Thursday, June 30, 2022

हृदय प्रदेश के पन्ना जिले में अनूठी है रथयात्रा की परम्परा

  • जगन्नाथपुरी की तर्ज पर निकलने वाली देश की प्रमुख रथयात्राओं में शामिल 
  • भगवान जगन्नाथ स्वामी की एक झलक पाने यहां पहुँचते हैं हजारों श्रद्धालु  

पन्ना की ऐतिहासिक रथयात्रा तथा दर्शन के लिए उमड़े श्रद्धालु।  ( फ़ाइल फोटो )

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। देश के दिल कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश के पवित्र शहर पन्ना में हर साल आयोजित होने वाली रथयात्रा की परम्परा अनूठी है। देश की तीन सबसे पुरानी व बड़ी रथयात्राओं में पन्ना की रथयात्रा भी शामिल है। ओडि़शा के जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां आयोजित होने वाले इस भव्य धार्मिक समारोह में राजशी ठाट-बाट और वैभव की झलक देखने को मिलती है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वामी की एक झलक पाने समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुँचते हैं। पन्ना जिले के इस सबसे बड़े धार्मिक समारोह के दरम्यान यहां की अद्भुत और निराली छटा देखते ही बनती है। पन्ना की यह ऐतिहासिक रथयात्रा तक़रीबन 170 वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह द्वारा शुरू कराई गई थी, जो परम्परानुसार अनवरत् जारी है। पूरे 15 दिनों के बाद गुरुवार को आज धूप कपूर की झांकी के दर्शन होंगे और शुक्रवार 1 जुलाई को शाम 6:30 बजे पूरे विधि विधान के साथ जगन्नाथ स्वामी मन्दिर से रथयात्रा निकलेगी। 

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले की प्राचीन व ऐतिहासिक रथयात्रा महोत्सव की शुरुआत तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह ने की थी। उस समय वे पुरी से भगवान जगन्नाथ स्वामी जी की मूर्ति लेकर आये थे और पन्ना में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया था। पुरी में चूंकि समुद्र है इसलिए पन्ना के जगन्नाथ स्वामी मन्दिर के सामने सुन्दर सरोवर का निर्माण कराया गया था। तभी से यहां पुरी की ही तर्ज पर रथयात्रा समारोह का आयोजन होता है जिसमें लाखों लोग पूरे भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं। ऐसी क्विदंती है कि जिस वर्ष यहां मन्दिर का निर्माण हुआ तो यहां अटका चढ़ाया गया। महाराजा किशोर सिंह को स्वप्न आया कि पन्ना में अटका न चढ़ाया जाए अन्यथा पुरी का महत्व कम हो जायेगा। इसलिए यहां भगवान जगन्नाथ स्वामी को अंकुरित मूंग का प्रसाद चढ़ाया जाता है। आज भी यहाँ पर अंकुरित मूंग व मिश्री का प्रसाद चढ़ता है। 


पवित्र नगरी पन्ना स्थित भगवान जगन्नाथ स्वामी का भव्य मन्दिर। 

जानकारों का यह कहना है कि राजाशाही जमाने में पन्ना की रथयात्रा बड़े ही शान-शौकत व वैभव के साथ निकलती थी। इस रथयात्रा में सैकड़ों हांथी, घुड़सवार, सेना के जवान, राजे-महाराजे व जागीरदार सब शामिल होते थे। रूस्तम गज हांथी की कहानी भी यहां काफी प्रचलित है। बताते हैं कि तत्कालीन महाराज का यह प्रिय हांथी रथयात्रा में अपनी सूड़ से चांदी का चौर हिलाते हुए चलता था। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल माह की द्वितीय तिथि को यहां पुरी के जगन्नाथ मन्दिर की तरह हर साल रथयात्रा निकलती है। रथयात्रा के दौरान यहाँ भी भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मन्दिर से बाहर सैर के लिए निकलते हैं। यह अनूठी रथयात्रा पन्ना से शुरू होकर तीसरे दिन जनकपुर पहुँचती है। जनकपुर मंदिर के पुजारी उदय मिश्रा बताते हैं कि महाराजा किशोर सिंह के पुत्र हरवंशराय द्वारा जनकपुर में भी भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया था। रथयात्रा के जनकपुर पहुँचने पर यहां के मन्दिर को बड़े ही आकर्षक ढ़ंग से सजाया जाता है तथा यहां पर मेला भी लगता है। 

रथयात्रा को रियासत काल जैसा महत्व अब नहीं मिल रहा 


पन्ना में निकलने वाली रथयात्रा का नजारा। - (फाइल फोटो)

राजशाही ज़माने में शुरू हुई पन्ना की इस प्राचीन और ऐतिहासिक रथयात्रा को राष्ट्रीय स्तर पर जो पहचान मिलनी चाहिये थी, वह नहीं मिल सकी। इस दिशा में यदि शासन स्तर पर ठोस व प्रभावी पहल की जाये तो पन्ना में ईको टूरिज्म के साथ-साथ धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है। रियासत काल में इस समारोह का महत्व इतना ज्यादा था कि तत्कालीन नरेशों ने जगन्नाथ स्वामी मन्दिर से लेकर अजयगढ़ चौराहा तक डेढ़ किमी. रथयात्रा मार्ग के दोनों तरफ बरामदा का निर्माण कराया था, जहां पर रथयात्रा में शामिल होने के लिए आने वाले श्रद्धालु ठहरते थे। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते वह प्राचीन व्यवस्था अतिक्रमण के चलते ध्वस्त हो गई। फलस्वरूप रथयात्रा वाला मार्ग संकीर्ण हो गया है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पन्ना के ऐतिहासिक रथयात्रा को उसका पुराना वैभव वापस दिलाने की दिशा में रूचि ली थी, वे 2003 में पन्ना आकर समारोह में शामिल भी हुए थे। लेकिन इसके बाद फिर किसी मुख्यमंत्री ने पन्ना की प्राचीन रथयात्रा को वह महत्व नहीं दिया, जिसकी पन्ना नगर के लोग अपेक्षा करते हैं। 

समारोह को भव्य बनाने शासन से नहीं मिलता सहयोग 

पन्ना की प्राचीन ऐतिहासिक रथयात्रा को राजशाही ज़माने की तरह पूरे ठाट-बाट व वैभव के साथ निकालने हेतु शासन से जिस तरह का सहयोग मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता। अपेक्षित सहयोग न मिल पाने से पन्ना का यह सबसे बड़ा धार्मिक समारोह अब सिर्फ परम्परा के निर्वहन तक सिमट कर रह गया है। जगन्नाथ स्वामी मंदिर के पुजारी राकेश गोस्वामी ने बताया कि पिछले साल रथयात्रा में हुए खर्च का 1 लाख 48 हजार रुपये अभी तक मंदिर को नहीं मिला। इस वर्ष की तैयारियों बावत पूंछे जाने पर आपने बताया कि रथयात्रा समारोह के आयोजन को लेकर पिछले दिनों हुई बैठक में कलेक्टर पन्ना ने पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव का हवाला देकर जनसहयोग से रथयात्रा निकालने को कहा है। जनता के सहयोग से व्यवस्थाएं की जा रही हैं, शासन व प्रशासन से अभी तक कोई सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। किसी अधिकारी ने मंदिर आकर व्यवस्थाओं व तैयारियों की खोज खबर भी नहीं ली।    

पन्ना की रथयात्रा को मिले राज्य उत्सव का दर्जा

पन्ना के प्रबुद्धजनों व श्रद्धालुओं का कहना है कि समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लोगों की आस्था व धार्मिक महत्ता को देखते हुए पन्ना की ऐतिहासिक व प्राचीन रथयात्रा समारोह को राज्य उत्सव का दर्जा मिलना चाहिए। पूर्व में इस बावत प्रशासनिक स्तर से पहल भी की गई है। तत्कालीन प्रभारी अधिकारी धर्मार्थ रत्नेश दीक्षित ने बताया कि पन्ना की रथयात्रा समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लिए गौरव की बात है। आपने बताया कि पन्ना की रथयात्रा को राज्य उत्सव के रूप में स्थापित करने हेतु धर्मार्थ सचिव मनोज श्रीवास्तव को पत्र भेजा जाकर इस दिशा में आवश्यक पहल करने का अनुरोध किया गया था। समरोह के लिए शासन से आर्थिक सहयोग प्रदान किये जाने की मांग भी की गई थी। लेकिन इस पहल और प्रयास के सार्थक परिणाम सामने नहीं आ सके। शासन से अपेक्षित सहयोग न मिलने के बावजूद इस वर्ष रथयात्रा समारोह में जनसहयोग से बुन्देलखण्ड के प्राचीन परिवेश व परम्पराओं की झलक मिले, इसका पूरा प्रयास किया जा रहा है। 

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Monday, June 27, 2022

मुख्यमंत्री के पन्ना दौरे में छाया रहा पेयजल संकट का मुद्दा

  •  जनाक्रोश के बावजूद कहीं नजर नहीं आए कांग्रेसी
  •  डेढ़ घंटे विलंब से पन्ना पहुंचे सीएम शिवराज सिंह 

पन्ना में आम सभा को सम्बोधित करते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान। 


।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आज हुए सियासी दौरे में पेयजल संकट का मुद्दा गरमाया रहा। शहर में बीते एक पखवाड़े से नगर वासियों को पानी की जुगाड़ में यहां से वहां भटकना पड़ रहा है। पानी के लिए हैरान और परेशान नगर वासियों में अव्यवस्थाओं को लेकर भारी आक्रोश है। ऐसे समय पर नगर निकाय चुनाव में खड़े भाजपा प्रत्याशियों को जिताने की अपील करने मुख्यमंत्री जब पन्ना पहुंचे, तो जनाक्रोश को भुनाने के लिए शहर की सड़कों पर कहीं भी कांग्रेसी नजर नहीं आए। 

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से तकरीबन डेढ़ घंटे विलंब से शाम 4 बजे पन्ना पहुंचे सीएम शिवराज सिंह का काफिला हेलीपैड से सीधे जुगल किशोर जी मंदिर पहुँचा। यहां उन्होंने माथा टेका और भगवान के दर्शन किए, तदुपरांत बाहर आम सभा को संबोधित किया। उन्होंने नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों को जिताने की अपील करते हुए कहा कि पन्ना शहर की पेयजल समस्या को शीघ्र दूर किया जाएगा। शहर में पेयजल की बेहतर व्यवस्था बनाई जाएगी। भीषण जल संकट के बीच पन्ना पहुंचे मुख्यमंत्री ने कहा कि पानी कहीं से भी लाना पड़े, चाहे बांध से चाहे नदिया से पूरी योजना बनाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि पन्ना की प्राचीन परंपराओं को जारी रखते हुए इस शहर को आधुनिक बनाने में कोई कसर नहीं छोडूंगा। श्री चौहान ने कहा कि हम जनता की जिंदगी बनाने निकले हैं, कांग्रेस ने कभी ऐसे काम नहीं किए। तो फिर आप लोग ही बताओ, काहे को उन्हें वोट दो। उन्होंने पन्ना सहित जिले की सभी नगर पंचायतों में भाजपा प्रत्याशियों को जिताने की अपील भी की। 

मुख्यमंत्री ने जनसभा में कहा कि हमने विकास की योजनाएं चलाईं, कांग्रेस ने उन योजनाओं को बंद कर दिया। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री रहते हुए संबल योजना पर कैची चलाई, लाडली लक्ष्मी योजना ठंडे बस्ते में डाल दी और मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में बहनों को धोखा दिया। हमने सभी वर्गों के लिए योजनाएं चलाईं थीं। 15 महीने सत्ता में रही कांग्रेस ने सभी योजनाएं बंद कर दीं अब कांग्रेस को परमानेंट बंद कर दो। आम सभा को मुख्यमंत्री से पहले क्षेत्रीय विधायक व खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने भी संबोधित किया। उन्होंने शहर की प्रमुख समस्याओं की ओर मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट किया। 

आने से पहले युवा कांग्रेसी हुए गिरफ्तार 

मुख्यमंत्री के पन्ना पहुंचने से पहले विरोध प्रदर्शन की संभावना को देखते हुए कांग्रेस के कुछ नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया। शहर के जिन मार्गों से मुख्यमंत्री को निकलना था, वहां पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था रही ताकि विपक्षी विरोध प्रदर्शन न कर पायें। शहर के प्रमुख चौराहों पर भाजपा के कार्यकर्ता व पदाधिकारी मोर्चा संभाले रहे। फलस्वरूप खाली डिब्बा लेकर विरोध करने की जिन लोगों ने तैयारी कर रखी थी वे आसपास भी फटक नहीं पाये। पूरा शहर भाजपा मय नजर आ रहा था। कांग्रेस के युवा और सक्रिय नेताओं को पुलिस ने थाने में बिठा लिया था, जिससे कांग्रेसियों का उत्साह ठंढा पड़ गया। 

कांग्रेस के कई नेता भाजपा में हुए शामिल  

 नगरीय निकाय के चुनाव का प्रचार जब उफान पर है ऐसे समय पर जल संकट जैसे कई बड़े मुद्दों के रहते हुए भी कांग्रेसी एकजुट नहीं हैं। कांग्रेस नेताओं के आपसी मतभेद व विखराव का भाजपा ने फायदा उठाते हुए कई प्रभावशाली नेताओं को अपने पाले में कर लिया। दोपहर तक शहर का जो माहौल था और विरोध के जो स्वर सुनाई दे रहे थे, मुख्यमंत्री के आते ही सब ठंढा हो गया। कांग्रेसी नेताओं के ऐन चुनाव के समय पाला बदलने से ऐसे कुछ वार्ड जहाँ कांग्रेस प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत दिख रही थी वहाँ भी अब भाजपा जड़ें जमा सकती है। 

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Sunday, June 26, 2022

शहर में नल से जल गायब और मुख्यमंत्री करेंगे रोड शो !

  •  जनता को रिझाने सीएम शिवराज सिंह का पन्ना दौरा 
  •  रोड़ शो में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष श्री शर्मा भी रहेंगे शामिल 


पन्ना। नगरीय निकाय के चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों के लिए वोट मांगने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 27 जून सोमवार को पन्ना आ रहे हैं। मुख्यमंत्री जी का यह सियासी दौरा उस समय हो रहा है जब पन्ना शहर के लोग पेयजल के लिए हैरान और परेशान हैं। नगर निकाय चुनाव में उतरे वार्ड प्रत्यासी वोट के लिए जहाँ गली-गली घूम रहे हैं वहीं जनता खाली डिब्बा लिए पानी के लिए भटक रही है। चुनाव में पानी सबसे बड़ा व अहम मुद्दा बन चुका है। ऐसे समय पर सीएम शिवराज सिंह पन्ना आ रहे हैं।  

उल्लेखनीय है कि पन्ना शहर के प्राचीन जीवनदायी तालाब जहां से पेयजल की सप्लाई होती थी, वे पूरी तरह सूख चुके हैं। इन हालातों के चलते पन्ना में नल से जल गायब है। जिससे इस भीषण गर्मी में पानी के लिए भटकती जनता का पारा सातवें आसमान पर है। जनता के इस चढ़े हुए पारे को नीचे लाने तथा भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाने के मकसद से मुख्यमंत्री का पन्ना दौरा हो रहा है। उनके साथ में क्षेत्रीय सांसद व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा भी रहेंगे और पन्ना की जनता से भाजपा प्रत्याशियों को वोट देने की अपील करेंगे। 

मुख्यमंत्री के इस दौरे के संबंध में स्थानीय विधायक व प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि मुख्यमंत्री जी 27 जून को पन्ना आएंगे और सबसे पहले श्री जुगल किशोर जी मंदिर जाकर दर्शन करेंगे। तदुपरांत यहां एक जनसभा को संबोधित करने के बाद शहर में रोड शो भी करेंगे। मुख्यमंत्री के इस दौरे को लेकर प्रशासनिक स्तर पर जहां हलचल है वहीं तैयारियां भी जोर शोर के साथ चल रही हैं। मौजूदा चुनावी माहौल में जब जनता द्वारा पूंछे जा रहे चुटीले सवालों से भाजपा प्रत्यासी असहज महसूस कर रहे हैं, ऐसे समय पर मुख्यमंत्री का दौरा संजीवनी का काम कर रहा है। भाजपा प्रत्यासी आशान्वित हैं कि मुख्यमंत्री जी के पन्ना दौरे व रोड़ शो के बाद जनता का मूड बदलेगा और भाजपा प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत होगी। सबकी निगाहें सोमवार को होने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के रोड़ शो पर टिकी हुई हैं। 

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Friday, June 17, 2022

राजकुमार ने मारी पलटी, कांग्रेस छोड़ भाजपा में आये

भाजपा का दामन थामने पर राजकुमार का स्वागत करते मुख्यमंत्री व भजपा प्रदेश अध्यक्ष। 

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। चुनाव के इस मौसम में आयाराम और गयाराम का सिलसिला भी शुरू हो गया है। पन्ना जिले में इसकी शुरुआत कांग्रेस नेता व जिले के प्रतिष्ठित व्यवसाई तथा नगर पंचायत अजयगढ़ के अध्यक्ष रह चुके राजकुमार जैन ने की है। इन्होने आज कांग्रेस से नाता तोड़ भाजपा से नाता जोड़ लिया है। प्रदेश के  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भोपाल में इन्हे भाजपा की सदस्यता दिलाई है। इस राजनैतिक उलटफेर से कांग्रेस को जहाँ झटका लगा है, वहीं भाजपा में फील गुड़ है। यह अलग बात है कि नगर पंचायत अध्यक्ष बनने का ख्वाब देख रहे भाजपा नेताओं के अरमानों पर इससे पानी फिर सकता है। जिससे दावेदारों में बेचैनी भी साफ देखी जा रही है। 

उल्लेखनीय है कि राजकुमार जैन व्यवसाई होने के साथ राजनैतिक महत्वाकांक्षा भी रखते हैं। इसके पूर्व वे साइकिल भी चला चुके हैं। कांग्रेस छोड़ ये सपा से विधान सभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं, जब सफल नहीं हुए तो फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया। नगर पंचायत अजयगढ़ के अध्यक्ष रह चुके श्री जैन इस बार भी अध्यक्ष की कुर्सी हथियाने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। इसी मंशा के चलते उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री से अध्यक्षी का आश्वासन व हरी झंडी मिलने के बाद ही कई घाट का पानी पी चुके कांग्रेस के राजकुमार ने यह दांव खेला होगा। इसमें वे कितना सफल होते हैं, यह आने वाला वक्त बताएगा।

अजयगढ़ क्षेत्र के कांग्रेसजनों का कहना है कि कांग्रेस में जब इनकी अध्यक्ष बनने की ख्वाहिश पूरी होती नहीं दिखी तो उन्होंने अपने स्वभाव के अनुरूप पलटी मारी है ताकि अध्यक्ष पद हथिया सकें। लेकिन उनकी यह मंशा सहजता से पूरी हो पायेगी, इसकी संभावना कम ही दिखती है। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि भाजपा के कई प्रभावशाली स्थानीय नेता भी अध्यक्ष पद की दावेदारी के साथ अपने वार्डों से चुनाव के मैदान में हैं। इन हालातों में श्री जैन को स्थानीय भाजपा नेताओं के अंदरूनी विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है।

मिली जानकारी के मुताबिक भाजपा में अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदारों में संजय सुल्लेरे, अमित गुप्ता, शीलू श्रीवास्तव, सीता गुप्ता तथा कांग्रेस से भाजपा में आए राजकुमार जैन हैं। इस बार इनका वार्ड पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित है, कांग्रेस में इन्हे जब किसी अन्य वार्ड से चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं मिली तो इन्होने भाजपा का दामन थाम लिया। राजकुमार जैन नगर पंचायत अजयगढ़ में दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं। जबकि इनकी पत्नी चंदा जैन भी एक बार अध्यक्ष रह चुकी हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि श्री जैन दो मर्तबा पार्षद का चुनाव भी हार चुके हैं, जबकि एक बार समाजवादी पार्टी की टिकट से पन्ना विधानसभा से चुनाव हारे हैं। 

नगर पंचायत अजयगढ़ के अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस से दावेदारों में राजकुमार जैन का ही नाम था, किसी अन्य का नाम उभरकर सामने नहीं आया था। अब इनके भाजपा में चले जाने के बाद कांग्रेस में नये समीकरण बनेगें, उसी के अनुरूप दावेदार भी सामने आयेंगे। मालूम हो कि अजयगढ़ नगर पंचायत में कुल 15 वार्ड हैं तथा अध्यक्ष का पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित है।

श्रीमती चन्दा जैन वार्ड क्रमांक 2 से लड़ेंगी चुनाव 

कांग्रेस नेता राजकुमार जैन ने पाला बदलकर आज सुबह भाजपा की सदस्यता ली और शाम को भाजपा के  पार्षद प्रत्याशियों की सूची जारी हो गई। इस सूची में उनकी पत्नी श्रीमती चन्दा जैन का नाम है। वे अजयगढ़ नगर पंचायत के वार्ड क्रमांक 2 से चुनाव लड़ेंगी। जाहिर है कि वे भाजपा से नगर पंचायत अध्यक्ष पद की भी प्रमुख दावेदार रहेंगी। श्री जैन ने भाजपा क्यों ज्वाइन की है, सूची जारी होते ही सब कुछ साफ हो गया है। 

 


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Thursday, June 16, 2022

पेयजल संकट से निपटने अब कलेक्टर ने संभाला मोर्चा

  • आवश्यक व्यवस्थाओं के लिए अधिकारियों को दिए निर्देश
  • पेयजल उपलब्ध कराने 6 स्टेण्ड पोस्ट से भरे जा रहे टैंकर 

शहर के बेनीसागर तालाब का जायजा लेते कलेक्टर पन्ना। 

पन्ना। पेयजल संकट की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन अब सक्रिय हुआ है। प्रमुख तालाबों में पानी ख़त्म हो जाने से नियमित जल सप्लाई बाधित होने के चलते शहर के ज्यादातर हिस्सों में पेयजल को लेकर कई दिनों से मारामारी मची हुई थी। ऐसी स्थिति में जब चुनाव की गहमा-गहमी उफान पर है पानी को लेकर बढ़ते जनाक्रोश  ने बारिश होने का इंतजार कर रहे प्रशासन को मैदान में उतरकर पेयजल व्यवस्था बनाने को मजबूर कर दिया। फलस्वरूप प्रशासनिक मुखिया कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने पन्ना शहर में मौजूदा पेयजल संकट से निपटने के लिए खुद मोर्चा संभाल लिया है। 

आज गुरुवार को उन्होंने स्थिति की समीक्षा कर सुचारू व्यवस्थाओं के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। उन्होंने नगर पालिका परिषद पन्ना में बैठक कर तालाब और जल स्त्रोतों में पानी की उपलब्धता के बारे में जानकारी ली और वार्डवार पेयजल उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित किया। कलेक्टर ने कहा कि टैंकर के माध्यम से जल संकट वाले वार्डों में स्थिति ठीक होने तक नियमित रूप से टैंकर के माध्मय से नागरिकों को सुलभ तरीके से पेयजल उपलब्ध कराया जाए।

कलेक्टर श्री मिश्र ने नगर पालिका परिषद पन्ना सहित अन्य नगरीय निकायों के टैंकरों के माध्यम से पेयजल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। एसडीएम को पन्ना शहर के आस-पास के क्षेत्र जहां पेयजल संकट नहीं हैं, उन क्षेत्रों से टैंकर उपलब्ध कराने के लिए कहा गया। बताया गया कि 6 स्टेण्ड पोस्ट से टैंकर भरे जा रहे हैं। शुक्रवार को दोपहर 12 बजे तक 5 अतिरिक्त स्टेण्ड पोस्ट तैयार कर लिया जाए। इसके अतिरिक्त आम नागरिकों की सहूलियत के लिए प्रत्येक स्टेण्ड पोस्ट के पास टैंकर भरने की व्यवस्था के साथ-साथ एक पानी की टंकी भी रखवाई जाए। उन्होंने कहा कि नगर पालिका द्वारा कराए जा रहे 5 नये बोर के साथ ही स्टेण्ड पोस्ट और पानी की टंकी की व्यवस्था भी करें।

निजी बोर से भी उपलब्ध कराया जाएगा पेयजल

कलेक्टर ने कहा कि शहर में निजी बोर वाले नागरिकों के घर के सामने टंकी रखवाएं। निजी बोर मालिकों द्वारा स्वयं की आवश्यकता पूरी होने पर टंकी में पानी भरा जाएगा, जिससे नागरिकों को पेयजल की आपूर्ति की जाएगी। इसी तरह शहर में पानी की उपलब्धता वाले कुओं के पास पेयजल के लिए पानी की टंकी रखवा कर सिंगल फेस मोटर लगवाया जाए।

उन्होंने पेयजल टैंकर के परिचालन व्यवस्था की मॉनीटरिंग करने और स्टेण्ड पोस्ट से जाने वाले टैंकरों का चिन्हित स्थान पर जाने और वापस आने के समय का रिकार्ड संधारण करने के भी निर्देश दिए। साथ ही कहा कि यह भी सुनिश्चित करें कि निर्धारित स्थान पर आवागमन के दौरान अनावश्यक समय की बर्बादी न हो। प्रत्येक टैंकर के लिए निर्धारित ट्रेक्टर रहेगा।

पेयजल संकट की जानकारी के लिए कॉल सेन्टर

पन्ना शहर के नागरिक पेयजल टैंकर की मांग अथवा पेयजल संकट की जानकारी के लिए 24 घंटे संचालित कॉल सेन्टर पर संपर्क कर सकते हैं। जिला कलेक्टर के निर्देश पर नगर पालिका द्वारा दूरभाष क्रमांक 07732-252034 और मोबाइल नम्बर 9039292242 शुरू किया गया है। कलेक्टर के व्हाट्सएप हेल्पलाइन नम्बर 9755991970 पर भी मैसेज के माध्यम से पेयजल के लिए टैंकर की मांग की जा सकती है। कलेक्टर श्री मिश्र ने टैंकर से पेयजल की सप्लाई के लिए टैंकर पर अतिरिक्त कर्मचारी की ड्यूटी लगाने और रजिस्टर संधारित कर नागरिकों के मोबाइल नम्बर और रजिस्टर पर हस्ताक्षर कराने के लिए भी निर्देशित किया। नगर के पेयजल स्थिति की समीक्षा प्रतिदिन सुबह-शाम की जाएगी।

बेनीसागर तालाब का किया निरीक्षण

कलेक्टर श्री मिश्र ने बैठक के पूर्व निरपत सागर, लोकपाल सागर और बेनीसागर तालाब का निरीक्षण भी किया। पेयजल संकट से निपटने के लिए बेनीसागर तालाब का पानी अस्थाई पाइप लाइन के जरिए धरमसागर स्थित इंटेक वेल तक लाने के निर्देश दिए। उन्होंने नागरिकों से संपर्क कर पेयजल स्थिति के बारे में जानकारी भी ली।

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Wednesday, June 15, 2022

पन्ना की रत्नगर्भा धरती ने गरीबों को फिर किया मालामाल

  • जरुआपुर की खदान से 6.29 कैरेट वजन का मिला बेशकीमती हीरा
  • हीरा धारक सुनील ने साथियों के साथ पन्ना आकर जमा किया हीरा 

खदान में मिला हीरा दिखाते हुए सुनील। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना।  मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती ने आज फिर एक गरीब किसान व उसके साथियों को मालामाल कर दिया है। पन्ना शहर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम जरुआपुर निवासी सुनील कुमार 40 वर्ष को जरुआपुर की उथली खदान क्षेत्र से जेम क्वालिटी ( उज्जवल किस्म ) वाला 6.29 कैरेट वजन का हीरा मिला है। इस हीरे की अनुमानित कीमत 25-30 लाख रुपए बताई जा रही है। खदान में हीरा मिलने की खबर के बाद से सुनील के घर में खुशी का माहौल है।

हीरा धारक सुनील अपने साथियों के साथ कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय आकर वहां विधिवत हीरा जमा कर दिया है। हीरा कार्यालय पन्ना के हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि 6.29 कैरेट वजन का यह हीरा उज्जवल किस्म का है जो गुणवत्ता और कीमत के लिहाज से अच्छा माना जाता है। आपने बताया कि पन्ना में उथली खदानों से प्राप्त इस हीरे को आगामी नीलामी में रखा जायेगा। बिक्री से प्राप्त राशि में से शासन की रायल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा धारक को प्रदान की जाएगी। 

हीरे की अनुमानित कीमत पूंछे जाने पर हीरा पारखी ने बताया कि हीरा जेम क्वालिटी का है जिसकी अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद है, लेकिन अभी उसकी कीमत नहीं बताई जा सकती। हीरा अधिकारी रवि पटेल ने बताया कि इस हीरे को कार्यालय में जमा करवा दिया है।अगली नीलामी में इसे रखा जाएगा। नीलामी के बाद मिलने वाली राशि से 11.5 परसेंट शासन की रॉयल्टी काटकर बांकी रकम हीरा धारक के खाते में भेज दी जायेगी।

हीरा धारक सुनील कुमार ने बताया कि आर्थिक तंगी से निजात पाने करीब 2 वर्ष से हीरा खदान लगाकर हीरों की तलाश करता आ रहा हूँ, लेकिन अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा था। घर में ढाई एकड़ खेती है, जिसमे गुजर बसर नही चल पाता था। हीरा मिलने पर अपनी ख़ुशी का इजहार करते हुए सुनील ने कहा कि जुगल किशोर जी ने उसकी फरियाद सुन ली जिससे मुझे यह हीरा मिल गया। सुनील बताता है कि घर की आर्थिक स्थित खराब होने की वजह से वह बच्चों की अच्छी परवरिश और पढाई को लेकर चिंतित था। 

सुनील ने बताया कि उसने 5 अन्य साथियों के साथ मिलकर हीरा कार्यालय से 10 बाई 10 का हीरा खदान खोदने के लिए निजी खेत मे पट्टा लिया था। आज उसी में खुदाई के दौरान है यह उज्जवल किस्म का हीरा प्राप्त हुआ है। जिसे पन्ना के हीरा कार्यालय में जमा करा दिया गया है।  हीरा मिलने की ख़ुशी सुनील के चेहरे से साफ झलक रही थी, उसने बताया कि जुगल किशोर जी का नाम लेकर 20 दिन पहले ही खदान शुरू की थी और भगवान ने उनकी सुन ली। अब सारी चिंता दूर हो गई है, बच्चों की परवरिश और पढाई भी अब अच्छे से हो सकेगी।

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Tuesday, June 14, 2022

लू लगने से जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ हुये बीमार

  • पूरे 15 दिनों तक के लिए बंद रहेंगे मंदिर के कपाट, नहीं होंगे दर्शन
  • अमावस्या को पथ प्रसाद लगने के बाद दोज से शुरू होगी रथयात्रा  

मन्दिरों के शहर पन्ना में स्थित प्राचीन भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी मन्दिर।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध म.प्र. के पन्ना नगर में अनूठी धार्मिक परम्परायें प्रचलित हैं, जिनका निर्वहन यहाँ धूमधाम के साथ किया जाता है। मालुम हो कि ठीक जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां निकलने वाली रथयात्रा महोत्सव की परम्परा डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। परम्परानुसार पवित्र तीर्थों के सुगंधित जल से स्नान करने के कारण जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ स्वामी लू लगने से आज बीमार पड़ गये हैं। भगवान के ज्वर पीड़ित होने का यह धार्मिक आयोजन स्नान यात्रा के रूप में पन्ना के श्री जगन्नाथ स्वामी मन्दिर में सम्पन्न हुआ। आज के इस आयोजन में महाराज राघवेन्द्र सिंह के अलावा मन्दिर समिति के लोग व पुजारी तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल रहे। भगवान के बीमार पडने के साथ ही रथयात्रा महोत्सव का शुभारंभ हो गया है।

उल्लेखनीय है कि राजशाही जमाने से चली आ रही धार्मिक आयोजन की यह परम्परा डेढ़ शताब्दी से भी अधिक पुरानी है। परम्परा के अनुसार आज सुबह 9 बजे बड़ा दीवाला स्थित जगदीश स्वामी मंदिर में भगवान की स्नान यात्रा के कार्यक्रम की शुरूआत हुई। पन्ना राज परिवार के सदस्य सहित मंदिर के पुजारियों तथा तथा खास लोगों द्वारा गर्भगृह में विराजमान भगवान जगदीश स्वामी उनके बड़े भाई बलभद्र, बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को आसन में बैठाकर मंदिर प्रांगण स्थित लघु मंदिर में बारी-बारी से लाकर विराजमान कराया गया। भगवान की स्नान यात्रा में पहुंचने पर बैण्डबाजों व आतिशबाजी से उनका स्वागत किया गया।  भगवान की स्नान यात्रा के दौरान मंदिर प्रांगण में श्रद्धालु जयकारे लगा रहे थे। मंदिर के पुजारियों तथा ब्राम्हणों द्वारा वेद मंत्रों के साथ भगवान की पूजा अर्चना की गई तथा हजार छिद्र वाले मिट्टी के घड़े से भगवान को स्नान कराया गया। स्नान के साथ ही मान्यता के अनुसार भगवान लू लग जाने की वजह से बीमार पड़ गये, जिन्हे सफेद पोशाक पहनाई गई और भव्य आरती की गई। 


भगवान के स्नान यात्रा के बाद चली आ रही परम्परा के अनुसार मिट्टी के घट श्रद्धालुओं को लुटाये जाने की परम्परा का निर्वहन हुआ। घट को श्रद्धालु खुशी के साथ सुरक्षित तरीके से अपने घर ले गये। वर्षभर खुशहाली की कामना के साथ अपने घर के पूजा स्थल में प्राप्त घट को रखकर उन्हें पूजा जायेगा। कार्यक्रम के बाद बीमार पड़े भगवान को फिर से बारी-बारी करके आशन में बैठाते हुये मंदिर के गर्भगृह के अंदर ले जाकर विराजमान कराया गया और मंदिर के पट 15 दिन तक के लिये बंद हो गये। भगवान के बीमार हो जाने के बाद अब श्रद्धालुओं को 15 दिन तक उनके दर्शन प्राप्त नहीं होंगे। मंदिर के पुजारी ही मंदिर के अंदर प्रवेश कर बीमार पड़े भगवान की पूजा अर्चना करेंगे। 15 दिन तक बीमार पड़े भगवान सफेद वस्त्रों में ही रहेंगे। अमावस्या के दिन भगवान को पथ प्रसाद लगेगा और इसके बाद अगले दिन भगवान की धूप कपूर झांकी के रूप में जाली लगे पर्दे से श्रद्धालुओं को दर्शन प्राप्त होंगे तथा दोज तिथि से भगवान की रथयात्रा शुरू हो जायेगी।

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Monday, June 13, 2022

पंचायत चुनाव ने बदली पत्थर खदान के मजदूर रामलाल की किस्मत !

  • तय किया कल्दा पठार की झोपड़ी से सरकारी बंगले तक का सफर
  • जाने कैसे बना,पठार का एक आदिवासी जिला पंचायत का अध्यक्ष

 जिला पंचायत पन्ना के पूर्व अध्यक्ष रामलाल आदिवासी।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। आदिवासी बहुल इलाके कल्दा पठार के भितरी मुटमुरु निवासी रामलाल आदिवासी ने दो दशक पूर्व पत्थर खदान में काम करने वाले मजदूर से जिला पंचायत पन्ना के अध्यक्ष बनने तक का सफर तय किया था। उस समय रामलाल का अध्यक्ष बनना किसी चमत्कार से कम नहीं था। पन्ना जिले के कल्दा पठार की खदान में पत्थर तोडऩे वाला एक सीधा-साधा अनपढ़ आदिवासी आखिर जिला पंचायत का अध्यक्ष कैसे बना, इसके पीछे कौन था तथा रामलाल का कार्यकाल कैसा रहा, इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है।

जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 70 किलोमीटर दूर ऊंचे पहाड़ पर जंगल के बीच बसा कल्दा पठार का यह इलाका दो दशक पूर्व तक अत्यधिक दुर्गम तो था ही बारिश के चार माह तक यहां पहुंचना नामुमकिन हो जाता था। सलेहा क्षेत्र से लगे इस इलाके में उन दिनों खनन कारोबार से जुड़े लोगों का दबदबा था। सलेहा के रमाकांत शर्मा की पूरे पठार में न सिर्फ तूती बोलती थी बल्कि पठार में ज्यादातर पत्थर की खदानें भी इन्हीं की थीं। इनकी खदानों में सैकड़ों की संख्या में आदिवासी काम किया करते थे, उन्हीं में से एक रामलाल भी था। वर्ष 2000 के पंचायत चुनाव में जब जिला पंचायत पन्ना के अध्यक्ष का पद अनुसूचित जनजाति पुरुष के लिए आरक्षित हुआ, तो कांग्रेस पार्टी की राजनीति में सक्रिय रमाकांत शर्मा ने इस पद पर अपने किसी वफादार मोहरे को बिठाने की योजना बनाई। इसी योजना के तहत इस दबंग व हर तरह से सक्षम शर्मा परिवार ने रामलाल को आगे किया और वह जिला पंचायत पन्ना का अध्यक्ष बन गया।

जिला पंचायत में रमाकांत का रहा दबदबा 


जिला पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष रमाकांत शर्मा। 

जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर रामलाल आदिवासी आसीन जरूर हो गया लेकिन हुकूमत उपाध्यक्ष बने रमाकांत शर्मा की ही चलती रही। आलम यह था कि बिना रमाकांत की मंशा के यहां पता भी नहीं हिलता था। रामलाल की स्थिति अध्यक्ष बनने के बाद भी शुरू के कुछ सालों तक जस की तस रही। बीड़ी का कट्टा लेने के लिए भी रामलाल को पैसे उपाध्यक्ष रमाकांत शर्मा से ही मांगने पड़ते थे। पद के लिहाज से रामलाल का कद भले ही बड़ा था, लेकिन रमाकांत के सामने वह पहले की ही तरह जमीन पर बैठता था। रमाकांत शर्मा के घर के निकट स्थित बैठक में दीवाल से एक थाली टिकी रहती थी, जिसमें नीचे रामलाल का नाम लिखा हुआ था। रामलाल जब भी यहां जाता तो उसी थाली में खाना खाता और उसको धोकर वही दीवाल से टिका देता।

रमाकांत व प्रशासन के बीच बढ़ी तनातनी

जिला पंचायत अध्यक्ष के पावर का उपयोग जब रमाकांत शर्मा पूरी दबंगई के साथ करने लगे, तो प्रशासन और उनके बीच तनातनी की स्थिति निर्मित होने लगी। उस समय कलेक्टर रहे आर.आर. गंगारेकर से सीधे टकराव होने पर रमाकांत के वर्चस्व को खत्म करने के लिए प्रशासनिक अधिकारी सक्रिय हो गये। ऐन केन प्रकारेण प्रशासन रामलाल को रमाकांत शर्मा की गिरफ्त से बाहर निकालने की योजना पर काम शुरू किया। योजना के तहत जिला पंचायत अध्यक्ष रामलाल को सिविल लाइन में सरकारी बंगला एलाट किया गया तथा एक पुरानी एम्बेसडर गाड़ी भी उपलब्ध कराई गई। अधिकारियों की सोहबत मिलने पर रामलाल का रंग बदलने लगा और उसे अपनी अहमियत का भी एहसास होने लगा, जिससे रमाकांत व उसके बीच दूरियां बननी शुरू हुई।

मुख्यमंत्री का संदेश पढऩे दी गई ट्रेनिंग 

राज्यमंत्री का दर्जा होने के कारण रामलाल आदिवासी को जब राष्ट्रीय पर्व पर ध्वजारोहण करने का अवसर मिला, तो इन्हें बकायदे ट्रेनिंग दिलाई गई। अनपढ़ रामलाल को मुख्यमंत्री का संदेश पढऩे के लिए शिक्षक लगाया गया, जिसने रामलाल को पढऩा सिखाया। जब रामलाल अटक-अटक कर हिंदी पढऩे लगा, तब उस समय जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एम.एस. कुशवाहा ने रामलाल को विश्वास में लेकर यह बताया कि फाइलों में दस्तखत करने से पैसा मिलते हैं। रामलाल को पहले तो भरोसा नहीं हुआ लेकिन जब उसे दस्तखत करने के बदले में 10 रुपये के नोटों की पूरी गड्डी अधिकारियों द्वारा दी गई तो उसका माथा ठनका। रामलाल को लगा कि अभी तक बीड़ी के लिए महाराज से पैसा मांगना पड़ता था, लेकिन यहां तो दस्तखत करने भर से रुपयों की गड्डी मिल रही है। फिर तो रामलाल अधिकारियों की गिरफ्त में आ गया और रमाकांत शर्मा से दूरी बन गई।

बंदूक खरीदी व मोटरसाइकिल चलाने ड्राइवर रखा

जिला मुख्यालय के सरकारी बंगले में रहने तथा माली हालत सुधरने पर रामलाल आदिवासी ने बंदूक व मोटरसाइकिल भी खरीद ली। चूंकि उसे मोटरसाइकिल चलाना नहीं आती थी इसलिए इसके लिए बकायदा उसने वेतन पर एक ड्राइवर भी रख लिया। ड्राइवर मोटरसाइकिल चलाता और उसके पीछे रामलाल पूरे रौब के साथ अपनी बंदूक लेकर बैठता। उसमें आये इस बदलाव का असर यह हुआ कि पठार के आदिवासियों में उसका रुतबा बढ़ गया और वह पठार के आदिवासियों का नेता बन गया। छोटी-मोटी समस्याओं के लिए आदिवासी रामलाल के पास आने लगे, जिनका निराकरण रामलाल के कहने पर अधिकारी करने लगे।


रामलाल आदिवासी का कार्यकाल वर्ष 2000 से 2005 तक रहा। इसके पूर्व जिला पंचायत के दो अध्यक्ष हो चुके थे, जिनमें पहले अध्यक्ष बिहारी सिंह शिकारपुरा 1985 से 1989 तक तथा संतोष कुमारी (जिन्हें अशोक वीर विक्रम सिंह भैया राजा ने अध्यक्ष बनाया था) वर्ष 1994 से 1998 तक रहीं। रामलाल के बाद जिला पंचायत के अध्यक्ष वर्ष 2005 से 2010 तक उपेंद्र प्रताप सिंह, वर्ष 2010 से 2015 तक सुदामा बाई पटेल तथा वर्ष 2015 से रविराज सिंह यादव इस पद पर काबिज हैं।

खेती किसानी से अब हो रहा गुजारा 

जिला पंचायत पन्ना के अध्यक्ष रह चुके रामलाल अब भितरी मुटमुरु गांव में ही रहकर खेती किसानी करते हैं। जिससे उनका व परिवार का भरण पोषण होता है। सलेहा के स्थानीय पत्रकार अशोक नामदेव बताते हैं कि पठार में घुटेही पंचायत के अंतर्गत रामलाल आदिवासी को जंगल की जमीन का उस समय पट्टा मिल गया था। इसी जमीन पर रामलाल खेती करते हैं। नामदेव ने बताया कि रामलाल ने अपने अलावा तकरीबन 20 आदिवासी परिवारों को भी जमीन का पट्टा दिलाया था, जो अब वहीं रहने लगे हैं। आदिवासियों की यह बस्ती रामपुर के नाम से जानी जाने लगी है। रामलाल की जिंदगी अब पठार तक ही सीमित है, बीते कई सालों से रामलाल पन्ना तो दूर सलेहा तक में नजर नहीं आता। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अब गुमनामी की जिंदगी जी रहा है।

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पन्ना में बाघिन पी-141 ने दिया दो शावकों को जन्म

  • नन्हे शावकों की उम्र लगभग 2 से 3 माह
  • पार्क भ्रमण में आए पर्यटक ने ली है फोटो 

पन्ना टाइगर रिज़र्व की बाघिन पी-141 अपने दो नन्हे शावकों के साथ।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से आज एक खुशखबरी मिली है। यहां की बाघिन पी-141 ने दो नन्हे शावकों को जन्म दिया है। शावकों के साथ बाघिन की तस्वीर पार्क भ्रमण में आए पर्यटक ने ली है। मालूम हो कि अभी हाल ही में 9 जून को पन्ना टाइगर रिज़र्व के नर बाघ पी-111 की 13 वर्ष की आयु में मौत हो गई थी जिसका शव पन्ना-कटनी मार्ग के किनारे राजबरिया बीट अंतर्गत पड़ा मिला था। इसके कुछ ही घंटे बाद अकोला बफर क्षेत्र में बाघिन पी-234 के शावक उम्र लगभग 9 माह का शव मिला। इन दो घटनाओं ने हर किसी को चिंता  में डाल दिया था। लेकिन पीटीआर से ऐसे समय पर मिली यह खुशखबरी राहत प्रदान करने वाली है। 

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि बाघिन पी-141 ने अपने तीसरे लिटर में 2 शावकों को जन्म दिया है। शावकों की पहली फोटो 12 जून को पन्ना टाइगर रिजर्व के भ्रमण पर आए पर्यटक कुमार अमित द्वारा खींची गई, जिसे उन्होंने पार्क प्रबंधन के साथ साझा की है। श्री शर्मा ने बताया कि शावकों की उम्र 2 से 3 माह की प्रतीत होती है। बाघिन व उसके दोनों शावक स्वस्थ हैं। इसके पूर्व बाघिन पी-141 द्वारा अपने पहले लिटर मार्च 2018 और दूसरे लिटर जून 2020 में भी दो-दो शावकों को जन्म दिया था।

काश ! पन्ना पर इसी तरह मेहरबान रहे प्रकृति 

पन्ना का जंगल आदिकाल से बाघों का घर रहा है। यहाँ प्रकृति के विविध रूप जहाँ देखने को मिलते हैं वहीं वनराज सहित विभिन्न प्रजाति के वन्य प्राणी व पक्षी भी यहाँ आश्रय पाते हैं। एक तरह से प्रकृति पन्ना पर मेहरबान है। लेकिन मानवीय दखलंदाजी, गलतियों तथा प्रकृति और पर्यावरण के खिलाफ चलने वाली गतिविधियों से वन्य जीवों की जिंदगी में खलल पड़ता है जिससे क्षति भी होती है। पन्ना जब बाघ विहीन हो गया तो बाघों को यहाँ फिर से आबाद करने के लिए सार्थक व रचनात्मक पहल हुई। इस पहल का प्रकृति ने भी न सिर्फ स्वागत अपितु सहयोग भी किया। इसी का नतीजा है कि पन्ना का जंगल आज न सिर्फ बाघों से आबाद है बल्कि यह नन्हे शावकों से हमेशा गुलजार रहने लगा है। अब यह हमारे ऊपर है कि हम पुरानी गलतियों की पुनरावृत्ति न होने दें ताकि प्रकृति प्रदत्त पन्ना की यह अनमोल धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित और संरक्षित रहे।  

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Sunday, June 12, 2022

जिसके जन्मदिन पर केक कटता था, उसकी ऐसी विदाई ?

  • अंतिम विदाई में पी-111 को एक फूल भी नसीब नहीं हुआ 
  • पेंच में कॉलर वाली बाघिन को दी गई थी शानदार विदाई 

बाघ विहीन होने के बाद पन्ना टाइगर रिज़र्व में जन्मा पहला बाघ पी-111 अब नहीं रहा।  

 ।। अरुण सिंह ।।

जंगल की निराली दुनिया में "सर्वाइबल ऑफ फिटेस्ट" के तहत कुदरत का ही नियम चलता है। यहां वन्यजीवों के अनूठे संसार में कुछ विरले प्राणी ही ऐसे होते हैं जो जंगल में स्वच्छंद जीवन जीते हुए देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर ख्याति भी अर्जित कर पाते हैं। उनके यकायक बिछडऩे पर लोग दु:ख और पीड़ा का अनुभव करते हैं और शोक संवेदना जताते हैं। पन्ना का नर बाघ पी-111 ऐसा ही बिरला वन्य प्राणी था, जिसने जन्म के समय से ही न सिर्फ लोगों का ध्यान आकृष्ट किया अपितु प्रसिद्धि भी पाई।

मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिलाने में अहम योगदान देने वाले इस बाघ ने पन्ना टाइगर रिजर्व को अलविदा कह दिया है, अब बाघ पी-111 नहीं रहा। 16 अप्रैल 2010 को धुंधुवा सेहा में बाघिन टी-1 ने चार नन्हे शावकों को जन्म दिया था, जिनमें सबसे बड़ा यह शावक था। वर्ष 2009 में बाघ विहीन होने से जब पन्ना टाइगर रिजर्व शोकगीत में तब्दील हो गया था, उस समय इन नन्हे शावकों के जन्म से खुशियां फिर लौट आईं थीं और पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ शावकों की अठखेलियों से गुलजार हो गया था।

बाघ पी-111 पन्ना टाइगर रिजर्व में जन्मा वही पहला शावक है, जिसका जन्मदिन 16 अप्रैल को केक काटकर बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता रहा है। बाघ शावक के पहले जन्मदिन पर तत्कालीन केंद्रीय वन मंत्री जयराम रमेश सहित आला वन अधिकारी दिल्ली व भोपाल से पन्ना आकर जश्न में शामिल हुए थे। मुझे वह दिन भी अच्छे से याद है जब धुंधुवा सेहा में बाघिन टी-1 के साथ नन्हें शावक को पहली बार देखा गया था।

धुंधुवा सेहा के ऊपर से केंद्रीय वन मंत्री जयराम रमेश नीचे टकटकी लगाए जब नीचे निहार रहे थे, उसी समय यकायक उनकी नजर चट्टान पर लेटी बाघिन पर पड़ी। बाघिन को देख केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश का उत्साह और खुशी देखते ही बन रही थी। तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति व उपसंचालक विक्रम सिंह परिहार तथा पन्ना के कुछ पत्रकार भी इस मौके पर मौजूद थे। 

चूंकि धुंधुवा सेहा काफी गहरा है और बाघिन गुफा के निकट झाड़ी की ओट में चट्टान पर लेटी थी, इसलिए बाघिन सिर्फ वहीं से नजर आ रही थी जहां जयराम रमेश बैठे थे। फिर तो सभी ने इस रोमांचक दृश्य को देखा और खुशी का इजहार किया। नन्हे मेहमानों के साथ ही यहां पर सफलता, कामयाबी और जश्न का सिलसिला जो शुरू हुआ तो वह अनवरत जारी रहा। चौकस प्रबंधन, चुस्त निगरानी व टीम वर्क से बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ने लगा और नन्हे मेहमान यहां के जंगल को गुलजार करते रहे। नतीजतन पन्ना शून्य से शिखर तक पहुंचने में कामयाब हुआ। मौजूदा समय पन्ना लैंडस्केप में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं।

शिखर पर पहुंचने का अनुभव निश्चित ही बड़ा सुहाना होता है। लेकिन इस ऊंचाई को बनाए रखना उतना ही चुनौतीपूर्ण और कठिन होता है। जो जमीन पर है उसके गिरने की संभावना कम होती है, क्योंकि वह वही खड़ा है जहां गिरना है। लेकिन ऊंचाई पर जो है उसके गिरने और लहूलुहान होने का खतरा हमेशा बना रहता है। इसलिए सजगता और चौकसी हर समय जरूरी है, ऐसे समय जरा सी भी चूक खतरनाक साबित हो सकती है। कामयाबी पर इठलाना गलत नहीं है, लेकिन जिम्मेदारी का एहसास भी होना चाहिए और उसी के अनुरूप काम भी। लेकिन पिछले कुछ सालों से यहाँ सजगता और चौकसी में कमी दिखने लगी है, परिणाम स्वरूप पन्ना टाइगर रिजर्व ने इस बीच बहुत कुछ खोया है। जन समर्थन से बाघ संरक्षण की भावना को भी क्षति पहुंची है। इतना ही नहीं कमियों को दबाने और छिपाने का खेल पहले की तरह फिर शुरू हो गया है। जंगल में वन्य प्राणियों की मौत हो जाती है और किसी को खबर तक नहीं लगती। मौत कैसे और किन परिस्थितियों में हुई यह भी पता नहीं लग पाता। लिहाजा एक बार फिर यह सवाल उठने लगे हैं कि पन्ना क्या उसी राह पर चल पड़ा है, जिस राह से 2009 में पहुंचा था ?

आइये, हम फिर से बात करें पन्ना के सबसे डॉमिनेन्ट मेल टाईगर पी-111 की, जो दुनिया का पहला बाघ है जिसका जन्मदिन मनाने की परंपरा शुरू हुई। इस मेल टाईगर ने पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में एकछत्र राज किया और कई बाघिनों के संपर्क में रहकर यहां बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस नर बाघ को देखना अपने आप में रोमांचकारी व गौरव का एहसास दिलाने वाला होता था। पन्ना टाइगर रिजर्व का यह सबसे ताकतवर और डील डौल में भी बड़ा बाघ था। इसे वनकर्मी राजाबरिया का राजा कहते थे।

लेकिन बेहद शानदार और राजाशाही जिंदगी जीने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के इस पहले बाघ की विदाई जिस तरह से हुई है, वह जरूर पीड़ादायी है। इस बाघ ने पन्ना को शोहरत, गौरव और जश्न मनाने का तो अवसर दिया ही प्रदेश को भी टाइगर स्टेट का तमगा दिलाने में भी अहम रोल अदा किया। लेकिन जंगल के इस राजा की विदाई ऐसे कर दी गई जैसे उसका कोई वजूद ही नहीं था।

पेंच में कॉलर वाली बाघिन "सुपर मॉम" को इस तरह दी गई थी अंतिम विदाई। 

अभी ज्यादा समय नहीं हुआ, इसी साल जनवरी के महीने में पेंच टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध कॉलरवाली बाघिन ने 17 वर्ष की उम्र में जब शरीर छोड़ा तो इस बाघिन को जिस तरह शाही अंदाज में विदाई दी गई, उसे दुनिया ने देखा। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री व वन्यजीव प्रेमियों सभी ने उसकी अंतिम विदाई के मौके पर शोक संवेदना व्यक्त करने के साथ अपनी भावनावों का भी इजहार किया। दाह संस्कार के समय इस बाघिन की चिता फूल मालाओं से सुशोभित थी। अनेकों लोगों ने फूलमाला चढ़ाकर इस सुपर मॉम बाघिन को अंतिम विदाई दी थी। 

हमें भी यह अवसर मिला था कि हम पन्ना में जन्मे अपने पहले बाघ को शानदार तरीके से विदाई देते। ताकि दुनिया पन्ना के इस डोमिनेंट मेल टाइगर के बारे में जान पाती कि यही वह दुनिया का इकलौता बाघ है जिसके जन्मदिन पर केक काटकर जश्न मनाया जाता रहा है। लेकिन पार्क प्रबंधन ने यह अवसर खो दिया। किसी वन्य प्राणी की मौत होने पर उसके शव को जलाने की परंपरा है, उसी का निर्वहन करते हुए राजाबरिया के राजा को भी जला दिया गया। अंतिम समय में उसकी चिता को एक फूल भी नसीब नहीं हुआ। पन्ना टाइगर रिजर्व की शान रहे राजाबरिया के राजा पी-111 की स्मृति में मैं उसे भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

जय शेरखान, जय पन्ना टाइगर रिज़र्व ! 🐯

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Saturday, June 11, 2022

जिला पंचायत सदस्य पद के लिए 145 अभ्यर्थी लड़ेंगे चुनाव

  • 13 उम्मीदवारों ने अभ्यर्थिता से लिए नाम वापस 
  • नाम वापसी के बाद प्रतीक चिन्ह हुए आवंटित 


पन्ना। पन्ना जिले में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अंतर्गत 15 वार्डों में जिला पंचायत सदस्य पद के लिए 145 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। 10 जून को जिला पंचायत सदस्य पद के लिए 13 उम्मीदवारों ने अभ्यर्थिता से नाम वापस लिए। नाम वापसी के बाद अभ्यर्थियों को प्रतीक चिन्ह का आवंटन किया गया।

वार्ड क्रमांक 1 से 7 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी बब्लू राजा उर्फ वीरेन्द्र सिंह को तीर कमान, ओरन सिंह (उपेन्द्र राजा ) को दो पत्तियां, पंकज मिश्रा को उगता सूरज, रामस्वरूप शिवरतन को पतंग, रविप्रकाश त्रिवेदी (मुन्ना महराज) को छाता, संतोष यादव को गाड़ी और सुरेन्द्र प्रताप सिंह को लालटेन चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 2 से 13 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अनीता तीर कमान, आशा को  दो पत्तियां, आशा यादव को ऊगता सूरज, अशोका राकेश गर्ग को पतंग, फूला अहिरवार को छाता, माया भरतमिलन पाण्डेय को गाड़ी, नाजरीन फातिमा को लालटेन, पूजा पति पुष्पेन्द्र कुमार पयासी को फावड़ा और बेलचा, पुष्पादेवी मन्नी पाण्डेय को बिजली का बल्ब, रचना देवी पटेल विन्द्रावन पटेल को सिलाई की मशीन, रजनी सिंह को हाथ चक्की, सन्नो खातून शरीफ खान को टेबल पंखा और सुमन देवी लोध को स्लेट चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 3 से 12 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी दिनेश कुमार को तीर कमान, जनार्दन लोध को दो पत्तियां, मलखान सिंह को ऊगता सूरज, नरेन्द्र कुमार को पतंग, ओंकार सिंह को छाता, पार्थ सिंह महदेले (दाऊ) को गाड़ी, प्रमोद कुमार सेन उर्फ बुद्ध हरदी वाले को लालटेन, राजू जोशी को फावड़ा और बेलचा, रामेश्वर लोध को बिजली का बल्ब, सुनील सिंह को सिलाई की मशीन, तोषेन्द्र सिंह को हाथ चक्की और विद्यादेवी को टेबल पंखा चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 4 से 11 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अरविन्द सिंह यादव को तीर कमान, भानु प्रताप को दो पत्तियां, बृजकिशोर को ऊगता सूरज, गजेन्द्र सिंह (गज्जू) को पतंग, कर्णिका सिंह (पुत्री-बब्लू राजा झरकुआ) को छाता, कृष्णा मिश्रा को गाड़ी, मंगल सिंह भैया को लालटेन, राजमणी (मध्धूराजा) को फावड़ा और बेलचा, राबेन्द्र यादव को बिजली का बल्ब, रीना मंटी महदेले को सिलाई की मशीन और संतोष सिंह यादव को हाथ चक्की चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 5 से 5 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी मानकुंवर सिंह को तीर कमान, प्रभा कुमारी गोड को दो पत्तियां, शोभा सिंह को ऊगता सूरज, सीता रानी को पतंग और स्वेता प्रमोद सिंह ठाकुर को छाता चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 6 से 6 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी इमरती देवीदीन आंसू को तीर कमान, कमलेश दहायत पुत्र जीतू को दो पत्तियां, पुष्पा को ऊगता सूरज, सरोज को पतंग, बालेश्वरी देवी बागरी को छाता और वंशवती चौधरी को गाड़ी चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 7 से 7 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अर्पिता शर्मा को तीर कमान, हिमानी सिंह उर्फ डोली राजे को दो पत्तियां, खेल बाई श्रीराम लोधी को ऊगता सूरज, ममता शर्मा को पतंग, पप्पी (संगीता पटेल) को छाता, रेखा चौरसिया को गाड़ी और सुनीता देवी कुशवाहा को लालटेन चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 8 से 9 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अनीता अंगद प्रजापति को तीर कमान, गनिसिया वाई सतोला चौधरी को दो पत्तियां, हुकुम बाई प्रजापति को ऊगता सूरज, जड़ा बाई चौधरी को पतंग, लक्ष्मी/मिठाई लाल बाबू को छाता, मोनिका को गाड़ी, मुलाम उर्फ मुलायम वंशकार को लालटेन, नीता को फावड़ा और बेलचा और सियाबाई चौधरी को बिजली का बल्ब चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 9 से 17 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी बाल किशुन राजपूत को तीर कमान, बलमान कुशवाहा को दो पत्तियां, बसंत महेन्द्र प्रताप सिंह को ऊगता सूरज, भगवत प्यासी (कमताना) को पतंग, द्वारका प्रसाद कुशवाहा को छाता, इन्द्रा लक्ष्मण प्रसाद पाठक को गाड़ी, कृष्णा कुमारी महेश प्रताप सिंह को लालटेन, मुकेश कुमार पाठक को फावड़ा और बेलचा, प्रीतम सिंह को बिजली का बल्ब, राधा बाई प्रताप पटेल (नेता जी) को सिलाई की मशीन, राघवेन्द्र सिंह बुन्देला (मुन्ना राजा) को हाथ चक्की, संजय अहिरवार को टेबल पंखा, सेवालाल पटेल दादा को स्लेट, सुरेश रेले को रेडियो, उदय सिंह बिसेन को हारमोनियम, ऊषा देवी छवि किशोर पाठक को दो तलवार और एक ढाल और विजय कुमार को पिचकारी चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 10 से 13 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अंजली रमेश पटेल मधपुरा को तीर कमान, अंकित पाठक का दो पत्तियां, गीता को ऊगता सूरज, इन्द्रा-जागेश्वर शुक्ला को पतंग, जीरा बाई पटेल को छाता, मीना राजे पुष्पराज सिंह को गाड़ी, मोहनी भास्कर पाण्डेय को लालटेन, प्रतिभा पाण्डेय को फावड़ा और बेलचा, राकेश चौरसिया को बिजली का बल्ब, रामखिलावन पटेल एडवोकेट को सिलाई की मशीन, राम नरेश दुबे को हाथ चक्की, सुन्दर लाल को टेबल पंखा और विपिन मौर्य को स्लेट चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 11 से 11 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अनीता रामगोविन्द बागरी को तीर कमान, बालस्वरूप को दो पत्तियां, बृजलाल प्रजापति को ऊगता सूरज, धर्मेन्द्र कुमार प्रजापति को पतंग, कल्ला चौधरी को छाता, काशी राम दहायत को गाड़ी, ललेश को लालटेन, रामकिशुन कोरी को फावड़ा और बेलचा, रामकुमार चौधरी को बिजली का बल्ब, शंभू लाल को सिलाई की मशीन और सोने लाल प्रजापति को हाथ चक्की चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 12 से 6 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी हीरा बाई को तीर कमान, जैना रामकुमार आदिवासी को दो पत्तियां, कल्लू बाई को ऊगता सूरज, मीरा बाई को पतंग, सीमा महिपाल शाह को छाता और सुहद्रा बाई को गाड़ी चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 13 से 7 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अहिल्या बाई लोधी को तीर कमान, अनंत श्री वर्मा को दो पत्तियां, नीतू पति आनंद कुमार जैन को ऊगता सूरज, पूनम वीरेन्द्र द्विवेदी को पतंग, संध्या ध्रुव कुमार लोधी को छाता, सुमनबाई को गाड़ी और सुन्दर बाई पति परम सिंह को लालटेन चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 14 से 10 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अनीता सिंह को तीर कमान, अर्चना सिंह/रूद्र प्रताप सिंह को दो पत्तियां, आरती बलराम विश्वकर्मा को ऊगता सूरज, ममता राजू पटेल को पतंग, पुष्पा कमलेश लोधी को छाता, राजरानी सिंह राठौर को गाड़ी, साधना जार को लालटेन, सविता देवी/ स्वामी प्रसाद उरमलिया को फावड़ा और बेलचा, सुनीता बाई राठौर को बिजली का बल्ब और विमला यादव मलखान सिंह को सिलाई की मशीन चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

वार्ड क्रमांक 15 से 11 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। अभ्यर्थी अहिवरण सिंह को तीर कमान, अमर सिंह को दो पत्तियां, अंजली सिंह को ऊगता सूरज, भान सिंह को पतंग, भारत सिंह को छाता, बृजमोहन सिंह को गाड़ी, लखन सिंह को लालटेन, मूरत सिंह को फावड़ा और बेलचा, राकेश को बिजली का बल्ब, रामायण सिंह को सिलाई की मशीन और श्यामा को हाथ चक्की चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है।

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Thursday, June 9, 2022

सुबह नर बाघ पी-111 व शाम को शावक की मौत से पीटीआर में हड़कंप

  • पन्ना टाइगर रिज़र्व क्या फिर 2009 की राह पर चल पड़ा है ?
  • घटना से वन्यजीव प्रेमी दु:खी होने के साथ ही अब चिंतित भी  

पन्ना टाइगर रिज़र्व के अकोला बफर क्षेत्र में मिले बाघ शावक का शव। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। पन्ना टाइगर रिज़र्व यकायक दु:खद कारणों के चलते राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आ गया है। गुरुवार को सुबह पन्ना-कटनी मार्ग पर सड़क के किनारे नर बाघ पी-111 का संदिग्ध हालत में शव मिलता है। इस बाघ का दाह संस्कार होने के कुछ ही घण्टे बाद अकोला बफर क्षेत्र से 9 माह की उम्र पार कर चुके एक शावक के मरने की खबर आ जाती है। एक ही दिन में घटी इन दो घटनाओं ने वन्य जीव प्रेमियों को दु:खी करने के साथ ही चिंता में डाल दिया है। लोग कहने लगे हैं कि पन्ना टाइगर रिज़र्व क्या फिर 2009 की राह पर चल पड़ा है ?

बाघ शावक की असमय मौत की खबर मिलने पर जब पन्ना टाइगर रिज़र्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि मृत शावक बाघिन पी-234 का बच्चा है जो लगभग 9 माह का है। बीते साल इस बाघिन ने तीन शावकों को जन्म दिया था। मौत के सम्बन्ध में श्री शर्मा ने बताया कि किसी बाघ ने इस शावक को मारा है। लेकिन पार्क प्रबंधन के इस दावे पर ज्यादातर लोग असहमति जता रहे हैं। मृत बाघ शावक का पोस्टमार्टम चूँकि आज नहीं हो सका इसलिए मौत की असल वजह क्या है यह स्पष्ट नहीं हुआ। शावक का पीएम अब 10 जून को होगा तभी मौत के कारणों का खुलासा हो सकता है। 

उल्लेखनीय है कि टाइगर रिज़र्व में फील्ड की लचर व्यवस्था को देखते हुए विगत कई माह पूर्व से ही मैदानी अमला दबी जुबान से हालात बिगड़ने की आशंका जताने लगे थे लेकिन आला अधिकारी इससे बेखबर वाहवाही में ही मशगूल रहे। नतीजा आज सामने है कि एक ही दिन में दो बाघ निपट गये। जानकारों का तो यहाँ तक कहना है कि अभी तो यह टेलर है, यदि फील्ड की व्यवस्था व मॉनिटरिंग सिस्टम में सुधार नहीं हुआ तो पूरी फिल्म देखने को मिलेगी। वन्य जीव प्रेमी अब कहने लगे हैं कि पन्ना वालो बचा सको तो अपनी इस अमूल्य प्राकृतिक धरोहर को बचा लो अन्यथा बाघों से आबाद यह खूबसूरत जंगल फिर बाघ विहीन हो जायेगा।   

  बाघिन पी-234 के कुनबे से ही गुलजार हुआ अकोला बफर

पन्ना टाइगर रिजर्व के अकोला बफर का आकर्षण बाघिन पी-234 तथा उसका भरा-पूरा कुनबा है। मालूम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व की संस्थापक बाघिन टी-2 जिसे मार्च 2009 में कान्हा से पन्ना लाया गया था। इस बाघिन ने जुलाई 2013 में चार शावकों को जन्म दिया था। इन्हीं शावकों में से एक बाघिन पी-234 है। जिसके कुनबे ने अकोला बफर को गुलजार किया हुआ है। इस बाघिन ने नर बाघ टी-7 के साथ मिलकर अपने कुनबे को बढ़ाया है। इसी बाघिन की बेटी पी-234 (23) ने अकोला बफर क्षेत्र में ही जनवरी 2021 में तीन शावकों को जन्म दिया था। 

बाघिन पी- 234 ने भी अपने चौथे लिटर में तीन शावकों को जन्म दिया था। कैमरा ट्रैप में बाघिन सहित शावकों की फोटो पहली बार सितम्बर 21 में कैद हुई थी। इन्ही तीन शावकों में से एक की मौत हुई है। इसके पूर्व बाघिन पी-234 ने अपने तीसरे लिटर में भी जनवरी 2020 में तीन शावकों को जन्म दिया था। इस तरह से बाघिन पी-234 के कारण ही अकोला बफर बाघों से आबाद हुआ जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। लेकिन दुर्भाग्य से अकोला बफर क्षेत्र की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है जो बेहद चिंताजनक है। 

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पन्ना टाइगर रिजर्व के नर बाघ पी-111 की हुई संदिग्ध मौत

  • सड़क किनारे शव मिलने से मॉनिटरिंग व्यवस्था पर उठ रहे सवाल 
  • पन्ना में जन्मा बाघ पुनर्स्थापना योजना का था यह पहला बाघ 

पन्ना-कटनी सड़क मार्ग के किनारे बाघ पी-111 का शव इस हालत में मिला। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में गुरुवार को सुबह संदिग्ध हालत में नर बाघ पी-111 का शव मिला है। बाघ की मौत से टाइगर रिजर्व में जहां खलबली मची हुई है, वहीं मानिटरिंग व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। 13 वर्षीय नर बाघ की मौत कैसे व किन परिस्थितियों में हुई अभी इसका पता नहीं चला, लेकिन पार्क प्रबंधन मौत की वजह बीमारी बता रहा है।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि पन्ना कोर परिक्षेत्र के बीट राजा बरिया कक्ष क्रमांक पी-394 में पन्ना-कटनी सड़क मार्ग के किनारे बाघ पी-111 मृत पाया गया है। श्री शर्मा ने बताया कि मृत नर बाघ की उम्र लगभग 13 वर्ष है। यह नर बाघ पन्ना टाइगर रिजर्व का डील-डौल व साइज में सबसे बड़ा बाघ था, जिसकी एक झलक पाने को पर्यटक बेताब रहते थे। इस नर बाघ ने यहां बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में इस ताकतवर बाघ का साम्राज्य रहा है।

राजा बरिया में मृत बाघ पी-111 का हुआ दाह संस्कार।   

बाघ की मौत कैसे हुआ किन परिस्थितियों में हुई इस बाबत पूछे जाने पर क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि पोस्टमार्टम से पता चला है कि बाघ की किडनी फेल थी। किसी बीमारी के चलते इसकी मौत हुई है। मृत बाघ का पोस्टमार्टम वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता द्वारा किया गया है। श्री शर्मा ने बताया कि बाघ के अवयवों का सैंपल जांच हेतु बरेली, सागर व जबलपुर भेजा जा रहा है। जांच रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा कि मौत की वजह क्या है। मृत नर बाघ का पोस्टमार्टम के उपरांत राजा बरिया में क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा, उपसंचालक रिपुदमन सिंह भदौरिया, वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव गुप्ता व राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रतिनिधि इंद्रभान सिंह बुंदेला की मौजूदगी में दाह संस्कार किया गया।

बाघ पी-111 से ही शुरू हुई थी सफलता की कहानी

वर्ष 2009 में जब पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, तब यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू हुई। योजना के तहत बांधवगढ़ से 4 मार्च 2009 को बाघिन टी-1 पन्ना लाई गई। इस बाघिन का पेंच टाइगर रिजर्व से पन्ना लाए गए नर बाघ टी-3 से संसर्ग हुआ। तदुपरांत बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को रात्रि धुंधुआ सेहा में चार नन्हे शावकों को जन्म दिया। इन्हीं शावकों में पहला शावक पी-111 था। जिसका जन्म दिन हर साल 16 अप्रैल को धूमधाम के साथ मनाया जाता रहा है। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलता की कहानी इसी बाघ से शुरू हुई थी, जो अब नहीं रहा।

18 माह की उम्र में मां से अलग होकर कायम किया साम्राज्य


बाघिन पी-213 के साथ नर बाघ पी-111  ( फाइल फोटो )  

नर बाघ पी-111 जन्म के बाद 18 माह तक अपनी मां बाघिन टी-1 के साथ रहकर जंगल में रहने और शिकार करने का कौशल सीखा। फिर मां से अलग होकर इसने अपना पृथक साम्राज्य बनाया। अपने पिता टी-3 के इलाके तालगांव पठार पर इस बाघ ने कब्जा जमा लिया। भारी-भरकम डील डौल वाले इस शानदार नर बाघ का दबदबा पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में कायम रहा। आलम यह था कि कोई भी दूसरा नर बाघ इसके इलाके में जाने की जुर्रत नहीं कर पाता था। फलस्वरूप यह बाघिन पी- 213, पी-234 व टी-2 सहित अन्य कई बाघिनों के साथ पन्ना में बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मौजूदा समय यह नर बाघ पन्ना कोर क्षेत्र व अकोला बफर के जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण करता रहा है।

राजाबरिया का राजा था बाघ पी-111 

पन्ना टाइगर रिजर्व का नर बाघ जिसका शव आज पन्ना कोर परिक्षेत्र के राजाबरिया बीट में मिला है, वनकर्मी उसे राजाबरिया का राजा कहकर पुकारते थे। पन्ना टाइगर रिजर्व का यह सबसे डोमिनेंट टाइगर था, जिसकी हुकूमत पन्ना कोर से लेकर हिनौता वन परिक्षेत्र तक चलती थी। पन्ना के इस सबसे ज्यादा बलशाली बाघ का भी नियमानुसार पोस्टमार्टम के बाद दाह संस्कार किया गया। टाइगर सहित अन्य दूसरे वन्य प्राणियों की मौत होने पर उनका दाह संस्कार इसलिए कर दिया जाता है ताकि उनके अंगों का दुरुपयोग ना हो सके।

शिखर पर पन्ना इसलिए बेहतर मॉनिटरिंग जरूरी

मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व में 70 से भी अधिक बाघ हैं जो टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र सहित बफर क्षेत्र के जंगलों में स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं इसके पूर्व बाघों की इतनी संख्या टाइगर रिजर्व में कभी नहीं रही इस लिहाज से पन्ना टाइगर रिजर्व इस समय शिखर पर है इसे कायम रखना पार्क प्रबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि थोड़ी सी चूक भी बड़े खतरे की वजह बन सकती है इसलिए जंगल में मॉनिटरिंग सिस्टम को और बेहतर बनाना समय की जरूरत ही नहीं अनिवार्यता भी है।

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना के शिल्पी रहे पूर्व क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति ने नर बाघ पी-111 की मौत पर गहरा दु:ख प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि इसी बाघ के जन्म से पन्ना की सफलता की कहानी शुरू हुई थी। यह बहुत ही पीड़ादायी व दु:ख की बात है कि अब पी-111 हमारे बीच नहीं है।

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Wednesday, June 8, 2022

आरामगंज पंचायत की बागडोर अब संभालेंगी महिलाएं

  • पुरुषों के बजाय सरपंच सहित सभी 17 पंच निर्विरोध निर्वाचित
  • दलित महिला को सरपंच बनाकर ग्रामीणों ने कायम की मिसाल 

आरामगंज पंचायत की महिलाएं जिन्हे निर्विरोध निर्वाचित किया गया है। 

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 15 किलोमीटर दूर अजयगढ़ जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत आरामगंज की बागडोर अब महिलाएं संभालेंगी। इस पंचायत से सरपंच सहित सभी 17 पंच महिला हैं जो निर्विरोध चुनी गई हैं। पन्ना जिले में यह इकलौती ऐसी पंचायत है जिसने महिलाओं की क्षमता पर भरोसा जताकर एक मिसाल कायम की है। 

पन्ना-अजयगढ़ मार्ग पर स्थित आरामगंज पंचायत में कल से जश्न का माहौल है। महिलाओं की खुशी तो देखते ही बन रही है। सबसे विशेष व गौरतलब बात यह है कि गांव के लोगों ने दलित महिला को एक राय होकर सरपंच चुना है। निर्विरोध सरपंच चुनी गई श्रीमती रजनी बाई (31 वर्ष) उत्साहित हैं। उनका कहना है कि पंचायत क्षेत्र के लोगों ने जिस तरह से मेरे ऊपर भरोसा किया है, उस भरोसे को हर हाल में कायम रखूंगी। पंचायत के विकास व गरीबों खासकर महिलाओं के कल्याण के कार्यों को प्राथमिकता के साथ हम सब मिलकर करेंगे।

लगभग 3 हजार की आबादी वाली आरामगंज पंचायत में कई छोटे-छोटे पुरवा आते हैं। जिनमें हर जाति वर्ग के लोग हैं। इस बार आरामगंज पंचायत अनुसूचित जाति पुरुष के लिए आरक्षित हुई थी, बावजूद इसके पंचायत क्षेत्र के लोगों ने एक राय होकर सरपंच से लेकर पंचों तक सभी महिलाओं को आगे किया है। इस अभिनव पहल से यह पंचायत यकायक चर्चा में आ गई है। पंचायत क्षेत्र में पांडे पुरवा, लौकिहा पुरवा, विश्रामगंज, गौरैया पुरवा, बंगलन व छिरियाई आते हैं। आरामगंज में जहां से रजनी बाई सरपंच चुनी गई हैं, वहां शत-प्रतिशत आदिवासी व हरिजन रहते हैं।


निर्विरोध निर्वाचित होने वाली महादलित समाज की 31 वर्षीय श्रीमती रजनी बाई ने सातवीं तक पन्ना के मनहर कन्या विद्यालय में पढ़ाई की है। पन्ना के रानीगंज मोहल्ला निवासी रजनी की शादी आरामगंज में देवीदीन बसोर के साथ हुई जो मजदूरी करते हैं, रजनी बाई ग्रहणी हैं तथा उनके दो बेटियां हैं। जिन्हें वे पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाना चाहती हैं। उनका कहना है कि किसी पंचायत में निर्विरोध सभी महिलाओं के चुने जाने पर प्रदेश शासन द्वारा उस पंचायत को 15 लाख रुपये का पुरस्कार दिया जाता है। चूंकि हमारी पंचायत में सभी महिलाएं चुनी गई हैं, इसलिए आरामगंज पंचायत को यह पुरस्कार जरूर मिलेगा। जिसका उपयोग हम पंचायत के विकास में करेंगे।

विश्रामगंज निवासी हनुमंत सिंह (रजऊ राजा) ने बताया कि पंचायत क्षेत्र के लोगों ने एक राय होकर मन बना लिया था कि इस बार महिलाओं को निर्विरोध चुना जाए। सबकी मंशा के मुताबिक सरपंच और पंचों का चयन किया गया और पंचायत की कमान महिलाओं को सौंप दी गई। श्री सिंह बताते हैं कि नवनिर्वाचित सरपंच महा दलित समाज से हैं, इन्हें निर्विरोध सरपंच बनाकर पंचायत ने एक नई मिसाल कायम की है।

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Tuesday, June 7, 2022

रैबीज से संक्रमित था राय दंपत्ति पर हमला करने वाला भालू

  •  दो लोगों को मौत के घाट उतारने वाले भालू की भी हुई मौत
  •  रैबीज से संक्रमित होने की डीएफओ गौरव शर्मा ने की पुष्टि 



।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। आबादी क्षेत्र से लगे उत्तर वन मण्डल क्षेत्र  के इलाके में दो दिन पूर्व जिस भालू ने राय दंपत्ति को बड़ी बेरहमी के साथ मौत के घाट उतार दिया था तथा दिल दहला देने वाले इस द्रश्य को देख लोग इसे आदमखोर बताने लगे थे, दरअसल वह रैबीज से संक्रमित था। पन्ना के प्राचीन लोकपाल सागर तालाब के किनारे स्थित वनसुरई की खेर माता के स्थान पर पूजा करने गये पति-पत्नी को मौत के मुंह में पहुँचाने के बाद रैबीज से संक्रमित यह भालू खुद भी मर गया। भालू के रैबीज से संक्रमित होने की पुष्टि करते हुए उत्तर वन मण्डल पन्ना के डीएफओ गौरव शर्मा ने बताया कि हमलावर भालू की रविवार को ही मौत हो गई है।

उल्लेखनीय है कि मृतक मुकेश राय व उनकी पत्नी पहाड़ी में स्थित वनसुरई की खेर माता के स्थान पर पूजा करने गए थे। इस धार्मिक स्थान के निकट पहाड़ी में ही रैबीज से संक्रमित नर भालू मौजूद था, जो रैबीज के प्रभाव से बेहद आक्रामक होकर हमला किया और मृतकों के शरीर को चींथ डाला। इस घटना ने वहां पर बड़ी संख्या में मौजूद लोगों को भी दहला दिया था। जब यह पागल भालू मृतकों के शरीर पर ताबड़तोड़ मुंह और पंजे से हमला कर रहा था तो दूर खड़े लोगों को यह प्रतीत हो रहा था कि भालू मृतकों को खा रहा है। डीएफओ गौरव शर्मा ने बताया कि पोस्ट मॉर्टम में भालू के पेट में कुछ भी नहीं मिला। जाहिर है कि उसने मृतकों के शव को खाया नहीं बल्कि नोचा है। जानकारों के मुताबिक रैबीज से संक्रमित जानवर कुछ भी नहीं खा सकता, यहाँ तक कि पानी भी नहीं पी सकता क्योंकि वह हाइड्रोफोबिया से ग्रसित होता है।  मालूम हो कि रैबीज से संक्रमित जानवर आक्रामक हो जाता है तथा सामने जो भी आता है उसके ऊपर हमला कर देता है। हमलावर मृत भालू का व्यवहार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था।

बीते साल चरवाहे के ऊपर भालू ने किया था जानलेवा हमला



पन्ना टाइगर रिज़र्व अंतर्गत गंगऊ अभ्यारण्य के बगौंहा बीट में बीते साल 20 जुलाई 2021 में रैबीज से संक्रमित भालू ने एक चरवाहे के ऊपर जानलेवा हमला किया था, जिससे उसकी मौत हो गई थी। हमले की यह घटना गंगऊ अभ्यारण के अंतर्गत बीट बगौंहा के कक्ष क्रमांक पी 248 में उस समय हुई थी जब बगौंहा निवासी 55 वर्षीय हरदास अहिरवार अपनी गाभिन भैंस को ढूंढने जंगल में अकेला गया हुआ था। देर शाम तक जब हरदास वापस घर नहीं लौटा तो परिजन चिंतित हुए और उसकी तलाश शुरू हुई। तलाशी के दौरान बीट बगौंहा के कक्ष क्रमांक पी 248 में शिवराज नाला के निकट जंगल में चरवाहे का क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ था। चरवाहे के ऊपर हमला कर उसे मौत के घाट उतारने वाले भालू की भी कुछ घंटे बाद ही मौत हो गई थी।

रोकथाम हेतु किया जाता है वैक्सीनेशन 

रेबीज से संक्रमित जानवरों के बारे में यह बताया जाता है कि संक्रमित जानवर की अधिकतम 10 दिनों में मौत हो जाती है। रैबीज सहित बाघों में फैलने वाली घातक बीमारी केनाइन डिस्टेंपर की रोकथाम के लिए रिजर्व क्षेत्र के आसपास स्थित ग्रामों के आवारा कुत्तों का वैक्सीनेशन किया जाता है। इस वैक्सीनेशन से कैनाइन डिस्टेंपर सहित सात अन्य बीमारियां जिसमें रैबीज भी शामिल है, उनसे वन्य प्राणियों का बचाव होता है। यदि भालू की मौत रैबीज से हुई है तो निश्चित ही यह सामान्य वन क्षेत्र सहित पन्ना टाइगर रिज़र्व के लिए भी चिन्ता की बात है। पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि आवारा कुत्तों के स्लाईबा में रैबीज रहता है। इनके काटने से रैबीज के संक्रमण की संभावना होती है। यही वजह है कि रिजर्व क्षेत्र के आसपास स्थित ग्रामों के आवारा कुत्तों का वैक्सीनेशन किया जाता है। सबसे ज्यादा रैबीज वायरस केनाइन फैमिली में रहता है।  

आबादी क्षेत्र के निकट तेंदुए ने नीलगाय का किया शिकार 



पन्ना टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र को छोड़कर जिले के सामान्य वन क्षेत्र में हर कहीं पानी का अभाव है जिससे प्यास बुझाने पानी की तलाश में वन्य प्राणी आबादी क्षेत्र की ओर रुख करने लगे हैं। आबादी क्षेत्र में वन्य जीवों के आने से मानव व वन्य प्राणियों के बीच संघर्ष की घटनायें बढ़ीं हैं। जो निश्चित ही चिंता का विषय है। बीते रोज पन्ना शहर से लगे चौपड़ा मंदिर के निकट किलकिला नदी के किनारे नीलगाय का तेंदुआ ने शिकार किया है। किलकिला नदी इस समय सूखी है लेकिन जिस जगह तेंदुए ने नीलगाय को मारा है वहां एक छोटे से गड्ढे में थोड़ा सा पानी है। पानी पीने के लिए नीलगाय जब यहाँ पहुंची उसी समय तेंदुए ने उसके ऊपर हमला कर दिया। इस इलाके में प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग सुबह सैर के लिए जाते हैं। ऐसी स्थिति में तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी की यहाँ पर मौजूदगी कभी भी बड़ी घटना की वजह बन सकती है। वन परिक्षेत्राधिकारी विश्रामगंज ने बताया गया कि मौके पर पग मार्क देखकर यह प्रतीत होता है कि तेंदुआ ने ही नीलगाय का शिकार किया है।

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Sunday, June 5, 2022

पर्यावरण बचाना है तो आदिवासी संस्कृति भी बचानी होगी : बाबूलाल दाहिया

 

पद्मश्री बाबूलाल दाहिया 

आज अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस है। किसी दिवस को यदि राष्ट्रसंघ द्वारा उस पर सोचने बिचार करने और मनाने की सलाह दी जाती हो, तो उसका मोटा अर्थ यह होता है कि वह खतरे में है। किन्तु प्रश्न यह है कि पर्यावरण आखिर क्या है, जो इतना महत्वपूर्ण है कि उसके लिए राष्ट्रसंघ तक चिंतित है ? हमारे आस-पास जंगल, पहाड़, नदी, नाले, झील, झरने, पेड़, पौधे, भूमि आदि जो भी दिख रहे हैं, उसकी समग्रता ही पर्यावरण है। और वह सभी अपने मूल स्वरूप के निकट ही बने रहे यही पर्यावरण संरक्षण है।

अपने  भारत मे दो तरह की संस्कृति देखी जा सकती है। यहां आदिम काल से वास करने वालों की संस्कृति तथा बाहर के आये लोगो की संस्कृति। आदिम वासियों का यहां एक ऐसा समुदाय है जिन्हें सरकारी भाषा मे (अनुसूचित जनजाति) कहा जाता है। पर यदि उनकी संस्कृति को देखा जाय तो वह ऐसी नैसर्गिक संस्कृति है जिसे पर्यावरण से अलग करके देखा ही नही जा सकता। क्योंकि जहां-जहां घना जंगल वहां-वहां आदिवासी और जहां-जहां आदिवासी वहां- वहां ही घना जंगल। पर जहां गैर आदिवासियों का पदार्पण हुआ, वहां जंगल साफ एवं सारा पर्यावरण भी चौपट व विनष्ट।

इसलिए "आदिवासी संस्कृति ही वह पर्यावरण संरक्षक संस्कृति है, जिसमें जीव जगत को लाखों वर्षो तक बनाए रखने की अवधारणा छिपी है। बाकी संस्कृति तो ऐसी है कि जिस डाल में बैठी है उसी को काट रही है।"  किन्तु आदिवासी संस्कृति में आवश्यकता नुसार सीमित संसाधनों का ही उपयोग है। इस समुदाय में गीत, संगीत, बनोपज संग्रहण से लेकर आखेट तक में सामूहिकता है। यह समुदाय प्राकृतिक संशाधनों य जंगल पहाड़ो को एक सामूहिक भोजन कोष समझता है, इसलिए उतना ही उपयोग करता है जितना वह प्रकृति को वापस कर सके।

किसी भी गांव में देखा जाय तो वहाँ भले ही आदिवासियों के 25--30 मकान हों, पर किराना य विसादखाना की दुकान किसी गैर आदिवासी की ही होती है, आदिवासी की नहीं। क्योकि आदिवासी समुदाय में श्रम तो जीवन पर्यन्त है किन्तु संचय और ब्यापार नही है। हमने यह सब नजदीन से देखा और अनुभव किया है कि आदिवासी बालक 6 वर्ष से काम करना शुरू करेगा तो काम करते-करते ही बूढ़ा होकर अपनी इह लीला समाप्त कर देगा। पर न तो अनावश्यक संचय करेगा और न ही उसकी उस ओर रुचि है कि वह ब्यापार करे।

इस पर्यावरण संरक्षक आदिवासी समुदाय में और भी अनेक विशेषताएं होती हैं, वह यह कि-

आदिवासी खुद के बनाए मकान में रहना पसन्द करता है। आदिवासी कभी भीख नहीं मांगता। वह चोरी नहीं करता। वह झूठ फ़रेब आदि नहीं रचता, जो भी कहना हुआ स्पस्ट कहता है। अपने बस्ती में आने वालों को यथेष्ट सम्मान देता है। वह किसी का संसाधन लूटने कहीं बाहर नहीं गया बल्कि अन्य लोग ही उनके संसाधनों की लूट किए और उनके राज्य तक छीने।

इसलिए यह कहना गलत न होगा कि आदिवासी संस्कृति ही ऐसी संस्कृति है जो तमाम पर्यावरण विध्वंसको को जीव जगत के लाखो वर्ष बनाए रहने की एक राह दिखा सकती है। किन्तु इस समय आदिवासी समाज अपने को बहुत असहज महसूस कर रहा है। क्योंकि शहरों के आस-पास तो अब कोई जमीन बची नहीं थी कि वहां फैक्ट्रियाँ लगती ? जो भी बची है आदिवासियों के नैसर्गिक रहवासों, जंगल पहाड़ो में ही। इसलिए जितने भी बड़े-बड़े बांध बंध रहे हैं, फैक्ट्रियां आदि लग रही हैं वह सभी आदिवासियों के प्राकृतिक रहवासों के आस-पास ही। अस्तु विस्थापन की सबसे बड़ी त्रसदी भी आदिवासी समुदाय को ही भोगना पड़ रहा है।

अन्य समुदाय के लोग तो इस विस्थापन में खेतो मकानों आदि का अच्छा खासा मुआवजा पाते हैं। पर जिस समुदाय की संस्कृति ही सामूहिकता की हो और प्रकृति का वह उतना ही संसाधन उपयोग करता हो जितना उसके लिए आवश्यक है तो वह समुदाय मुआवजे से भी बंचित रह जाता है। छिनने के लिए तो  उससे खरिक, मैदान, जंगल, नदी नाले, झील ,झरने सब कुछ छिन जाते हैं। वह बाप पुरखो जैसे उम्र वाले बड़े- बड़े पेड़ो की छाया भी छिन जाती है जिनके नीचे बैठ कर कई पीढियां जीवन के ताने बाने बुने होंगे। गीत संगीत की महफिलें सजी होगी। पर मुवाबजा मिलता है एक दो कमरे के झोपड़े और छोटी सी बाड़ी का। इसलिए यदि पर्यावरण बचाना है तो आदिवासी संस्कृति भी बचाना लाजमी होगा।

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भालू के हमले में पति-पत्नी की हुई खौफनाक मौत

  • जंगल उजडऩे व पानी के संकट से बढ़ रहा मानव- वन्यजीव संघर्ष
  • समस्या के स्थाई समाधान हेतु समय रहते सार्थक पहल जरूरी  

हमलावर वह भालू जिसने पति-पत्नी पर हमला करके उन्हें मार डाला। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। विश्व पर्यावरण दिवस के दिन जब पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की महत्ता पर चर्चा हो रही है, उसी दिन मध्यप्रदेश के पन्ना शहर से दिल दहला देने वाली खौफनाक खबर आई है। शहर से लगभग 2 किमी. दूर लोकपाल सागर तालाब के किनारे स्थित पहाड़ी में एक प्राकृतिक जल स्रोत है। यहीं पर एक भालू ने रानीगंज मोहल्ला निवासी मुकेश राय (42 वर्ष) व उनकी पत्नी गुडय़िा राय (40 वर्ष) के ऊपर सुबह लगभग 7 बजे हमला कर दिया। भालू के इस हमले में पति-पत्नी दोनों की मौत हो गई है। मृतक दंपति के दो  बच्चे भी हैं, जो अनाथ हो गए हैं। इस घटना के बाद से लोगों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है।

घटना की जानकारी देते हुए रानीगंज मोहल्ला निवासी पप्पू यादव ने बताया कि आज सुबह मुकेश राय व उनकी पत्नी पहाड़ी में स्थित वनसुरई की खेर माता के स्थान पर पूजा करने गए थे। इस धार्मिक स्थान के निकट पहाड़ी में स्थित प्राकृतिक झिरिया में पानी लेने के लिए जब गुडय़िा राय पहुंची, तो वहां पहले से ही मौजूद भालू ने उनके ऊपर हमला कर दिया। पत्नी के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनकर पति मुकेश राय जब बचाने के लिए दौड़े तो भालू ने उनके ऊपर भी हमला बोल दिया।

भालू के हमले की खबर जैसे ही मोहल्ला वासियों को मिली, सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए। लेकिन भालू इतना गुस्से में था कि दोनों पति-पत्नी के चिथड़े कर दिए तथा वहां पहुंचे लोगों की भीड़ को पास नहीं फटकने दिया। नागरिकों ने तत्काल घटना की जानकारी उत्तर वन मंडल पन्ना के डीएफओ सहित रेंजर को दी। भारी जन आक्रोश को देखते हुए वन अधिकारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। फल स्वरुप हमलावर भालू को पकडऩे का प्रयास शुरू हुआ। 

वन मंडलाधिकारी उत्तर पन्ना गौरव शर्मा ने बताया कि घटना की जानकारी मिलते ही हम पन्ना टाइगर रिजर्व के रेस्क्यू दल के साथ मौके पर पहुंच गये। हमारे साथ एसडीएम पन्ना व टीआई भी पुलिस बल के साथ मौजूद थे। वन्य प्राणी चिकित्सक व रेस्क्यू टीम ने अथक प्रयासों के बाद भालू को ट्रेंकुलाइज कर पिंजरे में बंद कर लिया, जिसे वहां से सुरक्षित ले आया गया है। इस भालू को अब कहां छोड़ा जाए, इस संबंध में उच्च अधिकारियों से मार्गदर्शन लिया जा रहा है।

पूर्व में भी हो चुकी हैं हमले की घटनाएं 

लोकपाल सागर की पहाड़ी जहां पर भालू ने पति पत्नी पर हमला करके उन्हें मौत के घाट उतारा है, उस इलाके में इसके पूर्व भी हमले की कई घटनाएं हो चुकी हैं। कुछ साल पूर्व जहां एक भालू पानी की तलाश में शहर के आबादी क्षेत्र रानीगंज मोहल्ले में घुस आया था, वहीं हमले की भी विगत 2 वर्ष पूर्व घटना हो चुकी है। जिसमें सुबह सैर व निस्तार के लिए गए लोगों पर हमला बोलकर भालू ने आधा दर्जन से भी अधिक लोगों को घायल कर दिया था। इस इलाके में बीते 5-6 वर्षों के दौरान भालू के हमले की यह तीसरी घटना है, जिसमें पति-पत्नी की असमय मौत हुई है।

मानव व वन्य जीवो के बीच बढ़ रहा संघर्ष

जंगलों की बेतहाशा कटाई होने से वन्यजीवों का प्राकृतिक रहवास भी तेजी से उजड़ रहा है, साथ ही जंगल में प्राकृतिक जल स्रोत भी सूख रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि वन्य प्राणी पानी की तलाश में आबादी क्षेत्र की ओर रुख कर रहे हैं। मानव- वन्यजीव द्वंद की समस्या पर विगत एक दशक से काम कर रही संस्था लास्ट वाइल्डर्नेस फाउंडेशन के जिला कोआर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला ने मानव-वन्य जीव द्वंद को बेहद गंभीर विषय बताया और कहा कि यह समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। पर्यावरण का विनाश होने से उत्पन्न जलवायु संकट का असर अब पानी की कमी के रूप में दिखने लगा है। जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं, जिससे वन्य प्राणियों का रहवास भी उजड़ रहा है। ऐसी स्थिति में पानी की तलाश में वन्य प्राणी आबादी क्षेत्र में घुसने लगे हैं। यह संकेत बहुत ही चिंताजनक है, जिस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्या का समय रहते समाधान खोजा जा सके।

वन्य प्राणियों से सुरक्षा पर गम्भीरता से हो विचार

जिले में वन्य प्राणियों तथा मनुष्यों के बीच संघर्ष की स्थितियां जगह-जगह पर बन रहीं हैं। रविवार को जिस तरह से खेर माता स्थल के समीप भालू के हमले में शहर के राय दम्पत्ति की मौत हुई है, इसने सभी को झकझोर दिया है। अब वन्य प्राणियों से लोगों की सुरक्षा पर गम्भीरता से विचार किया जाना नितांत आवश्यक हो गया है। यह बात  कांग्रेस नेता श्रीकान्त दीक्षित ने जारी एक बयान में कही। श्री दीक्षित ने कहा कि वन विभाग को चाहिए कि वह अपनी सीमाओं की फैन्सिंग कराये, ताकि वन्य प्राणी शहरी इलाकों के समीप न आयें। इसके साथ ही जहां कहीं भी फैन्सिंग नहीं है और आमजन का आना-जाना लगा रहता है, वहां पर वन विभाग द्वारा लगातार गश्ती दल के माध्यम से निगरानी रखनी चाहिए। ताकि कोई भी वन्य प्राणी लोगों पर हमला न कर सके। इसके साथ ही वन विभाग को चाहिए कि हेल्पलाईन नम्बर जारी करें, ताकि मुश्किल के वक्त सूचना आमजन तुरंत ही वन विभाग को दे सकें। आमजन की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए वन विभाग को चाहिए कि सुरक्षा दस्ते का गठन करें, जो सूचना पाते ही तुरंत स्थल पर पहुंचे। श्री दीक्षित ने भालू के हमले में हुई राय दम्पत्ति की मौत पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

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Thursday, June 2, 2022

छत्रसाल : तलवार के साथ कलम के धनी एक पराक्रमी योद्धा


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। इतिहास में ऐसे कई नाम हैं जिनकी गौरव गाथा को वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। ऐसे नामों में सबसे प्रमुख एक नाम बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल का भी है। भारतीय इतिहासकारों ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस अप्रतिम योद्धा के व्यक्तित्व को जनमानस के सामने लाने में कोताही की है, न्याय नहीं किया। यही वजह है कि जीवन पर्यंत मुगलों से संघर्ष करते हुए विजय पताका फहराने वाले महा पराक्रमी योद्धा को इतिहास में वह स्थान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिये।

छत्रसाल मध्ययुग के भारतीय इतिहास का वह नाम है जिसकी बहादुरी, रणकौशल और बुद्धिमत्ता से मुगल बादशाह औरंगजेब भी खौफ खाते थे। तलवार के साथ-साथ कलम के भी धनी रहे इस पराक्रमी योद्धा को गुरिल्ला युद्ध में महारत हासिल थी। उन्होंने पन्ना के जंगलों में एक छोटी सेना खड़ी की और मुगलों के अन्याय व अत्याचार के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका। महज 22 साल की उम्र में छत्रसाल ने 5 घुड़सवारों व 25 पैदल सैनिकों की टुकड़ी के साथ मुगलों की सुसज्जित सेना से लोहा लिया और उनको पराजित किया।

बुंदेलों के बारे में कहा जाता है कि बुंदेला अपनी आन पर मरते थे और शान से जीते थे। बुंदेल वंश में ही एक वीर और प्रतापी योद्धा हुए चंपतराय, जिन्होंने तत्कालीन मुगल सत्ता के दमनकारी चक्र का बुंदेलखंड में विरोध का स्वर बुलंद किया। छत्रसाल इन्हीं के पुत्र थे, जिनका जन्म जेष्ठ सुदी तीज संवत 1706 में मुगलों से संघर्ष के दौरान ही मोर पहाड़ी में तोप, तलवार और रक्त प्रवाह के बीच हुआ था। छत्रसाल की माता का नाम लालकुंवरि था। चंपतराय की मृत्यु के बाद छत्रसाल ने जंगलों में रहकर फौज तैयार कर पन्ना राज की स्थापना की। पन्ना राज्य में कुल 14 राजाओं ने शासन किया। बुंदेल केसरी के नाम से विख्यात महाराजा छत्रसाल के विशाल साम्राज्य बावत यह पंक्तियां कही जाती हैं - 

इत यमुना, उत नर्मदा, इत चंबल, उत टोंस। 

छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस।।

स्वतंत्र राज्य स्थापना हेतु छत्रपति शिवाजी ने दी थी प्रेरणा

उस समय मुगलों से लोहा लेने वाले शासकों में छत्रपति शिवाजी का नाम प्रमुख है। राष्ट्रीयता के आकाश में छत्रपति का सितारा चमचमा रहा था। सन 1668 में छत्रसाल व छत्रपति शिवाजी की भेंट होती है। इन दो  पराक्रमी योद्धाओं की जब मुलाकात हुई, तो छत्रपति शिवाजी उनसे काफी प्रभावित हुए क्योंकि छत्रसाल अपनी मातृभूमि के लिए मुगलों से लडऩा चाहते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने छत्रसाल के पराक्रम व संकल्प शक्ति को देखकर उन्हें स्वतंत्र राज्य की स्थापना की मंत्रणा दी। शिवाजी से स्वराज का मंत्र लेकर छत्रसाल 1670 में वापस अपनी मातृभूमि लौट आए। उस समय बुंदेलखंड के हालात ठीक नहीं थे, ज्यादातर राजा मुगलों से बैर नहीं रखना चाहते थे। जाहिर है कि छत्रसाल को कहीं से मदद व साथ नहीं मिला। लेकिन छत्रसाल पीछे नहीं हटे, उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा।

छत्रसाल के राज्य में नहीं था कोई भेदभाव

महाराजा छत्रसाल हर जाति और वर्ग के लोगों को बराबर महत्व देते थे। किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते थे। उनकी सेना में मुसलमान भी थे और हिंदुओं की विभिन्न जातियों के लोग कंधे से कंधा मिलाकर मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते थे। छत्रसाल ने अपने वीर सेनानियों को बिना किसी भेदभाव के जागीरें प्रदान की। उन्होंने बुंदेलखंड के बड़े भू-भाग को मुगलों की दासता से मुक्त कराया। स्वयं कष्ट उठाकर वे प्रजा के प्रति समर्पित रहे और सही अर्थों में प्रजापालक बने। उनके द्वारा दी गई यह शिक्षा आज भी प्रासंगिक है - 

रैयत सब राजी रहे, ताजी रहे सिपाह। 

छत्रसाल तिन राज्य को, बाल न बाँको जाए।।

52 लड़ाइयां लड़ी, किसी में नहीं हुई हार

अपने जीवन काल में छत्रसाल 52 लड़ाइयां लड़ी और किसी भी लड़ाई में उनकी हार नहीं हुई। प्रणामी संप्रदाय के धर्मोपदेशक पंडित खेमराज शर्मा बताते हैं कि लड़ाई में विजय हासिल होने पर चोपड़ा मंदिर के आसपास चोपड़ा का निर्माण कराया जाता रहा है। इस तरह 52 लड़ाइयों की जीत पर यहां 52 चौपड़ों का निर्माण हुआ, जिनमें कई चोपड़ा आज भी मौजूद हैं। श्री शर्मा बताते हैं कि छत्रसाल तलवार और कलम दोनों के धनी थे, इतिहासकार भले ही उनके अनूठे व्यक्तित्व के प्रति न्याय नहीं कर पाए लेकिन साहित्यकार हमेशा उनसे प्रेरणा पाते रहे हैं। उन्होंने उस समय प्रचलित लगभग सभी छंदों में काव्य का सृजन किया है।

महामति प्राणनाथ जी से मिला था आशीर्वाद

प्रणामी धर्म के प्रणेता महामति प्राणनाथ जी से जब छत्रसाल की भेंट हुई, तो उन्होंने छत्रसाल के पराक्रम व प्रतिभा को पहचाना और अपना आशीर्वाद प्रदान किया। पन्ना शहर के निकट खेजड़ा मंदिर के पास महामति प्राणनाथ जी ने छत्रसाल को एक चमत्कारी तलवार भी भेंट की थी, उन्हीं के कहने पर छत्रसाल ने पन्ना को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने छत्रसाल को वरदान दिया था कि "हीरे हमेशा आपके राज्य में पाए जाएंगे"। प्राणनाथ जी ने ही छत्रसाल को महाराजा की उपाधि प्रदान की थी। विदुषी श्रीमती कृष्णा शर्मा बताती हैं कि प्रणामी मंदिरों में पांच आरती होती हैं तथा आरती के पहले छत्रसाल का जयकारा होता है। हर मंदिर में यह परंपरा आज भी कायम है। 

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