Tuesday, April 30, 2019

हिन्दुस्तान की आवाज है न्याय योजना: राहुल गाँधी

  •   पन्ना जिले के अमानगंज में आयोजित हुई राहुल गाँधी की आम सभा
  •   आम सभा में उमड़ी भीड़ लगा रही थी चौकीदार चोर है के नारे
  •   व्यापम और बुन्देलखण्ड पैकेज में हुये भ्रष्टाचार के आरोपियों पर करें कार्यवाही
  •   कांग्रेस अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को मंच से ही दिये निर्देश





अरुण सिंह,पन्ना। न्याय योजना हिन्दुस्तान की आवाज है, इस योजना से गरीबों, किसानों और बेरोजगार युवकों की जिन्दगी में खुशहाली आयेगी। यह बात कांगे्रस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मंगलवार को खजुराहो लोकसभा क्षेत्र अन्तर्गत पन्ना जिले के अमानगंज में आयोजित विशाल आम सभा को संबोधित करते हुये कही। उन्होंने कहा कि मोदी जी अपने मन की बात बताते हैं, लेकिन मुझे अपने मन की बात नहीं बतानी क्योंकि मुझे देश की जनता के मन की बात में रूचि है। मैं आपके मन की बात सुनकर काम करता हूँ, न्याय योजना जनता की आवाज है। राहुल गाँधी ने कहा कि मैं आप लोगों के साथ लम्बा रिश्ता बनाना चाहता हूँ, मैं झूठ नहीं बोलूँगा, क्योंकि मैं यह अच्छी तरह से जानता हूँ कि झूठ से रिश्ता नहीं बनता।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुये कहा कि उन्होंने गरीबों के जेब से पैसा निकालकर 15 लोगों को 5 लाख 55 हजार करोड़ रू. दे दिया। गरीबों के खाते में पैसा नहीं डाला, लेकिन हम गरीबों को पैसा देना चाहते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने न्याय योजना का जिक्र करते हुये कहा कि हम 25 करोड़ गरीबों को हर साल 72 हजार रू. देंगे, यह पैसा घर की महिला के खाते में आयेगा। आपने कहा कि हम गरीबों, किसानों और मजदूरों की मदद करना चाहते हैं। नोट बंदी का जिक्र करते हुये राहुल गाँधी ने कहा कि इससे लाखों युवक बेरोजगार हो गये। नोट बंदी के बाद अंबानी, विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोग लाइन में नहीं लगे, बल्कि ईमानदार और गरीब लोग अपने पैसे के लिये कतार में खड़े रहे। हम न्याय योजना के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम करेंगे, इससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे और देश के करोड़ों बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा। कांगे्रस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री श्री मोदी पर कटाक्ष करते हुये कहा कि उन्होंने नोटबंदी के दौरान देश से यह कहा था कि यह काले धन के खिलाफ लड़ाई है। फिर काला धन वाले लाइन में क्यों नहीं खड़े दिखे, किसान, मजदूर और महिलायें क्यों खड़ी थीं। उन्होंने कहा कि दरअसल यह काले धन की लड़ाई नहीं बल्कि काले को सफेद बनाने की लड़ाई थी।

कर्ज न पटा पाने पर अब किसान नहीं जायेगा जेल





आम सभा को संबोधित करते हुये राहुल गाँधी ने कहा कि बुन्देलखण्ड का किसान 5-10 हजार रू. का लोन लेता है, यह कर्ज न चुका पाने पर उसे जेल में डाल दिया जाता है। लेकिन अनिल अंबानी, नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे चोरों को जेल में नहीं डालते। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद हिन्दुस्तान का कोई भी किसान कर्ज न अदा करने पर जेल में नहीं डाला जायेगा। उन्होंने कहा कि श्री मोदी देश के सबसे अमीर 15 भ्रष्ट लोगों की चौकीदारी करते हैं। इस दौरान आमसभा में उमड़ी भीड़ चौकीदार ही चोर है के नारे लगाती रही।

व्यापम और बुंदेलखंड पॅकेज के भ्रष्टाचारियों पर होगी कार्यवाही





बुन्देलखण्ड पैकेज और व्यापम मामले में हुये भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुये कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपियों पर कार्यवाही होगी। उन्होंने मंच पर मौजूद प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को निर्देश देते हुये कहा कि बुन्देलखण्ड पैकेज और व्यापम घोटाले के आरोपियों पर कार्यवाही करें। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड पैकेज के तहत संप्रग सर्कार द्वारा मध्यप्रदेश को 37 सौ करोड़ रुपये दिए गये थे,जिसका प्रदेश की तत्कालीन सरकार  द्वारा दुरूपयोग किया गया।   राहुल गाँधी की इस घोषणा का आम सभा में मौजूद लोगों ने तालियां बजाकर स्वागत किया। मालुम हो कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक राहुल गाँधी अपराह्न 4 बजे मंच पर पहुँचे और सभा को संबोधित करने के उपरान्त खजुराहो सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कविता सिंह  को जिताने की अपील भी की।

शिवराज दें 15 साल का हिसाब: कमलनाथ


कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी के साथ हेलीकॉप्टर से अमानगंज पहुँचे प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आम सभा को संबोधित करते हुये कहा कि हमने जो वचन दिया था, उसे पूरा किया है। पूरे 15 साल तक सत्ता में रही भाजपा ने ऐसा प्रदेश में सौंपा था जो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और किसानों की आत्म हत्या के मामले में नम्बर वन था। 15 साल तक भाजपा ने गरीबों और किसानों की पुकार नहीं सुनी, लेकिन मैं आपको निराश नहीं करूँगा। 120 दिन में मुझे 75 दिन मिले हैं, इन 75 दिनों में हमने 21 लाख किसानों का कर्ज माफ किया है। इन 75 दिनों में हमने अपनी नियत और नीति का परिचय दिया है। हमने अपना वचन निभाया और अब शिवराज ङ्क्षसह भी 15 साल का हिसाब दें, 75 दिन का हिसाब मैं दे रहा हूँ। आम सभा में कांग्रेस प्रत्याशी के अलावा पन्ना, छतरपुर और कटनी जिले के कांग्रेस नेता, पदाधिकारी व कार्यकर्ता बड़ी संख्या में मौजूद रहे।
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Monday, April 29, 2019

भीषण जल संकट से बेहाल है बुन्देलखण्ड का पन्ना जिला

  •   पानी के लिए भटकते बेजुवान जानवर मर रहे  प्यासे
  •   अप्रैल में ये है हाल तो मई में हालात होंगे और भयावह


 मीलों दूर से सिर में पानी ढोकर लाती ग्रामीण महिलायें।

अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का पन्ना जिला भीषण जल संकट से बेहाल है। जल संकट से ग्रसित ग्रामों में पेयजल की व्यवस्था करने के लिए ग्रामीणों को जहां  भारी मशक्कत करनी पड़ रही  है वहीं  बेजुवान पशुओं की जिन्दगी संकट में है। पानी की तलाश में मवेशी दूर-दूर तक भटकते है और पानी न मिलने पर प्यास के मारे तड़प-तड़प कर मौत के आगोश में समा जाते हैं । जिला मुख्यालय पन्ना से 15 किमी. के दायरे में आने वाले एक दर्जन से भी अधिक गांव जल संकट की चपेट में हैं । इन ग्रामों में अब दो सौ से भी अधिक पशुओं की मौत हो  चुकी है। सिर्फ तीन ग्रामों खजुरी कुडार, सकरिया व बहेरा में ही  बड़ी संख्या में  गौ-वंशीय पशु पानी के अभाव में काल कवलित हो  चुके हैं । 

उल्लेखनीय है कि राजाशाही  जमाने में यह इलाका पानी, पाथर और लाबर (हीरा) के लिए प्रसिद्ध रहा है। तत्कालीन बुन्देला नरेशों ने पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ जल संरचनाओं के निर्माण में विशेष रूचि लेते हुए यहां  पर अनेकों जलाशयों व बावडिय़ों का निर्माण कराया था। हर 2-4 किमी. में जल श्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई थी। लेकिन राजाशाही  खत्म होने के साथ ही  पर्यावरण के विनाश का सिलसिला जो शुरू      हुआ तो वह आज भी अनवरत जारी है। इसी के साथ प्राचीन जलाशयों व प्राकृतिक जल संरचनाओं की उपेक्षा तथा उनके जल गृहण क्षेत्रों में अतिक्रमण भी शुरू हुआ, जिससे जीवनदायी तालाब व अन्य जल श्रोत भी दम तोडऩे लगे। परिणामस्वरूप पानीदार कहलाने वाला यह इलाका अब बूँद-बूँद पानी के लिए तरस रहा  है।
पन्ना से महज 12 किमी. दूर आदिवासी बाहुल्य खजुरी कुड़ार गांव के हालात अप्रैल के महीने में ही  चिन्ता में डालने वाले हैं । इस गांव में पानी की कमी के चलते ग्रामीणों को गांव से तकरीबन 2 किमी. दूर जंगल में स्थित चरही नामक स्थान से पीने के लिए पानी लाना पड़ता है। यह स्थान पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। जहां  रिसकर एक जगह पहाड़ों का पानी एकत्र हो  जाता है। यही  प्राकृतिक जल श्रोत इस गांव की जिन्दगी का आधार बना हुआ है। चूंकि गांव के मवेशी इस दुर्गम जगह पर नहीं  पहुँच सकते, इन हालातों में पानी न मिलने के कारण उनकी मौत है रही  है। समाजसेवी संस्था समर्थन के संभागीय समन्वयक ज्ञानेन्द्र तिवारी बताते हैं  कि खजुरी कुड़ार गांव में अब तक पानी न मिलने से दर्जनों  मवेशियों की मौत हो  चुकी है। इंसान तो किसी तरह नालों व झिरियों से पानी लाकर अपने जीवन की रक्षा कर रहा  है, लेकिन बेजुवान पशु अपनी पीड़ा और तकलीफ किसे सुनायें। हर मंगलवार को इंसानों की जन सुनवाई होती है, जिले के प्रशासनिक मुखिया उनकी समस्यायें सुनते व उनका निराकरण करते हैं , लेकिन मूक पशुओं की समस्याओं के निदान हेतु इस तरह की कहीं  कोई व्यवस्था           नहीं  है, जिससे वे असमय ही  काल कवलित हो  रहे  हैं ।

तेजी से सूख रहे  कुंआ और तालाब

बारिश कम होने के कारण कुंआ और तालाब जहां  सूखने  लगे हैं  वहीं  नदी व नालों में भी धूल उड़ रही  है। गिनती के ही  कुछ प्राचीन बड़े तालाब हैं  जिनमें नाम मात्र को पानी बचा है, ज्यादातर तालाब तो मैदान में तब्दील हो  चुके हैं । जल स्तर तेजी के साथ नीचे खिसकने के कारण ज्यादातर कुंए जहां  सूख चुके हैं जिनमें थोड़ा बहुत पानी तलहटी में है  वहां  मटमैला हो  जाता है। ग्राम पंचायत जनवार के ग्राम बहेरा की यही  दशा है , यहां  पर पेयजल के लिए सिर्फ एक कुंआ है जिसका पानी कीचडय़ुक्त हो  गया है।  ऐसी स्थिति में मवेशी प्यासे मर रहे हैं । कमोवेश यही  स्थिति सकरिया की भी है।

बफरजोन के जंगल में पानी की त्राहि - त्राहि


जंगल में पानी की तलाश में भटकते वन्यप्राणी। 

जिले के ग्रामीण अंचलों में पेयजल की जहां  गंभीर समस्या है वहीं  वन क्षेत्रों में भी पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। जंगली नालों व नदियों के सूख जाने से वन्य जीव पानी के लिए भटकते फिरते हैं । पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में भी कई इलाके जल संकट की चपेट में हैं । गनीमत है यहां  से होकर केन नदी गुजरती है जिसमें अभी भी पर्याप्त पानी है लेकिन केन नदी से दूर टाईगर रिजर्व के हिनौता प्लेटों में वन्यजीवों को पानी के लिए दूर-दूर तक भटकना पड़ रहा  है। आश्चर्य की बात तो यह है कि पार्क प्रबन्धन ने केन नदी के आस-पास टूरिस्ट जोन में जहां  पर्यटकों का आना-जाना है वहां  पर कुछ गड्ढे खुदवाकर टैंकरों से पानी भरवाया गया है लेकिन जहां पानी की भीषण कमी है वहां  कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं  की गई। जिससे वन्य प्राणी आबादी क्षेत्र की ओर जाने को विवश हो  रहे  हैं ।

Thursday, April 25, 2019

पर्यावरण, तालाब और नदियां नहीं बने चुनावी मुद्दा

  •   बुन्देलखण्ड में खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के प्राचीन जलाशयों का मिट रहा वजूद
  •   रेत के अवैध उत्खनन से छलनी हो रहा नदियों का सीना
  •   अधाधुन्ध कटाई से हरी-भरी पहाडिय़ां व जंगल हुये वीरान
  •   तापमान बढऩे और भीषण जल संकट से हर कोई हलाकान



 केन नदी में हो रहे रेत के अवैध उत्खनन का नजारा। ( फाइल फोटो ) 


अरुण सिंह,पन्ना। प्रकृति और पर्यावरण के साथ हो रहा खिलवाड़ मौजूदा समय सबसे बड़ी समस्या है। बढ़ते प्रदूषण और रेत के बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध उत्खनन से नदियों का स्वास्थ्य जहां बिगड़ रहा है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी प्रकट होने लगे हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के शहरी व ग्रामीण अंचलों में स्थित जलाशय जो कुछ दशकों पूर्व तक लोगों की जिन्दगी के आधार थे, उनका वजूद भी मिट रहा है। आबादी बढऩे के साथ ही जंगलों को भी उजाडऩे का सिलसिला शुरू हो चुका है, जिससे पेड़-पौधों से आच्छादित रहने वाले इलाके भी वीरान नजर आने लगे हैं। बड़े पैमाने पर वनों की हो रही अवैध कटाई व बिगड़ते पर्यावरण के चलते समूचे बुन्देलखण्ड में जल संकट जहां गम्भीर हुआ है, वहीं तापमान का पारा अप्रैल के महीने में ही 45 डिग्री सेल्सियस के आस-पास जा पहुँचा है। मई में तपिश बढऩे पर पारा 48 डिग्री तक पहुँच जाये तो कोई आश्चर्य नहीं। फिर भी प्रकृति से मिलने वाले खतरों के इन संकेतों से हम सबक लेने को तैयार नहीं हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रमुख राजनीतिक दलों के एजेण्डे व घोषणा पत्र में पर्यावरण, तालाब व नदियों के संरक्षण का कोई जिक्र नहीं है।

भीषण जल संकट के चलते नाले का दूषित पानी ले जातीं ग्रामीण महिलायें।
खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले बुन्देलखण्ड के पन्ना जिले को शान्ति का टापू कहा जाता है, लेकिन शान्ति के इस टापू की सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक अस्मिता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जल, जंगल व जमीन के लुटेरों की व्यवसायिक निगाहें यहां गड़ गई हैं, जो यहां की अकूत वन व खनिज सम्पदा का दोहन कर मालामाल होना चाहते हैं। इस अंचल के लोगों की खुशहाली के लिये प्राकृतिक समृद्धि के इस टापू को बचाना और उसका संरक्षण जरूरी है। गौरतलब है कि वन व खनिज सम्पदा से समृद्ध पन्ना जिले के समग्र विकास व यहां के लोगों की खुशहाली और समृद्धि के लिये किसी भी राजनैतिक दल के नेताओं ने कभी कोई रूचि नहीं ली। परिणामस्वरूप आजादी के 7 दशक बाद भी यह जिला जस का तस है। अकूत वन सम्पदा व बेशकीमती रत्न हीरा की उपलब्धता के बावजूद यहां के वाशिंदे  मूलभूत और बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहे हैं। यहां की खनिज व वन सम्पदा पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का कब्जा है जबकि अधिसंख्य आबादी गरीब और फटेहाल है।

 स्वच्छ नदियों में शुमार केन का  बिगड़ रहा स्वास्थ्य


अमानगंज के निकट केन की सहायक नदी मिढ़ासन की दुर्दशा का दृश्य।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवन रेखा कही जाने वाली देश की स्वच्छ नदियों में शुमार सदानीरा केन नदी का स्वास्थ्य अब बिगड़ रहा है। कुछ दशक पूर्व तक जिस नदी में अविरल जल प्रवाह देखने को मिलता था, वह अप्रैल के महीने में ही जगह-जगह सूखी और बेजान नजर आ रही है। केन नदी को सदानीरा बनाने वाली उसकी अधिकांश सहायक नदियां मृत प्राय हो चुकी हैं। सबसे बुरी स्थिति मिढ़ासन नदी की  है, जिसे पुनर्जीवित करने के लिए प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विदा उठाया था। इसके लिए उन्होंने पन्ना जिले के गढ़ी पड़रिया गांव में भव्य कार्यक्रम आयोजित कराकर पूरे विधि विधान के साथ पुनर्जीवन कार्य का शुभारम्भ किया था। इस महत कार्य में तक़रीबन 27 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन नदी की हालत सुधरने के बजाय और भी दयनीय हो गई। जाहिर है कि स्वीकृत धनराशि का सही ढंग से उपयोग नहीं हुआ। मानवीय दखल बढऩे, जलागम क्षेत्रों में बांधों का निर्माण होने, भारी भरकम मशीनों से अनियंत्रित उत्खनन, वनों की कटाई, शहरीकरण और बदलते भू उपयोग के चलते भी नदियों का प्राकृतिक स्वरुप बिगड़ा है तथा जल प्रवाह बाधित हुआ हैं। ग्रामीणों के मुताबिक केन नदी का जल प्रवाह लगातार घटता जा रहा है, जिसके कारण केन किनारे स्थित ग्रामों में जल स्तर नीचे खिसक रहा है, कुँये और हैण्डपम्प सूखने लगे हैं। केन नदी के सूखने से मछवारों, मल्लाहों तथा नदी तट पर खेती करने वाले किसानों की जिन्दगी प्रभावित हुई है।

बाघों के रहवास पर भी मंडराया संकट

सदियों से बाघों का प्रिय रहवास रहा पन्ना का जंगल वैसे भी बढ़ती आबादी के दबाव में तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी है काफी हद तक सुरक्षित है। लेकिन अब इसे भी उजाडऩे की पूरी तैयारी की जा रही है। मालुम हो कि सम्पूर्ण विन्ध्यांचल क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 1.5 लाख वर्ग किमी है जो पश्चिम दिशा में रणथम्भोर टाईगर रिजर्व एवं पूर्व दिशा में बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व को छूता है। इन दोनों के बीच में विन्ध्य क्षेत्र के शुष्क वनों के एक मात्र बाघ शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये बाघ पुनर्स्थापना  योजना शुरू हुई। जिसे चमत्कारिक सफलता मिली और बाघ विहीन यहां का जंगल फिर से आबाद हो गया। लेकिन केन-बेतवा लिंक  परियोजना से बाघों के आबाद इस वन क्षेत्र पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

पुराने तालाबों का हो संरक्षण और जीर्णोद्धार


 पन्ना शहर के निकट स्थित प्राचीन कमलाबाई तालाब।

पन्ना जिले के शहरी व ग्रामीण अंचलों के राजाशाही जमाने के सैकड़ों तालाब हैं जो समुचित देखरेख के अभाव व अतिक्रमण के चलते अपना वजूद खोते जा रहे हैं। किसी समय जीवन का आधार रहे ये प्राचीन तालाब उपेक्षा के कारण अनुपयोगी होते जा रहे हैं, जिन्हें उपयोगी बनाने तथा जल स्तर कायम रखने के लिये इनका संरक्षण और जीर्णोद्धार बेहद जरूरी है। जिला मुख्यालय पन्ना में ही प्राचीन जलाशयों की पूरी श्रृंखला है, मौजूदा समय भी इन्हीं तालाबों से ही नगर में पेयजल की आपूॢत होती है। लेकिन अधिकांश तालाबों में बेजा अतिक्रमण हो चुका है, जिससे उनका वजूद संकट में है। शहर के धरमसागर, बेनीसागर, लोकपाल सागर व निरपत सागर तालाब में तेजी से अतिक्रमण हो रहा है। शहर के अन्य दूसरे तालाब भी अतिक्रमण की चपेट में हैं तथा उनका पानी दूषित और जहरीला हो रहा है। कमोवेश यही स्थिति गुनौर के गुनूसागर, महेबा के प्राचीन तालाब सहित ग्रामीण अंचलों में स्थित अन्य तालाबों की भी है, जिनका जीर्णोद्धार कराकर उन्हें जनोपयोगी बनाने की दिशा में पहल होनी चाहिये।
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दैनिक जागरण में प्रकाशित रिपोर्ट

Monday, April 22, 2019

जीवनदायिनी केन नदी की अप्रैल में ही टूट गई जलधार

  •  केन किनारे के ग्रामों में भी पेयजल संकट गहराया
  •  जल, जंगल और जमीन को बचाने लडऩी पड़ेगी लड़ाई


पन्ना जिले से होकर प्रवाहित जीवनदायिनी के नदी अप्रैल के महीने में ही नजर आ रही  रूखी-सूखी। 

अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवन रेखा कही जाने वाली केन नदी अप्रैल के महीने में ही दम तोड़ रही है। केन की जलधार टूट चुकी है तथा प्रवाह क्षेत्र में चट्टानें नजर आ रही हैं। मालुम हो कि केन प्रदेश की इकलौती प्रदूषणमुक्त नदी है जो घने जंगलों से होकर प्रवाहित होती है। बीते कुछ वर्षों से इस नदी में भारी भरकम मशीनों द्वारा व्यापक पैमाने पर रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है जिससे जलीय जीव-जन्तु व वनस्पतियां जहां विलुप्त हो रही हैं वहीं पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुँची है। परिणामस्वरूप नदी किनारे के ग्रामों में भी गर्मी के मौसम में हर साल भीषण जल संकट का सामना करना पड़ता है। यदि पन्ना जिले के लोग समय रहते नहीं चेते और जल, जंगल व जमीन की सुरक्षा नहीं की तो यहां की हरी-भरी रत्नगर्भा धरती यदि वीरान हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है। अवैध उत्खनन व चौतरफा लूट के चलते सदानीरा केन नदी की जल धार अप्रैल के महीने में ही टूट गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि केन किनारे के ग्रामों में भी जल संकट ने दस्तक दे दी है।
उल्लेखनीय है कि केन नदी पर बने रनगवां बांध, गंगऊ वियर व बरियारपुर वियर आज भी सिंचाई विभाग उ.प्र. के अधीन हैं। इन बांधों पर केन के पानी को रोककर पड़ोसी राज्य उ.प्र. के बांदा जिले में न सिर्फ लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई होती है अपितु गर्मी के मौसम में इन बांधों के पानी को नहर के माध्यम से ले जाकर वहां के तालाबों को भी लबालब भर दिया जाता है। जिससे गर्मी के मौसम में जनता व मवेशियों को पानी के लिये हैरान व परेशान न होना पड़े। पन्ना जिले के लोगों को इस बात पर ऐतराज नहीं है कि पड़ोसी जिलों व प्रान्त के लोग खुशहाल हैं, उन्हें ऐतराज इस बात पर है कि जिस पानी पर पहला हक उनका होना चाहिये, उसको उपयोग करने तक की उन्हें इजाजत नहीं है। यह घोर अन्याय ही नहीं अपितु अमानवीय भी है, क्योंकि इस जिले के लोग पेयजल के लिये भटकते फिर रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि बीते सौ सालों से केन नदी के पानी को पन्ना जिले से लूटा जा रहा है, फिर भी इस जिले के लोग भूखे-प्यासे और फटेहाल रहकर भी इसे बर्दाश्त करते आ रहे हैं। अब तो पन्ना जिले को पूरी तरह से उजाडऩे की ही तैयारी को तेजी के साथ अमली जामा पहनाया जा रहा है। केन नदी का पानी बेतवा में ले जाने के लिये जिस लिंक परियोजना की चर्चा इन दिनों जोरों पर है, उसके मूर्त रूप लेने पर न सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा जो बाघों का रहवास है, वह डूब जायेगा अपितु केन घडिय़ाल अभ्यारण्य का वजूद भी मिट जायेगा। इतना ही नहीं बांध के नीचे केन नदी का प्रवाह थम जाने से इस प्रवाह क्षेत्र में बसे ग्रामों के रहवासियों की जिन्दगी संकट से घिर जायेगी।

पन्ना के ग्रामीण अंचलों में जल संकट हुआ  विकराल

प्यास बुझाने मीलों दूर से ढोकर पानी लाते ग्रामीण।

जिले के ग्रामीण अंचलों में पेयजल संकट अब विकराल रूप ले चुका है । नदी, नालों व अन्य जल श्रोतों के सूख जाने से हालात और भी बिगड़ रहे  हैं । जिले की आधे से भी ज्यादा नल-जल योजनायें जहां  ठप्प पड़ी हैं   वहीँ  हैण्डपम्प भी पानी की जगह गर्म हवा उगल रहे  हैं । जल स्तर लगातार नीचे खिसकने से कुंआ भी जवाब देने लगे हैं। इन परिस्थितियों में जिले के एक सैकड़ा से भी अधिक ग्रामों में पेयजल के लिये कोहराम मचा हुआ है । परिवहन के जरिये भी इन ग्रामों में पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था अभी तक नहीं  की जा सकी है । फलस्वरूप ग्रामीणों को मीलों लम्बा सफर तय कर पीने के पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है । इसके लिये ग्रामवासियों को रतजगा तक करना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है  कि गर्मी के आगाज के साथ ही  जिले में पेयजल संकट ने दस्तक दे दी थी। लेकिन प्रभावी रणनीति व कार्य योजना के अभाव में इस भीषण जल संकट से निपटने के लिये वैकल्पिक व्यवस्था नहीं  की जा सकी। जिसका खामियाजा अब इस भीषण तपिश भरी गर्मी में ग्रामवासी भुगत रहे  हैं । जब अप्रैल के महीने में यह  नजारा देखने को मिल रहा है  तो मई में जब तपिश और बढ़ेगी तब उस समय क्या होगा यह सोचकर लोग हैरान व परेशान हैं ?

पन्ना शहर के निकट स्थित गौर के चौपड़ा की झिरिया सूखी


पन्ना शहर के निकट प्रणामी धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थल गौर के चौपड़ा स्थित झिरिया जिसमें गर्मी के दिनों में भी कंचन जल भरा रहता था इस साल अप्रैल के महीने में ही सूख गई है जिससे पता चलता है कि जल संकट कितना गंभीर और भयावह है। मालुम हो कि इस झिरिया के औषधीय गुणों से युक्त जल को लेने के लिये दूर-दूर से लोग आते हैं। प्रतिदिन सैकड़ो डिब्बा पानी हर सीजन में लोग ले जाते हैं लेकिन इस साल पानी से लवरेज रहने वाली यह प्राकृतिक झिरिया अप्रैल में ही जवाब दे दिया। पुराने बुजुर्गों का कहना है कि गौर के चौपड़ा की यह झिरिया कभी नहीं सूखती थी। झिरिया का सूखना इस बात का संकेत है कि प्रकृति और पर्यावरण के साथ हो रहा खिलवाड़ आने वाले समय में अनगिनत समस्याओं को जन्म देगा।
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Saturday, April 20, 2019

गाँव-गाँव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा



  •   खजुराहो लोकसभा क्षेत्र अन्तर्गत पन्ना जिले के ग्रामों में गूँज रहा  यह नारा
  •   बुन्देलखण्ड के इस इलाके में बेरोजगारी, सूखा, पलायन और जल संकट की समस्या गम्भीर




अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के अधिकांश इलाकों में बेरोजगारी, सूखा, पलायन और जल संकट गम्भीर समस्या है जिसके निराकरण हेतु किसी भी राजनैतिक दल द्वारा कोई भी सार्थक पहल व प्रयास नहीं हुआ, जिससे यहां के वाङ्क्षशदों को समस्याओं से जूझना नियति बन चुकी है। गर्मी के इस मौसम में पानी के लिये भटकने को मजबूर पन्ना जिले के रैपुरा क्षेत्र में तकरीबन 10 ग्रामों के लोगों ने एक स्वर में यह कहना शुरू कर दिया है कि हमें जल संकट से निजात दिलाया जाये। इस इलाके के इन ग्रामों में यह नारा गूँज रहा है, गाँव-गाँव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले की तीनों विधानसभा सीटें खजुराहो लोकसभा के अन्तर्गत आती हैं। मौजूदा समय लोकसभा चुनाव की सरगर्मी उफान पर है और सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के प्रत्याशी येन केन प्रकारेण वोट हथियाकर चुनावी वैतरणी को पार करने की जुगत में जुटे हुये हैं। चुनाव में आम जनता से जुड़े मुद्दों व समस्याओं पर चर्चा करने के बजाय राजनीतिक दलों के प्रत्याशी गैर जरूरी बातों जिनसे आम जनता को कोई लेना देना नहीं है, उन बातों और मुद्दों पर उलझाने के प्रयास किये जा रहे हैं। ताकि उन्हें ज्वलंत समस्याओं और तीखे सवालों का सामना न करना पड़े। राजनैतिक दलों के इस बेरुखी और असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के हो रहे प्रयासों को देख जनता भी चौकन्नी हो गई है। गाँव-गाँव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा नारे को बुलन्द करते हुये ग्रामीणों ने मिलकर जल जीवन संगठन गठित किया है।
मालुम हो कि पन्ना जिले में देहरादून का लोका विज्ञान संस्थान लोगों में जल संरक्षण के प्रति जागरूकता लाने के लिये अभियान चला रहा है, जिसके तहत हर गाँव में ग्राम स्वराज समितियां गठित की गई हैं। इनमें से तीन ग्राम पंचायतों, फतेपुर, बीरमपुरा और बिलपुरा की समितियों के प्रतिनिधियों ने पिछले दिनों सिहारन गाँव में एक बैठक की थी। इसी बैठक में राजनैतिक दलों के उम्मीदवारों पर दबाव बनाने के लिये गाँव-गाँव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा अभियान चलाने का फैसला हुआ। ग्राम अलोनी की ग्राम स्वराज समिति के अध्यक्ष खिलावन सिंह  ने बताया कि बैठक में जल संकट पर चर्चा की गई। सभी ने यह तय किया है कि चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधियों व राजनैतिक दलों में दबाव बनाने के लिये इलाके के ग्रामों में अभियान चलाया जाये। इस अभियान के जरिये तालाबों के पुनर्जीवन और जल संकट की ओर राजनैतिक दलों का ध्यान खींचना चाहते हैं। जल संकट की गम्भीर समस्या को लेकर राजनैतिक दलों को ज्ञापन सौंपे जाने की भी योजना बनाई गई है।

ग्रामीण नाले का पानी पीने को मजबूर



जल संकट की गम्भीर हो चुकी समस्या का जिक्र करते हुये तिलकरानी बताती हैं कि पानी की किल्लत ने महिलाओं की जिन्दगी को समस्याओं से भर दिया है। हालात यह हैं कि महिलाओं और किशोरियों का अधिकांश समय पानी के इंतजाम में ही गुजर जाता है। नेता चुनाव के समय वोट माँगने आते हैं, आश्वासन भी देते हैं लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद करते कुछ भी नहीं हैं। ग्रामीणों ने बताया कि रैपुरा क्षेत्र में कुछ गाँव तो ऐसे हैं जहां लोगों को गाँव से एक-डेढ़ किमी दूर स्थित नाले का पानी पीने के लिये लाना पड़ता है। ग्रामीणों ने केन-बेतवा लिंक  परियोजना का विरोध करते हुये कहा कि हमारे खेतों को पानी नहीं मिल रहा और हम लोग पेयजल के लिये यहां-वहां भटकते फिरते हैं फिर भी यहां का पानी दूसरी जगह ले जाने की योजना बनाई जा रही है, जो हमें मंजूर नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि बड़े बांध बनाने के बजाय गाँव-गाँव छोटे तालाबों का निर्माण कराया जाना चाहिये।
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Friday, April 19, 2019

मैं नहीं छोडूँगा मध्य प्रदेश, लडूँगा किसानों की लड़ाई: शिवराज



  •   भाजपा प्रत्याशी वी.डी. शर्मा के नामांकन रैली में पार्टी के दिग्गजों का रहा जमावड़ा
  •   पन्ना के पॉलीटेक्निक मैदान में आयोजित हुई आमसभा
  •   क्षेत्रीय नेताओं में उपजे असंतोष और विरोध को दबाने दिखाई एकजुटता



अरुण सिंह,पन्ना। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  चौहान ने गुरूवार को पन्ना पॉलीटेक्निक मैदान में आयोजित चुनावी सभा को संबोधित करते हुये कहा कि मैं म.प्र. छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा, यहीं रहकर किसानों की लड़ाई लडूँगा और उन्हें उनका हक दिलाऊँगा। उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी पर तीखा हमला किया और कहा कि वे झूठ बोलते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष कहते हैं कि म.प्र. में हमने किसानों का कर्जा माफ कर दिया है और मुख्यमंत्री कमलनाथ कह रहे हैं कि आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है इसलिये अब चुनाव बाद देखूँगा। पूर्व मुख्यमंत्री ने चुटकी लेते हुये कहा कि राहुल गाँधी ने कहा था कि 10 दिन में किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री बदल दूँगा, इस तरह अब तक तो 12 मुख्यमंत्री बदल जाने चाहिये थे।
उल्लेखनीय है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र की सर्वाधिक प्रतिष्ठित लोकसभा सीट से भाजपा ने मुरैना निवासी वी.डी. शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। इनके नाम की घोषणा होने के साथ ही लोकसभा क्षेत्र के छतरपुर, पन्ना व कटनी जिले के क्षेत्रीय भाजपा नेताओं में विरोध और असंतोष के स्वर तेज हो गये। इस उपजे असंतोष और तेज होते विरोध को शान्त करने के लिये रणनीति के तहत आज नामांकन रैली के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा के कई दिग्गजों का पन्ना में जमावड़ा रहा। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे नामांकन रैली के एक दिन पूर्व ही हेलीकाप्टर से पन्ना पहुँच गये थे और असंतुष्टों को मनाने की मुहिम में जुटे हुये थे। नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन आज भाजपा ने शक्ति प्रदर्शन करते हुये एकजुटता दिखाई ताकि विरोध और असंतोष की खबरों से बिगड़ते माहौल को बदला जा सके। नामांकन रैली से पूर्व दोपहर 12.30 बजे आयोजित आमसभा में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान सहित भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे व प्रभात झा, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, दमोह सांसद प्रहलाद पटेल, पूर्व मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेले, श्रीमति ललिता यादव, संजय पाठक, बृजेन्द्र प्रताप सिंह के अलावा लोकसभा क्षेत्र के सभी भाजपा विधायक व असंतुष्ट नेता शामिल रहे।

आमसभा में कांग्रेस के प्रति आक्रामक रुख अपनाते हुये पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पुलवामा में आतंकवादी हमला हुआ तो सेना ने बहादुरी दिखाई और पाकिस्तान के भीतर एयर स्ट्राइक करके आतंकवादियों की लाशों के ढेर लगा दिया। लेकिन सेना की बहादुरी का भी कुंठित कांगे्रसी सबूत मांगते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि लाशें गिनने का कार्य युद्धवीर नहीं करते। प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्पष्ट कह दिया है कि यह पहले वाला भारत नहीं है, आतंकवादी कहीं भी छिप जायें घुसकर मारेंगे। शिवराज सिंह ने प्रदेश सरकार की वादा खिलाफी और युवाओं के साथ हो रहे अन्याय को लेकर भी सवाल उठाये और कहा कि युवा ढोल बजाकर मुख्यमंत्री कमलनाथ को छिन्दवाड़ा तक छोड़कर आयेंगे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बताया फकीर

आमसभा को संबोधित करते हुये भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फकीर बताया और कहा कि देश की खुशहाली, समृद्धि और आतंकवाद के खात्मे हेतु मोदी का प्रधानमंत्री बनना जरूरी है। इस मौके पर भाजपा नेता प्रभात झा ने सवाल किया कि लोकसभा का यह चुनाव क्यों हो रहा है? सवाल का जवाब भी उन्होंने दिया, नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिये, इसलिये प्रत्याशी कोई भी हो हमें उसको जिताना है। आमसभा को नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, सुश्री कुसुम सिंह महदेले सहित अन्य लोगों ने भी संबोधित किया।

Tuesday, April 16, 2019

पन्ना में बाघ पुनर्स्थापना की वर्षगांठ पर निकली जागरूकता रैली



  •   हर साल धूमधाम से मनाया जाता है पहले शावक का जन्म दिन
  •   बाघ व पर्यावरण  संरक्षण को लेकर स्कूली बच्चों में दिखा उत्साह 



छत्रसाल पार्क से  निकाली गई रैली को हरी झण्डी दिखाते उप संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व ।   
 
अरुण सिंह,पन्ना। पूरी दुनिया के लिए एक मिशाल बन चुकी पन्ना टाईगर रिजर्व की बाघ पुनर्स्थापना योजना की 9 वीं  वर्षगांठ पर आज छत्रसाल पार्क से जागरूकता रैली निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में विभिन्न स्कूलों के नन्हे मुन्ने बच्चों ने उत्साह के साथ भाग लिया। बाघ और पर्यावरण संरक्षण के नारे लिखी तख्तियां हाँथ में लेकर बच्चे जब शहर की सड़कों से निकले तो इस अदभुत नज़ारे ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया। हम बच्चों की यही तमन्ना, करना है बाघों की रक्षा जैसे नारों से सड़कें गूंज रही थीं। सुबह लगभग 7 बजे छत्रसाल पार्क के सामने स्कूली बच्चों का जमावड़ा लग्न शुरू हो गया था। पन्ना में जन्मे बाघों के चित्रों वाली तख्तियां लेकर बच्चे कतार में खड़े थे, पीछे पार्क का मैदानी अमला और कर्मचारी नजर आ रहे थे। ठीक साढ़े सात बजे पन्ना टाइगर रिज़र्व के उप संचालक जरांडे ईश्वर रामहरि ने हरी झंडी दिखाकर रैली को रवाना किया।
     

उल्लेखनीय है कि प्रदेश का पन्ना टाईगर रिजर्व प्रबंधकीय कुव्यवस्था और अवैध शिकार के चलते वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो  गया था। बाघों का यहाँ  से पूरी तरह खात्मा हो  जाने पर राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना टाईगर रिजर्व की खासी किरकिरी हुई  थी। बाघों के उजड़ चुके संसार को यहां  पर फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा  व बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व से बाघिन व पेंच टाईगर रिजर्व से एक नर बाघ लाया गया। बाघिन टी-1 ने पन्ना आकर 16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। इस ऐतिहासिक व अविस्मरणीय सफलता को यादगार बनाने के लिए 16 अप्रैल को हर साल प्रथम बाघ शावक का जन्म धूमधाम से मनाये जाने की परम्परा शुरू हुई ताकि जनभागीदारी से बाघों के संरक्षण को बल मिले। इसके बड़े ही  उत्साहजनक परिणाम भी देखने को मिले, जो लोग पन्ना टाईगर रिजर्व की आलोचना करते थे वे भी पर्यावरण संरक्षण व बाघों के वजूद को बचाये रखने की बात करने लगे। वन्यजीव प्रेमी व पर्यावरण से जुड़े लोगों का भी यह मानना है  कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से न तो जंगल की सुरक्षा हो  सकती है  और न ही  वन्य प्राणियों का संरक्षण किया जा सकता है । इसके लिए जनता की भागीदारी बेहद जरूरी है । इस बात को ध्यान में रखकर आम जनता की भागीदारी बाघ संरक्षण में सुनिश्चित करने के लिए पन्ना टाईगर रिजर्व के पूर्व क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति जिनके अथक प्रयासों से बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारित सफलता प्राप्त हुई । उन्होंने  16 अप्रैल को प्रथम बाघ शावक का जन्म दिन उत्सव की तरह मनाने की परम्परा शुरू की। इससे यहां  पर जन समर्थन से बाघ संरक्षण के नारे को जहां  प्रोत्साहन मिला वहीँ  सैकड़ों लोग इस अभियान से जुडऩे लगे। बाघ का जन्म दिन मनाने की श्री मूर्ति द्वारा शुरू की गई यह अनूठी परंपरा अनवरत जारी है। हर साल 16 अप्रैल को पन्ना में जन्मे प्रथम बाघ शावक का जन्म दिन बड़े ही धूमधाम के साथ केक काटकर उत्सव की तरह मनाया जाता है।

खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के अनुत्तरित सवाल और मुद्दे



  • हर चुनाव में उठते हैं वही मुद्दे फिर भी हालात जस के तस 
  • कब खत्म होगा जनता को बरगलाने और भ्रमित करने  का सिलसिला 



।। अरुण सिंह, पन्ना ।। 
हर पांच साल में लोकसभा के चुनाव होते हैं जिसमें राजनैतिक दल व प्रत्याशी बड़े - बड़े दावे और वायदे करते हैं लेकिन चुनाव खत्म होते ही सब भूल जाते हैं. यह सिलसिला अनवरत रूप से जारी है, यही वजह है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के इस अंचल में दशकों  पूर्व जो मुद्दे उठते रहे हैं वे आज भी कायम हैं। बुन्देलखण्ड  का खजुराहो लोक सभा क्षेत्र तीन जिलों की आठ विधान सभा सीटों से मिलकर बना है।जिनमे छतरपुर की दो, पन्ना की तीन और कटनी की तीन विधान सभा सीटें शामिल हैं।इन तीनों जिलों में पन्ना जिले की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय है।आमतौर पर यहाँ से बाहरी प्रत्यासी ही सांसद चुने जाते रहे हैं नतीजतन उनके द्वारा क्षेत्र के विकास व् बुनियादी समस्याओं के निराकरण में कोई रूचि नहीं  जाती रही। बाहरी जनप्रतिनिधि चुने जाने से यहाँ स्थानीय सक्षम नेतृत्व भी विकसित नहीं हो सका, जिसका खामियाजा यह क्षेत्र आज भी भुगत रहा है। आज भी यहाँ दशकों पुराने सवाल अनुत्तरित हैं,  शिक्षा, स्वास्थ्य,बेरोजगारी,पलायन,कुपोषण,पेयजल संकट सहित अवैध उत्खनन की समस्या भयावह बन चुकी है। हर चुनाव में इन मुद्दों व सवालों को उठाया भी जाता है लेकिन चुनाव के बाद सरे मुद्दे अगले पांच साल के लिए दफ़न हो जाते हैं। आखिर जनता को बरगलाने और मूर्ख बनाने का यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा ?
इसे बिडंबना ही कहेंगे कि बद्हाली का दंश झेल रहे बुन्देलखण्ड में विकास के मुद्दे पर चुनाव नहीं होता। कड़वा सच तो यह है कि आज भी यहां के अधिसंख्य मतदाता कपोलकल्पित मुद्दों, जातिवाद व धनबल के प्रभाव में आकर वोट कर देते हैं।  यही वजह है कि विकास के मामले में अत्यधिक पिछड़ा यह क्षेत्र आज भी जस का तस है।  बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहने के बावजूद इस क्षेत्र के लोग अभी भी चुनाव के समय भ्रमित हो जाते हैं। जाति, धर्म, पूर्वाग्रहों और सड़ी -  गली मान्यताओं से मुक्त होकर योग्य, सक्षम व  विकास के लिए समर्पित प्रत्यासी का चुनाव नहीं करते जिससे नाकारा लोग चुनकर संसद पहुँच जाते हैं जिनका विकास और जनता की समस्याओं से कोई वास्ता नहीं रहता। सवाल पूंछने पर वे उल्टा नसीहत देने लगते है कि हम राष्ट्र को मजबूत और शक्तिशाली बनाने के महती अभियान में जुटे हैं, इस बड़े लक्ष्य को पाने के लिए जनता को कुछ तो त्याग करना पड़ेगा और कष्ट भी उठाना पड़ेगा। देश व राष्ट्रहित की  बात सुनकर जनता अपना दुःख दर्द भूलकर चुप हो जाती है और नेता जी पूरे  पांच साल सत्ता सुख का बिना किसी अवरोध के भोग करते हैं। कपोलकल्पित मुद्दों से भ्रमित कर तथा समाज में जातिवाद का जहर घोलकर अपनी नेतागिरी चमकाने वाले लोगों की असलियत जानने और समझने की जरूरत है, तभी सक्षम, योग्य और क्षेत्र के विकास हेतु समर्पित व्यक्ति का चुनाव संभव हो सकेगा और यह पिछड़ा इलाका भी अन्य दूसरे क्षेत्रों की तरह विकास की राह पर अग्रसर हो सकेगा।
मालुम हो कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र में तीन जिलों की आठ विधान सभा सीटें आती हैं, जिनमें पन्ना जिले की तीन सीटे शामिल हैं. सबसे बुरी स्थिति इन्हीं तीन विधानसभा क्षेत्रों की है जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, कुपोषण, गरीबी, बेरोजगारी, शोषण जैसी अनगिनत समस्यायें हैं।  प्रकृति ने पन्ना जिले को प्राकृतिक संपदा से समृद्ध किया है, यहां विकास की विपुल संभावनायें भी हैं फिर भी यह गरीब और दीन हीन है।  विकास के लिए यहां अनेको अवसर भी आये लेकिन जनप्रतिनिधियों की अपराधिक लापरवाही और निष्क्रियता के कारण उस अवसर का फायदा दूसरे जिलों ने उठा लिया।  पन्ना जिले की प्राकृतिक आबोहवा व माहौल शिक्षा के अनुकूल है।  यह जिला यदि शिक्षा का हब बन जाये तो अन्य दूसरी समस्याओं का निराकरण स्वमेव हो सकता है।  लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि शिक्षा की यहां पर सबसे बद्हाल दशा है। चुनाव लड़ रहे ज्यादातर प्रत्याशी धन बल, बाहुबल व जातिवाद के सहारे सांसद बनने की ख्वाहिश रखते हैं, लेकिन उनके जेहन में जल, जंगल, जमीन, मानवाधिकार व सामुदायिक अधिकार से ताल्लुक रखने वाले सवाल नहीं कौंधते।  जंगल तेजी से कट रहे हैं, अवैध उत्खनन भी बेखौफ जारी है. यदि यही रवैया रहा तो न जंगल बचेगा न पानी, जीव जन्तु भी गायब हो जायेंगे, फिर भला हमारा वजूद कैसे कायम रह सकेगा। कुछ मुट्ठी भर लोगों का विकास यदि जंगल व आदिवासियों को उजाड़कर हो तो इसे मंजूर नहीं किया जा सकता. प्राकृतिक संसाधनों को कारपोरेट घरानों को सौंपे जाने की योजना भी खतरनाक है, यह इस क्षेत्र के वाशिंदों के हित में नहीं है।  कारपोरेट घरानों के लोग जंगल और खेत उजाड़कर मुनाफा कमाकर चले जायेंगे लेकिन यहां के लोग कहां जायेंगे।  इस क्षेत्र के चहुंमुखी विकास के लिए सार्थक बहस व चर्चा होनी चाहिए तथा उसी के अनुरूप विकास की योजना बनाई जाकर उस पर क्रियान्वयन होना चाहिए तभी इस पिछडे क्षेत्र की तकदीर व तस्वीर बदल सकती है, सिर्फ झूंठ  बोलने व कोरे आश्वासनों से कुछ  होने वाला नहीं है।

ऐसे कुछ  मुद्दे जिन पर चर्चा जरुरी 


0  पन्ना को शिक्षा का हब बनाया जाय. ताकि यहां के युवकों को उच्च तकनीकी शिक्षा यहीं  मिल सके, इस हेतु इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि महाविद्यालय की स्थापना हो। फारेस्ट रिसर्च व ट्रेनिंग सेन्टर भी यहां खुले। 
0  पर्यटन के विकास की इस क्षेत्र में व्यापक संभावनायें हैं।  पन्ना के अनूठे मन्दिरों, मनोरम प्राकृतिक स्थलों व टाइगर रिजर्व का लाभ उठाने की योजना बने. इससे रोजगार के अवसरों का भी सृजन होगा। 
0  स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में यह क्षेत्र बहुत पीछे है, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता हेतु प्रभावी पहल हो। 
0  वनोपज की प्रचुर उपलब्धता को देखते हुए यहां पर ईको फ्रेन्डली उद्योगों की योजनाबद्ध तरीके से स्थापना हो। 
0  केन वेतवा लिंक परियोजना पन्ना जिले लिए घातक है, इसका हर स्तर  पर पुरजोर विरोध जरुरी है।   
0  पन्ना शहर को  जल संकट से निजात दिलाने तथा  लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने केन नदी का पानी पन्ना लाया जाय। 

Tuesday, April 9, 2019

पन्ना जिले के महेबा स्थित प्राचीन जलाशय की हालत दयनीय



  •   अतिक्रमण के चलते मिट रहा इस जीवनदायी तालाब का वजूद 
  •   महेबा गाँव की पहचान था यह प्राचीन जलाशय



। अरुण सिंह 

पन्ना। जल संरक्षण व नवीन तालाबों और बांधों के निर्माण में एक ओर जहां करोड़ों रू. खर्च किये जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जिले के प्राचीन जलाशयों का वजूद मिट रहा है। किसी समय जो तालाब जन जीवन के लिये बेहद उपयोगी हुआ करते थे, वे अब समुचित देखरेख के अभाव व अतिक्रमण के कारण सिमट रहे हैं। इस तरह के उपेक्षित प्राचीन जलाशयों में एक महेबा का तालाब है, जो अतिक्रमण, भीषण गंदगी व जलीय लताओं की वजह से नष्ट होता जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि गुनौर-अमानगंज मार्ग पर स्थित ग्राम महेबा में मुख्य सड़क मार्ग के किनारे यह प्राचीन जलाशय है, जो कुछ दशक पूर्व तक इस गांव के जीवन का आधार था। इस जलाशय के पानी से जहां पूरे गांव का निस्तार होता था वहीं खेतों की ङ्क्षसचाई होने से फसलों की भरपूर पैदावार भी होती थी। पूरे वर्ष भर तालाब में पानी रहने के कारण महेबा व आस-पास जल का स्तर भी बेहतर रहता है। लेकिन इस अत्यधिक उपयोगी प्राचीन जलाशय की देखरेख न होने के कारण यह दुर्दशा का शिकार हो रहा है। 

इस विशाल जलाशय का मनोहारी दृश्य पूर्व में मीलों दूर से नजर आता था, लेकिन अब यह जलाशय बुरी तरह जलीय लताओं से आच्छादित हो गया है तथा तालाब की जमीन में अतिक्रमण करके लोगों द्वारा खेती की जा रही है। जिस भू-भाग में किसी समय अथाह जल भरा रहता था वहां लोग बाड़ लगाकर खेती कर रहे हैं। इतना ही नहीं तालाब की पार व जल भराव क्षेत्र में घर बनाकर भी लोग रहने लगे हैं जिससे इस प्राचीन जलाशय का रकबा दिनों दिन सिमटता जा रहा है। 

महेबा गांव की पहचान रहा यह तालाब अतिक्रमण और मानवीय अत्याचार से अपनी पहचान खोने लगा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मुख्य सड़क मार्ग के किनारे स्थित होने के कारण इस मार्ग से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह तालाब नजर आता है, लेकिन किसी ने भी तालाब के मिटते वजूद को बचाने तथा उसे अतिक्रमण और हो रही दुर्दशा से मुक्त करने के लिये सार्थक पहल नहीं की। तालाब में जहां-तहां निर्मित पुराने देव स्थल भी जीर्ण-शीर्ण दशा को प्राप्त हो चुके हैं। 

जहां कभी लोग तालाब में स्नान करने के बाद जल चढ़ाकर पूजा अर्चना किया करते थे वे प्राचीन मन्दिर अब गंदगी से घिर गये हैं। यदि समय रहते इस धरोहर के संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले कुछ सालों में यह जलाशय जलीय लताओं से पटकर पूरी तरह से खेत व मैदान में तब्दील हो जायेगा। ऐसी स्थिति में यहां अतिक्रमण का शिकंजा इस कदर कस जायेगा कि तालाब के वजूद को फिर से कायम करना नामुुमकिन हो जायेगा।

तालाबों के वजूद को बचाने हों प्रयास 

प्राचीन तालाब हमारे बहुमूल्य धरोहर हैं, इनके वजूद को बचाने के लिये सार्थक व कारगर पहल होनी चाहिये। पन्ना जिले के शहरी व ग्रामीण अंचलों में स्थित राजाशाही जमाने के प्राचीन जलाशयों का यदि जीर्णोद्धार कराकर उन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये प्रभावी कदम उठाये जायें तो जल संकट से काफी हद तक निजात मिल सकती है। लेकिन शासन व प्रशासन का ध्यान इन जीवनदायी तालाबों को सुरक्षित कर उपयोगी बनाने के बजाय नये बांधों के निर्माण में ज्यादा रूचि ली जा रही है। 

जबकि बीते 5 सालों के दरम्यान जिले में जितने बांध बने हैं उनमें कई बड़े बांध पहली बारिश में ही फूटकर बह गये जो आज तक बनकर तैयार नहीं हुये। जाहिर है कि करोड़ों रू. खर्च करने के बावजूद इन बांधों का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है। प्राचीन जलाशयों और तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कर उन्हें साफ-सुथरा और उपयोगी बनाने के लिये अभियान चलाया जाना चाहिये। इस तरह के रचनात्मक और जनोपयोगी अभियानों में जिला प्रशासन व समाजसेवी संगठनों को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी ताकि प्राचीन धरोहरों को नष्ट होने से बचाया जा सके।
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Monday, April 1, 2019

पन्ना जिले में तपिश बढऩे के साथ गहराने लगा जल संकट

  •   तेजी के साथ दिनों दिन  नीचे खिसक रहा जल स्तर 
  •   हैण्डपम्पों से पानी की जगह निकल रही गर्म हवा




अरुण सिंह,पन्ना। तपिश  बढऩे के साथ ही जिले के विभिन्न इलाकों में पेयजल संकट गहराने लगा है। जल का स्तर तेजी के साथ नीचे खिसकने से कुंये जहां सूखने लगे हैं वहीं हैण्डपम्पों से भी पानी की जगह गर्म हवा निकलने लगी है। इन हालातों के चलते ग्रामीण अंचलों में पेयजल की व्यवस्था करने में महिलाओं को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। नल-जल योजनाओं का संचालन सुचारू रूप से न होने के कारण पेयजल का संकट और विकराल हो रहा है। आलम यह है कि ज्यादातर नदी-नाले सूख चुके हैं। जिले की जीवनदायिनी केन नदी का प्रवाह भी थम गया है। कई जगह धार टूटने से नदी सूखी नजर आती है। मार्च के अंत में जब यह स्थिति है तो अप्रैल और मई के महीने में जब गर्मी प्रचण्ड रूप धारण करेगी उस समय जल संकट की भयावहता का अंदाजा अभी से लगाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि जल श्रोतों व प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण न होने के कारण जल संकट साल दर साल और विकट होता जा रहा है। जल संरक्षण व जल संरचनाओं के निर्माण में करोडों रू. भले ही खर्च किये जा रहे हों लेकिन अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिल रहा। अकेले बुन्देलखण्ड पैकेज की जितनी राशि जल संरक्षण व बांधों और तालाबों के निर्माण में खर्च हुई है, यदि उसका सही उपयोग किया जाता तो जिले को हमेशा के लिये जल संकट से निजात मिल जाती। लेकिन तालाबों और बाधों के निर्माण में यहां सिर्फ घोटालों का कीर्तमान बना है नतीजतन ज्यादातर बांध बनने के साथ ही पहली बारिश में बह गये, जो बांध बचे भी हैं उनमें पानी नहीं है। वन विभाग ने तो जल संरक्षण के कार्यों में यहां ऐसी मिशाल कायम की है कि उसके द्वारा कराये गये कार्यों की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई है। भृष्टाचार के प्रमाणित तथ्य सामने आने के बावजूद भी जिम्मेदार अधिकारियों का बाल बांका नहीं हुआ, जिससे व्यवस्था में सुधार व कसावट आने के बजाय भृष्ट अधिकारी और बेखौफ हो गये हैं।




जिला मुख्यालय पन्ना में ही पेयजल समस्या के स्थाई समाधान हेतु आज तक कोई सार्थक पहल नहीं हो सकी है। यहां आज भी राजाशाही जमाने के बने तालाबों के पानी पर ही नगरवासी निर्भर हैं। शर्मनाक बात यह है कि हमारे पुरखों द्वारा बड़े जतन के साथ जिन जलाशयों का निर्माण कराया था, हम उनका भी संरक्षण नहीं कर सके। समुचित देख रेख के अभाव में ज्यादातर तालाब अतिक्रमण, गंदगी और दुर्दशा के शिकार हैं। पन्ना शहर के प्राचीन तालाबों की दुर्दशा देखने काबिल है, अधिकांश तालाब अतिक्रमण की गिरफ्त में हैंै। तालाबों के आस-पास झुग्गियों की बसाहट से तालाबों का पानी दूषित हो रहा है। यही दूषित और गंदा पानी नगरवासियों को पेयजल के लिये सप्लाई किया जाता है। यदि हम प्राचीन जल संरचनाओं को ही सहेज पाते तो बढ़ी हुई आबादी के बावजूद भी नगरवासियों को जल संकट का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन ज्यादातर जलाशय उपेक्षा और देखरेख के अभाव में अपना वजूद खोते जा रहे हैं। नगर में पानी की सप्लाई तो होती है लेकिन पानी की गुणवत्ता ऐसी है कि लोग तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। शहर के चारो तरफ तेजी से विस्तार हो रही अनाधिकृत झुग्गी बस्तियों में तो पेयजल के लिये कोहराम मचा हुआ है, क्योंकि इन झुग्गी बस्तियों में लोगों के घरों तक पेयजल की आपूर्ति नहीं की जाती।
जिले के ग्रामीण अंचलों की दशा और भी दयनीय है। नल-जल योजनायें कागजों पर चल रही हैं तथा हैण्डपम्पों की हालत भी संतोषप्रद नहीं है। केन नदी के किनारे स्थित ग्रामों में जहां कभी जल संकट नहीं रहता था, वहां भी अब जल संकट ने दस्तक देना शुरू कर दिया है। केन नदी में बड़े पैमाने पर रेत के अवैध उत्खनन से यह स्थिति निर्मित हुई है। रिचार्जिंग क्षमता घटने से जल का स्तर नीचे खिसक रहा है जिससे कुंये सूख रहे हैं। जिले के पवई, शाहनगर व गुनौर जनपद क्षेत्र के दर्जनों ग्राम ऐसे हैं जहां पेयजल के लिये महिलाओं को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। यदि बंद पड़ी नल-जल योजनाओं का संचालन ठीक तरह से होने लगे तथा बिगड़े पड़े हैण्डपम्पों का सुधार हो जाये तो मौजूदा संकट को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। लेकिन जल संकट के स्थाई समाधान हेतु दूरगामी व प्रभावी कार्ययोजना बनानी होगी अन्यथा जल संकट से लोग इसी तरह हैरान और परेशान होते रहेंगे।

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