- सर्वोच्च न्यायालय में समाजसेवी इंजी. योगेन्द्र भदौरिया ने लगाई याचिका
- परियोजना के औचित्य पर सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने भी उठाये थे सवाल
पन्ना जिले से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी। |
पन्ना। देश की बहुचर्चित व केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना एक बार फिर चर्चा में है। इस परियोजना के डीपीआर को दोषपूर्ण बताते हुए पन्ना के समाजसेवी इंजी. योगेन्द्र भदौरिया ने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका लगाई है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इस परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में यह पहली याचिका हो, ऐसा नहीं है। इसके पूर्व भी अन्य लोगों द्वारा याचिकाएं लगाई गई हैं, लेकिन यह याचिका थोड़ी भिन्न है। इसमें पर्यावरणीय क्षति व बाघों के रहवास को होने वाले नुकसान के साथ परियोजना के डीपीआर पर सवाल उठाये गए हैं। सबसे अहम बात यह है कि पुनर्विचार याचिका लगाने वाले इंजी योगेन्द्र भदौरिया संघ व भाजपा से जुड़े व्यक्ति हैं। यही वजह है कि इस याचिका ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया है।
श्री भदौरिया ने केन-बेतवा रिवर लिंकिंग परियोजना की डीपीआर को चैलेंज करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है कि परियोजना को दोबारा रिव्यू कर उसकी कमियों को दूर किया जाय। उच्चतम न्यायालय द्वारा याचिका को केन परियोजना से संबंधित दूसरे मामलों के साथ सुनवाई करने का निर्देश दिया गया है। श्री भदौरिया ने बताया कि उक्त परियोजना की डीपीआर तकनीकी रूप से दोषपूर्ण है तथा क्रियान्वयन योग्य नहीं है। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में जलभराव, निर्माण योजना तथा सिंचाई क्षेत्र के बढ़त संबंधी आंकड़े तथा विवरण गलत हैं।
इसके अतिरिक्त प्रोजेक्ट रिपोर्ट नदी के डाउनस्ट्रीम बहाव पर पडऩे वाले प्रभाव के संबंध में कुछ भी आंकड़े देने में अक्षम है, जिससे डाउनस्ट्रीम में केन नदी के किनारे पडने वाले कई गांव में जनजीवन कृषि तथा सिंचाई इत्यादि की हानि होना संभव है। याचिका पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव के विषय में भी उल्लेख करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय का ध्यान लाखों पेड़ों की कटाई, वन क्षेत्र का डूब में आना तथा क्रिटिकल टाइगर एवं वल्चर हैबिटेट नष्ट होने की ओर आकर्षित करती है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि हाल ही में मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के मध्य जल बंटवारा संबंधी समझौता मध्य प्रदेश के हितों के विपरीत है।
उपरोक्त आधारों पर योगेंद्र भदौरिया द्वारा इस परियोजना पर पुनर्विचार कर नई डीपीआर तैयार करने हेतु प्रार्थना की गई है। इस दौरान पुरानी तथा दोषपूर्ण डीपीआर पर किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगाने हेतु भी अनुरोध किया गया है। योगेंद्र भदौरिया की तरफ से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉक्टर सर्वम ऋतम खरे द्वारा की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि शुरूआती दौर से ही विवादों के घेरे में रही इस परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) ने जो रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी थी, उसमें भी परियोजना के औचित्य पर सवाल उठाये गए थे। मालुम हो कि केन-बेतवा लिंक परियोजना से बाघों के रहवास, पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली अपूर्णीय क्षति की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुये मनोज मिश्रा द्वारा भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि पर्यावरणीय अध्ययन में क्षति का सही आँकलन नहीं किया गया है।
इस याचिका में उठाये गये सवालों तथा परियोजना की जमीनी हकीकत जानने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर उसे मौके पर जाकर जाँचने और सत्यापन के आदेश दिये थे। यह कमेटी 27 मार्च से 30 मार्च 19 तक मौके का जायजा लेने के साथ ही पन्ना टाईगर रिजर्व के अधिकारियों, याचिकाकर्ता सहित अन्य लोगों से चर्चा कर हकीकत जानने का प्रयास किया था। पूरे पाँच माह बाद सीईसी ने 93 पृष्ठ की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कमेटी ने यह माना है कि बेतवा बेसिन में पानी की कमी है लेकिन वहां के लिये केन नदी और उसके पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह नहीं किया जा सकता है।
मालुम हो कि केन नदी म.प्र. स्थित कैमूर की पहाड़ी से निकलती है और 427 किमी की दूरी तय करने के बाद उ.प्र. के बांदा में यमुना नदी से मिल जाती है। वहीं बेतवा म.प्र. के रायसेन जिले से निकलती है और 590 किमी की दूरी तय करने के बाद उ.प्र. के हमीरपुर जिले में यमुना से मिल जाती है। दोनों नदियों की यदि तुलना की जाये तो बेतवा नदी की लम्बाई केन नदी से 2.19 गुना अधिक है। दोनों नदियों के कछार के क्षेत्रफल में भी काफी अन्तर है। केन का 28,058 वर्ग किमी है जबकि बेतवा का कछार 46,580 वर्ग किमी है जो केन की तुलना में 1.66 गुना बड़ा है। यहां पर यह मौलिक प्रश्र उठता है कि क्या छोटी नदी से बड़ी नदी में पानी को ले जाना तकनीकी रूप से सही है ? केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में प्रस्तुत की गई पर्यावरणीय अध्ययन रिपोर्ट भी भ्रामक और तथ्यों से परे है। जिसको लेकर पन्ना टाईगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति ने विरोध दर्ज कराते हुये वास्तविक तथ्यों से अवगत कराया था।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र के शुष्क वनों में बाघों का एक मात्र शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व है, जिसका क्षेत्रफल महज 542 वर्ग किमी है। यह सर्व विदित है कि वर्ष 2009 में यह वन क्षेत्र बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप यहां पर बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। इस योजना को चमत्कारिक सफलता मिली और पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल बाघों से फिर आबाद हो गया। पन्ना का गौरव वापस लौटाने से म.प्र. का खोया हुआ गौरव भी हासिल हो गया है। म.प्र. को टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में पन्ना की अहम भूमिका रही है।
अब बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाईगर रिजर्व के भरे-पूरे संसार को फिर से उजाड़े जाने की कोई भी गतिविधि किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कही जा सकती। केन-बेतवा गठजोड़ से डाउन स्ट्रीम के केन घडिय़ाल अभ्यारण्य का जहां वजूद मिट जायेगा वहीं दर्जनों प्रजाति के वन्य प्राणियों व हजारों हेक्टेयर में फैला जंगल भी नष्ट हो जायेगा। पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली इस क्षति की भरपाई कर पाना संभव नहीं है। नदियों के प्राकृतिक प्रवाह के साथ छेड़छाड़ करने का मतलब पारिस्थितिकीय आपदा को बुलाना है।
सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु
- केन-बेतवा लिंक परियोजना के अन्तर्गत डूब में आने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का जंगल पारिस्थितिकी तंत्र और संरचना की दृष्टि से अनूठा है। जैव विविधता के मामले में भी यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध है। इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र को पुन: विकसित नहीं किया जा सकता।
- सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परियोजना के लिये 6017 हेक्टेयर वन भूमि जो अधिगृहित की जा रही है, वह पन्ना टाईगर रिजर्व का न सिर्फ कोर क्षेत्र है अपितु बाघों का प्रिय रहवास भी है। इस वन क्षेत्र के डूब में आने से 10,500 हेक्टेयर वन क्षेत्र और प्रभावित होगा। यह वन क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व से पृथक होकर दो टुकड़ों में बँट जायेगा, जिससे वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित होगा।
- परियोजना पर जितना पैसा खर्च होगा उससे प्रति हेक्टेयर सिंचाई में 44.983 लाख रू. व्यय आयेगा। यदि स्थानीय स्तर पर गाँव के पानी को गाँव में ही रोकने के लिये छोटी परियोजनाओं व जल संरचनाओं पर ध्यान दिया जाये तो कम खर्च में न सिर्फ कृषि भूमि सिंचित हो सकती है अपितु जंगल, बाघ व वन्य प्राणियों के रहवास को भी बचाया जा सकता है।
- सीईसी ने नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ द्वारा केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिये सहमति प्रदान करने के निर्णय पर प्रश्र चिह्न लगाते हुये कहा है कि वन्य प्राणियों के रहवास, अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को अनदेखा किया गया है। डूब क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर एरिया है, इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया।
- सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने रिपोर्ट में द्रढता के साथ यह बात कही है कि किसी भी विकास परियोजना को देश में बचे इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और बाघों के अति महत्वपूर्ण रहवासों को नष्ट करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये। बेहतर यह होगा कि इस तरह की परियोजनाओं को संरक्षित वन क्षेत्रों से प्रथक रखा जाय। संरक्षित वन क्षेत्रों में इस तरह की विकास परियोजनायें न तो वन्य प्राणियों के हित में हैं और न ही लम्बे समय तक समाज के हित में है।
पूर्व कलेक्टर ने परियोजना को बताया था पन्ना के लिए त्राशदी
इंसान के जीवन की सबसे अहम जरूरत शुद्ध हवा और पानी है। जमीन की तरह पानी भी प्रकृति की दी हुई ऐसी सौगात है जिसे हम कृत्रिम रूप से नहीं बना सकते। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा (ऑक्सीजन) हमें वृक्ष प्रदान करते हैं। यदि हमसे पानी और हवा को जबरन छीन लिया जाए, तो हमारी क्या हालत होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। केन बेसिन में रहने वाले लोगों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। नदी जोड़ो परियोजना के जरिए हमारे जीवन का आधार पानी और हवा दोनों हमसे छीना जा रहा है।
पन्ना जिले की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने एक दशक पूर्व ही केन-बेतवा लिंक परियोजना के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए चेताया था। उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को लिखकर यह बताया था कि यदि केन बेसिन के लोगों की पानी की बुनियादी जरूरतें पूरी की जाएं तो केन नदी में कोई अतिरिक्त पानी ही नहीं बचेगा। उन्होंने यहां तक लिखा था कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना केन बेसिन के लोगों के लिए एक त्रासदी होगी।
लिंक परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य
- बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवनदायिनी केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।
- जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।
- बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।
- ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली लिंक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।
- बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।
- 105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।
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