ख्यातिलब्ध कृषक पद्मश्री बाबूलाल दाहिया साथ में सोमचन्द ताम्रकार। |
।। बाबूलाल दाहिया ।।
मित्रों! मेरे बगल में बैठे उचेहरा नगर में धातु शिल्प का ब्यावसाय करने वाले सोमचन्द ताम्रकार हैं। अमूमन देखा जाता है कि लोग अपनी अधिकतम 3-4 पीढ़ी की जानकारी ही रखते हैं, पर सोमचन्द जी को अपने पिता मदन मोहन ताम्रकार से लेकर क्रमश: राम भजन, विशाल, राममिलन, शिद्ध गोपाल ताम्रकार तक की जानकारी है। और उसी में यदि उनके बेटे शिवांशु को शामिल कर लिया जाय तो 7 पीढ़ी हो जाती हैं। पर इतना ही नहीं उनके पास इन तमाम पीढ़ियों के यादगार के रूप में पीतल कांसे आदि के कुछ पुराने कलात्मक बर्तन भी रखे हैं।
यूँ तो उचेहरा नगर में ताम्रकार समुदाय के पचासों घर हैं लेकिन सोमचन्द्र जी का परिवार कई शताब्दियों से यहां का प्राचीनतम निवासी रहा है। पुरातात्विक महत्व के प्राचीन स्थल भरहुत को अगर छोड़ दिया जाय तो उचेहरा उन पुराने नगरों में एक है जिसका इतिहास 5वीं सदी से शुरू होता है । और वह ताम्रकार समुदाय के कारण ही।
क्योकि प्राचीन काल में दूर-दूर तक के राजे महाराजों द्वारा जो भी ब्राम्हणों को भूमिदान दिया जाता था, उस दान के लिए ताम्रपत्र उच्चकल्प के ताम्रकारों द्वारा ही बनाए जाते थे। एवं उसमे महाभारत का भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर को सम्बोधित संस्कृत का एक श्लोक रहता था जिसका आशय होता था कि-- "हे युधिष्ठिर! जो राजा ब्राम्हणों को भूमि दान देता है वह 10 हजार वर्ष तक स्वर्ग में बास करता है। किन्तु दान की गई भूमि ब्राम्हणों से छीन लेने पर उतने ही वर्ष उसे नर्क में रहना पड़ता है।")
यही कारण था कि राज्य सत्ता बदल जाने के बाद भी ब्राम्हणों को दान में दी गई जमीन नहीं छीनी जाती थी। हम तो सोमचन्द्र जी के पुराने बर्तनों के स्टॉक को देख हर्ष विभोर हो गए। क्योंकि हमारा उद्देश्य भी ऐसे वर्तनों को क्रय करना ही रहा है जिन्हें हम अपने संग्रहालय में रख सकें। हमारा लक्ष्य ऐसे लगभग 200 खेती किसानी से जुड़े उपकरणों को संग्रहीत कर म्यूजियम में रखने का है जो अब खेती की पद्धति बदल जाने पर विलुप्तता के गहरे गर्त में समाते जा रहे हैं। क्योंकि उनमें 20-25 धातु शिल्पी ताम्रकारों द्वारा निर्मित वस्तुए भी हैं।
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