Thursday, November 12, 2020

आखिर कहाँ चले गये रात में जगमगाने वाले जुगनू ?



।। अरुण सिंह ।।  

किसी जुगनू की तरह मुझे उड़ जाने दो,घने अंधेरों में जरा रोशनी तो फ़ैलाने दो। कवियों की संवेदनाओं को जगाने वाले जुगनू जब रात के अँधेरे में टिमटिमाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आसमान से झिलमिल तारे धरा पर उतर आये हों। गांव में दिन ढलते ही घर के आँगन व झाडय़िों के झुरमुट में रोशनी फैलाते जुगनुओं के झुण्ड जैसे ही नजर आते थे, हम उन्हें पकड़ने के लिए घण्टों उनके पीछे भागते रहते थे। जब कोई जुगनू पकड़ में आ जाता तो मारे ख़ुशी के झूमने लगते। लेकिन अब तारों की तरह झिलमिलाने वाले जुगनू नजर नहीं आते। 

रात में चमकने वाले इन छोटे कीटों से जुड़े तथ्यों का पता रॉबर्ट बायल नामक जीव वैज्ञानिक ने 16 67 में लगाया था। अब जेहन में रह रहकर यही सवाल कौंधता है कि रात में जगमगाने वाले जुगनू कहाँ चले गये ? क्या आने वाली पीढ़ियां तिलस्म पैदा करने वाले इस कीट के खूबसूरत नजारों को देखने से वंचित रह जायेंगी ? क्या जुगनू अब सिर्फ कविताओं में ही सिमट कर रह जायेगा ? इस तरह के न जाने कितने सवाल हैं लेकिन किसी भी सवाल का जवाब फ़िलहाल नहीं है। 

उल्लेखनीय है कि जुगनू रात में जागते हैं, यानी ये रात्रिचर जीव हैं। देखने में पतले-चपटे से आकार और स्लेटी रंग के होते हैं। इनकी आंखें बड़ी और टांगें छोटी होती हैं। इनके दो छोटे-छोटे पंख होते हैं। ये जमीन के भीतर और पेड़ों की छाल में ही अपने अंडे देते हैं। जुगनुओं का मुख्य भोजन वनस्पति और छोटे कीट होते हैं। अब सवाल यह उठता है कि आख़िर जुगनू चमकते कैसे हैं? शुरू में तो यह माना जाता था कि ये जीव फॉस्फोरस की वजह से चमकते हैं, लेकिन आगे चलकर इस मामले में हुए प्रयोगों में कुछ और नई बातें पता चलीं। 

1794 में इटली के वैज्ञानिक स्पेलेंजानी ने यह साबित किया कि जीवों में प्रकाश उनके शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाओं का नतीजा होता है। ये रासायनिक क्रियाएं मुख्य रूप से पाचन सम्बंधित होती हैं। रासायनिक क्रिया की वजह से ल्यूसिफेरेस और ल्यूसिफेरिन नामक प्रोटीन का निर्माण होता है, लेकिन रोशनी तभी पैदा होती है, जब इन पदार्थो का ऑक्सीजन से संपर्क होता है। ऑक्सीजन के साथ मिलने से ल्यूसिफेरिन ऑक्सीकृत होकर चमक पैदा करने लगता है। इस क्रिया से उत्पन्न रोशनी गर्म नहीं होती, इसे ठंडी रोशनी भी कहते हैं। इस रासायनिक क्रिया को बायोल्युमिनीसेंस कहा जाता है। जुगनुओं से निकलने वाले प्रकाश का रंग पीला, हरा, लाल या मिश्रित हो सकता है।

रोशनी का प्रयोग जुगनू अपने साथी को आकर्षित करने के लिए करते हैं। नर और मादा जुगनुओं से निकलने वाले प्रकाश के रंग, चमक और उनके दिपदिपाने के समय में थोड़ा-सा अंतर होता है। इन्ही के आधार पर वे दूर से भी एक-दूसरे को पहचान लेते हैं। इनमें ख़ास बात यह है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वे एक स्थान पर ही बैठकर चमकती रहती हैं, जबकि नर जुगनू उड़ते हुए चमकते हैं। यानी आप जब भी उड़ते हुए जुगनू देखेंगे तो समझ जाएंगे कि ये नर जुगनू हैं। इसके अलावा इनके शरीर का यह प्रकाश स्वयं को दूसरे कीटभक्षियों से बचाने और अपना भोजन खोजने में भी इनकी मदद करता है। 

अमेरिका के पेनिनसिलवेनिया स्थित बकनेल विश्वविद्यालय में एवोल्यूशनरी जेनेटिसिस्ट सारा लोवर के अनुसार, जुगनू कोलियोप्टेरा समूह के लैंपिरिडी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। यह हमारे ग्रह पर डायनासोर युग से हैं। दुनियाभर में जुगनुओं की 2,000 से अधिक प्रजातियां हैं। अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों में ये मौजूद हैं। भारत के अलग-अलग हिस्सों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इन्हें हिंदी में जुगनू, बंगाली में जोनाकी पोका और असमिया में जोनाकी पोरुआ कहा जाता है। रात में निकलने वाले इन कीटों के पंख होते हैं जो इन्हें परिवार के अन्य चमकने वाले कीटों से जुदा करते हैं।जुगनुओं का व्यवहार बताता है कि उनकी हर चमक का पैटर्न "साथी" को तलाशने का प्रकाशीय संकेत होता है।  

जुगनू स्वस्थ पर्यावरण का देते हैं संकेत


जुगनू स्वस्थ पर्यावरण का भी संकेत देते हैं। ये बदलते पर्यावरण के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं और केवल स्वस्थ वातावरण में ही जीवित रह सकते हैं। जुगनू वहीं रह पाते हैं, जहां पानी जहरीले रसायनों से मुक्त होता है, भूमि जीवन के विभिन्न चरणों में मददगार होती है और प्रकाश प्रदूषण न्यूनतम होता है। जुगनू मुख्य रूप से पराग या मकरंद के सहारे जीवित रहते हैं और बहुत से पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जुगनुओं की उपयोगिता इस हद तक है कि वैज्ञानिक उनके चमकने के गुण की मदद से कैंसर और अन्य बीमारियों का पता लगा रहे हैं। उदाहरण के लिए स्विट्जरलैंड के रिसर्चरों ने जुगनुओं को चमकने में मदद करने वाला प्रोटीन लिया और उसे एक केमिकल में मिलाया। जब उसे ट्यूमर कोशिका जैसे दूसरे मॉलेक्यूलर से जोड़ा गया तो यह चमक उठा। यह अध्ययन 2015 में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ था।

जुगनुओं के गायब होने की क्या है वजह 

जुगनुओं की आबादी कई कारणों से कम हो रही है। इनमें पेड़ों की कटाई और बढ़ते शहरीकरण को भी प्रमुख रूप से शामिल किया जा सकता है। प्रकाश प्रदूषण के कारण भी जुगनू एक-दूसरे का प्रकाश नहीं देख पाते। इससे अप्रत्यक्ष रूप से उनका जैविक चक्र प्रभावित होता है क्योंकि ऐसी स्थिति में वे अपना साथी नहीं खोज पाते। ईकोलॉजी एंड एवोल्यूशन में 2018 में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि प्रकाश के कारण जुगनू रास्ता भटक जाते हैं, यहां तक की वे इससे अंधे तक हो सकते हैं। कीटनाशकों ने भी जुगनुओं के सामने संकट खड़ा किया है। जुगनू अपने जीवन का बड़ा हिस्सा लार्वा के रूप में जमीन, जमीन के नीचे या पानी में बिताते हैं। यहां उन्हें कीटनाशकों का खतरा रहता है।

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3 comments:

  1. मेरे कृषि क्षेत्र में अभी भी चमकते है...😊😊😊

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