Saturday, November 20, 2021

प्रणामी धर्मावलम्बियों की अनूठी परम्परा जो देती है प्रकृति से प्रेम करने की सीख

  • प्रणामी धर्मावलम्बियों के सबसे बड़े तीर्थ पन्ना धाम में पिछले लगभग चार सौ सालों से पृथ्वी परिक्रमा करने की परंपरा चली आ रही है जो आज भी जारी है। शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को पृथ्वी परिक्रमा होती है, जिसमें देश के विभिन्न प्रान्तों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

जंगल में नदी नालों को पार कर पृथ्वी परिक्रमा में श्रद्धालु इस तरह तय करते हैं 30 किलोमीटर लंबा सफर। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। समूचे विश्व में भारत इकलौता देश है जहाँ सदियों पूर्व बसुधैव कुटुंबकम की उद्घोषणा की गई थी। यह इस देश की खूबसूरती है कि यहाँ पर विविध धर्मावलम्बियों की धार्मिक आस्थाओं व परम्पराओं को न सिर्फ पूरा सम्मान मिलता है अपितु उन्हें पल्लवित और पुष्पित होने का अवसर व अनुकूल वातावरण भी सहज उपलब्ध होता है। यही वजह है कि हमारे देश में हर धर्म और हर जाति के लोगों की अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं मौजूद हैं। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना शहर में लगभग चार सौ सालों से चली आ रही है। प्राचीन भव्य मंदिरों के इस शहर पन्ना में प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र श्री प्राणनाथ जी का मंदिर स्थित है, जो प्रणामी धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।  

इसी प्रणामी संप्रदाय के अनुयाई और श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। यहाँ किलकिला नदी के किनारे व पहाड़ियों के बीचों बीच बसे समूचे पन्ना नगर के चारों तरफ परिक्रमा लगाकर भगवान श्री कृष्ण के उस स्वरूप को खोजते हैं, जो कि शरद पूर्णिमा की रासलीला में उन्होंने देखा और अनुभव किया है। अंतर्ध्यान हो चुके प्रियतम प्राणनाथ को उनके प्रेमी सुन्दरसाथ भाव विभोर होकर नदी, नालों, पहाड़ों तथा घने जंगल में हर कहीं खोजते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं।

पन्ना शहर में स्थित महामति श्री प्राणनाथ जी का मंदिर, जो प्रणामी धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र है। 

मंदिरों की नगरी पन्ना में शुक्रवार 19 नवम्बर को पूरे दिन पृथ्वी परिक्रमा की धूम रही। कोरोना संकट की बंदिशों में ढील मिलने के कारण  देश के कोने-कोने से आये हजारों श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति भाव और उत्साह के साथ पृथ्वी परिक्रमा में भाग लिया। चापा छत्तीसगढ़ से पन्ना धाम पहुंचीं कमला शर्मा (60 वर्ष) ने बताया कि पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने से जो शांति व सुकून मिलता है, उसे कह पाना कठिन है। वे बताती हैं कि चौथी बार पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने पन्ना आई हैं। यह अनूठी परम्परा हमें प्रकृति से प्रेम करने की सीख देती है। उनके साथ चापा छत्तीसगढ़ से ही कांता अग्रवाल (50 वर्ष) व सीता अग्रवाल (48 वर्ष) पहली बार यहाँ आई हैं। 

कांता अग्रवाल बताती हैं कि पन्ना पुण्य भूमि है और इस भूमि की परिक्रमा करना सौभाग्य की बात है। नदी, नालों, पहाड़ों और घने जंगलों से होकर पूरे पन्ना धाम की परिक्रमा गाते-बजाते करना सुखद अनुभव है। कार्तिक पूर्णिमा को सुबह 6 बजे से ही सैकड़ों फिट गहरे कौआ सेहा से लेकर किलकिला नदी के प्रवाह क्षेत्र व चौपड़ा मंदिर हर कहीं प्राणनाथ प्यारे के जयकारे गूँज रहे थे। रोमांचित कर देने वाले आस्था एवं श्रद्धा के इस सैलाब से पवित्र नगरी पन्ना का कण-कण प्रेम और आनंद से सराबोर हो उठता है। 

पृथ्वी परिक्रमा मार्ग में चौपड़ा मंदिर के सामने वट वृक्ष के नीचे थकान मिटाते श्रद्धालु। 

मालुम हो कि प्रकृति के निकट रहने तथा विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख देने वाली इस अनूठी परम्परा को प्रणामी संप्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने आज से लगभग 398 साल पहले शुरू किया था, जो आज भी अनवरत् जारी है। इस परम्परा का अनुकरण करने वालों का मानना है कि पृथ्वी परिक्रमा से उनको सुखद अनुभूति तथा शान्ति मिलती है। महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर पन्ना के पुजारी देवकरण त्रिपाठी ने बताया कि पवित्र नगरी पन्ना में कार्तिक पूर्णिमा को हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से आये सुंदरसाथ व स्थानीय जनों द्वारा पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होकर धर्मलाभ उठाया गया है। 

उन्होंने बताया कि कार्तिक शुक्ल की पूर्णमासी पर प्रात: 6  बजे से चारों मंदिरों की परिक्रमा के साथ पृथ्वी परिक्रमा का शुभारम्भ हुआ। प्रणामी संप्रदाय की इस अनूठी परंपरा के बारे में पं. दीपक शर्मा (54 वर्ष) बताते हैं कि श्री प्राणनाथ जी मंदिर से पृथ्वी परिक्रमा की शुरुवात सुबह 6 बजे से हो जाती है जो देर रात्रि तक चलती रहती है।

बच्चे व महिलाएं भी उत्साह से करते हैं पृथ्वी परिक्रमा। 

श्री त्रिपाठी बताते हैं कि सर्वप्रथम आये हुये श्रद्धालुओं ने पन्ना नगर में स्थित श्री प्राणनाथ जी मंदिर, गुम्मट जी मंदिर, श्री बंगला जी मंदिर, सद्गुरू धनी देवचन्द्र जी मंदिर, बाईजूराज राधिका मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ सिर नवाया तदुपरांत धूमधाम के साथ यात्रा शुरू की। पूरी परिक्रमा लगभग 30 किमी. की हो जाती है, जिसमें महिला, पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग भी बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं। मंदिर ट्रस्ट व नगरवासियों द्वारा परिक्रमा मार्ग पर जगह - जगह चाय, पानी व खाने का इंतजाम रहता है जिसे श्रद्धालु प्रसाद की तरह ग्रहण करते हैं। परिक्रमा में शामिल लोग रास्ते में बच्चों को टाफियां व मिठाई आदि भी बड़े प्रेम भाव से बांटते हैं तथा गरीबों को पैसा व सामग्री भेंट करते हैं। बुद्धवार कार्तिक पूर्णिमा के दिन गाँव कनेक्शन की टीम ने परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के अनुभवों को साझा किया।

हजारों की संख्या में श्रद्धालु जिन्हे प्रणामी संप्रदाय में सुन्दरसाथ कहा जाता है वे नाचते गाते, झूमते और तरह - तरह के वाद्य यन्त्र बजाते हुए चल रहे थे। जंगल के रास्ते से होते हुये श्रद्धालुओं की टोलियां प्राकृतिक व रमणीक स्थल चौपड़ा मंदिर जब पहुंचतीं तो यहां पर प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करते हुये कुछ देर विश्राम कर प्रसाद आदि ग्रहण करतीं और फिर अपनी अल्प थकान को मिटाकर आगे की यात्रा पर निकल पड़तीं। 

पं. दीपक शर्मा बताते हैं कि इस साल पृथ्वी परिक्रमा में गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के दमोह, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, इन्दौर व उज्जैन आदि जिलों से लगभग 15 हजार सुन्दरसाथ शामिल हुए हैं। सिक्किम व नेपाल से भी अनेकों सुन्दरसाथ पृथ्वी परिक्रमा में भाग लेने पन्ना धाम आये हैं।

 नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से गुजरे श्रद्धालु


वृद्ध महिला को उठाकर पृथ्वी परिक्रमा कराते परिजन।

नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से श्रद्धालु जब जयकारे लगाते हुए गुजर रहे थे, तब यह नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। कौआ सेहा की गहराई, चारो तरफ फैली हरीतिमा तथा जल प्रपात का कर्णप्रिय संगीत और जहाँ-तहाँ चट्टानों पर बैठकर विश्राम करती श्रद्धालुओं की टोली, सब कुछ बहुत ही मनभावन लग रहा था। जानकारों के मुताबिक इस परिक्रमा की दूरी करीब 27 किलोमीटर के आसपास होती है। पहाड़ी को पार करते हुये मदार साहब, धरमसागर, अघोर होकर यह विशाल कारवां खेजड़ा मंदिर में पहुंचा। यात्रा में रंग विरंगे कपड़े पहने मुस्कुराते बच्चे, सुन्दर परिधानों से सुसज्जित महिलायें, युवा, युवतियाँ व वृद्धजन अपने-अपने विशिष्ट अंदाज में दिखे। खेजड़ा मंदिर पहुंचने पर वहां महाआरती सम्पन्न की गई व प्रसाद वितरण हुआ। तत्पश्चात सभी सुन्दरसाथ कमलाबाई तालाब से होते हुये किलकिला नदी को पारकर उसी स्थान पर पहुंचे जहां से परिक्रमा शुरू की गई थी।

वीडियो : नाचते गाते पृथ्वी परिक्रमा करते श्रद्धालु -



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