Friday, April 17, 2020

कोरोना संकट के चलते अनोखे अंदाज में मना बाघ जन्मोत्सव

  •  वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु समर्पित वन कर्मियों को किया गया प्रोत्साहित
  •  कोर व बफर के जंगल में स्थित कैंपों तक पहुंचाई गई जरुरी खाद्य सामग्री


वन्यप्राणियों की सुरक्षा में तैनात वनकर्मियों को खाद्यान प्रदान करते क्षेत्र संचालक के. एस. भदौरिया। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत जन्मे प्रथम बाघ शावक का जन्मोत्सव कोरोना संकट व लॉक डाउन के बीच गुरुवार को अनोखे अन्दाज में मनाया गया। मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व में 16 अप्रैल का दिन बेहद खास होता है। यह उत्सव मनाने का दिन है क्योंकि 10 वर्ष पूर्व इसी दिन यानी 16 अप्रैल 2010 को बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत बांधवगढ़ से पन्ना लाई गई बाघिन टी-1 ने चार नन्हे शावकों को जन्म दिया था। बाघ विहीन पन्ना टाइगर रिजर्व का खोया हुआ गौरव वापस मिलने की खुशी में वन कर्मचारियों सहित पन्ना वासियों ने भी इस अवसर पर खूब जश्न मनाया था। खुशी, जश्न और कामयाबी की इस मधुर स्मृति को तरोताजा रखने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति द्वारा 16 अप्रैल को बाघ जन्मोत्सव मनाने की अनूठी परंपरा शुरू की गई थी, जो हर साल बड़े ही धूमधाम के साथ बकायदे केक काटकर मनाई जाती है। इस दिन शहर में जागरूकता रैली के साथ-साथ विविध कार्यक्रम भी आयोजित होते रहे हैं।

 अकोला बफर का पर्यटन प्रवेश द्वार। 
 लेकिन इस वर्ष हालात व परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न थीं। कोरोना संकट के चलते समूचे देश में लॉक डाउन चल रहा है, ऐसी स्थिति में बड़े समारोह व रैली का आयोजन संभव नहीं था। फलस्वरूप 10वां बाघ जन्मोत्सव मनाने की अनोखी तरकीब खोजी गई ताकि लॉक डाउन व सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन भी न हो और बाघ जन्मोत्सव मनाने की परंपरा भी कायम रहे। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने बताया कि लॉक डाउन के चलते वन्य प्राणियों की सुरक्षा में तैनात अमला जंगलों में ही रह रहा है। उनकी छुट्टियां भी निरस्त कर दी गई हैं, जिससे वनकर्मी चौबीसों घंटे जंगल व वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु पूरे मनोयोग से डटे हुए हैं। ऐसी स्थिति में इन समर्पित वन कर्मियों का मनोबल बढ़ाने तथा उन्हें जरूरी खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए 16 अप्रैल का दिन चुना गया। श्री भदौरिया ने बताया कि इसके लिए अधिकारियों के दल का गठन हुआ, जिन्हें रेंज वाइज कैम्प सौंपे गये। इस तरह से 16 अप्रैल को ही तकरीबन डेढ़ सौ अस्थाई कैंपों व निगरानी टावरों में पहुंचकर वन कर्मियों को न सिर्फ खाद्य सामग्री भेंट की गई अपितु उन्हें सम्मानित कर उनका मनोबल भी बढ़ाया गया। अपनी तरह की इस अनोखी गतिविधि से पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगलों में स्थित कैंपों में जय हिंद व जय शेरखान के नारों के साथ बाघ जन्मोत्सव की गूंज सुनाई दी।

पन्ना में तेजी से बढ़ रहा है बाघों का कुनबा


बाघिन टी-1 अपने नन्हे शावकों के साथ। 
बाघ पुनर्स्थापना योजना को मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद पन्ना के जंगलों में बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। आलम यह है पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से निकलकर बड़ी संख्या में बाघ बफर क्षेत्र के जंगलों में विचरण करने लगे हैं। क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया ने बताया कि बाघों की संख्या बढ़ने से कोर का 542 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र छोटा पड़ने लगा है फलस्वरूप अनेकों बाघ अपने लिए नये आशियाना की खोज हेतु बफर में विचरण कर रहे हैं। आपने बताया कि बफर क्षेत्र के बिगड़े वन को सुधारने तथा वहां पर कोर जैसी सुरक्षा व निगरानी तंत्र विकसित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। प्रयोग के तौर पर अकोला बफर को लिया गया है, जहां एक साल में ही उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। अब यह वन क्षेत्र न सिर्फ संरक्षित और हरा - भरा हो गया है अपितु कई बाघों का यह इलाका स्थाई ठिकाना बन चुका है। श्री भदौरिया ने बताया कि अकोला की ही तर्ज पर बफर क्षेत्र के अन्य दूसरे इलाकों को भी संरक्षित किया जायेगा ताकि बाघों को अनुकूल रहवास मिल सके।
00000

No comments:

Post a Comment