- मौजूदा संकट से उबरने पारंपरिक ज्ञान का कर रहे उपयोग
- सामाजिक दूरी बनाते हुए पत्ता मास्क पहनकर करते हैं कृषि कार्य
जरधोवा गाँव में घर के सामने निश्चित दूरी में पत्ता मॉस्क पहनकर बैठे आदिवासी। |
अरुण सिंह,पन्ना। कोरोना वायरस के प्रकोप ने बेहद शक्तिशाली और साधन संपन्न कहे जाने वाले राष्ट्रों सहित समूची दुनिया को हिला कर रख दिया है। हर कोई इस जानलेवा अदृश्य वायरस की चपेट में आने से बचने के लिए उपाय कर रहा है। जरूरी काम होने पर जब किसी को घर से बाहर निकलना होता है तो वह बाजार में मिलने वाला तीन परतों वाला मास्क या छ 95 मास्क चेहरे के ऊपर चढ़ा कर निकलता है तथा अपने हाथ सेनेटाइज करता है। यही वजह है कि मॉस्क और सैनिटाइजर की दुकानों में भारी किल्लत हो गई है। आपसी संपर्क से फैलने वाली इस संक्रामक बीमारी के प्रति शहरी क्षेत्रों के साथ ही ग्रामीण इलाकों यहां तक कि जंगल के आसपास रहने वाले आदिवासी वनवासी भी सजग व सतर्क हो गये हैं।
संकट के इस दौर में शहरी इलाकों में रहने वाले लोग कोरोना वायरस से बचने के लिए जहां दुकानों में मास्क और सैनिटाइजर ढूंढते फिर रहे हैं, वहीं वन क्षेत्रों के रहवासी हमेशा की तरह इस आपदा के समय भी प्रकृति का ही सहारा ले रहे हैं। इस लिहाज से वे साधन विहीन और आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद सुरक्षा के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं। आदिवासी व बनवासी कोरोना वायरस से उपजे संकट का सामना अपने परंपरागत ज्ञान व प्राकृतिक संसाधनों के द्वारा कर रहे हैं। पन्ना जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र कल्दा पठार सहित जंगल से लगे ग्रामों में निवास करने वाले लोग विभिन्न प्रजाति के वृक्षों के पत्तों से मास्क बनाकर उनका उपयोग कर रहे हैं। समाजसेवी युसूफ बेग ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व से लगे ग्राम पंचायत जरधोवा के आदिवासी कोरोना वायरस के खतरे से वाकिफ हैं और वे इस समय सामाजिक दूरी बनाने के साथ-साथ पत्ता मॉस्क का भी बकायदा उपयोग कर रहे हैं। चूंकि यह समय खेती किसानी का है, रबी सीजन की फसलें खेतों में पककर कटने को तैयार खड़ी हैं। जिसे देखते हुए आदिवासी कोरोना के डर से घर में बैठने के बजाय पूरी सतर्कता और एहतियात बरतते हुए मुंह में पत्ते का मास्क लगाकर कटाई के कार्य में जुटे हुए हैं। आदिवासी कोरोना वायरस के संक्रमण को विफल करने के लिए अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को और मजबूत करने हेतु जंगली जड़ी बूटियों का भी सेवन कर रहे हैं।
पत्ता मॉस्क पहनकर फसल की कटाई करता आदिवासी युवक। |
आदिवासियों का कहना है कि कुछ ही दिनों पहले उन्होंने इस छुआछूत की बीमारी के बारे में सुना था। इससे बचने के जो उपाय बताए जा रहे हैं उनको हम अपना नहीं सकते, इसलिए हमारे पास यही रास्ता था कि हम पेड़ पौधों और जंगल की शरण में जाएं और यहीं से बचाव का साधन तैयार करें। अब हम सामाजिक दूरी बनाते हुए पत्तों का मास्क बनाकर पहन रहे हैं। पत्ते के इस मॉस्क की खूबी यह है कि एक बार पहनने के बाद आदिवासी फिर इसका उपयोग नहीं करते, दूसरा नया ताजा मास्क बनाकर पहनते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा नहीं रहता। मालुम हो कि आदिवासी समाज अपनी पुरातन परंपरा और पारंपरिक ज्ञान के बलबूते बीमारियों से लड़कर जीत हासिल करता रहा है। मौजूदा संकट के समय भी आदिवासी समाज प्रकृति के बीच रहकर कोरोना वायरस का मुकाबला करने के लिए प्रकृति का ही सहारा ले रहा है।
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