Thursday, April 30, 2020

हथिनी मोहनकली ने दिया मादा बच्चे को जन्म

  •  नन्हे मेहमान के आने से पन्ना टाइगर रिजर्व में खुशी का माहौल 
  •  पन्ना में बाघों के साथ-साथ बढ़ रहा हाथियों का भी कुनबा


हिनौता स्थित हांथी कैम्प में अपनी मां मोहनकली के साथ नवजात शिशु। 

अरुण सिंह,पन्ना। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में हथिनी मोहनकली ने एक स्वस्थ मादा बच्चे को जन्म दिया है। यहां हाथियों के कुनबे में एक नये और नन्हे मेहमान के आ जाने से खुशी का माहौल है। 18 वर्षीय हथिनी मोहनकली का यह दूसरा बच्चा है। इसके पूर्व इस हथिनी ने पन्ना टाइगर रिजर्व में वन्या नाम के मादा बच्चे को जन्म दिया था जो अब 5 वर्ष की है। इस नन्हे मेहमान के आ जाने से पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों का कुनबा बढ़कर 15 हो गया है। हांथियों के इस कुनबे में दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला भी शामिल है, जो पन्ना टाइगर रिज़र्व के लिये किसी धरोहर से कम नहीं है। कोविड-19 कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संकट के इस दौर में पन्ना टाइगर रिजर्व से नन्हे मेहमान के आगमन की आई यह खबर सुकून और खुशी प्रदान करने वाली है।
पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एस.के. गुप्ता ने जानकारी देते हुए आज बताया कि हथनी मोहनकली ने 27 अप्रैल को रात्रि 1 बजे पन्ना टाइगर रिजर्व के परिक्षेत्र हिनौता स्थित हाथी कैंप में मादा शिशु को जन्म दिया है। नवजात शिशु का वजन 90 किलोग्राम है तथा हथनी व बच्चा दोनों पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। मादा शिशु अपनी मां का दूध पीने के साथ-साथ कुनबे में शामिल नन्हे सदस्यों से अठखेलियां भी करने लगी है। मालूम हो कि हथनी मोहनकली जब चार-पांच माह की थी उस समय अपनी मां गंगावती के साथ सीधी से पन्ना सितंबर 2001 में आई थी। हथनी गंगावती के साथ हाथी रामबहादुर को भी यहां लाया गया था। तभी से हाथियों का यह कुनबा लगातार बढ़ रहा है और पन्ना टाइगर रिजर्व की सुरक्षा व निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में वनराज व गजराज दोनों के ही कुनबे में वृद्धि हो रही है जो निश्चित ही प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से एक शुभ संकेत है।
क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के.एस.भदौरिया ने बताया कि मौजूदा समय कोरोना वायरस के संक्रमण को दृष्टिगत रखते हुए टाइगर रिजर्व में पर्यटकों का प्रवेश पूर्णतया बंद है। इसके बावजूद हाथी कैम्प व आसपास के क्षेत्र को सैनिटाइज किया गया है तथा नवजात शिशु के पास स्टाफ के अतिरिक्त किसी भी अन्य व्यक्ति का जाना प्रतिबंधित है। श्री भदौरिया ने बताया कि हथिनी मोहनकली व उसके नन्हे शिशु की समुचित देखरेख तथा विशेष भोजन की व्यवस्था भी की जा रही है। हथिनी को दलिया, गुड, गन्ना तथा शुद्ध घी से निर्मित लड्डू खिलाये जा रहे हैं ताकि नन्हे शिशु को पर्याप्त दूध मिल सके। हथनी व उसके शिशु की चौबीसों घंटे देखरेख व निगरानी के लिए स्टाफ की तैनाती की गई है। वन्य प्राणी चिकित्सक भी समय-समय पर मां व शिशु दोनों के स्वास्थ्य का परीक्षण कर रहे हैं।
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Wednesday, April 29, 2020

लॉकडाउन में मनरेगा के तहत मजदूरों को मिल रहा रोजगार

  • जिले की विभिन्न पंचायतों में 1182 निर्माण कार्य प्रारंभ
  • पंचायत क्षेत्र में काम मिलने से मजदूरों को मिली राहत 

मनरेगा योजना के तहत चल रहे कार्य में काम करते ग्रामीण मजदूर।  
अरुण सिंह,पन्ना।  म. प्र. के पन्ना जिले में कोरोना संकट के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों को मनरेगा के तहत काम मिलने लगा है। गाँव में ही काम मिलने से गरीब मजदूरों की मुसीबत कम हुई है तथा परिवार के भरण पोषण की चिंता से उन्हें निजात मिली है। कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने बताया कि जिले में मजदूरों को उनके ग्राम पंचायत क्षेत्र में कार्य उपलब्ध हो सके इसके लिए प्रत्येक पंचायत क्षेत्र में मनरेगा के कार्यो को प्रारंभ कराया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार मनरेगा योजना से निर्माण कार्यो को मंजूरी मिलने के बाद जिले की ग्राम पंचायतों में 1182 निर्माण कार्य प्रारंभ हो चुके हैं। इन कार्यो में जल संरक्षण एवं कृषि से संबंधित कार्यो को प्राथमिकता दी जा रही है। जिले में चल रहे कार्यो में 8180 श्रमिकों को मजदूरी का काम मिल रहा है। इससे लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को मनरेगा योजना से रोजगार प्राप्त होने पर बडी राहत प्राप्त हुई है। कार्य स्थल पर श्रमिकों के बीच उचित दूरी बनाये रखने के साथ चेहरे को ढके रखना अनिवार्य किया गया है। प्रत्येक कार्य में मेट तैनात है जो इन शर्तो को सुनिश्चित करवायेगा। इन कार्यो की ग्राम पंचायत के उपयंत्रियों द्वारा निरंतर मॉनीटरिंग कराई जा रही है। आवश्यकतानुसार उपकरणों एवं हांथों को सेनेटाइजर अथवा साबुन से धोने के निर्देशों का पालन कराया जा रहा है। कार्य स्थल पर धूम्रपान, गुटखा, तम्बाखू आदि का सेवन प्रतिबंधित किया गया है। कार्य स्थल पर थूकना पूर्णता प्रतिबंधित किया गया है। ऐसे श्रमिक जिन्हें सर्दी, जुखाम, खांसी, बुखार, सांस फूलने आदि के लक्षण दिखाई दे रहे हों उन्हें कार्य में नहीं लगाया जा रहा है। काम पर रखे जाने वाले श्रमिकों का स्वास्थ्य परीक्षण कराने के निर्देश हैं।
कलेक्टर श्री शर्मा द्वारा निर्देशित किया गया है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में मनरेगा के कार्य प्रारंभ कराकर मजदूरों की आवश्यकता एवं मांग अनुसार कार्य उपलब्ध कराया जाये । इस संबंध में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत  बालागुरू के द्वारा बताया गया कि जिले में 960 हितग्राहीमूलक कार्य, 222 सामुदायिक कार्य मनरेगा योजना अन्तर्गत प्रारंभ किए गये हैं। इनमें कुल 8180 मजदूरों को लॉकडाउन की अवधि में रोजगार मुहैया कराया जा रहा है। मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए जिले के समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायतों को निर्देश दिये गये हैं कि अपने अपने क्षेत्र अन्तर्गत अधिक से अधिक मनरेगा योजना के कार्यो को प्रारंभ करते हुए स्थानीय स्तर पर श्रमिकों को रोजगार मुहैया करायें।

कोरोना संक्रमण रोकने  प्रशासन का करें सहयोग 

जिले के नागरिकों, जनप्रतिनिधियों, मीडिया कर्मियों एवं अधिकारियों, कर्मचारियों को कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा है कि सभी के द्वारा कोरोना वायरस संक्रमण रोकथाम में आवश्यक सहयोग प्रदान किया गया है। उन्होंने अनुरोध किया है कि आगे भी इसी तरह सहयोग प्रदान करते रहें।
जिला प्रशासन द्वारा आमजनता की कठिनाईयों को ध्यान में रखते हुए समय - समय पर शासन के निर्देशानुसार सशर्त छूट दी जा रही है। आप सबको लॉकडाउन के दौरान जो भी छूट दी गयी है उसका लाभ निर्धारित शर्तो के अन्दर ही उठायें। उन्होंने कहा कि कहीं भी भीडभाड एकत्र न करें। आपस में शारीरिक दूरी बनाकर रखें। घर से आवश्यक कार्य के लिए निकलते वक्त अपने साथ बच्चों को न लायें। बच्चों और बुजुर्गो को घर पर ही रहने की सलाह दें। अनावश्यक घरों से बाहर निकलकर सडकों पर न आयें। दुकानों के लिए निर्धारित समय के अन्दर ही आवश्यक सामग्री का क्रय शारीरिक दूरी बनाकर करें। उन्होंने आम लोगों से अपील करते हुए यह भी कहा है कि सडे गले फल सब्जी, बासी भोजन न खायें। अनावश्यक सडकों पर घूमने, भीड एकत्र करने पर पुलिस प्रशासन द्वारा कठोर कार्यवाही की जायेगी।
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अंधविश्वास की वजह से उल्लू प्रजाति की घट रही संख्या


एक आउल का चित्र लेने के लिए फरवरी से जून तक का समय सबसे अच्छा माना जाता है, क्योकि उस समय आप इन्हें आराम से ढूंढ लेते हैं। या यूं कहें कि ये उस समय ही सबसे ज्यादा असुरक्षित होते हैं क्योंकि यही समय मध्य भारत में इनके प्रजनन और अंडे देकर बच्चे निकलने का होता है। उस समय घोसले की सुरक्षा के लिए ये ज्यादातर खुले में बैठे मिल जाते हैं। 
 इनकी इसी कमजोरी का फायदा शिकारी ओर कुछ छायाचित्र प्रेमी करते हैं।  इस समय मादा घोसले में बच्चो के साथ होती है व नर पास में कहीं खुले में बैठा होता है। जो पहले नजर आ जाता है, फिर वह शिकारी को अपनी ओर आकर्षित करके वहाँ से दूर उड़ जाता है, जिससे शिकारी को ये पता ही नही चलता कि वहाँ घोसले भी है और  वह घोसले से दूर हो जाता है।  पर कई छायाकार उनके घोसले की ताक में रहते हैं और उस समय तक उनको परेशान करते हैं जब तक कि वे घोसले से उड़ कर अच्छा फ़ोटो न दे दें।
इसी तरह अपने भारत मे उल्लुओं को लेकर पुरातन काल से बहुत से मिथक भी चले आ रहे हैं। लोग इन्हें देवी लक्ष्मी का रूप मानते हैं, कुछ लोग इन्हें काले जादू का प्रतीक भी मानते हैं, तो कुछ इन्हें बली की वस्तु भी मानते हैं। इन सब मिथकों की वजह से दीवाली, होली, पूर्णिमा, अमावस्या को इनकी पूजा या बली दी जाती है।
जिससे किसी व्यक्ति को तो आज तक कुछ नहीं मिला पर इस वजह से इन उल्लुओं का अस्तित्व खतरे में जरूर पड़ गया है। इस अवैध शिकार की वजह से मध्य भारत में भी उल्लू प्रजाति की संख्या में बहुत कमी आई है।
जबकि ये जीव अनजाने में हमारे कई काम आता है जिसमे से सबसे ज्यादा ये चूहों की संख्या को नियंत्रित करके कई बीमारियों से भी बचाता है अपितु खेतों की फसलों को भी सुरक्षित करता है। परंतु अंधविश्वास की वजह से हम इन जैसे शर्मीले प्राणी को मार डालते हैं। आज काफी लोग इस बात को जान गये हैं पर अभी भी कई अंधविश्वासी लोग इस तरह के गैर कानूनी रूप से  हो रहे व्यापार और शिकार में शामिल हैं। अगर आप इस तरह की गतिविधियों को देखे तो तुरंत वन विभाग या पुलिस को सूचित करें। और इन सुंदर और शर्मीले जीवों को बचायें।
@Aamir Nasirabadi bhiya

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Tuesday, April 28, 2020

पन्ना जिले के अमानगंज स्थित क्वारेंटाइन सेंटर में युवक ने लगाई फांसी

  • 24 अप्रैल को मजदूरी करके गढ़ाकोटा जिला सागर से वापस लौटे थे 6 युवक 
  • अमानगंज स्थित शासकीय स्नातक महाविद्यालय में किया गया था क्वारेंटाइन 

खिड़की के ऊपर रोशनदान से लटका युवक का शव। 
अरुण सिंह,पन्ना। म. प्र. के पन्ना जिले में अमानगंज थाना अन्तर्गत क्वारेंटाइन सेंटर में एक 19 वर्षीय युवक ने 28 अप्रैल मंगलवार की दोपहर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है।युवक ने फांसी क्यों व किन परिस्थितियों में लगाई इस बात का खुलासा अभी नहीं हो सका है, फलस्वरूप मामले को लेकर क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चायें हो रही हैं। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक विगत 24 अप्रैल 2020 को मजदूरी करके गढ़ाकोटा जिला सागर से वापस लौटे 6 युवकों को अमानगंज स्थित शासकीय स्नातक महाविद्यालय में क्वारेंटाइन किया गया था,जिनमें मृतक रामलखन कुशवाहा उम्र19 वर्ष निवासी घटारी जिला पन्ना भी शामिल था। इस युवक द्वारा बेहद संदेहजनक परिस्थितियों में जिस तरह से आत्मघाती कदम उठाया गया है, उससे व्यवस्थाओं को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
 उल्लेखनीय है कि अमानगंज स्थित क्वारेंटाइन सेंटर में रखे गये युवक द्वारा आत्महत्या किये जाने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आते ही क्वारेंटाइन सेंटर शासकीय स्नातक महाविद्यालय अमानगंज में तहसीलदार अवंतिका तिवारी, थाना प्रभारी अमानगंज राकेश तिवारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचकर घटनास्थल का जायजा लिया। बताया गया है कि मृतक युवक का पिता आज सुबह ही यहाँ आकर अपने पुत्र से मुलाकात भी की थी, लेकिन इस मुलाकात के कुछ ही घंटे के बाद सामने आई इस घटना ने परिजनों के साथ - साथ क्षेत्र वासियों को भी दहला दिया है। हादसे के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिये  थाना प्रभारी अमानगंज राकेश तिवारी जी के मोबाईल पर कई बार सम्पर्क करने का प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने पूरी रिंग जाने पर भी मोबाईल रिसीव नहीं किया। सूत्रों के मुताबिक आज मृतक युवक का क्वारेंटाइन सेंटर में ही किसी से विवाद  भी हुआ था, इस विवाद को भी आत्महत्या की घटना से जोड़कर देखा जा रहा है। युवक ने खिड़की के ऊपर रोशनदान से लटककर जिस तरह फांसी लगाई है, उसे देखकर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। अनुत्तरित सवालों के बीच युवक के शव को उतारकर पीएम के लिए भेजा गया, जहां पर डॉक्टर एम.के. गुप्ता द्वारा मृतक का पीएम किया गया है। पुलिस द्वारा मामले की विवेचना की जा रही है।
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Wednesday, April 22, 2020

इंसान चिंतित और प्रकृति मुस्कुरा रही



अरुण सिंह, पन्ना। इस साल पृथ्वी दिवस के 50 साल पूरे हो रहे हैं। 'पृथ्वी दिवस या अर्थ डे' पहली बार साल 1970 में मनाया गया था। बीते इन 50 वर्षों के दौरान हर वर्ष  पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पृथ्वी दिवस मनाया जाता रहा है। पृथ्वी की दयनीय दशा व बिगड़ते पर्यावरण पर दुनिया भर में चर्चायें व बड़े सैमिनार आयोजित होते रहे,  रैलियां निकाली जाती रहीं लेकिन पृथ्वी की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती ही चली गई। आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में पृथ्वी की सेहत को सुधारने और पर्यावरण संरक्षण के लिये संकल्प भी लिए जाते रहे हैं लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि यह सब कुछ  केवल औपचारिकतावश किया जाता रहा है। अपनी न ख़तम होने वाली इच्छाओं और अनावश्यक जरूरतों की पूर्ति के लिये बीते 50 वर्षों में हमने सिर्फ पृथ्वी का दोहन किया है। हमने यह ग़लतफ़हमी पालनी शुरू कर दी कि पृथ्वी हमारी है, इसका दोहन कर तकनीकी प्रगति और समृद्धि हासिल करना हमारा हक़ है। पृथ्वी पर स्वामित्व की इस अहंकारी सोच के चलते हमने प्रकृति और पर्यावरण को अनदेखा किया। इसी का पारिणाम  आज पूरी दुनिया भोग रही है, एक अद्रश्य वायरस ने मनुष्य की तकनीकी प्रगति, ज्ञान और सामर्थ्य को बौना साबित कर दिया है। कोरोना वायरस के कहर से पूरी दुनिया में लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गये हैं और पहली बार पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी मुस्कुरा रही है।
 गौरतलब है कि कोरोना संकट से पूरे विश्व को आर्थिक नुकसान हुआ है, लोगों की स्वतंत्रता और जीवनचर्या पर भी पाबन्दी लगी है। निश्चित ही यह स्थिति मनुष्य के लिये बेहद कष्टदायी है लेकिन इसका एक बड़ा फायदा भी हो रहा है। धरती को नया जीवन मिल गया है। न सिर्फ हवा बल्कि नदियों का पानी भी साफ हो गया है, जलचर भी इस अप्रत्याशित बदलाव से आल्हादित हैं। परिंदों की चहचहाहट बढ़ गई है, वन्य जीव निर्भय होकर आबादी क्षेत्रों के आसपास भी विचरण करने लगे हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन हुआ तो न सिर्फ सड़कों पर वाहनों का चलन बंद हुआ बल्कि मानक के विपरीत चल रहीं तमाम फैक्ट्रियां भी बंद हो गईं। इससे वातारण काफी साफ हुआ है तथा प्रदूषण का स्तर कम हुआ है। देश व्यापी लॉक डाउन में पृथ्वी पर जैव विविधता बढ़ने के साथ ही पृथ्वी की सेहत भी सुधर रही है। पिछले एक माह से चले आ रहे लॉकडाउन के चलते पृथ्वी की सेहत में सुधार का दावा पर्यावरणविद भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण कम है जो पृथ्वी के लिये अच्छा है।

पृथ्वी दिवस और कोरोना संकट के समय आनंद सिंह की यह कविता मौजूदा हालातों पर काफी कुछ प्रकाश डालती है -

इंसान को 
शिकायत थी  
ज्यादा काम की 
कमी आराम की 
वक़्त नहीं होने की 
ट्रैफिक भरे रास्तों की 
हर जगह लगी 
लम्बी लाइनों की। 

और एक दिन जब 
यह सब नहीं था 
तब वो बेचौन थे 
फिर से इन्हे 
हासिल करने को। 

बड़े - बड़े देशों में, 
एक होड़ मची थी 
रेंकिंग और दर्जों की, 
कुछ महाशक्ति थे, 
और कुछ को यकीन था,
कि अगला नंबर, उन्ही का है। 

फिर एक दिन 
धरे रह गए 
सारे पैमाने,
अब जूझ रहे थे,
पूरी दुनिया के इंसान,
कि बस 'जीवन' बना रहे। 
कोई 'टैग' रहे ना रहे। 

संसार के रंगमंच पर, 
इंसान सचमुच चिंतित थे 
और दूर कहीं, नेपथ्य में 
प्रकृति मुस्कुरा रही थी। 

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Tuesday, April 21, 2020

कोरोना संकट के बीच पन्ना पुलिस बुझा रही परिंदों की भी प्यास

  • गर्मी में पक्षियों की जिंदगी बचाने अजयगढ़ थाना पुलिस की अभिनव पहल 
  • विश्रामगंज घाटी से लेकर अजयगढ़ तक जगह - जगह  पेड़ो पर टंगवाये डिब्बे 


विश्रामगंज घाटी में पेड़ पर टंगे डिब्बे में पानी डालता पुलिसकर्मी। 

अरुण सिंह,पन्ना। कोरोना संकट और लॉक डाउन के बीच कानून व्यवस्था कायम रखने के साथ - साथ म.प्र. के पन्ना जिले की पुलिस गर्मी के इस मौसम में मूक पशु पक्षियों का भी ध्यान रख रही है। गर्मी से बेहाल परिंदों की प्यास बुझाने के लिये अजयगढ़ थाना प्रभारी अरविंद्र कुजूर व उनके सहयोगियों ने विश्रामगंज घाटी से लेकर अजयगढ़ तक जगह - जगह  पेड़ो पर पानी से भरे डिब्बे टंगवाये हैं। अजयगढ़ थाना पुलिस की इस अभिनव और संवेदनशील पहल की न सिर्फ सराहना हो रही है अपितु ऐसा करने के लिये लोग प्रेरित भी हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि गर्मी में पानी को अमृत के समान माना जाता है। मनुष्य को प्यास लगती है तो वह कहीं भी मांग कर पी लेता है, लेकिन मूक पशु पक्षियों को पानी न मिलने पर उन्हें प्यास से तड़पना पड़ता है। भीषण गर्मी में कई परिंदों व पशुओं की मौत पानी की कमी के कारण हो जाती है। अजयगढ़ थाना पुलिस की तरह यदि हर कोई थोड़ा सा प्रयास करे और अपने घरों के आस पास उड़ने वाले परिंदों के लिये पानी रखे तो उनकी जिंदगी बच सकती है। सुबह आंखें खुलने के साथ ही घरों के आस-पास गौरेया, मैना व अन्य पक्षियों की चहक सभी के मन को मोह लेती है। घरों के बाहर फुदकती गौरेया बच्चों सहित बड़ों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है। गर्मियों में घरों के आसपास इनकी चहचहाहट बनी रहे, इसके लिए जरूरी है कि लोग पक्षियों से प्रेम करें और उनका विशेष ख्याल रखें। जिले में गर्मी बढने लगी है, यहां का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर जाता है। आने वाले सप्ताह और जेठ में और अधिक गर्मी पडने की संभावना है। भीषण तपिश भरी गर्मी में प्यास से बेहाल परिंदों को पानी देना पुण्य का कार्य है क्योंकि पानी न मिले तो पक्षी बेहोश होकर गिर पड़ते हैं।अजयगढ़ नगर निरीक्षक अरविंद कुजूर ने बतलाया कि उक्त कार्य उन्होंने स्व प्रेरणा से किया है। इस कार्य को सफल बनाने हेतु पन्ना अजयगढ़ मुख्य मार्ग में स्थित जो भी दुकान संचालक एवं स्थानीय लोग हैं, उनको भी प्रेरित किया गया है । ताकि वे भी इस पहल में अपना योगदान दे सकें । उन्होंने जिलेवासियों से अपील की है कि अपने - अपने घरों की छतों पर एवं आसपास लगे पेड़ पौधों पर खाली डिब्बों को या बर्तनों को पेड़ में टांगे तथा उसमें नियमित पानी भरें, ताकि इस भीषण गर्मी में कोई भी पक्षी जल के अभाव में दम  तोडे। मालुम हो कि गर्मी में पक्षियों के लिए भोजन की भी कमी रहती है। पक्षियों के भोजन कीड़े-मकोड़े गर्मियों में नमी वाले स्थानों में ही मिल पाते हैं। खुले मैदान में कीड़ों की संख्या कम हो जाती है, जिससे पक्षियों को भोजन खोजने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जंगलों में पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं, साथ ही जल स्त्रोत भी सूख जाते हैं। यही वजह है कि गर्मियों में पशु पक्षियों को दाना पानी देने की भारतीय परम्परा रही है। इस परम्परा का निर्वहन करके पन्ना जिले की अजयगढ़ थाना पुलिस ने जो संवेदनशीलता दिखाई है वह काबिलेतारीफ है।
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Monday, April 20, 2020

शर्तो के साथ जिले में प्रारंभ की जायेंगी विभिन्न गतिविधियां

  • पूर्व में जारी आदेश में संशोधन करते हुए गतिविधियों को दी गई सशर्त छूट 
  • शर्तो के उल्लंघन करने पर संबंधित के विरूद्ध की जायेगी कार्यवाही 

कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी कर्मवीर शर्मा। 

पन्ना।  कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी कर्मवीर शर्मा द्वारा जिले में धारा 144 लागू करते हुए प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किये गये थे। पूर्व में जारी आदेश में संशोधन करते हुये कुछ गतिविधियों को सशर्त प्रारंभ करने की छूट दी गयी है। अब घर से बाहर निकलने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मुंह को ढककर अथवा मास्क लगाकर निकलना अनिवार्य होगा। उपयोग किए जा रहे कपडे या मास्क का सही ढंग से साबुन से धोना अनिवार्य होगा। प्रत्येक व्यक्ति को सोशल डिस्टेंसिंग का अनिवार्यताः पालन करना होगा। इन शर्तो के उल्लंघन करने पर संबंधित के विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी।
संशोधित आदेश के अनुसार सभी तरह की शैक्षणिक, प्रशिक्षण, कोचिंग संस्थान, हॉवी क्लासेस पूर्णता प्रतिबंधित रहेगी। केवल ऐसी शैक्षणिक संस्थाएं जो ऑनलाईन अध्ययन स्थानीय चौनल दूरदर्शन या अन्य शैक्षणिक चौनलों से शैक्षणिक कार्य करा सकेंगे। जिले में कृषि एवं कृषि से संबंधित धान, दाल, मिलिंग, उद्योग, पशुपालन से जुडी समस्त गतिविधियां, कृषि कार्य, पशुपालन, दुग्ध विक्रय, परिवहन तथा गौशाला का संचालन चालू रहेगा। सभी तरह के शासकीय एवं निजी स्वास्थ्य सुविधाएं क्लीनिक एवं प्रयोगशाला संचालित हो सकेंगी। आवश्यक सेवा वाले विभाग यथा राजस्व, स्वास्थ्य, पुलिस, जेल, वन, कोषालय, आयुष चिकित्सा शिक्षा, पशु चिकित्सा, विद्युत, दूरसंचार, नगरपालिका, पंचायत, डाक सेवा, खाद्य, उद्यानिकी, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, मध्यप्रदेश जल निगम, मर्यादित परियोजना क्रियान्वयन इकाई सहित समस्त विभागों के सामाजिक न्याय से जुडे संस्थान, कृषि उपज मण्डी समिति के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया अनुसार कृषि उपातों की खरीदी, कृषि उपार्जन में लगी संस्थाएं प्रतिबंध से पूर्णता मुक्त रहेंगी। परन्तु विभागों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों में सोशल डिस्टेंसिंग की जिम्मेदारी कार्यालय प्रमुख की होगी।
व्यवसायिक गतिविधियों में किराना, पशु आहार, आटा चक्की, कृषि मशीनरी स्प्रेयर पार्ट, कृषि मशीनरी मरम्मत के लिए रिपेयरिंग सेंटर, फार्म मशीनरी संबंधित कस्टम हेयरिंग सेंटर, खाद, बीज, उर्वरकध्कीटनाशक विक्रय की दुकानें प्रतिदिन प्रातः 11 बजे से शाम 4 बजे तक खोली जा सकेंगी। इसके अतिरिक्त अत्यावश्यक वस्तुओं की होम डिवेलरी की सुविधा निर्बाध रूप से जारी रहेगी। इसी प्रकार बैंक शाखाओं, एटीएम, बैंकिंग कारस्पोेंडेट, बीमा कम्पनी कार्यालय, मीडिया, कोरियर, ईकमर्स, गैस एजेन्सी, पेट्रोल पम्प, कोरियर सेवाएं, वेयर हाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज, दुग्ध केन्द्र संचालित हो सकेंगे। स्वरोजगारी व्यक्तियों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं इलेक्ट्रिशियन, प्लामबर, मोटर मैकेनिक एवं पंखा, कूलर, गैस रिपेरिंग से संबंधित स्वरोजगारी घर पहुंच सेवा दे सकेंगे। दूध विक्रेता प्रातः 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक दूध का विक्रय करने के साथ शाम के समय दूध की होम डिलेवरी 5 बजे से 7 बजे तक की जा सकेगी। फल, सब्जी, हाथ ठेला द्वारा सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक फेरी लगाकर विक्रय कर सकेंगे। फसलों का उपार्जन कार्य विभिन्न कृषि मंडियों में किया जा सकेगा। शासकीय उचित मूल्य दुकान प्रतिदिन निर्बाध रूप से खुल सकेंगी।
जिले के ग्रामीण अंचलों में मिट्टी के काम, खनन कार्य, क्रेसर, ईट भट्टा, ग्रामीण सडक निर्माण, सिंचाई प्रोजेक्ट, पेयजल प्रोजेक्ट आदि को सोशल डिस्टेंसिंग एवं चेहरे पर कपडा, मास्क बांधने की शर्त के साथ संबंधित अनुविभागीय दण्डाधिकारी की अनुमति प्राप्त होने पर संचालित किए जाएंगे। इन कार्यो में जिले के अन्तर्गत जिले के बाहर से अतिआवश्यक वस्तुओं का आदान प्रदान लोगों की लाने की आवश्यकता होने की स्थिति में अनुविभागीय दण्डाधिकारी से पृथक से अनुमति प्राप्त करनी होगी।
राज्य सरकार के नियमों के तहत आवश्यक निर्देशों का पालन करते हुए ग्राम पंचायतों में मनरेगा अन्तर्गत गतिविधियां एवं वन क्षेत्र में वनीकरण, पौध रोपण तथा उससे संबंधित श्रममूलक कार्य किए जा सकेंगे। समस्त प्रकार की मीडिया को मीडिया से संबंधित कार्य निर्बाध रूप से करने की स्वतंत्रता होगी। सोशल मीडिया पर किसी भी प्रकार की अफवाह तथा भ्रामक जानकारी फैलाने पर पूर्णतः रोक लगाई जाती है। समस्त प्रकार की छूट प्राप्त गतिविधियों में संबंधित छूट प्राप्त व्यक्ति, संस्था, अधिकारी, कर्मचारी, दुकानदार की यह व्यक्तिगत जबावदेही होगी कि वह कोरोना संक्रमण न फैले इस हेतु सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करतेध्कराते हुए कम से कम एक मीटर की दूरी के मापदण्ड का पालन करेगाध्करवाएगा। उल्लंघन की दशा में संबंधित स्वयं जिम्मेवार होगा।
कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति या ऐसा व्यक्ति जिसमें संक्रमण के लक्षण नजर आते है या ऐसा व्यक्ति जो विदेश यात्रा कर लौटा है वह अपना सम्पूर्ण पता मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना को उपलब्ध कराएगा एवं वह इस दौरान किस किस के सम्पर्क में आया है इसकी सूचना भी चिकित्सा अधिकारी को उपलब्ध कराएगा। चिकित्सा अधिकारी द्वारा एि गए निर्देशानुसार निश्चित समय एवं स्थान पर चिकित्सीय परीक्षण हेतु उपस्थित रहना सुनिश्चित करेगा। इस दौरान स्वयं को होम क्वारेन्टाईन में रखेगा अर्थात अन्य किसी के सम्पर्क में नही आएगा अथवा चिकित्सकों द्वारा प्रदाय निर्देश का अक्षरसः पालन करेगा। प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह चेकपोस्ट अथा अन्य किसी स्थान पर शासकीय अमले को, चिकित्सीय जांच में आवश्यक सहयोग प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध होगा। चिकित्सीय अमले द्वारा होम क्वारेन्टाईन में अथवा शासकीय भवन में स्थिति कोरोन्टाईन सेंटर में रहने के निर्देश दिए जाने पर संबंधित व्यक्तिध्व्यक्तियों के समूहध्परिवार को उसका पालन करना अनिवार्य रहेगा। किसी के द्वारा जानबूझकर किसी प्रकार के संक्रमण फैलाए जाने पर तत्काल रोक लगाई जाती है। सार्वजनिक स्थानों पर थूकरने पर प्रतिबंध रहेगा। होम कोरोन्टाईन हेतु आदेशित कोई भी व्यक्ति घर से बाहर पाए जाने पर उसके विरूद्ध अन्य प्रावधानों के साथ साथ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 269, 270 के तहत कार्यवाही की जाएगी।
अपंजीकृत डॉक्टर, झोलाछाप डॉक्टर, झाडफूक करने वाले व्यक्तियों द्वारा किसी भी प्रकार से भ्रामक जानकारी फैलाने, अनुचित दवाईयां या वस्तु इस प्रकार के संक्रमण के नाम पर देना पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाता है। बगैर अनुमति के किसी को भी ठहराने पर प्रतिबंध रहेगा। जिला आपूर्ति अधिकारी एवं खाद्य और औषधी प्रशासन के अधिकारी रोस्टर क्रम में खाद्य पदार्थो एवं आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत आने वाली सामग्री की कालाबाजारी एवं जमाखोरी पर नियंत्रण रखने के साथ प्रचुर मात्रा में सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे।
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कोरोना वायरस नहीं, ये हैं बस्तर की घाटी में खिले अल्ली फूल

बस्तर की पथरीली घाटियों में  खिले अल्ली फूल अपनी खूबसूरती बिखेरते हुए। 

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस एक लाख से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला चुका है इसलिए लोग अब करोना वायरस की तस्वीर देखकर ही घबराने लगे हैं।  परंतु यह तस्वीर देख घबराएं नहीं। यह करोना वायरस नहीं अपितु बस्तर संभाग के चित्रकोट के समीप मटनार घाटी में खिले अल्ली फूल हैं। जो हूबहू करोना वायरस की तरह दिखते हैं। इन दिनों बस्तर की पथरीली घाटियों में यह फूल अपनी खूबसूरती बिखेरे हुए हैं। घाटी में खिले अल्ली फूल में औषधीय गुण भी पाये जाते हैं। इसका उपयोग रंग बनाने में भी किया जाता है।

सिर्फ बस्तर में है ऑली या अल्ली

वनस्पतिशास्त्री डॉ एमएल नायक ने बताया कि ऑली फूल को छत्तीसगढ़ में सिर्फ बस्तर की पथरीली घाटियों में ही देखा गया है। स्थानीय ग्रामीण अल्ली के नाम से इसे पहचानते हैं। यह मेलास्टोमेस परिवार का सदस्य है और इसका वैज्ञानिक नाम मेमेकोलीन एड्यूल है। भारत में यह ऑली,आयरन वुड तो श्रीलंका में कोराकह (नीली धुंध) के नाम से चर्चित है। इसमें पीली डाई व ग्लूकोसाइड होता है। श्रीलंका के तटीय क्षेत्रों में ऑली फूलों का उपयोग रंग बनाने में होता है। बौद्ध भिक्षु आमतौर पर इसका उपयोग कपड़ा रंगने में वर्षों से करते रहे हैं। ईख की चटाई को रंगने में भी इन फूलों के रंगों का प्रयोग किया जाता है।

पत्तों में औषधीय गुण

आयुर्वेद चिकित्सक निखिल देवांगन बताते हैं कि ऑली की पत्तियों का रस एंटी डायरियल होता है। इसलिए बस्तर के ग्रामीण दस्त की समस्या होने पर इसकी पत्तियों का रस पीते हैं। हाजमा की समस्या से परेशान लोग भी इस फूल की पत्तियों के रस का उपयोग करते हैं। ऑली की शाखाओं का दातून भी ग्रामीण करते हैं।
@अनिल मिश्र, जगदलपुर
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खेती ही बचाएगी भारतीय अर्थव्यवस्था को

  • संकट में शहरों ने गांवों से आये मजदूरों को स्वीकारने से किया इनकार
  • गांव लौट चुके मजदूर अब रोजगार के लिए जल्दी शहर नहीं लौटने वाली



लॉकडाउन के कारण देश भर में अपने-अपने घरों में बंद लोगों के लिए एक ही सबसे बड़ी जरूरत है। वह है भोजन की, और वह भी एक बार नहीं, बल्कि तीन बार। चाहे अमीर आदमी हो, जो अपने घर में आराम से बैठा हुआ रोज अलग-अलग व्यंजन बनाने के तरीके निकालता है, या गरीब आदमी हो, जो यमुना किनारे फेंके गए सड़े केले के ढेर से खाने लायक केला निकालता है, भोजन मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है। लॉकडाउन के इस कठिन समय में बार-बार दोहराई जाने वाली यह कहावत-कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है-न केवल और स्पष्ट है, बल्कि इसका महत्व और प्रतिपादित हुआ है।
लेकिन जरा इसकी कल्पना करें कि इस चुनौतीपूर्ण समय में अगर देश के पास पर्याप्त अनाज न हो, तो कैसी उथल-पुथल मच जाएगी। इसकी कल्पना करें कि अगर हमने मुख्यधारा के आर्थिक विशेषज्ञों की सलाह मानते हुए हमारी आबादी के 20 फीसदी लोगों के बराबर अनाज का भंडार रखा होता, तो क्या हालत होती। कल्पना करें कि अगर एपीएमसी मंडी को भंग कर दिया गया होता और अनाज की सरकारी खरीद का सिलसिला खत्म कर दिया जाता, तो क्या हालत होती। एक अध्ययन बताता है कि हमारी राष्ट्रीय जरूरत के तीन गुने से भी अधिक अनाज का भंडार होने के बावजूद 96 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को राशन नहीं मिला है। लॉकडाउन के बाद असंख्य भूखे-प्यासे मजदूर सैकड़ों-हजारों किलोमीटर का पैदल सफर कर जिस तरह अपने गांव पहुंचे, वह दशकों से घनीभूत हो रहे संकट का साकार दृश्य था। संकट के समय मजदूरों ने शहरों से जिस तरह गांवों का रुख किया, और रास्ते में फंसे लोगों के लिए राज्य सरकारों ने जिस तरह भोजन और शिविरों का प्रबंध किया, वह कृषि संकट से जुड़े एक मौजूदा, लेकिन छिपे हुए पहलू की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है।
दरअसल शहरों ने गांवों से आए मजदूरों को स्वीकारने से इनकार किया, और स्पष्टतः एक विभाजक रेखा बनाए रखी। ऐसी स्थिति में, लॉकडाउन के कारण जब रोज मजदूरी मिलने की शृंखला टूटी, तब मजदूरों ने खुद को अलग-थलग पाया। गांव लौट चुके मजदूरों की बड़ी संख्या अभी रोजगार के लिए शहर नहीं लौटने वाली। उन्होंने कठिन समय में गांव लौटने का फैसला इसलिए लिया कि अपने परिजनों के बीच वे अंततः भूखे नहीं रहेंगे। यह तथ्य हमारी असंगत आर्थिक सोच के बारे में ही बताता है। जाहिर है, बड़ी संख्या में लोगों को गांवों से निकालकर शहरों में ले जाया गया, क्योंकि शहरों को सस्ते मजदूर चाहिए। एक तरफ कृषि उत्पादों की कीमत कम रखकर खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखकर, दूसरी ओर, उद्योगों को सस्ता कच्चा माल मुहैया कराकर कृषि क्षेत्र को जान-बूझकर कमतर हैसियत दी गई। किसानों को उनके अनाज के उचित मूल्य से वंचित करने के बावजूद किसान साल दर साल रिकॉर्ड अनाज उत्पादन कर रहे हैं। यह संयोग नहीं है कि लॉकडाउन उसी समय हुआ, जब रबी फसल की कटाई का समय है। इस साल बेमौसमी बारिश के बावजूद फसल अधिक होने की उम्मीद थी।
लेकिन चूंकि लोग घरों में बंद हैं, और रेस्टोरेंट, होटल और ढाबे बंद हैं, ऐसे में, जल्दी बर्बाद हो जाने वाली सब्जियों और फलों की मांग ही नहीं रही। बंदगोभी,फूलगोभी, मूली, मटर और दूसरी सब्जियों से भरे खेतों में किसानों द्वारा दोबारा हल चलाने की रिपोर्टें आई हैं। किसानों ने टमाटर अपने खेतों में ही डंप कर दिए। स्ट्रॉबरी गायों को खिला दी गई और मशरूम सड़ गए। अलफांसो आम,अंगूर, केले, कॉफी, चाय, काजू और मसाले की कीमत लुढ़क गई। पोल्ट्री उत्पादकों की बर्बादी तो सबसे अधिक हुई। दूध, मछली और फूल के बाजारों पर भी काफी असर पड़ा। कृषि मजदूरों की कमी ने मौजूदा संकट को और गहरा दिया है। गेहूं का उत्पादन इस बार रिकॉर्ड 10.6 करोड़ टन हुआ बताया जाता है, पर खेत मजदूरों के अभाव से गेहूं की कटाई प्रभावित होगी।
 हालांकि सरकार ने व्यावहारिक कारणों से कृषि, बागवानी, बागानी फसलों, मछली पालन और पशुपालन को आज से लॉकडाउन से बाहर रखा है, और गेहूं की खरीद भी सुस्त रफ्तार से होने लगी है। लेकिन लॉकडाउन के पहले दौर में कृषि क्षेत्र के बुरी तरह प्रभावित होने के बावजूद ऐसा जताया जा रहा है कि तुलनात्मक रूप से कृषि क्षेत्र की स्थिति बेहतर है। इस संकट को छोड़ भी दें, तो बड़ा सवाल यह है कि क्या यह महामारी कृषि क्षेत्र के बारे में हमारा नजरिया बदल देगी। क्या इसके बाद सरकारी नीति में कृषि को वरीयता मिलेगी? या संकट से बाहर निकल जाने के बाद कृषि के प्रति पहले जैसा ही उपेक्षित नजरिया रहेगा? यह तो तय है कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारों का जोर बढ़ेगा, पर क्या कृषि को भी उतना ही महत्व मिलेगा? कृषि के प्रति नीति-नियंताओं की सोच बदलने से क्या खेती-किसानी आर्थिक रूप से फायदेमंद हो जाएगी? इन सवालों पर गंभीरता से विचार-विमर्श होना चाहिए, क्योंकि कोविड-19 के बाद नीतियों में बदलाव कृषि क्षेत्र का भविष्य तय करेगा। पिछले कई दशकों से नीति निर्माण में खेती को उपेक्षित किया गया है।
जो कृषि क्षेत्र 50 फीसदी आबादी को रोजगार देता है, उसमें 2011-12 से 2017-18 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश जीडीपी का 0.3 से 0.4 फीसदी रहा। चूंकि संकट के इस समय में कृषि अर्थव्यवस्था के मजबूत खंभे के रूप में सामने आ रही है, ऐसे में, कृषि को हाशिये पर डालने का प्रयास राजनीतिक रूप से आत्मघाती होगा। कृषि क्षेत्र में जहां व्यापक बदलाव और भारी निवेश की जरूरत है, वहीं किसानों को उनके उपज का लाभकारी मूल्य और मासिक आय मुहैया कराना चुनौती होगा। ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) का एक अध्ययन बताता है कि अपने फसलों का उचित मूल्य न पाने से भारतीय किसानों ने 2000 से 2016-17 के बीच 45 लाख करोड़ रुपये खोए। अगर किसानों को ये रुपये मिलते, जो 2.6 लाख करोड़ सालाना बैठता है, तो खेती छोड़ लोग शहरों की ओर पलायन न करते। कोविड-19 के बाद सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। यह एक आशावादी सोच भर नहीं है। यह एक ऐसा विचार है, जिसका समय आ चुका है।
 ( अमर उजाला से साभार )
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Sunday, April 19, 2020

पन्ना में कोरोना योद्धाओं के लिए बनाये जा रहे पीपीई किट

  • कलेक्टर निर्देश पर स्व सहायता समूह की महिलायें कर रहीं निर्माण 
  • प्रथम चरण में 500 पीपीई किट बनकर हुये तैयार,निर्माण कार्य जारी  


कलेक्टर श्री शर्मा पीपीई किट निर्माण स्थल का निरीक्षण करते हुये। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कोरोना योद्धाओं को वायरस के संक्रमण से बचाने के लिये स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा पीपीई किट का निर्माण किया जा रहा है। समूह की सदस्य महिलाओं ने 500 कीटों का निर्माण किया है, जो सुरक्षा के निर्धारित मापदण्डों को पूरा कर रहे हैं। मालुम हो कि   पन्ना जिले में कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए कलेक्टर कर्मवीर शर्मा के निर्देशानुसार स्व सहायता समूह की महिलाओं से पीपीई किट का निर्माण कराया जा रहा है। कलेक्टर श्री शर्मा पीपीई किट निर्माण स्थल का निरीक्षण करने स्वयं पहुंचे। वहां उन्होंने स्व सहायता समूह की सदस्य महिलाओं से चर्चाकर तैयार किटों का अवलोकन किया। उन्होंने तैयार किट का परीक्षण मौके पर एक किट पहनाकर किया। उन्होंने देखा कि इस किट से सर से पैर तक पूरी तरह व्यक्ति सुरक्षित हो जाता है। उन्होंने स्व सहायता समूहों को सफलतापूर्वक किट बनाए जाने पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 500 किट और बनाये जाने के निर्देश दिये। प्रथम चरण में 500 पीपीई किट का निर्माण कार्य किया गया है, अब 500 और पीपीई किट बनाये जायेंगे। अधिकृत रूप से मिली जानकारी के मुताबिक यह कार्य  जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री बालागुरू के मार्गदर्शन में आजीविका मिशन पन्ना के स्व सहायता समूह द्वारा सामुदायिक प्रशिक्षण केन्द्र पुराना पन्ना में किया जा रहा हैं। समूह द्वारा प्रथम चरण में 500 पीपीई किटों का निर्माण कार्य पूर्ण किया जा चुका है। भविष्य की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए 500 किट और तैयार करने का कार्य प्रारंभ किया जा रहा है। इन किटों का उपयोग कोरोना वायरस संक्रमित रोगियों के नमूने लेने, उपचार करने एवं देखभाल करने वाले मेडिकल स्टाफ एवं डॉक्टरों द्वारा किया जायेगा।

जिले में घर-घर जाकर किया जा रहा सर्वे 

कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए की जा रही तैयारियोें में जिले में तृतीय चरण का सर्वे कार्य घर-घर जाकर किया जा रहा है। सर्वे के दौरान सर्दी, जुखाम, बुखार, खांसी आदि के मरीजों के साथ पूर्व से किसी अन्य बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों की सूची तैयार कर संबंधित क्षेत्र के चिकित्सा दल को भेजी जाती है। चिकित्सा दल गांव में जाकर सूची में प्राप्त बीमार व्यक्तियों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उपचार एवं परामर्श दिया जा रहा है। इस दौरान चिकित्सक दल द्वारा ऐसे बीमार रोगियों को चिन्हित किया जाता है जिनकी उम्र अधिक है एवं पूर्व से किसी बीमारी से पीडित हैं। ऐसे व्यक्तियों में 50 वर्ष से अधिक उम्र के नाम कोरोना संक्रमण के अधिक खतरे वाली सूची में रखे जाते हैं। इसके अलावा बीमार तथा कम आयु वर्ग के व्यक्तियों के नाम कोरोना संक्रमण की सामान्य खतरे वाली सूची में दर्ज कर दिये जाते हैं। सर्वे के दौरान अब तक लगभग 4 हजार 241 लोग सर्वे में विभिन्न बीमारियों से पीडित पाये गये हैं। इन पीडितों का स्वास्थ्य परीक्षण विकासखण्डों में तैनात चलित चिकित्सा इकाई के चिकित्सक दल द्वारा किया जाकर उपचार एवं परामर्श दिया जा रहा है।
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Saturday, April 18, 2020

तम्बाकू का सेवन कर थूकने वालों पर होगी कार्यवाही

  • तम्बाकू एवं तम्बाकू से बने पदार्थो का सार्वजनिक स्थलों पर उपयोग प्रतिबंधित
  • कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने कहा जिले में यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू 

कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी कर्मवीर शर्मा व अन्य अधिकारी। 

अरुण सिंह,पन्ना। कोरोना वायरस के संक्रमण को द्रष्टिगत रखते हुये अब सार्वजनिक स्थलों व सड़कों में थूकने वालों के विरुद्ध कार्यवाही होगी। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी कर्मवीर शर्मा ने बताया कि तम्बाकू का सेवन जनस्वास्थ्य के लिए बडे खतरो में से एक है। थूकना संचारी रोगों के फैलने का एक प्रमुख कारण है। तम्बाकू सेवन करने वालों की प्रवृत्ति यत्र-तत्र थूकने की होती है। थूकने के कारण कई गंभीर बीमारियों यथा कोरोना कोबिड-19, इन्सेफलाईटिस, यक्ष्मा, स्वाईन फ्लू इत्यादि बीमारी के संक्रमण फैलने की संभावना प्रबल रहती है। तम्बाकू सेवन करने वाले लोग गंदगी फैलाकर वातावरण को दूषित करते हैं जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों के फैलने के लिए उपयुक्त परिस्थिति तैयार होती है।
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना वायरस को विश्व व्यापी महामारी घोषित किया जा चुका है तथा भारत सरकार एवं मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इस विश्व व्यापी महामारी के रोकथाम एवं बचाव हेतु कई तरह के दिशानिर्देश जारी किए गये हैं। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 268 या 269 के अनुसार कोई भी व्यक्ति यदि ऐसा विधि विरूद्ध अथा उपेक्षापूर्ण कार्य करेगा जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलना संभाव्य हो तो उस व्यक्ति को 6 माह की अवधि तक का कारावास अथवा 200 रूपये तक के जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पादन अधिनियम (कोटपा) 2003 की धारा 4 के अनुसार सभी सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान प्रतिबंधित है। प्रतिबंधित स्थलों पर धूम्रपान निषेध का उल्लंघन करने पर दण्ड स्वरूप 200 रूपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। तम्बाकू सेवन के उपरांत उसे यत्र-तत्र थूकने को निषिद्ध करने के साथ वातावरण के स्वच्छ रखने में सहयोग मिलेगा। साथ ही यह कदम राज्य सरकार के कोरोना जैसी महामारी से बचाने तथा स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत अभियान में अहम योगदान होने के साथ ही जन स्वास्थ्य की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करेगा।
उन्होंने जनस्वास्थ्य की रक्षा के लिए कोबिड-19 से रोकथाम व बचाव हेतु एपिडेमिक एक्ट 1897 एवं मध्यप्रदेश एपिडेमिक डीसीजेज कोविड 19 विनियम 2020 तथा मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ एक्ट 1949 की धारा 71 (1) के सुसंगत प्रावधानों के अन्तर्गत आगामी आदेश तक जिले के सभी सरकारी, गैर सरकारी कार्यालय एवं परिसर, सभी स्वास्थ्य संस्थान तथा परिसर, सभी शैक्षणिक संस्थान एवं परिसर, सभी थाना एवं सार्वजनिक स्थान जैसे मनोरंजन केन्द्र, पुस्तकालय, स्टेडियम, होटल, शापिंग मॉल, कॉफी हाउस, निजी कार्यालय, न्यायालय परिसर, सिनेमा हॉल, रेस्टोरेंट, सभागृह, प्रतीक्षालय, बस स्टॉप, लोक परिवहन, टी स्टॉल, मिष्ठान भण्डार, ढाबा में किसी भी प्रकार का तम्बाकू पदार्थ तथा सिगरेट, बीडी, खैनी, गुटखा, पान मसाला, व जर्दा इत्यादि का उपयोग पूर्णतः प्रतिबंधित किया है। यदि कोई भी पदाधिकारी, कर्मचारी या आगन्तुक इस नियम का उल्लंघन करते हैं तो उल्लंघन कर्ताओं पर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा।

जानकारी न देना  दण्डनीय अपराध : कलेक्टर

पन्ना कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने जिले की आमजनता एवं सर्वे कार्य में लगाये गये दलों से अपील करते हुये कहा है कि परिवार के बीमार सदस्य की जानकारी न देना और सर्वे दल द्वारा जानकारी प्राप्त न करना दोनों दण्डनीय अपराध है। उन्होंने आम जनता से अपील करते हुये कहा है कि यदि उनके परिवार में कोई भी व्यक्ति सर्दी, जुखाम, खांसी, बुखार, सांस फूलने आदि की बीमारी से वर्तमान में पीडित हुआ है तथा उनके परिवार में पूर्व से टी.बी., केंसर, हृदय रोग, ब्लड प्रेसर, शुगर, किडनी आदि किसी भी बीमारी से पीडित है तो इसकी जानकारी सर्वे दल को अनिवार्य रूप से बतायें। यदि सर्वे के दौरान सर्वे दल को जानकारी नहीं दे पाये हैं तो अभी भी सर्वे दल के सदस्य, आंगनवाडी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता, ग्राम पंचायत सचिव, रोजगार सहायक आदि के माध्यम से जानकारी दर्ज करा दें। जानकारी दर्ज होने पर चिकित्सक दल द्वारा संबंधित मरीजों का परीक्षण कर उपचार उपलब्ध कराया जायेगा।
इसी प्रकार उन्होंने सर्वे दल के सदस्यों से अपील करते हुए कहा है कि वे अपने अपने क्षेत्र के शत प्रतिशत परिवारों से गृह भेट कर परिवार के बीमार सदस्य की जानकारी प्राप्त करें। यदि सर्वे के दौरान किसी परिवार से भेट नही हुई थी उस परिवार से पुनः गृह भेटकर जानकारी प्राप्त करें। यदि कोई भी परिवार का सदस्य पूर्व में जानकारी नही दे पाया था बाद में जानकारी दे रहा है उसकी भी जानकारी गृह भेटकर दर्ज करें। क्योंकि शत प्रतिशत व्यक्तियों की जानकारी प्राप्त न करना सौंपे गये दायित्वों के प्रति लापरवाही है जो दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
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गेहूं की कुछ देसी दुर्लभ किस्में जिन्हें हम भूल गये

  •  पद्मश्री बाबूलाल दहिया ने दुर्लभ किस्मों का किया संरक्षण 
  •  इनके पास धान सहित 200 किस्मों के देसी बीजों का है संग्रह


कृषक बाबूलाल दाहिया जी खेत में गेंहू की फसल के बीच। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। आधुनिक कृषि तकनीक, रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग होने के चलते  परंपरागत जैविक खेती लुप्त प्राय सी हो गई है। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रकृति प्रदत्त अनाज की अनेकों देसी किस्में आंखों से ओझल हो चुकी हैं। इन परिस्थितियों में एक कृषक ऐसे भी हैं जिन्होंने देसी अनाज की किस्मों को बचाने और उन्हें संरक्षित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। मध्यप्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पिथौराबाद के निवासी 75 वर्षीय कृषक बाबूलाल दहिया के पास धान सहित देसी अनाजों की 200 किस्मों का दुर्लभ और बेशकीमती संग्रह है। उनके इस अनूठे योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है।
कृषक बाबूलाल दहिया जी में परंपरागत खेती को बढ़ावा देने तथा देसी अनाजों को बचाने व संरक्षित करने का जुनून है। उनका कहना है कि अगर किसान को आगे बढ़ना है और अपने परिवार का स्वास्थ्य बेहतर रखना है तो देसी अनाजों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना होगा। देसी बीज में लागत कम होने के साथ ही हर प्रकार के मौसम को सहन करने की क्षमता होती है, इसलिए किसान ज्यादा से ज्यादा देसी बीज बचायें। इससे पर्यावरण के साथ-साथ मिट्टी भी सुरक्षित रहेगी।
मौजूदा समय रबी सीजन की फसलों विशेषकर गेहूं की कटाई और गहाई का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है।कोरोना संकट के बावजूद किसान ऐन - केन प्रकारेण खेत से फसल अपने घर तक ले जाने के लिए पूरे जतन से जुटा हुआ है। ऐसे समय जैविक खेती को बढ़ावा देने वाले कृषक बाबूलाल दहिया जी द्वारा उगाई गई देसी गेहूं की कुछ दुर्लभ किस्मों के बारे में आप भी जाने -

गेहूं की यह नीलांबर  किस्म है




 जी हां, गेंहू की बेहद दुर्लभ देसी किस्मों में से एक यह नीलांबर किस्म का गेंहू है। नीलाम्बर इसलिये क्यों कि आकाश की तरह इसके दाने का रंग भी नीला है। दाहिया जी बताते हैं कि इस वर्ष हमारे पास इसके मात्र 10 पौधे ही उगाये गये थे, अस्तु अधिक अध्ययन तो नहीं हो सका है पर दाना मोटा, कम लम्बा और नीले रंग का होता है।  लेकिन पकने पर बाल सफेद  हो जाती है जिसमें  6 पंक्ति में बिरल दाने लगते हैं। इसमे 4 पंक्ति में बड़े दाने व दो में छोटे आकर के दाने। इसकी बाल के एक कतार में 9- 10 दाने होते हैं और पौधा लगभग 3 फीट ऊंचा होता है। बौनी किस्म होने के कारण निश्चय ही यह अधिक पानी लेता होगा पर इस वर्ष प्राकृतिक वर्षा की निरंतरता के कारण अध्ययन नहीं हो पाया। यह वंशी आदि गेहूं के साथ ही पक जाता है। लीजिए आप भी इसके दाने और बाल का अवलोकन कीजिए।
                                             

यह गेहूं की खैरा किस्म

  जी हां यह गेहूं की खैरा किस्म है जिसकी बाल का रंग हल्का ललामी लिए हुए पर दाना सर्बदी चमकदार है। यह परम्परागत किस्म का गेँहू 4 फीट ऊंचा और   बाल 6 की कतार में विभक्त होती है।  जिसमें 4 पंक्ति के दाने बड़े एवं 2 पंक्ति के छोटे आकार के होते हैं। बाल में दानों की कतार 9- 10 दानों की बिरल होती है।
 इसके दाने का रंग भले ही मटमैला हो पर खाने में स्वादिष्ट होता है, जिसकी रोटी और दलिया दोनों खाई जा सकती है। यह वर्षा आधारित खेती वाला पौधा है और बड़ा तना होता है।  इसलिए कुछ पानी अपने लम्बे तने में संचित कर लेता है अस्तु एक दो बार पानी मिल जाय तो ठीक किन्तु न मिले तब भी जितना पकेगा ठोस एवं चिलकदार ही।

सबसे लम्बे दाने वाला गेंहू - सर्जना 1


जी हां यह गेहू की ही एक किस्म है जिसके बाल  के दानों के आवरण से ही पता चल जाना है कि इसका दाना कितना लम्बा होगा ? सम्भवतः दुनिया के इस सबसे लम्बे दाने वाले  गेहूं के बिकसित होने का इतिहास भी अदभुत है। एक किसान ने अपने खेत में गेहूं बो रखा था। उसमें उसे एक ऐसा पौधा दिखा जिसका तना पत्तियां तो गेहूं की तरह थे किंतु बाल बिचित्र तरह की थी। वह उसे गेहूं में जमने वाली कोई हमशक्ल घास समझता था । उसने अपने कौतूहल बने गेहूं को सर्जना के अध्यक्ष को दिखाया। उन्होंने उसे संरक्षित कर रखने की सलाह दी। बाद में उसमे गेहूं के दाने जैसे बड़े - बड़े दाने निकले । वह किसान तो उस गेहू को संरक्षित नहीं रख सका ? किन्तु परम्परागत अनाजो को संरक्षण करने वाली संस्था सर्जना ने उसे चुनौती के रूप में लिया एवं उस गेहूं का संरक्षण किया। पर नाम मालूम न होने के कारण फिलहाल उसका नाम सर्जना 1 ही रख दिया गया है। इस गेहूं का पौधा 3 फीट ऊंचा और मोटा व दाना अन्य गेहुओ से लगभग दो गुना लम्बा होता है। अभी इसके स्वाद के बारे में अध्ययन तो नही हुआ पर दाने का रंग चमकीला सर्बदी है। फसल अन्य गेहुओ से 7- 8 दिन लेट आती है। बौनी किस्म होने के कारण हो सकता है सिचाई अधिक ले ? किन्तु इस वर्ष पर्याप्त वर्षा होने के कारण उसका अध्ययन नही हो पाया। इसका आज 5 किग्रा बीज उपलब्ध है।  इसलिए अगले साल विधिवत अध्ययन हो सकेगा। बाल में दाने की पंक्ति 6 एवं हर पंक्ति में दाने की संख्या 8- 9 होती है।

गेंहू जिसकी बाल सफ़ेद लेकिन दाना काला 



हमारे तमाम गेहुंओ की किस्मो में एक गेंहू यह भी है, जिसका पौधा हरा पकने पर बाल सफेद किन्तु उसे  मीजने पर जो दाने निकलते हैं उनका रंग काला होता है। इसे हमने एक छोटे से भ-ूखण्ड में 10 कतारों में बोया था। पता नहीं इसे किस बैज्ञानिक ने अनुसन्धान कर बिकसित किया किन्तु यह बौनी किस्म का गेहूं है, जिसके तने की लम्बाई 3 फीट होती है। इसके बाल के एक कतार में 9-10 बिरल दाने होते हैं जो 6 की कतारों में होते हैं। इसकी चार पंक्ति में बड़े एवं दो में छोटे दाने निकलते हैं। इसमें कौन - कौन पोष्टिक तत्व किस मात्रा में होते हैं, यह नहीं मालूम । खाने में स्वाद कैसा है ? यह भी ज्ञात नहीं। क्यो कि थोड़ा सा बीज  केदार सैनी जी से प्राप्त हुआ था जिसे हमने उगाया था।

गेहूं की परम्परागत किस्म हंसराज



यह गेहूं की एक परम्परागत किस्म हंसराज  है। इसका दान सर्बदी रंग का चमकदार होता है। वर्षा आधारित खेती के लिए प्रकृति द्वारा सौगात के रूप में मिले इस गेहू का तना 4 फीट ऊँचा होता है ताकि वक्त जरूरत कुछ पानी वह लम्बे तने में संचित रख बीज को ठोस और चिलकदार बनाने में मददगार हो सके। एक दो बार सिंचाई हो जाय तो ठीक पर न हो तब भी चिन्ता से मुक्त। बाल में दाने बिरल किन्तु कतार में 9-10 की संख्या में व 6 पंक्ति जिसमे 4 में बड़े दाने 2 में छोटे दाने होते हैं। खाने में चाहे रोटी बने चाहे दलिया दोनों के लिए उपयुक्त है।

   यह कठिया की ही एक किस्म कठुई 



यह कठिया गेहूं की ही एक किस्म  कठुई है। कठिया की बाले गसे दाने की होती है और बाल में लम्बे टेढ़े से काटे उसकी पहचान है पर बालो के रंग से यह दो प्रकार का होता है। बाल सफेद किन्तु दाने मटमैले। बाल का रंग हल्का ललामी युक्त पर दाना मटमैला। यह दूसरे प्रकार का है जिसे कठिया के बजाय कठुई कहा जाता है। यह गेहूं की ऐसी किस्म है जिसे प्रकृति ने वर्षा आधारित खेती के लिए बनाया था। क्योकि अगर इसकी अधिक सिचाई हो गई तो फसल में गेरुआ लगने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल जब सिचाई के साधन नहीं थे तब नम खेत तो नवम्बर में ही बोने योग्य बतर में आते थे जिनमें किसान सर्बदी पिसी आदि गेहूं उगाते थे। पर कुछ ऐसी ऊंचे खेतो वाली भूमि होती जो 20 - 25 अक्टूबर तक ही बोने लायक हो जाती थी। ऐसे खेतो में यह कठुई किस्म ही अच्छी मानी जाती थी जो उस समय की धूप और गर्म मौसम बर्दास्त कर सकती थी। बाकी गेहूं उस गर्मी को बर्दाश्त नही कर पाते थे और पौधे सूख जाते थे। शर्त यह थी कि बुबाई थोड़ी गहरी की जाय। कठुई के बाल में दानों की कतार 6 और एक कतार में 8-9 दाने होते हैं, जिनमे 4 कतार के दाने मोटे व 2 के छोटे होते है। यह रोटी और दलिया दोनों के लिए अच्छा माना जाता है।

गेहूं की एक किस्म बसिया 



गेहूं की एक किस्म बसिया भी है। यह पूर्णतः लम्बे तने की परम्परागत किस्म है, जिसका बीज 4-5 वर्ष पहले झाबुआ की एक संस्था "सम्पर्क" से प्राप्त हुआ था। इसका दाना सर्बदी की तरह चमकीला बाल बिरल दाने युक्त 6 दानों के कतार में होती है जिसमे 4 में मोटे दाने और दो में पतले दाने होते हैं। एक कतार में नीचे से ऊपर तक दानों की संख्या 9-10 होती है व बड़ा तना होने के कारण अन्य परम्परागत किस्मो की तरह यह भी कुछ पानी तने में संचित रखता है।  जिससे सिचाई न हो तब भी दाने ठोस और चिलकदार ही पकते हैं। इसकी रोटी स्वादिष्ट होती है।
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Friday, April 17, 2020

प्रधानमंत्री राहत कोष में बढ़ चढ़कर लोग दे रहे सहायता राशि

  • 90 वर्षीय बुजुर्ग सहित मासूम बच्चोँ ने भी दिया योगदान 


इंजी. योगेन्द्र भदौरिया सहायता राशि का चेक कलेक्टर कर्मवीर शर्मा को प्रदान करते हुये। 

अरुण सिंह,पन्ना। जिले में राष्ट्रीय विपदा की स्थिति में प्रधानमंत्री राहत कोष में विभिन्न लोगों द्वारा सहायता राशि देने का सिलसिला अनवरत जारी है। इस क्रम में समाज सेवी इंजी. योगेन्द्र भदौरिया द्वारा अपने सहयोगियों छोटे लाल साहू, अशोक गुप्ता, मनीष शर्मा, संजय सेठ के सहयोग से विभिन्न वर्ग के लोगों से धनराशि एकत्र कर प्रधानमंत्री राहत कोष में 65 हजार रूपये की सहायता राशि का चेक कलेक्टर कर्मवीर शर्मा को सौंपे। इसमें 90 वर्ष आयु के बालमुकुन्द सराफ द्वारा 1100 रूपये, सबसे कम उम्र 14 वर्ष के बच्चों ने योगदान दिया। वहीं श्रीमती अंजलि योगेन्द्र सिंह भदौरिया द्वारा 1100 रूपये की सहयोग राशि प्रदान की गयी। इसी प्रकार अमानगंज के गल्ला व्यवसायियों द्वारा कलेक्टर श्री शर्मा को 90 हजार 800 रूपये की राशि प्रधानमंत्री सहायता राहत कोष में दी गयी। वहीं स्थानीय सिंधी पंचायत के अध्यक्ष द्वारा 21 रूपये का चेक प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए प्रदान की गई।

कोटवारों को बनाया गया विशेष पुलिस अधिकारी

जिला दण्डाधिकारी  कर्मवीर शर्मा द्वारा वर्तमान में कोबिड महामारी के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में सहयोग के लिए विशेष पुलिस अधिकारियों की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए पुलिस रेग्युलेशन के पैरा 17 में निहित प्रावधानों के तहत सुरक्षा ड्यूटी में सहयोग के लिए 60 वन रक्षक, 5 आबकारी अधिकारी एवं तहसीलों में पदस्थ कोटवारों को विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त किया है। नियुक्त किए गए अधिकारी अपने अपने क्षेत्रान्तर्गत आदेश जारी होने के दिनांक 17 अप्रैल से 03 मई तक विशेष पुलिस अधिकारी का दायित्व निर्वहन करेंगे।

स्वास्थ्य कर्मियों के लिये जिले में बनाये जा रहे पीपीई किट


पीपीई किट तैयार करते हुये स्व सहायता समूह की महिलायें। 

 कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिये कलेक्टर कर्मवीर शर्मा के निर्देशानुसार पीपीई किट का निर्माण कराया जा रहा है। यह कार्य बालागुरू के जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के मार्गदर्शन में आजीविका मिशन पन्ना के स्व सहायता समूह द्वारा सामुदायिक प्रशिक्षण केन्द्र पुराना पन्ना में तैयार किये रहे हैं। समूह द्वारा प्रथम चरण में 500 पीपीई किटों का निर्माण किया जायेगा। आवश्यकता होने पर और भी किट तैयार किये जा सकेंगे। इन किटों का उपयोग कोरोना वायरस संक्रमित रोगियों की देखभाल करने वाले मेडिकल स्टाफ एवं डॉक्टरों द्वारा  किया  जा सकेंगा।
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बीमारी से पीड़ित शत प्रतिशत लोगों का किया जायेगा सर्वे

  • पूरी सावधानी एवं ईमानदारी के साथ कार्य करने कलेक्टर ने दिये निर्देश 
  • प्रत्येक तहसील क्षेत्र में आबादी से बाहर बनाये जायेंगे कोबिड केयर सेंटर


सर्वे के सम्बन्ध में अधिकारियों को दिशा  देते हुये कलेक्टर कर्मवीर शर्मा। 

अरुण सिंह,पन्ना। कोरोना वायरस से सम्बंधित लक्षणों सहित अन्य दूसरी बीमारियों से पीड़ित सभी व्यक्तियों का सर्वे होगा। तृतीय चरण के इस सर्वे के संबंध में कलेक्टर  कर्मवीर शर्मा द्वारा जिले के विकासखण्ड मुख्यालयों का भ्रमण कर राजस्व, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, ग्रामीण विकास, पुलिस आदि विभाग के खण्ड स्तरीय एवं मैदानी कर्मचारियों की बैठक लेकर  आवश्यक निर्देश दिये गये हैं। उन्होंने कहा कि सर्वे में शत प्रतिशत व्यक्तियों का सर्वे किया जाना है। इनमें कोरोना वायरस से संबंधित लक्षण सर्दी, जुखाम, खांसी, बुखार, सांस फूलना आदि के अलावा अन्य बीमारियों से पीडित व्यक्तियों की जानकारी एवं उम्र का सर्वे किया जायेगा। अन्य बीमारियों में हृदय रोग, शुगर, ब्लड प्रेसर, केंसर, किडनी, लीवर आदि की बीमारी से पीडित व्यक्तियों का भी पूर्ण विवरण तैयार किया   जायेगा।
उन्होंने कहा कि अभी तक हमारे द्वारा जिले में अन्य राज्यों एवं जिलों से आये हुए व्यक्तियों को क्वारेन्टाइन किया गया था। इन सब का स्वास्थ्य सामान्य पाये जाने पर इन्हें अपने अपने घरों पर भेज दिया गया है। इस स्थिति में हमें और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। क्योंकि जिन व्यक्तियों को क्वारेन्टाइन से बाहर घरों पर भेजा गया है उनमें कोई भी व्यक्ति ऐसा हो सकता है जिसे कोरोना वायरस का संक्रमण रहा हो और वह रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण बीमार नहीं  हुआ हो और स्वस्थ स्थिति में घर चला गया। ऐसा व्यक्ति कोरोना वायरस का केरियर हो सकता है, जो अपने घर परिवार में बुजुर्ग एवं बीमार कम रोग प्रतिरोधक वाले व्यक्तियों के सम्पर्क में आने पर उससे कोई भी बुजुर्ग व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। ऐसे संक्रमित बुजुर्ग एवं बीमार व्यक्तियों पर कोरोना वायरस का प्रभाव बहुत तेजी से होगा। इसलिए हमें शत प्रतिशत लोगों का घर - घर जाकर सर्वे करना है। यदि एक बार जाने पर संबंधित परिवार के सभी सदस्य नही मिलते तो एक से अधिक बार मिलने का समय पता कर उस परिवार के शत प्रतिशत लोगों का सर्वे कर जानकारी तैयार की जानी है।
कलेक्टर श्री शर्मा ने कहा कि तृतीय चरण का होने वाला सर्वे अतिआवश्यक एवं महत्वपूर्ण हैै, इसमें सर्दी, जुखाम, बुखार, खांसी आदि के अलावा अन्य जटिल बीमारियों से पीडित बुजुर्ग व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर निरंतर निगरानी रखनी होगी। जिले के प्रत्येक विकासखण्ड में चलित चिकित्सा दल इकाई प्रतिदिन सर्वे की सूची प्राप्त कर चिन्हित व्यक्तियों के स्वास्थ्य का परीक्षण करने के साथ घर पर ही उपचार उपलब्ध करायें। जिससे हमारे पास जिले के प्रत्येक बीमार एवं कोरोना वायरस से संक्रमित होने की संभावना वाले व्यक्तियों की सूची कार्य में लगे सभी अधिकारियों के पास उपलब्ध रहे। सभी अधिकारी, कर्मचारियों को पूर्व में ही प्रशिक्षण एवं आवश्यक दिशानिर्देश दिये जा चुके हैं। कही भी कोई भी संदेहास्पद कोरोना पीडित व्यक्ति मिलता है तो बगैर किसी निर्देश की प्रतिक्षा किये त्वरित कार्यवाही प्रत्येक स्तर से की जाये। इसमें जरा सी भी लापरवाही बहुत बडी संकट की स्थिति निर्मित कर सकती है।
उन्होंने बताया कि यदि कही पर भी कोरोना वायरस का संभावित पॉजीटिव रोगी मिलता है तो तहसील स्तर पर गठित किये गये त्रिस्तरीय चलित चिकित्सा दल में से प्रथम दल उस व्यक्ति के घर पहुंचेगा और संबंधित परिवार को आवश्यक समझाईश देने के साथ पीडित व्यक्ति के सम्पर्क में आये व्यक्तियों की जानकारी एकत्र करेगा। इसी दौरान उस परिवार के आवास की 3 किलो मीटर की परिधि को सील कर दिया जायेगा। इस परिधि के अन्दर स्वतः ही कर्फ़्यू प्रभावशील हो जायेगा। यह कार्य पुलिस, राजस्व एवं लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों द्वारा किया जायेगा। इसके उपरांत संभावित रोगी के घर से एक किलो मीटर की परिधि को पूरी तरह सील किया जायेगा। इसी दौरान रोगी के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों से चिकित्सा दल की चलित इकाई क्रमांक 2 रोगी के प्रथम सम्पर्क में आये व्यक्तियों के घर घर जाकर उनके सम्पर्क में आये व्यक्तियों की जानकारी एकत्र करेगा। इसके उपरांत चलित चिकित्सा इकाई दल क्रमांक 3 द्वितीय सम्पर्क मेें आये व्यक्तियों से सम्पर्क कर उनकी सम्पूर्ण जानकारी एकत्र करेगा। प्रथम दल द्वारा संभावित रोगी को क्वारेंटाईन के लिये ले जायेगा। इसके उपरांत उसका नमूना लेने के लिए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी से सम्पर्क स्थापित करेगा। रोगी का नमूना जांच के लिये आने के उपरांत यदि रोगी कोरोना संक्रमित पाया जाता है तो संबंधित रोगी को जिला चिकित्सालय की चिकित्सा इकाई उपचार के लिये जिला मुख्यालय ले आयेगी। तहसील स्तर के दलों द्वारा तुरंत प्रथम सम्पर्क वाले लोगों को कोबिड सेंटर एक में लाकर रखेगी। वहीं द्वितीय सम्पर्क वाले व्यक्तियों को कोबिड सेंटर दो में रखा जायेगा।
प्रत्येक राजस्व अधिकारी अपने अपने तहसील मुख्यालय क्षेत्र की आबादी से बाहर शासकीय भवनों में कोबिड केयर सेंटर स्थापित करें। इन कोबिड केयर सेंटरों में दो तरह के कोबिड केयर सेंटर होंगे। जिनमें प्रथम सम्पर्क वाले व्यक्ति रखे जायेंगे। उसे कोबिड केयर सेंटर एक तथा द्वितीय सम्पर्क वाले व्यक्तियों को रखने के लिए कोबिड केयर सेंटर दो का नाम दिया जायेगा। इन सेंटरों में सेंटर क्रमांक एक में एक कमरे में एक व्यक्ति के रखने की व्यवस्था की जायेगी। कोबिड क्रमांक दो में यदि कमरे बडे बडे हैं तो अधिकतम दो व्यक्तियों को रखा जा सकेगा। प्रत्येक सेंटर में रखे जाने वाले व्यक्तियों के लिए बिस्तर पृथक - पृथक तैयार रखे जायें । पेयजल के पात्र भी अलग - अलग रखे जाये। प्रत्येक सेंटर में शौचालय की व्यवस्था के साथ सफाई कर्मचारी रखे जायें। इन सेंटरों को अभी से सेनेटाइज करने के साथ यदि व्यक्तियों को रखा जाता है तो प्रतिदिन सेनेटाईजर एवं साफ सफाई की व्यवस्था की जाये। आपने बताया कि प्रत्येक सेंटर में पुलिस बल तैनात रहेगा। जिससे केयर सेंटर में रखा गया व्यक्ति सेंटर से बाहर निकलकर किसी भी व्यक्ति से न मिल सके। इसके अलावा सेंटर में कोई भी बाहरी व्यक्ति आकर किसी भी व्यक्ति से मिल नहीं सकेगा। सेंटरों में निर्धारित व्यक्तियों द्वारा भोजन के पैकेट सेंटर में रह रहे लोगों को उपलब्ध कराये जायेंगे। इस भ्रमण के दौरान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एल. के. तिवारी द्वारा बैठक में उपस्थितों को हाईरिस्क संभावित एवं लोरिस्क संभावित व्यक्तियों की जानकारी देने के साथ तहसील स्तर पर गठित चलित चिकित्सक दल के सदस्यों को रोगियों की पहचान सुनिश्चित करने तथा किस रोगी का नमूना लिया जाना है, कैसे लिया जाना है इस संबंध में विस्तारपूर्वक जानकारी देते हुए बताया गया। आपने कहा कि नमूना लेने के लिए चयनित व्यक्तियों को एक स्थान पर लाने के उपरांत जिला चिकित्सालय की टीम के साथ पूर्ण सुरक्षात्मक तैयारियां एवं पीपीई किट पहनकर ही नमूने लिये जा सकेंगे।
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कोरोना संकट के चलते अनोखे अंदाज में मना बाघ जन्मोत्सव

  •  वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु समर्पित वन कर्मियों को किया गया प्रोत्साहित
  •  कोर व बफर के जंगल में स्थित कैंपों तक पहुंचाई गई जरुरी खाद्य सामग्री


वन्यप्राणियों की सुरक्षा में तैनात वनकर्मियों को खाद्यान प्रदान करते क्षेत्र संचालक के. एस. भदौरिया। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत जन्मे प्रथम बाघ शावक का जन्मोत्सव कोरोना संकट व लॉक डाउन के बीच गुरुवार को अनोखे अन्दाज में मनाया गया। मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व में 16 अप्रैल का दिन बेहद खास होता है। यह उत्सव मनाने का दिन है क्योंकि 10 वर्ष पूर्व इसी दिन यानी 16 अप्रैल 2010 को बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत बांधवगढ़ से पन्ना लाई गई बाघिन टी-1 ने चार नन्हे शावकों को जन्म दिया था। बाघ विहीन पन्ना टाइगर रिजर्व का खोया हुआ गौरव वापस मिलने की खुशी में वन कर्मचारियों सहित पन्ना वासियों ने भी इस अवसर पर खूब जश्न मनाया था। खुशी, जश्न और कामयाबी की इस मधुर स्मृति को तरोताजा रखने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति द्वारा 16 अप्रैल को बाघ जन्मोत्सव मनाने की अनूठी परंपरा शुरू की गई थी, जो हर साल बड़े ही धूमधाम के साथ बकायदे केक काटकर मनाई जाती है। इस दिन शहर में जागरूकता रैली के साथ-साथ विविध कार्यक्रम भी आयोजित होते रहे हैं।

 अकोला बफर का पर्यटन प्रवेश द्वार। 
 लेकिन इस वर्ष हालात व परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न थीं। कोरोना संकट के चलते समूचे देश में लॉक डाउन चल रहा है, ऐसी स्थिति में बड़े समारोह व रैली का आयोजन संभव नहीं था। फलस्वरूप 10वां बाघ जन्मोत्सव मनाने की अनोखी तरकीब खोजी गई ताकि लॉक डाउन व सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन भी न हो और बाघ जन्मोत्सव मनाने की परंपरा भी कायम रहे। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने बताया कि लॉक डाउन के चलते वन्य प्राणियों की सुरक्षा में तैनात अमला जंगलों में ही रह रहा है। उनकी छुट्टियां भी निरस्त कर दी गई हैं, जिससे वनकर्मी चौबीसों घंटे जंगल व वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु पूरे मनोयोग से डटे हुए हैं। ऐसी स्थिति में इन समर्पित वन कर्मियों का मनोबल बढ़ाने तथा उन्हें जरूरी खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए 16 अप्रैल का दिन चुना गया। श्री भदौरिया ने बताया कि इसके लिए अधिकारियों के दल का गठन हुआ, जिन्हें रेंज वाइज कैम्प सौंपे गये। इस तरह से 16 अप्रैल को ही तकरीबन डेढ़ सौ अस्थाई कैंपों व निगरानी टावरों में पहुंचकर वन कर्मियों को न सिर्फ खाद्य सामग्री भेंट की गई अपितु उन्हें सम्मानित कर उनका मनोबल भी बढ़ाया गया। अपनी तरह की इस अनोखी गतिविधि से पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगलों में स्थित कैंपों में जय हिंद व जय शेरखान के नारों के साथ बाघ जन्मोत्सव की गूंज सुनाई दी।

पन्ना में तेजी से बढ़ रहा है बाघों का कुनबा


बाघिन टी-1 अपने नन्हे शावकों के साथ। 
बाघ पुनर्स्थापना योजना को मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद पन्ना के जंगलों में बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। आलम यह है पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से निकलकर बड़ी संख्या में बाघ बफर क्षेत्र के जंगलों में विचरण करने लगे हैं। क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया ने बताया कि बाघों की संख्या बढ़ने से कोर का 542 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र छोटा पड़ने लगा है फलस्वरूप अनेकों बाघ अपने लिए नये आशियाना की खोज हेतु बफर में विचरण कर रहे हैं। आपने बताया कि बफर क्षेत्र के बिगड़े वन को सुधारने तथा वहां पर कोर जैसी सुरक्षा व निगरानी तंत्र विकसित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। प्रयोग के तौर पर अकोला बफर को लिया गया है, जहां एक साल में ही उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। अब यह वन क्षेत्र न सिर्फ संरक्षित और हरा - भरा हो गया है अपितु कई बाघों का यह इलाका स्थाई ठिकाना बन चुका है। श्री भदौरिया ने बताया कि अकोला की ही तर्ज पर बफर क्षेत्र के अन्य दूसरे इलाकों को भी संरक्षित किया जायेगा ताकि बाघों को अनुकूल रहवास मिल सके।
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Wednesday, April 15, 2020

पन्ना में बाघ शावक का जन्म दिन मनाने की अनूठी परम्परा

  •   हर साल 16 अप्रैल को मनाया जाता है पहले शावक का जन्म दिन
  •   बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को दिया था पहली संतान को जन्म


बाघिन टी-1  अपने नन्हे बाघ शावकों के साथ। (फाइल फोटो)

अरुण सिंह,पन्ना।  पूरी दुनिया के लिए एक मिशाल बन चुके म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में  बाघ का जन्म दिवस मनाने की अनूठी परम्परा है। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने की अभिनव पहल शुरू होने के एक साल बाद ही इतिहास रचने वाला वह दिन आ गया, जब बांधवगढ़ से पन्ना लाई गई बाघिन टी-1 ने  16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। नन्हे बाघ शावकों के जन्म की खबर से पन्नावासी जहाँ झूम उठे वहीँ पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में मानो बहार आ गई। कामयाबी की ख़ुशी वाले इसी दिन की मधुर याद में 16 अप्रैल को प्रति वर्ष प्रथम बाघ शावक का जन्मोत्सव मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के चलते परम्परानुसार जन्मोत्सव मनाने के लिये कोई बड़ा आयोजन नहीं होगा, फिर भी वन्यजीव प्रेमी अपने घर में रहते हुये प्रकृति, पर्यावरण और वन्यप्राणियों की सुरक्षा व संरक्षण की कामना करते हुये इस दिन की मधुर स्मृतियों को जरूर तरोताजा करेंगे।
काबिलेगौर हैं कि प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करके ही पृथ्वी को विनाश से बचाया जा सकता है। हमारा यानी मनुष्य का वजूद भी इसी बात पर निर्भर है कि हम सह अस्तित्व की भावना से जीना सीखें। क्यों कि कुदरत जब विनाश की पटकथा लिखती है तो कथित रूप से सुपर पावर कहे जाने वाले राष्ट्र भी बौने साबित होते हैं। कोरोना संकट इसका जीता जागता उदाहरण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी यह मानना है कि हाल के कुछ सालों में इंसानों में आईं 70 फीसदी तक बीमारियों के संक्रमण वन्यजीवों से इंसानों में आये हैं। इंसान हजारों तरीके से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में घुसपैठ कर रहा है, उसके पर्यावास को नष्ट कर रहा है। बहुत सारे वायरस इन वन्यजीवों के शरीर में रहते हैं। इसके चलते इन वन्यजीवों ने उन वायरस के खिलाफ अपने शरीर का प्रतिरोधक तंत्र भी विकसित कर रखा है। जब इन वन्यजीवों का खात्मा होने लगता है, उनकी संख्या कम होने लगती है, वन्यजीवों और इंसानों की दूरी कम होने लगती है तो वायरस को घुसने के लिए एक और शरीर मिलने लगता है। किसी भी वायरस के लिए सबसे अच्छा होस्ट मानव शरीर ही है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा शरीर मानवों के हैं। इसलिए अगर कोई वायरस मानव शरीर में रहने लायक बदलाव खुद में लाये तो इससे अच्छा उसके लिए कुछ भी नहीं होगा। बिना जीवित कोशिका के संपर्क में आये  वायरस का अस्तित्व नहीं।कोरोना वायरस ने अपने आपको ऐसे ही म्यूटेंट किया है। अब वह इंसान के शरीरों का मजा ले रहा है। वह हमारे अंदर अपना घर बना रहा है। एक बात और है, जिन बीमारियों से हम लगातार घिरे रहते हैं, उनसे निपटने का एक सिस्टम हमारे शरीर में भी रहता है। हमारा शरीर उन्हें पहचान कर उसे खतम कर देता है या फिर लड़ने की कोशिश करता है। लेकिन, जब कोई नया वायरस आता है तो हमारा शरीर उसके सामने निहत्था साबित होता है। शरीर बिना हथियार के उसके सामने बेबस होता है। जाहिर है बहुत सारे लोग इसे अपनी प्रतिरोधक क्षमता से हरा देंगे। बहुत सारे लोगों ने ऐसा किया भी है। लेकिन, पहले से ही कमजोर, अन्य बीमारियों से पीड़ित लोग हो सकता है कि ऐसा नहीं कर पायें। इसलिये हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अधिक सजग व सचेत होने की जरुरत है।
हां तो हम यहॉँ जिक्र कर रहे थे बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता और प्रथम बाघ शावक के जन्म उपरान्त शुरू हुई अनूठी परम्परा के बारे में। पन्ना में बाघ का जन्म दिन मनाये जाने की परम्परा 10 वर्ष पूर्व तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति द्वारा शुरू की गई थी। मालुम हो कि वर्ष 2009 में बाघविहीन होने के बाद पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत संस्थापक बाघों को बाहर से पन्ना लाया गया था। श्री मूर्ति के अथक प्रयासों व कुशल प्रबंधन के परिणामस्वरूप पन्ना टाईगर रिजर्व न सिर्फ बाघों से आबाद हुआ अपितु श्री मूर्ति का पन्ना से स्थानान्तरण होने के बाद यहाँ जितने क्षेत्र संचालक आये सभी ने सक्रिय प्रयासों व बेहतर प्रबन्धन से  बाघों के कुनबे में निरंतर विस्तार हेतु श्रेष्ठतम योगदान दिया है। मौजूदा क्षेत्र संचालक के. एस. भदौरिया ने बफर क्षेत्र के उजड़ चुके वनों को संरक्षित करने की अभिनव पहल की है। परिणाम स्वरुप अब इन वन क्षेत्रों में भी न सिर्फ बाघ विचरण कर रहे हैं, अपितु यहाँ बाघ अपना ठिकाना बनाकर प्रजनन भी कर रहे  हैं। यह जानकर सुखद अनुभूति होती है कि पन्ना के जंगलों में मौजूदा समय आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघ स्वछंद रूप से विचरण कर रहे हैं। मालुम हो कि प्रदेश का पन्ना टाईगर रिजर्व प्रबंधकीय कुव्यवस्था और अवैध शिकार के चलते वर्ष 2009 में बाघविहीन हो गया था। बाघों का यहाँ से पूरी तरह खात्मा हो जाने पर राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना टाईगर रिजर्व की खासी किरकिरी हुई थी। बाघों के उजड़ चुके संसार को यहाँ पर फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा व बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व से बाघिन व पेंच टाईगर रिजर्व से एक नर बाघ लाया गया था। बाघिन टी-1 ने पन्ना आकर 16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। इस ऐतिहासिक व अविस्मरणीय सफलता को यादगार बनाने के लिए 16 अप्रैल को हर साल प्रथम बाघ शावक का जन्म धूमधाम से मनाये जाने की परम्परा शुरू हुई ताकि जनभागीदारी से बाघों के संरक्षण को बल मिले। नन्हे बाघ शावकों के जन्म से पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल एक बार फिर पूर्व की तरह गुलजार हो गया है। बाघों के फिर से आबाद होने की इस सफलतम कहानी को याद करने तथा आमजनता में वन व वन्यप्राणियों के संरक्षण की भावना विकसित करने के लिए यहां जन्मे पहले बाघ शावक का जन्मदिन अब पन्ना टाईगर रिजर्व के लिए एक पर्व बन चुका है। जिसे हर साल बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। बाघ का जन्मदिन मनाये जाने की ऐसी अनूठी परम्परा शायद अन्यत्र कहीं नहीं है।
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Tuesday, April 14, 2020

डर से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कोई भी वायरस नहीं : ओशो


जीवन में आने वाली समस्याओं के प्रति बुद्ध पुरुषों का नजरिया आम जनमानस की सोच से अलहदा और गहरी अन्तद्रष्टि वाला होता है। आज से तक़रीबन 50 वर्ष पूर्व 70 के दशक में जब हैजा महामारी के रूप में पूरे विश्व में फैला था, तब किसी ने ओशो से प्रश्न किया था कि इस महामारी से कैसे बचें ? इस सवाल का ओशो ने उस समय जो जवाब दिया वह आज के परिप्रेक्ष्य में जब समूची दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है, अत्यधिक प्रासंगिक और विचारणीय है।
 हैजा की महामारी से कैसे बचे ? 
इस प्रश्न का जवाब देते हुये ओशो ने कहा कि यह प्रश्न ही आप गलत पूछ रहे हैं । प्रश्न ऐसा होना चाहिए था, कि महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है, उसके सम्बन्ध में कुछ कहिये, इस डर से कैसे बचा जाए ? क्यों कि वायरस से बचना तो बहुत ही आसान है, लेकिन जो डर आपके और दुनिया के अधिकतर लोगों  के भीतर बैठ गया है, उससे बचना बहुत ही मुश्किल है। अब, इस महामारी से कम, लोग इस डर के कारण ज्यादा मरेंगे। डर से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कोई भी वायरस नहीं है। इस डर को समझिये, अन्यथा मौत से पहले ही आप एक जिंदा लाश बन जाएँगे। यह जो भयावह माहौल आप अभी देख रहे हैं , इसका वायरस आदि से कोई लेना देना नहीं है। यह एक सामूहिक पागलपन है, जो एक अन्तराल के बाद हमेशा घटता रहता है। कारण बदलते रहते हैं। कभी सरकारों की प्रतिस्पर्धा, कभी कच्चे तेल की कीमतें, कभी दो देशो की लड़ाई, तो कभी जैविक हथियारो की टेस्टिंग ! इस तरह का सामूहिक पागलपन समय-समय पर प्रगट होता रहता है। व्यक्तिगत पागलपन की तरह, कौमगत, राज्यगत, देशगत और वैश्विक पागलपन भी होता है। इसमें बहुत से लोग या तो हमेशा के लिए विक्षिप्त हो जाते हैं, या फिर मर जाते हैं। ऐसा पहले भी हजारों बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा। और आप देखेंगे कि आनेवाले बरसों में युद्ध तोपों से नहीं, बल्कि जैविक हथियारों से लडे जायेंगे।
लेकिन मैं फिर कहता हूं, हर समस्या मूर्ख के लिए डर होती है, जबकि ज्ञानी विद्वानों के लिए अवसर ! इस महामारी में आप घर बैठिए, पुस्तकेँ पढिये, एक्सरसाइज कीजिये, शरीर को कष्ट दीजिए, व्यायाम कीजिये, फिल्मे देखिये, योग कीजिये। एक माह में १५ किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चो जैसी ताजगी लाइये, अपने शौक पूरे कीजिये। मुझे अगर १५ दिन घर बैठने को कहा जाए, तो मैं इन 15 दिनो में 30  पुस्तकें पढूंगा। और नहीं तो एक बुक लिख डालिये, इस महामन्दी में पैसा इन्वेस्ट कीजिये। ये अवसर है, जो बीस तीस साल में एक बार आता है। पैसा बनाने का सोचिए, कहाँ बीमारी की बाते करते है। ये  भय और भीड़ का मनोविज्ञान सब के समझ नहीं आता है, डर में रस लेना बंद कीजिये। आमतौर पर हर आदमी डर में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर डरने में मजा नहीं आता, तो लोग भूतहा फिल्म देखने क्यों जाते ? ये एक सामूहिक पागलपन है, जो अखबारों और टीवी के माध्यम से भीड़ को बेचा जा रहा है। लेकिन सामूहिक पागलपन के क्षण में आपकी मालकियत छिन सकती है। आप महामारी से डर सकते है, तो आप भी भीड़ का ही हिस्सा हैं ।
ओशो कहते हैं  - टीवी पर खबरें सुनना या अखबार पढ़ना बंद करें। ऐसा कोई भी विडियो या न्यूज़ मत देखिये, जिससे आपके भीतर डर पैदा हो। महामारी के बारे में बात करना बंद कर दीजिये। डर भी एक तरह का आत्म-सम्मोहन ही है। एक ही तरह के विचार को बार-बार थोपने से शरीर के भीतर रासायनिक बदलाव होने लगता
है और यह रासायनिक बदलाव कभी - कभी इतना जहरीला हो सकता है कि आपकी जान भी ले ले। महामारियों के अलावा भी बहुत कुछ दुनिया में हो रहा है, उन पर ध्यान दीजिये। ध्यान-साधना से साधक के चारो तरफ एक प्रोटेक्टिव औरा बन जाता है, जो बाहर की नकारात्मक उर्जा को उसके भीतर प्रवेश नहीं करने देता है। अभी
पूरी दुनिया की उर्जा नकारात्मक हो चुकी है, ऐसे में आप कभी भी इस ब्लैक-होल में गिर सकते हैं। ध्यान की नाव में बैठ कर ही आप इस झंझावात से बच सकते हैं। शास्त्रो का अध्ययन कीजिये, साधू संगत कीजिये और साधना कीजिये। विद्वानो से सीखें, आहार का भी विशेष ध्यान रखिये, स्वच्छ जल पीयें। अंतिम बात - धीरज रखिये, जल्द ही सब कुछ बदल जायेगा। जब तक मौत आ ही न जाये , तब तक उससे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। और जो अपरिहार्य है, उससे डरने का कोई अर्थ भी नहीं है। डर एक प्रकार की मूढ़ता है। अगर किसी महामारी से अभी नहीं भी मरे, तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी दिन हो सकता है। इसीलिए विद्वानो की तरह जियें, भीड़ की तरह नहीं !!
- स्वामी अगेह भारती की फेसबुक वॉल से 
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Monday, April 13, 2020

'सोशल डिस्टेंसिंग' की जगह 'फिजिकल डिस्टेंसिंग' शब्द ज्यादा बेहतर

  •   ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द से लोगों में जा रहा गलत संदेश 
  •   संपर्क तोड़ने की नहीं, शारीरिक तौर पर दूर रहने की जरूरत


शारीरिक रूप से सुरक्षित दूरी बनाकर आपसी प्रेम और भाईचारे का सन्देश देते राष्ट्रीय पक्षी मोर। ( फोटो इन्टरनेट से साभार )

अरुण सिंह, पन्ना। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का भीषण प्रकोप होने के बाद इस जानलेवा बीमारी से बचाव के लिये सबसे ज्यादा जोर 'सोशल डिस्टेंसिंग' पर दिया जा रहा है। यह शब्द मौजूदा समय हर किसी की जुबान से सुनने को मिल रहा है। 'सोशल डिस्टेंसिंग' का वास्तविक अर्थ क्या होता है, इस पर ध्यान देने व सोचने विचारने के बजाय जिसे देखो वही 'सोशल डिस्टेंसिंग' का कड़ाई के साथ पालन करने का मशविरा देता फिर रहा है। जबकि कोरोना संकट के बाद जिस तरह के हालात बने हैं, उसे देखते हुये 'सोशल डिस्टेंसिंग' शब्द की जगह 'फिजिकल डिस्टेंसिंग' का प्रयोग किया जाना ज्यादा सार्थक और बुद्धिमत्ता पूर्ण होगा।
उल्लेखनीय है कि मौजूदा परिवेश में 'सोशल डिस्टेंसिंग' शब्द का बहुतायत से उपयोग किये जाने पर अनेकों लोगों ने सवाल उठाये हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 'सोशल डिस्टेंसिंग' की जगह 'फिजिकल डिस्टेंसिंग' पर जोर दे रहे हैं। समाज विज्ञानियों और डब्ल्यूएचओ का भी मानना है कि कोरोना वायरस के चलते एक-दूसरे से दूर रहने को ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ कहने से लोगों में गलत संदेश जा रहा है .......डब्ल्यूएचओ ने भी अपनी प्रेस रिलीज में सोशल डिस्टेंसिंग की जगह फिजिकल डिस्टेंसिंग शब्द इस्तेमाल करने की बात कही है। डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल अपने ट्वीट में भी फिजिकल डिस्टेंसिंग ही लिख रहे हैं। एक प्रेस रिलीज में डब्ल्यूएचओ की महामारी विशेषज्ञ मारिया वान करखोव के हवाले से कहा गया है कि ‘सोशल कनेक्शन के लिए जरूरी नहीं है कि लोग एक ही जगह पर हों, वे तकनीक के जरिए भी जुड़े रह सकते हैं।  इसीलिए हमने इस शब्द में बदलाव किया है ताकि लोग यह समझें कि उन्हें एक-दूसरे से संपर्क तोड़ने की नहीं बल्कि केवल शारीरिक तौर पर दूर रहने की जरूरत है’।
लेकिन उसके बावजूद भारत में सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है और लॉ इंफोर्समेंट एजेंसिया इसे ध्येय वाक्य मानकर बैठ गई हैं। समाज वैज्ञानिकों का कहना है कि महामारी में सर्वाइव करना है तो लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के बजाय अपने सामाजिक संबंध मजबूत रखने होंगे। अमेरिका की नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस और पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर डेनियल अल्ड्रिच शुरू से ही ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द के इस्तेमाल पर ऐतराज जताते रहे हैं।  अपने शोधपत्र में  प्रोफेसर डेनियल अल्ड्रिच ने युद्ध, आपदा और महामारियों से उबरने में सामाजिक संबंधों की भूमिका पर एक शोध किया है उनका कहना है कि आपातकाल में उन लोगों के बचने की संभावना ज्यादा होती है जो सामाजिक तौर पर सक्रिय होते हैं।  इस पत्र में कहा गया है कि बचने वालों में से एक बड़े तबके का कहना था कि वे इसलिए बचे क्योंकि किसी ने सही वक्त पर आकर उनके दरवाजे पर दस्तक दी या फिर समय रहते उन्हें फोन कर चेता दिया। यानी कि इस तरह के लोगों को जल्दी और आसानी से मदद मिल सकती है।
कड़वा सच तो यह भी है कि अधिक जनसंख्या घनत्व वाले इलाकों में सोशल डिस्टेंसिंग की बात करना दिवास्वप्न है। जहाँ 1 कमरे में 8 लोग रहते हों, एक ही टॉयलेट इस्तेमाल करते हों वहाँ सोशल डिस्टेंसिंग सिर्फ छलावा है। दरसअल सोशल डिस्टेंसिंग  ‘एकला चलो रे’ सरीखा गलत संदेश देता है।  यह सामुदायिक तौर पर कट कर रहने की सलाह देता है....यदि आपको इस्तेमाल करना ही था तो आप फिजिकल डिस्टेंसिंग का भी इस्तेमाल कर सकते थे।  राजनीतिज्ञों ने भी इस बारे में बोलना शुरू कर दिया है, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा है कि कोरोना से लड़ने के लिए 'सोशल डिस्टेंसिंग' की बजाये  'फिजिकल डिस्टेंसिंग' शब्द पर जोर दिया जाये। दरअसल सोशल डिस्टेंसिंग शब्द आगे चलकर खतरनाक परिणाम देगा, और यह आगे चलकर सामाजिक ढांचे के धराशायी होने की वजह बन सकता है। मीडिया सोशल डिस्टेंसिंग का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है। यह शब्द भाईचारा जैसे शब्द के विलोम शब्द के रूप मे इस्तेमाल किया जा रहा है। आगे चलकर हमे इस शब्द के प्रयोग के लिए जरूर अफसोस महसूस होगा।
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Sunday, April 12, 2020

पन्ना के चिकित्सक ने प्लास्टिक की बोतल से बनाया फेस कवर

  • जुगाड़ से निर्मित यह फेस कवर कोरोना संक्रमण से बचाव में हो रहा सहायक 
  • देवेन्द्रनगर क्षेत्र में पुलिस एवं स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी कर रहे  उपयोग 


प्लास्टिक की खाली बोतल से निर्मित फेस कवर पहने बीएमओ डॉ अभिषेक जैन। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में एक चिकित्सक ने पुरानी कहावत आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, इसे अक्षरशः चरितार्थ किया है। वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप से जब समूची दुनिया दहली हुई है और इस बीमारी के संक्रमण से बचने के लिये उपयोग में आने वाली जरुरी सामग्रियों की किल्लत बनी हुई है। ऐसे कठिन समय पर जुगाड़ तकनीक के सहारे पन्ना जिले के देवेंद्रनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बीएमओ डॉ अभिषेक जैन ने प्लास्टिक की खाली बोतलों से फेस कवर तैयार किया है, जो कोरोना बीमारी से बचाव के लिए उपयोगी साबित हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले के नजदीकी जिलों में कोरोना वायरस के संक्रमण की खबरें मिलने पर संभावित खतरे को द्रष्टिगत रखते हुये बीएमओ डॉ अभिषेक जैन चिंतित हुये। इसकी खास वजह यह थी कि उन्हें व स्वास्थ्य कर्मचारियों को जरुरी सुरक्षा सामग्री व उपकरणों के अभाव में भी मरीजों के बीच ड्यूटी करनी पड़ती है। लेकिन इस चुनौती से घबराने के बजाय उन्होंने कोरोना के संक्रमण से बचने का बेहद आसान और सुगम रास्ता खोज निकाला। उन्होंने पेप्सी एवं कोको कोला की प्लास्टिक बोतलों को खाली करके जुगाड़ तकनीक से फेस कवर तैयार किया।यह फेस कवर कोरोना बीमारी से बचाव करने में सहायक हो रहा है।

फेस कवर पहनकर ड्यूटी करते पुलिस कर्मचारी। 
जिले के देवेंद्रनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत डॉ अभिषेक जैन का कहना है कि कोरोना संकट आज वैश्विक समस्या है, जिसका सामना हम सबको मिलकर करना है। इस संकट की घड़ी में किसी भी स्वास्थ्य कर्मचारी का मनोबल कमजोर न हो इसके लिये मैंने यह फेस कवर तैयार किया है। आपने बताया कि  प्लास्टिक की बोतलों से बनाया गया यह फेस कवर आँख, नाक, मुँह और सिर को कबर करता है जिससे छींक और खाँसी से होने वाले संक्रमण से यह हमें बचाता है। इसकी खास बात यह है कि इसे धुलकर या सेनिटाइज़ करके फिर उपयोग किया जा सकता है। जुगाड़ से तैयार किये गये इस फेस कवर का उपयोग मौजूदा समय स्वास्थ्य विभाग के अमला सहित पुलिस व राजस्व अधिकारी भी कर रहे हैं। ड़ॉ जैन की इस सुन्दर, सस्ती और टिकाऊ तथा बेहद उपयोगी खोज की सबके द्वारा सराहना की जा रही है।
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डॉ अभिषेक जैन प्लास्टिक की बोतल से फेस कवर बनाते हुये -