- बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध हो चुके मध्यप्रदेश के पन्ना पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों के रहवास एवं प्रवास मार्ग के अध्ययन हेतु अभिनव प्रयोग हो रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की मदद से यह अनुसंधान कार्य किया जा रहा है, जिसके तहत 25 गिद्धों को रेडियो टैगिंग किया जाना है। इसी माह 6 गिद्धों की रेडियो टैगिंग हुई है, जिनमें दो प्रवासी गिद्ध हैं।
भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की टीम गिद्धों को रेडियो टैग करते हुए। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व अब सिर्फ बाघों पर हुए अभिनव प्रयोगों के लिए ही नहीं अपितु गिद्धों पर होने जा रहे अनुसंधान के लिए भी जाना जाएगा। यहां के खूबसूरत जंगल, पहाड़ व गहरे सेहे बाघों के साथ साथ आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले गिद्धों का भी घर है। यहां पर गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की निवासी प्रजातियां हैं। जबकि शेष 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। गिद्धों के प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्य प्राणी प्रेमियों के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बल्कि एक देश से दूसरे देश मौसम अनुकूलता के हिसाब से प्रवास करते हैं।
क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि गिद्धों के रहवास एवं प्रवास मार्ग के अध्ययन हेतु पन्ना टाइगर रिजर्व द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की मदद से गिद्धों की रेडियो टैगिंग का कार्य प्रारंभ किया गया है। जिसके अंतर्गत पन्ना टाइगर रिजर्व में 25 गिद्धों को रेडियो टैगिंग किया जावेगा। रेडियो टैगिंग कार्य को अनुमति भारत सरकार से प्राप्त हो चुकी है। रेडियो टैगिंग से गिद्धों के आस-पास के मार्ग एवं पन्ना लैंडस्केप में उनकी उपस्थिति आदि की जानकारी ज्ञात हो सकेगी, जिससे भविष्य में इनके प्रबंधन में मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में पन्ना टाइगर रिजर्व में 3 गिद्धों (एक रेड हेडेड एवं दो इण्डियन) की रेडियो टैगिंग की गई थी। ये तीनों ही पन्ना टाइगर रिजर्व के रहवासी गिद्ध थे। उस समय प्रवासी गिद्धों के रेडियो टैगिंग में सफलता नहीं मिल पाई थी। लगभग एक वर्ष के प्रयास के फलस्वरूप विगत 9 फरवरी को परिक्षेत्र गहरीघाट के झालर घास मैदान में यूरेशियन ग्रिफिन गिद्ध की रेडियो टैगिंग करने में सफलता मिली है।
देश में प्रवासी गिद्धों की पहली रेडियो टैगिंग
क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के मुताबिक यूरेशियन ग्रिफिन गिद्ध की 9 फरवरी को परिक्षेत्र गहरीघाट के झालर घास मैदान में हुई रेडियो टैगिंग सभवत: देश में प्रवासी गिद्धों की पहली रेडियो टैगिंग है। गिद्ध का बजन 7.820 कि.ग्रा. है। गिद्ध पर डाले गये रेडियो टैग का बजन सोलर चार्जर सहित 90 ग्राम है।रेडियो टैगिंग पश्चात गिद्ध को झालर मैदान में ही छोड़ा गया। इसके बाद 11 फरवरी 2022 को झालर घास मैदान में 5 गिद्धों की रेडियो टैगिंग की गई।जिसमें से एक हिमालयन ग्रिफिन गिद्ध है। जो प्रवासी गिद्ध है तथा शेष 4 रेड हेडेड गिद्ध हैं। प्रवासी गिद्धों की रेडियो टैगिंग से यह गिद्धों के आने-जाने के स्थान, मार्गों एवं अन्य गति वधियों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकेगी। गिद्धों की रेडियो टैगिंग के समय उत्तम कुमार शर्मा क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के पक्षी विशेषज्ञ एवं पन्ना टाइगर रिजर्व का जमीनी अमला उपस्थित रहा। क्षेत्र संचालक ने आशा व्यक्त की है कि भविष्य में रेडियो टैगिंग से प्राप्त जानकारी टाइगर रिजर्व ही नहीं बल्कि पूरे देश व विदेश में गिद्धों के प्रबंधन के लिए लाभकारी होगी।
गिद्धों पर मंडरा रहा विलुप्त होने का खतरा
आसमान में सबसे ऊंची उड़ान भरने वाले पक्षी गिद्धों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। प्रकृति के सबसे बेहतरीन इन सफाई कर्मियों की जहां भी मौजूदगी होती है वहां का पारिस्थितिकी तंत्र स्वच्छ व स्वस्थ रहता है। लेकिन प्रकृति और मानवता की सेवा में जुटे रहने वाले इन विशालकाय पक्षियों का वजूद मानवीय गलतियों के कारण संकट में है। गिद्धों के रहवास स्थलों के उजडऩे तथा मवेशियों के लिए दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का उपयोग करने से गिद्धों की संख्या तेजी से घटी है। पन्ना टाइगर रिजर्व जहां आज भी गिद्धों का नैसर्गिक रहवास है, वहां पर रेडियो टैगिंग के माध्यम से उनकी जीवन चर्या का अध्ययन निश्चित ही एक अनूठी पहल है। इससे विलुप्ति की कगार में पहुंच चुके गिद्धों की प्रजाति को बचाने में मदद मिलेगी।
बाघों की तरह गिद्धों की होगी मॉनिटरिंग
रेडियो टैगिंग के बाद गिद्ध को खुले मैदान में छोड़ते विशेषज्ञ साथ में पीटीआर के क्षेत्र संचालक। |
बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के बाद से पन्ना टाइगर रिजर्व अभिनव प्रयोगों और अनुसंधान कार्यों का केंद्र बन चुका है। रेडियो टैगिंग करके गिद्धों पर अनुसंधान होने से पन्ना टाइगर रिजर्व अब सिर्फ बाघों के लिए ही नहीं बल्कि गिद्धों के लिए भी जाना जाएगा। इस अभिनव प्रयोग से पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की तरह आसमान के बादशाह गिद्धों की भी मॉनिटरिंग हो सकेगी। जिससे गिद्धों की प्रजाति के अनुसंधान, विस्तार व प्रबंधन में काफी मदद मिलेगी। इस अनुसंधान कार्य से आशा की किरण जागी है कि विलुप्ति की कगार में पहुंच चुकी गिद्धों की प्रजाति पुन: अपनी पुरानी स्थिति को हासिल कर सकेगी।
गिद्धों को रास आ रही पन्ना टाइगर रिजर्व की आबोहवा
मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की आबोहवा गिद्धों के काफी अनुकूल है। वर्ष 2020-21 की गणना में यहां प्रदेश में सबसे ज्यादा 722 गिद्ध पाए गए जबकि जिले के उत्तर व दक्षिण वन मंडल को मिलाकर यहां कुल 1774 गिद्ध पाए गए थे। प्रदेश में गिद्धों की कुल संख्या 9408 पाई गई थी। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का कहना है कि आने वाले समय में यहां गिद्धों की संख्या में और बढ़ोतरी होने की पूरी संभावना है। पर्यावरण के सफाई कर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की पन्ना टाइगर रिजर्व में 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां यहां की स्थाई निवासी हैं जबकि 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। ठंड के मौसम में प्रवासी गिद्ध यहां आकर अंडे देते हैं और इसके बाद मई महीने तक अपने मूल निवास पर लौट जाते हैं।
पीटीआर का धुंधुवा सेहा गिद्धों का स्वर्ग
पन्ना टाइगर रिजर्व के धुंधुवा सेहा की चट्टान में धूप का आनंद लेते गिद्ध। |
पन्ना टाइगर रिजर्व का धुंधुवा सेहा न सिर्फ बाघों का प्रिय रहवास स्थल है अपितु यह सेहा गिद्धों का भी स्वर्ग कहा जाता है। ठंड के दिनों में इस गहरे सेहा की चट्टानों में बड़ी संख्या में गिद्ध धूप सेकते नजर आते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में प्रवासी गिद्ध भी होते हैं। कहा जाता है कि उड़ते हुए पक्षियों को कोई सरहद रोक नहीं सकती। वे अपनी मर्जी के मुताबिक उड़ान भरकर सैकड़ों किलोमीटर का लंबा सफर तय करते हुए उस जगह पहुंच जाते हैं जहां की आबोहवा उनके अनुकूल होती है। पक्षी प्रेमी पर्यटकों के मुताबिक इस सेहा के आसपास आसमान में हर समय गिद्ध मंडराते रहते हैं।यही वजह है कि यह सेहा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है, क्यों कि यहां वनराज के साथ-साथ आसमान के बादशाह गिद्धों के भी दर्शन हो जाते हैं।
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