Tuesday, March 20, 2018

चिरौंजी के उत्पादन में पन्ना जिला अग्रणी

  • विनाशकारी विदोहन से घट रही वृक्षों की संख्या 
  • औषधीय महत्व के चिरौंजी वृक्षों का संरक्षण जरूरी 


अरुण सिंह,पन्ना।   प्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में चिरौंजी का सर्वाधिक उत्पादन होता है. यहां के खूबसूरत और सघन वनों में चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में पाये जाते हैं. चिरौंजी की बढ़ती उत्तरोत्तर मांग के कारण इसका विनाशकारी विदोहन होने से औषधीय महत्व वाले चिरौंजी के वृक्षों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. परिणाम स्वरूप इसका उत्पादन भी उसी अनुपात में घट रहा है. जंगल में आबादी के बढ़ते दबाव व वनों की हो रही अधाधुंध कटाई से भी इस बहुमूल्य वृक्ष की उपलब्धता कम हुई है.

उल्लेखनीय है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना व छतरपुर जिले के जंगलों में चिरौंजी के वृक्ष बड़ी तादाद में प्रचुरता से मिलते हैं. लगभग 20 मीटर ऊंचाई तक बढऩे वाले चिरौंजी के वृक्ष को स्थानीय लोग अचार का वृक्ष भी कहते हैं, इसका लेटिन नाम बुकेनेनिया लेटिफोलिया है. चिरौंजी के पत्ते छोटे - छोटे नोंकदार और खुरदरे होते हैं. इसके फल करौंदे के समान नीले रंग के होते हैं, इन फलों को तोडऩे पर उनके भीतर जो मगज निकलती है, उसे चिरौंजी कहते हैं. चिरौंजी का मेवों में जहां महत्वपूर्ण स्थान है वहीं यह पित्त और वात रोगों, कुष्ठ रोग, वीर्य दुर्बलता, श्वांस रोग, उदर रोग, चर्म रोग तथा मूत्र विकार हेतु उत्तम औषधि है. चिरौंजी को तेल के साथ पीसकर मालिश करने से मकड़ी का विष दूर होता है तथा इसे खाने से कलेजे, फेफड़े और मस्तक की शर्दी मिटती है. चिरांैजी को गुलाब जल में पीसकर मालिश करने से चेहरे पर होने वाली फुंसियां और दूसरी खुजली मिट जाती है. वैद्यों का यह कहना है कि एक छटांक भर चिरौंजी खा जाने से शरीर में उछलती हुई पित्ती शांत हो जाती है. अगर पित्ती किसी दवा से न जाय तो इससे जरूर चली जाती है. चिरौंजी की जड़ कसैली, कफ पित्त नाशक और रूधिर विकार को दूर करने वाली होती है.
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश के पन्ना, छतरपुर व छिन्दवाड़ा जिले में चिरौंजी फल का सर्वाधिक उत्पादन होता है. पन्ना जिले के जंगलों से लगभग 8 सौ कुन्टल चिरौंजी फल का संग्रहण वनवासियों व स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है. औषधीय महत्व वाले इस मेवे का उत्पादन प्रदेश के जिन अन्य जिलों में होता है, उनमें बालाघाट, बैतूल, भोपाल, बुरहानपुर, दमोह, गुना, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, सागर, सीहोर, सिवनी, शहडोल व सीधी हैं. लेकिन प्रदेश में चिरौंजी के कुल उत्पादन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना और छतरपुर जिले में उत्पादित होता है.

कल्दा पठार में चिरौंजी के सर्वाधिक वृक्ष 

औषधीय वनस्पतियों के लिए अनुकूल पन्ना जिले के कल्दा पठार में चिरौंजी के सर्वाधिक वृक्ष पाये जाते हैं. कल्दा के अलावा पन्ना नेशनल पार्क के रिजर्व वन क्षेत्र सहित उत्तर व दक्षिण वन मण्डल के जंगल में चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में मिलते हैं. इस फल की उपयोगिता व कीमत को देखते हुए ग्रामीण फलों को परिपक्व होने से पहले ही तोड़ लेते हैं. जिससे अच्छी गुणवत्ता वाली चिरौंजी प्राप्त नहीं हो पाती. वन अधिकारियों का कहना है कि चिरौंजी  (अचार) के पके हुए फलों को ही तोड़कर संग्रहित किया जाना चाहिए ताकि बेहतर गुणवत्ता वाली चिरौंजी प्राप्त हो सके. जंगल में लगभग 10 प्रतिशत फलों को बीजों द्वारा प्राकृतिक प्रवर्धन हेतु छोड़ दिया जाना चाहिए, ताकि जंगल में चिरौंजी के वृक्षों का पुन: उत्पादन हो सके.

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Wednesday, March 14, 2018

पलाश का फूल आजीविका का बन सकता है साधन



  • पन्ना में वनोपज की कोई कमी नहीं, वन आधारित उद्योगों की कमी है। ग्रामीणों ने बताया कि यदि वन आधारित गतिविधियॉं जिले मे हो और उसका लाभ मिले तो हम लोगों की गरीबी दूर हो सकती है।



। अरुण सिंह 

पन्ना। प्रकृति ने मानव को कई उपहार दिये हैं। समय-समय पर इसका अहसास अपने आप होने लगता है। मौसम के हिसाब से देखे तो बसंत के बाद अब चैत्र आ गया। पेड़ो से पत्ते गिरना नई कोपले निकलना, महुआ की पीगे फूटना, फसलों में चना,मसूर,गेहूॅं सभी पकने के बाद इठला रहे हैं। मौसम की मार के बावजूद वनों ने अपने उपहार स्वरूप मानव को महुआ, चिरौजी की आवक का आगाज कर दिया है। इसके अलावा छिवला,पलाश जो औषधीय गुणों से भरा पड़ा है, चारो तरफ  वन क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दिया है।

जहां एक ओर नये-नये उद्योग लग रहे हैं, जो मानव को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। उसकी जगह पन्ना जिले में कई ऐसे वनोपज जड़ी बूटी उपलब्ध हैं जहां हजारो युवाओ को रोजगार के साधन मिल सकते हैं। यहां की बात करे तो कई लाख रूपये का नागरमाथा अर्थात गुदिला ही यहां के लोगो को मिलता है।  कई आदिवासी परिवार साल भर के लिये इसी से अपना गुजारा करते हैं। 

महुआ, अचार, तेदुपत्ता, डोरी, आंवला यहां के वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी एवं गरीब परिवार के लिये रोजी रोटी का सहारा है। यहां के आदिवासी वर्ष भर के लिये इसी से अपना काम चलाते हैं।  आज कल छिवला पलाश पूरे जंगल में है इसके औषधीय गुण के बारे में बगौहा सहित आसपास के गांवों में कई ग्रामीणों से चर्चा की। ग्रामीणों ने बताया कि यदि वन आधारित गतिविधियॉं जिले में हो और उसका लाभ मिले तो हम लोगों की गरीबी दूर हो सकती है।

छिवला अर्थात पलाश के औषधीय गुण


पलाश का पेड़ जहाँ औषधीय गुणों से भरपूर होता है वहीँ इसके पत्तों का भी ग्रामीण इलाकों में आज भी उपयोग होता है। जानकारों के मुताबिक शरीर में घाव होने पर इसके छिलके को कुचलकर लगाने से घाव भर जाता है, फूल के गुदे के रंग उतार कर पीने से दस्त मिट जाता है, बकले के अन्दर के गुदे को उबाल कर पीने से छाले मिट जाते हैं।  दॉंत का दर्द भी ठीक हो जाता है तथा मुंह का सूजन मिट जाता है। 

पलाश के पेड़ में  गोद भी निकलती है, जिसका उपयोग डाढ़ में लगाने से दर्द ठीक हो जाता है। फूल की वौड़ खाने से उल्टी नही होती, फूल के रंग को पानी में डाल कर नहाने से लू नही लगती है। सफेद कपड़े को फूल के रंग से रंग  कर पहनते है, इसके पेड़ से बेहतरीन रस्सी एवं कूची बनती है। पलाश के पत्ते से दोना एवं पत्तल बनाये जाते हैं। 

मवेशियों को बाधने वाली जगह पर फूल डालने से जानवरों के कीड़े नही पड़ते, पिस्सू आदि कीड़े मर जाते हैं। फूल से गनगौर की पूजा होती है, लकड़ी हवन के लिये उपयोग होती है। गोद से लााख की कडे बनते हैं, जो महिलाये पहनती हैं।  सूखा रोग में पलाश की गाठ बांधने से लाभ पहुंचता है, डायविटीज में पलास के फूल को पानी में भिगोकर रंग को पीने से डायविटीज कम होती है।

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Sunday, March 11, 2018

पन्ना के जंगलों में गरीबों के फल तेंदू की बहार

  •   आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होता है पका हुआ तेंदू फल
  •   मीठा और पौष्टिक होने के साथ कब्जियत भी करता है दूर


जंगल में फलों  से लदी तेंदू वृक्ष  की डाल। फोटो - अरुण सिंह 

। अरुण सिंह 

पन्ना। वन संपदा के मामले में अत्यधिक समृद्ध बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में इन दिनों तेंदू फल की बहार है। यहां के जंगलों में प्रचुरता से पाये जाने वाले तेंदू वृक्ष इस समय गोल आकार वाले पीले रंग के तेंदू फलों से लदे हुये हैं। गुणों से भरपूर तेंदू को आमतौर पर गरीबों का फल कहा जाता है। आदिवासी गर्मी के दिनों में घर से निकलने के पहले तेंदू के पके हुये फल जरूर खाते हैं ताकि गर्मी के प्रकोप से उनका बचाव हो सके। आयुर्वेद चिकित्सकों का भी कहना है कि तेंदू का फल पौष्टिक होने के साथ-साथ पाचन के लिये भी बेहद उपयोगी है। तेंदू फल के सेवन से पेट साफ होता है तथा कब्जियत भी दूर होती है।

उल्लेखनीय है कि अमूमन तेंदू का पेड़ जंगलों में ही पाया जाता है। विन्ध्यांचल की पहाडिय़ों में यह पेड़ बहुलता में मिलता है। वन व खनिज संपदा से समृद्ध पन्ना जिले के जंगलों में भी तेंदू के वृक्ष प्रचुरता में मिलते हैं। जिले के उत्तर व दक्षिण वन मण्डलों के अलावा पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर व बफर क्षेत्र के जंगल में भी बड़ी संख्या में तेंदू के पेड़ हैं जो गरीबों विशेषकर आदिवासियों की आय का प्रमुख श्रोत हैं। होली के बाद मार्च के महीने से लेकर मई तक आदिवासी जंगल से तेंदू फल का संग्रह कर बाजार में बेंचते हैं, जिससे उन्हें नियमित आय होती है। 

तेंदू फल खत्म होने के बाद इस वृक्ष में नई कोपलें निकल आती हैं, इन पत्तों का उपयोग बीड़ी बनाने में होता है। आमतौर पर 15 मई से 15 जून तक तेंदूपत्ता की तुड़ाई का कार्य चलता है, जिसका संग्रहण वन विभाग द्वारा कराया जाता है। तेंदूपत्ता तुड़ाई के कार्य से वनों के आस-पास रहने वाले आदिवासियों को इससे अच्छी खासी आय हो जाती है।

जंगल में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले तेंदू के पेड़ भी अब वनों की हो रही अधाधुंध कटाई के चलते तेजी से कम होते जा रहे हैं। जंगलों के सिकुडऩे और उजडऩे से प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले देशी और मौसमी फल भी गायब होते जा रहे हैं। आम जनमानस की स्मृतियों से जुड़े पारम्परिक फलों के लुप्त होने की अनेकों वजहें हैं, जिनमें तेजी से बढ़ती आबादी प्रमुख है। चौतरफा आबादी क्षेत्र का विस्तार होने के कारण बचे-खुले जंगलों पर जबरदस्त दबाव है, जलाऊ और इमारती लकड़ी के लिये लोग बेरहमी के साथ जंगल में कुल्हाड़ी चला रहे हैं जिससे पारम्परिक फलों के वृक्ष भी गायब हो रहे हैं। 

पन्ना जिले के वे इलाके जहां वनों की सुरक्षा को अहमियत मिल रही है, वहां अभी भी तेंदू, चिरौंजी, आँवला और महुआ के वृक्ष बड़ी तादाद में हैं। कल्दा पठार का जंगल वनोपज के मामले में अभी भी अपनी अहमियत बनाये हुय है। लेकिन खनन माफियाओं की धमाचौकड़ी बढऩे तथा दर्जनों की संख्या में वैध व अवैध पत्थर खदानों के चलने से यहां की वन संपदा को खतरा उत्पन्न हो गया है।

पन्ना के आस-पास भी हैं तेंदू वृक्ष



पन्ना शहर के निकट स्थित प्रणामी धर्मावलम्बियों के तीर्थ स्थल चौपड़ा मन्दिर के आस-पास तेंदू फल से लदे वृक्ष नजर आ रहे हैं। चूंकि यहां पर मन्दिर के पुजारी सहित अनेकों श्रद्धालु बने रहते हैं, इसलिये मन्दिर परिसर के आस-पास का जंगल अभी भी सुरक्षित है। किलकिला नदी के किनारे प्रकृति के बीच स्थित धार्मिक महत्व का यह मनोरम स्थल प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केन्द्र तो है ही, सुबह बड़ी संख्या में लोग यहां सैर के लिये भी पहुँचते हैं। यहां चौपड़ा मन्दिर के ठीक पीछे तेंदू के कई वृक्ष मौजूद हैं जो इस समय तेंदू फल से लदे हुये हैं। पीले सुन्दर फलों से लदे इन वृक्षों को देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव है। क्योंकि ऐसा दृश्य जंगल में ही देखने को मिलता है, शहर के निकट आबादी क्षेत्र में ऐसा दृश्य दिखाई देना दुर्लभ है।

उपहार और दण्ड दोनों उपलब्ध

जंगल में पाया जाने वाला तेंदू वृक्ष कई दृष्टि से अनूठा है। इस वृक्ष में जहां आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर मीठा, स्वादिष्ट, पौष्टिक और पाचक फल मिलता है, वहीं इस वृक्ष की पत्तियों का उपयोग बीड़ी बनाने के लिये किया जाता है। बीड़ी मानव निर्मित है जबकि तेंदू फल प्रकृति का अनमोल उपहार है, जिससे तमाम तरह की व्याधियों और रोगों से निजात मिलती है। 

जबकि मानव निर्मित बड़ी पीने से फेफड़े खराब होते हैं और लोग असमय काल कवलित हो जाते हैं। इस तरह से देखा जाये तो तेंदू के वृक्ष में उपहार और दण्ड दोनों ही उपलब्ध होते हैं, अब निर्णय हमारा है कि हम किसका चुनाव करते हैं। स्वादिष्ट फल खाते हैं कि फेफड़ों को जलाने वाली बीड़ी पीते हैं।

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Monday, March 5, 2018

घाघरा चोली पहन भगवान ने धारण किया सखी वेष

  •   बुन्देलखण्ड क्षेत्र के वृन्दावन पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में कायम है अनूठी परम्परा
  •   वर्ष में सिर्फ एक बार चैत्र माह की तृतीया को होते हैं इस स्वरूप के दर्शन


भगवान श्री जुगुल किशोर जी के सखी वेष का दृश्य।
अरुण सिंह,पन्ना। मुरली मुकुट छीन पहनाय दियो घाघरा चोली, यशोदा के लाल को दुलैया सो सजायो है। कृष्ण की भक्ति में लीन महिलायें जब ढोलक की थाप पर इस तरह के होली गीत गाते हुये गुलाल उड़ाकर नृत्य करती हैं तो म.प्र. के पन्ना शहर में स्थित सुप्रसिद्ध श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में वृन्दावन जीवंत हो उठता है। चैत्र माह की तृतीया को यहां भगवान श्री जुगुल किशोर जी सखी वेष धारण करते हैं। भगवान के इस नयनाभिराम अलौकिक स्वरूप के दर्शन वर्ष में सिर्फ एक बार ही होते हैं। यही वजह है कि सखी वेष के दर्शन करने पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि मन्दिरों के शहर पन्ना में स्थित श्री जुगुल किशोर जी का मन्दिर जन आस्था का केन्द्र है। इस भव्य और अनूठे मन्दिर में रंगों का पर्व होली वृन्दावन की तर्ज पर मनाया जाता है। तृतीया के दिन आज रविवार को इस मन्दिर की रंगत देखते ही बन रही थी। सुबह 5 बजे से ही महिला श्रद्धालुओं का सैलाब भगवान के सखी वेष को निहारने और उनके सानिद्ध में गुलाल की होली खेलने के लिये उमड़ पड़ा। ढोलक की थाप और मजीरों की सुमधुर ध्वनि के बीच महिला श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य की भक्ति और प्रेम में लीन होकर जब होली गीत और फाग गाया तो सभी के पाँव स्मवेव थिरकने लगे। फाग, नृत्य और गुलाल उड़ाने का यह सिलसिला सुबह 5 बजे से 11 बजे तक अनवरत चला। यह अनूठी परम्परा श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में साढ़े तीन सौ वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही है जो आज भी कायम है। इस मन्दिर के प्रथम महन्त बाबा गोविन्ददास दीक्षित जी के वंशज देवी दीक्षित ने जानकारी देते हुये बताया कि सखी वेष के दर्शन की परम्परा प्रथम महन्त जी के समय ही शुरू हुई थी। ऐसी मान्यता है कि चार धामों की यात्रा श्री जुगुल किशोर जी के दर्शन बिना अधूरी है।

गुलाल का ही मिलता है प्रसाद


परम्परा के अनुसार पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में चैत्र मास की तृतीया को गुलाल का ही प्रसाद श्रद्धालुओं को मिलता है। सखी वेष में भगवान जुगुल किशोर व मुरली मुकुट धारण किये राधिका जी के अलौकिक स्वरूप को निहारने जब महिला श्रद्धालु मन्दिर पहुँचती हैं तो उनका सत्कार गुलाल से ही होता है। आज के दिन सुबह 5 बजे से 11 बजे तक मन्दिर के भीतर सिर्फ महिला श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलता है, जहां महिलायें एक-दूसरे को गुलाल लगाकर पूरे भक्ति भाव के साथ फाग और होली गीत गाती हैं। पूरा मन्दिर आज गुलाल के रंग में सराबोर नजर आता है।

वृन्दावन की मिलती है झलक


पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर को वृन्दावन की संज्ञा प्रदान की गई है, यहां आकर श्रद्धालुओं को वही अनुभूति होती है जैसी अनुभूति वृन्दावन में मिलती है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी से लेकर सभी पर्व व त्यौहार यहां पर वृन्दावन की तर्ज पर ही मनाये जाते हैं, यही वजह है कि पन्ना को बुन्देलखण्ड क्षेत्र का वृन्दावन कहा जाता है। यहां पर रंगों के पर्व होली की पूरे पाँच दिनों तक धूम रहती है। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुु यह गीत गुनगुनाते हुये पन्ना के जुगुल किशोर मुरलिया में हीरा जड़े हैं होली का उत्सव मनाते हैं।

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