Saturday, February 26, 2022

एक करोड़ 62 लाख में बिका पन्ना की खदान से निकला नायाब हीरा

  • नीलामी में सबसे अधिक बोली लगाकर हीरा व्यवसायी बृजेश जड़िया ने ख़रीदा 
  • पन्ना के ही सुशील शुक्ला को मिला था हीरा, पलक झपकते बन गए करोड़पति 

नवीन कलेक्ट्रेट पन्ना में आयोजित हीरों की नीलामी में रखे गए हीरों का अवलोकन करते हीरा व्यापारी। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। बेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती ने मध्यम वर्गीय परिवार के 47 वर्षीय युवक सुशील शुक्ला को पलक झपकते करोड़पति बना दिया है। पन्ना शहर के किशोरगंज मोहल्ला निवासी इस भाग्यशाली युवक को कृष्णा कल्यानपुर स्थित उथली खदान में पिछले दिनों 26.11 कैरेट वजन का यह नायाब हीरा मिला था जो 25 फरवरी को एक करोड़ 62 लाख से भी अधिक कीमत पर नीलाम हुआ। इस नायाब हीरे को पन्ना के हीरा व्यवसायी बृजेश जड़िया उच्च बोली लगाकर ख़रीदा है। इनकी मुंबई में मदर जेम्स एण्ड कंपनी है, जो हीरों का कारोबार करती है। 

26.11 कैरेट वाला नायाब हीरा  

उल्लेखनीय है पन्ना की उथली हीरा खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों की खुली नीलामी नवीन कलेक्ट्रेट स्थित कक्ष में हीरा कार्यालय पन्ना द्वारा गत 24 फरवरी से आयोजित की गई थी। इस नीलामी में 225.72 कैरेट वजन के 154 नग हीरे बिक्री के लिए रखे गए थे, जिनमें 26.11 कैरेट वजन का नायाब हीरा भी शामिल था। नीलामी में मुंबई, गुजरात (सूरत), राजस्थान व मध्यप्रदेश के हीरा व्यापारी बड़ी संख्या में शामिल हुए। सभी के आकर्षण का केंद्र रहा 26.11 कैरेट वजन वाले हीरे को नीलामी में पहले दिन नहीं रखा गया। दूसरे दिन 25 फरवरी को इस हीरे की बोली लगाई गई और पन्ना के ही हीरा व्यवसायी बृजेश जड़िया ने इस नायाब और बेशकीमती हीरे की परख करते हुए सबसे अधिक बोली लगाकर खरीद लिया। 

हीरा अधिकारी रवि पटेल ने जानकारी देते हुए बताया कि मुंबई की मदर जेम्स एण्ड कंपनी की ओर से बृजेश जड़िया ने इस हीरे की कीमत 6 लाख 22 हजार रुपये प्रति कैरेट लगाई, जो सर्वाधिक थी। इस तरह 26.11 कैरेट वजन का यह हीरा एक करोड़ 62 लाख 40 हजार रुपये में बिक्री हुआ। श्री पटेल ने बताया कि शासन की रॉयल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा धारक सुशील शुक्ला को प्रदान की जाएगी। मालूम हो कि इससे पूर्व पहले दिन की नीलामी में 14.09 कैरेट, 13.54 कैरेट और 6.08 कैरेट वजन के हीरे नीलाम हुए थे। पहले दिन 114.48 कैरेट वजन के हीरो को नीलामी में शामिल किया गया था। पहले दिन की नीलामी में 21 ट्रे में कुल 73 नग हीरे जिनका वजन 114.4 8 कैरेट था, उन्हें नीलामी में रखा गया था। नीलामी में 14.09 कैरेट, 13.54 कैरेट और 6.08 कैरेट के 3 बड़े हीरे नीलाम हुए। 14.09 कैरेट का हीरा 45 लाख 25 हजार 708 रुपये में नीलाम हुआ, जबकि 13.54 कैरेट का हीरा 41 लाख 48 हजार 656 रुपये में नीलाम हुआ है। इन दोनों हीरों को व्हीएस असोशियेट ने खरीदा। 

26.11 कैरेट वजन वाले हीरे के साथ कलेक्टर व खरीददार हीरा व्यापारी। 

हीरा नीलामी के दूसरे दिन 25 फरवरी को 78.35 कैरेट वजन के 52 नग हीरे एक करोड़ 86 लाख 4 हजार 834 रुपये में नीलाम हुए, जिसमे 26.11 कैरेट वाला हीरा भी शामिल है। हीरा कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार दो दिन की नीलामी में 160.80 कैरेट वजन के कुल 88 नग हीरे 3 करोड़ 51 लाख 56 हजार 782 रुपये में बिक्री हुए हैं। सुरक्षा व्यवस्था के बीच आयोजित हुई हीरों की इस नीलामी के दौरान कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा भी उपस्थित रहे। 

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Wednesday, February 23, 2022

दो प्राचीन भारतीय भाषाओं की प्राचीन लिपियाँ : बाबूलाल दाहिया

     

बाबूलाल दाहिया। 

      

मित्रों !  चाहे क्षेत्र जो भी रहा हो पर जब कोई भी बालक जन्म लेता है तो हर क्षेत्र में पैदा होने वाले बालकों के मुह से एक प्रकार की ही रोने की आवाज निकलती है। वह है ( के हाँ- के हाँ -के हाँ) क्योकि कि यह प्रकृति प्रदत्त ध्वनि है, जो गुण सूत्र में मौजूद रहती है। किन्तु दो साल बाद वही बालक मातृ भाषा सीखने लगता है और उस परिवार की जो भी भाषा होती है उसमे पारंगत हो जाता है।

यही स्थिति लिपि की भी होती  है कि जो भी लिपि उसे लिखने के लिए सिखा दी जायगी वह उसी में लिखने लगेगा। इसलिए सिद्ध है कि यह भाषा और लिपि प्रकृति प्रदत्त नही हैं बल्कि मनुष्य समुदाय का अर्जित ज्ञान है?

भीम बैठका बकस्वाहा आदि के 20 से 30 हजार वर्ष  पुराने आदिम मानव के शैल चित्रों से तो यह भी सिद्ध है कि "शुरू शुरू में जब भाषा और लिपि नहीं थी तब मनुष्य का काम चित्रों एवं इशारों से ही चलता रहा होगा?"

ऐसा लगता है कि गुफा मानव का परिवार प्रमुख  पत्थरों में हिरण, खरगोश, मछली, सुअर आदि य फलों  के कुछ अनगढ़ चित्र बना कर रखता रहा होगा और फिर परिवार के सदस्यों से इशारे से पूछता  कि "आज किसका गोश्त य कौंन सा फल खाना है ?" फिर इसारे में य अंगुली रख कर जिस पर भी आम सहमति बनती उसी के मारने फसाने य तोड़ने वाले तत्कालीन उपकरण लेकर सभी सदस्य निकल पड़ते रहे होंगे।

किन्तु कालांतर में जब भाषा विकसित हुई होगी तो उन्ही जानवरों य फल फूलों के नाम के प्रथम अच्छर को एक मानक आकृति दी गई होगी जिससे लिपि का निर्माण एवं विकास हुआ।

मित्रों आज हमारे 15 -16 सौ किलो मीटर लम्बे चौड़े इस विस्तृत देश मे अनेक लिपियाँ हैं, जिनमे  उत्तर पश्चिम य पूर्व में गुरुमुखी, सिंधी, बंगला है तो दक्षिण भारत मे भी द्रविण बोलियों तमिल, तेलगू, मलयालम आदि की लिपियाँ पाई जाती हैं ।


पर इस उत्तर भारत य समूचे देश में सब से अधिक समृद्ध उपयोग वाली लिपि आज देव नागरी ही है। जिसमें अनेक प्राचीन ग्रन्थ लिखे गए हैं। उत्तर और दक्षिण की लिपियों में बुनियादी अन्तर यह है कि उत्तर भारत की लिपियाँ लचीले भोज पत्र में लिख कर विकसित हुई हैं। इसलिए वह रेखाक्षर वाली हैं पर दक्षिण की लिपियों का विकास कड़क ताड़ पत्र में हुआ है इसलिए वह गोलाक्षर हैं। क्योकि रेखा खीचने से ताड़ पत्र  फट सकता था।

आज हमारे वेद, पुराण, महाभारत आदि सभी संस्कृत ग्रन्थ देवनागरी लिपि में ही हैं। क्योकि यह ऐसी लिपि है जिसमें कठिन से कठिन संस्कृत के कटाक्षर भी लिखे जा सकते हैं। पर इस देव नागरी का विकास 6वीं सदी में ही हुआ है। इसके पहले वेद तो मौखिक परम्परा में थे, इसलिए उन्हें (श्रुति) भी कहा जाता है। किन्तु भारी भरकम 18 पुराण और महाभारत आदि 6वीं सदी के पहले किस लिपि में थे? यह तो संस्कृत के विद्वान ही बता सकते हैं?

लेकिन  देव नागरी के पहले भी उत्तर भारत मे दो लिपियाँ अस्तित्व में थी जो चित्रों में दिखाई जा रही हैं। इनमें -  ( ब्रह्मी ) लिपि एवं  ( हो ) लिपि है।


ब्रह्मी लिपि  एक ऐसी तात्कालीन लिपि थी जो पाली भाषा की मसहूर लिपि मानी जाती है। और देव नागरी आने के पहले साँची भरहुत जैसे अनेक बौद्ध स्तूपों में प्रयुक्त है। यह पत्थर में अक्षरों को उत्कीर्ण करने के लिए उपयुक्त लिपि थी।

किन्तु  दूसरी लिपि  मोहन जोदड़ो हड़प्पा में बसने वालों य भीम बैठका के शैल चित्र बनाने वालों के वंशजो की ( हो) लिपि मानी जाती है। जो उत्तर पूर्वी भारत के आष्ट्रिक मुण्डा कोलारियन समुदाय की लिपि है। (हो ) का आशय कोलारियन भाषा मे ( मनुष्य ) होता है।

बिगत 3-4 माह से कोल जन जाति के( विविध सांस्कृतिक पक्ष के शोध सर्वेक्षण ) के समय न सिर्फ मुझे यह (हो लिपि) मिली है बल्कि कोलो की एक प्राचीन भाषा भी। लेकिन पाली की ब्रह्मी लिपि और कोलारियन लिपि में  कितनी समानता और कितना अन्तर है? यह बहुत बड़े शोध का विषय है?

मैं उन दोनों लिपियों को देव नागरी लिपि के साथ प्रदर्शित कर रहा हूं जिसमे क्रमांक 1 ब्रह्मी है और क्रमांक 2 - कोलो की - हो लिपि।

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Tuesday, February 22, 2022

रत्नगर्भा पन्ना की धरती में मिला नायाब हीरा, युवक की चमकी किस्मत

  • पलक झपकते ही रंक से राजा बनने का चमत्कार यदि कहीं घटित होता है तो वह मध्यप्रदेश में रत्न गर्भा पन्ना जिले की धरती है। बेशकीमती रत्न हीरा की खदानों के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध पन्ना की उथली खदान से एक युवक को नायाब हीरा मिला है, जिससे उसकी किस्मत चमक गई है।

पन्ना निवासी सुशील शुक्ला को उथली खदान से मिला वह हीरा जिसकी कीमत 1 करोड़ से अधिक है। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। जिसके पास अपना खुद का घर भी नहीं है, पांच भाइयों और एक विधवा बहन के साथ मामा के घर में रहकर परिवार का भरण पोषण करता है, उस युवक की किस्मत यकायक चमक गई है। किस्मत के धनी इस युवक को रत्नगर्भा पन्ना की धरती ने एक ऐसा नायाब तोहफा दिया है कि अब उसकी दुनिया ही बदल गई है। पन्ना शहर के किशोरगंज मोहल्ला निवासी 47 वर्षीय सुशील शुक्ला को जेम क्वालिटी का 26.11 कैरेट वजन वाला बेशकीमती हीरा मिला है, जिसकी अनुमानित कीमत एक करोड़ रुपये से भी अधिक है।

हीरा मिलने के बाद घर के उत्सवी माहौल में  चर्चा करते हुए सुशील शुक्ला 47 वर्ष ने बताया कि उनका संयुक्त परिवार है जो मामा के घर में रहता है। पांच भाइयों के संयुक्त परिवार में दो भाइयों के परिवार तथा बहन का भरण पोषण वे करते हैं। सिर्फ एक भाई नौकरी करता है जो एसडीएम की गाड़ी में ड्राईवर है। वे बताते हैं कि उन्होंने सिर्फ 10वीं तक पढ़ाई की है, फिर ईट भट्ठा लगाने के साथ-साथ हीरा खदान में भी किस्मत आजमाते रहे। सुशील शुक्ला का कहना है कि पूरे 20 साल तक पन्ना के विभिन्न हीरा खदानों में उन्होंने हीरों की तलाश की लेकिन कभी हीरा नहीं मिला। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और हीरों की तलाश को जारी रखा। अंतत: ऊपरवाला मेहरबान हुआ और 21 फरवरी सोमवार को उसे कृष्णा कल्याणपुर स्थित हीरा खदान में 26.11 कैरेट वजन का यह हीरा मिला है, जिससे पूरा परिवार खुश है।

पन्ना शहर के किशोरगंज स्थित घर के दरवाजे पर खड़े सुशील शुक्ला जो हीरा मिलने पर अब करोड़पति बन गए हैं। 

सुशील शुक्ला बताते हैं कि फरवरी में ही उन्होंने खदान का पट्टा बनवाया था और काम शुरू किया। अभी पूरी खदान खुदी भी नहीं और उन्हें इतना बड़ा हीरा मिल गया। अपनी खुशी का इजहार करते हुए सुशील शुक्ला ने बताया कि वर्षों से मेरी यह ख्वाहिश रही है कि उनके पास अपना घर हो, अब यह ख्वाहिश पूरी हो सकेगी। वे आगे बताते हैं कि हम शिक्षा नहीं हासिल कर सके लेकिन अपने इकलौते 10 वर्षीय पुत्र व बड़े भाई के दो पुत्रों को अच्छी शिक्षा दिलाएंगे। अब ईट भट्ठा के बजाय कोई दूसरा व्यवसाय शुरू करेंगे ताकि सम्मान की जिंदगी जी सकें।

बड़े नायाब हीरों की लिस्ट में यह हीरा भी हुआ शामिल 


 हीरा कार्यालय में हीरा जमा करने के बाद  कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा से रसीद प्राप्त करते सुशील शुक्ला। 

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती में सैकड़ों सालों से हीरों की तलाश लोग करते आ रहे हैं लेकिन ऐसे किस्मत के धनी कम ही लोग होते हैं जिन्हे हीरा मिलता है। यहाँ की उथली हीरा खदानों से अब तक अनगिनत हीरे निकले होंगे लेकिन बड़े नायाब और बेशकीमती हीरे उँगलियों में गिने जा सकें उतने हैं। इन नायाब हीरों की लिस्ट में सुशील शुक्ला को मिला हीरा भी शामिल हो चुका है। हीरा अधिकारी पन्ना रवि पटेल ने गांव कनेक्शन को बताया कि हीरा कार्यालय में दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक 61 वर्ष पूर्व सबसे बड़ा 44.33 कैरेट वजन का हीरा वर्ष 1961 में रसूल मुहम्मद को मिला था। यह रिकॉर्ड अभी भी कायम है। पटेल बताते हैं कि 25 कैरेट से अधिक वजन वाले जेम क्वालिटी के हीरों को बेशकीमती और नायाब श्रेणी में रखा जाता है उस लिहाज से यह ग्यारवां बड़ा हीरा है जो हीरा कार्यालय में विधिवत जमा किया गया है। 

हीरा अधिकारी पन्ना रवि पटेल बताते हैं कि बीते तीन वर्ष के दौरान मिले हीरों में यह चौथा बड़ा हीरा है। इसके पूर्व पन्ना के ही गरीब मजदूर मोतीलाल को वर्ष 2018 में 42 कैरेट 59 सेंट वजन का बेशकीमती नायाब हीरा मिला था। यह 42.59 कैरेट वजन वाला नायाब हीरा खुली नीलामी में 6 लाख रू. प्रति कैरेट की दर से 2 करोड़ 55 लाख रू. में बिका था, जिसे झांसी उ.प्र. के निवासी राहुल अग्रवाल ने खरीदा था। इसी तरह वर्ष 2019 में पन्ना शहर के बड़ा बाजार निवासी बृजेश उपाध्याय को 29.46 कैरेट वजन का बेशकीमती हीरा मिला। इन तीन वर्षों के दौरान 21 फरवरी सोमवार को पन्ना की कृष्णकल्याणपुर उथली हीरा खदान क्षेत्र में मिला 26.11 कैरेट वजन का चौथा बड़ा हीरा है जो उज्जवल किस्म का हीरा है। हीरा अधिकारी श्री पटेल ने बताया कि इस बड़े हीरे को 24 फरवरी से शुरू होने वाली नीलामी में रखा जायेगा। नीलामी में हीरे की बिक्री होने पर शासन की रायल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा धारक को प्रदान की जाएगी।

एक लिपिक व हीरा पारखी के सहारे चल रहा हीरा कार्यालय

बेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित देश के इकलौते हीरा कार्यालय पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यहाँ की रत्नगर्भा धरती से भले ही बेशकीमती हीरे निकलते हैं लेकिन लेकिन इन हीरों की चमक यहाँ कहीं नजर नहीं आती। शासन की अनदेखी और उपेक्षा के चलते पन्ना स्थित हीरा कार्यालय भी अब बंद होने की कगार में जा पहुंचा है। पिछले कई वर्षों से इस कार्यालय में कर्मचारियों के रिटायर होने पर उनकी जगह किसी की पदस्थापना नहीं हुई, फलस्वरूप इस कार्यालय के ज्यादातर पद खाली पड़े हैं। आलम यह है कि देश का यह इकलौता हीरा कार्यालय एक लिपिक व एक हीरा पारखी के सहारे संचालित हो रहा है। 

पूर्व में पन्ना स्थित हीरा कार्यालय में जहाँ हीरा अधिकारी की पदस्थापना होती थी वहीं अब खनिज अधिकारी के पास हीरा कार्यालय का प्रभार है। नवीन कलेक्ट्रेट भवन में हीरा अधिकारी का चेंबर तक नहीं है, हीरा कार्यालय एक छोटे से कमरे में संचालित हो रहा है। हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि पहले पन्ना जिला मुख्यालय के साथ-साथ इटवांखास व पहाड़ीखेरा में उप कार्यालय हुआ करते थे जो अब बंद हो चुके हैं। उस समय उथली हीरा खदानों की निगरानी व खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों को जमा कराने के लिए तीन दर्जन से भी अधिक सिपाही और हीरा इंस्पेक्टर पदस्थ थे। लेकिन अब सिर्फ दो सिपाही बचे हैं जो अपने रिटायरमेंट की राह देख रहे हैं।

पन्ना जिले में हीरा धारित पट्टी का विस्तार लगभग 70 किलोमीटर क्षेत्र में है, जो मझगवां से लेकर पहाड़ीखेरा तक फैली हुई है। हीरे के प्राथमिक स्रोतों में मझगवां किंबरलाइट पाइप एवं हिनौता किंबरलाइट पाइप पन्ना जिले में ही स्थित है। यह हीरा उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है जो पन्ना शहर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां अत्याधुनिक संयंत्र के माध्यम से हीरों के उत्खनन का कार्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा संचालित किया जाता रहा है। मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है। एनएमडीसी हीरा खदान बंद होने से हीरों के उत्पादन का ग्राफ जहाँ नीचे जा पहुंचा है वहीं शासन को मिलने वाली रायल्टी में भी कमी आई है। यदि निकट भविष्य में एनएमडीसी हीरा खदान चालू नहीं हुई और हीरा कार्यालय की हालत नहीं सुधरी तो हीरों से जो पन्ना की पहचान थी वह भी ख़त्म हो सकती है।      

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Thursday, February 17, 2022

कल्दा पठार में मशरूम की खेती से आदिवासी महिलाओं की बदल रही जिंदगी

  • तीन वर्ष पूर्व तक कल्दा पठार की जो आदिवासी महिलाएं मजदूरी और वनोपज के संग्रहण का कार्य करती थीं, वे अब मशरूम की खेती भी करने लगी हैं। मशरूम से अतिरिक्त आय होने के कारण इन महिलाओं की जिंदगी और रहन-सहन में चमत्कारिक बदलाव आया है।

कल्दा पठार की आदिवासी महिलाएं उत्पादित मशरूम दिखाते हुए।   

।। अरुण सिंह ।। 

कल्दा पठार, पन्ना (मध्यप्रदेश)। मशरूम की खेती बहुत अच्छा काम है, इसे घर में ही उगाया जा सकता है जिससे अतिरिक्त आय हो जाती है। कल्द पठार स्थित मगरदा गांव की आदिवासी महिला बड़ी बाई गोंड 50 वर्ष ने बताया कि उसने अपने घर में 180 बैग लगाए हैं, जिसमें डेढ़ कुंटल मशरूम का उत्पादन दो बार की तुडाई में हुआ है। बड़ी बाई बताती हैं कि अकेले मगरदा गांव की 17 महिलाएं अपने-अपने घरों में मशरूम की खेती शुरू की है। गांव की नई-नई बहुएं भी अतिरिक्त आमदनी के लिए मशरूम की खेती को अपना रही हैं।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 500 किलोमीटर तथा जिला मुख्यालय पन्ना से 70 किलोमीटर दूर स्थित आदिवासी बहुल कल्दा पठार को बुंदेलखंड क्षेत्र का पचमढ़ी भी कहा जाता है। हरी-भरी वादियों और जैव विविधता से परिपूर्ण खूबसूरत घने जंगलों से समृद्ध कल्दा पठार में खनिज व वन संपदा का विपुल भंडार है। लेकिन इसका समुचित लाभ यहां के आदिवासियों को नहीं मिल पाता, जिससे वे आज भी आर्थिक रूप से कमजोर और गरीब हैं। समुद्र तल से तकरीबन 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कल्दा पठार 500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जहां अधिसंख्य आबादी आदिवासियों की है। इन आदिवासियों का जीवन पूरी तरह से खेती किसानी के अलावा वनोपज व पत्थर खदानों में मजदूरी पर ही निर्भर है। कुछ साल पूर्व तक यह इलाका अत्यधिक दुर्गम और पहुंच विहीन माना जाता था। बारिश के 4 माह यहां पहुंचना मुमकिन नहीं था, लेकिन गोडऩे नदी में पुल का निर्माण हो जाने तथा कल्दा पठार तक पक्का सड़क मार्ग बन जाने से अब यहां हर मौसम में पहुंचना आसान हो गया है। आवागमन की सुविधा होने से पठार के आदिवासियों में न सिर्फ जागरूकता आई है बल्कि वे अब स्वावलंबन की दिशा में भी अग्रसर हुए हैं।

कल्दा पठार के ग्राम मगरदा में आयोजित प्रशिक्षण में शामिल महिलाएं। 

जिला पंचायत पन्ना के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) बालागुरु के. बताते हैं कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाएं दो वर्ष पूर्व तक वनोपज संग्रहण का कार्य करने के साथ मजदूरी करती रही हैं। इन आदिवासी महिलाओं की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की मंशा से यहां मशरूम उत्पादन की गतिविधि को शुरू किया गया है। बालागुरु बताते हैं कि कल्दा पठार में इस नवाचार को शुरू करना आसान नहीं था क्योंकि ज्यादातर आदिवासियों के घरों में मशरूम उत्पादन के लिए जगह ही नहीं थी। इस समस्या के निराकरण हेतु हमने कुटीर निर्माण की योजना बनाई और मशरूम के उत्पादन में रुचि रखने वाली आदिवासी महिलाओं को मनरेगा योजना से कुटीर बना कर दिया गया। जिला सीईओ ने बताया कि कल्दा पठार के 4 गांव मगरदा, गोबरदा, खबरी व दिया मंटोला में 74 कुटीर स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें 30 पूरे हो चुके हैं। इन सभी कुटीरों में मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है। आजीविका मिशन द्वारा इन आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाने के साथ-साथ जरूरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं।

आजीविका मिशन पन्ना के जिला प्रबंधक (कृषि) सुशील शर्मा ने बताया कि कल्दा पठार में 14 पंचायतें एवं 45 गांव हैं। पठार की कुल आबादी 28000 के लगभग है। सुशील शर्मा बताते हैं कि कल्दा पठार के 8 ग्राम मगरदा, गोबरदा, खबरी, दिया मंटोला, मुहली धरमपुरा, महुआडोल, झिरिया व कुटमी खुर्द में 114 आदिवासी महिलाओं द्वारा ओएस्टर मशरूम (ढींगरी) की खेती की जा रही है। श्री शर्मा के मुताबिक कल्दा पठार की 11 पंचायतों में 416 महिला स्व सहायता समूह हैं जिनमें सदस्य संख्या 4 हजार से अधिक है। स्व सहायता समूहों की ज्यादातर महिलाएं अब मशरूम उत्पादन के नवाचार में रुचि ले रही हैं।

महिलाएं बना रहीं अचार, पापड़ और नमकीन


मगरदा गांव की आदिवासी महिलाओं द्वारा तैयार किए गए मशरूम के पापड़। 

मशरूम की खेती एक ऐसी खेती है, जिसमें खेत की जरूरत नहीं होती है। अपने घरों में ही इसकी खेती की जा सकती है। यही वजह है कि मशरूम की खेती में महिलाओं का रुझान बढ़ रहा है। आजीविका मिशन पन्ना के जिला प्रबंधक सुशील शर्मा ने बताया कि अभी हाल ही में कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं को अचार, पापड़ और नमकीन बनाने का प्रशिक्षण ग्राम मगरदा में दिलाया गया है। मुरैना के कुलदीप तोमर ने महिलाओं को प्रशिक्षण दिया, फलस्वरूप पठार की आदिवासी महिलाएं अब मशरूम का अचार, पापड़ व नमकीन भी बना रही हैं।

शर्मा बताते हैं कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं द्वारा उत्पादित गीला मशरूम 120 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है। जबकि सूखा मशरूम 500 से 600 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है। आपने बताया कि पापड़ 350 रुपये, अचार 400 रुपये व नमकीन 350 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक्री किया जा रहा है। महिलाओं द्वारा बनाये गए अतिरिक्त उत्पाद को जो यहां से नहीं बिक पाता उसे पन्ना स्थित आजीविका मिशन द्वारा संचालित रूरल मार्ट (दुकान) में रखवाते हैं, जहां से बिकता है।

समाज सेवी संस्था समर्थन के रीजनल कोऑर्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं के नवाचार से दूसरे इलाके की महिलाएं भी प्रेरित हो रही हैं। यहां आकर महिलाएं मशरूम की खेती करने का तरीका व अन्य उत्पाद बनाना सीख रही हैं। तिवारी बताते हैं कि पिछले दिनों मगरदा में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में पन्ना जनपद के ग्राम बिल्हा, विक्रमपुर व गोविंदपुरा से 7 महिलाओं ने अचार, पापड़ और नमकीन बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

यहां आकर मशरूम के उत्पाद बनाना सीखने वाली ग्राम बिल्हा निवासी बिन्नू बाई पटेल 34 वर्ष ने बताया कि प्रशिक्षण में उन्होंने मशरूम का अचार, पापड़ व नमकीन बनाना सीख लिया है। अब वे अपने घर में इसे आराम से बना सकेंगी। ग्राम बिल्हा की ही शोभा पटेल 36 वर्ष ने बताया कि पृथ्वी ट्रस्ट संस्था के सहयोग से पन्ना जनपद के 5 गांव में मशरूम का उत्पादन हो रहा है, हमें वहां से गीला मशरूम मिल जाएगा, जिससे हम अचार, पापड़ और नमकीन बनाएंगे। इस कार्य में हमें पृथ्वी ट्रस्ट व समर्थन संस्था मदद कर रही है।

कल्दा पठार बनेगा मशरूम की खेती का हब


जिला पंचायत सीईओ बालागुरु के. मशरूम उत्पादक महिलाओं से चर्चा करते हुए। 

मशरूम की खेती में कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं के बढ़ते रुझान से जिला पंचायत पन्ना के  सीईओ बालागुरु के. बेहद उत्साहित हैं। वे बताते हैं कि जिन महिलाओं ने मशरूम का उत्पादन शुरू किया है उन्हें अतिरिक्त आय होने लगी है। इससे महिलाओं के जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार हुआ है। आपने बताया कि आने वाले समय में कल्दा पठार मशरूम की खेती का हब बनेगा, जिससे यहां की आदिवासी महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर होंगी।

जिला सीईओ बालागुरु बताते हैं कि वर्तमान में मशरूम का बीज (स्पान) ग्वालियर से मंगाया जा रहा है। लेकिन जल्दी ही कल्दा पठार के मगरदा में स्पान तैयार करने के लिए लैब स्थापित की जाएगी ताकि बीज यहीं उपलब्ध हो सके। इसके लिए मगरदा में 9 लाख रुपये की लागत से सामुदायिक भवन तैयार कराया गया है, जिसका उपयोग आदिवासी महिलाओं द्वारा मशरूम के उत्पाद बनाने हेतु वर्क शेड के रूप में किया जाएगा। लेकिन मशरूम की खेती करने वाली महिलाओं की संख्या बढऩे पर (लगभग 500 होने पर) इस भवन में लैब स्थापित की जाएगी।

कुपोषण की समस्या से मिलेगी निजात


अपने कुटीर में मशरूम बैगों के बीच बड़ी बाई गोंड। 

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का आदिवासी बहुल इलाका कल्दा पठार हमेशा कुपोषण की समस्या से ग्रसित रहा है। लेकिन दो वर्ष पूर्व की तुलना में अब यहां कुपोषण की स्थिति में सुधार हुआ है। महिला एवं बाल विकास विभाग पन्ना के जिला कार्यक्रम अधिकारी ऊदल सिंह ने बताया कि कल्दा पठार में जनवरी 2020 तक 0 से 5 वर्ष तक के अति गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 35 व मध्यम गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 123 थी। जो घटकर जनवरी 2022 तक अति गंभीर कुपोषित 23 व मध्यम गंभीर कुपोषित 88 हो गई है। 

समाजसेवी संस्था समर्थन के ज्ञानेंद्र तिवारी बताते हैं कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं ने मशरूम का उत्पादन करने के साथ ही उसका उपयोग अपने भोजन में भी शुरू किया है, परिणाम स्वरूप कुपोषण में कमी आई है। आपका कहना है कि मशरूम एक ऐसा खाद्य है जिसके सेवन से सभी प्रकार के पौष्टिक तत्व मानव शरीर में पहुंचते हैं, जिससे कुपोषण खत्म होता है।

ईको टूरिज्म के विकास की भी यहाँ अच्छी संभावनायें




कल्दा पठार के समृद्ध और खूबसूरत वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म के विकास की भी अपार संभावनायें मौजूद हैं। यदि इस दिशा में सार्थक और रचनात्मक पहल शुरू हो तो इससे रोजी और रोजगार के भी नये अवसर पैदा हो सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण के कार्य में रूचि रखने वाले इसी इलाके के पटना तमोली निवासी अजय चौरसिया बताते हैं कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र का पचमढ़ी कहा जाने वाला यह पूरा इलाका खनिज व वन संपदा से समृद्ध है। यहां चिरौंजी, आँवला, महुआ, तेंदू, हर्र, बहेरा, शहद व तेंदूपत्ता जैसी वनोपज जहां प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, वहीं इस पठार में दुर्लभ जड़ी बूटियों का भी खजाना है। यहां के जंगल में सफेद मूसली, खस, महुआ गुठली, हर्र, बहेरा, काली मूसली, सतावर, मुश्कदारा, लेमन ग्रास, कलिहारी, अश्वगंध, सर्पगंध, माल कांगनी, चिरौटा, लहजीरा, अर्जुन छाल, मेलमा, ब्राह्मी, बिहारी कंद, मुलहटी, शंख पुष्पी, सहदेवी, पुनर्नवा, धवर्ई, हर सिंगार, भटकटइया, कालमेघ, जंगल प्याज, केव कंद, तीखुर तथा नागरमोथा जैसी वनौषधियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। यदि कल्दा पठार के नैसर्गिक सौन्दर्य तथा यहां पर प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दुर्लभ वनौषधियों का संरक्षण व संवर्धन किया जाये तो इस वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म को बढ़ावा मिल सकता है। ऐसा होने पर यहां के रहवासियों को जहां रोजगार मिलेगा वहीं यहां की प्राकृतिक खूबियां भी बरकरार रहेंगी।

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Wednesday, February 16, 2022

समाज के उत्थान हेतु सकारात्मक सोच जरूरी : खनिज मंत्री

  • संत शिरोमणि रविदास जी दूरगामी सोच के व्यक्ति और अद्भुत संत 
  • समाज में जागरूकता लाने और कुरीतियों को दूर करने कार्य किया

संत रविदास जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह। 

पन्ना। संत रविदास जी ने समाज में जागरूकता फैलाने और कुरीतियों को समाप्त करने का महान कार्य किया है। वे दूरगामी सोच के व्यक्ति और अद्भुत संत थे। समाज से छूआछूत एवं ऊंचनीच का भेदभाव मिटाने और सर्वांगीण उत्थान के लिए संत रविदास के आदर्शों का अनुशरण करना जरूरी है। सकारात्मक सोच के साथ समाज के उत्थान का प्रयास करना चाहिए। यह बात खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने स्थानीय जगन्नाथ स्वामी टाउन हॉल में संत रविदास जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान कहीं।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति के कर्म प्रधान होते हैं, न कि धर्म और जाति। रविदास जी की शिक्षा और महान कर्मों को हर समाज याद करता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक जीवन में कई विरोधाभास भी हो सकते हैं, लेकिन समाज सुधार के लिए सही कार्य करने वाले व्यक्तियों की हमेशा मदद करना चाहिए। बच्चों को उनकी जीवनी और घटनाक्रम पढ़कर सीख लेना चाहिए। मंत्री श्री सिंह ने समाज में अलग पहचान के लिए रविदास के आदर्श और पदचिन्हों पर चलकर महान कार्य करने का आह्वान भी किया।

विधायक प्रह्लाद लोधी ने कहा कि सरकार ने संतों और शहीदों के हित और कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए हैं। नागरिकों को सदैव सर्वसमाज के हित के लिए कार्य करना चाहिए। उन्होंने शिक्षा पर ध्यान देने और नशामुक्त जीवन अपनाने के लिए कहा। सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित किया। उन्होंने कहा कि संत रविदास जी ने समाज को बड़ी दिशा दी है और एक सूत्र में बांधने का काम किया है। सांसद द्वारा जयंती की शुभकामनाएं देते हुए समाज के चहुंमुखी उत्थान के लिए संकल्प का आह्वान किया गया। कार्यक्रम में संत रविदास जी के अनुयायियों और उपस्थिजनों ने भोपाल से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और अन्य अतिथियों के वर्चुअली उद्बोधन को देखा और सुना। संत रविदास जयंती का आयोजन विकासखण्ड मुख्यालय और ग्राम पंचायत स्तर पर भी किया गया।

कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा संत रविदास जी के चित्र पर माल्यार्पण कर की गई। अतिथियों के स्वागत के बाद स्थानीय कलाकारों द्वारा भजन प्रस्तुत किया गया। मंत्री श्री सिंह ने कलाकारों का स्वागत किया। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष रविराज सिंह यादव, उपाध्यक्ष माधवेन्द्र सिंह, कलेक्टर  संजय कुमार मिश्र, जिला पंचायत सीईओ  बालागुरू के., अपर कलेक्टर  जे.पी. धुर्वे, नोडल अधिकारी अशोक चतुर्वेदी, जिला संयोजक आर.के. सतनामी सहित अन्य अधिकारी-कर्मचारी सहित बड़ी संख्या में आम नागरिक और संत रविदास जी के अनुयायी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन परियोजना अधिकारी संजय सिंह परिहार ने किया।

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Sunday, February 13, 2022

वनराज के सामने आने पर बाइक छोड़ पेड़ पर चढ़े युवक


पेड़ पर चढ़े नजर आते युवक तथा नीचे खड़ी उनकी बाइक। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में एक दिलचस्प और हैरतअंगेज मामला प्रकाश में आया है। बताया जा रहा है कि टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र में स्थित धार्मिक महत्व के स्थल झलारिया महादेव के दर्शन करने मोटरसाइकिल से दो युवक जा रहे थे। इन बाइक सवार युवकों के सामने अचानक वनराज आ पहुंचे, ऐसी स्थिति में अपनी जान बचाने के लिए दोनों युवक पास के पेड़ में चढ़कर शरण ली। यह वीडियो सोसल मीडिया में वायरल हो रहा है। 

पेड़ में चढ़ने वाले युवक कौन हैं इस बावत पन्ना टाइगर रिज़र्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा से पूंछे जाने पर उन्होंने बताया कि घटना सही है लेकिन पेड़ में दो युवक जो चढ़े नजर आते हैं वे दोनों वनकर्मी हैं। 

मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र के झलारिया महादेव स्थान में भगवान भोलेनाथ की दुर्लभ प्रतिमा और रमणीक स्थान है, जिनके दर्शन वर्ष में केवल एक बार होते हैं। इस दिन झलारिया महादेव के दर्शन करने की इजाजत रहती है इसीलिए यहां हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। पन्ना टाईगर रिजर्व के हिनौता गेट से तकरीबन 20 किमी दूर स्थित धार्मिक महत्व वाले इस प्राचीन स्थल तक पहुँचने के लिये घने जंगलों के बीच से होकर जाना पड़ता है। विशालकाय पहाड़ी के नीचे जिस जगह पर शिवलिंग स्थापित है, वह स्थल भी अद्भुत है। पहाड़ी से रिसकर कंचन जल निरंतर भगवान शिव का अभिषेक करता है। अंचलवासियों का कहना है कि पूरी श्रद्धा के साथ इस स्थल पर जो भी मनोकामना की जाती है वह जरूर पूरी होती है।

गत 11 फरवरी शुक्रवार को बड़ी संख्या में दर्शनार्थियों के आने के कारण पार्क प्रबंधन द्वारा जगह-जगह वनकर्मियों को तैनात किया गया था। उसी दौरान जब वनराज अचानक झलारिया महादेव जाने वाले मार्ग में प्रकट हुआ तो वहां तैनात वनकर्मी पेड़ में चढ़ गये।

 पूर्ण वयस्क यह वनराज मार्ग पर काफी देर तक न सिर्फ चहल-कदमी की अपितु मार्ग में ही आराम फरमाने लगा। इस बीच कई वाहन वनराज के वहां से हटने का इंतजार करते रहे। वनराज मार्ग पर बैठे थे और पास खड़े वाहनों में गाने बज रहे थे तथा लोगों की आवाजें भी आ रही थीं। निश्चित ही यह पार्क के नियमों व सुरक्षा की द्रष्टि से उचित नहीं है। टाइगर के जंगल में चले जाने के उपरांत पेड़ में चढ़े वनकर्मी नीचे उतरे और वाहन अपने गंतब्य के लिए रवाना हुए। इन वाहनों से जा रहे श्रद्धालुओं ने इस दुर्लभ नज़ारे का वीडियो बना लिया जो सोसल मीडिया में वायरल हो रहा है।

वीडियो :



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आसमान के बादशाह गिद्धों की देश में पहली बार पन्ना में हुई रेडियो टैगिंग, रहवास एवं प्रवास मार्ग का होगा अध्ययन

  • बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध हो चुके मध्यप्रदेश के पन्ना पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों के रहवास एवं प्रवास मार्ग के अध्ययन हेतु अभिनव प्रयोग हो रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की मदद से यह अनुसंधान कार्य किया जा रहा है, जिसके तहत 25 गिद्धों को रेडियो टैगिंग किया जाना है। इसी माह 6 गिद्धों की रेडियो टैगिंग हुई है, जिनमें दो प्रवासी गिद्ध हैं।

भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की टीम गिद्धों को रेडियो टैग करते हुए।

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व अब सिर्फ बाघों पर हुए अभिनव प्रयोगों के लिए ही नहीं अपितु गिद्धों पर होने जा रहे अनुसंधान के लिए भी जाना जाएगा। यहां के खूबसूरत जंगल, पहाड़ व गहरे सेहे बाघों के साथ साथ आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले गिद्धों का भी घर है। यहां पर गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की निवासी प्रजातियां हैं। जबकि शेष 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। गिद्धों के प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्य प्राणी प्रेमियों के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बल्कि एक देश से दूसरे देश मौसम अनुकूलता के हिसाब से प्रवास करते हैं।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि गिद्धों के रहवास एवं प्रवास  मार्ग के अध्ययन हेतु पन्ना टाइगर रिजर्व द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की मदद से गिद्धों की रेडियो टैगिंग का कार्य प्रारंभ किया गया है। जिसके अंतर्गत पन्ना टाइगर रिजर्व में 25 गिद्धों को रेडियो टैगिंग किया जावेगा। रेडियो टैगिंग कार्य को अनुमति भारत सरकार से प्राप्त हो चुकी है। रेडियो टैगिंग से गिद्धों के आस-पास के मार्ग एवं पन्ना लैंडस्केप में उनकी उपस्थिति आदि की जानकारी ज्ञात हो सकेगी, जिससे भविष्य में इनके प्रबंधन में मदद मिलेगी।

उल्लेखनीय है कि पूर्व में पन्ना टाइगर रिजर्व में 3 गिद्धों (एक रेड हेडेड एवं दो इण्डियन) की रेडियो टैगिंग की गई थी। ये तीनों ही पन्ना टाइगर रिजर्व के रहवासी गिद्ध थे। उस समय प्रवासी गिद्धों के रेडियो टैगिंग में सफलता नहीं मिल पाई थी। लगभग एक वर्ष के प्रयास के फलस्वरूप विगत 9 फरवरी को  परिक्षेत्र गहरीघाट के झालर घास मैदान में यूरेशियन ग्रिफिन गिद्ध की रेडियो टैगिंग करने में सफलता मिली है।

देश में प्रवासी गिद्धों की पहली रेडियो टैगिंग



क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के मुताबिक यूरेशियन ग्रिफिन गिद्ध की 9 फरवरी को परिक्षेत्र गहरीघाट के झालर घास मैदान में हुई रेडियो टैगिंग सभवत: देश में प्रवासी गिद्धों की पहली रेडियो टैगिंग है। गिद्ध का बजन 7.820 कि.ग्रा. है। गिद्ध पर डाले गये रेडियो टैग का बजन सोलर चार्जर सहित 90 ग्राम है।रेडियो टैगिंग पश्चात गिद्ध को झालर मैदान में ही छोड़ा गया। इसके बाद 11 फरवरी 2022 को झालर घास मैदान में 5 गिद्धों की रेडियो टैगिंग की गई।जिसमें से एक हिमालयन ग्रिफिन गिद्ध है। जो प्रवासी गिद्ध है तथा शेष 4 रेड हेडेड गिद्ध हैं। प्रवासी गिद्धों की रेडियो टैगिंग से यह गिद्धों के आने-जाने के स्थान, मार्गों एवं अन्य गति वधियों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकेगी। गिद्धों की रेडियो टैगिंग के समय उत्तम कुमार शर्मा क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के पक्षी विशेषज्ञ एवं पन्ना टाइगर रिजर्व का जमीनी अमला उपस्थित रहा। क्षेत्र संचालक ने आशा व्यक्त की है कि भविष्य में रेडियो टैगिंग से प्राप्त जानकारी टाइगर रिजर्व ही नहीं बल्कि पूरे देश व विदेश में गिद्धों के प्रबंधन के लिए लाभकारी होगी।

गिद्धों पर मंडरा रहा विलुप्त होने का खतरा 

आसमान में सबसे ऊंची उड़ान भरने वाले पक्षी गिद्धों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। प्रकृति के सबसे बेहतरीन इन सफाई कर्मियों की जहां भी मौजूदगी होती है वहां का पारिस्थितिकी तंत्र स्वच्छ व स्वस्थ रहता है। लेकिन प्रकृति और मानवता की सेवा में जुटे रहने वाले इन विशालकाय पक्षियों का वजूद मानवीय गलतियों के कारण संकट में है। गिद्धों के रहवास स्थलों के उजडऩे तथा मवेशियों के लिए दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का उपयोग करने से गिद्धों की संख्या तेजी से घटी है। पन्ना टाइगर रिजर्व जहां आज भी गिद्धों का नैसर्गिक रहवास है, वहां पर रेडियो टैगिंग के माध्यम से उनकी जीवन चर्या का अध्ययन निश्चित ही एक अनूठी पहल है। इससे विलुप्ति की कगार में पहुंच चुके गिद्धों की प्रजाति को बचाने में मदद मिलेगी।

बाघों की तरह गिद्धों की होगी मॉनिटरिंग


 रेडियो टैगिंग के बाद गिद्ध को खुले मैदान में छोड़ते विशेषज्ञ साथ में पीटीआर के क्षेत्र संचालक।

बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के बाद से पन्ना टाइगर रिजर्व अभिनव प्रयोगों और अनुसंधान कार्यों का केंद्र बन चुका है। रेडियो टैगिंग करके गिद्धों पर अनुसंधान होने से पन्ना टाइगर रिजर्व अब सिर्फ बाघों के लिए ही नहीं बल्कि गिद्धों के लिए भी जाना जाएगा। इस अभिनव प्रयोग से पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की तरह आसमान के बादशाह गिद्धों की भी मॉनिटरिंग हो सकेगी। जिससे गिद्धों की प्रजाति के अनुसंधान, विस्तार व प्रबंधन में काफी मदद मिलेगी। इस अनुसंधान कार्य से आशा की किरण जागी है कि विलुप्ति की कगार में पहुंच चुकी गिद्धों की प्रजाति पुन: अपनी पुरानी स्थिति को हासिल कर सकेगी।

गिद्धों को रास आ रही पन्ना टाइगर रिजर्व की आबोहवा

मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की आबोहवा गिद्धों के काफी अनुकूल है। वर्ष 2020-21 की गणना में यहां प्रदेश में सबसे ज्यादा 722 गिद्ध पाए गए जबकि जिले के उत्तर व दक्षिण वन मंडल को मिलाकर यहां कुल 1774 गिद्ध पाए गए थे। प्रदेश में गिद्धों की कुल संख्या 9408 पाई गई थी। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का कहना है कि आने वाले समय में यहां गिद्धों की संख्या में और बढ़ोतरी होने की पूरी संभावना है। पर्यावरण के सफाई कर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की पन्ना टाइगर रिजर्व में 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां यहां की स्थाई निवासी हैं जबकि 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। ठंड के मौसम में प्रवासी गिद्ध यहां आकर अंडे देते हैं और इसके बाद मई महीने तक अपने मूल निवास पर लौट जाते हैं।

पीटीआर का धुंधुवा सेहा गिद्धों का स्वर्ग


पन्ना टाइगर रिजर्व के धुंधुवा सेहा की चट्टान में धूप का आनंद लेते गिद्ध।

पन्ना टाइगर रिजर्व का धुंधुवा सेहा न सिर्फ बाघों का प्रिय रहवास स्थल है अपितु यह सेहा गिद्धों का भी स्वर्ग कहा जाता है। ठंड के दिनों में इस गहरे सेहा की चट्टानों में बड़ी संख्या में गिद्ध धूप सेकते नजर आते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में प्रवासी गिद्ध भी होते हैं। कहा जाता है कि उड़ते हुए पक्षियों को कोई सरहद रोक नहीं सकती। वे अपनी मर्जी के मुताबिक उड़ान भरकर सैकड़ों किलोमीटर का लंबा सफर तय करते हुए उस जगह पहुंच जाते हैं जहां की आबोहवा उनके अनुकूल होती है। पक्षी प्रेमी पर्यटकों के मुताबिक इस सेहा के आसपास आसमान में हर समय गिद्ध मंडराते रहते हैं।यही वजह है कि यह सेहा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है, क्यों कि यहां वनराज के साथ-साथ आसमान के बादशाह गिद्धों के भी दर्शन हो जाते हैं।

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Monday, February 7, 2022

नाला के पानी को रोक दिया जाये तो खुशहाल हो जायेगा गांव

  • मनरेगा के कार्यों में जल संरक्षण को मिलनी चाहिए प्राथमिकता 
  • कपिल धारा कूप योजना किसानों के लिए साबित हुई है वरदान 

पन्ना जिले के विल्हा गांव में फसल की निगरानी के लिए खेत की मेड में बना मचान। 

पन्ना। जैविक खेती को अपनाने की दिशा में अग्रसर मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के गांव विल्हा में यदि मनरेगा का सही क्रियान्वयन हो तो इस गांव की तस्वीर बदल सकती है। गांव के पास से ही गुजरने वाले चहचही नाला के पानी को यदि रोक दिया जाये तो यह गांव खुशहाल हो जायेगा। गांव के किसानों का कहना है कि नाला का पानी रुकने से खेतों की सिंचाई हो सकेगी, जिससे उत्पादन बढ़ेगा। 

महात्मां गाधी राष्टीय ग्रामीण रोजगार गांरटी कानून जहां एक ओर श्रमिकों  को काम करने के लिये हक़ एवं अधिकार देता है वहीं ग्रामीण क्षेत्र में स्थायी परिसंम्पत्तियो के निर्माण के लिये पर्याप्त  संसाधन भी मुहैया कराता है। लघु एवं सीमांन्त किसान जिनकी आजिविका का मुख्य जरिया खेती किसानी ही है, उनके लिये खेत तलाब, मेंड़बंधान एवं हितैषीकूप जैसी मनरेगा की उपयोजनायें वरदान सावित हो रही हैं।  

ग्राम विल्हा के दद्दी पिता कल्लू पटेल उम्र 50 वर्ष ने बताया कि दो वर्ष हुए कुआं मिले, हम सब्जी पर्याप्त मात्रा में लगाते हैं और प्याज तो बेच भी लेते हैं। लल्लू पटेल ने वताया की 2 बीघा में प्याज लगाया था जो 40 क्विंटल हुई। लल्लू के मुताबिक उसने लाख रू. की प्याज बेच दी और खाने को भी पर्याप्त रख लिया यहाँ तक कि रिस्तेदारों को भी दी है। कुआं बन जाने सभी मौसम में सब्जी एवं खाने की लिये फसलें पर्याप्त हो रही हैं।


खेतों में अच्छी फसल होने के साथ-साथ पशुपालन से भी आमदानी होती है। खेत में डालने के लिये बकरी की खाद एवं गाय, भैस का सड़ा हुआ गोबर ही उपयोग कर रहे हैं। खेत में कोई रासायनिक खाद एवं कीटनाशक का उपयोग नहीं करते हैं। मनरेगा से दद्दी,लल्लू,सुदाम,एवं कई किसानों के कुआ बने हैं, इनकी कामयाबी को देख गांव के अन्य कई किसान भी अब अपने खेत में कुआं बनवाना चाहते हैं। 

ग्राम पंचायत से ग्रामीणो ने कहा हमें पानी रोकने एवं स्टाक के लिये अधोसंरचना दें, हम अपनी गरीबी स्वयं दूर कर लेंगे। स्वयंसेवी संस्था समर्थन लगातार पंचायत के साथ मिलकर कृषि आधारित योजना तैयार करने में तकनीकी सहयोग कर रही है। ग्राम पंचायत ने वार्षिक कार्ययोजना 2022—23  में किसानों  को प्राथमिकता में लेकर उपयोजनाए तैयार की हैं। पानी के सरंक्षण एवं जैबिक खेती को प्रमुखता मिलने से किसानों को फायदा होगा। मालुम हो कि विल्हा रक्सेहा पंचायत का गांव है, जो पहाड़ी से लगा हुआ है। चहचही नाला एवं कई छोटे वर्षाती नाले गांव से होकर गुजरते हैं। यदि इन नालों का पानी रोक दिया जाये, तो गांव खुशहाल हो जायेगा। जल संरक्षण का यह कार्य मनरेगा से हो सकता है।

वीडियो :



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कभी पेन में स्याही भराने को नहीं थे पैसे, शिक्षक बने तो दान किए 40 लाख

  • भीषण गरीबी और संघर्षों के बीच पले बढ़े शासकीय प्राथमिक शाला के एक शिक्षक जब रिटायर हुए तो उन्होंने जीपीएफ और ग्रेच्युटी की अपनी पूरी जमा पूंजी दान कर दी। ताकि उसके ब्याज से क्षेत्र के गरीब बच्चे शिक्षित हो सकें। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का यह शिक्षक इन दिनों चर्चा में है। संघर्षों से परिपूर्ण इनके जीवन यात्रा की क्या है अनकही कहानी, जानें।

शिक्षक विजय कुमार चंसौरिया के सेवा निवृत्त होने पर प्राथमिक शाला में आयोजित विदाई समारोह साथ में उनकी पत्नी श्रीमती हेमलता चंसौरिया। 

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना (मध्यप्रदेश)। गरीबी बहुत खराब होती है, इससे बड़ी न तो कोई बीमारी है और न ही कोई मार, गरीब को इंसान भी नहीं समझा जाता। सिर्फ शिक्षा में ही वह शक्ति है जो किसी गरीब के जीवन को संवार सकती है। छोटे से आदिवासी बहुल गांव खंदिया स्थित प्राथमिक शाला में पदस्थ रहे शिक्षक विजय कुमार चंसौरिया ने चर्चा करते हुए यह बात कही। 38 वर्ष 6 माह तक सहायक शिक्षक के रूप में शासकीय सेवा में रहा, इस दौरान मुझे खूब प्रेम और सम्मान मिला। सेवानिवृत्त होने पर मैं संतुष्ट हूं, मेरे दोनों बच्चे शासकीय सेवा में हैं। एक पुत्री है जिसकी शादी हो चुकी है तथा दामाद बैंक मैनेजर के पद पर हैं। ऐसी स्थिति में रिटायर होने के बाद मिलने वाली धनराशि का मैं क्या करूंगा? इस पैसे का सदुपयोग हो इस मंशा से मैंने जीपीएफ और ग्रेच्युटी में मिलने वाली राशि जो लगभग 40 लाख है, उसे दान करने का निर्णय लिया है। इस निर्णय में मेरी पत्नी श्रीमती हेमलता चंसौरिया, दोनों पुत्रों व पुत्री की भी सहमति है। रिटायर्ड शिक्षक श्री चंसौरिया ने बताया।

पन्ना शहर के टिकुरिया मोहल्ला स्थित अपने निवास में शिक्षक विजय कुमार चंसौरिया ने मेरे साथ दिल खोल कर बात की। उन्होंने बताया कि उनका बचपन भीषण गरीबी में गुजरा है। प्राथमिक शिक्षा आठवीं तक पन्ना जिले के अजयगढ़ कस्बे में ली। इसके बाद पन्ना आ गया लेकिन गरीबी के कारण नौवीं व दसवीं की पढ़ाई स्कूल जाकर नहीं कर सका। आपने बताया कि उस समय आर्थिक अभाव के कारण 13-14 वर्ष की उम्र में उन्हें रिक्शा चलाने को मजबूर होना पड़ा। तकरीबन डेढ़ साल तक पन्ना में रिक्शा चलाया, यह दौर बहुत ही अपमानजनक रहा। रात के समय अक्सर पियक्कड़ रिक्शे में बैठ जाते और गाली गलौज करते तथा पैसा भी नहीं देते थे। जब हालात सहनशक्ति से बाहर हो गई तो रिक्शा चलाना बंद कर दिया और जीवन यापन के लिए दूध बेचना शुरू किया।

अपने गुजरे हुए अतीत के संघर्षपूर्ण दिनों को याद करते हुए चंसौरिया जी ने आगे बताया कि दूध बेचने का काम भी आसान नहीं था। पन्ना से 10-12 किलोमीटर दूर रानीपुर गांव दूध लेने जाना पड़ता था, जहां पहुंचने के लिए उस समय सड़क मार्ग नहीं था। घने जंगल व घाटी से होकर दूध लेने जब रानीपुर जाता तो रास्ते में अक्सर हिंसक प्राणियों से भी आमना-सामना हो जाता था। चंसौरिया बताते हैं कि रानीपुर गांव में उन्हें डेढ़ रुपए लीटर दूध मिलता था, जिसे पन्ना लाकर वे दो रुपये लीटर के भाव से बेचते थे। इस तरह किसी भांति गुजारा चलता रहा। आपने बताया कि उन्होंने नौवीं व दसवीं की नियमित पढ़ाई नहीं की, सीधे 11 वीं बोर्ड (उस समय 11वीं हायर सेकेंडरी बोर्ड होता था) की परीक्षा दी और अच्छे नंबरों से पास हो गया।

मामा के घर रहकर रोड लाइट में की पढ़ाई 

हायर सेकेंडरी 11वीं की परीक्षा किन परिस्थितियों में दी इसका जिक्र करते हुए चंसौरिया बताते हैं कि उस समय वे अपने मामा दुर्गा प्रसाद उपाध्याय के घर में रहते थे। बिजली की उपलब्धता न होने के कारण रात्रि में मठ्या तालाब के किनारे रोड लाइट में पढ़ाई करते थे। वर्ष 1977 में रोड लाइट की रोशनी में पढ़कर 11वीं की परीक्षा दी थी। उस दौर का जिक्र करते हुए आपने बताया कि रोड लाइट में पढऩा भी आसान नहीं था। क्योंकि रात के 11:00 बजे तक असामाजिक तत्वों व शराबियों का मठ्या तालाब के आसपास जमावड़ा लगा रहता था। इसकी वजह का खुलासा करते हुए आपने बताया कि तालाब के किनारे ही देसी शराब की दुकान थी। जाहिर है कि पढ़ाई रात 11:00 बजे के बाद ही हो पाती थी।

पेन में स्याही भराने को भी नहीं थे पैसे 

वह दिन मुझे आज भी याद है, 11 वीं बोर्ड का आखिरी पेपर अर्थशास्त्र का था। उस दिन मेरे पेन की स्याही खत्म हो गई थी और स्याही भराने को मेरे पास पैसे नहीं थे। कई सहपाठियों से स्याही मांगी लेकिन किसी ने नहीं दी, मैं घबरा रहा था कि परीक्षा कैसे दूंगा और इसी चिंता में डूबा परीक्षा केंद्र की तरफ जा रहा था। तभी रास्ते में दिनेश सिंह मिले जो परीक्षा देने जा रहे थे, उन्होंने अपने पेन से मेरे पेन में स्याही डाली। चंसौरिया आगे बताते हैं कि दिनेश सिंह से उनकी दोस्ती फुटबॉल खेलते समय हुई थी। उन्होंने संकट के समय मेरी बहुत मदद की। मूलत: वे प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश के निवासी थे, उनके पिता पन्ना में मलेरिया इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे। अपने पुराने मित्र के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हुए चंसौरिया बताते हैं कि मेरे पास पढऩे को किताबें भी नहीं रहती थीं, दिनेश सिंह मुझे किताबें देते थे। भावुक होकर चंसौरिया कहते हैं "हमने गुजार दी है फकीरी में जिंदगी, लेकिन कभी जमीर का सौदा नहीं किया"।

मेरे निर्णय में परिवार के सभी सदस्यों की सहमति


पन्ना स्थित निज निवास में चर्चा के दौरान श्री चंसौरिया तथा उनका परिवार। 

सेवानिवृत्त शिक्षक विजय कुमार चंसौरिया ने बताया कि वे जिस प्राथमिक शाला से रिटायर हुए हैं वह छोटे से गांव खंदिया में स्थित है। शत प्रतिशत आदिवासी इस गांव में रहते हैं, जो बेहद गरीब हैं। इस गांव की आदिवासी महिलाएं जंगल से लकड़ी लाकर पन्ना में बेचने जाती हैं तथा पुरुष मजदूरी करते हैं। बहुत मुश्किल से इनका गुजारा चलता है। इन हालातों में इनकी प्राथमिकता बच्चों को शिक्षित कराना नहीं होता। इन गरीब आदिवासी परिवारों के बच्चे शिक्षित होकर सामर्थ्यवान बनें, इस मंशा से मैंने जीपीएफ व ग्रेजुएटी की राशि दान में दी है। 

मेरे इस निर्णय से पत्नी श्रीमती हेमलता चंसौरिया तो खुश हैं ही, परिवार के अन्य सदस्य पुत्र, पुत्रवधू व पुत्री सभी की सहमति है। घर में मौजूद छोटे पुत्र गौरव चंसौरिया से इस बाबत पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि हमारे पिता ने गरीबों के कल्याण हेतु यह निर्णय लिया है, इस पर हमें गर्व है। आपने बताया कि वे महिला बाल विकास विभाग में अकाउंटेंट के पद पर हैं, हम खुशहाल हैं किसी चीज की कमी नहीं है। पास ही अपनी 5 वर्षीय बेटी देवांशी को गोद में लिए बैठी चंसौरिया जी की पुत्री महिमा ने भी अपने पिता के निर्णय पर खुशी का इजहार किया। सेवानिवृत्त शिक्षक श्री चंसौरिया कहते हैं कि सच्चाई की राह में चले तो वह मुकाम जरूर मिलता है, जहां सुकून है। शासकीय प्राथमिक शाला खंदिया में हुई भावभीनी विदाई व पन्ना शहर में लोगों द्वारा किए जा रहे स्वागत और सम्मान की चर्चा करने पर उन्होंने कहा "मंजिल पर मुझे देखकर हैरा हैं सभी लोग, पर पांव में पड़े किसी ने छाले नहीं देखे"। वे आगे कहते हैं कि हमें इस बात की ख़ुशी है कि हम इंसान हो गए, क्योंकि पहले तो हमें लोगों ने इंसान भी नहीं समझा था।  

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Wednesday, February 2, 2022

देश के इकलौते हीरा कार्यालय पर मंडरा रहे संकट के बादल

  • एक लिपिक व एक हीरा पारखी के सहारे संचालित हो रहा हीरा कार्यालय
  • इटवांखास व पहाड़ीखेरा में संचालित होने वाले उप कार्यालय भी हुए बंद 

कैसे कायम रहेगी हीरों के लिए प्रसिद्ध रत्नगर्भा धरती पन्ना की पहचान। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित देश के इकलौते हीरा कार्यालय पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यहाँ की रत्नगर्भा धरती से भले ही बेशकीमती हीरे निकलते हैं लेकिन लेकिन इन हीरों की चमक यहाँ कहीं नजर नहीं आती। शासन की अनदेखी और उपेक्षा के चलते पन्ना स्थित हीरा कार्यालय भी अब बंद होने की कगार में जा पहुंचा है। पिछले कई वर्षों से इस कार्यालय में कर्मचारियों के रिटायर होने पर उनकी जगह किसी की पदस्थापना नहीं हुई, फलस्वरूप इस कार्यालय के ज्यादातर पद खाली पड़े हैं। आलम यह है कि देश का यह इकलौता हीरा कार्यालय एक लिपिक व एक हीरा पारखी के सहारे संचालित हो रहा है। 

उल्लेखनीय है कि पूर्व में पन्ना स्थित हीरा कार्यालय में जहाँ हीरा अधिकारी की पदस्थापना होती थी वहीं अब खनिज अधिकारी के पास हीरा कार्यालय का प्रभार है। नवीन कलेक्ट्रेट भवन में हीरा अधिकारी का चेंबर तक नहीं है, हीरा कार्यालय एक छोटे से कमरे में संचालित हो रहा है। हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि पहले पन्ना जिला मुख्यालय के साथ-साथ इटवांखास व पहाड़ीखेरा में उप कार्यालय हुआ करते थे जो अब बंद हो चुके हैं। उस समय उथली हीरा खदानों की निगरानी व खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों को जमा कराने के लिए तीन दर्जन से भी अधिक सिपाही और हीरा इंस्पेक्टर पदस्थ थे। लेकिन अब सिर्फ दो सिपाही बचे हैं जो अपने रिटायरमेंट की राह देख रहे हैं।   

संयुक्त कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय जो एक कमरे में संचालित हो रहा। 

पन्ना जिले में हीरा धारित पट्टी का विस्तार लगभग 70 किलोमीटर क्षेत्र में है, जो मझगवां से लेकर पहाड़ीखेरा तक फैली हुई है। हीरे के प्राथमिक स्रोतों में मझगवां किंबरलाइट पाइप एवं हिनौता किंबरलाइट पाइप पन्ना जिले में ही स्थित है। यह हीरा उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है जो पन्ना शहर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां अत्याधुनिक संयंत्र के माध्यम से हीरों के उत्खनन का कार्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा संचालित किया जाता रहा है। मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है। एनएमडीसी हीरा खदान बंद होने से हीरों के उत्पादन का ग्राफ जहाँ नीचे जा पहुंचा है वहीँ शासन को मिलने वाली रायल्टी में भी कमी आई है। यदि निकट भविष्य में एनएमडीसी हीरा खदान चालू नहीं हुई और हीरा कार्यालय की हालत नहीं सुधरी तो हीरों से जो पन्ना की पहचान थी वह भी ख़त्म हो सकती है।   

कर्मचारियों के अभाव में कैसे होगी हीरों की नीलामी 

पन्ना जिले की उथली हीरा खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों की नीलामी कराई जाती है। इस वर्ष भी 24 फरवरी से संयुक्त कलेक्ट्रेट भवन पन्ना में हीरों की नीलामी कराई जानी है। इस नीलामी में 175.82 कैरेट वजन के 139 नग हीरे रखे जाएंगे। खनिज अधिकारी पन्ना रवि पटेल जो हीरा अधिकारी के भी प्रभार में हैं उन्होंने भी चिंता जाहिर करते हुए बताया कि आगामी 24 फरवरी से होने जा रही हीरों की नीलामी में कर्मचारियों की कमी से उपजी समस्या का कुछ न कुछ समाधान खोजना पड़ेगा ताकि नीलामी सकुशल संपन्न हो सके। 

हीरा अधिकारी पन्ना रवि पटेल ने जानकारी देते हुए बताया कि हीरों की नीलामी 24 फरवरी से शुरू होकर कुल हीरों की नीलामी पूर्ण होने तक चालू रहेगी। श्री पटेल ने बताया कि सुबह 9:00 बजे से 11:00 बजे तक हीरो का निरीक्षण किया जाएगा, तत्पश्चात उनकी बोली की जाएगी। नीलामी में उज्जवल, मैले व औद्योगिक किस्म के 139 नग हीरे रखे जाएंगे जिनकी अनुमानित कीमत 1 करोड़ 78 लाख 61हजार 890 रुपये है। हीरा अधिकारी ने बताया कि हीरों की इस नीलामी में सबसे बड़ा उज्जवल किस्म का कीमती हीरा भी रखा जा रहा है, जिसका वजन 14.09 कैरेट है। इसके अलावा 13.54 कैरेट वजन का भी हीरा है जो नीलामी में आकर्षण का केंद्र रहेगा।

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