- पानी के लिए भटकते बेजुवान जानवर मर रहे प्यासे
- अप्रैल में ये है हाल तो मई में हालात होंगे और भयावह
मीलों दूर से सिर में पानी ढोकर लाती ग्रामीण महिलायें। |
अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का पन्ना जिला भीषण जल संकट से बेहाल है। जल संकट से ग्रसित ग्रामों में पेयजल की व्यवस्था करने के लिए ग्रामीणों को जहां भारी मशक्कत करनी पड़ रही है वहीं बेजुवान पशुओं की जिन्दगी संकट में है। पानी की तलाश में मवेशी दूर-दूर तक भटकते है और पानी न मिलने पर प्यास के मारे तड़प-तड़प कर मौत के आगोश में समा जाते हैं । जिला मुख्यालय पन्ना से 15 किमी. के दायरे में आने वाले एक दर्जन से भी अधिक गांव जल संकट की चपेट में हैं । इन ग्रामों में अब दो सौ से भी अधिक पशुओं की मौत हो चुकी है। सिर्फ तीन ग्रामों खजुरी कुडार, सकरिया व बहेरा में ही बड़ी संख्या में गौ-वंशीय पशु पानी के अभाव में काल कवलित हो चुके हैं ।
उल्लेखनीय है कि राजाशाही जमाने में यह इलाका पानी, पाथर और लाबर (हीरा) के लिए प्रसिद्ध रहा है। तत्कालीन बुन्देला नरेशों ने पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ जल संरचनाओं के निर्माण में विशेष रूचि लेते हुए यहां पर अनेकों जलाशयों व बावडिय़ों का निर्माण कराया था। हर 2-4 किमी. में जल श्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई थी। लेकिन राजाशाही खत्म होने के साथ ही पर्यावरण के विनाश का सिलसिला जो शुरू हुआ तो वह आज भी अनवरत जारी है। इसी के साथ प्राचीन जलाशयों व प्राकृतिक जल संरचनाओं की उपेक्षा तथा उनके जल गृहण क्षेत्रों में अतिक्रमण भी शुरू हुआ, जिससे जीवनदायी तालाब व अन्य जल श्रोत भी दम तोडऩे लगे। परिणामस्वरूप पानीदार कहलाने वाला यह इलाका अब बूँद-बूँद पानी के लिए तरस रहा है।पन्ना से महज 12 किमी. दूर आदिवासी बाहुल्य खजुरी कुड़ार गांव के हालात अप्रैल के महीने में ही चिन्ता में डालने वाले हैं । इस गांव में पानी की कमी के चलते ग्रामीणों को गांव से तकरीबन 2 किमी. दूर जंगल में स्थित चरही नामक स्थान से पीने के लिए पानी लाना पड़ता है। यह स्थान पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। जहां रिसकर एक जगह पहाड़ों का पानी एकत्र हो जाता है। यही प्राकृतिक जल श्रोत इस गांव की जिन्दगी का आधार बना हुआ है। चूंकि गांव के मवेशी इस दुर्गम जगह पर नहीं पहुँच सकते, इन हालातों में पानी न मिलने के कारण उनकी मौत है रही है। समाजसेवी संस्था समर्थन के संभागीय समन्वयक ज्ञानेन्द्र तिवारी बताते हैं कि खजुरी कुड़ार गांव में अब तक पानी न मिलने से दर्जनों मवेशियों की मौत हो चुकी है। इंसान तो किसी तरह नालों व झिरियों से पानी लाकर अपने जीवन की रक्षा कर रहा है, लेकिन बेजुवान पशु अपनी पीड़ा और तकलीफ किसे सुनायें। हर मंगलवार को इंसानों की जन सुनवाई होती है, जिले के प्रशासनिक मुखिया उनकी समस्यायें सुनते व उनका निराकरण करते हैं , लेकिन मूक पशुओं की समस्याओं के निदान हेतु इस तरह की कहीं कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे वे असमय ही काल कवलित हो रहे हैं ।
तेजी से सूख रहे कुंआ और तालाब
बारिश कम होने के कारण कुंआ और तालाब जहां सूखने लगे हैं वहीं नदी व नालों में भी धूल उड़ रही है। गिनती के ही कुछ प्राचीन बड़े तालाब हैं जिनमें नाम मात्र को पानी बचा है, ज्यादातर तालाब तो मैदान में तब्दील हो चुके हैं । जल स्तर तेजी के साथ नीचे खिसकने के कारण ज्यादातर कुंए जहां सूख चुके हैं जिनमें थोड़ा बहुत पानी तलहटी में है वहां मटमैला हो जाता है। ग्राम पंचायत जनवार के ग्राम बहेरा की यही दशा है , यहां पर पेयजल के लिए सिर्फ एक कुंआ है जिसका पानी कीचडय़ुक्त हो गया है। ऐसी स्थिति में मवेशी प्यासे मर रहे हैं । कमोवेश यही स्थिति सकरिया की भी है।बफरजोन के जंगल में पानी की त्राहि - त्राहि
जंगल में पानी की तलाश में भटकते वन्यप्राणी। |
जिले के ग्रामीण अंचलों में पेयजल की जहां गंभीर समस्या है वहीं वन क्षेत्रों में भी पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। जंगली नालों व नदियों के सूख जाने से वन्य जीव पानी के लिए भटकते फिरते हैं । पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में भी कई इलाके जल संकट की चपेट में हैं । गनीमत है यहां से होकर केन नदी गुजरती है जिसमें अभी भी पर्याप्त पानी है लेकिन केन नदी से दूर टाईगर रिजर्व के हिनौता प्लेटों में वन्यजीवों को पानी के लिए दूर-दूर तक भटकना पड़ रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि पार्क प्रबन्धन ने केन नदी के आस-पास टूरिस्ट जोन में जहां पर्यटकों का आना-जाना है वहां पर कुछ गड्ढे खुदवाकर टैंकरों से पानी भरवाया गया है लेकिन जहां पानी की भीषण कमी है वहां कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई। जिससे वन्य प्राणी आबादी क्षेत्र की ओर जाने को विवश हो रहे हैं ।
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