- तय किया कल्दा पठार की झोपड़ी से सरकारी बंगले तक का सफर
- जाने कैसे बना,पठार का एक आदिवासी जिला पंचायत का अध्यक्ष
जिला पंचायत पन्ना के पूर्व अध्यक्ष रामलाल आदिवासी। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। आदिवासी बहुल इलाके कल्दा पठार के भितरी मुटमुरु निवासी रामलाल आदिवासी ने दो दशक पूर्व पत्थर खदान में काम करने वाले मजदूर से जिला पंचायत पन्ना के अध्यक्ष बनने तक का सफर तय किया था। उस समय रामलाल का अध्यक्ष बनना किसी चमत्कार से कम नहीं था। पन्ना जिले के कल्दा पठार की खदान में पत्थर तोडऩे वाला एक सीधा-साधा अनपढ़ आदिवासी आखिर जिला पंचायत का अध्यक्ष कैसे बना, इसके पीछे कौन था तथा रामलाल का कार्यकाल कैसा रहा, इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है।
जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 70 किलोमीटर दूर ऊंचे पहाड़ पर जंगल के बीच बसा कल्दा पठार का यह इलाका दो दशक पूर्व तक अत्यधिक दुर्गम तो था ही बारिश के चार माह तक यहां पहुंचना नामुमकिन हो जाता था। सलेहा क्षेत्र से लगे इस इलाके में उन दिनों खनन कारोबार से जुड़े लोगों का दबदबा था। सलेहा के रमाकांत शर्मा की पूरे पठार में न सिर्फ तूती बोलती थी बल्कि पठार में ज्यादातर पत्थर की खदानें भी इन्हीं की थीं। इनकी खदानों में सैकड़ों की संख्या में आदिवासी काम किया करते थे, उन्हीं में से एक रामलाल भी था। वर्ष 2000 के पंचायत चुनाव में जब जिला पंचायत पन्ना के अध्यक्ष का पद अनुसूचित जनजाति पुरुष के लिए आरक्षित हुआ, तो कांग्रेस पार्टी की राजनीति में सक्रिय रमाकांत शर्मा ने इस पद पर अपने किसी वफादार मोहरे को बिठाने की योजना बनाई। इसी योजना के तहत इस दबंग व हर तरह से सक्षम शर्मा परिवार ने रामलाल को आगे किया और वह जिला पंचायत पन्ना का अध्यक्ष बन गया।
जिला पंचायत में रमाकांत का रहा दबदबा
जिला पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष रमाकांत शर्मा। |
जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर रामलाल आदिवासी आसीन जरूर हो गया लेकिन हुकूमत उपाध्यक्ष बने रमाकांत शर्मा की ही चलती रही। आलम यह था कि बिना रमाकांत की मंशा के यहां पता भी नहीं हिलता था। रामलाल की स्थिति अध्यक्ष बनने के बाद भी शुरू के कुछ सालों तक जस की तस रही। बीड़ी का कट्टा लेने के लिए भी रामलाल को पैसे उपाध्यक्ष रमाकांत शर्मा से ही मांगने पड़ते थे। पद के लिहाज से रामलाल का कद भले ही बड़ा था, लेकिन रमाकांत के सामने वह पहले की ही तरह जमीन पर बैठता था। रमाकांत शर्मा के घर के निकट स्थित बैठक में दीवाल से एक थाली टिकी रहती थी, जिसमें नीचे रामलाल का नाम लिखा हुआ था। रामलाल जब भी यहां जाता तो उसी थाली में खाना खाता और उसको धोकर वही दीवाल से टिका देता।
रमाकांत व प्रशासन के बीच बढ़ी तनातनी
जिला पंचायत अध्यक्ष के पावर का उपयोग जब रमाकांत शर्मा पूरी दबंगई के साथ करने लगे, तो प्रशासन और उनके बीच तनातनी की स्थिति निर्मित होने लगी। उस समय कलेक्टर रहे आर.आर. गंगारेकर से सीधे टकराव होने पर रमाकांत के वर्चस्व को खत्म करने के लिए प्रशासनिक अधिकारी सक्रिय हो गये। ऐन केन प्रकारेण प्रशासन रामलाल को रमाकांत शर्मा की गिरफ्त से बाहर निकालने की योजना पर काम शुरू किया। योजना के तहत जिला पंचायत अध्यक्ष रामलाल को सिविल लाइन में सरकारी बंगला एलाट किया गया तथा एक पुरानी एम्बेसडर गाड़ी भी उपलब्ध कराई गई। अधिकारियों की सोहबत मिलने पर रामलाल का रंग बदलने लगा और उसे अपनी अहमियत का भी एहसास होने लगा, जिससे रमाकांत व उसके बीच दूरियां बननी शुरू हुई।
मुख्यमंत्री का संदेश पढऩे दी गई ट्रेनिंग
राज्यमंत्री का दर्जा होने के कारण रामलाल आदिवासी को जब राष्ट्रीय पर्व पर ध्वजारोहण करने का अवसर मिला, तो इन्हें बकायदे ट्रेनिंग दिलाई गई। अनपढ़ रामलाल को मुख्यमंत्री का संदेश पढऩे के लिए शिक्षक लगाया गया, जिसने रामलाल को पढऩा सिखाया। जब रामलाल अटक-अटक कर हिंदी पढऩे लगा, तब उस समय जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एम.एस. कुशवाहा ने रामलाल को विश्वास में लेकर यह बताया कि फाइलों में दस्तखत करने से पैसा मिलते हैं। रामलाल को पहले तो भरोसा नहीं हुआ लेकिन जब उसे दस्तखत करने के बदले में 10 रुपये के नोटों की पूरी गड्डी अधिकारियों द्वारा दी गई तो उसका माथा ठनका। रामलाल को लगा कि अभी तक बीड़ी के लिए महाराज से पैसा मांगना पड़ता था, लेकिन यहां तो दस्तखत करने भर से रुपयों की गड्डी मिल रही है। फिर तो रामलाल अधिकारियों की गिरफ्त में आ गया और रमाकांत शर्मा से दूरी बन गई।
बंदूक खरीदी व मोटरसाइकिल चलाने ड्राइवर रखा
जिला मुख्यालय के सरकारी बंगले में रहने तथा माली हालत सुधरने पर रामलाल आदिवासी ने बंदूक व मोटरसाइकिल भी खरीद ली। चूंकि उसे मोटरसाइकिल चलाना नहीं आती थी इसलिए इसके लिए बकायदा उसने वेतन पर एक ड्राइवर भी रख लिया। ड्राइवर मोटरसाइकिल चलाता और उसके पीछे रामलाल पूरे रौब के साथ अपनी बंदूक लेकर बैठता। उसमें आये इस बदलाव का असर यह हुआ कि पठार के आदिवासियों में उसका रुतबा बढ़ गया और वह पठार के आदिवासियों का नेता बन गया। छोटी-मोटी समस्याओं के लिए आदिवासी रामलाल के पास आने लगे, जिनका निराकरण रामलाल के कहने पर अधिकारी करने लगे।
रामलाल आदिवासी का कार्यकाल वर्ष 2000 से 2005 तक रहा। इसके पूर्व जिला पंचायत के दो अध्यक्ष हो चुके थे, जिनमें पहले अध्यक्ष बिहारी सिंह शिकारपुरा 1985 से 1989 तक तथा संतोष कुमारी (जिन्हें अशोक वीर विक्रम सिंह भैया राजा ने अध्यक्ष बनाया था) वर्ष 1994 से 1998 तक रहीं। रामलाल के बाद जिला पंचायत के अध्यक्ष वर्ष 2005 से 2010 तक उपेंद्र प्रताप सिंह, वर्ष 2010 से 2015 तक सुदामा बाई पटेल तथा वर्ष 2015 से रविराज सिंह यादव इस पद पर काबिज हैं।
खेती किसानी से अब हो रहा गुजारा
जिला पंचायत पन्ना के अध्यक्ष रह चुके रामलाल अब भितरी मुटमुरु गांव में ही रहकर खेती किसानी करते हैं। जिससे उनका व परिवार का भरण पोषण होता है। सलेहा के स्थानीय पत्रकार अशोक नामदेव बताते हैं कि पठार में घुटेही पंचायत के अंतर्गत रामलाल आदिवासी को जंगल की जमीन का उस समय पट्टा मिल गया था। इसी जमीन पर रामलाल खेती करते हैं। नामदेव ने बताया कि रामलाल ने अपने अलावा तकरीबन 20 आदिवासी परिवारों को भी जमीन का पट्टा दिलाया था, जो अब वहीं रहने लगे हैं। आदिवासियों की यह बस्ती रामपुर के नाम से जानी जाने लगी है। रामलाल की जिंदगी अब पठार तक ही सीमित है, बीते कई सालों से रामलाल पन्ना तो दूर सलेहा तक में नजर नहीं आता। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अब गुमनामी की जिंदगी जी रहा है।
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