Wednesday, April 15, 2020

पन्ना में बाघ शावक का जन्म दिन मनाने की अनूठी परम्परा

  •   हर साल 16 अप्रैल को मनाया जाता है पहले शावक का जन्म दिन
  •   बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को दिया था पहली संतान को जन्म


बाघिन टी-1  अपने नन्हे बाघ शावकों के साथ। (फाइल फोटो)

अरुण सिंह,पन्ना।  पूरी दुनिया के लिए एक मिशाल बन चुके म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में  बाघ का जन्म दिवस मनाने की अनूठी परम्परा है। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने की अभिनव पहल शुरू होने के एक साल बाद ही इतिहास रचने वाला वह दिन आ गया, जब बांधवगढ़ से पन्ना लाई गई बाघिन टी-1 ने  16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। नन्हे बाघ शावकों के जन्म की खबर से पन्नावासी जहाँ झूम उठे वहीँ पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में मानो बहार आ गई। कामयाबी की ख़ुशी वाले इसी दिन की मधुर याद में 16 अप्रैल को प्रति वर्ष प्रथम बाघ शावक का जन्मोत्सव मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के चलते परम्परानुसार जन्मोत्सव मनाने के लिये कोई बड़ा आयोजन नहीं होगा, फिर भी वन्यजीव प्रेमी अपने घर में रहते हुये प्रकृति, पर्यावरण और वन्यप्राणियों की सुरक्षा व संरक्षण की कामना करते हुये इस दिन की मधुर स्मृतियों को जरूर तरोताजा करेंगे।
काबिलेगौर हैं कि प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करके ही पृथ्वी को विनाश से बचाया जा सकता है। हमारा यानी मनुष्य का वजूद भी इसी बात पर निर्भर है कि हम सह अस्तित्व की भावना से जीना सीखें। क्यों कि कुदरत जब विनाश की पटकथा लिखती है तो कथित रूप से सुपर पावर कहे जाने वाले राष्ट्र भी बौने साबित होते हैं। कोरोना संकट इसका जीता जागता उदाहरण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी यह मानना है कि हाल के कुछ सालों में इंसानों में आईं 70 फीसदी तक बीमारियों के संक्रमण वन्यजीवों से इंसानों में आये हैं। इंसान हजारों तरीके से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में घुसपैठ कर रहा है, उसके पर्यावास को नष्ट कर रहा है। बहुत सारे वायरस इन वन्यजीवों के शरीर में रहते हैं। इसके चलते इन वन्यजीवों ने उन वायरस के खिलाफ अपने शरीर का प्रतिरोधक तंत्र भी विकसित कर रखा है। जब इन वन्यजीवों का खात्मा होने लगता है, उनकी संख्या कम होने लगती है, वन्यजीवों और इंसानों की दूरी कम होने लगती है तो वायरस को घुसने के लिए एक और शरीर मिलने लगता है। किसी भी वायरस के लिए सबसे अच्छा होस्ट मानव शरीर ही है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा शरीर मानवों के हैं। इसलिए अगर कोई वायरस मानव शरीर में रहने लायक बदलाव खुद में लाये तो इससे अच्छा उसके लिए कुछ भी नहीं होगा। बिना जीवित कोशिका के संपर्क में आये  वायरस का अस्तित्व नहीं।कोरोना वायरस ने अपने आपको ऐसे ही म्यूटेंट किया है। अब वह इंसान के शरीरों का मजा ले रहा है। वह हमारे अंदर अपना घर बना रहा है। एक बात और है, जिन बीमारियों से हम लगातार घिरे रहते हैं, उनसे निपटने का एक सिस्टम हमारे शरीर में भी रहता है। हमारा शरीर उन्हें पहचान कर उसे खतम कर देता है या फिर लड़ने की कोशिश करता है। लेकिन, जब कोई नया वायरस आता है तो हमारा शरीर उसके सामने निहत्था साबित होता है। शरीर बिना हथियार के उसके सामने बेबस होता है। जाहिर है बहुत सारे लोग इसे अपनी प्रतिरोधक क्षमता से हरा देंगे। बहुत सारे लोगों ने ऐसा किया भी है। लेकिन, पहले से ही कमजोर, अन्य बीमारियों से पीड़ित लोग हो सकता है कि ऐसा नहीं कर पायें। इसलिये हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अधिक सजग व सचेत होने की जरुरत है।
हां तो हम यहॉँ जिक्र कर रहे थे बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता और प्रथम बाघ शावक के जन्म उपरान्त शुरू हुई अनूठी परम्परा के बारे में। पन्ना में बाघ का जन्म दिन मनाये जाने की परम्परा 10 वर्ष पूर्व तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति द्वारा शुरू की गई थी। मालुम हो कि वर्ष 2009 में बाघविहीन होने के बाद पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत संस्थापक बाघों को बाहर से पन्ना लाया गया था। श्री मूर्ति के अथक प्रयासों व कुशल प्रबंधन के परिणामस्वरूप पन्ना टाईगर रिजर्व न सिर्फ बाघों से आबाद हुआ अपितु श्री मूर्ति का पन्ना से स्थानान्तरण होने के बाद यहाँ जितने क्षेत्र संचालक आये सभी ने सक्रिय प्रयासों व बेहतर प्रबन्धन से  बाघों के कुनबे में निरंतर विस्तार हेतु श्रेष्ठतम योगदान दिया है। मौजूदा क्षेत्र संचालक के. एस. भदौरिया ने बफर क्षेत्र के उजड़ चुके वनों को संरक्षित करने की अभिनव पहल की है। परिणाम स्वरुप अब इन वन क्षेत्रों में भी न सिर्फ बाघ विचरण कर रहे हैं, अपितु यहाँ बाघ अपना ठिकाना बनाकर प्रजनन भी कर रहे  हैं। यह जानकर सुखद अनुभूति होती है कि पन्ना के जंगलों में मौजूदा समय आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघ स्वछंद रूप से विचरण कर रहे हैं। मालुम हो कि प्रदेश का पन्ना टाईगर रिजर्व प्रबंधकीय कुव्यवस्था और अवैध शिकार के चलते वर्ष 2009 में बाघविहीन हो गया था। बाघों का यहाँ से पूरी तरह खात्मा हो जाने पर राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना टाईगर रिजर्व की खासी किरकिरी हुई थी। बाघों के उजड़ चुके संसार को यहाँ पर फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा व बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व से बाघिन व पेंच टाईगर रिजर्व से एक नर बाघ लाया गया था। बाघिन टी-1 ने पन्ना आकर 16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। इस ऐतिहासिक व अविस्मरणीय सफलता को यादगार बनाने के लिए 16 अप्रैल को हर साल प्रथम बाघ शावक का जन्म धूमधाम से मनाये जाने की परम्परा शुरू हुई ताकि जनभागीदारी से बाघों के संरक्षण को बल मिले। नन्हे बाघ शावकों के जन्म से पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल एक बार फिर पूर्व की तरह गुलजार हो गया है। बाघों के फिर से आबाद होने की इस सफलतम कहानी को याद करने तथा आमजनता में वन व वन्यप्राणियों के संरक्षण की भावना विकसित करने के लिए यहां जन्मे पहले बाघ शावक का जन्मदिन अब पन्ना टाईगर रिजर्व के लिए एक पर्व बन चुका है। जिसे हर साल बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। बाघ का जन्मदिन मनाये जाने की ऐसी अनूठी परम्परा शायद अन्यत्र कहीं नहीं है।
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