Tuesday, November 30, 2021

कोविड का बच्चों में हुए असर पर हुआ मंथन

  • बच्चों पर कोविड के प्रभाव से मुक्ति पर बनी साझा रणनीति
  • कोविड के कारण बच्चों के अधिकारों का हुआ लगातार हनन  

पृथ्वी ट्रस्ट कार्यालय पन्ना में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का द्रश्य। 

पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सन्दर्भ में बाल अधिकार विमर्श पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन पृथ्वी ट्रस्ट कार्यालय पन्ना में बाल श्रम विरोधी एवं प्रसून संस्था के सहयोग से किया गया। इस कार्यशाला का आयोजन कोविड के कारण बाल अधिकारों के हनन के सन्दर्भ में साथी संगठनो को मिलाकर  बच्चों के वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक ठोस रणनीति बनाने के उद्देश्य से किया गया। 

इस कार्यक्रम में पन्ना जिला की सामाजिक संस्थाओं और विभागों के साथ मिल कर बच्चों के मुद्दों पर चर्चा की गई। इस आयोजन में जिले में कार्यरत एक दर्जन संस्थाओं के साथी शामिल हुए। लगातार कोविड के कारण बच्चों के अधिकारों का हनन हुआ है। इस स्थिति में बालश्रम वर्तमान परिपेक्ष में कोविड के कारण निर्मित परिस्थितियों से बच्चो के अधिकारों को सुनिश्चित करने कि दिशा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बच्चो से संपर्क के दौरान हमारे भी अनुभव रहे है कि बच्चो कि वंचितता बढ़ी है। ऐसे समय में सभी साथी संगठनो द्वारा मिलकर बच्चो के वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक ठोस रणनीति बनाने का प्रयास किया गया। जिससे बच्चो के अधिकारों को सुनिषित कर सके। इस कार्यक्रम के दौरान कोविड काल में बच्चो के सन्दर्भ में किए गए अध्ययन को साझा किया गया इस कार्यक्रम में महिला एवं बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी ग्रामीण पन्ना द्वारा मुख्यमंत्री बाल सहायता योजना के सन्दर्भ में बताया गया कि जिन बच्चो के माता पिता एवं पालक कि मृत्यु कोरोना संक्रमण से हुई है। ऐसे अनाथ बच्चो कि परिवरिस एवं शिक्षा, स्वास्थ्य के सन्दर्भ में 21 बर्ष कि उम्र तक सहयोग कि विवस्था कि गई है। इस योजना के अंतर्गत प्रभावित परिवार के दो बच्चो को पांच- पांच रूपए प्रतिमाह आर्थिक सहायता का प्रावधान है। जिससे ऐसे बच्चो को सहारा प्राप्त हो सके। कोविड कि परिस्थितियां  में नागर समाज के साथियों द्वारा बच्चो कि शिक्षा स्वास्थ्य एवं मानसिक प्रभाव से जुड़े अपने अपने अनुभवो को साझा किया गया।

इस कार्यक्रम में प्रसून संस्था से प्रमोद, बचपन संस्था भोपाल से संजय सिंह, जिले की स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों एवं पृथ्वी ट्रस्ट पन्ना से समीना यूसुफ, विकास संवाद से रामऔतार तिवारी, रविकांत पाठक, समावेस से शालिगराम, धरती संस्था से सोनम यादव, इन्विरोनिक्स ट्रस्ट से बर्षा पटेल, संकल्प संस्था से मनोज सिंह, समर्पित संस्था से विकास मिश्रा, दलित बुमेन फाइट संस्था से भानु सिंह शामिल हुए। 

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Friday, November 26, 2021

अनूठी पहल : थाना प्रभारी ने पुराने भवन को बनाया विद्यादान पुस्तकालय

  • मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में बृजपुर के थाना प्रभारी बखत सिंह ने थाने की पुरानी अनुपयोगी बिल्डिंग का कायाकल्प कराकर उसे विद्यादान की पाठशाला बना दिया है। यहां अब ऑनलाइन व ऑफलाइन क्लासेज चलने लगी हैं, जहां थाना क्षेत्र के ग्रामों से गरीब परिवारों के बच्चे आकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

पुस्तकालय : पुलिस का अभियान विद्यादान 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। पुलिस के प्रति आम जनमानस में अच्छी धारणा नहीं होती, गांव के लोग तो पुलिस वालों से दूरी बनाकर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। लेकिन ग्रामीणों की इस सोच व धारणा को एक थाना प्रभारी ने अपने सकारात्मक प्रयासों से बदल दिया है। गांव के लोग अब पुलिस से भयभीत होने व उनसे दूरी बना कर रहने के बजाय उन्हें अपना हितेषी मानने लगे हैं। यह करिश्मा जिला मुख्यालय पन्ना से 30 किलोमीटर दूर बृजपुर के थाना प्रभारी बखत सिंह ने अपनी अनूठी पहल व प्रयासों से महज 5 माह में कर दिखाया है।

थाना प्रभारी बृजपुर बखत सिंह ने बताया कि 9 जुलाई 2021 को उन्होंने बृजपुर थाने का प्रभार संभाला था। आपने बताया कि बृजपुर थाना क्षेत्र के ग्रामों में गरीब आदिवासी समुदाय के लोगों सहित बड़ी संख्या में पिछड़ा वर्ग के लोग रहते हैं। इस इलाके में शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। बेहतर शिक्षा सुविधा न मिल पाने से गरीब परिवारों के प्रतिभाशाली बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते। बखत सिंह बताते हैं कि वे स्वयं गरीब परिवार से आते हैं इसलिए गरीबों की पीड़ा वा लाचारी को बखूबी समझते हैं। चर्चा करते हुए वे आगे बताते हैं की बृजपुर थाना परिसर में स्थित 1967 में बना पुराना भवन जर्जर व अनुपयोगी पड़ा था। इस पुराने भवन का कायाकल्प कराकर इसे विद्यादान पुस्तकालय में तब्दील कर क्षेत्र के होनहार बच्चों की मदद करने का विचार मेरे मन में आया। इस दिशा में मैंने पहल शुरू की और बीते 5 माह में ही यह सुंदर पुस्तकालय तैयार हो गया। जिसमें विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु ऑनलाइन व ऑफलाइन कक्षाएं भी चलने लगी हैं। इस विद्यादान पुस्तकालय को और अधिक उपयोगी व संसाधनों से सुसज्जित करने का प्रयास जारी है, जिसमें पुलिस महकमे के अधिकारियों व जनता का पूरा सहयोग मिल रहा है।

बृजपुर थाना परिसर का वह पुराना भवन जिसका कायाकल्प कराकर विद्यादान पुस्तकालय शुरू किया गया है। 

बखत सिंह बताते हैं कि शिक्षा अलादीन का वह चिराग है, जिससे जो चाहो वह अरमान पूरा हो सकता है। शिक्षा से ही जिन्न की तरह अवसर निकलेंगे और पूछेंगे कि आपको क्या बनना है। थाना प्रभारी बखत सिंह का मानना है कि अशिक्षा, नासमझी और जागरूकता के अभाव में आपराधिक घटनाएं ज्यादा होती हैं। शिक्षा की रोशनी फैलने से अपराधों में जहां कमी आएगी वहीं बेहतर पुलिसिंग में भी मदद मिलेगी। आप बताते हैं कि समाज में शांति और कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए पुलिस की सबको आवश्यकता है लेकिन पुलिस की बुराई भी सब करते हैं। पुलिस के प्रति इस नकारात्मक सोच को अच्छी पहल व व्यवहार से बदला जा सकता है। शांतिप्रिय लोग पुलिस से दोस्ताना संबंध रखें व अपराधी भयभीत रहें, हमारा यह प्रयास है। समाज के शांतिप्रिय लोग यदि हमारे पास नहीं आ रहे तो हम उनके पास जाएंगे, तभी संवाद स्थापित होगा।

शिक्षक व गांव के सरपंच भी रहे


पुस्तकालय के सामने बैठे बच्चे साथ में थाना प्रभारी बखत सिंह। 

वर्ष 2013 में पुलिस महकमे में आने से पहले बखत सिंह माध्यमिक शाला बेडरी जिला छतरपुर में 2001 से 2004 तक शिक्षक रहे हैं। इसके बाद ग्राम पंचायत शिवराजपुर तहसील राजनगर जिला छतरपुर के सरपंच बने और अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन किया। बखत सिंह बताते हैं कि 2009 से 2013 तक पुन: शासकीय हाई स्कूल मंडला जिला पन्ना में बतौर शिक्षक कार्य किया। तदुपरांत मेरा चयन पुलिस सब-इंस्पेक्टर के लिए हुआ और सागर व दमोह के बाद पन्ना जिले में अपनी सेवाएं दे रहा हूं। अपने थाना क्षेत्र में आम लोगों के बीच पुलिसिया रौब दिखाने के बजाय ग्रामीणों से संवाद कायम करने की इनकी अपनी अलग शैली है। सुबह उठने के बाद थाना क्षेत्र के ग्रामों में भ्रमण हेतु साइकिल से निकल पड़ते हैं और प्रतिदिन 30 से 40 किलोमीटर साइकिल से घूम कर ग्रामीणों से संवाद कर इलाके की गतिविधियों सहित अपराधी तत्वों के बारे में भी जानकारी हासिल करते हैं। ग्राम पंचायत बृजपुर के सरपंच ऋतुराज दीक्षित बताते हैं कि बखत सिंह ने जब से थाना प्रभारी का कार्यभार संभाला है अपराधों में कमी आई है। अब गांव के लोग भी इनके कार्यों की सराहना करने लगे हैं।

विद्यादान पुस्तकालय का मंत्री ने किया लोकार्पण



बृजपुर थाना परिसर में होनहार गरीब बच्चों के लिए स्थापित विद्यादान पुस्तकालय का प्रदेश के खनिज मंत्री व    स्थानीय विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह ने 22 नवंबर को लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि समाज में बदलाव और   अपराधों की रोकथाम के लिए शिक्षा जरूरी है। खनिज मंत्री ने कहा कि व्यक्ति की पहचान पद से नहीं बल्कि   कार्य से होती है। थाना परिसर में नि:शुल्क लाइब्रेरी व कक्षाओं का संचालन सराहनीय प्रयास के साथ ही पुलिसिंग का एक नया स्वरूप है, जिसका लाभ इलाके के ग्रामीण बच्चों को मिलेगा। मंत्री ने थाना प्रभारी बखत सिंह के  अभिनव पहल की सराहना की।                                                                                                                 

पन्ना के पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीणा का कहना है कि पुलिस का यह सृजनात्मक कार्य बच्चों के भविष्य और क्षेत्रवासियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। समाज में बदलाव के लिए ऐसे सकारात्मक प्रयासों की जरूरत है। आपने बताया कि आम लोगों की समस्याओं व शिकायतों के निराकरण में भी बृजपुर थाना अग्रणी है। पुलिस अधीक्षक श्री मीणा ने कहा कि बृजपुर को आदर्श थाना के रूप में स्थापित करने और आईएसओ प्रमाण पत्र के लिए भी प्रयास किया जायेगा।

दिसंबर महीने के लिए लक्ष्य निर्धारित 

अपने अभिनव प्रयोगों को लेकर चर्चा में आए थाना प्रभारी बखत सिंह ने बताया कि नशा पर रोक हेतु भी प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि विद्यादान पुस्तकालय में आने वाले बच्चों व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों से एक शपथ पत्र लेते हैं कि वे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करेंगे न ही अपने परिवार के सदस्यों को करने देंगे। यदि कोई कर रहा है तो उन्हें समझाएंगे कि वे नशा ना करें। विद्यार्थियों के परिजनों से भी निरंतर संवाद व मेल- मिलाप करने का हम प्रयास करेंगे ताकि शिक्षा के साथ-साथ नशा मुक्ति व अपराधों से मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ सकें।

बखत सिंह आगे बताते हैं कि आने वाले दिसंबर के महीने की कार्य योजना व लक्ष्य हमने निर्धारित किए हैं। जिसमें क्लीन अवर केंपस, प्ले जोन फॉर पुलिस, किड्स प्ले जोन, सीनियर सिटीजन डेस्क, महिला डेस्क, बाल कल्याण अधिकारी डेस्क, कंप्लेंट बॉक्स, फर्स्ट एड बॉक्स व अग्निरोधक यंत्र की सुविधा मुहैया कराना है। इसके अलावा थाना क्षेत्र के प्रत्येक गांव से कम से कम 5 व्यक्तियों को ग्राम रक्षा समिति में जोडऩे तथा गांव के कोटवारों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है, जिसे एक माह में पूरा करना है।

वीडियो :



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Wednesday, November 24, 2021

पन्ना की उथली खदान से मजदूर को मिला 6.66 कैरेट वजन का हीरा


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्न गर्भा धरती ने आज फिर एक गरीब मजदूर को रंक से राजा बना दिया है। पन्ना शहर के आगरा मोहल्ला निवासी 33 वर्षीय समसेर खां को हीरापुर टपरियन उथली खदान क्षेत्र से आज बुद्धवार को सुबह जेम क्वालिटी (हल्का पीलापन) वाला 6.66  कैरेट वजन का हीरा मिला है। इस हीरे की अनुमानित कीमत 12 से 15 लाख रुपए बताई जा रही है। खदान में हीरा मिलने की खबर के बाद से समसेर के घर में जश्न और खुशी का माहौल है। हीरा धारक समसेर खां अपने परिजनों व मित्रों के साथ दोपहर में कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय आकर वहां विधिवत हीरा जमा कर दिया है।

हीरा कार्यालय पन्ना के पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि जमा हुए हीरे का वजन 6.66 कैरेट है. जो उज्जवल किस्म का लेकिन हल्का पीलापन लिए हुए है। हीरे की कीमत पूछे जाने पर हीरा पारखी ने कहा कि इसकी कीमत अभी नहीं बताई जा सकती। आपने बताया कि आगामी होने वाली नीलामी में इस हीरे को रखा जाएगा। नीलामी में हीरा बिकने पर रॉयल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा मालिक को प्रदान की जायेगी। आपने बताया कि हीरापुर टपरियन उथली खदान क्षेत्र में इसके पूर्व 8.22 कैरेट वजन का हीरा पन्ना के ही बेनीसागर मोहल्ला निवासी रतन प्रजापति को मिला था। उज्जवल किस्म का यह हीरा विगत सितम्बर माह में हुई हीरों की खुली नीलामी में 37 लाख 7 हजार 220 रुपये में बिका था। 

हीरा कार्यालय में सिर्फ दो हवलदार  

देश का इकलौता हीरा कार्यालय में कर्मचारियों की भारी कमी है, जिसके कारण जहाँ कामकाज प्रभावित होता है वहीँ हीरा खदान क्षेत्रों की समुचित निगरानी न हो पाने के कारण बहुत ही कम हीरा जमा हो पाते हैं। उथली हीरा खदानों से निकलने वाले ज्यादातर हीरे चोरी - छिपे बिक जाते हैं। हीरा कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार मौजूदा समय यहाँ सिर्फ दो हवलदार बचे हैं जबकि पूर्व में हीरा खदानों की निगरानी के लिए 34 हवलदार पदस्थ थे। इसके अलावा हीरा कार्यालय में सिर्फ एक बाबू, एक वैल्युवर व एक चौकीदार है। हीरा अधिकारी का प्रभार भी खनिज अधिकारी को मिला हुआ है। पहले यहाँ जिला मुख्यालय स्थित हीरा कार्यालय के अलावा दो उप कार्यालय इटवां और पहाड़ीखेरा में थे लेकिन अब दोनों ही कार्यालय कर्मचारियों की कमी के चलते बंद हैं। 

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Monday, November 22, 2021

व्यक्ति की पहचान पद से नहीं, बल्कि कार्य से होती है: मंत्री

  • बृजपुर पुलिस थाना में विद्यादान पुस्तकालय का मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने किया लोकार्पण
  • यहाँ लाइब्रेरी का संचालन पुलिस के सराहनीय प्रयास के साथ ही पुलिसिंग का नया स्वरूप

लोकार्पण अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह। 

पन्ना। समाज में बदलाव और अपराध की रोकथाम के लिए शिक्षा जरूरी है। जाति और धर्म की बात करने के बजाय विचार में परिवर्तन की आवश्यकता है। व्यक्ति की पहचान पद से नहीं, बल्कि कार्य से होती है। उक्त उद्गार खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने बृजपुर थाना परिसर में ई-लाइब्रेरी के लोकार्पण अवसर पर कही।

उन्होंने कहा कि बड़ी विचारधारा और सोच के साथ समाज की बेहतरी के लिए कार्य करें। यहां लाइब्रेरी का संचालन पुलिस के सराहनीय प्रयास के साथ ही पुलिसिंग का नया स्वरूप है। विद्यादान सबसे बड़ा दान है। समाज की सेवा किसी भी क्षेत्र में कार्य कर की जा सकती है। मंत्री श्री सिंह ने अपराध की रोकथाम के लिए शिक्षा के साथ-साथ युवाओं को रोजगार से जोड़ने की बात कही और इस कार्य में हरसंभव मदद का भरोसा दिया। थाना प्रभारी बख्त सिंह के इस सराहनीय कार्य के लिए प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में प्रतिभाशाली बच्चों का सम्मान कार्यक्रम किया जाएगा। रमखिरिया के नवोदय विद्यालय के बच्चों से भी मुलाकात करेंगे।

पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीणा ने इस अवसर पर कहा कि पुलिस का सृजनात्मक कार्य बच्चों के भविष्य और क्षेत्रवासियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। समाज में बदलाव के लिए ऐसे सकारात्मक प्रयासों की जरूरत है। यहां सुरक्षा और शिक्षा की भावना से प्रेरित होकर इस कार्य की शुरूआत की गई है। उन्होंने बृजपुर थाना को आदर्श थाना के रूप में स्थापित करने और आईएसओ प्रमाण पत्र के लिए प्रयास करने की बात कही। उन्होंने कहा कि शिकायतो के निराकरण में बृजपुर थाना अव्वल है। नागरिकों के सुझाव पर और बेहतर कार्य करने का प्रयास होगा। ग्राम और नगर रक्षा समिति को अधिक सुदृढ़ बनाया जाएगा।

मंत्री द्वारा कार्यक्रम के अवसर पर सेवानिवृत्त शिक्षक लक्ष्मी प्रसाद मिश्रा और गंगा बसोर का सम्मान भी किया गया। इस अवसर पर नवोदय विद्यालय के प्राचार्य सहित थाना स्टॉफ, आम नागरिक और स्कूली छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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नशा एवं तनाव ही दुर्घटना का कारण: ब्रह्माकुमारी बहनजी

  • मानवीय मूल्य अपनायें और सुरक्षित यात्रा करें
  • टेंशन नहीं अटेंशन रखें दुर्घटना से बचें: बहनजी

 

कार्यक्रम में दीप प्रज्जवलित कर श्रद्धांजलि अर्पित करते अतिथि साथ में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी बहन। 

पन्ना। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, पन्ना की ओर से सड़क दुर्घटना पीड़ितों के प्रति ''विश्व स्मृति दिवस'' कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में ब्रह्माकुमारी सीता बहनजी ने कहा कि नशा एवं तनाव के चलते ही ज्यादातर सड़क दुर्घटनायें होती हैं। गाड़ी चलाते समय यदि टेंशन की जगह  अटेंशन रहे तो सड़क दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। कार्यक्रम में ए.डी. कनारे थाना प्रभारी, यातायात पुलिस सुनील पाण्डेय, सज्जन प्रसाद मुंशी, यातायात स्टाफ तथा श्रीमती निशा जैन एवं अन्य गणमान्यजन उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की सराहना करते हुये कनारे जी ने सभी को बताया कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से समाज में यातायात सुरक्षा के प्रति काफी जागरूकता आएगी। उन्होंने ऐसे कार्यक्रम आगे भी कराने का आग्रह किया। साथ ही उन्होंने सभी को सड़क सुरक्षा संबंधी नियमों की जानकारी देते हुये कहा कि, आज अधिकांशत: दुर्घटनायें नशे के सेवन से हो रही हैं। वाहन चलाते समय मोबाईल पर बात ना करें, हेलमेट लगाकर एवं शीट बेल्ट बांधकर ही वाहन चलायें एवं वाहनों में अधिकतम सीमा से ज्यादा लोगों के साथ यात्रा करने से बचें।

ब्रह्माकुमारी सीता बहनजी ने सभी को समझाते हुये कहा कि, यातायात एवं परिवहन हर एक मनुष्य के जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है, सभी का लक्ष्य होता है कि, हम सही समय पर आराम से अपने गंतव्य तक पहुंच जायें। लेकिन अचानक दुर्घटना हो जाना यह जीवन की बहुत बड़ी विडम्बना है। वर्तमान समय अच्छी सड़के, अच्छे वाहन होने के बाद भी रोड एक्सीडेंट दिनोदिन बढ़ रहे हैं, जिससे पूरे विश्व में प्रतिदिन अनेक लोगों की मौत हो जाती हैं या शारीरिक रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इन दुर्घटनाओं का 90 प्रतिशत कारण मानवीय भूल एवं 10 प्रतिशत अन्य कारणों से होता है। जिसमें सबसे बड़ी भूल सड़क सुरक्षा के नियमों के प्रति जागरूक ना होना है। इन दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिये मानवीय प्रवृत्ति को बदलना अतिआवश्यक है। सड़क पर मानसिक तनाव की स्थिति में अशांत मन से जल्दीबाजी में एक दूसरे से आगे जाने की होड़ में ट्राफिक नियमों को अनदेखा कर गाड़ी चलायेंगे तो निश्चित् ही दुर्घटना का शिकार होंगे।

अत: अपने अमूल्य जीवन की रक्षा के लिये सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करते हुये शांत मन से वाहन चलायें। अपने सहभागियों के प्रति सद्भाव रखें तो यात्रा सुखद और आसान होगी। माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे वाहन के साथ-साथ श्रेष्ठ संस्कार भी देवें तो जीवन रूपी यात्रा में भी सफलता प्राप्त होगी। आगे आपने कहा कि यातायात ट्राफिक कंट्रोल के साथ-साथ मन के विचारों का ट्राफिक भी कंट्रोल करना अत्यावश्यक है। अत: तनाव मुक्त जीवन जीने के लिए प्रतिदिन कुछ समय मेडीटेशन के लिए अवश्य निकालें क्योंकि आज अधिकतम दुर्घटनायें नशे और तनाव के कारण घटित हो रही हैं।

इस मौके पर प्रोजेक्टर के माध्यम से सड़क सुरक्षा का वीडियो दिखाकर सभी को जागरूक किया गया। कार्यक्रम के दौरान सभी भाई-बहनों ने दुर्घटना पीड़ितों को दीप प्रज्जवलित कर श्रद्धांजलि अर्पित की एवं मौन धारण करके दुर्घटना पीड़ितों को मेडीटेशन के द्वारा शुभभावना एवं शुभकामना के वायब्रेशन दिए।

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Saturday, November 20, 2021

बहुचर्चित केन-बेतवा लिंक परियोजना के डीपीआर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

  •  सर्वोच्च न्यायालय में समाजसेवी इंजी. योगेन्द्र भदौरिया ने लगाई याचिका 
  •  परियोजना के औचित्य पर सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने भी उठाये थे सवाल

पन्ना जिले से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी। 
।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। देश की बहुचर्चित व केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना एक बार फिर चर्चा में है। इस परियोजना के डीपीआर को दोषपूर्ण बताते हुए पन्ना के समाजसेवी इंजी. योगेन्द्र भदौरिया ने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका लगाई है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इस परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में यह पहली याचिका हो, ऐसा नहीं है। इसके पूर्व भी अन्य लोगों द्वारा याचिकाएं लगाई गई हैं, लेकिन यह याचिका थोड़ी भिन्न है। इसमें पर्यावरणीय क्षति व बाघों के रहवास को होने वाले नुकसान के साथ परियोजना के डीपीआर पर सवाल उठाये गए हैं। सबसे अहम बात यह है कि पुनर्विचार याचिका लगाने वाले इंजी योगेन्द्र भदौरिया संघ व भाजपा से जुड़े व्यक्ति हैं। यही वजह है कि इस याचिका ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया है।     

श्री भदौरिया ने केन-बेतवा रिवर लिंकिंग परियोजना की डीपीआर को चैलेंज करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है कि परियोजना को दोबारा रिव्यू कर उसकी कमियों को दूर किया जाय। उच्चतम न्यायालय द्वारा याचिका को केन परियोजना से संबंधित दूसरे मामलों के साथ सुनवाई करने का निर्देश दिया गया है। श्री भदौरिया ने बताया कि उक्त परियोजना की डीपीआर तकनीकी रूप से दोषपूर्ण है तथा क्रियान्वयन योग्य नहीं है। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में जलभराव, निर्माण योजना तथा सिंचाई क्षेत्र के बढ़त संबंधी आंकड़े तथा विवरण गलत हैं। 

इसके अतिरिक्त प्रोजेक्ट रिपोर्ट नदी के डाउनस्ट्रीम बहाव पर पडऩे वाले प्रभाव के संबंध में कुछ भी आंकड़े देने में अक्षम है, जिससे डाउनस्ट्रीम में केन नदी के किनारे पडने वाले कई गांव में जनजीवन कृषि तथा सिंचाई इत्यादि की हानि होना संभव है। याचिका पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव के विषय में भी उल्लेख करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय का ध्यान लाखों पेड़ों की कटाई, वन क्षेत्र का डूब में आना तथा क्रिटिकल टाइगर एवं वल्चर हैबिटेट नष्ट होने की ओर आकर्षित करती है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि हाल ही में मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के मध्य जल बंटवारा संबंधी समझौता मध्य प्रदेश के हितों के विपरीत है। 

उपरोक्त आधारों पर योगेंद्र भदौरिया द्वारा इस परियोजना पर पुनर्विचार कर नई डीपीआर तैयार करने हेतु प्रार्थना की गई है। इस दौरान पुरानी तथा दोषपूर्ण डीपीआर पर किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगाने हेतु भी अनुरोध किया गया है। योगेंद्र भदौरिया की तरफ से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉक्टर सर्वम ऋतम खरे द्वारा की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि शुरूआती दौर से ही विवादों के घेरे में रही इस परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) ने जो रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी थी, उसमें भी परियोजना के औचित्य पर सवाल उठाये गए थे।  मालुम हो कि केन-बेतवा लिंक परियोजना से बाघों के रहवास, पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली अपूर्णीय क्षति की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुये मनोज मिश्रा द्वारा भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि पर्यावरणीय अध्ययन में क्षति का सही आँकलन नहीं किया गया है। 

इस याचिका में उठाये गये सवालों तथा परियोजना की जमीनी हकीकत जानने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर उसे मौके पर जाकर जाँचने और सत्यापन के आदेश दिये थे। यह कमेटी 27 मार्च से 30 मार्च 19 तक मौके का जायजा लेने के साथ ही पन्ना टाईगर रिजर्व के अधिकारियों, याचिकाकर्ता सहित अन्य लोगों से चर्चा कर हकीकत जानने का प्रयास किया था। पूरे पाँच माह बाद सीईसी ने 93 पृष्ठ की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कमेटी ने यह माना है कि बेतवा बेसिन में पानी की कमी है लेकिन वहां के लिये केन नदी और उसके पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह नहीं किया जा सकता है।

मालुम हो कि केन नदी म.प्र. स्थित कैमूर की पहाड़ी से निकलती है और 427 किमी की दूरी तय करने के बाद उ.प्र. के बांदा में यमुना नदी से मिल जाती है। वहीं बेतवा म.प्र. के रायसेन जिले से निकलती है और 590 किमी की दूरी तय करने के बाद उ.प्र. के हमीरपुर जिले में यमुना से मिल जाती है। दोनों नदियों की यदि तुलना की जाये तो बेतवा नदी की लम्बाई केन नदी से 2.19 गुना अधिक है। दोनों नदियों के कछार के क्षेत्रफल में भी काफी अन्तर है। केन का 28,058 वर्ग किमी है जबकि बेतवा का कछार 46,580  वर्ग किमी है जो केन की तुलना में 1.66 गुना बड़ा है। यहां पर यह मौलिक प्रश्र उठता है कि क्या छोटी नदी से बड़ी नदी में पानी को ले जाना तकनीकी रूप से सही है ? केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में प्रस्तुत की गई पर्यावरणीय अध्ययन रिपोर्ट भी भ्रामक और तथ्यों से परे है। जिसको लेकर पन्ना टाईगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति  ने विरोध दर्ज कराते हुये वास्तविक तथ्यों से अवगत कराया था। 

बुन्देलखण्ड क्षेत्र के शुष्क वनों में बाघों का एक मात्र शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व है, जिसका क्षेत्रफल महज 542 वर्ग किमी है। यह सर्व विदित है कि वर्ष 2009 में यह वन क्षेत्र बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप यहां पर बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। इस योजना को चमत्कारिक सफलता मिली और पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल बाघों से फिर आबाद हो गया। पन्ना का गौरव वापस लौटाने से म.प्र. का खोया हुआ गौरव भी हासिल हो गया है। म.प्र. को टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में पन्ना की अहम भूमिका रही है। 

अब बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाईगर रिजर्व के भरे-पूरे संसार को फिर से उजाड़े जाने की कोई भी गतिविधि किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कही जा सकती। केन-बेतवा गठजोड़ से डाउन स्ट्रीम के केन घडिय़ाल अभ्यारण्य का जहां वजूद मिट जायेगा वहीं दर्जनों प्रजाति के वन्य प्राणियों व हजारों हेक्टेयर में फैला जंगल भी नष्ट हो जायेगा। पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली इस क्षति की भरपाई कर पाना संभव नहीं है। नदियों के प्राकृतिक प्रवाह के साथ छेड़छाड़ करने का मतलब पारिस्थितिकीय आपदा को बुलाना है।

सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु

  • केन-बेतवा लिंक परियोजना के अन्तर्गत डूब में आने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का जंगल पारिस्थितिकी तंत्र और संरचना की दृष्टि से अनूठा है। जैव विविधता के मामले में भी यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध है। इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र को पुन: विकसित नहीं किया जा सकता।
  • सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परियोजना के लिये 6017 हेक्टेयर वन भूमि जो अधिगृहित की जा रही है, वह पन्ना टाईगर रिजर्व का न सिर्फ कोर क्षेत्र है अपितु बाघों का प्रिय रहवास भी है। इस वन क्षेत्र के डूब में आने से 10,500 हेक्टेयर वन क्षेत्र और प्रभावित होगा। यह वन क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व से पृथक होकर दो टुकड़ों में बँट जायेगा, जिससे वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित होगा।
  • परियोजना पर जितना पैसा खर्च होगा उससे प्रति हेक्टेयर सिंचाई  में 44.983 लाख रू. व्यय आयेगा। यदि स्थानीय स्तर पर गाँव के पानी को गाँव में ही रोकने के लिये छोटी परियोजनाओं व जल संरचनाओं पर ध्यान दिया जाये तो कम खर्च में न सिर्फ कृषि भूमि सिंचित हो सकती है अपितु जंगल, बाघ व वन्य प्राणियों के रहवास को भी बचाया जा सकता है।
  • सीईसी ने नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ द्वारा केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिये सहमति प्रदान करने के निर्णय पर प्रश्र चिह्न लगाते हुये कहा है कि वन्य प्राणियों के रहवास, अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को अनदेखा किया गया है। डूब क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर एरिया है, इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया।
  • सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने रिपोर्ट में  द्रढता के साथ यह बात कही है कि किसी भी विकास परियोजना को देश  में बचे इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और बाघों के अति महत्वपूर्ण रहवासों को नष्ट करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये। बेहतर यह होगा कि इस तरह की परियोजनाओं को संरक्षित वन क्षेत्रों से प्रथक रखा जाय। संरक्षित वन क्षेत्रों में इस तरह की विकास परियोजनायें न तो वन्य प्राणियों के हित में हैं और न ही लम्बे समय तक समाज के हित में है।

पूर्व कलेक्टर ने परियोजना को बताया था पन्ना के लिए त्राशदी 

इंसान के जीवन की सबसे अहम जरूरत शुद्ध हवा और पानी है। जमीन की तरह पानी भी प्रकृति की दी हुई ऐसी सौगात है जिसे हम कृत्रिम रूप से नहीं बना सकते। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा (ऑक्सीजन) हमें वृक्ष प्रदान करते हैं। यदि हमसे पानी और हवा को जबरन छीन लिया जाए, तो हमारी क्या हालत होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। केन बेसिन में रहने वाले लोगों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। नदी जोड़ो परियोजना के जरिए हमारे जीवन का आधार पानी और हवा दोनों हमसे छीना जा रहा है।

पन्ना जिले की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने एक दशक पूर्व ही केन-बेतवा लिंक परियोजना के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए चेताया था। उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को लिखकर यह बताया था कि यदि केन बेसिन के लोगों की पानी की बुनियादी जरूरतें पूरी की जाएं तो केन नदी में कोई अतिरिक्त पानी ही नहीं बचेगा। उन्होंने यहां तक लिखा था कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना केन बेसिन के लोगों के लिए एक त्रासदी होगी।

लिंक परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य

  •  बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवनदायिनी केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।
  •   जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।
  • बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।
  •  ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली लिंक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।
  • बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।
  • 105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।

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प्रणामी धर्मावलम्बियों की अनूठी परम्परा जो देती है प्रकृति से प्रेम करने की सीख

  • प्रणामी धर्मावलम्बियों के सबसे बड़े तीर्थ पन्ना धाम में पिछले लगभग चार सौ सालों से पृथ्वी परिक्रमा करने की परंपरा चली आ रही है जो आज भी जारी है। शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को पृथ्वी परिक्रमा होती है, जिसमें देश के विभिन्न प्रान्तों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

जंगल में नदी नालों को पार कर पृथ्वी परिक्रमा में श्रद्धालु इस तरह तय करते हैं 30 किलोमीटर लंबा सफर। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। समूचे विश्व में भारत इकलौता देश है जहाँ सदियों पूर्व बसुधैव कुटुंबकम की उद्घोषणा की गई थी। यह इस देश की खूबसूरती है कि यहाँ पर विविध धर्मावलम्बियों की धार्मिक आस्थाओं व परम्पराओं को न सिर्फ पूरा सम्मान मिलता है अपितु उन्हें पल्लवित और पुष्पित होने का अवसर व अनुकूल वातावरण भी सहज उपलब्ध होता है। यही वजह है कि हमारे देश में हर धर्म और हर जाति के लोगों की अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं मौजूद हैं। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना शहर में लगभग चार सौ सालों से चली आ रही है। प्राचीन भव्य मंदिरों के इस शहर पन्ना में प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र श्री प्राणनाथ जी का मंदिर स्थित है, जो प्रणामी धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।  

इसी प्रणामी संप्रदाय के अनुयाई और श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। यहाँ किलकिला नदी के किनारे व पहाड़ियों के बीचों बीच बसे समूचे पन्ना नगर के चारों तरफ परिक्रमा लगाकर भगवान श्री कृष्ण के उस स्वरूप को खोजते हैं, जो कि शरद पूर्णिमा की रासलीला में उन्होंने देखा और अनुभव किया है। अंतर्ध्यान हो चुके प्रियतम प्राणनाथ को उनके प्रेमी सुन्दरसाथ भाव विभोर होकर नदी, नालों, पहाड़ों तथा घने जंगल में हर कहीं खोजते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं।

पन्ना शहर में स्थित महामति श्री प्राणनाथ जी का मंदिर, जो प्रणामी धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र है। 

मंदिरों की नगरी पन्ना में शुक्रवार 19 नवम्बर को पूरे दिन पृथ्वी परिक्रमा की धूम रही। कोरोना संकट की बंदिशों में ढील मिलने के कारण  देश के कोने-कोने से आये हजारों श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति भाव और उत्साह के साथ पृथ्वी परिक्रमा में भाग लिया। चापा छत्तीसगढ़ से पन्ना धाम पहुंचीं कमला शर्मा (60 वर्ष) ने बताया कि पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने से जो शांति व सुकून मिलता है, उसे कह पाना कठिन है। वे बताती हैं कि चौथी बार पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने पन्ना आई हैं। यह अनूठी परम्परा हमें प्रकृति से प्रेम करने की सीख देती है। उनके साथ चापा छत्तीसगढ़ से ही कांता अग्रवाल (50 वर्ष) व सीता अग्रवाल (48 वर्ष) पहली बार यहाँ आई हैं। 

कांता अग्रवाल बताती हैं कि पन्ना पुण्य भूमि है और इस भूमि की परिक्रमा करना सौभाग्य की बात है। नदी, नालों, पहाड़ों और घने जंगलों से होकर पूरे पन्ना धाम की परिक्रमा गाते-बजाते करना सुखद अनुभव है। कार्तिक पूर्णिमा को सुबह 6 बजे से ही सैकड़ों फिट गहरे कौआ सेहा से लेकर किलकिला नदी के प्रवाह क्षेत्र व चौपड़ा मंदिर हर कहीं प्राणनाथ प्यारे के जयकारे गूँज रहे थे। रोमांचित कर देने वाले आस्था एवं श्रद्धा के इस सैलाब से पवित्र नगरी पन्ना का कण-कण प्रेम और आनंद से सराबोर हो उठता है। 

पृथ्वी परिक्रमा मार्ग में चौपड़ा मंदिर के सामने वट वृक्ष के नीचे थकान मिटाते श्रद्धालु। 

मालुम हो कि प्रकृति के निकट रहने तथा विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख देने वाली इस अनूठी परम्परा को प्रणामी संप्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने आज से लगभग 398 साल पहले शुरू किया था, जो आज भी अनवरत् जारी है। इस परम्परा का अनुकरण करने वालों का मानना है कि पृथ्वी परिक्रमा से उनको सुखद अनुभूति तथा शान्ति मिलती है। महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर पन्ना के पुजारी देवकरण त्रिपाठी ने बताया कि पवित्र नगरी पन्ना में कार्तिक पूर्णिमा को हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से आये सुंदरसाथ व स्थानीय जनों द्वारा पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होकर धर्मलाभ उठाया गया है। 

उन्होंने बताया कि कार्तिक शुक्ल की पूर्णमासी पर प्रात: 6  बजे से चारों मंदिरों की परिक्रमा के साथ पृथ्वी परिक्रमा का शुभारम्भ हुआ। प्रणामी संप्रदाय की इस अनूठी परंपरा के बारे में पं. दीपक शर्मा (54 वर्ष) बताते हैं कि श्री प्राणनाथ जी मंदिर से पृथ्वी परिक्रमा की शुरुवात सुबह 6 बजे से हो जाती है जो देर रात्रि तक चलती रहती है।

बच्चे व महिलाएं भी उत्साह से करते हैं पृथ्वी परिक्रमा। 

श्री त्रिपाठी बताते हैं कि सर्वप्रथम आये हुये श्रद्धालुओं ने पन्ना नगर में स्थित श्री प्राणनाथ जी मंदिर, गुम्मट जी मंदिर, श्री बंगला जी मंदिर, सद्गुरू धनी देवचन्द्र जी मंदिर, बाईजूराज राधिका मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ सिर नवाया तदुपरांत धूमधाम के साथ यात्रा शुरू की। पूरी परिक्रमा लगभग 30 किमी. की हो जाती है, जिसमें महिला, पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग भी बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं। मंदिर ट्रस्ट व नगरवासियों द्वारा परिक्रमा मार्ग पर जगह - जगह चाय, पानी व खाने का इंतजाम रहता है जिसे श्रद्धालु प्रसाद की तरह ग्रहण करते हैं। परिक्रमा में शामिल लोग रास्ते में बच्चों को टाफियां व मिठाई आदि भी बड़े प्रेम भाव से बांटते हैं तथा गरीबों को पैसा व सामग्री भेंट करते हैं। बुद्धवार कार्तिक पूर्णिमा के दिन गाँव कनेक्शन की टीम ने परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के अनुभवों को साझा किया।

हजारों की संख्या में श्रद्धालु जिन्हे प्रणामी संप्रदाय में सुन्दरसाथ कहा जाता है वे नाचते गाते, झूमते और तरह - तरह के वाद्य यन्त्र बजाते हुए चल रहे थे। जंगल के रास्ते से होते हुये श्रद्धालुओं की टोलियां प्राकृतिक व रमणीक स्थल चौपड़ा मंदिर जब पहुंचतीं तो यहां पर प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करते हुये कुछ देर विश्राम कर प्रसाद आदि ग्रहण करतीं और फिर अपनी अल्प थकान को मिटाकर आगे की यात्रा पर निकल पड़तीं। 

पं. दीपक शर्मा बताते हैं कि इस साल पृथ्वी परिक्रमा में गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के दमोह, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, इन्दौर व उज्जैन आदि जिलों से लगभग 15 हजार सुन्दरसाथ शामिल हुए हैं। सिक्किम व नेपाल से भी अनेकों सुन्दरसाथ पृथ्वी परिक्रमा में भाग लेने पन्ना धाम आये हैं।

 नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से गुजरे श्रद्धालु


वृद्ध महिला को उठाकर पृथ्वी परिक्रमा कराते परिजन।

नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से श्रद्धालु जब जयकारे लगाते हुए गुजर रहे थे, तब यह नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। कौआ सेहा की गहराई, चारो तरफ फैली हरीतिमा तथा जल प्रपात का कर्णप्रिय संगीत और जहाँ-तहाँ चट्टानों पर बैठकर विश्राम करती श्रद्धालुओं की टोली, सब कुछ बहुत ही मनभावन लग रहा था। जानकारों के मुताबिक इस परिक्रमा की दूरी करीब 27 किलोमीटर के आसपास होती है। पहाड़ी को पार करते हुये मदार साहब, धरमसागर, अघोर होकर यह विशाल कारवां खेजड़ा मंदिर में पहुंचा। यात्रा में रंग विरंगे कपड़े पहने मुस्कुराते बच्चे, सुन्दर परिधानों से सुसज्जित महिलायें, युवा, युवतियाँ व वृद्धजन अपने-अपने विशिष्ट अंदाज में दिखे। खेजड़ा मंदिर पहुंचने पर वहां महाआरती सम्पन्न की गई व प्रसाद वितरण हुआ। तत्पश्चात सभी सुन्दरसाथ कमलाबाई तालाब से होते हुये किलकिला नदी को पारकर उसी स्थान पर पहुंचे जहां से परिक्रमा शुरू की गई थी।

वीडियो : नाचते गाते पृथ्वी परिक्रमा करते श्रद्धालु -



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Thursday, November 18, 2021

5वीं सदी से मिलता है उच्चकल्प के धातु शिल्पी ताम्रकारों का इतिहास


ख्यातिलब्ध कृषक पद्मश्री बाबूलाल दाहिया साथ में सोमचन्द ताम्रकार। 

।। बाबूलाल दाहिया ।।

      मित्रों! मेरे बगल में बैठे उचेहरा नगर में धातु शिल्प का ब्यावसाय करने वाले सोमचन्द ताम्रकार हैं। अमूमन देखा जाता है कि लोग अपनी अधिकतम 3-4 पीढ़ी की जानकारी ही रखते हैं, पर सोमचन्द जी को अपने पिता मदन मोहन ताम्रकार से लेकर क्रमश: राम भजन, विशाल, राममिलन, शिद्ध गोपाल ताम्रकार तक की जानकारी है। और उसी में यदि उनके बेटे शिवांशु को शामिल कर लिया जाय तो 7 पीढ़ी हो जाती हैं। पर इतना ही नहीं उनके पास इन तमाम पीढ़ियों के यादगार के रूप में पीतल कांसे आदि के कुछ पुराने कलात्मक  बर्तन भी रखे हैं।

यूँ तो उचेहरा नगर में ताम्रकार समुदाय के पचासों घर हैं लेकिन सोमचन्द्र जी का परिवार कई शताब्दियों से यहां का प्राचीनतम निवासी रहा है।    पुरातात्विक महत्व के प्राचीन स्थल भरहुत को अगर छोड़ दिया जाय तो उचेहरा उन पुराने नगरों में एक है जिसका इतिहास 5वीं सदी से शुरू होता है । और वह ताम्रकार समुदाय के कारण ही।

क्योकि प्राचीन काल में दूर-दूर तक के राजे महाराजों द्वारा जो भी ब्राम्हणों को भूमिदान दिया जाता था, उस दान के लिए ताम्रपत्र उच्चकल्प के ताम्रकारों  द्वारा ही बनाए जाते थे। एवं उसमे महाभारत का भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर को सम्बोधित संस्कृत का एक श्लोक रहता था जिसका आशय होता था  कि-- "हे युधिष्ठिर! जो राजा ब्राम्हणों को भूमि दान देता है वह 10 हजार वर्ष तक स्वर्ग में बास करता है। किन्तु दान की गई भूमि ब्राम्हणों से छीन लेने पर उतने ही वर्ष उसे नर्क में रहना पड़ता है।")

यही कारण था कि राज्य सत्ता बदल जाने के बाद भी ब्राम्हणों को दान में दी गई जमीन नहीं छीनी जाती थी। हम तो सोमचन्द्र जी के पुराने बर्तनों के स्टॉक को देख हर्ष विभोर हो गए। क्योंकि हमारा उद्देश्य भी ऐसे वर्तनों को क्रय करना ही रहा है जिन्हें हम अपने संग्रहालय में रख सकें। हमारा लक्ष्य ऐसे लगभग 200 खेती किसानी से जुड़े उपकरणों को संग्रहीत कर म्यूजियम में रखने का है जो अब खेती की पद्धति बदल जाने पर विलुप्तता के गहरे गर्त में समाते जा रहे हैं। क्योंकि उनमें 20-25  धातु शिल्पी ताम्रकारों द्वारा निर्मित वस्तुए भी हैं।

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Thursday, November 11, 2021

टाइगर स्टेट में आखिर क्यों नहीं थम रहा बाघों की मौत का सिलसिला

  •  पन्ना में युवा बाघिन पी-213 (63) की मौत से उठ रहे सवाल 
  • वर्ष 2018 की बाघ गणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में बाघों की सबसे अधिक संख्या मध्यप्रदेश में 526, कर्नाटक में 524 तथा उत्तराखंड में 442 पाई गई थी। लेकिन टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल कर चुके मध्यपदेश में जिस तरह से बाघों की मौत हो रही है उससे टाइगर स्टेट का दर्जा कैसे कायम रह पाएगा ?

पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे अमानगंज बफर में इस तरह मृत पाई गई बाघिन पी-213 (63) 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। महज 10 दिनों के अंतराल में पन्ना टाइगर रिजर्व के सेटेलाइट कॉलर वाले दो युवा बाघों की मौत ने रेडियो कॉलर लगाने के औचित्य व मॉनिटरिंग व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए हैं। बुधवार 10 नवंबर को पन्ना टाइगर रिजर्व की युवा बाघिन पी-213 (63) कोर क्षेत्र से लगे अमानगंज बफर के रमपुरा बीट में मृत पाई पाई पाई गई है। तीन वर्ष की यह बाघिन गर्भवती भी थी, जिसके दो शावक जन्म से पहले ही मां की मौत के साथ खत्म हो गए। इसके पूर्व पन्ना के युवा नर बाघ "हीरा" का सतना जिले के जंगल में शिकार हो गया था। इस तरह से बाघों की हो रही असमय मौतों ने वन्यजीव प्रेमियों को जहां विचलित कर दिया है, वहीं बाघों की सुरक्षा व मॉनिटरिंग व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि बुधवार 10 नवंबर को अमानगंज बफर क्षेत्र में गश्ती दल को रमपुरा डैम के पास बाघिन पी- 213 (63)  मृत मिली थी। जानकारी मिलते ही उप संचालक व वन्य प्राणी चिकित्सक के साथ मैं स्वयं मौके पर जाकर स्थल का निरीक्षण किया। मौके पर कहीं भी अवैध गतिविधि के कोई साक्ष्य नहीं पाए गए। श्री शर्मा ने बताया कि बाघिन का पोस्टमार्टम वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता द्वारा बुधवार को ही सायं किया गया, जिससे पता चला कि बाघिन गर्भवती थी। आपने बताया कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रतिनिधि इंद्रभान सिंह बुंदेला की मौजूदगी में मृत बाघिन के शव का शाम को ही दाह संस्कार कर दिया गया है।

बाघिन की मौत कैसे व किन परिस्थितियों में हुई, इस बाबत पूछे जाने पर क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि बाघिन के गले व कंधे में घाव थे, घाव में मैगट (सूंड़ी) भी पड गए थे। उन्होंने आशंका जताई कि शिकार के दौरान संभवत: चोट लगी होगी। लेकिन अभी स्पष्ट रूप से कुछ कह पाना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि बाघिन के शव से सैंपल लिए गए हैं, जिसे जांच के लिए भेजा जा रहा है। जांच रिपोर्ट आने पर ही मौत की असल वजह का पता चल सकेगा।

डेढ़ साल में तीन बाघिनों की हुई मौत 


इस हालत में मिला था सबसे चहेती बाघिन पी- 213 का शव। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में ब्रीडिंग क्षमता वाली बाघिनों की लगातार हो रही मौतों पर चिंता जाहिर करते हुए राज्य  वन्य प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य हनुमंत सिंह (रजऊ राजा) ने बताया कि 3 वर्षीय गर्भवती बाघिन की मौत बहुत बड़ी क्षति है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर रेडियो कॉलर लगाने का औचित्य ही क्या है ? बीते साल रेडियो कॉलर वाली बाघिन पी- 213 की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी, जिसका सड़ा-गला शव पन्ना कोर क्षेत्र के तालगांव सर्किल में मिला था। पन्ना टाइगर रिजर्व की यह सबसे चर्चित हुआ चहेती बाघिन थी, जिसे लोग पन्ना की रानी कहकर पुकारते थे। 

बाघिन पी 213 की बेटी पी- 213 (32) की भी मौत इसी तरह संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। रेडियो कॉलर लगी इस बाघिन का शव 15 मई 21 को गहरी घाट परिक्षेत्र के कोनी बीट में पड़ा मिला था। इस बाघिन के चार नन्हे शावक थे, जिनका पालन पोषण नर बाघ (पिता) ने किया और अब वे प्राकृतिक रूप से शिकार करने में सक्षम हो गए हैं। बाघिन पी- 213 की ही दूसरी बेटी पी-213 (63) है, जिसकी मौत बुधवार 10 नवंबर को हुई। इस युवा बाघिन के गले में भी रेडियो कॉलर डला हुआ था, बावजूद इसके मॉनिटरिंग दल यह जानने में नाकाम रहा कि बाघिन जख्मी हालत में है। 

रेडियो कॉलर वाली बाघिन पी- 213 (32) जिसकी मौत मई 2021 में हुई। 


हनुमंत सिंह ने मॉनिटरिंग व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते हुए कहा कि यदि समय रहते जख्मी बाघिन का इलाज हो जाता तो उसकी असमय मौत नहीं होती। श्री सिंह ने बताया कि चूंकि बाघिन के कंधे में भी गहरा घाव था, इसलिए वह शिकार करने में सक्षम नहीं रही होगी। मृत बाघिन के शव को देखकर यह स्पष्ट होता है कि वह भूखी थी, उसके पेट में कुछ नहीं था। श्री सिंह ने कहा कि बाघिन के मूवमेंट की ( कम से कम 7 दिन) जांच होनी चाहिए कि वह कहां कहां गई। यदि बाघिन जख्म के कारण शिकार करने में सक्षम नहीं थी, तो भूखी बाघिन आखिर कितने दिनों तक सरवाइव कर पाएगी ?

बाघों की संख्या बढऩे से कम पड़ रही जगह 

पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, परिणाम स्वरूप बाघों का एरिया सिकुड़ रहा है। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि संख्या बढऩे पर हर टाइगर को बचा पाना संभव नहीं है। पन्ना टाइगर रिजर्व के इतिहास में इतने बाघ यहां कभी नहीं रहे। मौजूदा समय पन्ना में 30 बाघिन हैं जिनमें 14 बाघिन ब्रीडिंग क्षमता वाली हैं। श्री शर्मा बताते हैं कि मध्यप्रदेश में तकरीबन डेढ़ सौ ब्रीडिंग बाघिनें हैं, जिनसे 300 के लगभग शावक पैदा होते हैं। यदि इनमें से डेढ़ सौ शावक भी सरवाइव करें तो क्या इन शावकों के लिए पर्याप्त जंगल है ? 

श्री शर्मा ने बताया कि जंगल में जगह कम पडऩे पर बाघ आबादी क्षेत्र की ओर रुख करते हैं, ताकि वे मवेशियों का शिकार कर सकें। इन परिस्थितियों में मानव के साथ संघर्ष की स्थिति निर्मित होती है। कोर क्षेत्र से डिस्पर्स होकर बाहर जाने वाले बाघ जब खेतों से होकर गुजरते हैं, तो विद्युत तारों की चपेट में आकर "हीरा" की तरह मारे जाते हैं। उन्होंने आगे बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में अब और बाघों के लिए जगह नहीं बची, इसलिए बाघों का मरना उनकी नियति है।

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Monday, November 8, 2021

झुमटा गांव में बोरवेल से निकल रही आग कौतूहल का विषय, गांव में धारा 144 लागू

  • मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में गुनौर तहसील के गांव झुमटा में बोरवेल से आग निकलने की घटना कौतूहल का विषय बनी हुई है। यहां एक दर्जन से अधिक बोरवेल में ज्वलनशील गैस निकल रही है। गांव में आज ओएनजीसी देहरादून के विशेषज्ञों की टीम पहुंचेगी।

झुमटा गाँव में पहुंचे अधिकारियों से अपनी समस्या बताते ग्रामवासी। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बोरवेल से पानी निकलते हुए तो हर किसी ने देखा होगा लेकिन यदि उससे पानी की जगह आग की लपटें निकलने लगें तो हैरान होना स्वाभाविक है। ऐसी ही हैरान करने वाली अनोखी घटना मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में गुनौर तहसील के गांव झुमटा में सामने आई है, जो सबके लिए कौतूहल का विषय बनी हुई है। इस इलाके में प्राकृतिक गैस व तेल का भंडार होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। मामले की पड़ताल के लिए प्रशासन द्वारा आयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) देहरादून से विशेषज्ञों की टीम बुलाई गई है, जो सोमवार को आज झुमटा गांव पहुंचेगी। सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए प्रशासन ने 7 नवंबर से गांव में धारा 144 लागू कर दिया है।

प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 450 किलोमीटर दूर पन्ना जिले के झुमटा गांव में एक पखवाड़े पूर्व शासकीय माध्यमिक विद्यालय परिसर में पानी के लिए बोर कराया जा रहा था, बोर के दौरान ही ज्वलनशील गैस निकलने पर आग भड़क उठी जिसकी चपेट में बोरिंग मशीन भी आ गई। झुमटा गांव के शिव नरेश त्रिपाठी (48 वर्ष) ने बताया कि मौके पर मौजूद लोगों ने रेत व पानी डालकर आग को बुझाने का प्रयास किया लेकिन आग बुझने का नाम नहीं ले रही थी। घटना की खबर मिलने पर प्रशासन द्वारा हीरा खनन परियोजना (एनएमडीसी) व सतना से फायर ब्रिगेड बुलाई तब जाकर किसी तरह आग पर काबू पाया गया। बोरिंग मशीन को जेसीबी से खींच कर वहां से दूर ले जाया गया। पन्ना जिला प्रशासन ने उसी समय ओएनजीसी देहरादून की टीम बुलाई, जिन्होंने गैस एवं पानी का परीक्षण कर सुरक्षा की दृष्टि से बोर में एक बड़ी चिमनी फिट कर दी थी। इस चिमनी के ऊपरी भाग से अभी भी आग की लपटें निकल रही हैं।

माध्यमिक शाला झुमटा जहाँ बोर में आग भड़की है।  

बोर में चिमनी लगाए जाने के कुछ ही दिनों के बाद झुमटा गांव के अन्य दूसरे बोरवेलों से भी ज्वलनशील गैस निकलने लगी, जिससे गांव में अफरा-तफरी मचने के साथ भय का माहौल निर्मित हो गया। झुमटा गांव में कई बोरवेलों से गैस रिसाव तथा दूसरे बोरवेलों में भी आग लगने की जानकारी मिलने पर पन्ना कलेक्टर संजय मिश्रा व पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीना दल बल के साथ शनिवार 6 नवंबर को गांव में पहुंचकर चौपाल लगाई। कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक ने ग्रामीणों को समझाइश देते हुए कहा कि गांव में जिन-जिन बोर से गैस निकल रही है, उससे पर्याप्त दूरी बनाकर रखें तथा ज्वलनशील वस्तु बोर के पास न ले जाएं। कलेक्टर ने ग्रामीणों को बताया कि मामले को लेकर उच्च स्तरीय बात चल रही है। ओएनजीसी की टीम सोमवार 8 नवंबर को झुमटा गांव में दुबारा पहुंच रही है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में जितने भी बोर हैं सभी का सर्वे कराया जाएगा। जिन बोर से गैस का रिसाव हो रहा है वहां सुरक्षा के इंतजाम किए जाएंगे।

झुमटा गांव में हैं आधा सैकड़ा से अधिक बोर 

जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 35 किलोमीटर दूर गुनौर तहसील के झुमटा गांव में आधा सैकड़ा से अधिक बोर हैं। तकरीबन ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव में एक दर्जन से भी अधिक बोरवेलों से ज्वलनशील गैस निकल रही है। शिव नारायण त्रिपाठी ने बताया कि उनके घर में स्थित बोर से भी गैस का रिसाव हो रहा है तथा इसमें आग भी भड़क चुकी है। गीले बोरे आदि डालकर किसी तरह आग बुझाई गई है। श्री त्रिपाठी बताते हैं कि उनके अलावा गांव के राम शिरोमणि त्रिपाठी, रामगोपाल त्रिपाठी, किशोरी लाल त्रिपाठी, मुन्ना पटेल, लखन लाल पटेल तथा मंगलिया कुम्हार सहित अन्य कई लोगों के बोर से गैस का रिसाव हो रहा है। वे आगे बताते हैं कि रिसने वाली गैस से दुर्गंध आती है, जिससे गले में खरास, सिर भारी व सीने में दर्द होता है। दूर जाने पर कुछ देर में अपने आप ठीक लगने लगता है। कलेक्टर पन्ना संजय मिश्रा ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया है कि स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव में कैंप करके प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य का परीक्षण करेगी। 

बोरवेल में आग भड़कने के बाद से बंद है स्कूल

झुमटा गांव के माध्यमिक शाला जहां बोरवेल से अभी भी आग निकल रही है, वह बंद है। जिला शिक्षा अधिकारी पन्ना कमल सिंह कुशवाह ने बताया कि गांव के नजदीकी विद्यालय में यहां के बच्चों को शिफ्ट करने के निर्देश दिए गए हैं। माध्यमिक शाला झुमटा में पढ़ने वाले बच्चों को पास के गांव पाली स्थित माध्यमिक शाला में जाने को कहा गया है। यह शाला झुमटा गांव की शाला से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। 

शिव नरेश त्रिपाठी बताते हैं कि माध्यमिक शाला झुमटा में जो बोर हुआ है वह 580 फीट गहरा है, फिर भी उसमें पानी नहीं निकला। गांव का कोई भी बोर इतना गहरा नहीं है। श्री त्रिपाठी बताते हैं कि शाला परिसर में जब बोरिंग मशीन से बोर खोदना शुरू हुआ तो पहले लाल मिट्टी निकली, फिर सफेद चूना की तरह निकला और इसके बाद काला कोयला निकलता रहा। पानी न निकलने पर खुदाई जब जारी रही तो 580 फीट की गहराई में पहुंचते ही बोरवेल में आग भड़क उठी।

 धारा 144 के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी 

अनुविभागीय दंडाधिकारी अनुभाग गुनौर सत्यनारायण दर्रो ने रविवार 7 नवंबर से धारा 144 के अंतर्गत झुमटा गांव में प्रतिबंधात्मक आदेश लागू करने के आदेश जारी किए हैं। इस आदेश के तहत ग्राम झुमटा में गैस रिसाव घटनास्थल के समीप फेस कवर पहनना अनिवार्य होगा। घटनास्थल से 10 किलोमीटर की दूरी तक बोरिंग एवं किसी भी प्रकार का उत्खनन किया जाना प्रतिबंधित होगा। जहां-जहां गैस रिसाव हो रहा है उन स्थानों को चिन्हित करते हुए वहां वैरीगेटिंग किया जाएगा। गैस रिसाव वाले स्थलों पर धूम्रपान करना प्रतिबंधित होगा। घटना स्थानों में बच्चों, वृद्ध व गर्भवती महिलाओं का जाना प्रतिबंधित होगा। घटना से संबंधित अफवाहें फैलाई जाने पर दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी। घटनास्थल के समीप भीड़ एकत्रित करना, आम लोगों का जाना तथा धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन पूर्णतः प्रतिबंधित होगा।

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Friday, November 5, 2021

बुंदेलखंड क्षेत्र के दीवारी नृत्य की अनूठी परंपरा पन्ना में जीवंत

  • समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों से ग्वालों की सैकड़ों टोलियां जन आस्था के केंद्र श्री जुगल किशोर जी मंदिर में दिवारी नृत्य करने आती हैं। ग्वाले भगवान श्री कृष्ण को अपना बालसखा मानते हैं और यहां उनके सानिध्य में पूरे भक्ति भाव के साथ नृत्य करते हैं।

मंदिरों के शहर पन्ना में दिवारी नृत्य के दौरान करतब दिखाते ग्वाले। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों में श्रद्धा और आस्था के केंद्र पन्ना के श्री जुगल किशोर जी मंदिर में दीपावली के दूसरे दिन परीवा को दिवारी नृत्य की धूम रहती है। समूचे बुंदेलखंड से ग्वाले विशेष वेशभूषा व हाथों में मोर पंख लिए यहां पहुंचते हैं और जुगल किशोर जी मंदिर में माथा टेककर दिवारी नृत्य करते हैं। पन्ना में दिवारी नृत्य की यह अनूठी परंपरा लगभग 300 वर्षों से चली आ रही है, जो आज भी उसी तरह जारी है। श्री जुगल किशोरजी मंदिर के अलावा पन्ना शहर के अन्य प्रमुख मंदिरों श्री राम जानकी, श्री बलदाऊ जी मंदिर, श्री जगन्नाथ स्वामी मंदिर व श्री प्राणनाथ जी मंदिर में जाकर वहां भी तरह-तरह के करतब दिखाते हुए ग्वाले दिवारी नृत्य करते हैं। यह अद्भुत नजारा देखने लोगों की भीड़ उमड़ती है।

श्री जुगल किशोर जी मंदिर के महंत परिवार के सदस्य देवी दीक्षित ने बताया कि दिवारी नृत्य की यह अनूठी प्राचीन परंपरा यहाँ तीन सौ वर्षों से चली आ रही है। दीपावली के दूसरे दिन परीवा को यहाँ उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले से बड़ी संख्या में ग्वालों की टोलियां आती हैं जबकि मध्यप्रदेश के छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़ आदि जिलों के ग्रामीण इलाकों से ग्वाले यहाँ आते हैं और जुगल किशोर जी मंदिर में नृत्य कर अपने को धन्य समझते हैं। श्री दीक्षित बताते हैं कि पन्ना सहित पड़ोसी जिलों के ग्रामीण अंचलों से सैकड़ों की संख्या में ग्वालों की टोलियां यहाँ रात्रि 12 बजे से ही पहुंचने लगती हैं। प्रथमा को सुबह 5 बजे से भगवान जुगल किशोर जी के दरबार में माथा टेकने के साथ ही दिवारी नृत्य का सिलसिला शुरू हो जाता है जो पूरे दिन चलता है।  ग्वालों की टोलियां नगर के अन्य मंदिरों के प्रांगण में भी दिवारी नृत्य का हैरतांगेज करतब का प्रदर्शन करते हैं।

पन्ना के श्री राम जानकी मंदिर में दर्शन के लिए जाती ग्वालों की टोली। 

सुबह से ही आज हांथों मे मोर पंख लिए तथा रंग बिरंगी पोशाक पहने ग्वालों की टोलियों का जुगल किशोर जी, प्राणनाथ जी, बलदाऊ जी, श्रीराम जानकी  आदि मंदिरों में आने का सिलसिला शुरू हो गया था। ग्वाले पूरे भक्ति भाव के साथ भगवान की नयनाभिराम छवि के दर्शन करने के उपरांत पूरी मस्ती के साथ नगडिय़ा, ढोलक और मजीरों की धुन में दिवारी नृत्य व रोमांचकारी लाठी बाजी का प्रदर्शन करते हैं जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां खिंचे चले आते हैं। मालूम हो कि पन्ना नगर के सुप्रसिद्ध मंदिरों में दिवारी नृत्य प्रस्तुत करने की पौराणिक परम्परा है, जिसका निर्वाहन बुन्देलखण्ड के ग्वाले आज भी करते हैं। यहां आने वाली ग्वालों की टोलियों में कुछ ग्वाले कठिन मौन व्रत भी करते हैं इन ग्वालों को मौनी कहा जाता है। 

 भगवान श्री कृष्ण को बताते हैं अपना सखा


  परीवा को पन्ना के श्री जुगल किशोर जी ने भी ग्वाले का वेष धारण किया। इस वेष के दर्शन सिर्फ इसी दिन होते हैं। 

दिवारी नृत्य का प्रदर्शन करने वाले पूरे अधिकार के साथ भगवान श्री कृष्ण को अपना बाल सखा मानते हैं। इसी आत्मीय भाव को लेकर ग्वाले तपोभूमि पन्ना में आकर मंदिरों में माथा टेकते हैं तो उनमें असीम ऊर्जा का संचार हो जाता है। इसी भाव दशा में ग्वाले सुध बुध खोकर जब दिवारी नृत्य करते हैं तो उन्हें इस बात की अनुभूति होती है मानो बालसखा कृष्ण स्वयं उनके साथ दिवारी नृत्य कर रहे हैं। अमानगंज क्षेत्र के पण्डवन गाँव से आई टोली के सदस्य बृजेश यादव ने बताया कि उनकी टोली में कई मौनी हैं। हम लोग दीपावली को चित्रकूट में थे और आज सुबह भगवान श्री जुगल किशोर जी के दरबार में आकर माथा टेका है। यहाँ दिवारी खेलने का अलग ही महत्व है, हमारे गाँव से ग्वालों की टोली पिछले 9 वर्षों से लगातार आ रही है। सिंहपुर गाँव के रामकरण प्रजापति ने बताया कि हम लोग 10 वर्षों से यहाँ आकर मंदिर में दिवारी नाचते हैं। दिवारी नृत्य करते समय जिस आनंद का अनुभव होता है उसे कह पाना कठिन है।  

बुन्देलखण्ड अंचल में प्रसिद्ध है ग्वाल बाल का दिवारी नृत्य


लाठी से दिवारी खेलते हुए ग्वाले। 

समूचे बुन्देलखण्ड अंचल में कार्तिक कृष्ण अमावस्या से प्रथमा को ग्वाल बाल दिवारी नृत्य करते हैं और विभिन्न प्रकार के करतब भी दिखाते हैं, जो दीपावली के अवसर पर गांव-गांव में होता है। दिवारी नृत्य की टोलियों में शामिल ग्वालों को मौनी कहा जाता है। मौनियों की टोली जब पूरी मस्ती में दिवारी नृत्य करती है तो दर्शकों के पांव भी थिरकने लगते हैं। दीपावली के दूसरे दिन पन्ना शहर में दिवारी नृत्य की धूम देखते ही बनती है। समूचा शहर नगडिय़ों, ढोलक व मजीरों की विशेष धुन से गुंजायमान रहता है। दिवारी नृत्य करने वाली ग्वालों की टोलियों में शामिल मौनी अपने विशेष वेशभूषा में नृत्य करते हैं। वे सिर पर मोर पंख व कमर में घुंघरूओं का पट्टा बांधते हैं, मोर पंख का पूरा एक गठ्ठा मौनी अपने हांथ में भी थामे रहते हैं तथा इसी गठ्ठर को उछालकर नृत्य करते हैं।

क्या कहते हैं महंत परिवार के सदस्य, देखें वीडियो :-



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Monday, November 1, 2021

बिछड़ गई पन्ना टाइगर रिजर्व के सुपर स्टार टाइगर ब्रदर्स की जोड़ी, बड़े भाई हीरा का हुआ शिकार

  • पन्ना टाइगर रिजर्व के अकोला बफर में जन्मे सुपरस्टार बाघ हीरा और पन्ना अब कभी मेल मुलाकात नहीं कर पाएंगे। पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र रहे इन टाइगर ब्रदर्स की जोड़ी टूट गई है। बड़े भाई हीरा को सतना के जंगल में शिकारियों ने करंट लगाकर बेरहमी के साथ मार दिया है।

सुपर स्टार टाइगर ब्रदर हीरा और पन्ना एक साथ बैठे हुए, अब नहीं होगी ऐसी मुलाकात। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में हीरा और पन्ना के नाम से मशहूर रहे दो युवा बाघों की जोड़ी अब हमेशा के लिए बिछड़ गई है। टाइगर रिजर्व के अकोला बफर में जन्मे दोनों नर बाघ पी 234-31 व पी 234-32 पर्यटकों के बीच हीरा और पन्ना के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। विगत 3 माह पूर्व बड़ा भाई हीरा अपने लिए नए ठिकाने की तलाश में सतना की तरफ निकल गया था। पूरे तीन माह तक यह बाघ अपने लिए जीवन संगिनी व ठिकाने की तलाश में भटकता रहा। उसे कोई सुरक्षित ठिकाना मिल पाता इसके पहले ही वह शिकारियों के हत्थे चढ़ गया और असमय काल कवलित हो गया। 

वन मंडल अधिकारी सतना राजेश राय ने बताया कि युवा बाघ पी 234-31 का शिकार हुआ है। मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया है। वन अधिकारियों द्वारा बाघ के शिकार के इस मामले की गहराई से छानबीन की जा रही है। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि चूंकि शिकार की घटना सतना वन मंडल के अंतर्गत हुई है, इसलिए विवेचना और वैधानिक कार्यवाही वन मंडल सतना के अधिकारियों द्वारा ही की जाएगी। आपने बताया कि उन्हें भी डीएफओ सतना से यह जानकारी मिली कि पन्ना के बाघ का शिकार हुआ है।

करंट की चपेट में आकर असमय काल कवलित होने वाले युवा बाघ के गले में रेडियो कॉलर भी था, जिसकी मदद से बाघ के हर गतिविधि व मूवमेंट की मॉनिटरिंग की जाती रही है। रेडियो कॉलर होने के बावजूद बाघ शिकारियों के हत्थे चढ़ गया और वन अमले को इसकी भनक तक नहीं लगी। वन मंडल सतना के अंतर्गत अमदरी गांव के पास रेडियो कॉलर जब पड़ा मिला तब बाघ के शिकार का खुलासा हुआ। बताया गया है कि वन परीक्षेत्र सिंहपुर के अमदरी बीट में बाघ की मौत करंट लगने से हुई है। किसान के खेत में फैली बिजली की तार में फंसकर बाघ हीरा अपनी जान गंवा बैठा।

युवा बाघ की मौत होने के बाद जिस किसान का खेत था, उसने स्थानीय लोगों की मदद से बाघ की खाल निकाली तथा शरीर के अन्य हिस्सों को पास के तालाब में फेंक दिया। इसी तालाब के किनारे बाघ के गले में डली रेडियो कॉलर को निकाल कर फेंक दिया जिससे इस पूरे मामले का भंडाफोड़ संभव हुआ। वन अधिकारियों द्वारा की गई पूछताछ में इस तथ्य का भी खुलासा हुआ कि बाघ का शिकार 15-20 दिन पूर्व हुआ था। तालाब में मिले अवशेषों का पशु चिकित्सक द्वारा पोस्टमार्टम किए जाने पर भी इसकी पुष्टि हुई कि शिकार एक पखवाड़े पूर्व हुआ है। पोस्टमार्टम के बाद मृत बाघ के अवशेषों को वन अधिकारियों की मौजूदगी में जला दिया गया है।

बाघों के लिए सुरक्षित नहीं सतना का जंगल 

पन्ना टाइगर रिजर्व में जन्मे बाघ वयस्क होने पर वंश वृद्धि के लिए नये इलाके की खोज में बाहर निकलते हैं। इस दौरान ज्यादातर बाघ शातिर शिकारियों के जहां निशाने पर आ जाते हैं तो वहीं कुछ खेतों में फैले विद्युत करंट की भेंट चढ़ जाते हैं। बाघों की सुरक्षा की दृष्टि से सतना जिले के मझगवां व चित्रकूट का जंगल अत्यधिक संवेदनशील है। पूर्व में यहां ट्रेन की चपेट में आने से एक बाघ की मौत हो चुकी है, जबकि एक बाघ अवैध उत्खनन के चलते जब अपने इलाके को छोड़ने हेतु मजबूर हुआ तो वह भी असमय काल कवलित हुआ। इतना ही नहीं परसमनिया पठार में भी एक बाघ को शिकारियों ने गोली मारी थी। 

पन्ना टाइगर रिजर्व की एक बाघिन पी 212-23 भी इलाके की खोज में पन्ना से चित्रकूट के जंगल में जा पहुंची थी। यह बाघिन भाग्यशाली रही और सुरक्षित पहुंच कर एक नर बाघ से जोड़ा बनाकर वहां शावकों को भी जन्म दिया। इस तरह से देखा जाए तो बाघों का एक इलाके से दूसरे इलाकों में आना-जाना बना रहता है। लेकिन सुरक्षित कॉरिडोर ना होने के कारण वे या तो किसी हादसे के शिकार होते हैं या फिर शिकारियों के हत्थे चढ़ जाते हैं।

 कोर क्षेत्र के बाहर बाघों पर मंडराता रहता है खतरा

सुप्रसिद्ध बाघ विशेषज्ञ व रिसर्चर डॉ. रघु चुंडावत ने चर्चा के दौरान बताया कि कोर क्षेत्र से डिस्पर्स होने वाले बाघों पर हर समय खतरा मंडराता रहता है। सबसे ज्यादा क्षति विद्युत करंट से होती है। बाघ जब नये इलाके की तलाश में खेतों से होकर गुजरता है, तो मारा जाता है। डॉ. चुंडावत कहते हैं कि बाघों की पापुलेशन में वृद्धि के लिए यह निहायत जरूरी है कि कोरिडोर सुरक्षित रहें। जिससे कि बाघों का आवागमन एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बिना किसी बाधा के होता रहे। आपने बताया कि वयस्क बाघों (2 से 4 साल) पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है क्योंकि इस उम्र में बाघ अपने लिए ब्रीडिंग के अवसरों की तलाश करते हैं और कॉरिडोर के अभाव में असमय मारे जाते हैं। डॉ. चुंडावत का कहना है कि सिर्फ कोर क्षेत्र में संरक्षण होने से बाघों की पापुलेशन ग्रोथ नहीं हो सकती क्योंकि कोर क्षेत्र के बाहर सुरक्षा ना के बराबर है। उन्होंने जोर देकर कहा कि फॉरेस्ट कोरिडोर जो बचे हैं उन्हें बचाना जरूरी है अन्यथा टाइगर पापुलेशन को बचा पाना मुश्किल होगा।

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