और हज़ारों बेगुनाह मार दिए जाते हैं। इस बार भी नियत दिन हजारों आदिवासियों को महा शिकार के लिए निकलना था लेकिन वन विभाग की पूरबी  ने तय कर लिया था कि वह इसे रोकेंगी। उन्होंने पूरे प्रयास किये , महीनों पहले से जागरूकता अभियान चलाये , कानून का भय भी दिखाया लेकिन अंत दिन कुछ भी काम न आया।  पांच हजार से  अधिक आदिवासी  हथियार लेकर जंगल की ओर बढे जा रहे थे , पूरबी महतो ने माहौल भांपते हुए जनजाति के बुजुर्गों से एक भावनात्मक अपील की।  वह जमीन पर हाथ जोड़कर बैठ गयीं , और बहुत मार्मिक अपील की। उन्होंने कहा कि अपने हथियार उठाओ और मुझे भी मार दो , लेकिन जब तक मेरी सांस है , मैं आपको आगे नहीं जाने दूँगी।
पूरबी महतो की यह भावनात्मक अपील काम कर गई और बुजुर्गों के निर्णय पर सभी आदिवासी वापस लौट गये ।  दिल्ली से दूर इस नायिका को बहुत पहचान नहीं मिली , 29 मार्च के टेलीग्राफ अखवार में मुझे यह छोटी सी खबर दिखी तो मुझे लगा कि पूरबी महतो का यह कार्य एक महानायिका का कार्य है , आईये हम सब मिलकर उनको सलाम भेजें और इतना भेजें  की उन तक पहुँच जाये।
इस महानायिका पूरबी महतो को मेरा सलाम
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कुदरत के आगे महाशक्तिमान भी बौने साबित होने लगते हैं


रास्ता एक ही है...
क्लाईमेट क्राइसिस विनाश लाएगा। इस बात को तो तमाम लोग लगातार चिल्ला-चिल्लाकर कहते रहे हैं। लेकिन, यह विनाश कैसी-कैसी शक्लें अख्तियार करेगा, इसके बारे में शायद ही पहले से किसी ने सही-सही कल्पना की हो। कुदरत जब विनाश की पटकथा लिखती है तो महाशक्तिमान भी बौने साबित होने लगते हैं।
कोरोना वायरस पर लाइव अपडेट उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट वर्ल्डओमीटर के मुताबिक जिस समय मैं यह शब्द लिख रहा हूं, उस समय तक दुनिया भर में कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों की संख्या सात लाख 42 हजार से ज्यादा हो चुकी है। जबकि, 35 हजार 341 लोग इससे मारे जा चुके हैं। बीमारी से ठीक होने वालों की संख्या एक लाख 57 हजार के लगभग है। इसकी तुलना जरा बीस दिन पहले से कीजिए। दस मार्च को इस बीमारी से दुनिया भर में पीड़ित लोगों की संख्या एक लाख 18 हजार के लगभग थी और तब तक चार हजार 296 लोग इसके चलते मारे जा चुके थे।
फिलहाल अमेरिका में इससे संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख 44 हजार है और यहां पर 2600 लोगों की मौत हो चुकी है। इटली में इससे संक्रमित लोगों की संख्या 97 हजार के लगभग है यहां पर मरने वालों की संख्या दस हजार सात सौ के लगभग है। स्पेन में इससे संक्रमित लोगों की संख्या 85 हजार के लगभग है और यहां पर सात हजार से ज्यादा लोग इससे मारे जा चुके हैं। चीन में इससे संक्रमित हुए लोगों की संख्या 81 हजार के लगभग रही और यहां पर 33 सौ के लगभग लोग इस बीमारी से मारे गए हैं। बीमारी की भयंकरता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने यह मान लिया है कि अगर वो बहुत ही अच्छी तरह से भी काम करे तब भी एक से दो लाख लोगों की मौत इसके चलते हो सकती है।
ये सब तो बीमारी की भयावहता के आंकड़े हैं। लेकिन, यह सभी कुछ एक बहुत बड़ी सच्चाई की तरफ इशारा कर रहे हैं। बीते साल भर में दुनिया  को प्रभावित करने वाली जितनी भी घटनाएं हुई हैं, वो सभी पर्यावरण से संबंधित है। भयंकर गर्मियां, भयंकर सर्दियां, जंगलों में लगने वाली भयानक आग, भारी बारिश, तबाह करने वाला सूखा। सब कुछ एक साथ ही हमारे सामने दिखाई पड़ता है। इसके परिणाम भी ऐसे-ऐसे तरीकों से हमारे सामने आ रहा है जिसके आगे हॉलीवुड के पटकथा लेखकों की कल्पनाएं भी फीकी पड़ जा रही हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी यह मानना है कि हाल के कुछ सालों में इंसानों में आईं 70 फीसदी तक बीमारियों के संक्रमण वन्यजीवों से इंसानों में आए हैं। इबोला, बर्ड फ्लू, रिफ्ट वैली फीवर, सीवीयर एक्यूट रेस्पाइरेटरी सिन्ड्रोम यानी सार्स, मिडिल ईस्ट रेस्पाइरेटरी सिन्ड्रोम यानी मार्स, वेस्ट नील वायरस और जीका वायरस जैसी तमाम बीमारियां या संक्रमण वन्यजीवों से इंसानों के अंदर आए हैं। इसमें से इबोला जैसी बीमारी में मृत्यु की आशंका 50 फीसदी तो निपाह में मृत्यु की आशंका 60 से 70 फीसदी होती है। इनकी तुलना में कोरोना वायरस में मृत्यु की आशंका का प्रतिशत कम है लेकिन यह वायरस उनकी तुलना में बहुत ही ज्यादा संक्रामक है। इसी के चलते इसने कुछ ही महीनों में पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। पूरी दुनिया पर कोरोना का भूत चढ़ गया है।
इंसान हजारों तरीके से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में घुसपैठ कर रहा है। उसके पर्यावास को नष्ट कर रहा है। बहुत सारे वायरस इन वन्यजीवों के शरीर में रहते हैं। इसके चलते इन वन्यजीवों ने उन वायरस के खिलाफ अपने शरीर का प्रतिरोधक तंत्र भी विकसित कर रखा है। जब इन वन्यजीवों का खात्मा होने लगता है, उनकी संख्या कम होने लगती है, वन्यजीवों और इंसानों की दूरी कम होने लगती है तो वायरस को घुसने के लिए एक और शरीर मिलने लगता है। किसी भी वायरस के लिए सबसे अच्छा होस्ट मानव शरीर ही है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा शरीर मानवों के हैं। इसलिए अगर कोई वायरस मानव शरीर में रहने लायक बदलाव खुद में लाए तो इससे अच्छा उसके लिए कुछ भी नहीं होगा। बिना जीवित कोशिका के संपर्क में आए वायरस का अस्तित्व नहीं।
कोरोना वायरस ने अपने आपको ऐसे ही म्यूटेंट किया है। अब वह इंसान के शरीरों का मजा ले रहा है। वह हमारे अंदर अपना घर बना रहा है। एक बात और है। जिन बीमारियों से हम लगातार घिरे रहते हैं, उनसे निपटने का एक सिस्टम हमारे शरीर में भी रहता है। हमारा शरीर उन्हें पहचान कर उसे खतम कर देता है या फिर लड़ने की कोशिश करता है। लेकिन, जब कोई नया वायरस आता है तो हमारा शरीर उसके सामने निहत्था साबित होता है।
शरीर बिना हथियार के उसके सामने बेबस होता है। जाहिर है बहुत सारे लोग इसे अपनी प्रतिरोधक क्षमता से हरा देंगे। बहुत सारे लोगों ने ऐसा किया भी है। लेकिन, पहले से ही कमजोर, अन्य बीमारियों से पीड़ित लोग हो सकता है कि ऐसा नहीं कर पाए। इसके अलावा, पूरी दुनिया के स्वास्थ्य व्यवस्था पर यह इतना बड़ा बोझ है कि उसके आगे इसे पूरी तरह चरमरा ही जाना है।
बड़ा दुर्भाग्य है कि आज दुनिया के सामने जो भी परेशानियां, मुसीबतें और चुनौतियां हैं, उनका मुकाबला समानता, भाईचारे और समाजवाद की विचारधारा से ही किया जा सकता है। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें जो कुछ भी मौजूद हो, वह सबके लिए हो। वह सिर्फ कुछ लोगों की सुविधा के लिए नहीं हो। अफसोस कि ऐसे समय में भी यह दुनिया मुश्किल से दस हजार विशालकाय कंपनियों की इच्छा पर चलाई जा रही है। हर निर्णय जो लिया है, वह इन्हीं का पेट भरने के लिए होता है। बाकी अरबों लोगों के जीवन की परवाह किसे है।
जाहिर है कि ऐसे तो यह लड़ाई जीती नहीं जा सकती।
@ कबीर संजय की फेसबुक वॉल से साभार 


Monday, March 30, 2020

पन्ना जिले में पहुँचे ढाई हजार से अधिक प्रवासी मजदूर

  •  प्रशासन द्वारा की गई  भोजन, आवास, स्क्रीनिंग व परिवहन की व्यवस्था
  •  सामान्य पाये जाने वाले श्रमिकों को पहुँचाया जायेगा उनके गृहग्राम


बाहर से आये प्रवासी मजदूरों को पन्ना स्थित छात्रावास में ठहराने की व्यवस्था का द्रश्य। 

अरुण सिंह,पन्ना । राज्य को कोरोना वायरस संक्रमण रोग घोषित किए जाने के उपरांत देश में लॉकडाउन होने के उपरांत अन्य राज्यों एवं जिलों में फंसे श्रमिकों के जिले में आने का सिलसिला शुरू हो गया है। बाहर से आने वाले इन मजदूरों का पंजीकरण कर स्क्रीनिंग करने के साथ उन्हें जिला मुख्यालय पर भोजन एवं आवास की व्यवस्था की गई है। सभी श्रमिकों को उनके तहसील क्षेत्र भेजने के लिए 11 वाहन भी लगाये गये हैं। इन सभी श्रमिकों को जिले में स्थापित 40 छात्रावासों में रूकने की व्यवस्था की गयी है। अब तक जिले में  लगभग ढाई हजार श्रमिक  पहुंच चुके हैं।
कलेक्टर  कर्मवीर शर्मा ने बताया कि प्रत्येक श्रमिक का पंजीयन के दौरान उनकी सम्पूर्ण जानकारी दर्ज करने के साथ विशेष तौर से उनका स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जा रहा है। जिन श्रमिकों को खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ, गले में दर्द आदि  की शिकायत है, उनकी पूरी जानकारी दर्ज की जा रही है। इन सभी श्रमिकों की स्क्रीनिंग स्वास्थ्य विभाग के दल द्वारा की जा रही है। स्क्रीनिंग के उपरांत कोई भी श्रमिक संदेस्पद श्रेणी में आता है उसे आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था की गयी है। आने वाले श्रमिकों को उनके क्षेत्र में पहुंचाकर निकटतम छात्रावासों में  रखने की भी व्यवस्था की गयी है।
यह व्यवस्था शाहनगर, रैपुरा, पवई, कलेही, मोहन्द्रा, कुवंरपुरा, बनौली (सिमरिया तहसील), सिंगवारा, अमानगंज, सुनवानीकला, सलेहा, कल्दा, गुनौर, बिलधाडी, सरवारा, खोरा, अजयगढ, बरियारपुर, नरदहा, पन्ना नगर के विभिन्न स्थानों पर स्थापित 15 छात्रावासों एवं बडागांव देवेन्द्रनगर में  की गयी है। इन सभी श्रमिकों को अस्थाई आवास में रहने तक भोजन एवं उपचार की व्यवस्था जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है। कलेक्टर ने बताया कि सामान्य पाये जाने वाले श्रमिकों को उनके गृहग्राम तक पहुंचाने की व्यवस्था जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है।

अधिक मूल्य पर सामग्री बेंचने वालों पर होगी कार्यवाही- कलेक्टर

प्रदेश को कोरोना वायरस संक्रमित घोषित किए जाने के उपरांत देश में लागू किए गए लॉकडाउन के साथ प्रदेश में भी लॉकडाउन किया गया है। जिससे कोरोना वायरस के संक्रमण को रोककर मानव जीवन की सुरक्षा की जा सके। इस अवधि में अतिआवश्यक उपभोक्ता सामग्री एवं जीवन रक्षक वस्तुओं के क्रय-विक्रय को छूट प्रदान की गयी हैै। कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने जिले के व्यापारियों से अपील करते हुए कहा है कि जो भी आवश्यक सामग्री उपभोक्ताओं को बेंची जा रही है वह उच्च गुणवत्तायुक्त होना चाहिए। कोई भी सामग्री निर्धारित दर से अधिक मूल्य पर न बेंची जाए। किसी भी व्यापारी के यहां कम गुणवत्ता व अधिक मूल्य पर सामग्री विक्रय होते पाया जाता है तो उसके विरूद्ध आवश्यक वस्तु अधिनियम एवं धारा 144 के तहत कार्यवाही की जाएगी।

प्रवासी श्रमिकों की भोजन और आवास की करें व्यवस्था 


मजदूरों को उनके गृहग्राम भेजने हेतु बसों की व्यवस्था। 
 कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट एवं पादेन अध्यक्ष जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पन्ना कर्मवीर शर्मा द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अधिनियम की धारा 26 (2) में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए आदेश जारी किया है कि जो भी गरीब, निराश्रित एवं प्रवासी श्रमिक इत्यादि जिस जगह पर रह रहे हैं उनके भोजन एवं रहने की व्यवस्था उसी स्थान पर की जाए। यह व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायतों तथा नगरीय क्षेत्रों में नगरीय निकायों द्वारा की जाएगी। इस व्यवस्था के लिए नगरीय निकाय निकाय की निधि से तथा ग्राम पंचायतें पंच परमेश्वर राशि तथा तदर्थ समिति के फण्ड से करेंगी। इस कार्य के लिए यथासंभव समाज सेवियों, दानदाताओं से सहयोग प्राप्त किया जाए। यह जिम्मेदारी मुख्य नगरपालिका अधिकारी तथा मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत की होगी। यह कार्य ग्राम पंचायत में सरपंच, सचिव, आंगनवाडी एवं ग्राम रक्षा समितियों के माध्यम से कराया जाना है।
अनुविभागीय अधिकारी राजस्व अपने-अपने क्षेत्र में मण्डी सचिवों एवं व्यापारियों से चर्चा कर उपयुक्त अनाज की व्यवस्था करेंगे। जो भी व्यक्ति बाहर से आया है उसे अनिवार्य रूप से 14 दिनों की अवधि के लिए स्वास्थ्य विभाग के मानक प्रोटोकाल का पालन करते हुए होम क्वारेंटाइन स्थानीय प्रशासन द्वारा निर्धारित स्थान पर रखा जाए। जिन स्थानों पर संख्या अधिक है वहां निकटतम शासकीय भवन, स्कूल, हास्टल आदि में पुनर्वास शिविर स्थापित किये जायें । इनमें रूकने एवं भोजन की व्यवस्था की जाएगी। यह उत्तरदायित्व अनुविभागीय अधिकारी राजस्व तथा अनुविभागीय अधिकारी पुलिस का होगा। यह भी आदेशित किया गया है कि उद्योगों, दुकानों तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों सहित सभी प्रकार के नियोक्ता अपने श्रमिकों को नियत तिथि पर बिना किसी कटौती के लॉकडाउन अवधि तक पारश्रमिक अनिवार्यता भुगतान करेंगे। इसी प्रकार ऐसे प्रतिष्ठानों में बाहर से आए हुए श्रमिक कार्य कर रहे हैं उनके भोजन की व्यवस्था प्रतिष्ठान के मालिक को करनी होगी। इन निर्देशों का कडाई से पालन कराना श्रम विभाग, जिला उद्योग केन्द्र, जिला आपूर्ति नियंत्रक, जिला प्रबंधक नागरिक आपूर्ति निगम तथा जिला प्रबंधक मार्कफेड एवं संबंधित विभागों की होगी।
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नेतृत्व की अग्नि परीक्षा का समय है यह



बीबीसी ने आज कहा, ..."यह इतिहास में ऐसा पहला मौका है जबकि दुनिया भर में देशों की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं की काबिलियत की इस तरह जांच हो रही है। कोरोना के खिलाफ इस जंग में लीडरशिप ही सब कुछ है। मौजूदा राजनीतिक नेताओं को इस आधार पर आंका जाएगा कि इस संकट की घड़ी में उन्होंने कैसे काम किया और कितने प्रभावी तरीके से इसे काबू किया। यह देखा जाएगा कि इन नेताओं ने किस तरह से अपने देश के संसाधनों का इस्तेमाल कर इस महामारी को रोका...।"

बीबीसी जो कह रहा है वह दुनिया के करोड़ों लोगों की भावनाओं की भी अभिव्यक्ति है क्योंकि 20वीं शताब्दी में महामारियों की श्रृंखलाओं पर जीत के मद में डूबे मानव समुदाय के लिये कोरोना वायरस अकल्पनीय त्रासदी की तरह सामने आया है और इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब पूरी दुनिया एक साथ संकट में है।
जाहिर है, दुनिया भर के लोग इस कसौटी पर अपने नेताओं को कस रहे होंगे। अमेरिका में ट्रम्प को भी, जिन्होंने वैज्ञानिकों की चेतावनी के बावजूद कोरोना वायरस को चीनी वायरस कह कर इसका मजाक उड़ाया और अपने देश में इसके संक्रमण की सघनता की संभावनाओं से इन्कार किया।
आज अमेरिका कोरोना के सामने घुटनों के बल गिरा है और विशेषज्ञ कह रहे हैं कि उत्तर कोरोना दौर में, जब संकट के बादल छंटने लगेंगे, दुनिया में अमेरिकी प्रताप भी घटेगा। उसकी अर्थव्यवस्था, जो पहले से ही चिंताओं के घेरे में है, और डगमगा जाएगी। वर्त्तमान तो अपनी कसौटियों पर कस ही रहा है, इतिहास भी इस आधार पर ट्रंप का मूल्यांकन करेगा कि उन्होंने कोरोना संकट से निपटने में कितनी दूरदर्शिता और कैसी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। इतना तो तय है कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी चुनौतियां बढ़ गई हैं।
धर्म को राजनीति का पथ प्रदर्शक ही नहीं, नियंत्रक भी मानने वाले ईरान के नेताओं ने अपनी अदूरदर्शिता के कारण देश को गहरे संकट में डाल दिया है। धर्मस्थलों पर लोगों को भीड़ लगाने से मना करने वाले वैज्ञानिकों का मजाक उड़ाते हुए ईरानी नेताओं ने अपनी जनता को मस्जिदों में जुटने का आह्वान किया। लोगों ने तो इंतेहा ही कर दी जब उन्होंने मस्जिदों में न सिर्फ भारी भीड़ लगा दी, बल्कि अपने नेताओं के आह्वान से दस कदम आगे बढ़ कर सामूहिक रूप से मस्जिदों की दीवारों को चूमना शुरू कर दिया।
नतीजा, ईरान अपने ज्ञात इतिहास के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है और कोरोना संक्रमण के कारण वहां हो रही मौतों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। विश्लेषकों का मानना है कि इस संकट से उबरने के बाद ईरान की नई पीढ़ी अपने राजनीतिक तंत्र में धार्मिक नेताओं के निर्णायक हस्तक्षेप को नकारने की ओर बढ़ेगी।
कोरोना संकट दुनिया को धर्म की व्याख्या नए सिरे से करने की प्रेरणा तो देगा ही, लोगों के दैनंदिन जीवन में धर्म के हस्तक्षेप को कम करने की मानसिकता भी विकसित करेगा।
चीन में, जहां से यह संकट उत्पन्न हुआ, राजनीतिक तंत्र ने किस तरह इसका सामना किया यह अलग अध्याय है, लेकिन उसने इससे जुड़ी खबरों को शुरुआती तौर पर सेंसर किया, रहस्य की ऐसी कुहेलिका निर्मित की जिसने भ्रम का वातावरण बनाया। आने वाले समय में इन तथ्यों की परतें भी उधड़ेंगी ही और इतिहास की कसौटी पर सिर्फ चीन का सर्वोच्च राजनीतिक नेतृत्व ही नहीं, उसकी राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना भी होगी।
हालात से निपटने में सिंगापुर, कनाडा, साउथ कोरिया आदि कुछ देशों ने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, लेकिन शुरुआती लापरवाही और प्रशासनिक अदूरदर्शिता ने इटली सहित यूरोप के कई देशों को गहरे संकट में डाल दिया है।
यूरोपीय देश संसाधन संपन्न हैं, वहां का जनमानस एशियाई देशों के मुकाबले वैज्ञानिक चेतना से लैस है, तब भी अगर वहां संक्रमण का संकट इतना अधिक गहराया है तो इसकी जिम्मेदारियों से उनका राजनीतिक नेतृत्व बच नहीं सकता।

भारत में...???


संक्रमण की पहली घटना के दो सप्ताह बाद तक भी आलम यह था कि विपक्ष के राहुल गांधी की चेतावनी का मजाक उड़ाते हुए हमारे स्वास्थ्य मंत्री ने, जो खुद भी एक डॉक्टर हैं, आरोप लगया कि वे जनता में श्पैनिक क्रिएटश् कर रहे हैं।
यह तब, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को विश्वव्यापी महामारी घोषित कर तमाम देशों को अत्यधिक सतर्कता बरतने का निर्देश जारी कर दिया था।
केम छो ट्रंपश् के शानदार, चमकदार आयोजन की खुमारी में डूबे हमारे प्रधानमंत्री को उनके वैज्ञानिक सलाहकारों ने कैसी सलाहें दीं, हमें नहीं पता, लेकिन आसन्न संकट के प्रति सर्वोच्च राजनीतिक स्तर पर जो ढिलाई बरती गई उसका खामियाजा आज देश भुगत रहा है।
निस्संदेह, यह वक्त राजनीतिक बातों या रुझानों से ऊपर उठने का है लेकिन जब आप अचानक से 8 बजे शाम में 12 बजे रात से देशव्यापी लॉक डाउन की घोषणा करते हैं और देश भर में बिखरे लाखों दिहाड़ी मजदूरों और प्रवासियों के संबंध में एक शब्द नहीं बोलते तो यह ऐसी प्रशासनिक चूक है जिसका विश्लेषण भी राजनीतिक रुझानों से ऊपर उठ कर करना होगा।
यहां तक कि बांग्लादेश ने भी लॉक डाउन के संदर्भ में प्रवासियों के प्रति अधिक प्रशासनिक संवेदनशीलता और व्यवस्थागत दक्षता का परिचय दिया है। लेकिन भारत में हालात काबू से बाहर हैं।
महानगरों के बस स्टैंड्स और राष्ट्रीय उच्च पथों पर हजारों की संख्या में भटकते, भूख से बिलबिलाते और पुलिस की लाठियां खाते गरीबों का हुजूम इस तथ्य की तस्दीक करता है कि हमारा राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र आज भी मूलतः दमनकारी मानसिकता से ही संचालित है।
जब आप वंचितों के सवालों का सामना करने में असमर्थ होते हैं तो उनका दमन ही एकमात्र रास्ता लगता है आपको। चाहे नक्सल होने का आरोप लगा कर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि के गरीब आदिवासियों का भीषण दमन हो या आज अपने घरों की ओर भागते प्रवासी मजदूरों के साथ प्रशासनिक तंत्र का व्यवहार हो।
नरेंद्र मोदी को विरासत में ध्वस्त चिकित्सा तंत्र मिला था जिसे और अधिक कमजोर करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है। उनके 6 वर्षों के कार्यकाल में स्वास्थ्य क्षेत्र में ऐसी कोई नई उपलब्धि नहीं है जिसे रेखांकित किया जा सके।
दुनिया के अन्य संकटग्रस्त देशों के नेताओं की तरह मोदी जी भी कोरोना त्रासदी से देशवासियों को बचाने की मुहिम में लगे हुए हैं। जाहिर है, इतिहास भी उन पर अपनी आंखें गड़ाए है।
उत्तर कोरोना दौर में इटली, जर्मनी, चीन, अमेरिका और ईरान ही नहीं, भारत का राजनीतिक तंत्र भी इतिहास की कसौटियों पर होगा।

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Saturday, March 28, 2020

महिला ने बनाया देश का पहला कोरोना टेस्टिंग किट

  • पुणे की वायरॉलजिस्ट मीनल दाखवे भोंसले के जुनून और जज्बे को सलाम 
  •  प्रेग्नेंसी के आखिरी दिनों में प्रॉजेक्ट पर काम करते हुए किया कमाल 
  • अब हर दिन 15 हजार किट तैयार हो रहे हैं जो विदेशी किट के मुकाबले किफायती 
वायरॉलजिस्ट मीनल दाखवे भोंसले 

कुछ करने का जज्बा हो तो मुश्किलें हल हो जाती हैं। मीनल दाखवे भोंसले ने जो कर दिखाया है, उसे जानकर तो यह फिर से साबित हो रहा है। उन्होंने कोरोना वायरस की जांच के लिए ऐसा किट तैयार किया जो विदेशी किट के मुकाबले बेहद सस्ता है। खास बात यह है कि मीनल ने अपनी प्रेग्नेंसी के आखिरी महीनों में इस किट पर काम किया। देश का यह पहला टेस्टिंग किट कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। 

प्रॉजेक्ट पूरा होते ही दिया बच्ची को जन्म 

वायरॉलजिस्ट मीनल ने पुणे के एक डायग्नोस्टिक फर्म माइलैब डिस्कवरी सॉल्युशंस के प्रॉजेक्ट पर फरवरी में काम शुरू किया था। वह प्रेग्नेंट थीं। पिछले हफ्ते ही उन्हें बच्ची हुई। उन्होंने कहा, यह जरूरी था, इसलिए मैंने इसे चुनौती के रूप में लिया। मुझे अपने देश की सेवा करनी है।श् उन्होंने बताया कि उनकी टीम के सभी 10 सदस्यों ने कठिन परिश्रम किया है।प्रॉजेक्ट पूरा होने पर टेस्टिंग किट नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरॉलजी को 18 मार्च को सौंप दिया गया और अगले दिन ही मीनल को बेटी हुई।

विदेशी किट से सस्ता 

देश का पहला कोरोना वायरस टेस्टिंग किट गुरुवार को मार्केट में आ गया। टेस्टिंग किट से वायरस के संक्रमण के संदिग्धों की जांच में तेजी आएगी। मीनल ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में बताया, हमारा किट ढाई घंटे में टेस्ट रिजल्ट दे देता है जबकि विदेशी टेस्टिंग किट को छह से सात घंटे लगते हैं। हर माइलैब किट से 100 सैंपल टेस्ट किए जा सकते हैं और जांच का खर्च 1,200 रुपये आता है। यह रकम विदेशी किट के खर्चे (4,500 रुपये) के मुकाबले करीब एक चौथाई है।

हर दिन बन रहे 15 हजार किट 

माइलैब डिस्कवरी सॉल्युशंस के पास हर दिन 15 हजार टेस्टिंग किट तैयार करने की क्षमता है। पुणे के लोनावाला की फैक्ट्री की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर प्रति दिन 25 हजार किट तैयार किए जा सकते हैं। माइलैब ने पहले बैच में पुणे, मुंबई, दिल्ली, गोवा और बेंगलुरु के डायग्नोस्टिक लैब को 150 टेस्टिंग किट भेजा है। सोमवार को दूसरा बैच भी निकल जाएगा। पहले सरकार ने सिर्फ उन लोगों की जांच का फैसला किया था जो कोरोना केंद्र वाले देशों से लौटे थे। हालांकि, जब बहुत कम संदिग्धों की जांच के हवाले से सरकार की किरकिरी होने लगी तो अब अस्पताल में भर्ती सांस संबंधी गंभीर समस्या वाले सभी मरीजों की जांच का फैसला किया गया।
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Friday, March 27, 2020

कोरोना वायरस संक्रमित के पास आते ही देगा अलर्ट

                       * अच्छी खबर *

  • भारत के छात्रों ने बनाया बड़े काम का मोबाईल ऐप 
  • ऐप को तैयार कर प्रोटोटाइप सरकार के पास भेजा गया 


कोरोना वायरस के खिलाफ भारत समेत पूरी दुनिया जंग लड़ रही है। इस बीच, इस महामारी से बचने के उपायों को लेकर भी जद्दोजहद जारी है। भारत में कई स्तर पर प्रयोग हो रहे हैं। ताजा खबर हरियाणा के फरीदाहाद से है। यहां के जेसी बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, के छात्रों ने ऐसा ऐप बनाने का दावा किया जो कोरोना वायरस संक्रमित के पास आने पर अलर्ट कर देता है। इतना ही नहीं, यह ऐप यह भी बताता है कि किन-किन स्थानों पर कोरोना संक्रमण का खतरा है और यूजर को वहां जाने से बचना चाहिए। जानिए इस बेहद काम के ऐप के बारे में -

जियो-फेंसिंग तकनीक का उपयोग


जेसी बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्टार्ट-अप टीम में एमबीए के दो छात्रों ललित फौजदार तथा नितिन शर्मा ने जियो-फेंसिंग तकनीक का उपयोग करते हुए यह मोबाइल ऐप तैयार किया है। यदि कोरोना वायरस संक्रमित कोई व्यक्ति इस ऐप के 5 से 100 मीटर के दायरे में आता है तो यह अलर्ट मैसेज भेज देता है।

नाम दिया कवच, जानिए बनने के पीछे की कहानी


विश्वविद्यालय के एडजेंक्ट फैकल्टी अजय शर्मा के मुताबिक, इस ऐप को कवच नाम दिया गया है। ऐप अजय शर्मा की देखरेख में ही बना है। उनके मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 16 मार्च को कोविड-19 सोल्यूशन चौलेंज लॉच किया था और 31 मार्च तक कोरोना वायरस से बचाव के लिए इनोवेटिव समाधान बुलाए थे। इसी चौलेंज के तहत छात्रों ने काम किया और 10 दिन की अथक मेहनत के बाद ऐप तैयार कर लिया।

कब कर सकेंगे डाउनलोड


अजय शर्मा के मुताबिक, ऐप को तैयार कर इसका प्रोटोटाइप भारत सरकार के पास भेजा गया है। साथ ही ऐप को प्ले स्टोर पर उपलब्ध करवाने के लिए गूगल इंडिया को भी भेजा जा चुका है। केंद्र सरकार से अनुमति मिलने के बाद हर कोई इसे डाउनलोड कर सकेगा और कोरोना वायरस  जैसी महामारी से बच सकेगा।
# नई दुनिया से साभार

Thursday, March 26, 2020

कोरोना से बचने पन्ना के आदिवासी पहन रहे पत्ता मास्क

  •  मौजूदा संकट से उबरने पारंपरिक ज्ञान का कर रहे उपयोग 
  •  सामाजिक दूरी बनाते हुए पत्ता मास्क पहनकर करते हैं कृषि कार्य


जरधोवा गाँव में घर के सामने निश्चित दूरी में पत्ता मॉस्क पहनकर बैठे आदिवासी। 

अरुण सिंह,पन्ना। कोरोना वायरस के प्रकोप ने बेहद शक्तिशाली और साधन संपन्न कहे जाने वाले राष्ट्रों सहित समूची दुनिया को हिला कर रख दिया है। हर कोई इस जानलेवा अदृश्य वायरस की चपेट में आने से बचने के लिए उपाय कर रहा है। जरूरी काम होने पर जब किसी को घर से बाहर निकलना होता है तो वह बाजार में मिलने वाला तीन परतों वाला मास्क या छ 95 मास्क चेहरे के ऊपर चढ़ा कर निकलता है तथा अपने हाथ सेनेटाइज करता है। यही वजह है कि मॉस्क और सैनिटाइजर की दुकानों में भारी किल्लत हो गई है। आपसी संपर्क से फैलने वाली इस संक्रामक बीमारी के प्रति शहरी क्षेत्रों के साथ ही ग्रामीण इलाकों यहां तक कि जंगल के आसपास रहने वाले आदिवासी वनवासी भी सजग व सतर्क हो गये हैं।
संकट के इस दौर में शहरी इलाकों में रहने वाले लोग कोरोना वायरस से बचने के लिए जहां दुकानों में मास्क और सैनिटाइजर ढूंढते फिर रहे हैं, वहीं वन क्षेत्रों के रहवासी हमेशा की तरह इस आपदा के समय भी प्रकृति का ही सहारा ले रहे हैं। इस लिहाज से वे साधन विहीन और आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद सुरक्षा के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं। आदिवासी व बनवासी कोरोना वायरस से उपजे संकट का सामना अपने परंपरागत ज्ञान व प्राकृतिक संसाधनों के द्वारा कर रहे हैं। पन्ना जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र कल्दा पठार सहित जंगल से लगे ग्रामों में निवास करने वाले लोग विभिन्न प्रजाति के वृक्षों के पत्तों से मास्क बनाकर उनका उपयोग कर रहे हैं। समाजसेवी युसूफ बेग ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व से लगे ग्राम पंचायत जरधोवा के आदिवासी कोरोना वायरस के खतरे से वाकिफ हैं और वे इस समय सामाजिक दूरी बनाने के साथ-साथ पत्ता मॉस्क का भी बकायदा उपयोग कर रहे हैं। चूंकि यह समय खेती किसानी का है, रबी सीजन की फसलें खेतों में पककर कटने को तैयार खड़ी हैं। जिसे देखते हुए आदिवासी कोरोना के डर से घर में बैठने के बजाय पूरी सतर्कता और एहतियात बरतते हुए मुंह में पत्ते का मास्क लगाकर कटाई के कार्य में जुटे हुए हैं। आदिवासी कोरोना वायरस के संक्रमण को विफल करने के लिए अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को और मजबूत करने हेतु जंगली जड़ी बूटियों का भी सेवन कर रहे हैं।

पत्ता मॉस्क पहनकर फसल की कटाई करता आदिवासी युवक। 

आदिवासियों का कहना है कि कुछ ही दिनों पहले उन्होंने इस छुआछूत की बीमारी के बारे में सुना था। इससे बचने के जो उपाय बताए जा रहे हैं उनको हम अपना नहीं सकते, इसलिए हमारे पास यही रास्ता था कि हम पेड़ पौधों और जंगल की शरण में जाएं और यहीं से बचाव का साधन तैयार करें। अब हम सामाजिक दूरी बनाते हुए पत्तों का मास्क बनाकर पहन रहे हैं। पत्ते के इस मॉस्क की खूबी यह है कि एक बार पहनने के बाद आदिवासी फिर इसका उपयोग नहीं करते, दूसरा नया ताजा मास्क बनाकर पहनते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा नहीं रहता। मालुम हो कि आदिवासी समाज अपनी पुरातन परंपरा और पारंपरिक ज्ञान के बलबूते बीमारियों से लड़कर जीत हासिल करता रहा है। मौजूदा संकट के समय भी आदिवासी समाज प्रकृति के बीच रहकर कोरोना वायरस का मुकाबला करने के लिए प्रकृति का ही सहारा ले रहा है।
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Wednesday, March 25, 2020

विज्ञान इतना बौना साबित होगा,कभी सोचा न था

  • विज्ञान को प्रकृति की  चेतावनी है कोरोना वायरस 



जब हमने होश संभाला ,प्राइमरी स्कूल में प्रवेश लिया,तब से किसी न किसी रूप में विज्ञान पढ़ते रहे!सामान्य विज्ञान, से लेकर जटिलतम चिकित्सा विज्ञान तक का सफर तय किया!इस दौरान विज्ञान पर इतना अधिक भरोसा हो गया था कि लगता था विज्ञान इतना प्रभावी है कि वह अपने आप में एक शक्ति है,जिसके सामने किसी का भी टिके रह पाना असंभव है।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई परमाणु युद्ध ने इसकी विभीषिका और शक्ति से कुछ इस तरह परिचित कराया कि,विज्ञान की शक्ति कितनी डरावनी हो सकती है कि समस्त मानव जाति का विनाश एक पल में कर दे! इस विनाशक क्षमता के साथ साथ विज्ञान की सार्थक और उपयोगी उपयोग ने भी हमें अभिभूत किया,चाहे वह आधुनिक चिकित्सा विज्ञान हो,जिसमें व्यक्ति के शरीर के अंग मशीन की तरह बदले जा सकें,चाहे इंटरनेट का अपार विस्तार और क्षमता हो जिससे हम जो सोच सकें उसे कर भी सकें! धीरे धीरे समूची मानव जाति को लगने लगा कि,प्रकृति को विज्ञान नियंत्रित कर सकता है,और इस तरह के प्रयास सतत जारी रहे और हैं। लेकिन आज इस छोटे से अदृश्य कण जिसे विज्ञान वायरस के नाम से जानती है,और इस बार इसका नामकरण कोरोना किया है, इसके संभावित परिणामों ने विज्ञान को प्रकृति के सामने बौना साबित कर दिया है।
चाँद को दूषित करने के बाद,मंगल तक अपने पैर पसारने का प्रयास करने वाले विज्ञान को प्रकृति की यह चेतावनी है कि,जो अदृश्य है ,जो अपरिभाषित है,जो रहस्य है,उसे उसी अवस्था संतुलन में रहने दें,यदि ईश्वर के प्राकृतिक पर्यावरणीय संतुलन को क्षेड़ने का प्रयास करोगे तो नष्ट हो जाओगे, और एक अदृश्य सा छोटा सा कण ,समूची मानवता को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है। अब वक्त आ गया है जब समूचे विश्व की महाशक्तियों को अपनी विनाशकारी शक्ति वर्धन को छोड़ जन कल्याणकारी और समूचे विश्व के लिए हितकारी प्रयास करें!
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Tuesday, March 24, 2020

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने अनूठी पहल

  • वन्य प्राणियों के जरिये किया जा रहा जागरूक
  •  चीतल के झुण्ड व बाघों की तस्वीर दे रही संदेश


समूह में रहना अब खतरनाक, संदेश देता यह चित्र।

अरुण सिंह,पन्ना। कोरोना वायरस के संक्रमण पर प्रभावी रोक लगाने के लिये तरह-तरह के उपाय और तरीके अपनाये जा रहे हैं। इस जानलेवा वायरस के संक्रमण से बचने हेतु पन्ना जिले में आम जन मानस को जागरूक करने वन्य जीवों के चित्रों का सहारा लिया जा रहा है। इन चित्रों के माध्यम से लोगों को बताया जा रहा है कि बड़े समूह में एक साथ खड़े होना जीवन के लिये खतरनाक है, जबकि दूरी बनाकर रहना सुरक्षित है। जंगल में खड़े चीतलों के झुण्ड व रास्ते में कुछ फासले पर बैठे दो बाघों की तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है। ये दोनों ही तस्वीरें बाघों व वन्य प्राणियों के लिये प्रसिद्ध म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व की हैं।

 बाघ बता रहे कि सुरक्षित दूरी पर रहना अब जरूरी।

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले का बड़ा क्षेत्रफल आज भी वनों से आच्छादित है। जिले की एक बड़ी आबादी इन्हीं जंगलों व आस-पास निवास करती है। वन क्षेत्र से लगे इलाकों में निवास करने वाले लोगों का वन्य प्राणियों से गहरा नाता और जुड़ाव है। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुये ग्रामीणों को कोरोना वायरस से बचाव के लिये जागरूक करने हेतु वन्य प्राणियों के चित्रों का सहारा लिया जा रहा है ताकि वन क्षेत्र के आदिवासियों व वनवासियों को सुगमता से इस संकट के बारे में समझाया जा सके। इस अभिनव तरीके को ईजाद करने वाले राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य हनुमंत ङ्क्षसह (रजऊ राजा) ने बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अब शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी उत्पन्न हो गया है। पलायन करने वाले मजदूर बड़ी संख्या में महानगरों से अपने गाँव वापस लौटे हैं। जिसे देखते हुये ग्रामीणों को इस वायरस के खतरों से जागरूक किया जाना जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवाओं को देखते हुये यह और भी जरूरी हो गया है कि लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से स्वयं को बचायें। इसलिये ग्रामीणों को गाँव-गाँव जाकर बचाव के उपाय बताये जा रहे हैं, इसके लिये इन चित्रों का भी सहारा लिया जा रहा है। आपने बताया कि उन्होंने आदिवासी बहुल कई ग्रामों में जाकर ग्रामीणों को कोरोना वायरस के लक्षणों से अवगत कराया है तथा दूरी बनाकर रहने से वे इस बीमारी से कैसे सुरक्षित रहेंगे, इसके बारे में भी समझाईश दी गई है।
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यकीन मानिये घर में रहना बिलकुल भी बुरा नहीं

  •   अनावश्यक सड़कों में निकलकर क्यों बढ़ा रहे हैं मुसीबत
  •   बाहर मटरगश्ती करने के बजाय अपनों के साथ सुकून से रहें


 जिले की सीमा पर तैनात पुलिस बल वाहनों का निरीक्षण करते हुये।

अरुण सिंह,पन्ना। कुछ हफ्ते पूर्व तक हममें से किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि हजारों मील दूर चीन में उपजा एक मामूली सा अदृश्य वायरस सरहदों को पार करते हुये अपने देश में भी घुस आयेगा। लेकिन इस जानलेवा वायरस ने न सिर्फ अपने यहां दस्तक दे दी है अपितु समूची व्यवस्था और आम जन जीवन को भी तहस-नहस कर दिया है। देश में अब तक कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 528 हो चुकी है तथा 10 लोग काल कवलित हो चुके हैं। म.प्र. में भी इस वायरस ने अपना प्रकोप शुरू कर दिया है, जिससे निपटने के लिये शासन व प्रशासन द्वारा सभी जरूरी उपाय किये जा रहे हैं। लेकिन ये उपाय तभी कारगर होंगे जब हम सब स्थिति की गंभीरता को समझते हुये दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करें।
यह बहुत ही चिन्ताजनक बात है कि पन्ना जैसे पिछड़े और न्यूनतम चिकित्सा सुविधा वाले जिले में हम दस्तक दे चुकी महामारी को गंभीरता से नहीं ले रहे। पिछले तीन दिनों से जिला कलेक्टर सहित समूचा प्रशासन लोगों को आगाह कर रहा है कि अपने घरों में रहें। केवल इमरजेन्सी की स्थिति में ही अपने घर से बाहर आयें, लेकिन प्रशासन की अपीलों का उतना असर दिखाई नहीं दे रहा, जितना अपेक्षित है। शहर की सड़कों में मटरगश्ती करते युवक न सिर्फ दिखाई दे रहे हैं, अपितु बाइक में तीन-तीन लोग सवार होकर फर्राटे भर रहे हैं। आखिरकार कम उम्र वाले इन बच्चों को उनके परिजन घरों में क्यों नहीं रोक रहे, वे अनावश्यक रूप से शहर की सड़कों पर धमाचौकड़ी क्यों मचा रहे हैं? ये लोग खुद को तो मुसीबत में डाल ही रहे हैं अपने परिजनों व समाज के लिये भी खतरा बन रहे हैं।
मालुम हो कि घने जंगल और बेहतर पर्यावरण के चलते पन्ना को शान्ति का टापू कहा जाता है। विषम से विषम परिस्थितियों में इस शहर ने यहां की शान्ति और सुकून भरे वातावरण को बिगडऩे नहीं दिया, अपनी विशिष्ट पहचान को कायम रखा है। अब एक बार फिर हमारा इम्तिहान लेने के लिये एक बड़ी चुनौती सामने है, जिसका सबको एकजुट होकर मुकाबला करना है तभी हम अपने व इस खूबसूरत शहर के वजूद को बचा पायेंगे। यदि हमने एकजुट होने का संकल्प नहीं लिया और अनावश्यक रूप से बाहर निकलते रहे तो आने वाले दिनों में कैसे हालात बन सकते हैं, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह हमारे लिये सुकून की बात है कि अभी तक पन्ना जिले में एक भी कोरोना वायरस का संक्रमित मरीज नहीं मिला, लेकिन इससे लापरवाह हो जाने की जरूरत नहीं है। बेहद सजगता और चौकन्ना रहने की आवश्यकता है।
जिले के ग्रामीण अंचलों से जिस तरह की सूचनायें और जानकारियां मिल रही हैं, उसके मुताबिक काम की तलाश में महानगरों में जाने वाले मजदूर बड़ी संख्या में वापस लौटे हैं। इसके अलावा बाहर पढऩे वाले बच्चे व भ्रमण पर गये लोग भी वापस घर आये हैं। बाहर से आने वाले हर व्यक्ति की जाँच हो तथा वह किसी के सम्पर्क में न आये, यह सुनिश्चित किया जाना बेहद जरूरी है तभी हम संक्रमण की संभावनाओं को खत्म करने में सफल हो पायेंगे। आप सिर्फ घर पर रहकर अपनी और अपनों की जान खतरे में जाने से बचा सकते हैं। यकीन मानिये घर पर रहना बिलकुल भी बुरा नहीं है।
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WHO बोला- भारत पर निर्भर है कोरोना का भविष्य, पहले भी ऐसे दुश्‍मनों को हराया

WHO बोला- भारत पर निर्भर है कोरोना का भविष्य, पहले भी ऐसे दुश्‍मनों को हराया
WHO के निदेशक डॉ. माइकल जे रायन 
                   
 कोरोना वायरस को हराने में भारत समेत सभी देशों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। भारत में अभी तक कम्‍युनिटी ट्रांसमिशन की स्‍टेज नहीं आई है। इस बीच विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) के निदेशक डॉ. माइकल जे रायन ने कहा है कि कोरोना वायरस का भविष्य में कैसा असर रहेगा यह भारत जैसी बड़ी जनसंख्या वाले देशों की कार्रवाई पर तय होगा। उन्होंने कहा, श्चीन की तरह भारत बहुत बड़ी जनसंख्या वाला देश है। कोरोना वायरस के दूरगामी परिणाम इस बात पर निर्भर करेंगे कि बड़ी जनसंख्या वाले देश इसे लेकर क्या कदम उठाते हैं। यह बहुत जरूरी है कि भारत जनस्वास्थ्य के स्तर पर कड़े और गंभीर निर्णय अपनी लोगों के लिए लेना जारी रखे।
रायन ने कहा कि भारत ने दो मूक हत्यारों- स्मॉल पॉक्स और पोलियो के उन्मूलन में दुनिया का नेतृत्व किया। भारत में जबरदस्त क्षमता है, सभी देशों में जबरदस्त क्षमता है। जब समुदायों और समाजों को जुटाया जाता है, तो कोई भी लक्ष्‍य हासिल किया जा सकता है। बता दें कि भारत ने पोलियो से लंबी लड़ाई लड़ी और कुछ साल ही में भारत पोलिया मुक्‍त हो गया है। बता दें कि भारत में अभी कोरोना वायरस के 471 मामले सामने आए हैं। भारत में अभी यह महामारी सिर्फ दूसरे चरण तक पहुंची है। हमारी यह कोशिश है कि यह तीसरे चरण यानि कम्‍युनिटी ट्रांसमिशन (जहां पता ही नहीं चलता कि वायरस किसकी वजह से किसी शख्‍स में आया) तक नहीं पहुंचे। भारत पूरी ताकत के साथ कोरोना वायरस के साथ जंग लड़ रहा है और डब्‍ल्‍यूएचओ समेत सभी इसकी तारीफ कर रहे हैं।
भारत में अभी तक कोरोना वायरस के कहर को काफी हद तक रोक रखा है। दिल्‍ली में पिछले 24 घंटों में कोई भी कोरोना वायरस से संक्रमित मामला सामने नहीं आया है। हां, महाराष्‍ट्र में स्थिति कुछ चिंता जनक नजर आ रही है। वहां, मरीजों की संख्या 101 हो गई है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पुणे में तीन नए मामले सामने आए हैं और संतारा में एक मामले की पुष्टि हुई है। यहां अभी तक दो लोगों की मौत हो गई है। इधर, नॉर्थ-ईस्‍ट में भी अभी सिर्फ एक मामला मणिपुर में सामने आया है।
अमेरिका, यूरोप और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से अगर भारत की तुलना की जाए, तो अंतर साफ नजर आता है कि कोरोना वायरस की रफ्तार हिंदुस्‍तान में काफी धीमी है। इटली और अमेरिका में कोरोना वायरस के संक्रमितों की संख्‍या हजारों में पहुंच गई है। इसकी एक वजह भारत सरकार के द्वारा उठाए गए कुछ कड़े कदम भी हैं। इसके अलावा राज्‍य सरकारें भी बेहद सख्‍ती के साथ कोरोना वायरस के मद्देनजर नियमों का पालन न करने वालों से निपट रही हैं। विभिन्‍न राज्‍यों में सैकड़ों लोगों के खिलाफ लॉकडाउन का उल्‍लंघन करने पर एफआइआर दर्ज की गई है।
इस बीच अस्‍पतालों में हमारा मेडिकल स्‍टाफ भी पूरी शिद्दत के साथ मरीजों का इलाज करने में जुटा हुआ है। इसी का नतीजा है कि 25 के आसपास लोग कोरोना वायरस को मात देकर अस्‍पतालों से अपने घर पहुंच गए हैं। हालांकि, डॉक्‍टर्स और प्रशासन का अभी यही कहना है कि लोगों को दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए सतर्क रहने की जरूरत है।
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ध्वनि और वायरस



पिछले दिनों कोरोना से संबंधित राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी जी ने शंख, घण्टा आदि बजाने की बात कही। किसी ने इसे ढोंग कहा तो किसी ने विज्ञान, तहक़ीक़ात के लिये मैं भी कुछ अध्ययन करने लगा। मैंने अपने कुछ मित्रों से सम्पर्क किया तो पता चला कि यह एक विज्ञान है और चिकित्सा के क्षेत्र में भी अब ध्वनि का प्रयोग किया जाने लगा है। दिल की नसों में कैल्शियम जमा होने से ब्लॉक हो चुकी धमनी का सफल इलाज इंट्रा वैस्कुलर शॉकवेव लिथोट्रिप्सी पद्धति से होने लगा है। संगीत के सहारे ध्वनि के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी लोगों के पास तानसेन आदि संगीतज्ञों के द्वारा तो है ही।
वर्तमान स्थिति में उपजे इस सवाल पर गंभीरता से विस्तार से कार्य करने की आवश्यकता है।
ध्वनि मूल रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक तरंगों के रूप में गमन करती है। ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य यांत्रिक तरंगें होती हैं। ध्वनि तरंगें ध्रुवित (Polarised) नहीं हो सकती हैं। ध्वनि तरंगों के गमन के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। इन तरंगों में व्यतिकरण (interference) होता है। ध्वनि तरंग  (sound waves) वस्तुत यांत्रिक तरंगें होती हैं। जिन यांत्रिक तरंगों की आवृत्ति 20Hz से 2000Hz के बीच होती है, उनकी अनुभूति हमें अपने कानों के द्वारा होती है, और इन्हें हम ध्वनि के नाम से पुकारते हैं।
ध्वनि तरंगों का आवृत्ति परिसर-
अवश्रव्य तरंगें। इस  (infrasonic waves) : 20Hz से नीचे से आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंगें कहते हैं। इसे हमारा कान नहीं सुन सकता है प्रकार की तरंगो को बहुत बड़े आकर के स्रोत्रों से उत्पन्न किया जा सकता है।
श्रव्य तरंगें  (audible waves): 20Hz से 2000Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंगें कहते हैं। इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है।
पराश्रव्य तरंगें (ultrasonic waves): 2000Hz  से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहा जाता है. मुनष्य के कान इसे नहीं सुन सकता है. परंतु कुछ जानवर जैसे रू- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि, इसे सुन सकते है. इन तरंगों को गाल्टन की सीटी के द्वारा तथा दाब वैद्युत प्रभाव की विधि द्वारा क्वार्ट्ज के क्रिस्टल के कंपन्नों से उत्पन्न करते है. इन तरंगो की आवृत्ति बहुत ऊंची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है. साथ ही इनका तरंगदैधर्य छोटी होने के कारण इन्हें एक पतले किरण पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है।
पराश्रव्य तरंगें के उपयोग बहुत अधिक जगहों पर किया जाता है। जैसे- संकेत भेजने में, समुद्र की गहराई का पता लगाने में, कीमती कपड़ो, वायुयान तथा घड़ियों के पुर्जो को साफ़ करने में, कल-कारखानों की चिमनियों से कालिख हटाने में, दूध के अंदर के हानिकारक जीवाणुओं की नष्ट में, गठिया रोग के उपचार एवं मष्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने में। इस तरह पराश्रव्य तरंगों की उपयोगिता चिकित्सा विज्ञान में भी ली जाती है।
चूँकि पराश्रव्य तरंगें चमगादड़ जैसे जानवर सुन सकते है और कोरोना ग्रुप के कोविड-19 की उत्तपत्ति में चमगादड़ से मानव में प्रवेश की बात की गयी है तो तरंग पर कार्य होने की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जाना चाहिये।
इसलिये मेरी व्यक्गित राय है कि पशुओं के डकहा रोग और मनुष्यों में हो रहे कोरोना ग्रुप के कोविड-19 में कोई न कोई साम्यता है क्योंकि मिथिला में पशुओं के बीच होने वाले डकहा रोग को तरंगों के माध्यम से भगाने की परंपरा रही है। उम्मीद है चिकित्सा विज्ञान और तरंग विज्ञान पर कार्य करने वाले अध्येताओं का ध्यान इस ओर जायेगा।
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Monday, March 23, 2020

रविवार को सन्नाटा लेकिन सोमवार को फिर वही नासमझी

  •   जनता कर्फ्यू के दूसरे दिन सड़कों पर निकल पड़े लोग
  •   पुलिस के लाठी भांजने पर घूम रहे लोग भागे घर की ओर
  •   हिदायतों के बावजूद लापरवाही करने  पर प्रशासन हुआ सख्त


शहर के बड़ा बाजार क्षेत्र में चहल-पहल का दृश्य।

अरुण सिंह,पन्ना। भीषण आपदा में तब्दील हो चुके कोरोना वायरस के संक्रमण की चेन को रोकने के लिये रविवार को जिले के लोगों ने जनता कर्फ्यू  का समर्थन करते हुये शाम 5 बजे तक अपने घरों में दुबके रहे, फलस्वरूप पूरे दिन सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा। लेकिन शाम 5 बजते ही यह शान्ति भंग हो गई। अनेकों लोग अति उत्साह में थालियां बजाते हुये सड़कों पर निकल आये, जैसे कि उन्होंने कोई जंग जीत ली हो और अब उस जीत का जश्न मना रहे हैं। उन्हें स्थिति की गंभीरता का यदि अहसास होता तो वे घरों में रहकर ही थाली और ताली बजाते, लेकिन ऐसा नहीं किया।
रविवार का दिन शान्ति से बिना किसी परेशानी के गुजर गया, लेकिन सोमवार की सुबह ऐसा लगा जैसे लोगों का धैर्य जवाब दे गया है। दिन उगने के साथ ही लोग घरों से बाहर ऐसे निकल पड़े मानो अभी तक कैद में रहे हों और उन्हें यकायक बाहर निकलने का अवसर मिल गया हो। रविवार को शहर की जिन सड़कों व चौराहों पर सन्नाटा पसरा था, वहां सुबह 8 बजे से ही चहल-पहल दिखने लगी। बड़ा बाजार में तो लोग आम दिनों की तरह खरीदी करने निकल पड़े। प्रशासन को जब इसकी भनक लगी तो सख्ती का प्रदर्शन करना पड़ा। शहर के गाँधी चौक में पुलिस ने मटरगश्ती करने वाले दो पहिया वाहन चालकों पर जब लाठियां बरसाईं तो भगदड़ मच गई और देखते ही देखते सड़कें फिर सूनी नजर आने लगीं। सुबह बाइक में सवार होकर शहर का चक्कर लगा रहे युवकों से जब पूछा गया कि मनाही के बावजूद आप लोग इस तरह सड़क पर क्यों घूम रहे हैं तो उनका जवाब था कि यह देखने निकले हैं कि कोई दूसरा तो बाहर नहीं है।

जिले की सीमाओं को किया गया सील


 जिले की सीमाओं में तैनात पुलिस बल।

प्रदेश के पड़ोसी जिलों में कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुये पन्ना जिला प्रशासन द्वारा जिले की सीमाओं को सील कर दिया गया है तथा वाहनों की आवाजाही व यात्री बसों के संचालन पर भी रोक लगा दी गई है। कलेक्टर पन्ना कर्मवीर शर्मा ने जानकारी देते हुये बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण की जाँच हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में सुपरवाईजर एवं डॉक्टर की ड्यूटी लगाई गई है। चेक पोस्ट पर जाँच करने के लिये अधिकारी तैनात किये गये हैं।

महिलायें बना रहीं मास्क व सेनेटाइजर


 समूह की महिलाओं द्वारा लगाया गया मास्क व सेनेटाइजर का स्टाल।

जिले में मास्क व सेनेटाइजर की भारी किल्लत को देखते हुये इस समस्या से निपटने का वैकल्पिक तरीका खोज लिया गया है। इसके लिये जिले में सक्रिय महिला स्व सहायता समूहों को काम सौंपा गया है। समूह की महिलायें सिलाई मशीनों से जहां अच्छी गुणवत्ता वाले मास्क तैयार कर रही हैं, वहीं इनके द्वारा हर्बल व एल्कोहलयुक्त सेनेटाइजर भी बनाया जा रहा है। इन तैयार उत्पादों को जिला पंचायत परिसर में स्टाल लगाकर बिक्र्री के लिये रखा गया है, जहां पहुँचकर लोग अपनी जरूरत के अनुरूप मास्क व सेनेटाइजर खरीद रहे हैं।

अन्य राज्यों व जिलों से आने वाले व्यक्ति को जिले में नहीं मिलेगा प्रवेश



जिले के विभिन्न चैक पोस्टों व इलाकों का निरीक्षण कर अधिकारियों को निर्देश देते हुये कलेक्टर।


 कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी कर्मवीर शर्मा ने कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिये जिले की सीमाओं पर चेकपोस्ट स्थापित किये गये हैं। इन चेकपोस्टों पर राजस्व, पुलिस, चिकित्सक लगाये गये हैं। इसके अलावा जिले में लोगों की स्वास्थ्य जांच करने के लिये मोबाइल दल भी गठित किये गये हैं। यह दल बाहर से आने वाले व्यक्तियों की जानकारी मिलने पर उनका स्वास्थ्य परीक्षण करने के लिये व्यक्ति के घर तक पहुंच रहे हैं। कलेक्टर श्री शर्मा ने आज जिले के विभिन्न चेकपोस्टों का निरीक्षण किया। उन्होंने अजयगढ, अमानगंज, गुनौर, पवई, सलेहा तिराहा, शाहनगर आदि चेकपोस्टों का निरीक्षण किया।
निरीक्षण के दौरान उन्होंने गठित किये गये दलों को निर्देश दिये कि अन्य राज्यों एवं जिलों से पिछले एक माह के पूर्व आये हुये शत प्रतिशत लोगों की जानकारी तैयार करें। इन लोगों को घर में ही रहने के लिये कहा जाये। यदि इनमेें कोई भी सर्दी, जुखाम, खांसी, बुखार, सांस फूलना आदि के लक्षण पाये जाने वाले व्यक्ति की जानकारी चिकित्सा मोबाइल दल को दें। यह दल उन लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण करेगा। इन लोगों को उनके ही घरों में पृथक से एक कमरे में रहने की व्यवस्था कराई जाये। इस संबंध में गांव के लोगों भी जानकारी दी जाये कि यह बीमारी कैसे फैलती है जिससे उन व्यक्तियों को घर से बाहर निकलकर दूसरों के सम्पर्क में न आ पाये।
उन्होंने मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायतों को निर्देश दिये कि उनके क्षेत्र के स्व सहायता समूह द्वारा मास्क और सेनेटाइजर तैयार किया जा रहा है। उत्पादित सामग्री को प्रथम चरण में ड्यूटी में लगे अधिकारी/कर्मचारियों को उपलब्ध करायें। इसके उपरांत शासन द्वारा निर्धारित दल पर विक्रय के लिये मेडिकल स्टोरों अथवा स्वयं के कार्यालय में स्टॉल लगाकर आमजनता को उपलब्ध करायें। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों को इस बात की जानकारी दें कि लोग मुंह और नाक को रूमाल अथवा तौलिये से ढककर इस बीमारी से बचाव कर सकते हैं। वहीं सेनेटाइजर के स्थान पर बार-बार साबुन से हांथ को धोयें। घरों से अनावश्यक बाहर न निकलें। आवश्यकता होने पर कोई एक व्यक्ति ही घर से बाहर निकलकर सामग्री आदि क्रय कर सकता है।
इस अवसर पुलिस अधीक्षक मयंक अवस्थी ने निर्देश दिये कि चेकपोस्टों पर कडाई से निगरानी रखी जाये। जिससे बाहर से आने वाला कोई भी यात्री वाहन प्रवेश न करें। नाकों पर लिखित रूप में ड्यूटी लगाई जाये। इस कार्य में राजस्व अधिकारी आवश्यकतानुसार सहयोग प्रदान करेंगे। नगर में अनावश्यक लोगों को घूमने से रोके। बाजार में अतिआवश्यक वस्तुओं की दुकानें ही खुलवाई जायें। सम्पन्न हुये इस भ्रमण कार्यक्रम में राजस्व, पुलिस, चिकित्सा, ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी साथ रहे।

पन्ना विधायक ने आपदा फण्ड में दी एक दिन की वेतन 



कोरोना वायरस के बढ़ते संकट को दृष्टिगत रखते हुये पन्ना विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह  ने अपनी एक माह की वेतन आपदा फण्ड में प्रदान की है। उन्होंने जिलावासियों का हौसला बढ़ाते हुये कहा कि वे इस मुश्किल दौर में जनता के साथ हैं। आपने कहा कि कोरोना वायरस का संकट एक महामारी है, जिससे जीतने के लिये समझदारी और दायित्व बोध जरूरी है। यह महामारी सम्पर्क से फैलती है, इसलिये हमें अब अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। खुद भी संक्रमित नहीं होना है और न ही संक्रमण का संवाहक बनना है। आने वाले दिन हमारी समझ और इच्छा शक्ति का इम्तिहान लेंगे, जिसमें हमें खरा उतरना है। विधायक श्री सिंह ने सभी से अपील की है कि वे अपने घरों में रहें और शासन व प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पालन कर अपने को सुरक्षित रखें।
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Friday, March 20, 2020

ओ री गौरैया कुछ तो बता तू खो गई है कहां?

  • घर आँगन से गायब हो रही है खूबसूरत चिडिय़ा गौरैया

         

    •  विश्व गौरैया दिवस पर इस नन्ही चिडिय़ा को बचाने लें संकल्प

    नन्हीं चिडिय़ा गौरैया की चहचहाहट अब गुम हो रही । 
    अरुण सिंह,पन्ना। ओ री गौरैया कुछ तो बता तू खो गई है कहां, तेरे बिन सूना-सूना है घर अंगना हमरा यहां। घर-आंगन में दिन उगने के साथ ही नजर आने वाली नन्हीं चिडिय़ा गौरैया की चहचहाहट अब गुम हो रही है। आबादी के भीतर हमारे बीच रहने वाला यह खूबसूरत पक्षी आखिर अब कम क्यों नजर आ रहा है, गौरैया का कम होना कहीं बिगड़ते प्राकृतिक संतुलन की ओर इशारा तो नहीं है। हमें इन मिलते इशारों से समय रहते सबक लेकर गौरैया पक्षी के संरक्षण व उसे बचाने की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिये ताकि घर-आंगन की रौनक बनी रहे। आज विश्व गौरैया दिवस है जिसके बहाने गौरैया से जुड़ी यादें सोशल मीडिया पर भी लोग बड़े ही भावनात्मक अंदाज में साझा कर रहे हैं जो इस बात का संकेत है कि इस नन्ही चिडिय़ा का लोगों से कितना जुड़ाव है।
    उल्लेखनीय है कि 20 मार्च को हर वर्ष विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। तेजी के साथ गुम हो रहे इस पक्षी के संरक्षण व इसे बचाने के लिये लोगों में जागरूकता लाने के मकसद से यह पहल शुरू की गई है, लेकिन अभी भी अधिसंख्य लोग इस रचनात्मक पहल के प्रति गंभीर व संवेदनशील नहीं हैं। जरा सोचिये यदि हमारे घर व आंगन में हर समय फ ुदक-फ ुदक कर दाना चुगने व चहचहाने वाली गौरैया गुम हो जाये तो हमें कैसा लगेगा? इस नन्हें परिंदे की गैर मौजूदगी के क्या मायने होंगे तथा उसका हमारे जीवन और पर्यावरण पर क्या असर पड़ेगा? इन सारे पहलुओं पर चिंतन जरूरी हो गया है ताकि समय रहते वे सारे उपाय किये जा सकें जिससे गायब होती गौरैया को बचाया जा सके।

                                  

     मौजूदा समय गौरैया पक्षी अपने अस्तित्व को बचाने के लिये मनुष्यों और अपने आस-पास के वातावरण से जद्दोजहद कर रही है। ऐसे समय में हमें इन पक्षियों के लिये वातावरण को इनके अनुकूल बनाने में सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि इनकी चहचहाहट कायम रहे। गौरैया का कम होना एक तरह का इशारा है कि हमारी
    आबोहवा, हमारे भोजन और हमारी जमीन में कितना प्रदूषण फैल गया है। कीटनाशकों का अधाधुंध प्रयोग होने से पक्षियों पर क्या असर हो रहा है, इसकी कोई चिन्ता और फिक्र नहीं की जा रही है। पहले तो पेड़ कटते थे, लेकिन अब जंगल कट रहे हैं। पेडों की जगह बिजली के खम्भों, मोबाइल टावर्स तथा बहुमंजिली इमारतों ने ले ली है। इंसान ने बढ़ती आबादी के लिये तो जगह बनाई लेकिन न जाने कितने पशु - पक्षी इसके चलते बेघर हो रहे हैं, उनका दाना-पानी छिन रहा है। हमेशा झुण्ड में आबादी के अन्दर रहने वाले गौरैया पक्षी की तेजी के साथ घटती संख्या को हर कोई महसूस करता है लेकिन गौरैया को बचाने तथा उसके लिये अनुकूल वातावरण व आबोहवा तैयार करने के लिये बहुत ही कम लोग आगे आ रहे हैं। कहा जाता है कि किसी भी प्रजाति को यदि खत्म करना हो तो उसके आवास और उसके भोजन को खत्म कर दो। कहीं गौरैया पक्षी के साथ भी यही तो नहीं हो रहा। घास के बीज, अनाज के दाने और कीडे-मकोडे गौरैया का मुख्य भोजन है, जो पहले उसे घरों में मिल जाता था, लेकिन अब शायद ऐसा नहीं है। गौरैया चिडिय़ा बहुत ही संवेदनशील पक्षी है, मोबाइल फोन तथा उनके टावर्स से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन से भी उनकी आबादी पर असर पड़ रहा है। विकास के नाम पर प्रकृति और पर्यावरण से हो रहे खिलवाड़ के बावजूद प्रकृति ने हर जीव को विपरीत परिस्थितियों में जिन्दा रहने की क्षमता प्रदान की है, यही वजह है कि गौरैया की चहक आज भी हम सुन पा रहे हैं। लेकिन यह चहक हमेशा बनी रहे इसके लिये सजगता और संवेदशीनता जरूरी है।

    चिडिय़ों के बिना सब सूना

    परिंदे प्रकृति की अनुपम सौगात हैं, इनके बिना यह जग सूना और बेरौनक हो जायेगा। हरियाली और जंगल इन्हीं चिडिय़ों की देन है, ये परिंदे ही जंगल बनाते हैं। तमाम प्रजातियों के वृक्ष तो तभी उगते हैं जब कोई परिंदा इन वृक्षों के बीजों को खाता है और वह बीज उस पक्षी की आहारनाल से पाचन की प्रक्रिया से गुजरकर जब कहीं गिरता है तभी उसमें अंकुरण होता है। फलों को खाकर धरती पर इधर - उधर बिखेरना और परागण की प्रक्रिया में सहयोग देना इन्हीं परिन्दों का अप्रत्यक्ष योगदान है। कीट पतंगों की तादाद पर यही परिंदे नियंत्रण करते हैं। विश्व गौरैया दिवस पर आईये हम सब इस खूबसूरत चिडिय़ा को बचाने की शपथ लें। यह नन्ही चिडिय़ा कहीं गई नहीं है बस रूठ गई है। हमें उसे मनाना होगा देकर थोड़ा दाना-पानी प्यार से बुलाना होगा।
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    Wednesday, March 18, 2020

    दूसरे प्रांतों से आने वाली बसों के यात्रियों पर रहेगी नजर

    • जिले के सभी डॉक्टरों को दिया जायेगा कोरोना की रोकथाम का प्रशिक्षण
    • संदेहास्पद मरीजों के लिये आबादी से पृथक स्थित छात्रावास आरक्षित
    • कोरोना वायरस की रोकथाम हेतु आयोजित बैठक में कलेक्टर ने दिये निर्देश


     कोरोना वायरस के संबंध में आयोजित बैठक में कलेक्टर कर्मवीर शर्मा व प्रशासनिक अधिकारी।

    अरुण सिंह,पन्ना। कोरोना वायरस के संक्रमण पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिये पन्ना जिले में प्रशासन द्वारा हर संभव उपाय किये जा रहे हैं। इस सम्बन्ध में कलेक्टर कर्मवीर शर्मा की अध्यक्षता में स्वास्थ्य एवं प्रशासनिक अधिकारियों की आज बैठक सम्पन्न हुई। बैठक में कोरोना वायरस की रोकथाम के संबंध में उठाये गये कदमों के संबंध में विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। बैठक में उन्होंने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को निर्देश दिये गये कि जिले के निजी चिकित्सालयों एवं एकल चिकित्सा संस्थान चलाने वाले तथा समस्त शासकीय चिकित्सकों को कोरोना वायरस की रोकथाम, बचाव एवं जांच का प्रशिक्षण दिया जाये। उन्होंने कहा कि एनएमडीसी एवं मदर टेरेसा हॉस्पिटल में उपलब्ध एम्बुलेन्स वाहनों का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिये किया जाये। एनएमडीसी हॉस्पिटल में 10 बेड का एक सुरक्षित कमरा संदेहास्पद मरीजों के लिये सुरक्षित कर लिया जाये। जिला मुख्यालय पर मुख्य आबादी से पृथक स्थित छात्रावास में संदेहास्पद मरीजों को रखने के लिये 20 बेड आरक्षित किये जाये।
    उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्यवाही प्रत्येक जनपद क्षेत्र में की जाये। प्रत्येक जनपद मेें 10-10 बिस्तर वाले कक्ष छात्रावासों में आरक्षित करने की व्यवस्था की जाये। उन्होंने उत्तर प्रदेश से आने वाली बसों का अजयगढ बस स्टैण्ड पर आने वाले यात्रियों का स्वास्थ्य परीक्षण कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। यही व्यवस्था अन्य विकासखण्डों मेें की जाये। उन्होंने यह भी निर्देश दिये कि प्रत्येक होटल, धरम शाला आदि के मालिकों को निर्देश दिये जायें कि वे प्रतिदिन होटलों का शुद्धिकरण करें और विस्तरों को बदलें। बाहर से आने वाले पर्यटकों की जानकारी जिला चिकित्सालय को दें। नगर के व्यवसायियों के साथ बैठक आयोजित कर आवश्यक जानकारी उन्हें दी जाये। बैठक में निर्देश दिये गये कि कोरोना वायरस की रोकथाम एवं बचाव के कार्य में आयुष विभाग के डॉक्टरों एवं चिकित्सा सहयोगियों का सहयोग लिया जाये। जानकारी को जन-जन तक पहुंचाने के लिये आशा कार्यकर्ता, बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आंगनवाडी कार्यकर्ता आदि का सहयोग लिया जाये। सम्पन्न हुई बैठक में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्री बालागुरू के., अनुविभागीय अधिकारी राजस्व पन्ना श्री शेर ङ्क्षसह मीना, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एल.के. तिवारी एवं संबंधित अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित रहे।

    स्थानीय व्यवसायियों की होगी बैठक 

    जिले में कोरोना वायरस की रोकथाम एवं स्थानीय बाजार में आवश्यकता अनुसार उपभोक्ता वस्तुओं की उपलब्धता के संबंध में कलेक्टर कर्मवीर शर्मा की अध्यक्षता में 19 मार्च को प्रात: 11 बजे से कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में बैठक का आयोजन किया गया है। इस बैठक में नगर के सभी व्यापारियों से बैठक में उपस्थित रहने की अपेक्षा की गई है।जिले में कोरोना वायरस रोकथाम, बचाव एवं जांच संबंधी प्रशिक्षण जिले के सभी शासकीय एवं निजी चिकित्सकों को देने के लिये एक बैठक आयोजन दिनांक 19 मार्च को दोपहर 3 बजे से जिला कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में आयोजित की गई है। इस बैठक की अध्यक्षता कलेक्टर श्री कर्मवीर शर्मा करेंगे।

    धार्मिक स्थलों एवं भीडभाड में जाने से बचें

    अनुविभागीय अधिकारी राजस्व  शेर सिंह मीना ने अनुभाग क्षेत्र के नागरिकों से अपील करते हुये कहा है कि कोरोना वायरस का अभी तक क्षेत्र में एक भी प्रकरण प्राप्त नही हुआ है। पन्ना नगर के सभी धार्मिक स्थलों पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शहर, ग्राम एवं प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का बडी संख्या में आना होता है। जहां से लोग आ रहे हैं वहां कोरोना वायरस के संक्रमण की आंशका है। लोगों को सुरक्षा एवं स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुये आज दिनांक से अपने-अपने निवास स्थल पर ही धार्मिक प्रार्थनायें करें। धार्मिक स्थलों एवं भीडभाड वाले स्थानों पर बचने की अपील करते हुये कहा है कि यह व्यवस्था 31 मार्च तक के लिये लागू की गई है।
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    Monday, March 16, 2020

    कोरोना एक वास्तविक समस्या है, इसे मजाक नहीं बनाएं



    कोरोना एक वास्तविक समस्या है इस पर मजाक नहीं बनाये। इसे मजाक समझें भी नहीं। इस पर मजाक करने का वक्त भी नहीं है ये। चीन ने इस समस्या को पूरी गंभीरता से लिया। इसे रोकने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता था, उसने पूरी सख्ती से किया। नतीजा यह है कि चीन में कोरोना के नए केस आने कम हुए हैं। माना जा रहा है कि चीन ने इस पर काफी हद तक काबू पा लिया है। लेकिन, इटली और स्पेन इस समय इसके शिकंजे में फंस चुके हैं। कल के दिन इटली में तीन सौ 38 और स्पेन में सौ से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। कई और देशों का भी बुरा हाल है।
    इटली में पच्चीस दिन पहले कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दस से कम थी। लेकिन, पच्चीस दिनों में ही इसने पूरे देश को अपने शिकंजे में ले लिया है। स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। डाक्टरों और नर्सों की कमी पड़ चुकी है। रिटायर हो चुके डाक्टरों को भी काम पर बुलाया गया है।  लोगों को इलाज नहीं मिल रहा है। बेड नहीं मिल रहे हैं। इटली ने कुछ दिन पहले अपने कुछ जगहों को रेड जोन घोषित करके कोरेंटाइन किया था। माना जा रहा है कि ऐसे इलाकों से दस हजार से ज्यादा लोग चोरी-छिपे भाग गए। उन्होंने इस बीमारी को पूरे देश में फैला दिया।
    इस बीमारी के मोटा-मोटी चार स्टेज हैं। पहले चरण में यह बीमारी विदेशों से या किसी अन्य जरिए से आती है। कुछ लोगों में लक्षण मिलते हैं। इसके अगले चरण में यह बीमारी विदेशों से आने वाले लोगों के रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों में पहुंच जाती है। यहां आने के बाद तीसरा चरण शुरू होता है। जिसमें बीमारी कम्युनिटी स्प्रेड होती है। अब बीमारी पूरी की पूरी बारात में, सिनेमा हाल में, शापिंग माल, मेट्रो, रेल में फैलती है। तीसरे स्टेज में बीमारी बेकाबू हो जाती है। इसके बाद चौथा स्टेज आता है, जिसमें बीमारी महामारी का रूप ले लेती है।
    भारत में अभी तक 115 केस सामने आए हैं। हमारे यहां बीमारी अभी दूसरी स्टेज पर चल रही है। हम सभी लोग सांस रोककर बैठे हैं कि यह बीमारी तीसरे चरण में प्रवेश नहीं कर पाए। नहीं तो भारत जैसे देश में इसे रोकना लगभग नामुमकिन जैसा ही साबित होने वाला है। सरकार चाहती तो लगभग डेढ़ महीने पहले तमाम कदम उठाकर इसे देश में आने से रोक सकती थी। लेकिन, सरकार ने वह समय गंवा दिया। हमारे यहां के लोगों को गोबर-गोमूत्र और अपनी जाहिलियत पर कुछ ज्यादा ही भरोसा है। इसलिए गोबर और गौमूत्र पार्टियों का भी आयोजन किया जा रहा है।लेकिन, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत नहीं है। सबसे ज्यादा जरूरी है कि इस बीमारी को आप लोग गंभीरता से लें। जरूरी होने पर ही घरों से निकलें। बीमारी की चपेट में आने से बचें और दूसरों को भी बचाएं।
    सचमुच बड़ी विडंबना है कि जिस देश में पचास करोड़ से ज्यादा लोगों को साफ पानी और साबुन नहाने के लिए भी मयस्सर नहीं होता, उनसे बार-बार हाथ धोने को कहा जाता है। लॉकडाउन होने की स्थिति में सड़कों पर सोने वाले उन करोड़ों लोगों का क्या होगा, जिनके पास घर नहीं है। वे कहां खुद को लॉकडाउन करेंगे। कोई है, जो इन सवालों पर सोचने की जहमत ले। खैर, कोरोना वायरस का मजाक न बनाएं। यह एक वास्तविक समस्या है। इसकी फिलहाल कोई दवा नहीं है। शिकार बनने पर आपकी प्रतिरोधक क्षमता को ही इसे हराना पड़ेगा। दुनिया भर की दवा कंपनियां इसका इलाज खोजने में लगी भी हैं। लेकिन, इलाज खोजा भी गया तो हम जैसे गरीबों तक पहुंचने लायक सस्ता होने में उसे बहुत वक्त लग जाएगा।
    , कोरोना वायरस को लेकर सप्ताह बेहद महत्वपूर्ण है। इस सप्ताह अगर बीमारी काबू  में नहीं आती है तो इसके बेहद तेजी से बढ़ने की आशंका है। खासतौर पर इटली, स्पेन और फ्रांस के ट्रेंड ये बताते हैं। ऐसे समय में सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है। सरकार जो कर रही है। उसे करने दें। लेकिन, खुद भी अपना और अपने परिवार का खयाल रखें। जरूरत न हो तो घर में ही रहें। जरूरी सावधानी बरतें। नियमित अंतराल पर साबुन और पानी से बीस सेकेंड तक हाथ धोते रहें। हैंड सैनीटाइजर का इस्तेमाल करें। अपने चेहरे को छूने से बचें। सर्दी-जुकान से पीड़ित व्यक्ति से कम से कम एक मीटर की दूरी बनाकर बात करें। खुद को अपने घर में ही कोरेंटाइन कर लें। किताबें पढ़ें। बच्चों के साथ समय बिताएं। अच्छी फिल्में देखें। फुरसत नहीं होने के चलते जिस काम को कई सालों से नहीं कर पाए, घर पर किया जाने वाला वो काम करें।
    याद रखें कि अगले सात दिन बेहद महत्वपूर्ण हैं। सवाल यह नहीं है कि बीमारी से कितने लोग मरते हैं या कितने लोगों को इलाज की जरूरत पड़ती है। यह बीमारी इतनी तेजी से फैलती है कि स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से चरमरा जाती हैं। सभी लोग खासतौर पर अपने माता-पिता और घर के बुजुर्गों का ध्यान रखें। उन पर यह खतरा हमसे ज्यादा है।
    @ कबीर संजय की फेसबुक वॉल से
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    Saturday, March 14, 2020

    होली के समय इस बार सुर्ख नहीं हुये पलाश के पेड़

    • मार्च के महीने में होली से पहले फूलों से लद जाते थे पेड़
    • पलाश के फूलों पर हुआ है बदले मौसम का सबसे अधिक असर


    पन्ना शहर के निकट इंद्रपुरी कॉलोनी में पुष्प विहीन उदास नजर आते पलाश के पेड़। ( फोटो - अरुण सिंह )

    अरुण सिंह, पन्ना। रंगों के पर्व होली और पलाश के सुर्ख फूलों का पुरातन काल से गहरा नाता रहा है। होली में पलाश के फूलों से निर्मित प्राकृतिक रंग के उपयोग की समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र में परंपरा रही है। लेकिन इस वर्ष होली में न तो पलाश के सुर्ख फूल नजर आये और न ही इन फूलों से बने रंग। होली के समय इस बार पलाश के पेड़ सूने और उदास दिखाई दिये। हर साल मार्च के महीने में होली के समय रंग-बिरंगे फूलों से पलाश के पेड़ लदे होते थे, लेकिन इस साल सूने पड़े हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मौसम का सबसे अधिक असर पलाश के फूलों पर हुआ है। उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प अमूमन होली के समय अपने शबाब पर होता था, लेकिन इस बार सतपुरा से लेकर विंध्यांचल के जंगल तक सूने दिख रहे हैं। विशेषज्ञ इसकी वजह असामान्य मौसम को मान रहे हैं और इसे गंभीर जलवायु परिवर्तन का संकेत भी बता रहे हैं।
     उल्लेखनीय हैं कि पलाश में अमूमन फरवरी के अंत तक फूल आते हैं और जून तक इसके बीज तैयार हो जाते हैं। होली के समय इन फूलों को चुनकर इससे प्राकृतिक रंग बनाया जाता है। पलाश के फूल चुनकर आदिवासी बाजार में बेजते हैं। इसके अलावा फूलों की डाल पर लाह नामक पदार्थ भी इकट्ठा होता है जिसकी बाजार में कीमत 300 से 400 रुपए किलो होती है। इसका उपयोग गहने बनाने और दवा उद्योग में होता है। विभिन्न भाषाओं में पलाश को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे हिंदी में टेसू, केसू, ढाक या पलाश, गुजराती में खाखरी या केसुदो, पंजाबी में केशु, बांग्ला में पलाश या पोलाशी, तमिल में परसु या पिलासू, उड़िया में पोरासू, मलयालम में मुरक्कच्यूम या पलसु, तेलुगु में मोदूगु, मणिपुरी में पांगोंग, मराठी में पलस और संस्कृत में किंशुक नाम से जाना जाता है। पलाश को वैज्ञानिक भाषा में ब्यूटिया मोनोस्पर्मा कहते हैं। मार्च माह में पूरा पेड़ सिंदूरी यानि लाल रंग के फूलों से लद जाता है और मीलों दूर से यह अपनी मौजूदगी की सूचना देता है। इसी वजह से इसे फ्लेम ऑफ़ फौरेस्ट यानि जंगल की आग भी कहते हैं।
    पलाश भारतबर्ष के सभी प्रदेशों और सभी स्थानों सहित बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बहुतायत से पाया जाता है। पन्ना के जंगलो में भी पलाश की बहुलता है। पन्ना शहर के इंद्रपुरी कॉलोनी में दर्जनों की संख्या में पलाश के पेड़ आज भी बचे हुये हैं। बीते साल ये पेड़ इस मौसम में सुर्ख लाल नजर आ रहे थे लेकिन इस साल बेरौनक और उदास से खड़े हैं। अनगिनत खूबियों और गुणों वाला यह वृक्ष मैदानों और जंगलों ही में नहीं, 4 हजार फुट ऊँची पहाड़ियों की चोटियों तक पर किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है। वृक्ष बहुत ऊँचा नहीं होता, मझोले आकार का होता है। क्षुप झाड़ियों के रूप में अर्थात् एक स्थान पर पास पास बहुत से उगते हैं। पत्ते इसके गोल और बीच में कुछ नुकीले होते हैं जिनका रंग पीठ की ओर सफेद और सामने की ओर हरा होता है। पत्ते सीकों में निकलते हैं और एक में तीन तीन होते हैं। इसकी छाल मोटी और रेशेदार होती है। लकड़ी बड़ी टेढ़ी मेढ़ी होती है। कठिनाई से चार पाँच हाथ सीधी मिलती है। इसका फूल छोटा,अर्धचंद्राकार और गहरा लाल होता है। फूल को प्रायः टेसू कहते हैं और उसके गहरे लाल होने के कारण अन्य गहरी लाल वस्तुओं को लाल टेसू कह देते हैं। फूल फागुन के अंत और चैत के आरंभ में लगते हैं। उस समय पत्ते तो सबके सब झड़ जाते हैं और पेड़ फूलों से लद जाता है जो देखने में बहुत ही भला मालूम होता है। फूल झड़ जाने पर चौड़ी चौ़ड़ी फलियाँ लगती है जिनमें गोल और चिपटे बीज होते हैं।

    उपयोगी और औषधीय गुणों से होता है भरपूर 

    पलास के पत्ते प्रायः पत्तल और दोने आदि के बनाने के काम आते हैं। राजस्थान और बंगाल में इनसे तंबाकू की बीड़ियाँ भी बनाते हैं। फूल और बीज ओषधि रूप में उपयोग होते हैं। वीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से है। फूल को उबालने से एक प्रकार का ललाई लिए हुए पीला रंग भी निकलता है जिसका खासकर होली के अवसर पर उपयोग किया जाता है। फली की बुकनी कर लेने से वह भी अबीर का काम देती है। छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है। जड़ की छाल से जो रेशा निकलता है उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं। दरी और कागज भी इससे बनाया जाता है।  मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं। शरीर में घाव होने पर इसके छिलके को कुचलकर लगाने से घाव भर जाता है। बकले के अन्दर के गूदे को उबालकर पीने से छाले मिट जाते हैं और दाँत का दर्द ठीक हो जाता है।  इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है। पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता। यह वृक्ष हिंदुओं के पवित्र माने हुए वृक्षों में से हैं जिसका उल्लेख वेदों तक में मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इससे प्राप्त लकड़ी से दण्ड बनाकर द्विजों का यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है।
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    Friday, March 13, 2020

    तीन शावकों के जन्म से फिर गुलजार हुआ पन्ना

    •   अपने शावकों के साथ पन्ना के जंगल में दिखी बाघिन पी-234
    •  नये मेहमानों के आने से पन्ना टाईगर रिजर्व में खुशी का माहौल


     पत्थर की खखरी के ऊपर आराम फरमाते नन्हे शावक।

    अरुण सिंह,पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व से फिर खुशखबरी आई है। यहां बाघिन पी-234 ने तीन नन्हे शावकों को जन्म दिया है। नये मेहमानों के आने से पन्ना टाईगर रिजर्व में खुशी का माहौल है। क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने जानकारी देते हुये आज बताया कि बाघ अनुश्रवण दल व रेन्ज आफीसर द्वारा बाघिन पी-234 को अपने नन्हे शावकों के साथ चहल कदमी करते हुये देखा गया है।
    उल्लेखनीय है कि पन्ना टाईगर रिजर्व में जन्मी व पली-बढ़ी बाघिन पी-234 बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत मार्च 2009 में कान्हा टाईगर रिजर्व से लाई गई बाघिन टी-2 की संतान है। बाघिन टी-2 को पन्ना टाईगर रिजर्व की सफलतम रानी कहा जाता है, क्योंकि यहां जन्मे बाघों के कुनबे में एक तिहाई कुनबा अकेले इसी बाघिन का है। बाघों की वंशवृद्धि में कान्हा की बाघिन टी-2 का अभूतपूर्व योगदान रहा है। इसी बाघिन की तीसरे लिटर की संतान बाघिन पी-234 है, जिसने अपने तीसरे लिटर में तीन शावकों को जन्म देकर पन्ना टाईगर रिजर्व को फिर गुलजार कर दिया है। इन नये मेहमानों के आगमन से पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़कर 55 के भी पार हो गई है।
    क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व श्री भदौरिया ने बताया कि बाघ अनुश्रवण दल जब वन परिक्षेत्र में भ्रमण कर रहा था, उसी दौरान बाघिन पी-234 अपने तीन नन्हे शावकों के साथ चहल कदमी हुये देखी गई। वन कर्मचारियों ने खुशी के इन क्षणों का वीडियो भी बनाया है। तीनों नन्हे मेहमान पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे पन्ना बफर के जंगल में बनी पत्थर की खखरी के ऊपर काफी देर तक आराम फरमाते रहे। इन शावकों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वे लगभग 3 माह के हो चुके हैं।
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    Wednesday, March 11, 2020

    Religion: The Crimes Against Nature and the Environment



    “Friends, today I am going to talk first about religion and the crime that it has committed against humanity, nature, environment, ecology.


    “Religion’s crimes are many, innumerable, but the worst crime is that it has placed man at the center of existence. It has given the idea to the whole of humanity that the whole existence is for your use: you are God’s greatest creation.
     “A man-oriented vision of existence is bound to create catastrophes in nature, it is bound to destroy the ecological balance, it is bound to give man the strange idea of an ego.
    “The Bible says God created man in his own image, and man has believed it. Just look at your face in the mirror: is it God’s face in the mirror?
    “The truth is that Christianity has been befooling humanity. It is not that God made man in his own image, it is man who has made God in his own image. And all the scriptures of all the religions have given man a strange licentiousness over nature, over animals and birds. That has culminated in destroying many species of animals, birds. It has destroyed millions of trees for no reason. Every second that passes, one football ground is cleaned of all greenery, all trees.
    “When India became independent, it had thirty-three million hectares of trees. Today it has only eleven million hectares.
    This man-centered view begins with Genesis, in the Bible. In Genesis it says: ‘Be fruitful and multiply, and replenish the earth and subdue it; and have dominion over the fish of the sea and over the fowl of the air and over every living thing that moveth upon the earth.’
    “This is the ultimate crime that has made man violent against nature, given him the freedom to conquer innocent animals, to destroy them. It has made man barbarous.
    “Now we are suffering because all those trees have been destroyed and more are being destroyed continuously. There is a certain balance in existence. These trees are your brothers and your sisters, there is no question of dominion. You exhale carbon dioxide, they inhale it. They exhale oxygen, you inhale it. Such a deep relationship…You cannot exist without trees, nor can trees exist without you; your existence is so deeply rooted in each other….
    “Man has killed so many beautiful species of animals just for his food, has killed so many birds – whole species have disappeared.
    “In India, the lion was the national animal, but stupid hunters – particularly the British hunters, who have been in power in this country for almost three hundred years – destroyed all the lions, the most beautiful animal in existence. Such a dignity, such power, such grandeur! And what were they doing? – just decorating their sitting-rooms with the stuffed heads of the lions.
    “Today the whole species is on the verge of disappearing. There are not more than two dozen lions in the whole of India. The Indian government had to change its national animal from the lion to the tiger, because lions are going to disappear. When a lion dies, it is never replaced.
    “And it is not only the British Christians who destroyed them; even Hindu monks sit on a lion’s skin. You will not believe how stupid people can be.
    Religion seems to give a certain stupidity to people who were born intelligent.
    “The Hindu monks sit on the skin of a lion – and of course, one lion has to be killed for one monk – and the ideology that they preach is that by sitting on the lion’s skin you can remain celibate. My foot! Stupidity has no limit.
    “What does the lion’s skin have to do with your celibacy? Lions are not celibate; one has never heard about a lion who was celibate. What scientific proof is there? I don’t know a single monk who is a celibate, and I have known thousands of monks – Hindus, Jainas….
    “And because Genesis says, “Be fruitful” – that means populate the earth more and more – “and multiply” – not even double, but multiply – that’s why the Christian pope and the bishops and the cardinals and the priests are all against birth control: because it goes against Genesis, the very foundation of their religion.
    “So this whole population explosion, which is going to kill half of humanity through utter starvation, who is responsible for it? Genesis – and these stupid bishops and popes, and cardinals and priests.
    You will be surprised to know that when Ronald Reagan came to power, he immediately cut the budget for controlling the poor countries’ population, because he was a fundamentalist, fascist Christian. Since he has been in power, he has fulfilled the statement of Genesis: ‘Be fruitful and multiply.’
    “When India became independent, it had only four hundred million people. Now it has nine hundred million people, and by the end of this century it will be one billion human beings. After forty years it will double: there will be two billion people in India. From where are you going to get food?
    “Right now, half the country is starving, and more than half the country is undernourished. Even a politician, the chief minister of Haryana, has come with the statement – because his state is starving – that if this situation continues, India will become a subhuman species. It will lose all intelligence, it will lose all strength and power, it will lose all the dignity of human beings.
    “It is very rare to hear the truth from a politician, very rare to hear the truth from a religious man….
    “The criminal attitude of the Christians – they go on being against abortion, against birth control pills, against any kind of method that can prevent the population explosion.
    “This is not a unique case….
    “Why was Jesus crucified?
    “Religion cannot tolerate any man with new visions, with new dreams, with new hopes for mankind, with new promises to be fulfilled. No religion can tolerate the emergence of anybody who has a new image of man. They feel hurt. That means their scriptures have been wrong, that up to now what they have been worshipping has been stupid. For this single man they cannot leave their whole heritage.
    “They have no argument against Jesus, or against Socrates, or against al-Hillaj Mansoor; their only argument is crucifixion. Religion has committed so many crimes for centuries. Every religion thinks others are wrong, and to put them right, the simple way is to cut off their heads. Christians have been killing Jews, Mohammedans; Mohammedans have been killing Christians, Hindus; Hindus have been killing Mohammedans, Buddhists – in the name of God! What kind of God have you got?…
    All these religions say there is only one God – and one God creates three hundred religions just to fight with each other? This God must be mad, if he exists at all. I feel it is better that we should trust Friedrich Nietzsche’s declaration that he is dead, because to be dead is better than to be mad. At least you died in full sanity.
    “My feeling is he committed suicide, seeing the situation and what a mess he had created.
    “In ancient India, up to the beginning of this century, out of ten boys, nine would die. And if you are marrying children – the wife has not even seen her husband, but if he dies she has to jump in the funeral pyre.
    “I have been asking the shankaracharyas, the Hindu religious leaders, “If you think that it is a great spiritual phenomenon that the wife should die, should jump alive in the funeral pyre, why has no man done such a spiritual act?” Only women are to be spiritual, and men have to be bulls?
    “I have seen with my own eyes live women burning. It is such a horrible experience to see, because a living woman tries to run out of the funeral pyre – she is alive – and brahmins are standing all around with big torches to force her back into it. So that it is not seen, much purified butter, ghee, is poured on the funeral pyre. It becomes almost a cloud of smoke, and you cannot see what is happening inside the cloud. Inside the cloud of smoke are standing the priests with burning torches to push the woman back into the funeral pyre, and outside there is so much music, bands, noise, that nobody can hear the woman praying, screaming, shouting “Help me! Save me!” Nobody can hear. All around a ceremony is going on, because one woman has become spiritual.
    “I have been asking; nobody has answered me. I am perhaps the only man in the world who has not been answered on a single point.
    “I have been to so many shankaracharyas – there are eight, one for each direction. “If spirituality is so easy, just jumping into a funeral pyre, why has not man attained such spirituality?” And they are dumb – they don’t have any answer. They have only one answer: to condemn me.
    “But the fact is clear, it is a male chauvinist country. All religions are male chauvinist, against women. This you call spirituality, forcibly killing a woman? But the reason is, man’s possessiveness.
    “All religions are male chauvinistic, they are in favor of the man. The man wants to possess the wife while he is alive and he wants to possess her even when he is dead. He will not leave her alone to have some love affair with anybody else….
    “The crimes against humanity are immense.
    “The crimes against nature…. All the people who have been eating meat don’t think for a single moment it is coming from a living being. Just for your taste you are ready to kill anybody….
    “Just because it is delicious, you have been eating all kinds of animals – that’s what the Bible allows you – birds in the sky, fish in the waters, animals in the forests. You are the only king of this whole nature: conquer, eat, enjoy. Just destroying the animals…! Finally, man had to start eating fruits as well because there were not enough animals.
    “There was a stage when man was a hunter. There were no settlements, people were continuously moving wherever the animals were moving. The animals were escaping from human beings. But when they found a scarcity of animals they started eating fruits, they started cultivating. For cultivation they had to cut trees – trees which grow in two hundred years or three hundred years. There are trees which take four thousand years to grow. They destroyed those beautiful species forever. And they continued to produce more and more population, and the need for more land forced them to cut more trees….
    “There are strange catastrophes which will be called “natural,” but they are not natural. For example, in Nepal – it is one of the poorest countries in the world – they have sold their trees to the Soviet Union. Millions of trees have been cut, and the contract still remains intact for the coming thirty years. The Soviet Union does not use axes to cut the trees, it has very refined technology. In a day it can cut thousands of trees. Within seconds, trees which have grown in three hundred years will fall down. The whole of the Himalayas surrounding Nepal have become naked of foliage, and because of that…The Ganges used to flow slowly because there were so many trees; they were a kind of hindrance. The Ganges was coming slowly, slowly, slowly, to meet the ocean in Bangladesh. Now there are no trees, the floods come with such tremendous speed that this year three fourths of Bangladesh was flooded. It is also a poor country. Millions of people died. Millions of houses were simply washed into the ocean.
    If the Himalayas melt, all the oceans around the world will rise by up to forty feet. Bombay will be drowned, New York will be drowned; they will all become ocean. Cars will not be of any help – boats. You cannot survive if all the oceans rise forty feet higher – and you will call it a “natural” catastrophe…?
    “I don’t call it a natural catastrophe. I call it a man-manufactured catastrophe.
    The religious leaders have not been doing anything to prevent all these catastrophes. The population goes on growing; lands become poorer and poorer because they have been cultivated for thousands of years and they have not been nourished…. We have disturbed the whole ecology of the earth.
    “Who is responsible?
    “Certainly religious people, who should have warned humanity not to increase the population…but they all are in favor of more population. Even Indian religious heads are against population control, because they need more and more members in their organizations, in their churches. They are not concerned at all about the whole planet earth getting destroyed by our own hands. And these so-called religious people are such a lying gang of criminals….
    “Religion has been lying in every possible way, exploiting people in every possible way. Unless religion dies, the true authentic religiousness cannot be born.
    Abridged from: Osho, One Seed Makes the Whole Earth Green, Talk #3 – Zen: A Tremendous Rebellion