Monday, November 30, 2020

पृथ्वी परिक्रमा : प्रकृति से प्रेम की सीख देने वाली अनूठी परम्परा

  •   प्रणामी धर्मावलम्बी सैकडों वर्षों से कर रहे इस परम्परा का निर्वहन
  •   मंदिरों की नगरी पन्ना में आज पूरे दिन रही पृथ्वी परिक्रमा की धूम 

 

पृथ्वी परिक्रमा में शामिल श्रद्धालु जंगल और पथरीले रास्ते से गुजरते हुए। (फोटो - अरुण सिंह) 


अरुण सिंह,पन्ना। समूचे विश्व में भारत इकलौता देश है जहाँ सदियों पूर्व बसुधैव कुटुंबकम की उद्घोषणा की गई थी। यह इस देश की खूबसूरती है कि यहाँ पर विविध धर्मावलम्बियों की धार्मिक आस्थाओं व परम्पराओं को न सिर्फ पूरा सम्मान मिलता है अपितु उन्हें पल्लवित और पुष्पित होने का अवसर व अनुकूल वातावरण भी सहज उपलब्ध होता है। यही वजह है कि हमारे देश में हर धर्म और हर जाति के लोगों की अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं मौजूद हैं। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना शहर में लगभग 398 साल से चली आ रही है। प्राचीन भव्य मंदिरों के इस शहर में समूचे विश्व के प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र श्री प्राणनाथ जी का मंदिर स्थित है, जो प्रणामी धर्म के लिए विशेष तीर्थ स्थल माना जाता है।  इसी प्रणामी संप्रदाय के अनुयाई और श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। यहाँ किलकिला नदी के किनारे व पहाड़ियों के बीचों बीच बसे समूचे पन्ना नगर के चारों तरफ परिक्रमा लगाकर भगवान श्री कृष्ण के उस स्वरूप को खोजते हैं, जो कि शरद पूर्णिमा की रासलीला में उन्होंने देखा और अनुभव किया है। अंतर्ध्यान हो चुके प्रियतम प्राणनाथ को उनके प्रेमी सुन्दरसाथ भाव विभोर होकर नदी, नालों, पहाड़ों तथा घने जंगल में हर कहीं खोजते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं। 

 मंदिरों की नगरी पन्ना में सोमवार को आज पूरे दिन पृथ्वी परिक्रमा की धूम रही। कोरोना संकट के बावजूद देश के कोने-कोने से आये हजारों श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति भाव और उत्साह के साथ पृथ्वी परिक्रमा में भाग लिया। सैकड़ों फिट गहरे कौआ सेहा से लेकर किलकिला नदी के प्रवाह क्षेत्र व चौपड़ा मंदिर हर कहीं प्राणनाथ प्यारे के जयकारे गूँज रहे थे। रोमांचित कर देने वाले आस्था एवं श्रद्धा के इस सैलाब से पवित्र नगरी पन्ना  का कण-कण प्रेम और आनंद से सराबोर हो उठा है। मालुम हो कि प्रकृति के निकट रहने तथा विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख देने वाली इस अनूठी परम्परा को प्रणामी संप्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने आज से लगभग 398 साल पहले शुरू किया था, जो आज भी अनवरत् जारी है। इस परम्परा का अनुकरण करने वालों का मानना है कि पृथ्वी परिक्रमा से उनको सुखद अनुभूति तथा शान्ति मिलती है। महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर पन्ना के पुजारी देवकरण त्रिपाठी ने बताया कि पवित्र नगरी पन्ना में आज हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से आये सुंदरसाथ व स्थानीय जनों द्वारा पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होकर धर्मलाभ उठाया गया है। उन्होंने बताया कि कार्तिक शुक्ल की पूर्णमासी पर प्रात: 6  बजे से चारों मंदिरों की परिक्रमा के साथ पृथ्वी परिक्रमा का शुभारम्भ हुआ। सर्वप्रथम आये हुये श्रद्धालुओं ने पन्ना नगर में स्थित श्री प्राणनाथ जी मंदिर, गुम्मट जी मंदिर, श्री बंगला जी मंदिर, सद्गुरू धनी देवचन्द्र जी मंदिर, बाईजूराज राधिका मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ सिर नवाया तदुपरांत धूमधाम के साथ यात्रा शुरू की।


किलकिला नदी पारकर चौपड़ा मंदिर स्थित वट बृक्ष के नीचे विश्राम करते श्रद्धालु। 

 हजारों की संख्या में सुन्दरसाथ नाचते गाते, झूमते अपने मन में श्री जी की मनोहरी छवि को स्मरण कर पृथ्वी परिक्रमा के लिये बढ़ चले और जंगल के रास्ते से होते हुये प्राकृतिक व रमणीक स्थल चौपड़ा मंदिर पहुंचे। यहां पर प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करते हुये सुन्दरसाथ ने विश्राम किया साथ ही प्रसाद आदि ग्रहण किया और पास ही स्थित चौपड़ा जिसमें गंगा व यमुना दो प्राचीन जल स्त्रोत हैं वहां जल का पान कर अपनी अल्प थकान को मिटाकर फिर आगे बढ़ चले।

 नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से गुजरे श्रद्धालु 

नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से श्रद्धालु जब जयकारे लगाते हुए गुजर रहे थे, तब यह नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। कौआ सेहा की गहराई, चारो तरफ फैली हरीतिमा तथा जल प्रपात का कर्णप्रिय संगीत और जहाँ-तहाँ चट्टानों पर बैठकर विश्राम करती श्रद्धालुओं की टोली, सब कुछ बहुत ही मनभावन लग रहा था। जानकारों के मुताबिक इस परिक्रमा की दूरी करीब 27 किलोमीटर के आसपास होती है। पहाड़ी को पार करते हुये मदार साहब, धरमसागर, अघोर होकर यह विशाल कारवां खेजड़ा मंदिर में पहुंचा। यात्रा में रंग विरंगे कपड़े पहने मुस्कुराते बच्चे, सुन्दर परिधानों से सुसज्जित महिलायें, युवा, युवतियाँ व वृद्धजन अपने-अपने विशिष्ट अंदाज में दिखे। खेजड़ा मंदिर पहुंचने पर वहां महाआरती सम्पन्न की गई व प्रसाद वितरण हुआ। तत्पश्चात सभी सुन्दरसाथ कमलाबाई तालाब से होते हुये किलकिला नदी को पारकर उसी स्थान पर पहुंचे जहां से परिक्रमा शुरू की गई थी।

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Friday, November 27, 2020

आसमान के बादशाह गिद्धों की पन्ना में होगी रेडियो टैगिंग

  •  देश में गिद्धों पर अनुसंधान हेतु अपनी तरह का यह पहला प्रयोग
  •  रेडियो टैगिंग कार्य हेतु भारत सरकार से मिल चुकी है अनुमति 

पन्ना टाईगर रिज़र्व में गुनगुनी धूप का आनंद लेते गिद्ध। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व अब सिर्फ बाघों पर हुए अभिनव प्रयोगों के लिए ही नहीं अपितु गिद्धों पर होने जा रहे अनुसंधान के लिए भी जाना जाएगा। यहां के खूबसूरत जंगल, पहाड़ व गहरे सेहे बाघों के साथ साथ आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले गिद्धों का भी घर है। यहां पर गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की निवासी प्रजातियां हैं। जबकि शेष 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। मालुम हो कि गिद्धों के प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्य प्राणी प्रेमियों के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बल्कि एक देश से दूसरे देश मौसम अनुकूलता के हिसाब से प्रवास करते हैं।

 क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए आज बताया कि गिद्धों के रहवास एवं प्रवास के मार्ग के अध्ययन हेतु पन्ना टाइगर रिजर्व द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की मदद से गिद्धों की रेडियो टैगिंग का कार्य प्रारंभ किया गया है। जिसके अंतर्गत पन्ना टाइगर रिजर्व में 25 गिद्धों को रेडियो टैगिंग किया जावेगा। रेडियो टैगिंग कार्य को अनुमति भारत सरकार से प्राप्त हो चुकी है। रेडियो टैगिंग से गिद्धों के आस-पास के मार्ग एवं पन्ना लैंडस्केप में उनकी उपस्थिति आदि की जानकारी ज्ञात हो सकेगी, जिससे भविष्य में इनके प्रबंधन में मदद मिलेगी। इस हेतु पन्ना टाइगर रिजर्व के झालर घास मैदान में कार्य प्रारंभ किया गया है। रेडियो टैगिंग कार्य लगभग एक माह में पूर्ण होगा। उन्होंने बताया कि गिद्धों की रेडियो टैगिंग का यह कार्य देश में पहली बार हो रहा है। पार्क प्रबंधन कार्य की सफलता हेतु आश्वस्त है एवं यह प्रयोग सफल हो इस दिशा में सभी संभव प्रयास कर रहा है। क्षेत्र संचालक ने आशा व्यक्त की है कि भविष्य में रेडियो टैगिंग से प्राप्त जानकारी टाइगर रिजर्व ही नहीं बल्कि पूरे देश व विदेश में गिद्धों के प्रबंधन के लिए लाभकारी होगी।

विलुप्त होने की कगार पर हैं गिद्ध

 आसमान में सबसे ऊंची उड़ान भरने वाले पक्षी गिद्धों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। प्रकृति के सबसे बेहतरीन इन सफाई कर्मियों की जहां भी मौजूदगी होती है वहां का पारिस्थितिकी तंत्र स्वच्छ व स्वस्थ रहता है। लेकिन प्रकृति और मानवता की सेवा में जुटे रहने वाले इन विशालकाय पक्षियों का वजूद मानवीय गलतियों के कारण संकट में है। गिद्धों के रहवास स्थलों के उजडऩे तथा मवेशियों के लिए दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का उपयोग करने से गिद्धों की संख्या तेजी से घटी है। पन्ना टाइगर रिजर्व जहां आज भी गिद्धों का नैसर्गिक रहवास है, वहां पर रेडियो टैगिंग के माध्यम से उनकी जीवन चर्या का अध्ययन निश्चित ही एक अनूठी पहल है। इससे विलुप्ति की कगार में पहुंच चुके गिद्धों की प्रजाति को बचाने में मदद मिलेगी।

बाघों की तरह गिद्धों की होगी मॉनिटरिंग

बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के बाद से पन्ना टाइगर रिजर्व अभिनव प्रयोगों और अनुसंधान कार्यों का केंद्र बन चुका है। रेडियो टैगिंग करके गिद्धों पर अनुसंधान होने से पन्ना टाइगर रिजर्व अब सिर्फ बाघों के लिए ही नहीं बल्कि गिद्धों के लिए भी जाना जाएगा। इस अभिनव प्रयोग से पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की तरह आसमान के बादशाह गिद्धों की भी मॉनिटरिंग हो सकेगी। जिससे गिद्धों की प्रजाति के अनुसंधान, विस्तार व प्रबंधन में काफी मदद मिलेगी। इस अनुसंधान कार्य से आशा की किरण जागी है कि विलुप्ति की कगार में पहुंच चुकी गिद्धों की प्रजाति पुन: अपनी पुरानी स्थिति को हासिल कर सकेगी।

दैनिक जागरण झाँसी में 28 नवम्बर को प्रकाशित खबर .

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पर्यटन के लिए लीज पर ली गई शासकीय भूमि पर होगी बैंक से ऋण लेने की पात्रता

  • वर्ष 2017 के बाद मध्य प्रदेश में पर्यटकों की संख्या हुई डेढ़ गुनी
  • भारत के पर्यटन नक्शे पर मध्य प्रदेश सातवें स्थान पर
  • मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ली पर्यटन कैबिनेट की बैठक


पर्यटन कैबिनेट की बैठक लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि मध्य प्रदेश में पर्यटन का तेज गति से विकास कर न सिर्फ इसे भारत में पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणी बनाना है, बल्कि इसके माध्यम से रोजगार के अधिक से अधिक अवसर सृजित करने हैं। प्रदेश में वर्ष 2017 के बाद पर्यटन के क्षेत्र में तेजी से विकास हुआ है तथा प्रदेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या लगभग डेढ़ गुना हो गई है।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने आज मंत्रालय में पर्यटन कैबिनेट की बैठक ली। बैठक में पर्यटन के लिए मध्यप्रदेश में लीज पर दी जाने वाली शासकीय भूमि पर बैंकों से ऋण लेने की पात्रता संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। बैठक में संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री सुश्री ऊषा ठाकुर, मुख्य सचिव  इकबाल सिंह बैंस, प्रमुख सचिव  शिव शेखर शुक्ला आदि उपस्थित थे।


प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला ने बताया कि पर्यटन के क्षेत्र में मध्य प्रदेश का भारत में सातवां स्थान है। वर्ष 2017 के बाद प्रदेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 में मध्य प्रदेश में कुल 5 करोड़ 88 लाख पर्यटक आए वहीं वर्ष 2019 में आठ करोड़ 90 लाख से अधिक पर्यटक मध्यप्रदेश में आए।

प्रदेश में चल रही है पांच फिल्मों की शूटिंग

मध्यप्रदेश की फिल्म पर्यटन नीति, जिसके तहत प्रदेश में फिल्म, टीवी सीरियल, वेब सीरीज आदि निर्माण के लिए ₹10 करोड़ तक का अनुदान दिया जाता है, काफी लोकप्रिय हो रही है। वर्तमान में प्रदेश में पांच फिल्मों की शूटिंग चल रही है। राजकुमार संतोषी, अनुपम खेर जैसे फिल्म निर्माता मध्यप्रदेश में फिल्म शूट कर रहे हैं। वर्ष 2020 21 में लगभग 45 फिल्मों, वेब सीरीज, टीवी सीरियल आदि की शूटिंग संभावित है।

साहसिक एवं जल कीड़ा पर्यटन

मध्यप्रदेश की कैंपिंग नीति 2018 तथा जल पर्यटन नीति 2017 के चलते यहां साहसिक एवं जल क्रीड़ा पर्यटन में काफी वृद्धि हुई है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि कोरोना संक्रमण के दृष्टिगत प्रदेश में सभी सावधानियां बरतें हुए सीमित संख्या में ये गतिविधियां की जा सकती हैं।

रिस्पांसिबल टूरिज्म मिशन

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश में रिस्पांसिबल टूरिज्म मिशन चालू किया गया है, जिसके अंतर्गत ग्रामीण एवं जनजातीय पर्यटन, अनुभव आधारित पर्यटन, हस्तकला एवं हस्तशिल्प पर्यटन, स्वस्थ जीवन शैली पर्यटन आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है।

मध्य प्रदेश के 'वर्चुअल टूर' विदेशों में लोकप्रिय

प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला ने बताया कि मध्य प्रदेश के 20 वर्चुअल टूर तैयार किए गए हैं, जो कि गूगल आर्ट एंड कल्चर के माध्यम से विदेशों में अत्यधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। मध्यप्रदेश में फिल्म एंड प्री वेडिंग शूटिंग तथा डेस्टिनेशन टूरिज्म पॉलिसी भी बनाई गई है।

धार्मिक एवं आध्यात्मिक पर्यटन

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में धार्मिक एवं आध्यात्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। देश में बुद्धिस्ट सर्किट, रामायण सर्किट, तीर्थंकर सर्किट आदि विकसित किए जा रहे हैं। ओमकारेश्वर कथा अमरकंटक का विकास किया जा रहा है। सालरिया गो अभयारण्य जैसे स्थानों पर ध्यान एवं आयुष चिकित्सा के अंतर्गत पंचकर्म आदि पर केंद्रित पर्यटन केंद्र प्रारंभ किए जा सकते हैं।

वन एवं पर्यावरण आधारित पर्यटन

मध्यप्रदेश में वन एवं पर्यावरण आधारित पर्यटन के अंतर्गत वाइल्डलाइफ सर्किट, इको सर्किट, बफर में सफर आदि पर कार्य किया जा रहा है। लोनली प्लैनेट संस्था द्वारा मध्य प्रदेश को दुनिया का तीसरा सबसे अच्छा गंतव्य चुना गया है।

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Thursday, November 26, 2020

पन्ना टाइगर रिजर्व की रेस्क्यू टीम सबसे बेहतर

  •  प्रदेश स्तरीय प्रेजेंटेशन में मिला है पहला स्थान
  •  टीम के मुखिया डॉ संजीव गुप्ता ने प्राप्त की ट्रॉफी 

समारोह में पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ट्राफी लेते हुए।  

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की रेस्क्यू टीम कार्यकुशलता के मामले में सबसे बेहतर है। कान्हा टाइगर रिजर्व में गत 23 से 25 नवंबर तक आयोजित कार्यशाला में प्रदेश के पांचों टाइगर रिजर्व, सभी सेंचुरी व वन मंडलों के रेस्क्यू स्क्वायड शामिल हुए। कार्यशाला में सभी ने अपना प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें पन्ना टाइगर रिजर्व की रेस्क्यू टीम को प्रथम स्थान मिला है। इसमें वन विहार भोपाल को दूसरा तथा पेंच व संजय टाइगर रिजर्व को संयुक्त रूप से तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है। 25 नवंबर को यहां आयोजित गरिमामय समारोह में पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने अपनी टीम की ओर से ट्रॉफी प्राप्त की है।


बाघिन को ट्रैंक्युलाइज करके जाँच कर रेडियो कॉलर पहनाती पन्ना रेस्क्यू टीम। 

उल्लेखनीय है कि बाघ पुनर्स्थापना योजना को मिली शानदार कामयाबी के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व ने देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था तब यहां बाघों को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा व बांधवगढ़ से दो बाघिन तथा पेंच टाइगर रिजर्व से एक नर बाघ लाया गया था। तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति के नेतृत्व में पूरी टीम ने पन्ना टाइगर रिजर्व के के खोए हुए गौरव को पुन: हासिल करने के लिए जुनून और जज्बे के साथ अथक श्रम किया। परिणाम स्वरूप यहां  नन्हें शावकों ने जन्म लिया और पन्ना टाइगर रिजर्व फिर से गुलजार हो गया। यहां पर अनाथ व अर्ध जंगली दो बाघिनों को जंगली बनाने का अभिनव प्रयोग भी सफल रहा, जिससे पन्ना टाइगर रिजर्व को न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली अपितु कई देश पन्ना मॉडल को अपनाने के लिए प्रेरित हुए। इस कामयाबी में पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता व उनकी समर्पित टीम का अतुलनीय योगदान रहा। इस टीम ने बीते 10 वर्षों में 150 से भी अधिक रेस्क्यू ऑपरेशन सहित 65 बार बाघ व बाघिनों का सफल रेडियो कॉलर किया है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इतने कम समय में देश में कहीं भी फ्री रेजिंग बाघों को ट्रेंकुलाइज कर उन्हें रेडियो कॉलर करने का कार्य नहीं हुआ। इस लिहाज से भी पन्ना टाइगर रिजर्व की टीम न सिर्फ प्रदेश अपितु देश भर में अव्वल है।

 हथिनी वत्सला को दिया था जीवनदान 

पन्ना टाइगर रिजर्व की उम्र दराज हथनी जो 100 वर्ष की उम्र को पार कर चुकी है तथा संभवत: दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथनी है। उसे पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता व उनकी टीम ने दो बार मौत के मुंह में जाने से बचाया है। डॉ. गुप्ता ने बताया कि वर्ष2003 व 2008 में हाथी राम बहादुर ने प्राणघातक हमला कर इस उम्रदराज हथिनी को बुरी तरह से घायल कर दिया था। मदमस्त हाथी ने वत्सला का पेट अपने लंबे दांतों से चीर दिया था, जिससे इस हथनी का बच पाना लगभग नामुमकिन सा प्रतीत हो रहा था। लेकिन बेहतर उपचार व सतत सेवा से इस बुजुर्ग हथिनी को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया गया, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह हथिनी आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व की एक अनमोल धरोहर के रूप में यहां की शोभा बढ़ा रही है।

 काम के प्रति समर्पित रहती है पूरी टीम 

पन्ना टाइगर रिजर्व की रेस्क्यू टीम अपने काम के प्रति पूरी निष्ठा के साथ समर्पित रहती है। टीम के मुखिया डॉ संजीव कुमार गुप्ता व उनके सहयोगियों में दायित्व बोध इतना प्रगाढ़ है कि वे विकट परिस्थितियों में भी अडिग रहते हैं और वही करते हैं जो सही है। इस टीम ने अनेकों बार यह साबित भी किया है।  इस टीम की यह विशेषता है कि यह किसी के दबाव व हस्तक्षेप से प्रभावित हुए बिना वही करती हैं जो वन्य प्राणियों व पार्क की सुरक्षा के हित में है। यही वजह है कि पन्ना टाइगर रिजर्व की रेस्क्यू टीम को प्रथम स्थान मिला है, निश्चित ही यह टीम इसकी हकदार भी है।

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Tuesday, November 24, 2020

पन्ना सिर्फ हीरों की ही नहीं प्रतिभाओं की भी खान

  •  तीन होनहार विद्यार्थियों ने किया जिले का नाम रोशन
  • कलेक्टर श्री मिश्र ने किया सम्मानित दी शुभकामनाएं 

पन्ना के होनहार छात्रों को सम्मानित करते हुए कलेक्टर संजय कुमार मिश्र। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना जिला सिर्फ बेशकीमती हीरों का ही नहीं अपितु प्रतिभाओं की भी खान है। संसाधनों की कमी व प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी पन्ना के होनहार छात्र (हीरे) अपनी काबिलियत और प्रतिभा का झंडा फहराने में कामयाब हो रहे हैं। यह ख़ुशी की बात है कि जिले के तीन विद्यार्थियों ने  नीट परीक्षा 2020 में सफलता हासिल की है। ये होनहार छात्र शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में प्रवेश के लिए चयनित हुए हैं। इन तीनों विद्यार्थियों को कलेक्टर संजय कुमार मिश्र द्वारा प्रशस्ति पत्र, पुष्प गुच्छ देने के साथ मुंह मीठा कराकर सम्मानित किया गया है। उन्होंने इन विद्यार्थियों का भविष्य उज्ज्वलन होने की कामना करते हुए कहा कि आप सभी डॉक्टर बनकर अपने जिले में ही सेवाएं दें।

सम्मानित किए गए विद्यार्थियों में कु. माही तिवारी पिता श्री राजेन्द्र तिवारी निवासी मझगवा ने 720 में 615 अंक अर्जित किये। प्रक्षल जैन पिता श्री कैलाश चन्द्र जैन निवासी बृजपुर ने 720 में से 611 अंक अर्जित किये। मुदुल गुप्ता पिता श्री अजय कुमार गुप्ता निवासी अजयगढ ने 720 में से 603 अंक अर्जित किये हैं। इन तीनों को क्रमश: नेता जी सुभाषचन्द्र मेडिकल कॉलेज जबलपुर, गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल एवं श्याम शाह मेडिकल कॉलेज रीवा में प्रवेश प्राप्त हुआ है। पन्ना के इन हीरों की कामयाबी से निश्चित ही अध्यनरत अन्य छात्र - छात्राओं को भी प्रेरणा मिलेगी। 

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उकड़ू बैठने से शरीर को होते हैं बहुत सारे लाभ

  • आधुनिक बनने की चाह में हमने छोड़ी पुरातन जीवन शैली 
  • ग्रामीणजन आज भी उकडू बैठकर करते हैं घर का कामकाज 


।। अरुण सिंह ।।     

अक्सर आपने गांवों के लोगों को उकड़ू बैठते हुये देखा होगा लेकिन यदि वह शहर में आकर इस तरह बैठता हैं तो लोग उसे गंवार समझते हैं और बड़े अजीब तरीके से उसे देखते हैं। लेकिन आपको शायद यह बात नहीं मालूम की उकड़ू बैठने से आपके शरीर को बहुत सारे लाभ होते हैं। उकडू बैठकर घर का कामकाज करने तथा नित्य क्रिया से निवृत्त होने के लिए आज भी ग्रामीणजन अपनी पुरातन जीवन शैली को अपनाये हुये हैं। यही वजह है कि पेट व घुटनों से सम्बंधित तमाम तरह की बीमारियों व कठिनाइयों से वे मुक्त रहते हैं। जबकि अधिकांश शहरी आधुनिक दिखने की चाह में भारत के ऋषि मुनियों द्वारा ईजाद किये गये सहज व सरल आसनों तथा जीवन शैली से मुंह मोड़ कर पाश्चात्य जीवन शैली को अपना लिया है, परिणाम स्वरुप कम उम्र में ही शारीरिक कठिनाइयां आने लगी हैं।    

उल्लेखनीय है कि आज हमारी जीवन जीने की शैली एक दम से बदल गई है। अनेकों बीमारियों की वजह पुरानी भारतीय जीवन शैली को छोड़ देना हैं, उनमें उकड़ू बैठना भी एक है। आप खुद अपने अंदर झांक कर देखे आप कब उकड़ू बैठे थे।आपने कई ऐसे लोगों को देखा होगा जो उकडू बैठते हैं तो आप उन्हें गवार या बेवकूफ समझने की गलती न करें, क्योंकि इस तरह बैठने के कई लाभ होते हैं। अगर आप उकडू नहीं बैठते तो आज से ही उकड़ू बैठने की आदत डाल लीजिये। इस तरह बैठने का बड़ा फायदा यह है कि हमारे शरीर की आंतों की संरचना और बनावट इस प्रकार है कि अगर आप उकड़ू आसन में बैठते हैं, तो आंतों पर ज्यादा प्रेशर लगाए बिना ही आप अच्छे से फ्रेश हो सकते हैं, शायद यही वजह है कि भारत के ऋषि-मुनियों ने इसी अवस्था में बैठने को कहा।


मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कल्दा पठार की जीवन शैली।  फोटो - अरुण सिंह 

हम अक्सर गाँव में व्यक्तियों को उकडू बैठकर घर का कामकाज करते हुए देखते हैं तो हम सोचते हैं ये लोग गंवार हैं। परंतु ऐसा नहीं हैं, गाँव के लोग जो करते हैं उसके कई कारण होते हैं। गांव में आपने देखा होगा कि लोग पेड़ों के नीचे या कहीं भी इक्कठा समूह में भी बैठते हैं तो इसी अवस्था में बैठते हैं। इससे पाचन तंत्र और आंतें काफी मजबूत हो जाती हैं। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि स्कूल में मुर्गा बनाने की सजा भी इसी कारण चालू किया गया था ताकि बच्चों के पाचन तंत्र को और अधिक मजबूत किया जा सके। यदि आप उकड़ू बैठकर उंगली से ब्रश करते हैं तथा कंठ साफ करते हैं तो आपके आमाशय में जो भोजन पड़ा हुआ है जो कि अभी तक पचा नहीं है वह भी नीचे की और खिसकना चालू हो जायेगा। ऐसा करने से आपकी आँखों की रोशनी बढ़ जाएगी तथा क्योंकि यह हमारे तंत्रिका तंत्र से जुड़ा हुआ है, इसलिए रोजाना उकड़ू बैठकर ब्रश करें। इसके अलावा यदि आप इस अवस्था में बैठते हैं तो इससे मूलाधार चक्र पर भी दबाव पड़ता है जिसकी वजह से प्राण शक्ति नीचे की ओर गति न करके ऊपर की ओर उठती है, जिसकी वजह से आपको यौवन प्राप्त होता हैं। 

पहले लोग दिन में कम से कम दो घंटे तो इस आसन का उपयोग करते ही थे। खेत में काम करते हुए, खाना खाते हुए, पंचायत में बैठ कर हुक्का पीते हुए, दिशा मैदान जाते हुए। कपडे धोते, दूध निकालते व घर की गृहणियां झाडू लगाते समय इसी आसन का उपयोग आमतौर पर करती हैं। इससे हमारे घूटने तो पूर्णता से मुड़ते ही है साथ-साथ पेट कभी मोटा नहीं होता, पाचन क्रिया तेज होती है। जो लोग इंगलिस सीट का उपयोग करते हैं  उनके घुटनों के पीछे एक बल्ब सा बन जाता है, जिसके कारण उनका घुटना मुडऩा बंद हो जाता है, यहीं से सारी बीमारी शुरू होती है।

इस आसन को गो-दुग्ध आसन भी कहां जाता है। इसका प्रचार-प्रसार कम देखने को मिलता है। आप लोग शायद नहीं जानते कि  इसी आसन से भगवान महावीर को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। न जाने क्यों रामदेव बाबा सब आसन बताते है परंतु गो-दुग्ध आसन की कम बात करते हैं। जबकि यही वह आसन है जिससे पता चलता है की आपका शरीर स्वस्थ है या नहीं। आज से ही दस मिनट कम से कम उकडू बैठे.....जो नहीं बैठ सकते वह किसी लकडी-खम्बे का सहारा लेकर जितना बैठ सकते हैं उतना नीचे तक जायें। धीरे-धीर आप बैठने लग जायेंगे। तब आप खुद देखेंगे कि आपके शरीर की कितनी बीमारियां छूमंतर हो गईं।

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Friday, November 20, 2020

बाघ के हैरतअंगेज कारनामे से हतप्रभ हैं लोग

  •   9 माह में तय किया तीन  हजार किमी. लम्बा सफर
  •  नये आशियाना व जीवन संगिनी की तलाश में की यात्रा

 

वह बाघ जिसने 3 हजार किमी. का सफर तय कर बनाया रिकॉर्ड। फोटो - बीबीसी 

।। अरुण सिंह ।।

इन दिनों एक बाघ चर्चा में हैं, जिसने अपने नाम 3000 किलोमीटर का सफर तय करने वाला रिकॉर्ड दर्ज किया है। दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमी व बाघों की जीवन चर्या पर रुचि रखने वाले लोग इस बाघ के हैरतअंगेज कारनामे से हतप्रभ हैं। इसके पहले कभी किसी बाघ ने इतनी लंबी दूरी तय की हो इसका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस लिहाज से यह बाघ अपने आप में न सिर्फ अनूठा है अपितु अपनी इस लंबी यात्रा में उसने बहुत कुछ बताने का भी प्रयास किया है। वॉकर नाम के इस बाघ ने महाराष्ट्र के टिपेश्वर अभयारण्य से जून 2019 में अपने सफर की शुरुआत कर महाराष्ट्र और तेलंगाना के 7 जिलों से गुजरता हुआ हिंगोली के ज्ञानगंगा अभयारण्य को अपना नया आशियाना बना लिया है।


 अपने लिए बेहतर आशियाना जहां शिकार की प्रचुर उपलब्धता हो तथा जीवनसंगिनी की तलाश में कोई बाघ हर तरह की चुनौतियों को पार करते हुए 3000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है, इस बात पर सहसा भरोसा नहीं होता। लेकिन वॉकर ने यह अविश्वसनीय कारनामा न सिर्फ कर दिखाया है अपितु यह भी जता दिया है कि जंगल, वन्यजीवों व बाघों के बारे में हमारी जानकारी व ज्ञान कितना कम है। वॉकर नाम के इस बाघ ने इतना लंबा सफर तय किया इस बात का खुलासा इसलिए हो सका क्योंकि उसे पिछले वर्ष फरवरी में रेडियो कॉलर लगाया गया था। रेडियो कॉलर लगा होने के कारण वॉकर के लंबे सफर को जीपीएस सेटेलाइट के सहारे लगातार ट्रैक किया जाता रहा है। बाघ की इस यात्रा की अनूठी व दिलचस्प कहानी जहां चर्चा का विषय बनी हुई है, वहीं इस पर रोचक प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। एक व्यक्ति ने लिखा है कि वाह, इतना लंबा सफर और कोई झगड़ा नहीं, यह बाघ एक असली हीरो है। यदि इसे जीवनसंगिनी भी मिल जाए तो इसकी मेहनत सार्थक हो जाएगी।

पन्ना में भी बाघ टी-3 ने की थी यात्रा

मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से आबाद करने वाले नर बाघ टी-3 ने एक माह में साढे चार सौ किलोमीटर की यात्रा की थी। मालुम हो कि बाघ विहीन पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से दो बाघिन तथा एक नर बाघ लाया गया था। लेकिन बाघ टी-3 को नया ठिकाना रास नहीं आया और वह यहां लाए जाने के कुछ दिन बाद ही 27 नवंबर 2009 को अपने घर की तरफ कूच कर गया। पूरे एक माह तक इस बाघ का पीछा करते हुए बमुश्किल 26 दिसंबर 2009 को वापस पन्ना लाया जा सका। इसके बाद पेंच टाईगर रिज़र्व का यह बाघ यहीं का होकर रह गया। बाघिनों के संपर्क में आकर इस बाघ ने पन्ना को एक बार फिर से आबाद कर दिया, यही वजह है कि इस बाघ को "फादर ऑफ द पन्ना" का खिताब दिया गया। बाघ टी-3 के अलावा पन्ना के ही नर बाघ पी-212 ने भी फरवरी-मार्च 2014 में पन्ना से निकलकर रीवा जिले की आबादी वाले इलाकों तक जा पहुंचा था। जिसे पकड़कर संजय टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया। इस तरीके से इस बाघ ने भी केन से लेकर सोन तक का सफर तय किया था।

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Thursday, November 19, 2020

कुपोषण के कलंक से क्यों नहीं मिल पा रही मुक्ति ?

  •  कोरोना के चलते संजीवनी अभियान की रफ़्तार भी हुई धीमी 
  • कुपोषित बच्चों को गोद लेने वाले लोग अब नहीं ले रहे रूचि 



अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले से कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिये विगत कुछ माह पूर्व शुरू किये गये पोषण संजीवनी अभियान की रफ़्तार अब धीमी पड़ चुकी है। जिन समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों ने कुपोषण को जड़ मूल से ख़त्म करने के इस अभियान में बड़े उत्साह के साथ जुड़कर कुपोषित बच्चों को गोद लिया था, उनमें से ज्यादातर लोग परिद्रश्य से गायब हो चुके हैं। कुपोषित बच्चों की क्या स्थिति है, यह जानने तथा उनकी खोजखबर लेने की अब उनको सुध नहीं है। मालुम हो कि पन्ना के पूर्व कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने कमलनाथ सरकार के समय संजीवनी अभियान की धूमधाम के साथ शुरुआत की थी।  उन्होंने अभियान से शासकीय अमले के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को जोडऩे का प्रयास किया था, जिससे यह कार्यक्रम जन आन्दोलन का रूप ले सके। इस अभियान के दौरान जिले के लगभग 3 हजार अतिकुपोषित बच्चों को संजीवनी अभिभावकों को गोद दिलाया गया। उस समय जिले में 5 हजार बच्चे चिन्हित किये गये थे, जिन्हें गोद दिलाकर कुपोषण से मुक्ति दिलाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन सत्ता बदलने के साथ ही अधिकांश संजीवनी अभिभावकों का उत्साह भी ठंढा पड़ गया है। 

अब बदली हुई परिस्थितियों में कुपोषण के खिलाफ जंग के लिए नई रणनीति बनाई गई है। संजीवनी अभिभावकों के मैदान से हट जाने पर अब फिर पूर्व की ही तरह कुपोषण मिटाने के लिए स्वास्थ्य एवं महिला बाल विकास विभाग को संयुक्त रूप से सक्रिय किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में कलेक्टर संजय कुमार मिश्र की अध्यक्षता में कुपोषण मिटाने संबंधी समीक्षा बैठक आयोजित हुई जिसमें उन्होंने दोनों विभागों को आपसी समन्वय के साथ कार्य करने के निर्देश दिये हैं। कलेक्टर ने कहा है कि  बच्चों, गर्भवती माताओं का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण, टीकाकरण के साथ पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जाये। बैठक में बताया गया कि सितंबर से अक्टूबर माह के मध्य 516 कुपोषित बच्चों का चिन्हांकन किया गया। इनमें 66 बच्चे ऐसे पाए गए जो बीमार थे और उन्हें पोषण पुर्नवास केन्द्र में भर्ती कराया गया। चिन्हित बच्चों को आवश्यकतानुसार दवाएं उपलब्ध कराई गई हैं। जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी ऊदल सिंह ने बताया कि जिले में 2433 महिलाओं की प्रथम प्रसव पूर्व जांच कराई गई है। किशोरी बालिकाओं 11 से 18 वर्ष तक आयु समूह की 45923 चिन्हित किशोरियों की जांच कराई गई, जिनमें 24455 किशोरी बालिकाओं की हिमोग्लोबिन जांच की गयी। इनमें 22260 किशोरियां सामान्य एवं 2195 बालिकाओं में रक्ताल्पता पायी गयी है। जिन्हें आयरन फोलिक एसिड टेबलेट प्रदाय की गयी। जिले में 3478 नवविवाहित महिलाओं को चिन्हित किया गया। इनमेें 3033 नवविवाहिताओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। स्वास्थ्य परीक्षण में 2786 महिलाओं का स्वास्थ्य सामान्य पाया गया। इनमें 254 नवविवाहिताओं में रक्ताल्पता पायी गयी, उन्हें आयरन फोलिक एसिड दवा दी गयी। इसी प्रकार जिले में 10416 धात्री माताओं को चिन्हित किया गया। इनमें स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान 909 महिलाओं में रक्ताल्पता पायी गयी, उन्हें आयरन फोलिक एसिड दवा दी गयी। बैठक में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एल.के. तिवारी द्वारा बताया गया कि ग्रामीण अंचलों में बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता नियुक्त हैं। उनके सहयोग से आंगनवाडी कार्यकर्ता, कुपोषित बच्चों, नवविवाहिता, धात्री माताओं का स्वास्थ्य परीक्षण कर आवश्यकतानुसार कार्यवाही करें। जिन बच्चों को पोषण पुर्नवास केन्द्र भेजने की आवश्यकता है उन्हें केन्द्र में भर्ती कराया जाये। इसके अलावा गर्भवती माताओं जिनको उपचार की आवश्यकता है उन्हें चिकित्सालय में भर्ती करायें। 

देश की 14 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित

 वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर दिखाया गया है। चूंकि इस सूचकांक में भारत को श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों से भी पीछे बताया गया है इसलिए उस पर खासी चर्चा हो रही है। 107 देशों में से केवल 13 देश ही कुपोषण के मामले में भारत से खराब स्थिति में दर्शाए गए हैं। वर्ष 2019 में भारत 117 देशों की सूची में 102वें स्थान पर था, जबकि 2018 में 103वें स्थान पर था। इस सूचकांक के साथ जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित है एवं बच्चों में बौनेपन की दर 37.4 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में करीब 69 करोड़ लोग कुपोषित हैं। यद्यपि यह रिपोर्ट यह कहती है कि भारत में बाल मृत्यु दर में सुधार हुआ है, जो अब 3.7 प्रतिशत है, परंतु यह दर अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है। विशेषज्ञों की मानें, तो सामाजिक योजनाओं का खराब कार्यान्वयन, कार्यक्रमों में प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने में स्वास्थ्य संस्थाओं की उदासीनता और बड़े राज्यों की खराब स्थिति के कारण समस्या और बढ़ी है। भारत की रैंकिंग में समग्र परिवर्तन के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के प्रदर्शन में सुधार की आवश्यकता है। 

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Wednesday, November 18, 2020

पन्ना की समृद्ध विरासत को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी- बृजेन्द्र प्रताप सिंह

  • बस स्टैण्ड के जीर्णोद्धार एवं सीसी निर्माण कार्य का किया लोकार्पण
  • नगर के प्राचीन 130 कुओं एवं 30 बावडियों का भी होगा कायाकल्प 

मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश में मंदिरों के शहर पन्ना की ऐतिहासिक व धार्मिक विरासत को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। यह बात प्रदेश के खनिज साधन एवं श्रम विभाग मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने आज बस स्टैण्ड के जीर्णोद्धार एवं सीसी निर्माण कार्य का लोकार्पण अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि विरासत में मिली धार्मिक नगरी हमें सुरक्षित रखनी होगी। यह नगरी हमारी पहचान है जिसको सुरक्षित और सुन्दर बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।



उल्लेखनीय है कि स्मार्ट सिटी योजना अन्तर्गत नगर में किए गए विभिन्न निर्माण कार्यो में बस स्टैण्ड का जीर्णोद्धार सीसी निर्माण कार्य एवं बस स्टैण्ड भवन का जीर्णोद्धार कार्य किया गया है। बस स्टैण्ड एवं अन्य स्थानों पर हाईमास्क लाइट स्थापित की गयी हैं। जिससे नगर और बस स्टैण्ड की सुन्दरता बढी है। मंत्री श्री सिंह ने कहा कि नगर में जहां भी नाले-नालियां हैं उनमें सुधार कार्य करने की आवश्यकता है। जिससे बरसात का पानी सडकों पर न आए। उन्होंने कहा कि नगर में 130 कुंए एवं 30 बावडियां हैं। इन कुंओं का पानी सीपेज की वजह से खराब हो गया है, इस कार्य को देखने की आवश्यकता है। जिससे लबालब भरे रहने वाले कुंओं का पानी उपयोग में लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पेयजल व्यवस्था के लिए नगर में तीन तालाब हैं इनमें धरम सागर, निरपत सागर एवं लोकपाल सागर जिससे नगर को पेयजल की आपूर्ति की जाती है। लोकपाल सागर पूरी क्षमता के साथ भण्डारण की पहले जो व्यवस्था थी वह खराब हो चुकी है। नवीन किलकिला फीडर के कार्य को तेजी से किया जाना चाहिए। जिससे पानी का भण्डारण किया जा सके। उन्होंने नगर को आकर्षक बनाने एवं विरासत को संरक्षित रखने के लिए कहा कि मंदिरों की मरम्मत एवं पुताई आदि का कार्य स्मार्ट सिटी योजना के तहत किया जा रहा है। सभी मंदिरों की पुताई का रंग एक जैसा हो, जिससे आकर्षक लग सके। उन्होंने कउआसेहा से बहकर निकल जाने वाले पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बात कही। उन्होंने सभी श्मशान घाटों को विकसित किए जाने के निर्देश दिए। नगर की प्राचीनकाल से चली आ रही रथयात्रा को सुव्यवस्थित एवं पुरातंत व्यवस्था के अनुसार निकालने की बात कही। उन्होंने कहा कि यदि नगर को आकर्षक बनाया जाएगा तो पर्यटक आना प्रारंभ हो जाएंगे और नगर में व्यवसाय बढेगा।

इस अवसर पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने नगर के लोगों से अपील करते हुए कहा कि अपने नगर को साफ रखने के लिए हमें स्वयं अपने द्वार पर पडे कचरे को कचरा गाडी में डालना चाहिए। नगर को सुन्दर और आकर्षक बनाने के लिए सभी सडकों के दोनों ओर फुटपाथ बनाए जाने की योजना है। जिससे नगर की सडकें साफ-सुथरी रहेंगी और आम आदमी को आवागमन में सुविधा होगी। सम्पन्न हुए इस कार्यक्रम में जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक, पत्रकार एवं आमजन उपस्थित रहे।

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Sunday, November 15, 2020

गोधन की प्रतीक घर-घर पूजी जाने वाली गोधन दाई

      


  यह गोधन नाम से  दीपावली के दूसरे दिन गोबर की बनाई जाने वाली एक स्त्री आकृति है, जिसे हर किसान परिवार की महिलाएं आंगन में बनाकर इसकी पूजा करती हैं। जिसके घर मे जितना पशुधन उतनी ही बड़ी गोधन।

पहले हमारे घर मे चार बैल और पाँच छ: गायें व बछड़े-बछिया हुआ करती थीं। तब की गोधन काफी बड़ी होती और उसके आस पास चरवाहों एवं जानवरों की प्रतीकात्मक आकृतियां भी होती। पर अब मात्र औपचारिकता ही रह गई है। घर में दो गाय हैं अस्तु उन्ही के गोबर के अनुपात में दुबली पतली गोधन भी। लेकिन इस गोधन के साथ आज घर से बाहर निकाल दिए गए उन तमाम गोधनो की याद आये बिना नहीं रहती जो बेचारी दिन भर इधर उधर डण्डे खाने के बाद  रात्रि किसी हाइवे में खड़ी देखी जा सकती हैं।

     प्राचीन समय में जब गांव एक आत्मनिर्भर इकाई हुआ करते थे, तब यह सचमुच गोधन थीं। क्योकि  हमारे कृषक पूर्वजों का इनसे मूक समझौता सा हुआ करता था। हमारे किसान पूर्वज उन्हें घास खिलाते वह उन्हें दूध खिलाती। उस घास से गाय तंदुरस्त होतीं और उनके दूध से हमारे पूर्वज। गाय बछड़ा जनती वह बड़ा होकर हल   खींचता और हमारे पूर्वज हल की मूठ सम्हालते। किन्तु उत्पादन में भूसा, पुआल, चुनी, चोकर, कना गाय बैल का और दाना किसान पूर्वजों का। गाय बैल गोबर करते और हमारे पूर्वज खाद बना उसे गाड़ी में भरते। किन्तु उसे खेत तक खींच कर बैल ही ले जाते। लेकिन उत्पादन में अपने अपने हिस्से की समान भागीदारी। और यदि गाय बैल बूढ़े हो जाय तो उन्हें जीवन पर्यंत खिलाने पिलाने की नैतिक जिम्मेदारी भी किसान की होती। क्योकि कि वह परिवार के अंग समझे जाते। पर जबसे ट्रैक्टर हार्वेस्टर आ गये तो नई पीढ़ी ने उन्हें निकाल बाहर कर दिया। क्यो कि पहले की खेती पेट की खेती थी लेकिन आज की खेती सेठ की खेती हो गई है। जो गाँव से नही शहर से संचालित होती है और उत्पादन का 90 प्रतिशत हिस्सा बिभिन्न माध्यमों से शहर ही चला जाता है। 

@बाबूलाल दाहिया

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Saturday, November 14, 2020

पन्ना में बाघिन को अज्ञात वाहन ने कुचला, हुई मौत

  •  पन्ना-अमानगंज मार्ग पर अकोला के पास की घटना 
  •  बाघिन की मौत से पन्ना टाइगर रिजर्व को अपूर्णीय क्षति

सड़क हादसे का शिकार बाघिन तथा मौके पर मौजूद वन्य प्राणी चिकित्सक व अन्य। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से दीपावली की सुबह बेहद अफसोस जनक और दुखद खबर मिली है। पन्ना-अमानगंज सड़क मार्ग पर अकोला पर्यटन गेट से लगभग 500 मीटर आगे अकोला बफर वृत्त के बीट अमझिरिया में कक्ष क्रमांक 399 एवं 400 की सीमा पर गर्रोहा नाला की पुलिया पर किसी तेज रफ्तार वाहन की टक्कर से एक वर्षीय बाघिन की घटनास्थल पर ही दर्दनाक मौत हो गई है।  वाहन ने बाघिन के सिर को बुरी तरह से कुचल दिया है। सुबह जैसे ही इस हादसे की खबर मिली तुरंत पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा, उपसंचालक जरांडे ईश्वर राम हरि तथा वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता सहित वन अमला मौके पर पहुंच गया। इस दुखद हादसे के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व में शोक का माहौल है। एक वर्ष की उम्र में ही वयस्क सी दिखने वाली इस बाघिन की असमय मौत से पन्ना टाइगर रिजर्व की अपूर्णीय  क्षति हुई है। 

पन्ना-अमानगंज मार्ग पर वह स्थल जहाँ अज्ञात वाहन ने बाघिन को टक्कर मारी। 


 उल्लेखनीय है कि हादसे का शिकार हुई बाघिन अक्सर पन्ना कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर अपनी मां पी-234 के साथ अकोला बफर क्षेत्र के जंगल में आती रही है। पन्ना कोर व अकोला बफर के बीच से यह सड़क मार्ग गुजरता है, जो बाघिन के लिए काल साबित हुआ।  इस क्षेत्र में 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से वाहन चलाने के स्पष्ट निर्देश हैं, इसके बावजूद वाहन चालक दिशा निर्देशों को अनदेखा करते हुए तेज रफ्तार से वाहन चलाते हैं जो हादसे की वजह बनता है। पन्ना-अमानगंज मार्ग पर अकोला के आसपास पूर्व में भी तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आने से चीतल, सांभर, नीलगाय सहित कई वन्य जीवों की मौत हो चुकी है। लेकिन तेज रफ्तार वाहन की टक्कर से किसी बाघ के मौत की यह पहली घटना है। मालूम हो कि मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। कोर क्षेत्र में क्षमता से अधिक बाघों की मौजूदगी के चलते अनेकों बाघ कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर बफर क्षेत्र के जंगल में विचरण कर रहे हैं। अकोला बफर के जंगल में भी कई बाघों की मौजूदगी रहती है, जो सड़क पार कर कोर से बफर व बफर से कोर क्षेत्र में आते जाते रहते हैं।  बाघिन पी-234 का एक वर्षीय मादा शावक भी सड़क पार करते समय हादसे का शिकार हुआ, जिससे उसकी असमय मौत हो गई। 

 अज्ञात वाहन की शुरू हुई तलाश 

बाघिन को असमय काल कवलित करने वाले तेज रफ्तार अज्ञात वाहन की वन अमले द्वारा पहचान करने की हर संभव कोशिश शुरू कर दी गई है। घटनास्थल पर डॉग स्क्वॉड भी पहुंचा तथा मौके से जरूरी साक्ष्य एकत्र किये गये हैं। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने बाघिन का पोस्टमार्टम करने के उपरांत बताया कि इसकी मौत सिर में घातक चोट के कारण हुई है। हादसा रात 12:00 बजे के बाद तड़के 3:00 से 5:00 बजे के दौरान होने का अनुमान लगाया गया है। फल स्वरुप इस दौरान पन्ना अमानगंज मार्ग से निकले वाहनों की तहकीकात और छानबीन की जा रही है, इसके लिए सीसीटीवी कैमरों की भी मदद ली जा रही है।  

पोस्टमार्टम के बाद किया गया अंतिम संस्कार 

बाघिन का पोस्टमार्टम करने के बाद वही निकट स्थित राजाबरिया कैंप के पीछे अंतिम संस्कार किया गया। बाघिन के शव को जब आग के हवाले किया गया, उस समय पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा सहित उपसंचालक, वन्य प्राणी चिकित्सक व अन्य अधिकारी मौजूद रहे। युवावस्था की दहलीज पर पहुंच चुकी इस बाघिन की ऐसी मौत से पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारी काफी विचलित और चिंतित नजर आये। क्योंकि पन्ना में इसके पूर्व कभी किसी बाघ की सड़क हादसे में मौत नहीं हुई। चूंकि पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर दो प्रमुख मार्ग पन्ना-अमानगंज व राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-39 गुजरता है तथा इन दोनों ही मार्गों पर काफी अधिक ट्रैफिक रहता है। जिसे देखते हुए वन्य प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने प्रभावी कदम उठाने होंगे, ताकि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो। मालूम हो कि एक साल के भीतर पन्ना टाइगर रिजर्व में लगातार 6 बाघों की दुर्भाग्यजनक परिस्थितियों में मौत हो चुकी है, जो शुभ संकेत नहीं है।

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Thursday, November 12, 2020

आखिर कहाँ चले गये रात में जगमगाने वाले जुगनू ?



।। अरुण सिंह ।।  

किसी जुगनू की तरह मुझे उड़ जाने दो,घने अंधेरों में जरा रोशनी तो फ़ैलाने दो। कवियों की संवेदनाओं को जगाने वाले जुगनू जब रात के अँधेरे में टिमटिमाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आसमान से झिलमिल तारे धरा पर उतर आये हों। गांव में दिन ढलते ही घर के आँगन व झाडय़िों के झुरमुट में रोशनी फैलाते जुगनुओं के झुण्ड जैसे ही नजर आते थे, हम उन्हें पकड़ने के लिए घण्टों उनके पीछे भागते रहते थे। जब कोई जुगनू पकड़ में आ जाता तो मारे ख़ुशी के झूमने लगते। लेकिन अब तारों की तरह झिलमिलाने वाले जुगनू नजर नहीं आते। रात में चमकने वाले इन छोटे कीटों से जुड़े तथ्यों का पता रॉबर्ट बायल नामक जीव वैज्ञानिक ने 16 67 में लगाया था। अब जेहन में रह रहकर यही सवाल कौंधता है कि रात में जगमगाने वाले जुगनू कहाँ चले गये ? क्या आने वाली पीढ़ियां तिलस्म पैदा करने वाले इस कीट के खूबसूरत नजारों को देखने से वंचित रह जायेंगी ? क्या जुगनू अब सिर्फ कविताओं में ही सिमट कर रह जायेगा ? इस तरह के न जाने कितने सवाल हैं लेकिन किसी भी सवाल का जवाब फ़िलहाल नहीं है। 

उल्लेखनीय है कि जुगनू रात में जागते हैं, यानी ये रात्रिचर जीव हैं। देखने में पतले-चपटे से आकार और स्लेटी रंग के होते हैं। इनकी आंखें बड़ी और टांगें छोटी होती हैं। इनके दो छोटे-छोटे पंख होते हैं। ये जमीन के भीतर और पेड़ों की छाल में ही अपने अंडे देते हैं। जुगनुओं का मुख्य भोजन वनस्पति और छोटे कीट होते हैं। अब सवाल यह उठता है कि आख़िर जुगनू चमकते कैसे हैं? शुरू में तो यह माना जाता था कि ये जीव फॉस्फोरस की वजह से चमकते हैं, लेकिन आगे चलकर इस मामले में हुए प्रयोगों में कुछ और नई बातें पता चलीं। 1794 में इटली के वैज्ञानिक स्पेलेंजानी ने यह साबित किया कि जीवों में प्रकाश उनके शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाओं का नतीजा होता है। ये रासायनिक क्रियाएं मुख्य रूप से पाचन सम्बंधित होती हैं। रासायनिक क्रिया की वजह से ल्यूसिफेरेस और ल्यूसिफेरिन नामक प्रोटीन का निर्माण होता है, लेकिन रोशनी तभी पैदा होती है, जब इन पदार्थो का ऑक्सीजन से संपर्क होता है। ऑक्सीजन के साथ मिलने से ल्यूसिफेरिन ऑक्सीकृत होकर चमक पैदा करने लगता है। इस क्रिया से उत्पन्न रोशनी गर्म नहीं होती, इसे ठंडी रोशनी भी कहते हैं। इस रासायनिक क्रिया को बायोल्युमिनीसेंस कहा जाता है। जुगनुओं से निकलने वाले प्रकाश का रंग पीला, हरा, लाल या मिश्रित हो सकता है।

रोशनी का प्रयोग जुगनू अपने साथी को आकर्षित करने के लिए करते हैं। नर और मादा जुगनुओं से निकलने वाले प्रकाश के रंग, चमक और उनके दिपदिपाने के समय में थोड़ा-सा अंतर होता है। इन्ही के आधार पर वे दूर से भी एक-दूसरे को पहचान लेते हैं। इनमें ख़ास बात यह है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वे एक स्थान पर ही बैठकर चमकती रहती हैं, जबकि नर जुगनू उड़ते हुए चमकते हैं। यानी आप जब भी उड़ते हुए जुगनू देखेंगे तो समझ जाएंगे कि ये नर जुगनू हैं। इसके अलावा इनके शरीर का यह प्रकाश स्वयं को दूसरे कीटभक्षियों से बचाने और अपना भोजन खोजने में भी इनकी मदद करता है। अमेरिका के पेनिनसिलवेनिया स्थित बकनेल विश्वविद्यालय में एवोल्यूशनरी जेनेटिसिस्ट सारा लोवर के अनुसार, जुगनू कोलियोप्टेरा समूह के लैंपिरिडी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। यह हमारे ग्रह पर डायनासोर युग से हैं। दुनियाभर में जुगनुओं की 2,000 से अधिक प्रजातियां हैं। अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों में ये मौजूद हैं। भारत के अलग-अलग हिस्सों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इन्हें हिंदी में जुगनू, बंगाली में जोनाकी पोका और असमिया में जोनाकी पोरुआ कहा जाता है। रात में निकलने वाले इन कीटों के पंख होते हैं जो इन्हें परिवार के अन्य चमकने वाले कीटों से जुदा करते हैं।जुगनुओं का व्यवहार बताता है कि उनकी हर चमक का पैटर्न "साथी" को तलाशने का प्रकाशीय संकेत होता है।  

जुगनू स्वस्थ पर्यावरण का देते हैं संकेत


जुगनू स्वस्थ पर्यावरण का भी संकेत देते हैं। ये बदलते पर्यावरण के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं और केवल स्वस्थ वातावरण में ही जीवित रह सकते हैं। जुगनू वहीं रह पाते हैं, जहां पानी जहरीले रसायनों से मुक्त होता है, भूमि जीवन के विभिन्न चरणों में मददगार होती है और प्रकाश प्रदूषण न्यूनतम होता है। जुगनू मुख्य रूप से पराग या मकरंद के सहारे जीवित रहते हैं और बहुत से पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जुगनुओं की उपयोगिता इस हद तक है कि वैज्ञानिक उनके चमकने के गुण की मदद से कैंसर और अन्य बीमारियों का पता लगा रहे हैं। उदाहरण के लिए स्विट्जरलैंड के रिसर्चरों ने जुगनुओं को चमकने में मदद करने वाला प्रोटीन लिया और उसे एक केमिकल में मिलाया। जब उसे ट्यूमर कोशिका जैसे दूसरे मॉलेक्यूलर से जोड़ा गया तो यह चमक उठा। यह अध्ययन 2015 में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ था।

जुगनुओं के गायब होने की क्या है वजह 

जुगनुओं की आबादी कई कारणों से कम हो रही है। इनमें पेड़ों की कटाई और बढ़ते शहरीकरण को भी प्रमुख रूप से शामिल किया जा सकता है। प्रकाश प्रदूषण के कारण भी जुगनू एक-दूसरे का प्रकाश नहीं देख पाते। इससे अप्रत्यक्ष रूप से उनका जैविक चक्र प्रभावित होता है क्योंकि ऐसी स्थिति में वे अपना साथी नहीं खोज पाते। ईकोलॉजी एंड एवोल्यूशन में 2018 में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि प्रकाश के कारण जुगनू रास्ता भटक जाते हैं, यहां तक की वे इससे अंधे तक हो सकते हैं। कीटनाशकों ने भी जुगनुओं के सामने संकट खड़ा किया है। जुगनू अपने जीवन का बड़ा हिस्सा लार्वा के रूप में जमीन, जमीन के नीचे या पानी में बिताते हैं। यहां उन्हें कीटनाशकों का खतरा रहता है।

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कोरोना महामारी के बीच पन्ना में स्क्रब टाइफस ने दी दस्तक

  •  बीमारी से दो की हो चुकी है मौत व दो अन्य मिले संक्रमित 
  •  जाँच हेतु चिकित्सकों की तीन सदस्यीय टीम पहुँची पन्ना 


अरुण सिंह,पन्ना।
कोरोना महामारी के संकट से अभी निजात मिली नहीं और एक दूसरी खतरनाक बीमारी ने मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में दस्तक दे दी है। स्क्रब टाइफस नाम की इस बीमारी ने पन्ना जिले में दो लोगों की जान ले ली है तथा दो अन्य लोग इससे संक्रमित बताए जा रहे हैं। मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने इस गंभीर बीमारी के संक्रमण की सूचना उच्चाधिकारियों को दी। जिस पर त्वरित कार्यवाही के लिए भोपाल से इन्ट्रोलॉजिस्ट की तीन सदस्यीय टीम को पन्ना भेजा गया है और संक्रमित व्यक्तियों के घर व आसपास के क्षेत्र में सघन जांच शुरू की गई है। हालांकि अन्य लोगों में अभी तक बीमारी के लक्षण नहीं मिले हैं लेकिन एहतियाती तौर पर संक्रमित क्षेत्र में पाए जाने वाले चूहों को पकडकर जाँच की जा रही है। 


जाँच हेतु भोपाल से पन्ना पहुंची तीन सदस्यीय चिकित्सकों की टीम।  

इस संबंध में जानकारी देते हुए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. एल.के. तिवारी ने बताया कि यह बीमारी बेहद गंभीर है। सामान्य तौर पर चूहों के शरीर पर पाए जाने वाले जीवाणु के कारण यह बीमारी होती है। इस बीमारी में सामान्य बुखार के साथ शरीर में छोटो-छोटे दाने, चकत्ते होते हैं। ऐसा होने पर लोगों को तुरंत ही उपचार कराना चाहिए। समय पर उपचार होने से बीमारी 5 दिन में ही ठीक हो जाती है। लेकिन कई बार जानकारी देर से होने पर यह जानलेवा भी सिद्ध होती है। उन्होंने बताया कि पन्ना में अजयगढ़, अमानगंज व पवई के ग्रामीण इलाकों में मरीज मिले थे। जिन्हें उपचार हेतु जबलपुर भेजा गया था। जहां जांच में उनमें स्क्रब टाइफस संक्रमण मिला। उन्होंने बताया कि इन मामलों की सूचना भोपाल भेजी गई थी और भोपाल से टीम आई हुई है। यह संक्रमण अधिक न फैले इसके लिए संक्रमित क्षेत्र में कई लोगों के सेंपल लिए गये हैं, जिनकी जांच की जा रही है। उन्होंने बताया कि यदि घर में चूहे हैं और किसी को बुखार व अन्य लक्षण दिख रहे हैं, तो उपचार करायें। उन्होंने कहा कि लोग साफ-सफाई का ध्यान रखें, इससे ही इस बीमारी से बचा जा सकता है। स्टेट इन्ट्रोलॉजिस्ट शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि स्क्रब टाइफस बीमारी चूहों के संक्रमित पिस्सुओं के काटने से होती है। अजयगढ़ ब्लॉक में दो केस दर्ज हुए हैं, संक्रमित क्षेत्र से चूहों के सेम्पल लेकर जाँच हेतु लैब भेजा जा रहा है ताकि पता चल सके कि यह बीमारी कैसे व कहाँ से फैली। 

कैसे फैलती है स्क्रब टाइफस की बीमारी

स्क्रब टाइफस का बुखार खतरनाक जीवाणु जिसे रिकटेशिया  (संक्रमित माइट, पिस्सू) कहा जाता है, के काटने से फैलता है। यह जीवाणु लंबी घास व झाडय़िों में रहने वाले चूहों के शरीर पर रहने वाले पिस्सुओं में पनपता है और पिस्सुओं के काटने से यह बीमारी होती है। इस बीमारी के होने का खतरा उन लोगों को अधिक होता है जो बरसात के दिनों में खेती-बाड़ी या कृषि संबंधी कार्य करने के लिए खेतों में जाते हैं।

 इस रोग से कैसे करें बचाव

 स्क्रब टायफस बीमारी से बचाव के लिए पूरी आस्तीन के कपड़े पहनकर खेतों में जाएं क्योंकि स्क्रब टायफस फैलाने वाला पिस्सू शरीर के खुले भागों को ही काटता है। घरों के आसपास खरपतवार इत्यादि न उगने दें व शरीर की सफाई का विशेष ध्यान रखें। खुली त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए माइट रिपेलेंट क्रीम का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

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Monday, November 9, 2020

स्टीविया की खेती ने रामलगन की जिंदगी में घोली मिठास

  •  चार एकड़ के किसान ने खेती को बनाया लाभ का धंधा
  •  किसान के अभिनव प्रयोगों को देख कलेक्टर ने की सराहना

रामलगन के खेत में स्टीविया की फसल का अवलोकन करते कलेक्टर साथ में अन्य अधिकारी। 

अरुण सिंह,पन्ना।  मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में एक छोटे से गांव के किसान ने अपने 4 एकड़ के खेत में नई-नई फसलें उगा कर खेती को सही अर्थों में लाभ का धंधा बना दिया है। अजयगढ़ जनपद पंचायत के अनजाने से गांव गुठला के कृषक रामलगन पाल ने अपने खेत के एक हिस्से में वह फसल उगाई, जिसका गांव के लोग नाम तक नहीं जानते थे। उस फसल (स्टीविया) की खेती ने रामलगन की जिंदगी में मिठास घोलने का काम किया है। बड़ी लगन और मेहनत के साथ स्टीविया की खेती करने से अच्छा खासा मुनाफा होने पर उत्साहित इस किसान ने अन्य दूसरी औषधीय फसलों की खेती भी शुरू की, जिससे उसकी जिंदगी बदल गई है। इस छोटे से किसान के अभिनव प्रयोगों की जानकारी मिलने पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा 9 नवंबर सोमवार को गुठला गांव पहुंचकर रामलगन के खेत में लगी स्टीविया की फसल को देखा और उसके प्रयासों को सराहा। उन्होंने क्षेत्र के किसानों को स्टीविया सहित अन्य औषधीय फसलों की खेती करने के लिए प्रेरित भी किया।


एक बीघा खेत में लगी स्टीविया की फसल का द्रश्य। 

उल्लेखनीय है कि आधुनिक जीवन चर्या व खानपान से मधुमेह (शुगर) के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मधुमेह की बीमारी इससे पीड़ित लोगों के लिए भले ही तनाव व परेशानी बढ़ाने वाली बात है, लेकिन किसानों के लिये यह आय बढ़ाने का एक अवसर बन सकती है। समझदार किसान इसी अवसर का लाभ उठाने के लिए स्टीविया की खेती करने लगे हैं।मालुम हो कि मधुमेह के उपचार हेतु मधुपत्र, मीठी तुलसी या स्टीविया की मांग बढ़ रही है। स्टीविया की पत्तियां अत्यधिक मीठी (शक्कर से कई गुना ज्यादा) होती हैं, इनमें प्रोटीन व फाइबर अधिक मात्रा में होता है। कैल्सियम व फास्फोरस से भरपूर होने के साथ स्टीविया की पत्तियों में कई तरह के खनिज भी होते हैं। इसलिए इनका उपयोग मधुमेह रोगियों के लिए किया जाता है। स्टीविया की पत्तियों को सुखाकर शुगर फ्री टेबलेट बनाने में किया जाता है। जो मधुमेह रोगियों के लिए चीनी का एक विकल्प है। कृषक रामलगन पाल ने बताया कि उद्यान विभाग के सहायक संचालक महेंद्र मोहन भट्ट ने उसे स्टीविया की खेती करने के लिए प्रेरित किया तथा तकनीकी मार्गदर्शन के साथ-साथ सहयोग भी किया। तीन वर्ष पूर्व उसने स्टीविया की खेती शुरू की जिसके उत्साहजनक परिणाम निकले। स्टीविया की पत्तियों को विक्रय करने की भी चिंता नहीं रहती क्योंकि व्यापारी घर से इसकी खरीदी कर लेते हैं।

मिर्च व टमाटर के साथ मशरूम की भी खेती

कृषक रामलगन पाल 

 अपने 4 एकड़ के खेत में कृषक रामलगन पाल सिर्फ एक ही फसल नहीं उगाते, बल्कि   कई फसल लेते हैं। मौजूदा समय उनके खेत में स्टीविया के अलावा धान, मिर्च व   टमाटर की फसल लगी हुई है। धान कटने को तैयार है, जबकि मिर्च की फसल से अब   तक उनके द्वारा 25 हजार रुपये कमाए जा चुके हैं। रामलगन ने बताया कि 10 आरे में   (एक बीघा से कम) मिर्च की फसल है, जिसमें मिर्च अभी भी लगे हैं। प्याज की फसल   इनके द्वारा ली जा चुकी है, इस वर्ष लगभग 30 कुंटल प्याज निकली थी जिसे उन्होंने   30 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा है। इसके अलावा खेत में सब्जी वाली अन्य फसलें   मेथी व मूली भी लगी हुई है। महज 4 एकड़ जमीन में इतनी फसलें लेने की वजह का खुलासा करते हुए रामलगन ने बताया कि यदि किन्हीं कारणों व रोग आदि से किसी फसल को नुकसान होता है तो उसकी भरपाई दूसरी फसल से हो जाता है। रामलगन ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने मशरूम की भी खेती शुरू की है, इसके लिए जमीन की जरूरत नहीं, घर में ही मशरुम उगा रहे हैं। उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ बताया कि पहले ही साल में वे कम से कम एक लाख रुपये का सूखा मशरूम बेचेंगे।

 खेत में लगे हैं आंवला के सौ से अधिक पेड़

 प्रयोगधर्मी इस छोटे से किसान की सोच व खेती करने का तरीका दूसरे किसानों से बिल्कुल अलहदा है। वह गेहूं और चना उगाने के बजाय खेत के छोटे-छोटे हिस्सों में विविध प्रकार की फसलें उगाना पसंद करता है। राम लगन की कामयाबी का राज भी यही है। उसके 4 एकड़ के खेत में उन्नत किस्म वाले 100 से भी अधिक आंवले के पेड़ लगे हैं। इस किसान ने बताया कि इन पेड़ों से हर साल 25 से 30 कुंटल आंवला निकलता है जिसे मुरब्बा बनाने वाले घर से ही खरीद कर ले जाते हैं। इससे लगभग 30 हजार रुपये की आय हो जाती है। रामलगन ने आंवले के पेड़ दिखाते हुए बताया कि इस वर्ष फसल कमजोर है। पेड़ों में बहुत ही कम आंवले लगे हैं। इसकी वजह बताते हुए कहा कि टिड्डी दल के कारण आंवले की फसल को भारी नुकसान हुआ है।

स्टीविया की खेती में मिलता है अनुदान : भट्ट

सहायक संचालक उद्यान महेन्द्र मोहन भट्ट ने बताया कि इस ग्राम में विगत 3 वर्षो से रामलगन पाल द्वारा स्टीविया की खेती की जा रही है। इनके द्वारा उत्पादित स्टीविया की फसल की सूखी पत्तियों को 70 से 85 रूपये किलो की दर से विक्रय किया गया है। यह फसल वर्ष में चार बार ली जाती है। जिससे एक एकड की फसल से साल में एक से डेढ लाख रूपये कमाया जा सकता है। स्टीविया की खेती करने पर किसान को भारत सरकार द्वारा एक हेक्टेयर पर 45 हजार रूपये अनुदान के साथ खेती करने की तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है। आपने बताया कि आगामी समय में 250 एकड भूमि पर जिले में स्टीविया की खेती कराये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस खेती से उत्पादित स्टीविया की फसल को क्रय करने के लिए स्थानीय व्यापारियों के साथ जिले के बाहर से व्यापारियों को आमंत्रित किया जा रहा है। यह एक औषधीय फसल की खेती है जो मधुमेह रोगियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। वर्तमान में स्टीविया की मांग निरंतर बढ रही है। आगामी समय में किसानों के लिए यह एक लाभ की खेती के रूप में जाना जायेगा।  

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पहले हम पानीदार थे लेकिन अब हो रहे बेपानी...

किलकिला नदी के किनारे आयोजित कार्यक्रम में मंचासीन डॉ. राजेन्द्र सिंह व अन्य। (फाइल फोटो) 

।। अरुण सिंह ।। 
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कास के नाम पर हमने वसुधा का इस कदर शोषण किया है की प्रकृति का पूरा संतुलन व पारिस्थितिकी तंत्र तहस-नहस हो गया है। सूखा, बाढ़ व प्राकृतिक आपदायें इसी का परिणाम है। फिर भी हम सीख लेने के बजाय प्रकृति का बेइंतहा दोहन और शोषण किये जा रहे हैं। प्रकृति और पर्यावरण के साथ हमारा यह नासमझी पूर्ण व्यवहार इस खूबसूरत पृथ्वी की सेहत को बिगाड़ दिया है, जिसे ठीक करने की दिशा में कुछ लोग प्रयासरत हैं। इन लोगों में जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध मैगसेसे पुरस्कार विजेता डॉ राजेंद्र सिंह प्रमुख हैं। पृथ्वी की सेहत को ठीक करने तथा इस सुंदर और जीवंत ग्रह के नैसर्गिक सौंदर्य को कायम रखने का जो जज्बा और जुनून आपके अंदर हैं वह हर संवेदनशील व्यक्ति के लिए प्रेरणादायी है। आपने बिना किसी सरकारी सहयोग और मदद के समाज को संगठित और जागरूक कर राजस्थान में सात मृतप्राय हो चुकी नदियों को फिर से पुनर्जीवित करने का कार्य किया है। अनूठे व्यक्तित्व के धनी जल पुरुष से सीधे तौर पर मेरा तार्रुफ़ तो नहीं है, लेकिन कुछ घंटों का सानिध्य जरूर मिला जिसमें यह जाना कि बेपानी होने और पानीदार होने का मतलब क्या है।

गौरतलब है कि पृथ्वी दिवस के मौके पर 5 वर्ष पूर्व जल पुरुष राजेंद्र सिंह जी को मध्यप्रदेश के पन्ना शहर में आमंत्रित किया गया था। उस समय नगर पालिका परिषद पन्ना के पूर्व अध्यक्ष बृजेंद्र सिंह बुंदेला जिन्होंने पन्ना शहर के कई तालाबों का जीर्णोद्धार कराने का महती कार्य किया है, इनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। जल पुरुष को पन्ना में आमंत्रित करने का मुख्य उद्देश्य उनके हाथों विषाक्त और गंदे नाले में तब्दील हो चुकी किलकिला नदी को साफ स्वच्छ बनाने का अभियान शुरू कराना था, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर पन्ना आये थे। इस मौके पर एक और अनूठे व्यक्ति की भी मौजूदगी रही, जिन्होंने बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के कुनबे को फिर से आबाद करने का चमत्कारिक कार्य किया है। इन दो विभूतियों की मौजूदगी में किलकिला नदी के किनारे एक कार्यक्रम भी आयोजित हुआ, जिसे  जलपुरुष डॉ. राजेन्द्र सिंह तथा पन्ना में बाघों को आबाद करने में महती भूमिका निभाने वाले भारतीय वन सेवा के अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति ने संबोधित किया।

 

जलकुम्भी निकालकर किलकिला में सफाई अभियान का शुभारम्भ करते जलपुरुष। (फाइल फोटो) 

मेरी स्मृति में 22 अप्रैल 2015 का दिन आज भी अंकित है। इस दिन जल पुरुष ने अपने उद्बोधन में कहा था कि पूरे देश में सिर्फ केन नदी है जो प्रदूषण से मुक्त है। इसका पानी निर्मल और पीने के योग्य है, विषाक्त नहीं है। जबकि देश की सभी नदियां बुरी तरह से दूषित, प्रदूषित और शोषित हैं। इस अर्थ में पन्ना जिले के लोग भाग्यशाली हैं, वे यह कह सकते हैं कि हम नदी वाले हैं। डॉक्टर राजेंद्र सिंह ने कहा कि किलकिला नदी मर चुकी है लेकिन इस मृतप्राय व दूषित और विषाक्त हो चुकी नदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है। यदि पन्नावासी ठान लें और एक जुनून व जज्बे के साथ इस नदी की सेहत को ठीक करने के काम में जुट जाएं तो किलकिला को जीवित करना कठिन नहीं है। जल पुरुष ने पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति के कार्यों की सराहना करते हुए कहा था की मूर्ति जैसे जुनूनी अधिकारियों की जरूरत है, जिन्होंने जंगल बचा कर रखा है। आप लोग भाग्यशाली हैं कि यहां हरियाली, पानी और मिट्टी है।

 प्रणामी धर्मावलंबियों की गंगा कहीं जाती है किलकिला


चौपड़ा मन्दिर के निकट वनक्षेत्र से होकर गुजरती किलकिला नदी का द्रश्य। 

 पन्ना शहर के निकट से बहने वाली किलकिला नदी प्रणामी धर्मावलंबियों के लिए उसी तरह पवित्र और धार्मिक महत्व की है, जिस तरह हिंदुओं के लिए गंगा है। यही वजह है कि किलकिला नदी को प्रणामी संप्रदाय की गंगा कहा जाता है। विगत 5 वर्ष पूर्व जलपुरुष डॉ राजेन्द्र सिंह ने इस पवित्र नदी को साफ स्वच्छ बनाने का संकल्प दिलाया था, जिस पर पहल भी हुई। लेकिन नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान ज्यादा समय तक नहीं चल सका और यह नदी आज भी बुरी तरह से दूषित व विषाक्त है। पन्ना शहर की नालियों और सीवर का गंदा व दूषित पानी इस नदी में पहुंचता है, फलस्वरूप यह नदी गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। पूर्व नपा अध्यक्ष बृजेंद्र सिंह बुंदेला जिनके पहल व प्रयासों से नदी को पुनर्जीवित करने की मुहिम चल रही थी, उनके आकस्मिक निधन के बाद से किलकिला की ओर किसी ने रुख नहीं किया। नतीजतन यह नदी जिसका पवित्र जल देश दुनिया में फैले प्रणामी धर्मावलंबियों बड़ी श्रद्धा के साथ लेकर जाते थे, वह अब गंदगी का पर्याय बन चुकी है तथा बीमारियां परोसने में मददगार साबित हो रही है। जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह की यह सीख हमें याद रखनी चाहिए कि हमारा वास्तविक बैंक आरबीआई नहीं बल्कि जल के भंडार हैं, जिन पर हमारा जीवन निर्भर है। इनकी उपेक्षा और अनदेखी खुद हमारे लिए आत्मघाती साबित होगा। अतीत में हम पानीदार रहे हैं क्योंकि हमारी जीवन चिंतना प्रकृति विरोधी नहीं थी, हम प्रकृति का सम्मान करते थे। लेकिन अब सम्मान का भाव तिरोहित हो गया है और हम संरक्षण के बजाय शोषण में लिप्त हैं, यही कारण है कि अब हम बेपानी होते जा रहे हैं।

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Thursday, November 5, 2020

पन्ना में फिर एक युवक को मिला 6.92 कैरेट वजन का हीरा

 

संदीप कुमार साहू अपने हीरे को दिखाते हुए।      

 अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की हीरा उगलने वाली रत्नगर्भा धरती संकट के इस दौर में मेहनतकश लोगों पर मेहरबान है। गुरूवार को आज फिर एक युवक की किस्मत चमक गई है, उसे कृष्णा कल्याणपुर स्थित पटी की उथली खदान क्षेत्र से जेम क्वालिटी वाला 6.92 कैरेट वजन का कीमती हीरा मिला है। हीरा धारक पन्ना जिले के अजयगढ निवासी संदीप कुमार साहू पिता हरिशचंद्र साहू ने बताया कि हीरा मिलने से वह बहुत खुश है।  इस हीरे की अनुमानित कीमत 30 लाख रुपए बताई जा रही है। युवक ने गुरूवार को कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय आकर वहां विधिवत हीरा जमा कर दिया है। 

हीरा कार्यालय पन्ना के पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि जमा हुए हीरे का वजन 6.92 कैरेट है जो उज्जवल किस्म का हैं। उन्होंने बताया कि आगामी दिनों में होने वाली नीलामी में इस हीरे को रखा जायेगा। नीलामी में हीरा बिकने पर रॉयल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा मालिक को प्रदान की जायेगी। श्री सिंह ने बताया कि संदीप के द्वारा विधिवत दो सौ रूपये का चालान जमा कर 10 बाई 10 मीटर की खदान खोदने का पट्टा पिछले माह 21 अक्टूबर 2020 को लिया  था। इसे चमत्कार ही कहा जायेगा कि महज 15 दिनों में ही पन्ना की रत्नगर्भा धरती ने युवक को लखपति बना दिया। संदीप कुमार साहू ने बताया कि उसके पिताजी चावल का व्यवसाय करते हैं। कोरोना संक्रमण में लाकडाउन के चलते उनका धंधा काफी कम हो गया था और आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो रही थी। काम कम होने के कारण मेरे पास समय था और मैंने खदान लगाने की सोची। बीते 21 अक्टूबर 2020 को मुझे खदान का पट्टा स्वीकृत होकर मिला और मेरे द्वारा काफी मेहनत के साथ खदान खोदी गई फलस्वरूप मुझे सफलता मिल गई। युवक ने कहा कि हीरा मिलने पर अब वह अपनी आगे की पढाई अच्छे से कर सकेगा। उसने कहा कि हीरा बिकने पर जो पैसा मिलेगा उसे पढाई में खर्च करने के अलावा अपने पिताजी के व्यवसाय में खर्च करूंगा ताकि उन्हें मदद मिल सके।

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Wednesday, November 4, 2020

पन्ना की उपलब्धि को केंद्रीय वन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने सराहा

  • मंगलवार को ट्वीट कर पन्ना टाइगर रिजर्व की टीम को दी बधाई 
  • वर्तमान में आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघों का घर है पन्ना  



अरुण सिंह,पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की "वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व्स" सूची में शामिल किया गया है। यह भारत का 12 वां और मध्य प्रदेश के पचमढ़ी और अमरकंटक के बाद तीसरा बायोस्फीयर रिजर्व (जैव आरक्षित क्षेत्र) है, जिसे 'वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व्स' में शामिल किया गया है। वर्तमान में, पन्ना टाइगर रिजर्व 54 बाघों का घर है। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को मिली इस अंतर्राष्ट्रीय पहचान तथा उसकी उपलब्धियों पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रशन्नता जाहिर की है। उन्होंने मंगलवार को ट्वीट कर जानकारी देते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व को बधाई दी है। पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्री प्रकाश जावडेकर ने ट्वीट करते हुए कहा है कि ''पन्ना टाइगर रिजर्व को अब यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया है। टाइगर संरक्षण पर उनके अद्भुत कार्य के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व को बधाई.'' मालूम हो कि वर्तमान में 129 देशों में 714 बायोस्फीयर रिजर्व हैं। 


उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में जब पन्ना टाइगर रिज़र्व बाघ विहीन हो गया था, उस समय राष्ट्रीय स्तर पर इसे आलोचना का शिकार होना पड़ा था। लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना को मिली शानदार कामयाबी के बाद पन्ना टाइगर रिज़र्व राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आकर्षण का केन्द्र बन गया। दुनिया भर से लोग यहाँ की चमत्कारिक सफलता को देखने व समझने के लिए आने लगे। स्थिति यह बनी कि देश व विदेश के वन अधिकारीयों और वन्य जीव प्रेमियों के लिये पन्ना टाइगर रिज़र्व शिक्षा की पाठशाला बन गया, जहाँ बाघ संरक्षण के साथ - साथ पालतू अर्ध जंगली बाघों को जंगली बनाने का सफल प्रयोग हुआ है।   

पन्ना टाइगर रिजर्व की अनूठी सफलता की यह खूबी रही है कि इसकी सराहना हर किसी ने की। कांग्रेस शासन के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री रहे जयराम रमेश ने भी पन्ना की उपलब्धियों को न सिर्फ सराहा था अपितु अप्रैल 2011 में पन्ना टाइगर रिजर्व का दौरा कर बाघिन टी-1 को उसके एक वर्ष के शावकों सहित धुँधुआ सेहा में देखा भी था। इस वर्ष 16 अप्रैल 2020 को परम्परागत रूप से मनाया जाने वाला बाघ जन्मोत्सव के 10वें सालगिरह का  कार्यक्रम कोविड-19 कोरोना संक्रमण के चलते जब नहीं आयोजित हो सका, उस समय भी जयराम रमेश जी ने ट्वीट करते हुए पन्ना की उपलब्धि को याद करते हुये तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति व उनकी पूरी टीम के शानदार प्रयासों की सराहना की थी।    


मालूम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश के उत्तर में पन्ना और छतरपुर जिलों में फैला है। साल 1981 में पन्ना टाइगर रिजर्व की स्थापना राष्ट्रीय उद्यान के तौर पर की गयी थी. बाद में साल 1994 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय उद्यान को पन्ना टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित किया था। मौजूदा समय पन्ना आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघों सहित विविध प्रजाति के वन्य जीवों तथा  मगर व घड़ियालों का घर है। यहाँ 200 से भी अधिक प्रजाति के पक्षी भी पाये जाते हैं जिनमें दुर्लभ गिद्ध भी शामिल हैं। यूनेस्को ने अपने मैन एंड बायोस्फियर प्रोग्राम के तहत पन्ना बायोस्फीयर क्षेत्र को अपने बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में शामिल किया है। गौरतलब है कि जब किसी क्षेत्र को बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में घोषित किया जाता है तो निम्नलिखित तीन चीजों पर बल दिया जाता है। सांस्कृतिक विविधता और जैव विविधता का संरक्षण, आर्थिक विकास जो पर्यावरण और सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से टिकाऊ है। अनुसंधान, शिक्षा, निगरानी और प्रशिक्षण के माध्यम से विकास। बायोस्फीयर रिजर्व में मुख्य क्षेत्र, बफर जोन और संक्रमण क्षेत्र हैं। एक कोर क्षेत्र है जो सख्ती से संरक्षित होता है। बफर ज़ोन का उपयोग उन गतिविधियों के लिए किया जाता है जो वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रशिक्षण और शिक्षा जैसी पारिस्थितिकी का समर्थन करती हैं। संक्रमण क्षेत्र वह क्षेत्र है जहां क्षेत्र के समुदायों को स्थायी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की अनुमति है।

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Tuesday, November 3, 2020

एनएमडीसी से जिला चिकित्सालय को मिली दो एम्बुलेन्स की सौगात

  •  खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने एनएमडीसी के सेवा कार्यों को सराहा 
  • परियोजना को संचालित रखने राज्य व केन्द्र से मिलेगी हरसंभव सहायता 

 जिला चिकित्सालय पन्ना को दो एम्बुलेन्स वाहन सौंपते खनिज मंत्री। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की पहचान बन चुकी एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना समाज सेवा के मामले में भी अग्रणी भूमिका निभाती है। बेशकीमती हीरों का उत्पादन करने वाली यह परियोजना आसपास के ग्रामों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल सहित अन्य बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में सराहनीय कार्य किये हैं। समाजसेवा का यह सिलसिला अनवरत जारी है। इस कड़ी में एनएमडीसी ने आज     जिला चिकित्सालय पन्ना को दो एम्बुलेन्स की सौगात दी है। प्रदेश के खनिज साधन एवं श्रम विभाग मंत्री  बृजेन्द्र प्रताप सिंह की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में जिला चिकित्सालय को एनएमडीसी द्वारा उपलब्ध कराई गयी दो एम्बुलेन्स वाहन एवं बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को आक्सीमीटर उपलब्ध कराने के लिए 5 लाख 64 हजार रूपये का चैक संयुक्त रूप से मंत्री श्री सिंह एवं कलेक्टर पन्ना के द्वारा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एल.के. तिवारी को सौंपा गया।


आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह। 

मंत्री श्री सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि एनएमडीसी लम्बे समय से जिले में हीरे का उत्खनन कर रही है। यह एशिया महाद्वीप की एक मात्र ऐसी खदान है जो आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुये संचालित है। इस परियोजना द्वारा खदान क्षेत्र के आसपास बहुत सारे समाज सेवा के कार्य किये जाते हैं। पास के गांव में शिक्षा, पेयजल, परिवहन आदि की सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके अलावा इनके द्वारा जिला चिकित्सालय में निरंतर सहयोग प्रदान किया जा रहा है। आगे भी अन्य सहयोग प्रदान करते रहेंगे। मंत्री श्री सिंह ने कहा कि परियोजना प्रबंधक से मैंने चर्चा करते हुए कहा है कि नगर मुख्यालय पर कोई ऐसा काम किया जाये जिससे जिला मुख्यालय में पहचान बन सके। इसके लिए धरम सागर तालाब के चारों ओर पाथवे बनाने के संबंध में कहा गया है।  परियोजना प्रबंधक द्वारा कार्य कराने का आश्वासन दिया गया है।

मंत्री श्री सिंह ने कहा कि परियोजना को आगे आने वाले समय में संचालित रखने के लिए राज्य शासन एवं केन्द्र शासन से स्वीकृति प्रदान कराने में हरसंभव सहायता की जायेगी। इस परियोजना से यहां के लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है, इसलिए जिले में इस परियोजना को निरंतर चालू रखने के प्रयास किये     जायेंगे। कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने कहा कि परियोजना द्वारा आवश्यक जनसेवा के कार्य किये जा रहे हैं। इनके द्वारा स्वविवेक से आक्सीमीटर के लिए 5 लाख 64 हजार रूपये की राशि प्रदान की गयी है। इस राशि से आक्सीमीटर क्रय किए जाकर घरों पर आइसोलेट किये जाने वाले कोरोना पॉजिटिव मरीजों के स्वास्थ्य की जांच निरंतर हो सकेगी। उन्होंने अपेक्षा करते हुए कहा कि एनएमडीसी द्वारा आगामी समय में जिला चिकित्सालय को शव वाहन उपलब्ध कराया जायेगा।

मुख्य महाप्रबंधक एनएमडीसी एस.के. जैन ने कहा कि परियोजना को आगे संचालित रखने की स्वीकृति प्राप्त हो जाने पर यह परियोजना निरंतर सामाजिक कार्यो में अपना सहयोग करती रहेगी। सम्पन्न हुए कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रबंधक  भूपेन्द्र कुमार द्वारा उपस्थितों के प्रति विनम्र आभार व्यक्त किया गया। कार्यक्रम में एनएमडीसी से समरबहादुर सिंह, भोला प्रसाद सोनी, सोमेन्द्र प्रताप सिंह, सिविल सर्जन डॉ. व्ही.एस. उपाध्याय, डॉ. गुंजन सिंह, अन्य चिकित्सकगण, पत्रकारगण एवं चिकित्सा विभाग के अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।

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जनता से अब नवीन कार्यालय में मिलेंगे खनिज मंत्री

  •  सिविल लाइन स्थित कार्यालय का हुआ विधिवत शुभारंभ 
  •  पन्ना जिले के लोग अब सुगमता से कर सकेंगे मुलाकात 

 कार्यालय भवन के शुभारम्भ अवसर पर फीता काटते हुये शिवबिहारी श्रीवास्तव साथ में मंत्री जी। 


अरुण सिंह,पन्ना। प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह अब जिला मुख्यालय पन्ना में सिविल लाइन स्थित नवीन कार्यालय में आम लोगों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं सुनेंगे। मुख्य सड़क मार्ग के किनारे स्थित इस नवीन कार्यालय का आज विधिवत शुभारंभ वरिष्ठ अधिवक्ता व मीसाबंदी शिवबिहारी श्रीवास्तव ने फीता काटकर किया। इस अवसर पर पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष जयप्रकाश चतुर्वेदी, बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष बाबूलाल यादव, नपा अध्यक्ष मोहनलाल कुशवाहा सहित भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी, नेता व गणमान्य जन उपस्थित रहे। 

कार्यालय परिसर में पार्टी पदाधिकारियों व आम लोगों से चर्चा करते खनिज मंत्री। 


खनिज मंत्री श्री सिंह ने इस मौके पर चर्चा के दौरान बताया कि अभी तक पन्ना प्रवास के दौरान वे निज निवास में ही आम लोगों से मुलाकात करते रहे हैं। जिससे जगह की संकीर्णता के कारण लोगों को असुविधा होती थी। मालूम हो कि मंत्री श्री सिंह का आवास आबादी क्षेत्र में अंदर घुसकर है, जहां पर्याप्त जगह न होने के कारण अधिक संख्या में लोगों के पहुंचने पर कठिनाई उत्पन्न होती थी। कोविड-19 कोरोना संक्रमण को देखते हुए निज आवास में आम लोगों से मेल मुलाकात कर पाना कठिन होने लगा था। इसी समस्या को दृष्टिगत रखते हुए सुगम स्थान पर कार्यालय जरूरी हो गया था, जहां आम लोग बिना रोक-टोक मंत्री जी से रूबरू मिल सकें। पर्याप्त जगह व विशाल परिसर वाले नवीन कार्यालय के शुरू हो जाने से आम लोगों को जो कठिनाई होती थी उसका समाधान हो गया है।

 पन्ना जिले के लोग अब अपने विधायक व प्रदेश शासन के मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह से सुगमता पूर्वक मुलाकात कर उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराने के साथ-साथ आवेदन भी सौंप सकेंगे। मंत्री श्री सिंह ने बताया कि वे जब भी जिले के प्रवास पर रहेंगे प्रतिदिन सुबह 11 बजे से 2:00 बजे तक आम जनता के लिए इस नवीन कार्यालय में उपलब्ध रहेंगे। सभी आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित नवीन कार्यालय के शुरू होने पर पन्ना विधानसभा सहित जिले के लोगों ने प्रसन्नता व्यक्त की है।

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