Thursday, April 25, 2019

पर्यावरण, तालाब और नदियां नहीं बने चुनावी मुद्दा

  •   बुन्देलखण्ड में खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के प्राचीन जलाशयों का मिट रहा वजूद
  •   रेत के अवैध उत्खनन से छलनी हो रहा नदियों का सीना
  •   अधाधुन्ध कटाई से हरी-भरी पहाडिय़ां व जंगल हुये वीरान
  •   तापमान बढऩे और भीषण जल संकट से हर कोई हलाकान



 केन नदी में हो रहे रेत के अवैध उत्खनन का नजारा। ( फाइल फोटो ) 


अरुण सिंह,पन्ना। प्रकृति और पर्यावरण के साथ हो रहा खिलवाड़ मौजूदा समय सबसे बड़ी समस्या है। बढ़ते प्रदूषण और रेत के बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध उत्खनन से नदियों का स्वास्थ्य जहां बिगड़ रहा है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी प्रकट होने लगे हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के शहरी व ग्रामीण अंचलों में स्थित जलाशय जो कुछ दशकों पूर्व तक लोगों की जिन्दगी के आधार थे, उनका वजूद भी मिट रहा है। आबादी बढऩे के साथ ही जंगलों को भी उजाडऩे का सिलसिला शुरू हो चुका है, जिससे पेड़-पौधों से आच्छादित रहने वाले इलाके भी वीरान नजर आने लगे हैं। बड़े पैमाने पर वनों की हो रही अवैध कटाई व बिगड़ते पर्यावरण के चलते समूचे बुन्देलखण्ड में जल संकट जहां गम्भीर हुआ है, वहीं तापमान का पारा अप्रैल के महीने में ही 45 डिग्री सेल्सियस के आस-पास जा पहुँचा है। मई में तपिश बढऩे पर पारा 48 डिग्री तक पहुँच जाये तो कोई आश्चर्य नहीं। फिर भी प्रकृति से मिलने वाले खतरों के इन संकेतों से हम सबक लेने को तैयार नहीं हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रमुख राजनीतिक दलों के एजेण्डे व घोषणा पत्र में पर्यावरण, तालाब व नदियों के संरक्षण का कोई जिक्र नहीं है।

भीषण जल संकट के चलते नाले का दूषित पानी ले जातीं ग्रामीण महिलायें।
खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले बुन्देलखण्ड के पन्ना जिले को शान्ति का टापू कहा जाता है, लेकिन शान्ति के इस टापू की सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक अस्मिता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जल, जंगल व जमीन के लुटेरों की व्यवसायिक निगाहें यहां गड़ गई हैं, जो यहां की अकूत वन व खनिज सम्पदा का दोहन कर मालामाल होना चाहते हैं। इस अंचल के लोगों की खुशहाली के लिये प्राकृतिक समृद्धि के इस टापू को बचाना और उसका संरक्षण जरूरी है। गौरतलब है कि वन व खनिज सम्पदा से समृद्ध पन्ना जिले के समग्र विकास व यहां के लोगों की खुशहाली और समृद्धि के लिये किसी भी राजनैतिक दल के नेताओं ने कभी कोई रूचि नहीं ली। परिणामस्वरूप आजादी के 7 दशक बाद भी यह जिला जस का तस है। अकूत वन सम्पदा व बेशकीमती रत्न हीरा की उपलब्धता के बावजूद यहां के वाशिंदे  मूलभूत और बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहे हैं। यहां की खनिज व वन सम्पदा पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का कब्जा है जबकि अधिसंख्य आबादी गरीब और फटेहाल है।

 स्वच्छ नदियों में शुमार केन का  बिगड़ रहा स्वास्थ्य


अमानगंज के निकट केन की सहायक नदी मिढ़ासन की दुर्दशा का दृश्य।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवन रेखा कही जाने वाली देश की स्वच्छ नदियों में शुमार सदानीरा केन नदी का स्वास्थ्य अब बिगड़ रहा है। कुछ दशक पूर्व तक जिस नदी में अविरल जल प्रवाह देखने को मिलता था, वह अप्रैल के महीने में ही जगह-जगह सूखी और बेजान नजर आ रही है। केन नदी को सदानीरा बनाने वाली उसकी अधिकांश सहायक नदियां मृत प्राय हो चुकी हैं। सबसे बुरी स्थिति मिढ़ासन नदी की  है, जिसे पुनर्जीवित करने के लिए प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विदा उठाया था। इसके लिए उन्होंने पन्ना जिले के गढ़ी पड़रिया गांव में भव्य कार्यक्रम आयोजित कराकर पूरे विधि विधान के साथ पुनर्जीवन कार्य का शुभारम्भ किया था। इस महत कार्य में तक़रीबन 27 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन नदी की हालत सुधरने के बजाय और भी दयनीय हो गई। जाहिर है कि स्वीकृत धनराशि का सही ढंग से उपयोग नहीं हुआ। मानवीय दखल बढऩे, जलागम क्षेत्रों में बांधों का निर्माण होने, भारी भरकम मशीनों से अनियंत्रित उत्खनन, वनों की कटाई, शहरीकरण और बदलते भू उपयोग के चलते भी नदियों का प्राकृतिक स्वरुप बिगड़ा है तथा जल प्रवाह बाधित हुआ हैं। ग्रामीणों के मुताबिक केन नदी का जल प्रवाह लगातार घटता जा रहा है, जिसके कारण केन किनारे स्थित ग्रामों में जल स्तर नीचे खिसक रहा है, कुँये और हैण्डपम्प सूखने लगे हैं। केन नदी के सूखने से मछवारों, मल्लाहों तथा नदी तट पर खेती करने वाले किसानों की जिन्दगी प्रभावित हुई है।

बाघों के रहवास पर भी मंडराया संकट

सदियों से बाघों का प्रिय रहवास रहा पन्ना का जंगल वैसे भी बढ़ती आबादी के दबाव में तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी है काफी हद तक सुरक्षित है। लेकिन अब इसे भी उजाडऩे की पूरी तैयारी की जा रही है। मालुम हो कि सम्पूर्ण विन्ध्यांचल क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 1.5 लाख वर्ग किमी है जो पश्चिम दिशा में रणथम्भोर टाईगर रिजर्व एवं पूर्व दिशा में बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व को छूता है। इन दोनों के बीच में विन्ध्य क्षेत्र के शुष्क वनों के एक मात्र बाघ शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये बाघ पुनर्स्थापना  योजना शुरू हुई। जिसे चमत्कारिक सफलता मिली और बाघ विहीन यहां का जंगल फिर से आबाद हो गया। लेकिन केन-बेतवा लिंक  परियोजना से बाघों के आबाद इस वन क्षेत्र पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

पुराने तालाबों का हो संरक्षण और जीर्णोद्धार


 पन्ना शहर के निकट स्थित प्राचीन कमलाबाई तालाब।

पन्ना जिले के शहरी व ग्रामीण अंचलों के राजाशाही जमाने के सैकड़ों तालाब हैं जो समुचित देखरेख के अभाव व अतिक्रमण के चलते अपना वजूद खोते जा रहे हैं। किसी समय जीवन का आधार रहे ये प्राचीन तालाब उपेक्षा के कारण अनुपयोगी होते जा रहे हैं, जिन्हें उपयोगी बनाने तथा जल स्तर कायम रखने के लिये इनका संरक्षण और जीर्णोद्धार बेहद जरूरी है। जिला मुख्यालय पन्ना में ही प्राचीन जलाशयों की पूरी श्रृंखला है, मौजूदा समय भी इन्हीं तालाबों से ही नगर में पेयजल की आपूॢत होती है। लेकिन अधिकांश तालाबों में बेजा अतिक्रमण हो चुका है, जिससे उनका वजूद संकट में है। शहर के धरमसागर, बेनीसागर, लोकपाल सागर व निरपत सागर तालाब में तेजी से अतिक्रमण हो रहा है। शहर के अन्य दूसरे तालाब भी अतिक्रमण की चपेट में हैं तथा उनका पानी दूषित और जहरीला हो रहा है। कमोवेश यही स्थिति गुनौर के गुनूसागर, महेबा के प्राचीन तालाब सहित ग्रामीण अंचलों में स्थित अन्य तालाबों की भी है, जिनका जीर्णोद्धार कराकर उन्हें जनोपयोगी बनाने की दिशा में पहल होनी चाहिये।
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दैनिक जागरण में प्रकाशित रिपोर्ट

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